शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

राधापुरम एस्‍टेट: जहां परिवार सहित “अकाल मौत” का मुकम्‍मल इंतजाम कर रहे हैं लोग

मथुरा। नेशनल हाईवे नंबर 2 के सहारे गनेशरा रोड पर बसी हुई गेटबंद कॉलोनी राधापुरम एस्‍टेट, जिले की ही नहीं संभवत: आगरा मंडल की सबसे पॉश कॉलोनी मानी जाती है ।
कॉलोनी की ख्‍याति के अनुरूप यहां एक ओर जनपद का ‘समृद्ध’ तबका निवास करता है तो दूसरी ओर अधिकारियों की भी कोई कमी नहीं है।
समृद्धि का सीधा संबंध बुद्धि से है लिहाजा यह कहना भी मुनासिब होगा कि राधापुरम एस्‍टेट में ‘बुद्धि के पुतलों’ की भरमार है। बुद्धि से धनबल और धनबल से बाहुबल पैदा होना स्‍वाभाविक है इसलिए राधापुरम एस्‍टेट में एक से बढ़कर एक ‘बाहुबलियों’ की खासी तादाद है।
यहां तक तो सब ठीक है किंतु ‘गांठ के पूरे लेकिन आंखों से सूरदास’ राधापुरम एस्‍टेट के अधिकांश निवासियों में अचानक अपनी, और यहां तक कि अपने परिजनों की “अकाल मौत” का मुकम्‍मल इंतजाम करने की होड़ लग गई है।
आश्‍चर्यजनक रूप से इस मामले में कोई अपनी बुद्धि का इस्‍तेमाल नहीं कर रहा और सब के सब एक अंधी दौड़ का हिस्‍सा बनते जा रहे हैं। बिना यह सोचे-समझे कि इस दौड़ का नतीजा क्‍या निकलेगा।
जी हां, यह प्रतिस्‍पर्धा है घर के बाहर सबमर्सिबल लगवाने की। अपने ही मकान की नींव को खोखला कर देने की।
ऐसा नहीं है कि कॉलोनी में पानी की सप्‍लाई न होती हो। पानी की सप्‍लाई के लिए कॉलोनी में बाकायदा टंकी बनी है और सुबह करीब 5 बजे से लेकर दोपहर साढ़े बारह बजे तक तथा शाम 4 बजे से लेकर रात्रि 10 बजे तक वहां से हर घर को पानी मुहैया कराया जाता है।
हालांकि कॉलोनाइजर ने घर बेचते वक्‍त 24X7 पानी की आपूर्ति का दावा किया था किंतु धीरे-धीरे उसमें कमी आने लगी, फिर भी अब सुबह करीब साढ़े सात घंटे और शाम को 6 घंटे पानी दिया जा रहा है जो किसी भी परिवार के लिए पर्याप्‍त है।
चूंकि कॉलोनाइजर ने करीब चार साल पहले अपना आधिपत्‍य छोड़कर कॉलोनी सोसायटी के हवाले कर दी है इसलिए अब पानी-बिजली, सुरक्षा, सफाई आदि की सारी जिम्‍मेदारियां सोसायटी के ऊपर हैं।
बहरहाल, पानी की समस्‍या सबसे पहले तब शुरू हुई जब लोगों ने अपनी सुविधा और मनमर्जी से दूसरी, तीसरी और यहां तक कि चार-चार मंजिलें खड़ी करना शुरू कर दिया। फिर इतनी ऊंचाई पर पानी पहुंचाने के लिए टुल्‍लू पंप लगवाए। टुल्‍लू पंपों की संख्‍या में इजाफा होने का परिणाम यह हुआ कि पहली मंजिल पर रखी टंकियों तक भी पानी पहुंचने में असुविधा होने लगी। ऐसे में हर घर के अंदर टुल्‍लू पंप लग गए।
अब जबकि टुल्‍लू पंपों से पानी खींचे जाना भी समस्‍या बन गया तो लोगों ने निजी बोरिंग कराना शुरू कर दिया है। आज आलम यह है कि कॉलोनी में किसी न किसी घर के सामने बोरिंग होती देखी जा सकती है। बिना यह सोचे-समझे कि धरती की कोख को अंधाधुंध तरीके से खोखला करने का परिणाम आखिर होगा क्‍या। अपने ही मकान की जड़ (नींव) में ‘मठ्ठा’ डालकर क्‍या हासिल करना चाहते हैं लोग।
