(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष) राजनीति का अपराधीकरण तो एक लंबे समय से चर्चा में है और उसे लेकर न्यायपालिका भी चिंतित है पर राजनीति का एक अन्य नापाक गठजोड़ न चर्चा में है, न उसके लिए कोई चिंतित है जबकि वह देश व समाज की बर्बादी का बड़ा कारण बना हुआ है। जी हां! यह गठजोड़ है तथाकथित धर्मगुरुओं एवं राजनीति का। इस नापाक गठजोड़ की गहराई का अंदाज यदि लगाना हो तो भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और उसके आस-पास आकर देखिये। वृंदावन, महावन, कोकिलावन, गोवर्धन, गोकुल, नंदगांव, बरसाना, बल्देव आदि अनेक स्थानों पर चारों ओर राजनीति और धर्म के नापाक गठजोड़ से उपजा धंधा फलता-फूलता नजर आयेगा। कहते हैं कि किसी भी पापकर्म के लिए धर्म और धार्मिक स्थानों से बड़ी कोई आड़ नहीं होती। तथाकथित धर्मगुरू इस आड़ का आधार होते हैं। फिर मथुरा तो विश्व पटल पर अपनी विशिष्ट धार्मिक छवि के कारण ही पहचाना जाता है और उसकी इस छवि के अनुरूप यहां नामचीन धर्मगुरुओं, संत-महंतों, भागवताचार्यों एवं मठाधीशों की लंबी फेहरिस्त है। धर्म की आड़ में कई दशकों से जड़ जमाये बैठे ये धंधेबाज कानून-व्यवस्था को खुली चुनौती दे रहे हैं और इनके द्वारा अर्जित अकूत संपत्ति बड़े विवादों का कारण बनी हुई है लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा क्योंकि इस संपत्ति में राजनेताओं की साइलेंट हिस्सेदारी है। बात शुरू करते हैं
एक जमाने में अबूझ पहेली बने हुए संत देवरहा बाबा से। देवरिया बाबा के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त इस संत के वृंदावन स्थित यमुना पार पर लगने वाले दरबार में इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक और राजनारायण से लेकर चंद्रशेखर, ज्ञानी जैलसिंह तथा मुलायम सिंह यादव तक सब ढोक देते थे। मचान पर बैठकर नीचे खड़े व्यक्ति को अपने दाहिने पैर से आशीर्वाद देने वाला देवरहा बाबा खुद बेशक नंगे बदन रहता था लेकिन उसने किस कदर बेशुमार संपत्ति अर्जित की थी इसका खुलासा तब हुआ जब उस संपत्ति को लेकर उसके उत्तराधिकारी बड़े महाराज व छोटे महाराज के बीच का झगड़ा सार्वजनिक हुआ। इस झगड़े का ही परिणाम है कि चमत्कारी मणि देने के नाम पर किसी व्यापारी से करोड़ों रुपये हड़प लेने के आरोप में बड़े महाराज फरार हैं जबकि छोटे महाराज बाबा की संपत्ति पर काबिज रहने के लिए राजनीतिज्ञों का संरक्षण लिए हुए हैं। इसी कड़ी में ताजा उदाहरण बाबा जयगुरुदेव का है। अपने अनुयायियों को सतयुग आने का सब्ज़बाग दिखाने वाले जयगुरुदेव का निधन तक एक रहस्य बन गया। अंतिम दिनों में बाबा चंद लोगों के रहमो-करम पर अपनी गतिविधियां संचालित कर पाते थे। उनका जीवन महंगी गाड़ियों से नेशनल हाईवे को नापने अथवा आश्रम की एक कोठरी में पड़े रहने तक सीमित हो गया था। जयगुरुदेव की बेहिसाब चल-अचल संपत्ति और बैंक बैंलेस, विवाद का कारण बन चुका है। कहने को पंकज बाबा नामक युवक ने खुद को उनका उत्तराधिकारी घोषित कर रखा है लेकिन विवाद फिलहाल विभिन्न न्यायालयों में लंबित है। बाबा के अंतिम समय तक पंकज (बाबा) यादव की पहचान जयगुरुदेव के सुरक्षा गार्ड व ड्राइवर की