गुरुवार, 22 अगस्त 2013

बिन मांगी एक निजी (गैर सरकारी) राय

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
हाल ही में सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने एक बहुत पते की बात कही है। मनीष तिवारी का सुझाव है कि अखिल भारतीय स्‍तर पर पत्रकारों के लिए एक परीक्षा आयोजित कराई जाए और फिर बार काउंसिल अथवा मेडीकल क्षेत्र की तरह उन्‍हें लाइसेंस जारी किए जाएं।
मनीष तिवारी ने यह सुझाव भी दिया है कि इस काम को शिषण संस्‍थाओं की बजाय मीडिया उद्योग करे तो बेहतर होगा।
सूचना प्रसारण मंत्री कहते हैं कि इस प्रक्रिया से मीडिया उद्योग में आने वालों का स्‍तर सुधारा जा सकता है।
दो दिन पहले दिए गये इस सुझाव के बारे में मुझे अभी तक यह पता नहीं लग पाया है कि उनका यह सुझाव बाहैसियत सूचना प्रसारण मंत्री आया है अथवा ये उनकी निजी राय है।
कांग्रेस के किसी प्रवक्‍ता ने भी फिलहाल यह स्‍पष्‍ट नहीं किया है कि मनीष तिवारी ने ये सुझाव किस हैसियत से दिया है।