हाल ही में भूगर्भीय हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाले देश के चार बड़े संस्थानों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8 से भी ज्यादा हो सकती है और तब जान-माल की भीषण तबाही होगी।
उल्‍लेखनीय है कि दिल्‍ली और उससे सटे हुए सारे इलाके जिनमें मथुरा व आगरा भी शामिल है, इस संभावित खतरे की जद में हैं लिहाजा यह अनुमान लगाना बहुत कठिन नहीं कि यदि कभी धरती डोलती है तो परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं।
गौरतलब है कि राधापुरम एस्‍टेट सहित आसपास की सभी कॉलोनियां ‘भर्त’ की जमीन पर खड़ी की गई हैं इसलिए इनका धरातल पहले से ही बहुत मजबूत नहीं है। भू विज्ञानियों की मानें तो ऐसी जमीन पर कई-कई मंजिला इमारत खड़ी करना खतरे से खाली नहीं होता। ऊपर से यदि इस जमीन का सीना बेहिसाब बोरिंगों से छलनी कर दिया जाएगा तो उसके दुष्‍परिणाम झेलने ही पड़ेंगे।
ऐसे में यह कहना अतिशयोक्‍ति नहीं हो सकती कि राधापुरम एस्‍टेट के निवासी न सिर्फ अपने लिए बल्‍कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी किसी अकाल मौत का मुकम्‍मल इंतजाम कर रहे हैं।
यूं भी विश्‍व के बुद्धिजीवी जब यह मान रहे हैं कि भविष्‍य का विश्‍वयुद्ध किसी और चीज के लिए नहीं, पानी के लिए ही लड़ा जाएगा तो पानी की यह बर्बादी और उसका बेइंतहा दोहन कितना उचित है, इसे बताने की जरूरत नहीं रह जाती।
बेशक पानी के बिना जिंदगी की कल्‍पना तक करना मुश्‍किल है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि हम एक लीटर पानी के लिए सैकड़ों लीटर पानी का दोहन सिर्फ इसलिए करें क्‍योंकि ईश्‍वर ने हमें चार पैसे दे दिए हैं।
राधापुरम एस्‍टेट के निवासी भली-भांति जानते हैं कि उनका ही कोई पड़ोसी हर दिन अपनी ‘गाड़ी’ पानी से धुलवाने का आदी है तो कोई सुबह से घर धोने में अकूत पानी बर्बाद कर देता है। किसी के यहां ऊपर रखी पानी की टंकी से घंटों पानी बहता रहता है तो किसी के नल में टोंटी ही नहीं लगी है।
एक ओर पानी का इतना दुरुपयोग और दूसरी ओर चार-पांच लोगों वाले परिवार के लिए मशीन से जमीन का सीना चीरकर लगाए जा रहे सबमर्सिबल। आखिर यह कैसी आत्‍मघाती सोच है, और क्‍यों कोई इसके बारे में चिंतित नहीं है।
किसी को रोकने या टोकने से बेहतर है कि क्‍यों न खुद भी अपने घर के सामने बोरिंग करा ली जाए। एक बोरिंग फेल हुई तो दूसरी, और दूसरी फेल हुई तो तीसरी। यह सिलसिला थमने वाला नहीं है क्‍योंकि सवाल पानी की जरूरत से कहीं अधिक ‘नाक’ का है। नाक नीची कैसे रख सकते हैं।
यह हाल तो तब है कि भूगर्भीय जल का स्‍तर काफी नीचे जा चुका है, पानी के स्‍त्रोत सूख चुके हैं। जल का अक्षय स्‍त्रोत ‘यमुना’ जैसी नदी अपने अस्‍तित्‍व की लड़ाई लड़ रही है। नदी किनारे के कुएं तक पानी को तरस रहे हैं। कुंण्‍ड और तालाबों को बचाने के प्रयास भी काम नहीं आ रहे। बारिश होने का नाम नहीं लेती, जिस कारण समूचा ब्रज क्षेत्र धीरे-धीरे रेगिस्‍तान में तब्‍दील होने लगा है। डार्क जोन लगातार बढ़ रहा है।
आज कराई जा रही डेढ़-दो सौ फीट गहरी बोरिंग भी कितने महीने या साल पानी देगी, इसका पता नहीं लेकिन यह पता है कि उससे हुआ जमीन के सीने का जख्‍म कभी नहीं भरने वाला।