थी। जयगुरुदेव ने अपने जीते जी जिस मामूली से आश्रम का सैंकड़ों एकड़ में विस्तार किया और सैंकड़ों लग्जरी गाड़ियों का बेड़ा बनाया, वह आश्रम अब अखाड़ा बना हुआ है तथा गाड़ियां धूल फांक रही हैं। खुद मलमल का दुपट्टा पहनकर अपने अनुयायियों को टाट पहनाने वाले बाबा जयगुरुदेव के बेड़े में राल्स रॉयस एवं लिमोज़ीन से लेकर तमाम छोटी-बड़ी करीब 400 गाड़ियां और हैलीकॉप्टर भी शामिल है। यूं तो जयगुरुदेव के नेशनल हाईवे-2 स्थित आश्रम में भी इंदिरा गांधी सहित अनेक राजनेताओं ने हाजिरी लगाई लेकिन फिलहाल बाबा की संपत्ति पर काबिज पंकज बाबा को यूपी के एक कद्दावर सत्ताधारी नेता का संरक्षण प्राप्त है। कहा तो यहां तक जाता है कि पंकज बाबा इन्हीं राजनेता के प्रतिनिधि की हैसियत से बाबा जयगुरुदेव की अरबों की संपत्ति को कब्जाए हुए हैं और इसीलिए बाबा को लखनऊ से लेकर मथुरा तक के पुलिस-प्रशासन का सहयोग मिल रहा है। ब्रजभूमि पर अपनी समृद्ध विरासत छोड़कर जाने वालों में एक और नाम आता है 'इस्कॉन' के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद का। कृष्णभक्ति को दुनिया के तमाम देशों में फैलाने वाले स्वामी प्रभुपाद की विरासत आज उनके अनुयायियों के बीच महाभारत करा रही है। वृंदावन के अत्यंत महंगे इलाके रमण रेती में स्थित इस्कॉन का हरेकृष्ण मंदिर और उससे जुड़ी संस्थाओं का विवाद अब कोर्ट-कचहरी एवं पुलिस का मोहताज है। इस्कॉन के विवाद में हत्या, हत्या के प्रयास, बलात्कार, दुराचार एवं यौनाचार तक शामिल हैं और प्रबंधन के खिलाफ धरने-प्रदर्शन होना आये दिन की बात बन गई है। बताया जाता है कि यही स्थिति दुनियाभर में फैले इस्कॉन के दूसरे संस्थानों की भी है और सभी के मूल में है संस्था का बेशुमार पैसा तथा आमदनी। अपने तथाकथित चमत्कारों से राजनेताओं को पैरों की धूल चटवाने वाले बाबाओं की लिस्ट में चौथा नाम आता है जयपुर मंदिर वाले श्रीपाद बाबा का। श्रीपाद बाबा के रहते अनेक कद्दावर कांग्रेसी नेता उनकी सार्वजनिक तौर पर चरण वंदना करते थे जबकि श्रीपाद बाबा के क्रिया-कलाप विवादित थे। श्रीपाद बाबा ने देवरहा बाबा, जयगुरुदेव तथा स्वामी प्रभुपाद जितनी संपत्ति तो अर्जित नहीं की लेकिन जो की उस पर विवाद आज भी बना हुआ है। इन सबके अतिरिक्त इसी श्रृंखला में एक नाम आता है 'स्वयंभू जगद्गुरू शंकराचार्य' और तथाकथित धर्मगुरू कृपालु महाराज के शिष्य प्रकाशानंद का। वृंदावन के छटीकरा रोड पर करोड़ों रुपये की लागत से आलीशान जगद्गुरू धाम नामक आश्रम बनवाने वाले प्रकाशानंद का आज कोई अता-पता नहीं है। अमेरिका के टेक्सास की एक अदालत से यौनाचार के आरोप में सजा हो जाने के बाद प्रकाशानंद भाग खड़ा हुआ और उसके बाद उसका कुछ पता नहीं है। प्रकाशानंद अब जीवित भी है या नहीं, कहा नहीं जा सकता क्योंकि वृंदावन के अलावा भी उसकी अरबों की संपत्ति विश्व के कई देशों में पड़ी है। प्रकाशानंद के गुरू कृपालु महाराज अब उन्हें अपना शिष्य बताने से भी परहेज करते हैं और इसका मुख्य कारण संपत्ति ही बताई जाती है। जहां तक सवाल खुद रामकृपालु त्रिपाठी उर्फ कुपालु महाराज का है तो उसकी संपत्ति हमेशा चर्चा का विषय रही है। मूलरूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में