बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

मोदी उवाच और मथुरा की उम्‍मीदवारी का कलह?


(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष) अपने विशाल आकार के कारण भारत की राजनीति में यूं तो उत्‍तर प्रदेश ने हमेशा ही अपनी महत्‍ता बनाकर रखी है और हमेशा ही ऐसा माना जाता रहा है कि दिल्‍ली पर काबिज होने का रास्‍ता उत्‍तर प्रदेश से होकर जाता है लेकिन इस बार उत्‍तर प्रदेश की विशेष अहमियत है।

अहमियत की वजह है इस बड़े राज्‍य में उन दोनों बड़ी पार्टियों की एक लंबे समय से लगातार दुर्गति होना, जो राष्‍ट्रीय पार्टियां कहलाती हैं और जिनके बीच दिल्‍ली पर काबिज़ होने की असली जंग लड़ी जानी है।
तमाम राजनीतिक विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि उत्‍तर प्रदेश से 40 सीटें जीत लेने वाला राजनीतिक दल किंग नहीं तो किंगमेकर ज़रूर बनेगा और 50 से अधिक सीटें जीत ले जाने वाले के सिर ताज होगा।
चूंकि उत्‍तर प्रदेश में सपा व बसपा जैसी पार्टियों का अपना-अपना जनाधार है और राष्‍ट्रीय लोकदल भी किसी न किसी बैसाखी के सहारे कुछ सैंध लगा लेता है इसलिए कांग्रेस व भाजपा के लिए यह बड़ी चुनौती बन चुका है। यूपी फतह करना हर राजनीतिक दल के लिए टेढ़ी खीर है।
यहां यह समझ लेना और भी ज़रूरी है कि जिस तरह दिल्‍ली पर काबिज़ होने का रास्‍ता यूपी से होकर जाता है, उसी तरह यूपी में झंडा फहराने का रास्‍ता प्रशस्‍त होता है ब्रजमंडल की सीटों पर फतह प्राप्‍त करके।
ब्रजमंडल में मथुरा का एक विशेष स्‍थान है क्‍योंकि मथुरा को श्रीकृष्‍ण की जन्‍मभूमि का गौरव प्राप्‍त है। विश्‍व में मथुरा का धार्मिक स्‍वरूप उसे एक अलग पहचान दिलाता है।
यही वह पहचान है जिसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी के लिए मथुरा काफी अहमियत रखता है और मथुरा की सीट पर विजय हासिल किए बिना यूपी में बड़ी सफलता हासिल करना मुश्‍किल है।
कांग्रेस की चर्चा करना यहां इसलिए बेमानी है क्‍योंकि उसने रालोद से लगभग तय हो चुके चुनाव पूर्व गठबंधन के तहत मथुरा को उसके खाते में डाल दिया है लिहाजा कांग्रेस यहां अपना उम्‍मीदवार खड़ा नहीं करेगी। पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा यह गलती कर चुकी है और उसका खामियाजा अब तक भुगत रही है।
इन हालातों में अब सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि भाजपा ऐसा कौन सा चेहरा मथुरा से उतारने जा रही है जो न केवल उसकी स्‍थानीय इकाई को स्‍वीकार हो बल्‍कि सिटिंग सांसद और रालोद के युवराज जयंत चौधरी को शिकस्‍त देने का माद्दा रखता हो।
