मथुरा। नेशनल हाईवे नंबर 2 के सहारे गनेशरा रोड पर बसी हुई गेटबंद कॉलोनी राधापुरम एस्टेट, जिले की ही नहीं संभवत: आगरा मंडल की सबसे पॉश कॉलोनी मानी जाती है ।
कॉलोनी की ख्याति के अनुरूप यहां एक ओर जनपद का ‘समृद्ध’ तबका निवास करता है तो दूसरी ओर अधिकारियों की भी कोई कमी नहीं है।
समृद्धि का सीधा संबंध बुद्धि से है लिहाजा यह कहना भी मुनासिब होगा कि राधापुरम एस्टेट में ‘बुद्धि के पुतलों’ की भरमार है। बुद्धि से धनबल और धनबल से बाहुबल पैदा होना स्वाभाविक है इसलिए राधापुरम एस्टेट में एक से बढ़कर एक ‘बाहुबलियों’ की खासी तादाद है।
यहां तक तो सब ठीक है किंतु ‘गांठ के पूरे लेकिन आंखों से सूरदास’ राधापुरम एस्टेट के अधिकांश निवासियों में अचानक अपनी, और यहां तक कि अपने परिजनों की “अकाल मौत” का मुकम्मल इंतजाम करने की होड़ लग गई है।
आश्चर्यजनक रूप से इस मामले में कोई अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं कर रहा और सब के सब एक अंधी दौड़ का हिस्सा बनते जा रहे हैं। बिना यह सोचे-समझे कि इस दौड़ का नतीजा क्या निकलेगा।
जी हां, यह प्रतिस्पर्धा है घर के बाहर सबमर्सिबल लगवाने की। अपने ही मकान की नींव को खोखला कर देने की।
ऐसा नहीं है कि कॉलोनी में पानी की सप्लाई न होती हो। पानी की सप्लाई के लिए कॉलोनी में बाकायदा टंकी बनी है और सुबह करीब 5 बजे से लेकर दोपहर साढ़े बारह बजे तक तथा शाम 4 बजे से लेकर रात्रि 10 बजे तक वहां से हर घर को पानी मुहैया कराया जाता है।
हालांकि कॉलोनाइजर ने घर बेचते वक्त 24X7 पानी की आपूर्ति का दावा किया था किंतु धीरे-धीरे उसमें कमी आने लगी, फिर भी अब सुबह करीब साढ़े सात घंटे और शाम को 6 घंटे पानी दिया जा रहा है जो किसी भी परिवार के लिए पर्याप्त है।
चूंकि कॉलोनाइजर ने करीब चार साल पहले अपना आधिपत्य छोड़कर कॉलोनी सोसायटी के हवाले कर दी है इसलिए अब पानी-बिजली, सुरक्षा, सफाई आदि की सारी जिम्मेदारियां सोसायटी के ऊपर हैं।
बहरहाल, पानी की समस्या सबसे पहले तब शुरू हुई जब लोगों ने अपनी सुविधा और मनमर्जी से दूसरी, तीसरी और यहां तक कि चार-चार मंजिलें खड़ी करना शुरू कर दिया। फिर इतनी ऊंचाई पर पानी पहुंचाने के लिए टुल्लू पंप लगवाए। टुल्लू पंपों की संख्या में इजाफा होने का परिणाम यह हुआ कि पहली मंजिल पर रखी टंकियों तक भी पानी पहुंचने में असुविधा होने लगी। ऐसे में हर घर के अंदर टुल्लू पंप लग गए।
अब जबकि टुल्लू पंपों से पानी खींचे जाना भी समस्या बन गया तो लोगों ने निजी बोरिंग कराना शुरू कर दिया है। आज आलम यह है कि कॉलोनी में किसी न किसी घर के सामने बोरिंग होती देखी जा सकती है। बिना यह सोचे-समझे कि धरती की कोख को अंधाधुंध तरीके से खोखला करने का परिणाम आखिर होगा क्या। अपने ही मकान की जड़ (नींव) में ‘मठ्ठा’ डालकर क्या हासिल करना चाहते हैं लोग।
हाल ही में भूगर्भीय हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाले देश के चार बड़े संस्थानों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8 से भी ज्यादा हो सकती है और तब जान-माल की भीषण तबाही होगी।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली और उससे सटे हुए सारे इलाके जिनमें मथुरा व आगरा भी शामिल है, इस संभावित खतरे की जद में हैं लिहाजा यह अनुमान लगाना बहुत कठिन नहीं कि यदि कभी धरती डोलती है तो परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं।