जहां तक सवाल शासन या प्रशासन का है तो वह जब बिना इजाजत तीन-तीन, चार-चार मंजिला इमारत खड़ी करने पर आंखें मूंदे बैठा है तो सबमर्सिबल लगवाने पर क्‍यों कोई कार्यवाही करेगा। 
बहुत दिन नहीं हुए जब सुविधा के लिए शुरू की गई पॉलीथिन आज न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्‍कि जीवन के लिए भी खतरा बन चुकी है। कैंसर जैसी बीमारी तक इसकी देन है। नदी-नाले ही नहीं, समुद्र और पहाड़ तक आज पॉलीथिन से अटे पड़े हैं। किसी की समझ में नहीं आ रहा कि पॉलीथिन रूपी दैत्‍य से पूरी तरह निजात कैसे पाई जाए। सुविधा किसी दिन इतनी बड़ी समस्‍या बनकर सामने खड़ी होगी, शायद ही किसी ने सोचा हो।
इसी तरह सुविधा के लिए धरती का सीना चीरकर अपने ही नींव को खोखला करने की होड़ हमें जिंदगीभर पानी दे पाएगी या नहीं, इसकी तो गारंटी कोई नहीं दे सकता किंतु इस बात की गारंटी जरूर है कि एक दिन यह होड़ जिंदगी पर भारी पड़ने वाली है। यह ऐसा आत्‍मघाती कदम है जिसका खामियाजा भविष्‍य में भुगतना ही पड़ेगा।
बूंद-बूंद से समुद्र बनता है। अब भी समय है कि सख्‍त कदम उठाकर इस अंधानुकरण पर लगाम लगा दी जाए। राधापुरम एस्‍टेट कोई छोटी कॉलोनी नहीं है। सात सौ से अधिक मकान वाली इस कॉलोनी के हर घर में यदि बोरिंग हो गई तो इसे मौत का कुआं बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। अपनी और अपने परिवार की अकाल मौत का मुकम्‍मल इंतजाम करने से ज्‍यादा बेहतर होगा पानी का कोई दूसरा किंतु सार्वजनिक इंतजाम कर लेना। कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाए और जब तक बात समझ में आ पाए तब तक करने के लिए हाथ में कुछ बचे ही नहीं। कॉलोनी ही नहीं, जिंदगी भी आपकी है। जिंदगी है तो सारे सुख भोग पाओगे अन्‍यथा राम-नाम सत्‍य तो है ही।
-Legend News

सोमवार, 9 जुलाई 2018

पहले भी हुई हैं जेल के अंदर गैंगवार: अखिलेश राज में मथुरा जिला जेल के अंदर शुरू हुई गैंगवार चली थी 2 दिन

मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या में तो अब तक मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ एक असलाह का इस्‍तेमाल हुआ किंतु मथुरा जिला जेल में हुई गैंगवार के दौरान दोनों पक्षों ने आधुनिक हथियार चलाए।

उत्तर प्रदेश में जेल के अंदर गैंगवार की यह पहली घटना नहीं है जिसमें कुख्‍यात माफिया डॉन मुन्‍ना बजरंगी को गोलियों से भून डाला गया। इससे पहले भी जेल के अंदर गैंगवार हुई हैं और उसमें बदमाश भी मारे गए हैं।
17 जनवरी 2015 की दोपहर मथुरा जिला जेल में हुई गोलीबारी में एक गैंग से अक्षय सोलंकी को मौत के घाट उतार दिया गया जबकि दूसरे गैंग से राजकुमार शर्मा, दीपक वर्मा और राजेश ऊर्फ टोंटा घायल हुए थे।
मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या में तो अब तक मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ एक असलाह का इस्‍तेमाल हुआ किंतु मथुरा जिला जेल में हुई गैंगवार के दौरान दोनों पक्षों ने आधुनिक हथियार चलाए। पुलिस की कहानी के अनुसार इस गैंगवार में इस्‍तेमाल किए गए नाइन एमएम हथियार बंदी रक्षक कैलाश गुप्‍ता ने पहुंचाए थे। इस गैंगवार के बाद मथुरा जिला जेल से बरामद दोनों हथियार नाइन एमएम (प्रतिबंधित बोर) के थे।