जनपद प्रतापगढ़ के मूल निवासी कृपालु महाराज ने वृंदावन एवं बरसाना से अपने धार्मिक साम्राज्य का विस्तार दुनियाभर में किया। कई बार बलात्कार के आरोपों में देश-विदेश की जेलों के मेहमान बन चुके कृपालु महाराज आज कितनी संपदा एकत्र कर चुके हैं, इसका अनुमान तक लगाना आसान नहीं। कृपालु महाराज ने कहने को अपनी संपत्ति के लिए एक ट्रस्ट बना रखा है लेकिन उस ट्रस्ट के मुख्य पदों पर उनकी अपनी संतानें काबिज हैं। कृपालु महाराज को भी भाजपा के एक बड़े नेता सहित दूसरी पार्टियों के भी कद्दावर नेताओं का संरक्षण प्राप्त है और जब-जब वह या उनकी धार्मिक संस्था किसी विवाद का हिस्सा बनती है तो राजनेता उन्हें साफ बचा ले जाते हैं। कृपालु महाराज का वृंदावन के कुख्यात भूमाफियाओं के साथ गहरा रिश्ता सर्वविदित है और उनसे उपजे विवाद भी लेकिन राजनीतिक हिस्सेदारी यहां अपना पूरा हक अदा करती है। बाबाओं की जमात के एक और अहम् मठाधीश हैं कार्ष्िण गुरुशरणानंद। कई भाषाओं का ज्ञान रखने वाले स्वामी गुरुशरणानंद को संभवत: यह ज्ञान नहीं है कि उनके शिष्यों की फौज में आर्थिक अपराधियों की खासी संख्या है। महावन की रमण रेती में रमण बिहारी के उपासना स्थल पर खुद के पैरों की हर उम्र वाले महिला-पुरुषों से पूजा कराने वाले गुरुशरणानंद का ठाठ-बाट किसी राजा-महाराजा से कम नहीं। आश्रम में पलने वाले गजानन (हाथी) उन्हें सुबह-शाम फूलों के गुच्छे भेंट करते हैं और रेती के बीच बने वातानुकूलित शीशमहल में उनकी पूजा-अर्चना होती है। गुरुशरणानंद की गद्दी उन्हें राजनीतिज्ञों से ज्यादा निकटता की इजाजत नहीं देती, बावजूद इसके वह समय-समय पर उसका प्रदर्शन करते रहते हैं। दुकान-दुकान और मकान-मकान में अपनी तस्वीरों को पुजवाने वाले गुरुशरणानंद के शिष्यों में गरीब-गुरबा को कोई स्थान नहीं है। मामूली लोग उनके पास तक नहीं फटक सकते अलबत्ता संपन्न लोगों की फौज उन्हें हमेशा घेरे रहती है। गुरुशरणानंद के वैभव का उत्तराधिकारी कौन होगा और किस रूप में आगे बढ़ेगा कार्ष्िण संप्रदाय, यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है लेकिन ब्रजवासी जानते हैं कि उनके द्वारा अर्जित वैभव पर कई आंखें अभी से गढ़ी है लिहाजा आगे वह भी यदि विवाद का कारण बन जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। आश्चर्य की बात यह है कि ये जितने भी धर्माचार्य हुए हैं और हैं, उनमें से एक भी मथुरा का मूल निवासी नहीं है। इन सभी ने मथुरा को अपनी कर्मभूमि बनाया और धर्म के धंधे में यहीं से इतनी तरक्की की कि लोगों की आंखें फटी की फटी रह गईं। आज आलम यह है कि इनके तथाकथित शिष्य या अनुयायी भी करोड़ों-अरबों में खेल रहे हैं। यह बात अलग है कि धर्म को व्यापार बनाकर अर्जित की गई इस बेहिसाब संपत्ति पर कहीं विवाद हो रहा है और कहीं उसकी नींव पड़ चुकी है। यही कारण है कि राजनीतिज्ञों की भी इन पर नजर लगी है और वो अपने तरीके से अपना हिस्सा वसूल करने की फिराक में लगे रहते हैं। राजनीति और धर्म के धंधे से उपजे इस नापाक गठजोड़ की इतनी कहानियां हैं जिन पर कई महीनों लगातार लिखा जा सकता है। इस गठजोड़ से उपजी महात्वाकांक्षा ने कई