सर्वविदित है कि कृष्‍ण की जन्‍मभूमि का गौरव प्राप्‍त मथुरा जनपद के भाजपाई जबर्दस्‍त अंतर्कलह के शिकार हैं। गुटबाजी और अंतर्कलह के चलते मथुरा में उम्‍मीदवारी का चयन करना पार्टी के लिए कभी आसान नहीं रहा। चौधरी तेजवीर सिंह की हार के बाद यह काम ज्‍यादा मुश्‍किल हो गया और इसीलिए 2009 के लोकसभा चुनावों में मथुरा की सीट पार्टी को रालोद के लिए छोड़नी पड़ी।
फिलहाल यह कहा जा सकता है कि भाजपा को मथुरा में अपना वजूद नए सिरे से कायम करना होगा और उसके लिए कोई ऐसा उम्‍मीदवार सामने लाना होगा जो पार्टी के लिए लगभग बंजर हो चुकी ब्रजभूमि को फिर से उर्वरा बना सके।
पार्टी सूत्रों के हवाले से मिल रही खबरों पर भरोसा करें तो संभावित उम्‍मीदवारों की सूची में सबसे ऊपर नाम चल रहा है पूर्व में तीन बार सांसद रह चुके चौधरी तेजवीर सिंह का। लेकिन तेजवीर सिंह का सर्वाधिक विरोध पार्टी के स्‍तर पर ही किया जा रहा है, और वो भी सजातीय नेताओं द्वारा। चूंकि टिकट पाने की दौड़ में दूसरे जाट नेता भी हैं इसलिए खेमेबंदी अधिक है।
चौधरी तेजवीर सिंह के विरोध का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बावत सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर एक बैनर बनाकर चस्‍पा किया गया है। इस बैनर की हैडिंग है- ''मथुरा के पूर्व सांसद चौधरी तेजवीर सिंह के ऊपर जनता के गंभीर आरोप''।
इस बैनर में लिखा है कि मथुरा लोकसभा से 3 बार सांसद बनने के बावजूद तेजवीर सिंह ने जनता के लिए 3 काम नहीं किए जबकि अपने लिए 300 काम किए।
तेजवीर सिंह पर क्रमबद्ध तरीके से लगाये गये आरोपों के अनुसार सांसद बनने से पूर्व वह मात्र 100 गज जमीन पर बने मकान में रहते थे जबकि आज 36000 स्‍क्‍वायरफीट में बने आलीशान बंगले के मालिक हैं।
सांसद बनने से पहले वह मारुति 800 कार में चला करते थे परंतु आज उनके पास टाटा सफारी व होंडा सिटी जैसी कई लग्‍ज़री गाड़ियां हैं।
सांसद बनने से पूर्व वह मात्र कुछ लाख की संपत्‍ति के मालिक थे परंतु आज अरबों में खेल रहे हैं।
सांसद बनने से पहले चौधरी तेजवीर सिंह का कोई खास व्‍यापार नहीं था लेकिन अब एक बहुत बड़े कॉलेज, पेट्रोल पंप तथा गैस एजेंसी के संचालक हैं और जयपुर में काफी बड़ा रेजीडेंसी प्रोजेक्‍ट खड़ा कर रहे हैं।
बैनर मैं जनता से पूछा गया है कि 15 सालों से राजनीति में निष्‍क्रिय रहे ऐसे पूर्व सांसद तेजवीर सिंह को क्‍या इस बार लोकसभा प्रत्‍याशी बनाया जाना चाहिए?
बैनर में ही दूसरा सवाल भाजपा हाईकमान से किया गया है कि जनता के बीच एक फ्लॉप सांसद की छवि वाले चौधरी तेजवीर सिंह को फिर एक बार उम्‍मीदवार बनाने की सोचकर भी क्‍या वह गलती नहीं कर रहे ?