गौरतलब है कि राधापुरम एस्टेट सहित आसपास की सभी कॉलोनियां ‘भर्त’ की जमीन पर खड़ी की गई हैं इसलिए इनका धरातल पहले से ही बहुत मजबूत नहीं है। भू विज्ञानियों की मानें तो ऐसी जमीन पर कई-कई मंजिला इमारत खड़ी करना खतरे से खाली नहीं होता। ऊपर से यदि इस जमीन का सीना बेहिसाब बोरिंगों से छलनी कर दिया जाएगा तो उसके दुष्परिणाम झेलने ही पड़ेंगे।
ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं हो सकती कि राधापुरम एस्टेट के निवासी न सिर्फ अपने लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी किसी अकाल मौत का मुकम्मल इंतजाम कर रहे हैं।
यूं भी विश्व के बुद्धिजीवी जब यह मान रहे हैं कि भविष्य का विश्वयुद्ध किसी और चीज के लिए नहीं, पानी के लिए ही लड़ा जाएगा तो पानी की यह बर्बादी और उसका बेइंतहा दोहन कितना उचित है, इसे बताने की जरूरत नहीं रह जाती।
बेशक पानी के बिना जिंदगी की कल्पना तक करना मुश्किल है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि हम एक लीटर पानी के लिए सैकड़ों लीटर पानी का दोहन सिर्फ इसलिए करें क्योंकि ईश्वर ने हमें चार पैसे दे दिए हैं।
राधापुरम एस्टेट के निवासी भली-भांति जानते हैं कि उनका ही कोई पड़ोसी हर दिन अपनी ‘गाड़ी’ पानी से धुलवाने का आदी है तो कोई सुबह से घर धोने में अकूत पानी बर्बाद कर देता है। किसी के यहां ऊपर रखी पानी की टंकी से घंटों पानी बहता रहता है तो किसी के नल में टोंटी ही नहीं लगी है।
एक ओर पानी का इतना दुरुपयोग और दूसरी ओर चार-पांच लोगों वाले परिवार के लिए मशीन से जमीन का सीना चीरकर लगाए जा रहे सबमर्सिबल। आखिर यह कैसी आत्मघाती सोच है, और क्यों कोई इसके बारे में चिंतित नहीं है।
किसी को रोकने या टोकने से बेहतर है कि क्यों न खुद भी अपने घर के सामने बोरिंग करा ली जाए। एक बोरिंग फेल हुई तो दूसरी, और दूसरी फेल हुई तो तीसरी। यह सिलसिला थमने वाला नहीं है क्योंकि सवाल पानी की जरूरत से कहीं अधिक ‘नाक’ का है। नाक नीची कैसे रख सकते हैं।
यह हाल तो तब है कि भूगर्भीय जल का स्तर काफी नीचे जा चुका है, पानी के स्त्रोत सूख चुके हैं। जल का अक्षय स्त्रोत ‘यमुना’ जैसी नदी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। नदी किनारे के कुएं तक पानी को तरस रहे हैं। कुंण्ड और तालाबों को बचाने के प्रयास भी काम नहीं आ रहे। बारिश होने का नाम नहीं लेती, जिस कारण समूचा ब्रज क्षेत्र धीरे-धीरे रेगिस्तान में तब्दील होने लगा है। डार्क जोन लगातार बढ़ रहा है।
आज कराई जा रही डेढ़-दो सौ फीट गहरी बोरिंग भी कितने महीने या साल पानी देगी, इसका पता नहीं लेकिन यह पता है कि उससे हुआ जमीन के सीने का जख्म कभी नहीं भरने वाला।
जहां तक सवाल शासन या प्रशासन का है तो वह जब बिना इजाजत तीन-तीन, चार-चार मंजिला इमारत खड़ी करने पर आंखें मूंदे बैठा है तो सबमर्सिबल लगवाने पर क्यों कोई कार्यवाही करेगा।
