शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

समस्‍याओं का रोना रोते रह गए ‘अशोका हाइट्स’ के निवासी, और बात ध्‍वस्‍तीकरण तक जा पहुंची

JSR ग्रुप द्वारा मथुरा में गणेशरा रोड पर बनाई गई जिस ‘अशोका हाइट्स’ नामक बहुमंजिला बिल्‍डिंग की शिकायत लेकर आज वहां के निवासी दर-दर भटक रहे हैं, वह सिर्फ घटिया निर्माण या सुरक्षा, पार्किंग, पानी, बिजली, लिफ्ट इत्‍यादि समस्‍याओं तक सीमित नहीं है।
सच तो यह है कि ‘अशोका हाइट्स’ भ्रष्‍टाचार की बुनियाद पर खड़ी उन तमाम इमारतों का एक अदद उदाहरण है जिनके निर्माण में बिल्‍डर के साथ-साथ विकास प्राधिकरण, बैंकें, बिजली विभाग, फायर ब्रिगेड, ग्राम पंचायतें, नगर पालिका तथा नगर निगम जैसे अनेक विभाग संलिप्‍त रहे हैं और सभी ने मिलकर लोगों को लूटा है।
समस्‍याओं का रोना लेकर कभी बिल्‍डर और कभी डीएम के चक्‍कर काटने वाले ‘अशोका हाइट्स’ के निवासियों को तो शायद यह इल्‍म ही नहीं है कि अब उनकी बिल्‍डिंग के एक बड़े हिस्‍से को ध्‍वस्‍त करने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।
आज सिंचाई विभाग के अफसर भले ही इस बात को स्‍वीकार कर रहे हों कि ‘अशोका हाईट्स’ के निर्माण में आगरा कैनाल की मथुरा एस्‍केप का काफी हिस्‍सा दबा लिया गया है परंतु वर्षों पहले इसी विभाग के अधिकारी शिकवा-शिकायतों के बावजूद तमाशबीन बने रहे।
तब किसी अधिकारी ने न तो सरकारी जमीन हड़पे जाने का विरोध किया और न अवैध निर्माण रोकने की कोई कोशिश की गई।
बात तत्‍कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव तक भी पुहंची किंतु नतीजा कुछ नहीं निकला। हालांकि शिवपाल यादव ने कहा था सिंचाई विभाग की जमीन कब्‍जाने वाले भूमाफिया बख्‍शे नहीं जायेंगे।
बाद में पता लगा कि उस स्‍तर तक भी JSR ग्रुप ने सेटिंग कर ली और मामला रफा-दफा कराने में सफल रहा जबकि ‘लीजेण्‍ड न्‍यूज़’ ने 26 अक्तूबर 2012 को ही ”ध्‍वस्‍त होंगे अशोका हाइट्स के 90 फ्लैट्स!” शीर्षक से लिखी अपनी खबर में ”भूमाफिया, बिल्‍डर एवं सरकारी मशीनरी के इस गठजोड़ को सामने ला दिया था।
‘लीजेण्‍ड न्‍यूज़’ ने 7 साल पहले ही उजागर किया था कि ‘अशोका हाइट्स’ के पिछले हिस्‍से में बनाये जा रहे करीब 90 फ्लैट्स पूरी तरह अवैध हैं और इनके निर्माण में एक ओर जहां सिंचाई विभाग की जमीन का दुरुपयोग किया गया है वहीं दूसरी ओर ग्राम समाज की जमीन भी घेरी गई है।
इस मामले में जब ”लीजेण्‍ड न्‍यूज़” ने अशोका हाइट्स बनाने वाले ग्रुप JSR हाउसिंग एण्‍ड डेवलेपर्स प्राइवेट लिमिटेड से सफाई मांगी तो ग्रुप के एक हिस्‍सेदार ने स्‍वीकार किया कि पार्टनर्स के बीच असहमति के बावजूद ग्रुप में शामिल कुछ लोगों ने अवैध निर्माण करा दिया।
अवैध निर्माण कराने वाले हिस्‍सेदारों का तर्क था कि एकबार घर की बुकिंग से पैसा हाथ में आ जाने के बाद उसी पैसे के बल पर अधिकारियों से सब-कुछ कराया जा सकता है।
अशोका हाइट्स के अवैध निर्माण को मिले सरकारी संरक्षण का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि फ्लोर एरिया रेशियो (FAR) की बात तो दूर, फ्लैट्स के बाहर भी इतनी जगह नहीं छोड़ी गई कि किसी हादसे की स्‍थिति में फायर ब्रिगेड की कोई गाड़ी मूव कर सके।
रहा सवाल भूकंपरोधी तकनीक के इस्‍तेमाल और दूसरी उन सुविधाओं का जिनका प्रचार करके लोगों को आकर्षित किया गया तो उनका खुलासा निर्माण के चलते ही हो गया था तब हो गया था जब पता लगा कि सीमेंट तक ”मेजर प्‍लांट” की जगह ”मिनी प्‍लांट” का इस्‍तेमाल किया गया है जिससे केवल रेत के महल ही खड़े किये जा सकते हैं और जिनकी हाइट यहां बसने वालों के लिए मौत की हाइट से कम साबित नहीं होती।
आश्‍चर्य इस बात पर भी है कि विकास प्राधिकरण ने कैसे जिंदा मक्‍खी निगल ली, बैंकें क्‍यों आंख बंद करके फाइनेंस करती रहीं, ग्राम पंचायत तथा फायर ब्रिगेड ने एनओसी किस आधार पर दे दी। लोगों को लूटने का एक सुनियोजित षड्यंत्र इन सभी विभागों की नाक के नीचे रचा गया लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
बेशक इस ‘वेल प्‍लांड’ लूट के लिए वो लोग भी कम जिम्‍मेदार नहीं हैं जो बिल्‍डर्स के झांसे में आकर बिना कुछ देखे उन्‍हें पैसा थमा देते हैं।
इस संदर्भ में भी ‘लीजेण्‍ड न्‍यूज़” ने 21 अक्‍टूबर 2012 को ही एक चेतावनी भरा समाचार इस शीर्षक से लिखा था कि सावधान ! अशोका सिटी व अशोका हाइट्स में मकान तो नहीं ले रहे?’ लेकिन तब खरीदारों ने समाचार पर गौर करना शायद जरूरी नहीं समझा।
आज स्‍थित यह है कि JSR ग्रुप के बैनर तले डैपियर नगर में अशोका टावर, गणेशरा रोड पर अशोका हाइट्स और गोवर्धन चौराहे के निकट नेशनल हाईवे पर अशोका सिटी बनाने वाला ग्रुप पूरी तरह बिखर चुका है। उसके सारे हिस्‍सेदार अपना-अपना पैसा नए बिल्‍डर से लेकर निकल चुके हैं। उनके बीच जो झगड़े थे, वो भी उन्‍होंने आपस में मिल-बैठकर सुलझा लिए हैं।
जिन सरकारी अधिकारियों ने JSR ग्रुप को अवैध निर्माण की खुली छूट दी थी, वो भी कहां से कहां पहुंच चुके हैं।