धर्मगुरुओं को सांसद, विधायक एवं मंत्री तक बनवा दिया और कई किंगमेकर होने का दावा करते हैं लेकिन ताज्जुब तब जरूर होता है जब इनकी आंखें बंद होते ही धर्म की यही विरासत घिनौने विवादों में तब्दील हो जाती है। धर्म की कमाई का अर्जित पुण्य यदि ऐसा ही होता है तो पाप किसे कहते हैं, बताना मुश्किल होगा। चूंकि 2014 के लोकसभा चुनावों की दुंदुभि बज चुकी है और वोट के सौदागरों ने धर्म के धंधेबाजों की चौखट चूमना शुरू कर दिया है इसलिए जरूरी हो जाता है कि एक नजर इस नापाक गठजोड़ पर भी डाल ली जाए ताकि आज नहीं तो कल, इस गठजोड़ का पर्दाफाश हो सके तथा लोग जान सकें कि राजनीति के अपराधीकरण की एक वैरायटी यह भी है।
एक जमाने में अबूझ पहेली बने हुए संत देवरहा बाबा से। देवरिया बाबा के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त इस संत के वृंदावन स्थित यमुना पार पर लगने वाले दरबार में इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक और राजनारायण से लेकर चंद्रशेखर, ज्ञानी जैलसिंह तथा मुलायम सिंह यादव तक सब ढोक देते थे। मचान पर बैठकर नीचे खड़े व्यक्ति को अपने दाहिने पैर से आशीर्वाद देने वाला देवरहा बाबा खुद बेशक नंगे बदन रहता था लेकिन उसने किस कदर बेशुमार संपत्ति अर्जित की थी इसका खुलासा तब हुआ जब उस संपत्ति को लेकर उसके उत्तराधिकारी बड़े महाराज व छोटे महाराज के बीच का झगड़ा सार्वजनिक हुआ। इस झगड़े का ही परिणाम है कि चमत्कारी मणि देने के नाम पर किसी व्यापारी से करोड़ों रुपये हड़प लेने के आरोप में बड़े महाराज फरार हैं जबकि छोटे महाराज बाबा की संपत्ति पर काबिज रहने के लिए राजनीतिज्ञों का संरक्षण लिए हुए हैं। इसी कड़ी में ताजा उदाहरण बाबा जयगुरुदेव का है। अपने अनुयायियों को सतयुग आने का सब्ज़बाग दिखाने वाले जयगुरुदेव का निधन तक एक रहस्य बन गया। अंतिम दिनों में बाबा चंद लोगों के रहमो-करम पर अपनी गतिविधियां संचालित कर पाते थे। उनका जीवन महंगी गाड़ियों से नेशनल हाईवे को नापने अथवा आश्रम की एक कोठरी में पड़े रहने तक सीमित हो गया था। जयगुरुदेव की बेहिसाब चल-अचल संपत्ति और बैंक बैंलेस, विवाद का कारण बन चुका है। कहने को पंकज बाबा नामक युवक ने खुद को उनका उत्तराधिकारी घोषित कर रखा है लेकिन विवाद फिलहाल विभिन्न न्यायालयों में लंबित है। बाबा के अंतिम समय तक पंकज (बाबा) यादव की पहचान जयगुरुदेव के सुरक्षा गार्ड व ड्राइवर की थी। जयगुरुदेव ने अपने जीते जी जिस मामूली से आश्रम का सैंकड़ों एकड़ में विस्तार किया और सैंकड़ों लग्जरी गाड़ियों का बेड़ा बनाया, वह आश्रम अब अखाड़ा बना हुआ है तथा गाड़ियां धूल फांक रही हैं। खुद मलमल का दुपट्टा पहनकर अपने अनुयायियों को टाट पहनाने वाले बाबा जयगुरुदेव के बेड़े में राल्स रॉयस एवं लिमोज़ीन से लेकर तमाम छोटी-बड़ी करीब 400 गाड़ियां और हैलीकॉप्टर भी शामिल है। यूं तो जयगुरुदेव के नेशनल हाईवे-2 स्थित आश्रम में भी इंदिरा गांधी सहित अनेक राजनेताओं ने हाजिरी लगाई लेकिन फिलहाल बाबा की संपत्ति पर काबिज पंकज बाबा को यूपी के एक कद्दावर सत्ताधारी नेता का संरक्षण प्राप्त है। कहा तो यहां तक जाता है कि पंकज बाबा इन्हीं राजनेता के प्रतिनिधि की