बहुत दिन नहीं हुए जब सुविधा के लिए शुरू की गई पॉलीथिन आज न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि जीवन के लिए भी खतरा बन चुकी है। कैंसर जैसी बीमारी तक इसकी देन है। नदी-नाले ही नहीं, समुद्र और पहाड़ तक आज पॉलीथिन से अटे पड़े हैं। किसी की समझ में नहीं आ रहा कि पॉलीथिन रूपी दैत्य से पूरी तरह निजात कैसे पाई जाए। सुविधा किसी दिन इतनी बड़ी समस्या बनकर सामने खड़ी होगी, शायद ही किसी ने सोचा हो।
इसी तरह सुविधा के लिए धरती का सीना चीरकर अपने ही नींव को खोखला करने की होड़ हमें जिंदगीभर पानी दे पाएगी या नहीं, इसकी तो गारंटी कोई नहीं दे सकता किंतु इस बात की गारंटी जरूर है कि एक दिन यह होड़ जिंदगी पर भारी पड़ने वाली है। यह ऐसा आत्मघाती कदम है जिसका खामियाजा भविष्य में भुगतना ही पड़ेगा।
बूंद-बूंद से समुद्र बनता है। अब भी समय है कि सख्त कदम उठाकर इस अंधानुकरण पर लगाम लगा दी जाए। राधापुरम एस्टेट कोई छोटी कॉलोनी नहीं है। सात सौ से अधिक मकान वाली इस कॉलोनी के हर घर में यदि बोरिंग हो गई तो इसे मौत का कुआं बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। अपनी और अपने परिवार की अकाल मौत का मुकम्मल इंतजाम करने से ज्यादा बेहतर होगा पानी का कोई दूसरा किंतु सार्वजनिक इंतजाम कर लेना। कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाए और जब तक बात समझ में आ पाए तब तक करने के लिए हाथ में कुछ बचे ही नहीं। कॉलोनी ही नहीं, जिंदगी भी आपकी है। जिंदगी है तो सारे सुख भोग पाओगे अन्यथा राम-नाम सत्य तो है ही।
-Legend News
कॉलोनी की ख्याति के अनुरूप यहां एक ओर जनपद का ‘समृद्ध’ तबका निवास करता है तो दूसरी ओर अधिकारियों की भी कोई कमी नहीं है।
समृद्धि का सीधा संबंध बुद्धि से है लिहाजा यह कहना भी मुनासिब होगा कि राधापुरम एस्टेट में ‘बुद्धि के पुतलों’ की भरमार है। बुद्धि से धनबल और धनबल से बाहुबल पैदा होना स्वाभाविक है इसलिए राधापुरम एस्टेट में एक से बढ़कर एक ‘बाहुबलियों’ की खासी तादाद है।
यहां तक तो सब ठीक है किंतु ‘गांठ के पूरे लेकिन आंखों से सूरदास’ राधापुरम एस्टेट के अधिकांश निवासियों में अचानक अपनी, और यहां तक कि अपने परिजनों की “अकाल मौत” का मुकम्मल इंतजाम करने की होड़ लग गई है।
आश्चर्यजनक रूप से इस मामले में कोई अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं कर रहा और सब के सब एक अंधी दौड़ का हिस्सा बनते जा रहे हैं। बिना यह सोचे-समझे कि इस दौड़ का नतीजा क्या निकलेगा।
जी हां, यह प्रतिस्पर्धा है घर के बाहर सबमर्सिबल लगवाने की। अपने ही मकान की नींव को खोखला कर देने की।
ऐसा नहीं है कि कॉलोनी में पानी की सप्लाई न होती हो। पानी की सप्लाई के लिए कॉलोनी में बाकायदा टंकी बनी है और सुबह करीब 5 बजे से लेकर दोपहर साढ़े बारह बजे तक तथा शाम 4 बजे से लेकर रात्रि 10 बजे तक वहां से हर घर को पानी मुहैया कराया जाता है।
हालांकि कॉलोनाइजर ने घर बेचते वक्त 24X7 पानी की आपूर्ति का दावा किया था किंतु धीरे-धीरे उसमें कमी आने लगी, फिर भी अब सुबह करीब साढ़े सात घंटे और शाम को 6 घंटे पानी दिया जा रहा है जो किसी भी परिवार के लिए पर्याप्त है।