रह गए हैं तो केवल जगह-जगह धक्‍के खाने पर मजबूर भ्रष्‍टाचार की नींव पर खड़ी की गईं इन इमारतों के वाशिंदे जिनकी आज सुनवाई तक करने को कोई तैयार नहीं है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

अपहरण उद्योग के लिए ‘मथुरा’ में आपका स्‍वागत है, सफलता की गारंटी

महाभारत नायक योगीराज भगवान कृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली ‘मथुरा’ में अपहरण उद्योग संचालित करने के लिए आपका स्‍वागत है।
डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण कांड की अपार सफलता के बाद यह विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी देशभर के पेशेवर, गैरपेशेवर अथवा अन्‍य सभी किस्‍म के सफेदपोश अपराधियों को अपने यहां आमंत्रित करती है।
पीपीपी (पुलिस, प्रेस, पॉलिटिशियन) मॉडल के तहत इस उद्योग में ‘सफलता’ की चिंता कतई न करें क्‍योंकि यहां ‘निर्विकल्‍प डॉक्‍टर्स’ की कोई कमी नहीं है।
यदि आप ‘निर्विकल्‍प’ के मायने न समझते हों तो पुलिस आपको समझा देगी। वैसे ‘निर्विकल्‍प’ एक विशेषण होता है जिसका शाब्‍दिक अर्थ है- ”सदा एक रस एवं एक रूप में रहने वाला”। निश्‍चल…स्‍थिर।
डॉ. निर्विकल्‍प ने अपहरण वाले दिन से लेकर अब तक अपने नाम को पूरी तरह सार्थक करते हुए मथुरा में अपहरण उद्योग का जो रास्‍ता दिखाया है, उसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है।
10 दिसंबर 2019 की रात 52 लाख रुपए की फिरौती देकर डॉ. निर्विकल्‍प जिस निश्‍चल एवं स्‍थिर भाव के साथ बिना विचलित हुए एकरसता पर कायम रहे, वह अपहृत तथा अपहरणकर्ताओं के लिए प्रेरणादायक है और आगे का मार्ग प्रशस्‍त करता है।
सर्वप्रथम तो उन्‍होंने एक ‘प्रशिक्षित अपहृत’ की तरह अपने चारों अपहरणकर्ताओं के हर आदेश-निर्देश का अनुपालन किया। फिर चंद घंटों में उन्‍हें बिना कोई तकलीफ पहुंचाए 52 लाख रुपए की ‘पोटली’ इस ‘कमिटमेंट’ सहित थमा दी कि शेष करीब 50 लाख रुपए वह तयशुदा समय पर पहुंचा देंगे।
कमिटमेंट के पक्‍के डॉ. निर्विकल्‍प बदमाशों का बकाया भी चुकता करने ही वाले थे कि किसी ने उनकी सुहृदयता का भांडा उच्‍च पुलिस अधिकारियों के सामने फोड़कर ‘पीपीपी प्रोजेक्‍ट’ को ‘अस्‍थायी ग्रहण’ लगा दिया।
इसके बावजूद देश के एक जिम्‍मेदार नागरिक का फर्ज निभाते हुए जब जरूरत पड़ी तब डॉ. निर्विकल्‍प ने पुलिस को सब-कुछ बताया किंतु साफ-साफ ये भी कह दिया कि वह इस ‘सौहार्दपूर्ण वारदात’ के संदर्भ में कोई कानूनी कार्यवाही अथवा एफआईआर लिखाने जैसी कवायद नहीं करेंगे।
यही नहीं, उनकी अपनी संस्‍था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन IMA के स्‍थानीय पदाधिकारियों को भी उन्‍होंने दो टूक कहा कि वह अपने अपहरण कांड में संस्‍था की कोई मदद नहीं चाहते। हालांकि दूसरे कई अन्‍य डॉक्‍टर्स को उनका यह ‘निर्विकल्‍प व्‍यवहार’ नागवार गुजरा क्‍योंकि उन्‍हें अपनी फिक्र होने लगी।
उनकी फिक्र वो करें परंतु डॉ. निर्विकल्‍प मानते हैं कि भाग्‍यवान की कमाई में सबका हिस्‍सा होता है इसलिए उन्‍हें न बदमाशों से कोई परहेज है और न पुलिस से। जिस डॉक्‍टर को परहेज है, वो अपना इंतजाम करने के लिए स्‍वतंत्र है।
अब बात पहले ‘पी’ अर्थात पुलिस की
मथुरा पुलिस ने भी इस पूरे मामले में बिना किसी भय और द्वेष के स्‍थिर चित्त होकर अपने कर्म तथा धर्म का निर्वाह किया। इधर बदमाशों से पूरे 52 लाख रुपए जमा कराए और उधर डॉ. के सामने रख दिए। डॉ. ने जितने अपने समझकर उठा लिए, वह उठा लिए बाकी को पुलिस ने प्रसाद समझकर ग्रहण किया और फिर पद एवं गोपनीयता का मान रखते हुए बांटा।
प्रसाद से वंचित तबके द्वारा ‘रायता’ फैला देने पर अपनी ओर से पूरे दो महीने बाद एफआईआर लिखाई और प्रति बदमाश एक-एक लाख रुपए का इनाम भी घोषित किया।
कल इनमें से एक बदमाश को बुलाकर ‘प्रेस’ के सामने प्रस्‍तुत करते हुए बताया कि किस तरह वह पुलिस की झोली में 50 हजार रुपयों सहित आ टपका।
अधिकारियों ने पूरी हिम्‍मत के साथ पत्रकारों से यह भी कहा कि वह किसी किंतु-परंतु के फेर में नहीं पड़ेंगे और उनके किसी प्रश्‍न का उत्तर नहीं देंगे। जो बता रहे हैं, उसे ही अंतिम सत्‍य मान लिया जाए।
दस-दस हजार के इनामी बदमाशों को ठोकने के बाद गिरफ्त में लेने वाली पुलिस ने एक लाख के इस इनामी बदमाश को चार दिन पूरी मेहमान नवाजी से रखा और फिर बाइज्‍जत पेश कर दिया जिससे शेष तीन नामजद भी संदेश ग्रहण कर लें।
वो जान जाएं कि पुलिस को अपनी पीठ ठोकनी है, उन्‍हें नहीं ठोकना इसलिए बेझिझक जब चाहें तब और जहां चाहें वहां पुलिस की मदद ले सकते हैं।
रही बात थोड़ी बहुत रकम “बरामद” दिखाने की तो उसकी टेंशन न लें। वो भी आखिर में कोर्ट से रिलीज हो जानी है क्‍योंकि वहां बाजी पलटनी ही है।
दूसरे ‘पी’ यानी ‘प्रेस’ अथवा ‘मीडिया’ की भूमिका
कुछ मूर्ख टाइप के लोग इस पूरे प्रकरण में पत्रकारों की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं। वो कह रहे हैं कि उन्‍हें कल प्रेस कांफ्रेस में कुछ तो सवाल दागने चाहिए थे। एक दिन पहले बिना कुछ पूछे-ताछे नवागत एसएसपी साहब की मेजबानी का लुत्फ उठा ही चुके थे, लिहाजा अब तो पूछ लेते कि ”रायता कैसे फैला” ?
