मथुरा। ये हैं डॉक्टर गौरव ग्रोवर… युवा IPS गौरव ग्रोवर…नाम तो सुन ही लिया होगा। डॉ. गौरव ग्रोवर को जिन परिस्थितियों में इस विश्वप्रसिद्ध धार्मिक जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का पदभार सौंपा गया है, न तो वह परिस्थितियां सामान्य हैं और न उनके पूर्ववर्ती पुलिस कप्तान शलभ माथुर का तबादला रूटीन ट्रांसफर-पोस्टिंग का हिस्सा था।
इन हालातों में गौरव ग्रोवर के सामने पूरे प्रदेश की न सही, लेकिन मथुरा जनपद की ‘खाकी’ पर लगे दागों का सच सामने लाने की चुनौती तो है ही।
एक ऐसी चुनौती जिस पर योगीराज श्रीकृष्ण की नगरी के लोगों का भरोसा भी टिका है।
माना कि मथुरा और आगरा से लेकर लखनऊ तक मचे हंगामे के बाद शलभ माथुर को यहां से रवाना कर दिया गया किंतु अभी वो तमाम पुलिस अधिकारी यहीं मौजूद हैं जिनके कारण पूरे महकमे को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है।
इसके अलावा अनेक ऐसे प्रश्न भी अपनी जगह खड़े हैं, जिनका उत्तर न मिला तो कानून-व्यवस्था से लोगों का विश्वास पूरी तरह उठ जाएगा।
डॉ. गौरव ग्रोवर कल पहली बार स्थानीय ‘मीडिया’ से मुख़ातिब हुए। इस अपनी पहली औपचारिक प्रेस वार्ता में उन्होंने जो कुछ कहा, वह सब-कुछ हर अधिकारी कहता है। लेकिन उन्होंने वो नहीं कहा, जिसे मथुरा की जनता सुनना चाहती थी। जिसकी उसे अपेक्षा थी।
नवागत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने उस सनसनीखेज वारदात का जिक्र तक नहीं किया, जिसमें मथुरा पुलिस पर न सिर्फ 40 लाख रुपए से अधिक की बड़ी रकम हड़प जाने का आरोप लगा है बल्कि चार अपहरणकर्ताओं को बिना कोई कानूनी कार्यवाही किए रिश्वत लेकर छोड़ देने का भी संगीन आरोप है।
आईजी ए. सतीश गणेश की जांच के बाद मशहूर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. निर्विकल्प अग्रवाल के अपहरण और उनसे 52 लाख रुपए की फिरौती वसूलने का यह मामला भले ही थाना हाईवे पुलिस ने अपनी ओर से पूरे दो महीने बाद दर्ज कर लिया हो परंतु नतीजा अब तक शून्य है।
चारों नामजद बदमाशों के खिलाफ भारी-भरकम इनाम घोषित कर दिए जाने के बावजूद, वह फिलहाल पुलिस की पकड़ से दूर हैं।
विभागीय कार्यवाही के नाम पर हुआ है तो मात्र इतना कि थाना हाईवे के तत्कालीन प्रभारी और डॉ. निर्विकल्प अपहरण व फिरौती कांड के वादी इंस्पेक्टर जगदंबा सिंह को निलंबित कर दिया गया और सीओ रिफाइनरी को हटा दिया गया जबकि इस पूरे खेल में कई अन्य पुलिस अधिकारियों की भूमिका भी सामने आ चुकी है।
अपहरण और फिरौती के बाबत डॉ. निर्विकल्प की स्वीकारोक्ति के आधार पर लिखी गई एफआईआर बताती है कि पूरा खेल कितनी प्लानिंग के साथ किया गया।
इस प्लानिंग का पता लगाए बिना सच सामने आना मुश्किल होगा क्योंकि डॉ. निर्विकल्प ने बेशक 52 लाख रुपए की फिरौती देना स्वीकार किया है परंतु पुलिस ने कुछ स्वीकार नहीं किया।
आईजी की जांच रिपोर्ट बताती है कि मथुरा पुलिस ने अपने बयानों में सिर्फ दो बातें स्वीकार की हैं। पहली ये कि उसे डॉ. निर्विकल्प के अपहरण और उनसे फिरौती वसूलने की जानकारी थी तथा दूसरी ये कि अपहरणकर्ता चार बदमाशों में से एक बदमाश को वह मेरठ से पकड़ कर लाई थी, जिसे डॉ. द्वारा एफआईआर कराने से इंकार करने के कारण छोड़ दिया गया।
मथुरा पुलिस ने अपने उच्चाधिकारियों को न तो ये बताया कि पकड़े गए बदमाश से उसने क्या बरामद किया, और न यह जानकारी दी कि पूरे घटनाक्रम में किस-किस की कितनी तथा क्या भूमिका रही।
ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हो जाता है कि पुलिस की जांच चल भी रही है या नहीं, और चल रही है तो किस दिशा में चल रही है ?