इत्‍तेफाक देखिए कि मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या में भी इसी बोर के हथियार को इस्‍तेमाल किए जाने की बात सामने आ रही है।
दरअसल, मथुरा जिला जेल के अंदर गैंगवार का आगाज़ हाथरस में राजेश टोंटा के घर से शुरू हुआ। जेल के अंदर गैंगवार से कुछ दिन पहले राजेश टोंटा ने अपने घर की तीसरी मंजिल पर पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्‍यात अपराधी ब्रजेश मावी का धोखे से कत्‍ल करके उसकी लाश को ठिकाने लगा दिया था। राजेश टोंटा और ब्रजेश मावी यूं तो गहरे दोस्‍त थे किंतु बताया जाता है कि उनके बीच किसी जमीन को लेकर रंजिश पनपी और उसी रंजिश के चलते टोंटा ने मावी की बेरहमी से हत्‍या कर दी।
इसी हत्‍या के केस के तहत पुलिस ने राजेश टोंटा को हाथरस से गिरफ्तार किया था और सुरक्षा के मद्देनजर मथुरा कारागार में शिफ्ट किया।
बागपत जिला जेल में हुई मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या से कहीं बहुत आगे मथुरा में तो 17 जनवरी 2015 को जेल के अंदर 1 हत्‍या हो जाने और राजेश टोंटा सहित तीन बदमाशों के घायल हो जाने के बाद दूसरे ही दिन 18 जनवरी को टोंटा को तब गोलियों से भून डाला गया जब उसे इलाज के लिए एंबुलेंस में भारी पुलिस फोर्स के साथ मथुरा की एसएसपी मंजिल सैनी आगरा ले जा रही थीं।
मथुरा के फरह थाना क्षेत्र में नेशनल हाईवे नंबर 2 पर मथुरा-आगरा के बीच पचासों पुलिसकर्मियों के रहते एंबुलेंस के अंदर राजेश टोंटा को गोलियों से भून डाला गया और न तो पुलिस एक भी बदमाश को मौके से पकड़ सकी और न टोंटा के साथ एंबुलेंस में मौजूद कोई पुलिसकर्मी घायल हुआ।
अपराध जगत में राजेश टोंटा के नाम से कुख्‍यात रहे हाथरस निवासी राजेश शर्मा की पत्‍नी कनक शर्मा ने अपने पति की हत्‍या का आरोप मथुरा की महिला एसएसपी मंजिल सैनी पर लगाया। कनक शर्मा ने इस मामले में बाकायदा मथुरा के थाना फरह को इस आशय की तहरीर दी। तहरीर के मुताबिक राजेश टोंटा की हत्‍या का सौदा एसएसपी मंजिल सैनी ने 3 करोड़ की मोटी रकम लेकर किया था।
कनक शर्मा द्वारा इस मामले में ब्रजेश मावी के अवकाश प्राप्‍त पुलिस ऑफीसर पिता राजेन्‍द्र सिंह, मावी की पत्‍नी सीमा, विनोद चौधरी एवं प्रमोद चौधरी पुत्रगण पुरुषोत्तम सिंह निवासीगण सी-18 हरीनगर कृष्णानगर मथुरा और एसएसपी मंजिल सैनी शामिल बताए गए।
कुल मिलाकर यदि ये कहा जाए कि उत्तर प्रदेश की जेलें हर दौर में कुख्‍यात अपराधियों के लिए सजा का ठिकाना न होकर संरक्षण के केंद्र रही हैं तो कुछ गलत नहीं होगा। राज चाहे आज योगी का हो अथवा अखिलेश, मुलायम या मायावती का।
भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहीं मायावती के शासनकाल में 1995 के दौरान भी मथुरा जिला कारागार के अंदर वाले गेट पर हुई गोलीबारी में किशन पुटरो के साथ जेल के एक सफाईकर्मी की भी हत्‍या गोलियां बरसाकर कर दी गई थी।