इन लोगों को कौन समझाए कि पुलिस का चाय-नाश्‍ता हर किसी पत्रकार के नसीब में नहीं होता। जिनके नसीब में है, वो उसे क्‍यों छोड़ दें।
माना कि पुलिस को यदि बिना जवाब दिए ही समाचार छपवाना था तो वह विज्ञप्‍ति भेजकर भी छपवा सकती थी लेकिन समस्‍या यह है कि अब तक पुलिस ने विज्ञप्‍ति के साथ डिब्‍बा भेजने की रिवाज शुरू नहीं की है। ऐसे में पत्रकार प्रेस कांफ्रेंस अटेंड न करते तो चुहलबाजी करते हुए चाय-नाश्‍ते के आनंद से भी रह जाते।
तीसरे ‘पी’ पॉलिटिशियन
देखिए, इनके बारे में कुछ कहना या न कहना बराबर है। मथुरा में नेता नाम वाला जीव आपको चिराग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। जो हैं, वो या तो मंत्री हैं या फिर विधायक और सांसद।
आप अपनी गलतफहमी के लिए इन्‍हें जन-प्रतिनिधि मान सकते हैं किंतु सच तो यह है कि ये किसी के प्रतिनिधि नहीं हैं। हां, इनके अपने प्रतिनिधि जरूर हैं। मसलन सांसद प्रतिनिधि, विधायक प्रतिनिधि आदि-आदि।
ऐसे में इन्‍हें वही पता होता है जो इनके प्रतिनिधि बताते हैं, या फिर वो जो ये अपने प्रतिनिधि से जानना चाहते हैं।
यहां पक्ष-विपक्ष का सवाल मत उठाइएगा क्‍योंकि विपक्ष के लोगों का काम अगली सत्ता मिलने तक खुद को सुरक्षित रखना होता है। अपहरण जैसे ‘कामयाब उद्योग’ पर उंगली उठाना नहीं।
अपहरण उद्योग के फलने-फूलने में इनकी उतनी ही रुचि है जितनी डॉ. निर्विकल्‍प को फिरौती देकर छूट आने में, पुलिस को फिरौती की रकम का हिसाब रखने में और पत्रकारों को पन्‍ने काले करने में। इससे अधिक रुचि वह लें भी क्‍यों, उनकी भैंस किसी ने थोड़े ही खोल ली।
पुलिस ने लिखा-पढ़ी में एक पकड़ लिया है, तीन और भी ‘धीमे से’ इसी तरह पकड़ लेगी। फिर हिसाब बराबर करके दूसरी ओर देखेगी। मथुरा में ‘निर्विकल्‍पों’ की कोई कमी है क्‍या।
इंतजार करिए पुलिस की अगली प्रेस कांफ्रेंस का, हो सकता है तब तक ‘ठंडे पेय’ का मौसम आ जाए।


-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
http://legendnews.in/welcome-to-mathura-for-the-kidnapping-industry-success-is-guaranteed/

सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

ये हैं डॉक्‍टर गौरव ग्रोवर IPS…नाम तो सुन ही लिया होगा ?

मथुरा। ये हैं डॉक्‍टर गौरव ग्रोवर… युवा IPS गौरव ग्रोवर…नाम तो सुन ही लिया होगा। डॉ. गौरव ग्रोवर को जिन परिस्‍थितियों में इस विश्‍वप्रसिद्ध धार्मिक जनपद के वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक का पदभार सौंपा गया है, न तो वह परिस्‍थितियां सामान्‍य हैं और न उनके पूर्ववर्ती पुलिस कप्‍तान शलभ माथुर का तबादला रूटीन ट्रांसफर-पोस्‍टिंग का हिस्‍सा था।
इन हालातों में गौरव ग्रोवर के सामने पूरे प्रदेश की न सही, लेकिन मथुरा जनपद की ‘खाकी’ पर लगे दागों का सच सामने लाने की चुनौती तो है ही।
एक ऐसी चुनौती जिस पर योगीराज श्रीकृष्‍ण की नगरी के लोगों का भरोसा भी टिका है।
माना कि मथुरा और आगरा से लेकर लखनऊ तक मचे हंगामे के बाद शलभ माथुर को यहां से रवाना कर दिया गया किंतु अभी वो तमाम पुलिस अधिकारी यहीं मौजूद हैं जिनके कारण पूरे महकमे को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है।
इसके अलावा अनेक ऐसे प्रश्‍न भी अपनी जगह खड़े हैं, जिनका उत्तर न मिला तो कानून-व्‍यवस्‍था से लोगों का विश्‍वास पूरी तरह उठ जाएगा।
डॉ. गौरव ग्रोवर कल पहली बार स्‍थानीय ‘मीडिया’ से मुख़ातिब हुए। इस अपनी पहली औपचारिक प्रेस वार्ता में उन्‍होंने जो कुछ कहा, वह सब-कुछ हर अधिकारी कहता है। लेकिन उन्‍होंने वो नहीं कहा, जिसे मथुरा की जनता सुनना चाहती थी। जिसकी उसे अपेक्षा थी।
नवागत वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक ने उस सनसनीखेज वारदात का जिक्र तक नहीं किया, जिसमें मथुरा पुलिस पर न सिर्फ 40 लाख रुपए से अधिक की बड़ी रकम हड़प जाने का आरोप लगा है बल्‍कि चार अपहरणकर्ताओं को बिना कोई कानूनी कार्यवाही किए रिश्‍वत लेकर छोड़ देने का भी संगीन आरोप है।
आईजी ए. सतीश गणेश की जांच के बाद मशहूर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. निर्विकल्‍प अग्रवाल के अपहरण और उनसे 52 लाख रुपए की फिरौती वसूलने का यह मामला भले ही थाना हाईवे पुलिस ने अपनी ओर से पूरे दो महीने बाद दर्ज कर लिया हो परंतु नतीजा अब तक शून्‍य है।
चारों नामजद बदमाशों के खिलाफ भारी-भरकम इनाम घोषित कर दिए जाने के बावजूद, वह फिलहाल पुलिस की पकड़ से दूर हैं।
विभागीय कार्यवाही के नाम पर हुआ है तो मात्र इतना कि थाना हाईवे के तत्‍कालीन प्रभारी और डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण व फिरौती कांड के वादी इंस्‍पेक्‍टर जगदंबा सिंह को निलंबित कर दिया गया और सीओ रिफाइनरी को हटा दिया गया जबकि इस पूरे खेल में कई अन्‍य पुलिस अधिकारियों की भूमिका भी सामने आ चुकी है।
अपहरण और फिरौती के बाबत डॉ. निर्विकल्‍प की स्‍वीकारोक्‍ति के आधार पर लिखी गई एफआईआर बताती है कि पूरा खेल कितनी प्‍लानिंग के साथ किया गया।
इस प्‍लानिंग का पता लगाए बिना सच सामने आना मुश्‍किल होगा क्‍योंकि डॉ. निर्विकल्‍प ने बेशक 52 लाख रुपए की फिरौती देना स्‍वीकार किया है परंतु पुलिस ने कुछ स्‍वीकार नहीं किया।
आईजी की जांच रिपोर्ट बताती है कि मथुरा पुलिस ने अपने बयानों में सिर्फ दो बातें स्‍वीकार की हैं। पहली ये कि उसे डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण और उनसे फिरौती वसूलने की जानकारी थी तथा दूसरी ये कि अपहरणकर्ता चार बदमाशों में से एक बदमाश को वह मेरठ से पकड़ कर लाई थी, जिसे डॉ. द्वारा एफआईआर कराने से इंकार करने के कारण छोड़ दिया गया।
मथुरा पुलिस ने अपने उच्‍चाधिकारियों को न तो ये बताया कि पकड़े गए बदमाश से उसने क्‍या बरामद किया, और न यह जानकारी दी कि पूरे घटनाक्रम में किस-किस की कितनी तथा क्‍या भूमिका रही।
ऐसे में सबसे महत्‍वपूर्ण सवाल यह हो जाता है कि पुलिस की जांच चल भी रही है या नहीं, और चल रही है तो किस दिशा में चल रही है ?
