बुधवार, 20 जुलाई 2022

योगी जी... देखिए तो कि भ्रष्‍टाचार पर आपकी जीरो टॉलरेंस नीति का मथुरा पुलिस ने कैसा मजाक बनाया है?

ऐसा लगता है कि भ्रष्‍टाचार के मामले में योगी सरकार द्वारा अपनाई जा रही 'जीरो टॉलरेंस' की नीति को तमाम सरकारी विभागों की तरह बहुत से पुलिसकर्मी भी अपने लिए एक 'स्‍वर्णिम अवसर' मान कर चल रहे हैं, और इसलिए भ्रष्‍टाचार पर सख्‍ती के संदेश का भरपूर लाभ उठाने में लगे हैं। 

पुलिस में ऐसे ही एक सुनियोजित भ्रष्‍टाचार का मामला तब सामने आया जब साइबर क्राइम करने वाले पूरे गिरोह के डेढ़ दर्जन से अधिक सदस्‍यों को लाखों रुपए लेकर थाने से ही छोड़ दिया गया। 
हालांकि इसकी भनक लगते ही एक ओर जहां एसएसपी मथुरा अभिषेक यादव ने विभागीय जांच के आदेश देते हुए संबंधित थाना प्रभारी इंस्‍पेक्‍टर अजय कौशल और चौकी प्रभारी सतोहा योगेश नागर को निलंबित कर दिया वहीं दूसरी ओर आईजी आगरा जोन नचिकेता झा ने भी जिले में तैनात आईपीएस अधिकारी (एएसपी) संदीप मीणा को जांच सौंपी है, लेकिन यहां सवाल यह पैदा होता है कि किसी इतने गंभीर मामले में क्या केवल विभागीय जांच कराया जाना पर्याप्‍त है? 
पूरे पुलिस विभाग को शर्मिंदा करने और योगी सरकार के आदेश-निर्देशों को बेखौफ होकर ताक पर रखने के इस मामले में प्रथम दृष्‍ट्या संलिप्‍त दिखाई दे रहे पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जानी चाहिए? 
बताया जाता है भ्रष्‍टाचार के इस पूरे नायाब खेल की सूचना लखनऊ में बैठे बड़े अधिकारियों को भी लग चुकी है, और वो आगरा तथा मथुरा के बड़े अधिकारियों की कार्रवाई पर पूरी नजर बनाए हुए हैं। 
क्‍या है पूरा मामला 
घटनाक्रम के अनुसार मथुरा जनपद के मलाईदार थानों में शुमार हाईवे थाना पुलिस ने विगत 11 जुलाई को साइबर क्राइम करने वाले गिरोह के 19 सदस्‍यों को मुखबिर की सूचना पर एकसाथ धर-दबोचा। 
पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है साइबर क्राइम 
यहां यह जान लेना जरूरी है कि सोशल मीडिया के इस दौर में साइबर क्राइम पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है और इसीलिए हर जनपद में पुलिस का एक साइबर सेल काम भी कर रहा है। 
ये बात अलग है कि अपराधियों के हमेशा पुलिस से दो कदम आगे चलने तथा पुलिस के पास उनकी तुलना में संसाधनों के अभाव की वजह से पुलिस को साइबर अपराधियों से निपटने में दिक्‍कतें पेश आती हैं। 
यही कारण है कि हर दिन कोई न कोई व्‍यक्‍ति कहीं न कहीं साइबर अपराधियों का शिकार होता है। 
पैसे लेकर छोड़ दिए सभी 19 अपराधी 
पुलिस भी इस बात से भली-भांति परिचित है और उच्‍च अधिकारी इनकी धर-पकड़ के लिए परेशान भी रहते हैं, बावजूद इसके मथुरा के थाना हाईवे की पुलिस ने साइबर अपराधियों के इस पूरे गिरोह को लाखों रुपए लेकर छोड़ दिया और अपने अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। 
विभागीय सूत्र बताते हैं कि हाईवे थाना पुलिस ने गिरोह के सभी 19 सदस्‍यों को छोड़ने की एवज में दलालों के माध्‍यम से प्रति सदस्‍य करीब डेढ़ लाख रुपया वसूला। दलालों को क्या मिला, इसकी जानकारी होना बाकी है। 
थाना पुलिस के इस योजनाबद्ध भ्रष्‍टाचार का अंदाज लगाने के लिए यह जान लेना काफी है कि थाने में कुछ देर रखने के बाद इन सभी 19 अपराधियों को थाना परिसर में पीछे की ओर बने कमरों में रखा गया, जिससे मामला चुपचाप निपटाने में आसानी हो।
छोड़े गए अपराधियों के नाम
रविकांत पुत्र श्रीचंद निवासी गांव नवादा थाना हाईवे, जितेन्‍द्र पुत्र राजकुमार निवासी अलीगढ़, गिर्राज पुत्र रवीन्द्र निवासी एटा, विनोद पुत्र नवी निवासी असम, सैकुल पुत्र रेशम, साहिल पुत्र अब्‍दुल, तस्‍लीम पुत्र नसरू, रॉबिन पुत्र रेशम, हमीद पुत्र आशू, मकसूद पुत्र कमरुद्दीन, साहिल पुत्र आयन, भाकिल पुत्र मोहन्‍दा, सुहैल पुत्र याकतअली, साबिर पुत्र अनवर, ताहिर पुत्र जाकिर, सकलम पुत्र मोहन्‍दा, इरशाद पुत्र महमूदा और राशिद।     
सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार जांच अधिकारी आईपीएस संदीप मीणा ने इस मामले में एक बड़ी उपलब्‍धि हासिल करते हुए थाने के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज हासिल कर ली है और उसमें ये अपराधी आते व जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा जांच अधिकारी को एक साक्ष्‍य सतोहा चौकी के रजिस्‍टर से प्राप्‍त हुआ है। 
दरअसल, चौकी प्रभारी सतोहा ने किसी आंशका के चलते इन सभी 19 आरोपियों का नाम चौकी के रजिस्‍टर में दर्ज कर लिया था क्‍योंकि अपराधियों की धरपकड़ में वह भी शामिल थे। संभवत: इसीलिए चौकी प्रभारी सतोहा योगेश नागर अब खुद को पूरी तरह निर्दोष बता रहे हैं और कह रहे हैं कि मैं अधिकारियों के सामने पूरा सच लेकर आऊंगा। 
ऐसे में एक सवाल यह और उठता है कि बिना ठोस कार्रवाई हुए और लाखों रुपए हड़प कर एकसाथ 19 साइबर अपराधियों को छोड़ देने जैसे संगीन मामले में एफआईआर दर्ज किए बिना क्या पूरा सच सामने आ पाएगा। या मथुरा के ही डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण काण्‍ड की तरह ये भी फाइलों में दब कर रह जाएगा।
क्या है डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण काण्‍ड 
10 दिसंबर 2019 को रात करीब 8 बजे हाईवे थाना क्षेत्र में ही गोवर्धन चौराहे के फ्लाई ओवर पर मथुरा के मशहूर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण कर उनसे वसूली गई 52 लाख रुपयों की फिरौती को इलाका पुलिस हड़प गई और बदमाश छोड़ दिए गए। 
जब इस मामले में शोर-शराबा हुआ तो पूरे दो महीने बाद 11 फरवरी 2020 की रात 10 बजकर 53 मिनट पर हाईवे थाना पुलिस ने अपनी ओर से IPC की धारा 364 A के तहत एक एफआईआर दर्ज की। 
हाईवे थाने के तत्‍कालीन प्रभारी इंस्‍पेक्‍टर जगदंबा सिंह की ओर से दर्ज कराई गई इस एफआईआर में सनी मलिक पुत्र देवेन्‍द्र मलिक निवासी न्‍यू सैनिक विहार कॉलोनी थाना कंकरखेड़ा मेरठ, महेश पुत्र रघुनाथ निवासी ग्राम कौलाहार थाना नौहझील मथुरा, अनूप पुत्र जगदीश निवासी ग्राम कौलाहार थाना नौहझील मथुरा तथा नीतेश उर्फ रीगल पुत्र नामालूम निवासी भोपाल मध्‍यप्रदेश (हाल निवासी दिल्‍ली एनसीआर) को नामजद किया गया।
इस पूरे प्रकरण का एक दिलचस्‍प पहलू यह भी रहा कि डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण की अपनी ओर से FIR दर्ज कराने वाले इंस्‍पेक्‍टर जगदंबा सिंह को उसी दिन तत्‍काल प्रभाव से तत्‍कालीन एसएसपी शलभ माथुर ने निलंबित कर दिया। जिन्‍हें बाद में इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के आदेश पर बहाल भी कर दिया गया। 
नामजद अपराधियों को पुलिस ने पकड़ा भी, लेकिन उन 52 लाख रुपए का कुछ पता नहीं लगा जिन्हें अपराधियों को फिरौती के रूप में देने की पुष्‍टि खुद डॉ निर्विकल्‍प कर चुके थे। 
बहरहाल, अब देखना यह होगा कि लाखों रुपए लेकर साइबर क्राइम के गिरोह से जुड़े डेढ़ दर्जन अपराधियों को छोड़ने का यह संगीन मामला भी डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण काण्‍ड की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा या फिर ईमानदार पुलिस अफसरों के रहते किसी ऐसे अंजाम तक पहुंचेगा, जिसके बाद कोई थाना या चौकी प्रभारी इतना बड़ा दुस्‍साहर न कर सके और योगी सरकार की भ्रष्‍टाचार के मामले में अपनाई गई जीरो टॉलरेंस की नीति का इस तरह मजाक न उड़ा पाए। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी   