लीजेण्‍ड न्‍यूज़ ने अपने स्‍तर से जब इस बैनर को फेसबुक पर चस्‍पा करने वालों की जानकारी की तो पता लगा कि इसके पीछे पार्टी के ही लोग हैं, न कि कोई विपक्षी दल।
चौधरी तेजवीर सिंह से इस बैनर की असलियत पूछने पर उन्‍होंने कहा कि उम्‍मीदवार की घोषणा हो जाने से पहले मैं किसी विवाद का हिस्‍सा नहीं बनना चाहता इसलिए बैनर में लगाये गये आरोपों का जवाब नहीं दे रहा। समय आने पर सभी आरोपों का जवाब दूंगा।
उन्‍होंने कहा कि आपने पूछा है इसलिए आपको बता देता हूं कि बैनर के माध्‍यम से लगाये गये आरोपों में कोई सच्‍चाई नहीं है और लगभग सभी आरोप बेबुनियाद हैं। मेरी संपत्‍ति के बावत भी जो जानकारी दी गई है, वह झूठ का पुलिंदा है।
पूर्व सांसद तेजवीर सिंह से जब यह पूछा गया कि पार्टी में स्‍थानीय स्‍तर पर व्‍याप्‍त अंतर्कलह व गुटबाजी के चलते हाईकमान द्वारा किसी बाहरी प्रत्‍याशी को मथुरा से खड़ा करना आपको स्‍वीकार होगा, तो उनका जवाब था कि बेहतर होगा पार्टी किसी स्‍थानीय कार्यकर्ता को उम्‍मीदवार बनाए।
बाहरी व्‍यक्‍ति की उम्‍मीदवारी पर उनका कहना था कि मुझे आजतक जो कुछ प्राप्‍त है, वह पार्टी का ही दिया हुआ है इसलिए पार्टी का हर निर्णय मान्‍य है। मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं और जीवनभर पार्टी के प्रति समर्पित रहूंगा।
उल्‍लेखनीय है कि तेजवीर सिंह सहित मथुरा की उम्‍मीदवारी के लिए जिन नामों की चर्चा होती रही है उनमें स्‍थानीय स्‍तर से राजेश चौधरी, चौधरी प्रणतपाल, रविकांत गर्ग व एस. के. शर्मा आदि हैं जबकि बाहरी नेताओं में भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह के साढू भाई और पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट अरुण सिंह, प्रख्‍यात सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी तथा अभिनेता सनी देओल का नाम प्रमुख हैं। हेमा मालिनी तो कह भी चुकी हैं कि यदि पार्टी मुझे यहां से चुनाव लड़ने का मौका देती है तो मैं यह मौका गंवाउंगी नहीं।
बहरहाल, बात चाहे किसी स्‍थानीय व्‍यक्‍ति को उतारने की हो या बाहरी को लेकिन मथुरा के लिए उम्‍मीदवार का चयन करना आसान नहीं है। स्‍थानीय के चयन में अंतर्कलह व गुटबाजी बड़ा कारण है तो बाहरी के चयन में पार्टी के आम कार्यकर्ता सहित जनभावना आड़े आती है। बाहरी नेताओं को लेकर मथुरा की जनता का अनुभव बहुत कसैला रहा है। बात चाहे कभी हरियाणा से यहां आकर चुनाव जीतने वाले मनीराम बागड़ी की हो या फिर भगवा वस्‍त्रधारी महामंडलेश्‍वर सच्‍चिदानंद हरिसाक्षी की। रही सही कसर पूरी कर दी वर्तमान सांसद और रालोद के युवराज जयंत चौधरी ने। आमजन पूरे पांच साल अपने इस प्रतिनिधि की शक्‍ल देखने तक को तरसता रहा, समस्‍याओं के समाधान की बात तो करे कौन।
ब्रजवासियों के लिए मां समान पूज्‍यनीय जिस यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने का वायदा करके जयंत चौधरी ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की, उस यमुना की दुर्दशा को लेकर वह कभी मुखर नहीं हुए।
भाजपा के लिए उनकी यह निष्‍क्रियता भी परेशानी का कारण होगी क्‍योंकि पिछले चुनाव में जयंत को भाजपा का ही समर्थन प्राप्‍त था।
कुल मिलाकर निष्‍कर्ष यही निकलता है कि मथुरा में मोदी फैक्‍टर से कहीं अधिक उम्‍मीदवारी का चयन भाजपा को पुनर्जीवत करने या ना कर पाने में बड़ी भूमिका निभायेगा।
देखना यह है कि भाजपा इस इधर कुंआ और उधर खाई वाली स्‍थिति से कैसे उबरती है और कौन सा ऐसा चेहरा सामने लाती है जो मोदी के लिए दिल्‍ली की दूरी कम करने में सहायक हो सके।
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