दरअसल, पुलिस की जांच की ‘दिशा’ ही इस संगीन वारदात की ‘दशा’ तय करेगी क्‍योंकि बदमाशों को पकड़ लेने भर से इसका खुलासा होने वाला नहीं है। इसका पूरा खुलासा तभी हो पाएगा जब फिरौती की पूरी रकम बरामद करने के साथ-साथ खाकी की संलिप्‍तता का भी ईमानदारी से खुलासा किया जाए और बदमाशों के साथ-साथ अधिकारी भी जेल भेजे जा सकें।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण कांड: एक नहीं दो डॉक्‍टर का हुआ था अपहरण, दोनों से वसूली गई फिरौती, साथी डॉ. ही मास्‍टर माइंड

मथुरा। शहर के मशहूर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. निर्विकल्‍प अग्रवाल के अपहरण से जुड़े सनसनीखेज खुलासे ने लोगों के होश उड़ा दिए हैं।
दरअसल, डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण करने से कुछ दिन पहले इन्‍हीं बदमाशों ने एक अन्‍य प्रसिद्ध डॉक्‍टर को अगवा कर उनसे एक करोड़ रुपए की फिरौती वसूली थी।
चौंकाने वाली बात यह है कि दोनों डॉक्‍टर के अपहरण में इनके ही साथी एक ऐसे डॉक्‍टर का नाम सामने आया है, जो न केवल पूरे घटनाक्रम का सूत्रधार है बल्‍कि रहनुमा भी बना हुआ है।
बताया जाता है कि डॉ. निर्विकल्‍प के चारों नामजद अपहरणकर्ता पूरे समय जिस पांचवें शख्‍स से फोन पर संपर्क में थे, वह पांचवां शख्‍स ही मास्‍टरमाइंड डॉक्‍टर है जिसने एक-एक करके दोनों डॉक्‍टर के अपहरण का प्‍लॉट तैयार किया था।
चूंकि फिलहाल चारों नामजद आरोपी पुलिस की पकड़ से दूर हैं इसलिए पूरी सच्‍चाई सामने आना मुश्‍किल है, लेकिन पुलिस यदि उनकी पुरानी ‘कॉल डिटेल’ पर भी काम कर ले तो उसे बड़ी उपलब्‍धि हासिल हो सकती है।
इस केस का एक सर्वाधिक रोचक पहलू यह है कि अपहृत किए गए दोनों डॉक्‍टर तथा अपहरण के सूत्रधार डॉक्‍टर सहित एक नामजद बदमाश का संबंध भी गेटबंद पॉश कॉलोनी ‘राधापुरम एस्‍टेट’ से ही जुड़ रहा है।
गौरतलब है कि डॉ. निर्विकल्‍प अपने परिवार सहित राधापुरम एस्‍टेट में रहते हैं जबकि इनसे पूर्व जिस डॉक्‍टर को अगवा कर बदमाश एक करोड़ रुपए की फिरौती वसूलने में सफल रहे थे, वो भी राधापुरम एस्‍टेट के ही निवासी हैं।
इसके अलावा इन दोनों डॉक्‍टरों को अगवा कराने वाले डॉक्‍टर साहब भी राधापुरम एस्‍टेट में ही रह रहे हैं।
इसमें एक इत्तेफाक यह भी जुड़ रहा है कि तीनों डॉक्‍टर नेशनल हाईवे अथवा उसके लिंक रोड पर प्रेक्‍टिस करते हैं। यानी इनके चिकित्‍सा संस्‍थान भी उसी एक दायरे में हैं, जहां घटना स्‍थल है।
कुल मिलाकर इन डॉक्‍टर्स के घर ही नहीं, व्‍यावसायिक ठिकाने भी हाईवे थाना क्षेत्र में आते हैं।
उल्‍लेखनीय है कि डॉ. निर्विकल्‍प की फिरौती जिस स्‍थान पर वसूली गई और जिसका पुलिस ने बाकायदा अपनी एफआईआर में जिक्र भी किया है, वह ”सिटी हॉस्‍पीटल” भी नेशनल हाईवे की सर्विस रोड पर है तथा हाईवे थाना क्षेत्र में पड़ता है।
अब यदि बात करें नामजद बदमाशों की तो 11 फरवरी 2020 की रात हाईवे थाना पुलिस द्वारा लिखाए गए डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण मामले का एक नामजद अभियुक्‍त अनूप पुत्र जगदीश निवासी ग्राम कौलाहार थाना नौहझील मथुरा, काफी समय तक राधापुरम एस्‍टेट में किराए पर रहा था। यहां रहकर उसने कॉलोनी के कई लोगों से अपने अच्‍छे ताल्लुकात बना लिए थे।
यहां से निकलने के बाद भी अनूप गणेशरा रोड स्‍थित एक अन्‍य कॉलोनी में रहने लगा, जिससे उसका राधापुरम एस्‍टेट तक आना-जाना लगा रहता था।
अपहरण कराने के पीछे की कहानी
कुछ दिनों के अंतराल पर दो नामचीन डॉक्‍टरों का उनके ही किसी साथी डॉक्‍टर द्वारा अपहरण कराकर मोटी फिरौती वसूलने की कहानी भी किसी फिल्‍मी पटकथा जैसी है।
इस कहानी के अनुसार डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण कराने से पहले जिस डॉक्‍टर का अपहरण कराकर फिरौती वसूली गई थी, उन डॉक्‍टर और मास्‍टरमाइंड डॉक्‍टर के बीच पूर्व में व्‍यावसायिक रिश्‍ते थे।
इन रिश्‍तों में दरार आई तो कुछ हिसाब-किताब बाकी रह गया। पहले राजी-खुशी हिसाब करने के प्रयास हुए लेकिन जब बात नहीं बनी तो टेढ़ी उंगली से चार गुना घी निकाल लिया गया।
बताया जाता है कि इस मामले में बड़े आराम से फिरौती हजम हो गई इसलिए बदमाशों के मुंह भी खून लग चुका था।
बदमाशों ने अपनी आदत के मुताबिक अब अपहरण कराने वाले डॉक्‍टर से कोई दूसरा मुर्गा बताने को दबाव बनाना शुरू कर दिया।
मास्‍टरमाइंड डॉक्‍टर को डॉ. निर्विकल्‍प की कमजोरी पता थी, और वह यह भी जानता था डॉ. निर्विकल्‍प दूसरे डॉक्‍टर्स की अपेक्षा काफी सज्‍जन व्‍यक्‍ति हैं।
डॉ. निर्विकल्‍प की इसी कमजोरी का लाभ उठाकर उनके साथी डॉक्‍टर ने उन्‍हें टारगेट बनवाया और इसमें भी सफलता हाथ लगी।
पुलिस तक बात पहुंची कैसे
दो डॉक्‍टर्स का अपहरण कर इत्‍मीनान से मोटी रकम हड़पने वाले बदमाशों के हाथ तो जैसे कोई खजाना लग गया था। उन्‍होंने अपना इस्‍तेमाल करने वाले डॉक्‍टर साहब का पीछा इसके बाद भी नहीं छोड़ा।
व्‍यावसायिक रिश्‍तों का हिसाब बदमाशों के जरिए कराने वाले डॉक्‍टर के लिए अब ये बदमाश ही मुसीबत बन चुके थे लिहाजा डॉक्‍टर साहब ने इसका भी रास्‍ता निकाला।
काम आए पुलिस और मास्‍टरमाइंड डॉक्‍टर के गहरे संबंध
पुलिस के ही सूत्र बताते हैं कि दो डॉक्‍टरों का अपहरण कराकर अच्‍छी-खासी फिरौती दिलवाने वाले डॉक्‍टर के पुलिस, और विशेषकर इलाका पुलिस से बहुत मधुर संबंध रहते हैं।
इसे यूं भी समझ सकते हैं कि पुलिस से गहरी पैठ बनाकर रखने वालों में टॉप पर इस डॉक्‍टर का नाम शामिल है क्‍योंकि दोनों के हित एक-दूसरे से जुड़े हैं।