चूंकि कॉलोनाइजर ने करीब चार साल पहले अपना आधिपत्य छोड़कर कॉलोनी सोसायटी के हवाले कर दी है इसलिए अब पानी-बिजली, सुरक्षा, सफाई आदि की सारी जिम्मेदारियां सोसायटी के ऊपर हैं।
बहरहाल, पानी की समस्या सबसे पहले तब शुरू हुई जब लोगों ने अपनी सुविधा और मनमर्जी से दूसरी, तीसरी और यहां तक कि चार-चार मंजिलें खड़ी करना शुरू कर दिया। फिर इतनी ऊंचाई पर पानी पहुंचाने के लिए टुल्लू पंप लगवाए। टुल्लू पंपों की संख्या में इजाफा होने का परिणाम यह हुआ कि पहली मंजिल पर रखी टंकियों तक भी पानी पहुंचने में असुविधा होने लगी। ऐसे में हर घर के अंदर टुल्लू पंप लग गए।
अब जबकि टुल्लू पंपों से पानी खींचे जाना भी समस्या बन गया तो लोगों ने निजी बोरिंग कराना शुरू कर दिया है। आज आलम यह है कि कॉलोनी में किसी न किसी घर के सामने बोरिंग होती देखी जा सकती है। बिना यह सोचे-समझे कि धरती की कोख को अंधाधुंध तरीके से खोखला करने का परिणाम आखिर होगा क्या। अपने ही मकान की जड़ (नींव) में ‘मठ्ठा’ डालकर क्या हासिल करना चाहते हैं लोग।
हाल ही में भूगर्भीय हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाले देश के चार बड़े संस्थानों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8 से भी ज्यादा हो सकती है और तब जान-माल की भीषण तबाही होगी।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली और उससे सटे हुए सारे इलाके जिनमें मथुरा व आगरा भी शामिल है, इस संभावित खतरे की जद में हैं लिहाजा यह अनुमान लगाना बहुत कठिन नहीं कि यदि कभी धरती डोलती है तो परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं।
गौरतलब है कि राधापुरम एस्टेट सहित आसपास की सभी कॉलोनियां ‘भर्त’ की जमीन पर खड़ी की गई हैं इसलिए इनका धरातल पहले से ही बहुत मजबूत नहीं है। भू विज्ञानियों की मानें तो ऐसी जमीन पर कई-कई मंजिला इमारत खड़ी करना खतरे से खाली नहीं होता। ऊपर से यदि इस जमीन का सीना बेहिसाब बोरिंगों से छलनी कर दिया जाएगा तो उसके दुष्परिणाम झेलने ही पड़ेंगे।
ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं हो सकती कि राधापुरम एस्टेट के निवासी न सिर्फ अपने लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी किसी अकाल मौत का मुकम्मल इंतजाम कर रहे हैं।
यूं भी विश्व के बुद्धिजीवी जब यह मान रहे हैं कि भविष्य का विश्वयुद्ध किसी और चीज के लिए नहीं, पानी के लिए ही लड़ा जाएगा तो पानी की यह बर्बादी और उसका बेइंतहा दोहन कितना उचित है, इसे बताने की जरूरत नहीं रह जाती।
बेशक पानी के बिना जिंदगी की कल्पना तक करना मुश्किल है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि हम एक लीटर पानी के लिए सैकड़ों लीटर पानी का दोहन सिर्फ इसलिए करें क्योंकि ईश्वर ने हमें चार पैसे दे दिए हैं।
राधापुरम एस्टेट के निवासी भली-भांति जानते हैं कि उनका ही कोई पड़ोसी हर दिन अपनी ‘गाड़ी’ पानी से धुलवाने का आदी है तो कोई सुबह से घर धोने में अकूत पानी बर्बाद कर देता है। किसी के यहां ऊपर रखी पानी की टंकी से घंटों पानी बहता रहता है तो किसी के नल में टोंटी ही नहीं लगी है।