गुरुवार, 7 जुलाई 2022

अग्‍निपथ… अग्‍निपथ… अग्‍निपथ, कौन कहता है ‘नाम में क्या रखा है’… नाम में ही सब कुछ रखा है

अग्‍निपथ… अग्‍निपथ… अग्‍निपथ। देशभर में इन दिनों ‘अग्‍निपथ’ की ही चर्चा है। कुछ लोग कहते हैं कि ‘नाम में क्या रखा है’, लेकिन यहां तो लग रहा है कि नाम में ही सब कुछ रखा है।

बेहतर होता कि केंद्र सरकार की इस योजना का नाम होता ‘शौर्य पथ’, और इस पर चलकर आने वाले कहलाते ‘शूरवीर’… न कि ‘अग्‍निवीर’।
‘अग्‍नि’ का तो धर्म ही जलना और जलाना होता है। हालांकि वह भी राहत प्रदान करती है, बशर्ते उसका उपयोग समय और परिस्‍थितियों के अनुकूल हो। अग्‍नि से खेलने वाले अक्‍सर अपने हाथ जला बैठते हैं। फिलहाल कुछ अराजक तत्‍व अग्‍नि से खेल रहे हैं। वो देश जलाने पर आमादा हैं। राजनीतिज्ञ उन्‍हें पेट्रोल की तरह यूज कर रहे हैं, और वो यूज हो रहे हैं।
ये बात अलग है कि आज नहीं तो कल, उनकी समझ में जरूर आएगा कि पवित्रता की प्रतीक अग्‍नि का ‘दुरूपयोग’ किस कदर उनके ‘भविष्‍य पर भारी’ पड़ गया।
कमियां किसी भी योजना में हो सकती हैं… या कहें कि निकाली जा सकती हैं इसलिए केंद्र सरकार की अग्‍निपथ योजना अपवाद नहीं हो सकती लेकिन इसके विरोध की आड़ में देश को जला डालने की मंशा सिर्फ और सिर्फ देश द्रोह है, इसके अलावा कुछ नहीं।
आम आदमी के पैसों से जुटाई गई सरकारी संपत्ति को मात्र इसलिए फूंक डालना कि कोई योजना पसंद नहीं आई या उसे समझने व समझाने में कोई चूक हो गई, कहां की समझदारी है।
आमजन की सुविधा के लिए दौड़ रही बसों और ट्रेनों को आग के हवाले कर देने वाले कैसे कभी ‘शूरवीर’ हो सकते हैं। अपनी बुद्धि और विवेक को गिरवी रखकर सड़कों पर अराजकता फैला रहे राजनीतिक साजिश के शिकार इन तत्वों की शर्मनाक हरकतें इन्‍हें आत्‍मघाती रास्‍ते पर ले जा रही हैं।
बेशक…बेशक पिछले कुछ वर्षों से देश को किसी न किसी षड्यंत्र में उलझाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। बात चाहे नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) की हो या फिर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की, नए कृषि कानूनों की हो अथवा कश्‍मीर से धारा 370 और अनुच्‍छेद 35A के प्रावधानों को निरस्‍त करने की, सबके विरोध का तरीका कमोबेश एक जैसा ही रहा है। मकसद ये कि किसी भी तरह ऐसी अराजक स्‍थितियां पैदा कर दी जाएं कि लोगों को सोचने-समझने का मौका ही न मिले और वो सबके लिए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दें।