सुझाव के निजी या सरकारी होने को लेकर मेरी शंका का कारण यह है कि आजकल कब कौन सा काम सरकारी घोषित कर दिया जाए और कौन सा निजी विचार बता दिया जाए, कहना मुश्‍किल है।
उदाहरण के लिए किसी मंत्री- प्रधानमंत्री के परिवार को मिलने वाली भारी-भरकम सुरक्षा तो सरकारी होती है लेकिन परिवार निजी होता है। ठीक उसी तरह वह किस धर्म में आस्‍था रखते हैं और किस धर्म के लोगों का तुष्‍टीकरण करते हैं, यह नितांत व्‍यक्‍तिगत एवं पार्टीगत मामला होता है पर उनकी धार्मिक यात्राएं सरकारी होती हैं।
वह मंदिर, मस्‍जिद, गुरुद्वारा या चर्च जहां भी जाएं और अकेले जाएं या परिवार सहित जाएं, उनका सारा खर्च सरकार उठाती है तथा पूरा सरकारी अमला उनकी सेवा-सुश्रूषा में लगा रहता है क्‍योंकि तब उनकी धार्मिक भावनाएं एवं धर्म सब सरकारी हो जाता है।
रॉबर्ट वाड्रा को सरकार द्वारा एसपीजी सुरक्षा इसलिए दी गई है क्‍योंकि वह प्रियंका गांधी के पति और सोनिया-एवं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दामाद हैं लेकिन उनके जमीन घोटालों पर कहा जाता है कि यह उनका निजी मामला है। उनके अपने व्‍यापार का हिस्‍सा है।
विश्‍व हिंदू परिषद् के स्‍वयंभू अंतर्राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अशोक सिंघल की सुरक्षा पर इसलिए सरकार लाखों रुपये कई दशकों से फूंक रही है क्‍योंकि वह लगातार अपने ऐसे निजी विचार जाहिर करते रहते हैं जिनके कारण उनकी जान को खतरा बना हुआ है।
मुझे नहीं मालूम कि लालू यादव जी की कुल संतानों में से कितनी उनके पद पर रहते अवतरित हुईं और कितनी उससे पहले, लिहाजा यह बता पाना मुश्‍किल है कि उनमें से सरकारी कितनी हैं और कितनी निजी।
मुझे यह भी नहीं मालूम की सरकारी पद पर रहकर कमाई गई अकूत संपत्‍ति कब व कैसे निजी संपत्‍ति बन जाती है। नंबर दो की कमाई को नंबर एक का कैसे बनाया जाता है। कैसे चंद सालों में किसी की संपत्‍ति सैकड़ों गुना बढ़ जाती है और फिर भी उसे लेकर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जाता।
केन्‍द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और कांग्रेस महासचिव दिग्‍विजय सिंह के बयानों को लेकर तो खुद सरकार एवं पार्टी दोनों कन्‍फ्यूज़ रहते हैं। जब तक पार्टी या सरकार के स्‍तर से इन महामानवों के बयानों पर कुछ तय होता है, तब तक काफी देर हो जाती है।
और तो और केंद्र सरकार हो या अधिकांश राज्‍य सरकारें, जनता इनके बारे में दावे से नहीं कह सकती कि वह निजी हैं अथवा सरकारी।
जैसे यह कहना मुश्‍किल है कि केंद्र की सरकार को निजी स्‍तर पर सोनिया-राहुल गांधी एण्‍ड कंपनी चला रही है या फिर मनमोहन और उनका मंत्रिमण्‍डल।
उत्‍तर प्रदेश सरकार की कमान मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के हाथ में है अथवा मुलायम सिंह एण्‍ड फैमिली के हाथ में।
पश्‍चिम बंगाल की सरकार का ठेका ममता बनर्जी के निजी विचारों को दिया गया है या उनके मुख्‍यमंत्रित्‍व को।
कांग्रेस के तो प्रवक्‍ताओं तक को खुद पता नहीं रहता कि कब वह अपनी जुबान से निजी विचार व्‍यक्‍त कर रहे हैं और कब पार्टी के विचार परोस रहे हैं।
चूंकि मनीष तिवारी को केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री का गुरुत्‍तर दायित्‍व संभाले जुम्‍मा-जुम्‍मा चार दिन हुए हैं और इससे पूर्व वह कांग्रेस के काबिल प्रवक्‍ता हुआ करते थे इसलिए संभवत उनकी जुबान निजी एवं सरकारी बयानों में भेद करने की आदी नहीं है।
वह जब-तब और जो कुछ अनर्गल बोलते रहते हैं उसमें उनका दोष कम है, उनकी जिम्‍मेदारियों से उपजे बोझ का ज्‍यादा इसलिए मीडिया को लेकर दिए गये सुझावों के बावत देश ने उन्‍हें गंभीरता से नहीं लिया।
देश और देश की जनता उन्‍हें गंभीरता से ले या ना ले लेकिन मीडिया पर्सन होने के नाते मैंने उनके सुझावों को काफी गंभीरता से लिया है।
बस थोड़ा शक इसी बात पर है कि उन्‍होंने ये सुझाव देश के सूचना प्रसारण मंत्री की हैसियत से दिया है या नहीं।
कल को अगर मीडिया घराने उनकी बात मानकर पत्रकारों के लिए अखिल भारतीय स्‍तर पर एक परीक्षा आयोजित करवाने का मन बना लें और उसके बाद बार काउंसिल व मेडीकल क्षेत्र की तरह लाइसेंस जारी करने की ठान लें तो पता नहीं सरकार इसे किस रूप में ले।
सरकार कहने लगे कि वो तो मनीष तिवारी जी के निजी विचार थे, सरकार ऐसा कोई तंत्र विकसित करना नहीं चाहती और सरकारी इच्‍छा के विरुद्ध कोई ऐसा तंत्र विकसित किया गया तो सरकार उसे मान्‍यता नहीं देगी।
यह भी संभव है कि 2014 में सरकार बदल जाए और नई सरकार कहे कि हमें इतने पढ़े-लिखे, काबिल एवं लाइसेंसशुदा हाईटेक मीडिया की आवश्‍यकता नहीं है जो सरकार का मुश्‍किल में डालने की योग्‍यता रखता हो। हमें तो मीडिया का यही-मिला जुला तंत्र पसंद है जिसमें हर माल बारह के भाव बिकता हो। नेताओं की तरह योग्‍यता का कोई पैमाना न हो और जो जितना बड़ा लाइजनर हो, वह उतने बड़े पद को हासिल कर ले।
फिर चाहे वह गुजरे जमाने का कोई पत्रकार राजीव शुक्‍ला हो अथवा उद्योगपति नितिन गडकरी या केंटीन चलाने वाला सुरेश कलमाड़ी।
वैसे बिन मांगी और पूरी तरह गैरसरकारी मेरी भी अपनी एक खालिस निजी राय है, और वह यह कि मनीष तिवारी पहले अपने सुझावों का राजनीति में अमल कर लें तो बेहतर होगा।
राजनीति में आने के लिए भी अब तक न तो किसी किस्‍म की शिक्षा अनिवार्य है और ना कोई लाइसेंस जरूरी है। नेताओं की फौज खड़ी करने के लिए किसी राजनीतिक दल ने अब तक अखिल भारतीय स्‍तर पर किसी परीक्षा के आयोजन का विचार नहीं किया है जिस कारण नेता खर-पतवार की तरह उग आये हैं और देश की जनता के हिस्‍से का दाना-पानी भी खाये जा रहे हैं।
नेता रूपी खर-पतवारों से उत्‍पन्‍न खतरे के कारण देश के सामने भारी संकट खड़ा हो चुका है।
यदि सरकार मनीष तिवारी के सुझावों को सरकारी या गैरसरकारी मानकर उन पर अमल करना शुरू कर देगी तो यकीन मानिये मीडिया के ट्रेंड अथवा अनट्रेंड होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर सरकार इस मामले में क्‍लीयर होगी कि क्‍या सरकारी है और क्‍या निजी, तो उसे पत्रकारों की योग्‍यता का पैमाना तय नहीं करना पड़ेगा। जनता खुद तय कर लेगी।
यूं भी आज की पत्रकारिता राजनीति से अच्‍छा कॉम्‍पटीशन कर रही है। वह राजनीति से और राजनीति उससे प्रभावित है।
कहीं मनीष तिवारी इस खतरे को सूंघकर ही तो पार्टी लाइन को आगे नहीं बढ़ा रहे। सच में बड़ा कन्‍फ्यूजन है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. नींद हमारी, ख्वाब तुम्हारे....की तर्ज पर.. पोस्ट आपकी, विचार हमारे... बहुत सटीक

    जवाब देंहटाएं
  2. शर्मा जी, मेरे पास तो विचार भी आप जैसे लोगों के ही होते हैं। बस मैं उन्‍हें चुराकर अपने तरीके से पेश कर देता हूं। कलमबद्ध करने से अधिक मेरी भूमिका नहीं है।

    जवाब देंहटाएं

कृपया बताते चलें कि ये पोस्‍ट कैसी लगी ?

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...