एक ओर पानी का इतना दुरुपयोग और दूसरी ओर चार-पांच लोगों वाले परिवार के लिए मशीन से जमीन का सीना चीरकर लगाए जा रहे सबमर्सिबल। आखिर यह कैसी आत्मघाती सोच है, और क्यों कोई इसके बारे में चिंतित नहीं है।
किसी को रोकने या टोकने से बेहतर है कि क्यों न खुद भी अपने घर के सामने बोरिंग करा ली जाए। एक बोरिंग फेल हुई तो दूसरी, और दूसरी फेल हुई तो तीसरी। यह सिलसिला थमने वाला नहीं है क्योंकि सवाल पानी की जरूरत से कहीं अधिक ‘नाक’ का है। नाक नीची कैसे रख सकते हैं।
यह हाल तो तब है कि भूगर्भीय जल का स्तर काफी नीचे जा चुका है, पानी के स्त्रोत सूख चुके हैं। जल का अक्षय स्त्रोत ‘यमुना’ जैसी नदी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। नदी किनारे के कुएं तक पानी को तरस रहे हैं। कुंण्ड और तालाबों को बचाने के प्रयास भी काम नहीं आ रहे। बारिश होने का नाम नहीं लेती, जिस कारण समूचा ब्रज क्षेत्र धीरे-धीरे रेगिस्तान में तब्दील होने लगा है। डार्क जोन लगातार बढ़ रहा है।
आज कराई जा रही डेढ़-दो सौ फीट गहरी बोरिंग भी कितने महीने या साल पानी देगी, इसका पता नहीं लेकिन यह पता है कि उससे हुआ जमीन के सीने का जख्म कभी नहीं भरने वाला।
जहां तक सवाल शासन या प्रशासन का है तो वह जब बिना इजाजत तीन-तीन, चार-चार मंजिला इमारत खड़ी करने पर आंखें मूंदे बैठा है तो सबमर्सिबल लगवाने पर क्यों कोई कार्यवाही करेगा।
बहुत दिन नहीं हुए जब सुविधा के लिए शुरू की गई पॉलीथिन आज न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि जीवन के लिए भी खतरा बन चुकी है। कैंसर जैसी बीमारी तक इसकी देन है। नदी-नाले ही नहीं, समुद्र और पहाड़ तक आज पॉलीथिन से अटे पड़े हैं। किसी की समझ में नहीं आ रहा कि पॉलीथिन रूपी दैत्य से पूरी तरह निजात कैसे पाई जाए। सुविधा किसी दिन इतनी बड़ी समस्या बनकर सामने खड़ी होगी, शायद ही किसी ने सोचा हो।
इसी तरह सुविधा के लिए धरती का सीना चीरकर अपने ही नींव को खोखला करने की होड़ हमें जिंदगीभर पानी दे पाएगी या नहीं, इसकी तो गारंटी कोई नहीं दे सकता किंतु इस बात की गारंटी जरूर है कि एक दिन यह होड़ जिंदगी पर भारी पड़ने वाली है। यह ऐसा आत्मघाती कदम है जिसका खामियाजा भविष्य में भुगतना ही पड़ेगा।
बूंद-बूंद से समुद्र बनता है। अब भी समय है कि सख्त कदम उठाकर इस अंधानुकरण पर लगाम लगा दी जाए। राधापुरम एस्टेट कोई छोटी कॉलोनी नहीं है। सात सौ से अधिक मकान वाली इस कॉलोनी के हर घर में यदि बोरिंग हो गई तो इसे मौत का कुआं बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। अपनी और अपने परिवार की अकाल मौत का मुकम्मल इंतजाम करने से ज्यादा बेहतर होगा पानी का कोई दूसरा किंतु सार्वजनिक इंतजाम कर लेना। कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाए और जब तक बात समझ में आ पाए तब तक करने के लिए हाथ में कुछ बचे ही नहीं। कॉलोनी ही नहीं, जिंदगी भी आपकी है। जिंदगी है तो सारे सुख भोग पाओगे अन्यथा राम-नाम सत्य तो है ही।
-Legend News
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया बताते चलें कि ये पोस्ट कैसी लगी ?