जो कुछ आज एक खास तबके द्वारा ‘अग्‍निपथ योजना’ के लिए कहा जा रहा है कि किसी को भरोसे में नहीं लिया… किसी से पूछा नहीं… युवाओं को समझाया नहीं, ठीक यही बातें उन सभी सरकारी योजनाओं के लिए कही गई थीं जिनका हिंसक विरोध सड़कों पर उतर कर किया गया। उद्देश्‍य केवल यही रहा कि किसी भी तरह अपने हिंसक प्रदर्शनों और देश की जनता को बंधक बनाने की अपनी शर्मनाक करतूतों को जायज ठहराया जा सके। कभी किसी सड़क को महीनों नहीं, साल-दोसाल के लिए घेरकर तो कभी राष्‍ट्रीय राजमार्गों तथा अन्‍य सड़कों पर अराजकता फैलाकर।
एक बार को यह मान भी लिया जाए कि सरकार का हर निर्णय गलत है, और उसे जनहित की समझ नहीं हैं। विशेष रूप से वर्तमान सरकार को तो कतई नहीं है। तो भी क्या विरोध का वो रास्‍ता सही कहा जा सकता है जिससे करोड़ों की आबादी बेवजह न सिर्फ परेशान होती हो, बल्‍कि उसकी जान इसलिए सांसत में फंसी रहती हो कि कब किस जगह कुछ असामाजिक तत्‍व हाथों में डंडे लेकर खड़े मिल जाएंगे।
कब कहीं से पथराव होने लगेगा और कब बसों और ट्रेनों को फूंकने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। सड़कों पर जलते हुए टायर तथा वाहन, दुकानों में तोड़फोड़ और यहां तक कि बूढ़े- बच्‍चे व बीमार राहगीरों के साथ मारपीट का खौफनाक मंजर दिखाई देने लगेगा।
लोकतंत्र पर खतरे की दुहाई देने और संविधान एवं कानून-व्‍यवस्‍था में आस्‍था का ढोंग करने वाले खास तत्‍व इन दिनों न्‍यायालयों के उन निर्णयों पर भी सवाल उठाने से परहेज नहीं करते, जो उनके माफिक न हों।
अग्‍निपथ हो या कोई अन्‍य सरकारी योजना, यदि उसमें खामी दिखाई दे रही है तो उसे संवैधानिक तरीकों से चुनौती दी जा सकती है। उस पर कोर्ट के जरिए रोक भी लगवाई जा सकती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। फिर इतना हंगामा क्‍यों?
रही बात अग्‍निपथ योजना की, तो शूरवीर अपने शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए हमेशा मौके की तलाश में रहते हैं। फिर वो मौका किसी रास्‍ते से मिले। शूरवीर न तो सड़क पर निर्दोष लोगों को परेशान करते हैं और न राष्‍ट्र की संपदा को आग के हवाले करने जैसे किसी कृत्‍य को अंजाम देते हैं। सच तो यह है कि वो सैनिक बनने लायक हैं ही नहीं, जो ऐसा कर रहे हैं। सैनिक तो सपने भी राष्‍ट्ररक्षा के देखता है।
सच्‍चे सैनिक के लिए कोई पथ ‘अग्‍निपथ’ नहीं होता। जो होता है वो शौर्यपथ होता है। वो अग्‍निवीर भी नहीं हो सकता, हां शूरवीर हो सकता है इसलिए सरकार को पुनर्विचार ही करना है तो योजना के नाम पर करे क्‍योंकि नाम में बहुत कुछ रखा है।
– सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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