हैसियत से बाबा जयगुरुदेव की अरबों की संपत्ति को कब्जाए हुए हैं और इसीलिए बाबा को लखनऊ से लेकर मथुरा तक के पुलिस-प्रशासन का सहयोग मिल रहा है। ब्रजभूमि पर अपनी समृद्ध विरासत छोड़कर जाने वालों में एक और नाम आता है 'इस्कॉन' के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद का। कृष्णभक्ति को दुनिया के तमाम देशों में फैलाने वाले स्वामी प्रभुपाद की विरासत आज उनके अनुयायियों के बीच महाभारत करा रही है। वृंदावन के अत्यंत महंगे इलाके रमण रेती में स्थित इस्कॉन का हरेकृष्ण मंदिर और उससे जुड़ी संस्थाओं का विवाद अब कोर्ट-कचहरी एवं पुलिस का मोहताज है। इस्कॉन के विवाद में हत्या, हत्या के प्रयास, बलात्कार, दुराचार एवं यौनाचार तक शामिल हैं और प्रबंधन के खिलाफ धरने-प्रदर्शन होना आये दिन की बात बन गई है। बताया जाता है कि यही स्थिति दुनियाभर में फैले इस्कॉन के दूसरे संस्थानों की भी है और सभी के मूल में है संस्था का बेशुमार पैसा तथा आमदनी। अपने तथाकथित चमत्कारों से राजनेताओं को पैरों की धूल चटवाने वाले बाबाओं की लिस्ट में चौथा नाम आता है जयपुर मंदिर वाले श्रीपाद बाबा का। श्रीपाद बाबा के रहते अनेक कद्दावर कांग्रेसी नेता उनकी सार्वजनिक तौर पर चरण वंदना करते थे जबकि श्रीपाद बाबा के क्रिया-कलाप विवादित थे। श्रीपाद बाबा ने देवरहा बाबा, जयगुरुदेव तथा स्वामी प्रभुपाद जितनी संपत्ति तो अर्जित नहीं की लेकिन जो की उस पर विवाद आज भी बना हुआ है। इन सबके अतिरिक्त इसी श्रृंखला में एक नाम आता है 'स्वयंभू जगद्गुरू शंकराचार्य' और तथाकथित धर्मगुरू कृपालु महाराज के शिष्य प्रकाशानंद का। वृंदावन के छटीकरा रोड पर करोड़ों रुपये की लागत से आलीशान जगद्गुरू धाम नामक आश्रम बनवाने वाले प्रकाशानंद का आज कोई अता-पता नहीं है। अमेरिका के टेक्सास की एक अदालत से यौनाचार के आरोप में सजा हो जाने के बाद प्रकाशानंद भाग खड़ा हुआ और उसके बाद उसका कुछ पता नहीं है। प्रकाशानंद अब जीवित भी है या नहीं, कहा नहीं जा सकता क्योंकि वृंदावन के अलावा भी उसकी अरबों की संपत्ति विश्व के कई देशों में पड़ी है। प्रकाशानंद के गुरू कृपालु महाराज अब उन्हें अपना शिष्य बताने से भी परहेज करते हैं और इसका मुख्य कारण संपत्ति ही बताई जाती है। जहां तक सवाल खुद रामकृपालु त्रिपाठी उर्फ कुपालु महाराज का है तो उसकी संपत्ति हमेशा चर्चा का विषय रही है। मूलरूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में जनपद प्रतापगढ़ के मूल निवासी कृपालु महाराज ने वृंदावन एवं बरसाना से अपने धार्मिक साम्राज्य का विस्तार दुनियाभर में किया। कई बार बलात्कार के आरोपों में देश-विदेश की जेलों के मेहमान बन चुके कृपालु महाराज आज कितनी संपदा एकत्र कर चुके हैं, इसका अनुमान तक लगाना आसान नहीं। कृपालु महाराज ने कहने को अपनी संपत्ति के लिए एक ट्रस्ट बना रखा है लेकिन उस ट्रस्ट के मुख्य पदों पर उनकी अपनी संतानें काबिज हैं। कृपालु महाराज को भी भाजपा के एक बड़े नेता सहित दूसरी पार्टियों के भी कद्दावर नेताओं का संरक्षण प्राप्त है और जब-जब वह या उनकी धार्मिक संस्था किसी विवाद का हिस्सा बनती है तो राजनेता उन्हें साफ बचा ले जाते हैं। कृपालु