बुधवार, 12 जून 2024

नयति की नियति को प्राप्‍त होने जा रहा है मथुरा का एक मशहूर हॉस्पिटल, चेयरमैन की विदेशी डिग्री भी चर्चा का विषय


 कॉर्पोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया ने कृष्ण की पावन स्थली मथुरा से 28 फरवरी 2016 को एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का संचालन शुरू किया था। 'नयति' के नाम से खोले गए इस हॉस्पिटल का उद्घाटन देश के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के हाथों कराया गया। नेशनल हाईवे से सटी एक जमीन को लीज पर लेकर शुरू किए गए इस हॉस्पिटल ने बहुत कम समय में अच्‍छी खासी शोहरत हासिल कर ली लेकिन हॉस्पिटल की चेयरपर्सन नीरा राडिया का मकसद संभवत: कुछ और था, लिहाजा हॉस्पिटल के चर्चे इलाज से अधिक विवादों के कारण होने लगे। नीरा राडिया ने इन विवादों पर ध्‍यान देने की बजाय उन्‍हें दबाने में अधिक रुचि ली जिसके परिणाम स्‍वरूप मात्र चार साल में 'नयति' अपनी 'नियति' को प्राप्‍त हो गया। आज इस हॉस्‍पिटल पर ताला लटका है। 

मथुरा का एक अन्य हॉस्‍पिटल भी अब उसी राह पर 
नयति की तरह ही नेशनल हाईवे के किनारे लीज की जमीन पर शुरू किया गया एक अन्य हॉस्‍पिटल भी अब उसी राह पर चल पड़ा है। बहुत कम समय में इस हॉस्‍पिटल ने भी प्रसिद्धि के साथ-साथ विवादों को जन्म देना प्रारंभ कर दिया है। इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और कि नयति की तरह ही इस हॉस्‍पिटल में भी एक ओर जहां मरीजों के परिजनों से रूखा व्‍यवहार करना, मनमाने पैसे वसूलना तथा गोपनीयता की आड़ लेकर इलाज की कोई जानकारी न देना एवं मरीज की स्‍थिति न बताने जैसी बातें काफी आम हो चुकी हैं। वहीं दूसरी ओर नयति की तरह ही इस हॉस्‍पिटल में सेवारत डॉक्‍टर्स समय पर अपना वेतन पाने के लिए तरसने लगे हैं जिससे हॉस्‍पिटल के भविष्य का अनुमान लगाना कोई बड़ी बात नहीं रह गई। 
बताया जाता है हॉस्‍पिटल के लिए बैंक से प्राप्‍त कर्ज की किस्‍तें भी अब समय पर अदा नहीं की जा रही हैं।   
हॉस्‍पिटल के सूत्रों की मानें तो इस सबका एक बड़ा कारण संचालक द्वारा हॉस्‍पिटल से होने वाली आमदनी का बड़ा हिस्‍सा जमीनों की खरीद-फरोख्‍त में निवेश करना है ताकि एकमुश्‍त मोटी कमाई की जा सके। 
नयति सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की चेयरपर्सन नीरा राडिया और इस हॉस्‍पिटल के चेयरमैन में एक और बड़ी समानता है। सब जानते हैं कि नीरा राडिया शासन-प्रशासन में बने अपने रसूख का इस्‍तेमाल नयति या खुद के ऊपर लगे आरोपों को दबाने में करती रहीं, इसलिए नीरा राडिया के खिलाफ तमाम लोग मुंह खोलने को आसानी से तैयार नहीं होते थे। 
ठीक इसी तरह इस हॉस्‍पिटल के चेयरमैन भी पुलिस-प्रशासन के साथ-साथ सत्ता के गलियारों तक उठने-बैठने में रुचि रखते हैं, और उससे बने अपने प्रभाव का प्रयोग अपने अथवा हॉस्‍पिटल के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने में कर रहे हैं। 
फर्क सिर्फ इतना है कि नीरा राडिया चिकित्सकीय पेशे से ताल्‍लुक नहीं रखती थीं जबकि ये महोदय इसी पेशे से ताल्लुक रखते हैं। हालांकि विदेश से प्राप्‍त इनकी डिग्री अच्‍छी-खासी चर्चा का विषय बनी हुई है। 
चेयरमैन की डिग्री को लेकर चर्चा क्यों? 