बस, इन्‍हीं संबंधों को फायदा उठाकर डॉक्‍टर ने इलाका पुलिस के जरिए ही आगरा में बैठे अधिकारियों तक डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण और फिरौती की बात पहुंचवाई।
सच तो यह है कि मास्‍टरमाइंड डॉक्‍टर को मालूम था कि डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण और लाखों रुपए की फिरौती के बंदरबांट में कुछ पुलिसकर्मी खाली हाथ रह गए हैं इसलिए वह उच्‍च अधिकारियों तक बात पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाले।
बताते हैं कि डॉ. और इन पुलिसकर्मियों को इस बात का भी इल्‍म था कि मथुरा पुलिस के अधिकारियों एवं आगरा में बैठे उच्‍च पुलिस अधिकारियों की बन नहीं रही इसलिए आगरा में बैठे अधिकारी मामले की गंभीरता को समझने में पूरी रुचि लेंगे।
डॉ. निर्विकल्‍प ने किसी को नहीं बताई अपने अपहरण की बात
पुलिस के ही सूत्र बताते हैं कि डॉ. निर्विकल्‍प ने अपने किसी साथी या आईएमए के पदाधिकारी को भी अपने अपहरण की बात नहीं बताई क्‍योंकि वह तो किसी भी तरह इसे भूल जाना चाहते थे। तब भी नहीं जब बदमाशों ने उन्‍हें फिर से फोन करना शुरू कर दिया था।
डॉक्‍टर निर्विकल्‍प यदि इतनी हिम्‍मत कर लेते तो सबसे पहले पुलिस को ही बताते क्‍योंकि उन्‍हें अपहरण कराने वाले अपने साथी डॉक्‍टर तथा पुलिस के बीच की ट्यूनिंग का कुछ पता नहीं था।
आईएमए के किसी पदाधिकारी डॉक्‍टर के माध्‍यम से डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण की बात पुलिस तक पहुंचने की कहानी में इसलिए दम नहीं है क्‍योंकि जब डॉक्‍टर निर्विकल्‍प ही अपने साथ हुई घटना के बारे में पुलिस को नहीं बताना चाहते थे तो उनकी मर्जी के बिना आईएमए का कोई पदाधिकारी पुलिस को उनके साथ हुई घटना की जानकारी क्‍यों देगा।
अगर ये मान भी लिया जाए कि डॉ. निर्विकल्‍प ने दोस्‍ती या निजी संबंधों की खातिर आईएमए के किसी पदाधिकारी को जानकारी दी तो एसोसिएशन का जिम्‍मेदार पदाधिकारी होने के नाते वह पहले यह बात आईएमए के ही प्लेटफार्म पर रखते। फिर आईएमए जो भी निर्णय लेती, सभी के हित में ही लेती।
पहले भी खेल करते रहे हैं मथुरा के कुछ डॉक्‍टर
अपनी जान छुड़ाने को साथी डॉक्‍टरों से चौथ वसूली कराने का मथुरा के कुछ डॉक्‍टर्स का खेल पुराना है।
मशहूर फिजीशियन डॉ. उमेश माहेश्‍वरी के अपहरण का किस्‍सा जिन्‍हें मालूम है, वो भली-भांति जानते हैं कि उसमें मथुरा के दो पुलिस अधिकारी दिल्‍ली में बंद एक कुख्‍यात बदमाश से पूछताछ करने गए थे।
उस बदमाश ने तब स्‍पष्‍ट कहा था कि डॉ. उमेश माहेश्‍वरी के अपहरण से तो उसका कोई लेना-देना नहीं है अलबत्ता वो मथुरा के अन्‍य कई डॉक्‍टर्स से बराबर चौथ वसूली करता रहता है। बाहर होता है तो खुद वसूली करने जाता है, और अंदर होने पर अपने किसी गुर्गे को भेजता है।
उस बदमाश ने मथुरा पुलिस को बाकायदा कैमरे के सामने बताया कि वह कृष्‍णा नगर के एक नर्सिंगहोम संचालक डॉक्‍टर से नियमति तौर पर वसूली करता है।
उसने यह भी बताया कि इस नर्सिंग होम संचालक ने कई बार उसे दूसरे डॉक्‍टर्स को भी निशाना बनवाया है, और खुद मध्‍यस्‍थता करके अच्‍छे पैसे दिलवाए हैं।
इस कुख्‍यात गैंगेस्‍टर ने तब इस बात का भी खुलासा किया था कि कोड वर्ड्स के रूप में वह उधार की रकम चुकाने को कहता है जिससे किसी को कोई शक न हो।
तब उस बदमाश के गैंग ने इस नर्सिंग होम संचालक डॉक्‍टर के माध्‍यम से करीब एक दर्जन डॉक्‍टरों को निशाना बनाया था।
इस बदमाश की हत्‍या हो जाने के बाद कुछ समय के लिए यह सिलसिला थमा किंतु अब लगता है कि उसके गैंग को पुराना घर दिखा दिया गया है।
जहां तक सवाल है डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण और फिरौती के केस को पुलिस द्वारा अपनी ओर से दर्ज कर लेने का, तो उसमें कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा।
एफआईआर दर्ज हुए एक सप्‍ताह से ऊपर का समय बीत गया लेकिन पुलिस किसी स्‍थानीय नामजद तक भी नहीं पहुंच सकी है जबकि यही पुलिस पूर्व में मेरठ निवासी एक बदमाश को तत्‍काल उठा लाई थी।
पुलिस ने अब तक किया है तो सिर्फ इतना कि चारों नामजद आरोपियों पर पचास-पचास हजार का ईनाम घोषित कर दिया है।
कल को यदि इनमें से कोई पुलिस के हत्‍थे चढ़ भी जाता है तो कौन गवाही देगा और कहां से सबूत मिलेंगे। थोड़े-बहुत रुपए बरामद दिखाकर किसी को जेल भेजा गया तो उसे जमानत मिलने में कोई असुविधा नहीं होगी।
डॉ. निर्विकल्‍प कुछ बोलने से रहे, क्‍योंकि उन्‍हें कुछ बोलना ही नहीं है। जिन डॉक्‍टर साहब को पुलिस तक बात पहुंचाने का श्रेय दिया जा रहा है, वह बोलने क्‍यों लगे।
पुलिस की इसे खोलने में पहले ही कोई रुचि नहीं है। बदमाश अपना जुर्म कबूल कर लें, यह हो नहीं सकता।
ऐसे में होगा तो केवल इतना कि इस तरह की कहानियां आगे भी दोहराई जाती रहेंगी। कुछ अंतराल के बाद कोई तीसरा डॉक्‍टर बदमाशों का, या यूं कहें कि अपने ही हमपेशा का शिकार बनेगा। और यह सिलसिला तब तक नहीं थमेगा, जब तक खुद डॉक्‍टर आगे आकर इसे रोकने का प्रयास नहीं करते।
जब तक वो अपने बीच मौजूद ऐसे तत्‍वों को चिन्‍हित कर उनके खिलाफ कठोर कदम नहीं उठाते।
आईएमए हो या नर्सिंग होम ऐसोसिएशन, अथवा डॉक्‍टरों की कोई अन्‍य संस्‍था हो, सबको सोचना होगा कि कोई भी संस्‍था मात्र जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने के लिए नहीं होती।