महाराज का वृंदावन के कुख्यात भूमाफियाओं के साथ गहरा रिश्ता सर्वविदित है और उनसे उपजे विवाद भी लेकिन राजनीतिक हिस्सेदारी यहां अपना पूरा हक अदा करती है। बाबाओं की जमात के एक और अहम् मठाधीश हैं कार्ष्िण गुरुशरणानंद। कई भाषाओं का ज्ञान रखने वाले स्वामी गुरुशरणानंद को संभवत: यह ज्ञान नहीं है कि उनके शिष्यों की फौज में आर्थिक अपराधियों की खासी संख्या है। महावन की रमण रेती में रमण बिहारी के उपासना स्थल पर खुद के पैरों की हर उम्र वाले महिला-पुरुषों से पूजा कराने वाले गुरुशरणानंद का ठाठ-बाट किसी राजा-महाराजा से कम नहीं। आश्रम में पलने वाले गजानन (हाथी) उन्हें सुबह-शाम फूलों के गुच्छे भेंट करते हैं और रेती के बीच बने वातानुकूलित शीशमहल में उनकी पूजा-अर्चना होती है। गुरुशरणानंद की गद्दी उन्हें राजनीतिज्ञों से ज्यादा निकटता की इजाजत नहीं देती, बावजूद इसके वह समय-समय पर उसका प्रदर्शन करते रहते हैं। दुकान-दुकान और मकान-मकान में अपनी तस्वीरों को पुजवाने वाले गुरुशरणानंद के शिष्यों में गरीब-गुरबा को कोई स्थान नहीं है। मामूली लोग उनके पास तक नहीं फटक सकते अलबत्ता संपन्न लोगों की फौज उन्हें हमेशा घेरे रहती है। गुरुशरणानंद के वैभव का उत्तराधिकारी कौन होगा और किस रूप में आगे बढ़ेगा कार्ष्िण संप्रदाय, यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है लेकिन ब्रजवासी जानते हैं कि उनके द्वारा अर्जित वैभव पर कई आंखें अभी से गढ़ी है लिहाजा आगे वह भी यदि विवाद का कारण बन जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। आश्चर्य की बात यह है कि ये जितने भी धर्माचार्य हुए हैं और हैं, उनमें से एक भी मथुरा का मूल निवासी नहीं है। इन सभी ने मथुरा को अपनी कर्मभूमि बनाया और धर्म के धंधे में यहीं से इतनी तरक्की की कि लोगों की आंखें फटी की फटी रह गईं। आज आलम यह है कि इनके तथाकथित शिष्य या अनुयायी भी करोड़ों-अरबों में खेल रहे हैं। यह बात अलग है कि धर्म को व्यापार बनाकर अर्जित की गई इस बेहिसाब संपत्ति पर कहीं विवाद हो रहा है और कहीं उसकी नींव पड़ चुकी है। यही कारण है कि राजनीतिज्ञों की भी इन पर नजर लगी है और वो अपने तरीके से अपना हिस्सा वसूल करने की फिराक में लगे रहते हैं। राजनीति और धर्म के धंधे से उपजे इस नापाक गठजोड़ की इतनी कहानियां हैं जिन पर कई महीनों लगातार लिखा जा सकता है। इस गठजोड़ से उपजी महात्वाकांक्षा ने कई धर्मगुरुओं को सांसद, विधायक एवं मंत्री तक बनवा दिया और कई किंगमेकर होने का दावा करते हैं लेकिन ताज्जुब तब जरूर होता है जब इनकी आंखें बंद होते ही धर्म की यही विरासत घिनौने विवादों में तब्दील हो जाती है। धर्म की कमाई का अर्जित पुण्य यदि ऐसा ही होता है तो पाप किसे कहते हैं, बताना मुश्किल होगा। चूंकि 2014 के लोकसभा चुनावों की दुंदुभि बज चुकी है और वोट के सौदागरों ने धर्म के धंधेबाजों की चौखट चूमना शुरू कर दिया है इसलिए जरूरी हो जाता है कि एक नजर इस नापाक गठजोड़ पर भी डाल ली जाए ताकि आज नहीं तो कल, इस गठजोड़ का पर्दाफाश हो सके तथा लोग जान सकें कि राजनीति के अपराधीकरण की एक वैरायटी यह भी है।
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