दरअसल, पुलिस की जांच की ‘दिशा’ ही इस संगीन वारदात की ‘दशा’ तय करेगी क्योंकि बदमाशों को पकड़ लेने भर से इसका खुलासा होने वाला नहीं है। इसका पूरा खुलासा तभी हो पाएगा जब फिरौती की पूरी रकम बरामद करने के साथ-साथ खाकी की संलिप्तता का भी ईमानदारी से खुलासा किया जाए और बदमाशों के साथ-साथ अधिकारी भी जेल भेजे जा सकें।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
इन हालातों में गौरव ग्रोवर के सामने पूरे प्रदेश की न सही, लेकिन मथुरा जनपद की ‘खाकी’ पर लगे दागों का सच सामने लाने की चुनौती तो है ही।
एक ऐसी चुनौती जिस पर योगीराज श्रीकृष्ण की नगरी के लोगों का भरोसा भी टिका है।
माना कि मथुरा और आगरा से लेकर लखनऊ तक मचे हंगामे के बाद शलभ माथुर को यहां से रवाना कर दिया गया किंतु अभी वो तमाम पुलिस अधिकारी यहीं मौजूद हैं जिनके कारण पूरे महकमे को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है।
इसके अलावा अनेक ऐसे प्रश्न भी अपनी जगह खड़े हैं, जिनका उत्तर न मिला तो कानून-व्यवस्था से लोगों का विश्वास पूरी तरह उठ जाएगा।
डॉ. गौरव ग्रोवर कल पहली बार स्थानीय ‘मीडिया’ से मुख़ातिब हुए। इस अपनी पहली औपचारिक प्रेस वार्ता में उन्होंने जो कुछ कहा, वह सब-कुछ हर अधिकारी कहता है। लेकिन उन्होंने वो नहीं कहा, जिसे मथुरा की जनता सुनना चाहती थी। जिसकी उसे अपेक्षा थी।
नवागत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने उस सनसनीखेज वारदात का जिक्र तक नहीं किया, जिसमें मथुरा पुलिस पर न सिर्फ 40 लाख रुपए से अधिक की बड़ी रकम हड़प जाने का आरोप लगा है बल्कि चार अपहरणकर्ताओं को बिना कोई कानूनी कार्यवाही किए रिश्वत लेकर छोड़ देने का भी संगीन आरोप है।
आईजी ए. सतीश गणेश की जांच के बाद मशहूर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. निर्विकल्प अग्रवाल के अपहरण और उनसे 52 लाख रुपए की फिरौती वसूलने का यह मामला भले ही थाना हाईवे पुलिस ने अपनी ओर से पूरे दो महीने बाद दर्ज कर लिया हो परंतु नतीजा अब तक शून्य है।
चारों नामजद बदमाशों के खिलाफ भारी-भरकम इनाम घोषित कर दिए जाने के बावजूद, वह फिलहाल पुलिस की पकड़ से दूर हैं।
विभागीय कार्यवाही के नाम पर हुआ है तो मात्र इतना कि थाना हाईवे के तत्कालीन प्रभारी और डॉ. निर्विकल्प अपहरण व फिरौती कांड के वादी इंस्पेक्टर जगदंबा सिंह को निलंबित कर दिया गया और सीओ रिफाइनरी को हटा दिया गया जबकि इस पूरे खेल में कई अन्य पुलिस अधिकारियों की भूमिका भी सामने आ चुकी है।
अपहरण और फिरौती के बाबत डॉ. निर्विकल्प की स्वीकारोक्ति के आधार पर लिखी गई एफआईआर बताती है कि पूरा खेल कितनी प्लानिंग के साथ किया गया।
इस प्लानिंग का पता लगाए बिना सच सामने आना मुश्किल होगा क्योंकि डॉ. निर्विकल्प ने बेशक 52 लाख रुपए की फिरौती देना स्वीकार किया है परंतु पुलिस ने कुछ स्वीकार नहीं किया।
आईजी की जांच रिपोर्ट बताती है कि मथुरा पुलिस ने अपने बयानों में सिर्फ दो बातें स्वीकार की हैं। पहली ये कि उसे डॉ. निर्विकल्प के अपहरण और उनसे फिरौती वसूलने की जानकारी थी तथा दूसरी ये कि अपहरणकर्ता चार बदमाशों में से एक बदमाश को वह मेरठ से पकड़ कर लाई थी, जिसे डॉ. द्वारा एफआईआर कराने से इंकार करने के कारण छोड़ दिया गया।
मथुरा पुलिस ने अपने उच्चाधिकारियों को न तो ये बताया कि पकड़े गए बदमाश से उसने क्या बरामद किया, और न यह जानकारी दी कि पूरे घटनाक्रम में किस-किस की कितनी तथा क्या भूमिका रही।
ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हो जाता है कि पुलिस की जांच चल भी रही है या नहीं, और चल रही है तो किस दिशा में चल रही है ?
दरअसल, पुलिस की जांच की ‘दिशा’ ही इस संगीन वारदात की ‘दशा’ तय करेगी क्योंकि बदमाशों को पकड़ लेने भर से इसका खुलासा होने वाला नहीं है। इसका पूरा खुलासा तभी हो पाएगा जब फिरौती की पूरी रकम बरामद करने के साथ-साथ खाकी की संलिप्तता का भी ईमानदारी से खुलासा किया जाए और बदमाशों के साथ-साथ अधिकारी भी जेल भेजे जा सकें।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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