उसे खड़ा करने के पीछे जो उद्देश्‍य होते हैं, उनमें ऐसे डॉक्‍टर्स पर भी कार्यवाही करने का मकसद निहित होता है जो किसी भी तरह इस पवित्र पेशे को अपनी आपराधिक प्रवृत्ति से कलंकित करने का काम करते हैं।
– सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण कांड: खेल खतम… पैसा हजम… जनता बजाए ताली

मथुरा। मशहूर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. निर्विकल्‍प अग्रवाल के अपहरण कांड में आखिर पुलिस ने वही किया, जिसका अंदेशा था।
मथुरा और आगरा से लखनऊ तक इस अपहरण कांड को लेकर हो रही पुलिस की फजीहत के बीच हाईवे थाना पुलिस ने गत 11 फरवरी 2020 की रात 10 बजकर 53 मिनट पर आईपीसी की धारा 364 A के तहत एक एफआईआर दर्ज कर उच्‍च अधिकारियों को यह संदेश दिया है कि ”तुम्‍हारी भी जै-जै हमारी भी जै-जै, न तुम जीते न हम हारे”





पुलिस द्वारा दर्ज की गई इस एफआईआर के मुताबिक हाईवे थाना क्षेत्र की गेटबंद पॉश कालॉनी राधापुरम एस्‍टेट निवासी डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण 10 दिसंबर 2019 को रात करीब 8 बजे थाना क्षेत्र के ही गोवर्धन फ्लाईओवर से तब कर लिया गया था जब वो महोली रोड अपने क्‍लीनिक से घर लौट रहे थे।
थाना प्रभारी इंस्‍पेक्‍टर जगदंबा सिंह की ओर से दर्ज कराई गई इस एफआईआर में सनी मलिक पुत्र देवेन्‍द्र मलिक निवासी न्‍यू सैनिक विहार कॉलानी थाना कंकरखेड़ा मेरठ, महेश पुत्र रघुनाथ निवासी ग्राम कौलाहार थाना नौहझील मथुरा, अनूप पुत्र जगदीश निवासी ग्राम कौलाहार थाना नौहझील मथुरा तथा नीतेश उर्फ रीगल पुत्र नामालूम निवासी भोपाल मध्‍यप्रदेश (हाल निवासी दिल्‍ली एनसीआर) को नामजद किया है।
पुलिस द्वारा एफआईआर में दर्ज घटनाक्रम पर भरोसा करें तो 10 दिसंबर 2019 की रात करीब 8 बजे हुई इस वारदात का पता बीट सूचना के जरिए हाईवे थाना प्रभारी को 11 फरवरी 2020 को दोपहर के वक्‍त लगा।
डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण कर उनसे 52 लाख रुपए की फिरौती वसूलने का मामला बीट के माध्‍यम से संज्ञान में आते ही ”उच्‍च अधिकारियों को अवगत कराकर” प्रभारी इंस्‍पेक्‍टर जगदंबा सिंह अपने साथ सर्विलांस सेल प्रभारी निरीक्षक जसबीर सिंह, एसओजी प्रभारी सुल्‍तान सिंह आदि के साथ डॉ. निर्विकल्‍प के राधापुरम एस्‍टेट स्‍थित निवास पर पहुंचे।
पुलिस का दावा है कि डॉ. निर्विकल्‍प ने पुलिस को पूरे घटनाक्रम से अवगत कराते हुए जानकारी दी कि बदमाशों ने उनके ही मोबाइल फोन से उनकी पत्‍नी भावना को फोन करके 52 लाख रुपए की फिरौती लेकर घटना स्‍थल से बमुश्‍किल 100 मीटर दूर स्‍थित सिटी हॉस्‍पीटल के पास मुक्‍त कर दिया।
पुलिस की एफआईआर बताती है कि अब भी ”उक्‍त अज्ञात बदमाश” डॉ. निर्विकल्‍प को फोन करके 50 लाख रुपए और मांग रहे हैं। हालांकि नामजद एफआईआर के ब्‍यौरे में ”उक्‍त अज्ञात बदमाश” लिखा जाना भी समझ से परे है।
एफआईआर का ब्‍यौरा कहता है कि डॉ. निर्विकल्‍प के माता-पिता की काफी समय पहले आगरा में हत्‍या कर दी गई थी, जिस कारण डॉ. दंपत्ति बहुत डरे रहते हैं और इसलिए उन्‍होंने अपने साथ हुई वारदात का पुलिस से जिक्र नहीं किया।
हाईवे थाना प्रभारी जगदंबा सिंह की ओर से लिखाई गई एफआईआर के अनुसार नामजद चारों बदमाशों की जानकारी भी उन्‍हें डॉ. से न मिलकर सर्विलांस प्रभारी तथा एसओजी प्रभारी से मिली। इन दोनों अधिकारियों को बदमाशों के बावत सूचना उनके मुखबिर तथा गोपनीय सूत्रों ने दी।
पुलिस की एफआईआर पर भरोसा करें तो डॉ. द्वारा कोई सहयोग न किए जाने के बावजूद सर्विलांस प्रभारी तथा एसओजी प्रभारी को चंद घंटों के अंदर डॉ. से 52 लाख रुपए फिरौती वसूलने वाले चारों बदमाशों की पूरी कुंडली हाथ लग गई, लेकिन यह पता नहीं लगा कि अब जो बदमाश डॉ. से फोन पर फिर 50 लाख रुपए की मांग कर रहे हैं, वह ज्ञात हैं अथवा अज्ञात।
डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण और उन्‍हें 52 लाख रुपए फिरौती लेकर मुक्‍त करने की घटना पर हाईवे थाना प्रभारी की ओर से एफआईआर दर्ज कराने की जानकारी आज लोगों को उस समय हुई, जब उन्‍होंने सुबह के अखबार पढ़े।
आगरा से प्रकाशित सभी प्रमुख अखबारों के समाचारों से लोगों को यह भी ज्ञात हुआ कि इस प्रकरण में एफआईआर लिखाने वाले प्रभारी निरीक्षक जगदंबा सिंह को ही अब निलंबित कर दिया गया है जबकि सीओ रिफाइरी को हटाकर उनके स्‍थान पर सीओ गोवर्धन को रिफाइनरी सर्किल का अतिरिक्‍त प्रभार सौंपा गया है। अब पता लगा है कि आई जी ने चारों नामजद आरोपियों पर 50-50 हजार रुपए के ईनाम की भी घोषणा कर दी है।
आईजी ए सतीश गणेश कर रहे हैं विभागीय जांच
गौरतलब है कि इस मामले की जांच करीब एक सप्‍ताह पूर्व से आईजी ए सतीश गणेश कर रहे हैं। आईजी ने इसमें मथुरा पुलिस के आधा दर्जन से अधिक पुलिस अधिकारियों को तलब कर उनके बयान भी दर्ज कराए थे, साथ ही इसे लेकर आगरा जोन के एडीजी अजय आनंद समय-समय पर आगरा के मीडिया को अपना वर्जन देते रहे।
बताया जाता है कि मथुरा के पुलिस अधिकारियों ने अपने बयानों में बदमाशों द्वारा डॉक्‍टर का अपहरण कर फिरौती वसूले जाने की जानकारी आईजी को दी थी।
मथुरा पुलिस पर आरोप
11 फरवरी 2020 को हाईवे थाना पुलिस द्वारा लिखाई गई एफआईआर से पहले मथुरा पुलिस पर जो आरोप लग रहे थे उनके अनुसार घटना के तत्‍काल बाद पुलिस को डॉ. के अपहरण और फिरौती का पता ही नहीं लग चुका था, बल्‍कि बदमाश भी उसकी गिरफ्त में आ चुके थे।