बताया जाता है चिकित्सकीय पेशे से जुड़े लोगों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की मथुरा इकाई में भी इस हॉस्‍पिटल के 'चेयरमैन डॉक्‍टर' की डिग्री चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि उन्‍होंने अपनी पढ़ाई भारत से न करके ऐसे देश से की है जो दुनिया में सबसे सस्‍ती चिकित्सकीय एजुकेशन देने के लिए पहचाना जाता है। 
यूं भी किसी दूसरे देश से डॉक्‍टरी की पढ़ाई पूरी करके आने वालों के लिए भारत में प्रेक्टिस शुरू करने से पहले फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (FMGE) की परीक्षा पास करनी होती है। 
क्या कहते हैं भारत के नियम-कानून 
भारत सरकार के नियमानुसार विदेश से MBBS की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौटने वाले डॉक्टर को पहले यहां फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (FMGE) की परीक्षा पास करनी पड़ती है और तभी वह यहां प्रेक्टिस करने के लिए अधिकृत माने जाते हैं। इस परीक्षा को पास किए बिना वे भारत में मेडिकल प्रैक्टिस नहीं कर सकते। उन्हें लाइसेंस ही नहीं मिलेगा, किंतु विदेश से पढ़कर आने वाले अधिकांश  डॉक्‍टर ऐसा नहीं करते क्योंकि इस परीक्षा को पास करने वालों की संख्या 15 फीसदी से भी कम है। 
ये आंकड़े कुछ समय पहले नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशंस (NBE) द्वारा जारी किए गए हैं। NBE ही FMGE का आयोजन करती है। 
विदेश से मेडिकल की पढ़ाई के लिए भी अब NEET अनिवार्य 
विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वालों की योग्यता पर लगते रहे सवालिया निशानों से निजात पाने के लिए सरकार ने नियमों में बदलाव भी किया है। अब विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई  करने के इच्‍छुक छात्रों को भारत में NEET की परीक्षा पास करना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके बाद भी केवल वही छात्र स्वदेश लौटकर मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए पात्र होंगे, जिन्होंने ऐसे देश से पढ़ाई की हो जहां भारत के समकक्ष मेडिकल की पढ़ाई होती हो। 
दरअसल, कई देश ऐसे हैं जहां डॉक्‍टर को दी जाने वाली डिग्री वहां भी मान्य नहीं होती, या सीमित चिकित्सकीय कार्य के लिए मान्य होती है। 
IMA मथुरा का क्या कहना है? 
IMA मथुरा के अध्‍यक्ष डॉक्‍टर मनोज गुप्‍ता से Legend News ने जब ये जानकारी चाही कि मथुरा में ऐसे कितने डॉक्‍टर प्रेक्टिस कर रहे हैं जिन्‍होंने देश के बाहर से डिग्री ली है, तो उनका कहना था कि IMA मथुरा के पास ऐसी कोई सूची नहीं है। सीएमओ ऑफिस में रजिस्‍टर्ड डॉक्‍टर्स को IMA की सदस्यता दे दी जाती है। 
अलबत्ता डॉक्‍टर मनोज गुप्‍ता ने इतना जरूर माना कि समय-समय पर ये मुद्दा IMA की बैठकों में उठाया जाता रहा है किंतु किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा। इसका कारण IMA में होने वाले वार्षिक चुनाव बताए जाते हैं। चूंकि IMA के पदाधिकारियों को अल्‍प अवधि के लिए चुना जाता है इसलिए कोई पदाधिकारी इस गंभीर मुद्दे पर ठोस निर्णय नहीं ले पाता। ये भी कह सकते हैं कि वो किसी विवाद में पड़ कर अपने लिए मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता। 
इस संबध में और जानकारी करने पर इतना पता जरूर लगा कि IMA मथुरा के ही एक पूर्व पदाधिकारी ने कुछ समय पहले मुख्‍यमंत्री के पोर्टल पर शिकायत कर विदेश से डिग्री लेकर आए डॉक्‍टर्स द्वारा गैर कानूनी तरीके से प्रेक्‍टिस किए जाने का मुद्दा उठाया था, जिसे सीएमओ मथुरा को रेफर भी किया गया लेकिन तत्कालीन सीएमओ मथुरा ने उसे भी 'भुना' लिया और कोई कार्रवाई नहीं की। 
वर्तमान सीएमओ मथुरा क्या बताते हैं? 