कहने का आशय यह है कि उत्तर प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था एक लंबे समय से बदहाल है। यह बात अलग है कि जिस तरह आज योगी आदित्‍यनाथ पहले से बेहतर कानून-व्‍यवस्‍था होने का दावा करते हैं, उसी तरह मायावती और अखिलेश भी अपने-अपने समय में कानून का राज होने का दावा करते रहे थे किंतु सच्‍चाई यही है जो मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या से सामने आई है या राजेश टोंटा एवं अक्षय सोलंकी की हत्‍या से सामने आई थी।
अखिलेश राज में हुआ जवाहर बाग कांड भी इसी बदहाल कानून-व्‍यवस्‍था का उदाहरण बना था। तब मथुरा के सरकारी जवाहर बाग को राजनीतिक संरक्षणप्राप्‍त माफिया रामवृक्ष यादव से खाली कराने गए एसपी सिटी और एसओ को भारी पुलिसबल की मौजूदगी में मार दिया गया।
सच तो यह है कि सरकारें आती जाती रहती हैं लेकिन कानून-व्‍यवस्‍था जस की तस रहती है। निश्‍चित ही इसके लिए वो व्‍यवस्‍था दोषी है जिसके कारण पुलिस-प्रशासन का पूरी तरह राजनीतिकरण हो चुका है। जाहिर है कि जब तक पुलिस-प्रशासन के इस राजनीतिकरण को खत्‍म नहीं किया जाता तब तक न सड़क पर अपराध कम होंगे और न जेल के अंदर।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

लोकसभा चुनाव 2019: 120 सांसदों का पत्ता काटने की तैयारी में भाजपा, डेढ़ दर्जन मंत्री भी शामिल

2019 के लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी करीब 120 सिटिंग सांसदों का पत्ता काटने वाली है। इनमें करीब डेढ़ दर्जन सांसद तो ऐसे हैं जो वर्तमान मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बने बैठे हैं। पार्टी अब इन सांसदों को टिकट देने के ही मूड में नहीं है।
इस बावत पार्टी के शीर्ष नेतृत्‍व द्वारा की गई मीटिंग में उपस्‍थित रहे सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार भाजपा अपने इस समय मौजूद कुल 273 लोकसभा सदस्‍यों में से लगभग 45 प्रतिशत सदस्‍यों का पत्ता काटने की तैयारी कर चुकी है जिनमें वो 19 सांसद भी शामिल हैं जो 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 75 साल की उम्र पूरी करने वाले हैं।
75 साल और उससे अधिक की उम्र वाले ऐसे सांसदों में पार्टी के मार्गदर्शक मंडल से लालकृष्‍ण आडवाणी तथा मुरली मनोहर जोशी के अलावा करिया मुंडा, शांता कुमार, भुवनचंद्र खंडूरी, लीलाधरभाई वाघेला, कलराज मिश्र, रामटहल चौधरी, हुकुमदेव नारायण यादव के नाम प्रमुख हैं।
बताया जाता है कि 75 साल की उम्र पूरी करने वाले सांसदों के अलावा जिन सांसदों का टिकट 2019 में काटा जाना है, उनकी परफॉरमेंस के बारे में पार्टी ने विभिन्‍न स्‍तर पर अपने सोर्सेज से फीडबैक ले लिया है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक फीडबैक देने वालों में राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ यानि आरएसएस के अलावा चुनिंदा पार्टी कार्यकर्ता तो हैं ही, साथ ही कुछ प्राइवेट एजेंसीज तथा ”नमो एप” की भी महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है।
इन सभी सोर्सेज ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी को अपने-अपने सर्वे से अवगत कराया है और इसी आधार पर यह निर्णय लेने की तैयारी की गई है ताकि समय रहते 2019 के लिए लोकप्रिय व ईमानदार चेहरों को तलाश लिया जाए।