इलाका पुलिस ने बदमाशों से फिरौती के पूरे 52 लाख रुपए बरामद कर उसका बंदरबांट कर लिया क्‍योंकि डॉ. दंपत्ति एफआईआर कराने को तैयार नहीं थे।
डॉ. दंपत्ति को संतुष्‍ट करने के लिए पुलिस ने उन्‍हें फिरौती की उतनी रकम लौटा दी जितनी उन्‍होंने इनकम टैक्‍स के झमेले में न पड़ने के कारण बताई।
पहले छपी खबरों में बताया गया कि पुलिस इस तरह फिरौती की रकम में से लगभग 40 लाख रुपए तथा बदमाशों को छोड़ने के एवज में मिले कई लाख रुपयों को भी हजम कर गई।
कुल मिलाकर देखा जाए तो सारा खेल इन्‍हीं लाखों रुपयों को लेकर शुरू हुआ था और अब भी उन्‍हीं पर टिका है।
खेल खतम… पैसा हजम
दरअसल, पैसा तो जहां ठिकाने लगना था वो लग गया, अब लकीर पीटी जा रही है क्‍योंकि डॉक्‍टर अब भी सामने आने को तैयार नहीं है। न वो फिरौती की रकम के लिए कोई क्‍लेम कर रहा है।
पुलिस को डॉक्‍टर ने अब तक जो भी बयान दिए हैं, उनसे मुकर जाना लाजिमी है क्‍योंकि वह किसी पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहता।
इन हालातों में पुलिस एफआई दर्ज करके सिर्फ और सिर्फ खानापूरी ही कर रही है क्‍योंकि बदमाशों को गिरफ्त में लेने का उसके पास कोई आधार नहीं है।
अब एफआईआर क्‍यों
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल सिर्फ एक यह रह जाता है कि पुलिस को इस खानापूरी की जरूरत क्‍यों पड़ी।
इसके बारे में विभागीय सूत्र बताते हैं कि आईजी ए सतीश गणेश ने अपनी जांच पूरी करके रिपोर्ट लखनऊ भेज दी थी लिहाजा कुछ न कुछ तो करना था।
एक पक्ष यह भी
इस पूरे घटनाक्रम का एक पक्ष यह भी सामने आ रहा है कि उच्‍च पुलिस अधिकारियों के बीच सामंजस्‍य का अभाव तथा ईगो प्रॉब्‍लम देखते हुए लखनऊ से सारा मामला रफा-दफा करने के मौखिक आदेश दिए गए जिससे खाकी को बदनामी से बचाया जा सके।
लखनऊ में बैठे आला अधिकारी भी यह जानते और समझते हैं कि डकारे गए लाखों रुपए अब पुलिस से निकलवा पाना संभव नहीं है इसलिए किसी तरह इतना किया जाए कि शर्मिंदगी न झेलनी पड़े।
पुलिस के भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि लखनऊ से मिले मौखिक आदेश-निर्देशों के अनुपालन में आगरा और मथुरा पुलिस ने यह कदम उठाया है। ये बात अलग है कि इसके दूरगामी परिणाम न पुलिस के हित में होंगे और न डॉक्‍टर के हित में। इससे सिर्फ हित पूरा होगा तो बदमाशों का ही होगा। आज डॉ. निर्विकल्‍प को निशाने पर लिया है तो कल किसी और को लिया जाएगा।
रही बात आम जनता की तो उसका क्‍या, वह हमेशा विजेता के पक्ष में ताली बजाने को खड़ी हो जाती है।
अंत में हैदर अली आतिश का ये शेर, और बात खत्‍म-
बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

मथुरा डाॅक्‍टर अपहरण कांड: फिरौती हड़पने पर मथुरा पुलिस की चुप्‍पी सवालों के घेरे में

मथुरा। गेटबंद पॉश कॉलोनी राधापुरम एस्‍टेट निवासी जिस डॉक्‍टर के कथित अपहरण से मिली फिरौती की बड़ी रकम को चंद घंटों में पुलिस ने ठिकाने लगाकर सारा मामला रफा-दफा कर दिया, उसे लेकर अब तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं।
सवाल खड़े करने वालों में खुद पुलिस भी है, डॉक्‍टर बिरादरी भी और आम आदमी भी।
इन सवालों का जवाब जानने से पहले इस ”कथित अपहरण” संबंधी पूरे घटनाक्रम पर एक बार फिर गौर करना जरूरी है।
अब तक सामने आई कहानी के अनुसार, एक मशहूर ऑर्थोपेडिक डॉक्‍टर पिछले माह जब अपने क्‍लीनिक से कार द्वारा लौट रहे थे तब नेशनल हाईवे स्‍थित गोवर्धन चौराहे के फ्लाईओवर पर उन्‍हें एक लग्जरी गाड़ी सवार चार बदमाशों ने ओवरटेक करके कब्‍जे में ले लिया और उन्‍हीं के मोबाइल से उनकी पत्‍नी को फोन करके डॉक्‍टर का अपहरण कर लिए जाने की जानकारी दी।
कहानी के मुताबिक कुछ घंटों के अंदर ही डॉक्‍टर की पत्‍नी से 55 लाख की फिरौती वसूलकर बदमाशों ने डॉक्‍टर को मुक्‍त कर दिया।
अखबारों में छपे इस पूरे घटनाक्रम पर भरोसा किया जाए तो 55 लाख रुपए की बड़ी रकम का मात्र चंद घंटों में डॉक्‍टर की पत्‍नी ने इंतजाम कर लिया और इस दौरान डॉक्‍टर को चारों बदमाश उन्‍हीं की गाड़ी में लेकर नेशनल हाईवे पर ही घूमते रहे।
दिल्‍ली-आगरा नेशनल हाईवे का ये वो हिस्‍सा है जहां दिन-रात पुलिस सक्रिय रहती है क्‍योंकि इस पर अनेक होटल, हॉस्‍पीटल, गेस्‍ट हाउस आदि के अलावा इंडस्‍ट्री एरिया भी पड़ता है।
इसके अलावा घटना स्‍थल से बमुश्‍किल 100 मीटर की दूरी पर शहर कोतवाली की रिपोर्टिंग पुलिस चौकी कृष्‍णानगर तथा हाईवे थाने की भी एक पुलिस चौकी है।
सवाल जो अब पूछे जा रहे हैं
अब इस अपहरण को लेकर उन सवालों को समझिए जिनकी वजह से इसे ‘कथित अपहरण’ कहा जा रहा है।
सवाल नंबर एक: क्‍या वाकई डॉक्‍टर का किडनैप हुआ था, या मामला कुछ ऐसा है जिसे छिपाना डॉक्‍टर दंपत्ति और उसके परिवार की मजबूरी था ?
ये सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्‍योंकि पेशेवर बदमाश यदि किसी का अपहरण करते हैं तो वो अपहृत के परिवार से तत्‍काल संपर्क स्‍थापित करने की गलती नहीं करते। पहले वो अपहृत के परिवार और पुलिस की गतिविधि को भांपते हैं, उसके बाद इत्‍मीनान से अपनी डिमांड रखते हैं।
इस मामले में बताया जा रहा है कि बदमाशों ने मात्र दो-ढाई घंटे में फिरौती की रकम वसूल ली और निकल गए, जोकि संभव नहीं है।
सवाल नंबर दो: क्‍या डॉक्‍टर ने अपने घर पर 55 लाख रुपए की बड़ी रकम पहले से रखी हुई थी, और क्‍या उनके कथित अपहरणकर्ताओं को इस बात का इल्‍म था कि डॉक्‍टर के घर पर इतनी बड़ी रकम है ?