मथुरा के वर्तमान सीएमओ से जब इस मुतल्लिक बात की गई तो उनका कहना था कि विदेश से डॉक्‍टर की डिग्री लेकर आने वालों द्वारा भारत में कहीं भी प्रेक्‍टिस किए जाने की जानकारी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया या मेडिकल एजुकेशन से जुड़े विभागों को ही होती है। हमारे पास तो वही लिस्ट होती है जो IMA के पास रहती है। 
IMA मथुरा में कुल कितने डॉक्‍टर पंजीकृत हैं? 
एक अनुमान के अनुसार IMA मथुरा के सदस्‍य डॉक्‍टरों की संख्‍या लगभग चार सौ के करीब है। इसमें वो डॉक्‍टर भी शामिल हैं जो विदेश से डिग्री लेकर आए हैं और वो भी जो विभिन्न कारणों से प्रेक्टिस करने के पात्र नहीं हैं। 
ऐसे डॉक्‍टर खुद भी इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि वो प्रेक्टिस करने के लिए अधिकृत नहीं हैं इसलिए कहीं वो संचालक का चोला ओढ़कर काम कर रहे हैं तो कहीं चेयरमैन या चेयरपर्सन बनकर। 
लीज की जमीन पर हॉस्‍पिटल का संचालन कर रहे उसके चेयरमैन चिकित्सक को भी कभी किसी का उपचार करते नहीं देखा गया जबकि वो सर्जन बताए जाते हैं।  
विदेश से डिग्री लेकर आने वाले इन डॉक्‍टर्स और गैरकानूनी तरीके से प्रेक्टिस कर रहे डॉक्‍टर्स की जानकारी देने को कोई इसलिए भी तैयार नहीं है क्‍योंकि IMA मथुरा के कुछ सदस्‍य ऐसे भी हैं जिनका संरक्षण गैरकानूनी तरीके से प्रेक्टिस कर रहे इन डॉक्‍टर्स को प्राप्‍त है और वो निजी स्‍वार्थवश उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं होने देना चाहते। 
बेशक काबिल डॉक्‍टर्स का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि इन तत्वों के खिलाफ ठोस एक्शन हो जिससे वो उस जमात में अलग से पहचाने जा सकें किंतु फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा। 
चिकित्‍सकीय पेशे के लिए कलंक बना कॉर्पोरेट कल्चर 
कोई भी डॉक्‍टर जिसने अपनी मेहनत एवं लगन और मरीजों के प्रति अपने प्रोफेशनल एथिक्स के बूते समाज में जगह बनाई है, वह कभी नहीं चाहता कि उसका कोई मरीज या उसके परिजन उसकी सेवा से असंतुष्ट होकर जाएं, लेकिन इसके उलट जिन्‍होंने इस पेशे को कार्पोरेट कल्चर में ढाल रखा है उनके लिए अधिक से अधिक कमाई ही उनका एकमात्र ध्‍येय होता है। 
यही कारण है कि मथुरा जैसे छोटे से शहर में आए दिन किसी न किसी हॉस्‍पिटल से कोई न कोई विवाद सामने आता रहता है, और इस स्‍थिति से जनसामान्‍य के साथ-साथ काफी बड़ी संख्‍या में स्‍थानीय डॉक्‍टर्स भी परेशान हैं। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि बिल्‍ली के गले में घंटी बांधे कौन? 
और यदि कोई ये घंटी बांधने का दुस्साहस कर भी ले तो क्या गारंटी है कि उसके बाद कार्रवाई होगी। जैसे कि मुख्‍यमंत्री पोर्टल पर शिकायत करने के बाद भी नहीं हो सकी। 
जैसे कि IMA से लेकर CMO तक, ये तो स्वीकार कर रहे हैं कि गैरकानूनी तरीके से प्रेक्‍टिस और कॉर्पोरेट कल्चर से हॉस्‍पिटल चलाने वालों की संख्‍या अच्‍छी-खासी है किंतु वो उनका नाम सार्वजनिक करने को तैयार नहीं। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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