गत दिनों हरियाणा के सूरजकुंड में इस विषय पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्‍व द्वारा की गई बैठक में राष्‍ट्रीय सचिव और महासचिव एवं आरएसएस के वरिष्‍ठ नेता भी मौजूद थे। इस बैठक में विस्‍तृत रूप से इस बात पर चर्चा के बाद सहमति बनी कि नाकाबिल सिटिंग सांसदों को टिकट न दिया जाए।
ऐसे सांसदों में सबसे अहम नाम विदेश मंत्री और मध्‍य प्रदेश के विदिशा से सांसद सुषमा स्‍वराज का है क्‍योंकि विदिशा की जनता सुषमा स्‍वराज से खासी नाराज बताई गई है। इसके अलावा नीति आयोग ने भी विदिशा की विकास संबंधी रिपोर्ट को बहुत खराब बताया है।
बताया जाता है कि संगठन के सचिव और महासचिवों ने अपनी रिपोर्ट में जिन सांसदों की जनता के बीच परफॉरमेंस और पॉपुलेरिटी पूअर बताई गई है, उनकी संख्‍या एक सैकड़ा से अधिक है।
ऐसे सभी सांसदों को पार्टी ने अंतिम रूप से अधिकतम 6 माह का समय इसलिए दिया है कि यदि वह इस दौरान अपनी परफॉरमेंस को पूअर से प्रॉपर बना पाते हैं तो उन्‍हें चुनाव लड़ाने के बावत विचार किया जा सकता है।
पार्टी ने ये समय भी इसलिए दिया है ताकि इसी वर्ष चार राज्‍यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के नतीजे भी सामने आ जाएं और वहां के सिटिंग भाजपा सांसदों की परफॉरमेंस का ठोस आकलन किया जा सके।
इन सब के अलावा पार्टी उन सांसदों को रीप्‍लेस करने का पूरा मन बना चुकी है जिन्‍होंने पार्टी के अंदर रहकर मोदी सरकार के काम-काज की न सिर्फ तीखी आलोचना की है बल्‍कि समय-समय पर पार्टी को नुकसान पहुंचाने का काम भी किया है।
पार्टी के अंदरुनी और अत्‍यंत भरोसमंद इन सूत्रों के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनावों में जिन सांसदों का पत्ता काटा जाना है उनमें से करीब डेढ़ दर्जन ने उत्तर प्रदेश से जबकि 26 ने मध्‍यप्रदेश जीत हासिल की थी। बाकी का ताल्‍लुक राजस्‍थान, बिहार, मध्‍य प्रदेश, कर्नाटक व गुजरात से है।
इस सबके बीच पार्टी ने इस बात का भी पूरा ख्‍याल रखा है कि विपक्ष का संभावित गठबंधन कौन-कौन से और कहां-कहां के उम्‍मीदवारों को प्रभावित कर सकता है।
उल्‍लेखनीय है कि मथुरा भी ऐसा ही संसदीय क्षेत्र है जहां विपक्ष का संभावित गठबंधन भाजपा के सामने संकट खड़े कर सकता है।
मथुरा से 2014 में भी भाजपा ने बाहरी प्रत्‍याशी सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी को चुनाव लड़वाया क्‍योंकि तब यहां पार्टी को कोई जिताऊ कद्दावर प्रत्‍याशी नहीं मिल सका था।
बाहरी प्रत्‍याशियों को लेकर मथुरा की जनता का जैसा कटु अनुभव पूर्व में रहा है, उसमें फिलहाल कोई उल्‍लेखनीय प्रगति नहीं हो सकी है। बात चाहे हरियाणा से आए मनीराम बागड़ी की हो अथवा फर्रुखाबाद से आए डॉ. सच्‍चिदानंद हरि साक्षी महाराज की। रालोद के युवराज जयंत चौधरी की हो अथवा मायानगरी से आईं स्‍वप्‍न सुंदरी हेमा मालिनी की।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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