ये सवाल इसलिए महत्‍वपूर्ण हो जाता है कि आज के इस दौर में जब बड़े-बड़े व्‍यापारी और उद्योगपति भी इतना कैश अपने घर पर नहीं रखते तो डॉक्‍टर ने इतना पैसा किसलिए रखा हुआ था।
सवाल नंबर तीन: जब डॉक्‍टर, डॉक्‍टर की पत्‍नी और उसके परिजनों में से भी किसी ने पुलिस को अपहरण की जानकारी नहीं दी तो पुलिस को सूचित किसने किया ?
इस सवाल का जवाब पूरे मामले की परतें खोल सकता है क्‍योंकि पुलिस पर फिरौती की रकम में 40 लाख रुपए हड़प जाने का आरोप लगा है।
समाचारों के अनुसार पुलिस ने चारों अपहरणकर्ताओं को गिरफ्त में लेकर और पूरे 55 लाख रुपए बरामद करके जब डॉक्‍टर दंपत्ति से संपर्क किया तो वो एफआईआर दर्ज कराने पर तैयार नहीं हुए लिहाजा पुलिस ने बिना कोई कार्यवाही किए बदमाशों को रिहा कर दिया।
बताया जाता है कि डॉक्‍टर दंपत्ति के रुख ने ही पुलिस के दोनों हाथों में लड्डू दे दिए और इसीलिए उसने 15 लाख बरामद बताकर वो तो डॉक्‍टर दंपत्ति को थमा दिए तथा शेष 40 लाख की फिरौती का बंटवारा कर लिया।
जानकारी के मुताबिक इसके अलावा पुलिस ने बदमाशों को सुरक्षित रिहा करने की एवज में उनसे भी कुछ रकम हथिया ली।
सवाल नंबर चार: जो पुलिस अपने इलाके में मशहूर डॉक्‍टर के अपहरण और उसकी फिरौती वसूलने तक गहरी नींद में थी, उसे अचानक बदमाशों का पूरा ब्‍यौरा उनकी लोकेशन के साथ कैसे मिल गया कि उसने चारों बदमाशों को फिरौती की रकम ठिकाने लगाने से पहले धर दबोचा ?
पुलिस की इस हरकत में यह निहित है कि क्‍या वाकई डॉक्‍टर का अपहरण हुआ या इसके पीछे की पूरी पटकथा पुलिस ने ही बदमाशों के साथ मिलकर लिखी थी ताकि सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
यदि ऐसा नहीं है तो किसी भी ऐसी संगीन वारदात के बाद हफ्तों-हफ्तों टीम बनाकर अंधेरे में तीर चलाने वाली पुलिस ने कैसे इतनी जल्‍दी चारों बदमाश मय रकम के पकड़ लिए जबकि उनमें से एक बदमाश मेरठ का बताया जाता है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाशों के साथ सुरक्षित गेम खेलने के लिए कुछ खास पुलिस वालों ने सारा ड्रामा रचा और बड़ी रकम हड़प कर डकार तक नहीं ली।
पुलिस के ही भरोसमंद सूत्रों की मानें तो इस खेल में एक नहीं, दो थानों की पुलिस शामिल रही है और ये दोनों ही थाने नेशनल हाईवे के हैं। इनमें से एक थाने के प्रभारी का मेरठ के बदमाशों से गहरा ताल्‍लुक बताया जाता है।
पुलिस और बदमाशों की जुगलबंदी इस बात से भी जाहिर होती है कि सामान्‍य तौर पर ऐसी किसी वारदात के बाद सीमा विवाद पैदा करके पीड़ित को ‘फुटबॉल’ बना देने वाली पुलिस ने इस मामले में कतई हील-हुज्‍जत न करते हुए घटनास्‍थल हाईवे थाना क्षेत्र में मान लिया जबकि शहर कोतवाली की रिपोर्टिंग चौकी कृष्‍णानगर का भी कुछ क्षेत्र इसमें आता है।
सवाल नंबर पांच: आगरा और लखनऊ में बैठे पुलिस के आला अधिकारियों तक इस अपहरण की बात पहुंचने से पहले डीआईजी/एसएसपी मथुरा को इसकी भनक क्‍यों नहीं लगी ?
गौरतलब है कि पिछले महीने हुई अपहरण और फिरौती की इस बड़ी वारदात का पता आम जनता तथा डॉक्‍टर बिरादरी को भी तब लगा जब 5 फरवरी के प्रमुख अखबारों में यह खबर एडीजी आगरा जोन अजय आनंद के वर्जन सहित छपी।
आश्‍चर्य की बात यह है कि जो खबर छापी गई, वह भी अखबारों के आगरा कार्यालय से छपी थी न कि मथुरा से, और उसके लिए मथुरा के किसी पुलिस अधिकारी का वर्जन तक लेना जरूरी नहीं समझा गया।
और अंतिम सवाल: यदि किसी विशेष कारणवश ऐसा हुआ है तो भी समाचार छप जाने के बाद अब तक मथुरा पुलिस के किसी अधिकारी ने मुंह क्‍यों नहीं खोला ?
जैसा कि एडीजी आगरा जोन अजय आनंद ने कहा, यदि डॉक्‍टर व उसका परिवार अपहरण की एफआईआर दर्ज कराने में रुचि नहीं ले रहा था तो भी इलाका पुलिस को खुद एफआईआर दर्ज कर बदमाशों का चालान करना चाहिए था क्‍योंकि एक बड़ी रकम बरामद की गई थी।
समाचार के अनुसार उच्‍चाधिकारियों द्वारा इस पूरे मामले में मथुरा पुलिस से चार दिन पहले ही जवाब तलब किया जा चुका है, बावजूद इसके मथुरा पुलिस द्वारा न तो कोई कार्यवाही की गई है और न अपनी सफाई में कुछ कहा गया है।
उधर डॉक्‍टर से जुड़े सूत्रों का कहना है कि डॉक्‍टर ने कुछ दिनों पहले ही अपना निजी हॉस्‍पिटल बनाने के लिए कोई बड़ी जमीन महंगे इलाके में खरीदी है।
सूत्रों के मुताबिक इस वारदात का संबंध उस सौदे से भी हो सकता है क्‍योंकि बिना हील-हुज्‍जत आनन-फानन में 55 लाख रुपए की रकम बदमाशों तक कोई यूं ही नहीं पहुंचा सकता।
हो सकता है कि पुलिस को शामिल करने के पीछे भी बदमाशों की कुछ ऐसी ही मंशा रही हो जिससे सेफ गेम खेला जा सके और बाद के लिए कोई कांटा न बचे।
पूर्व में भी होती रही हैं ऐसी वारदातें
विश्‍व प्रसिद्ध इस धार्मिक जनपद में डॉक्‍टर्स के अपहरण और उनसे चौथ वसूली का यह कोई पहला केस नहीं है, और न पहली बार पुलिस तथा बदमाशों की मिलीभगत से रकम एंठने का मामला प्रकाश में आया है।
इससे पहले भी यह सब हुआ है और सीओ स्‍तर के पुलिस अधिकारी जेल भी गए हैं।
कुख्‍यात बदमाशों को मथुरा के डॉक्‍टर बहुत पहले से आकर्षित करते रहे हैं और ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब एक डॉक्‍टर ने ही दूसरे डॉक्‍टर की बदमाशों के लिए सुरागरसी अथवा मुखबिरी की है।
जो भी हो लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से पर्दा उठना एक ओर जहां इसलिए जरूरी है जिससे पुलिस की छवि और प्रभावित न हो वहीं दूसरी ओर इसलिए भी आवश्‍यक है कि अन्‍य डॉक्‍टर खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
http://legendnews.in/mathura-polices-silence-surrounded-by-questions-on-doctor-kidnapping-and-ransom-case/
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