शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

UP में “गठबंधन” पर “भरोसा” नहीं कर पा रहे लोग, चुनाव बाद भी पाला बदल लेने का डर

लोकसभा चुनावों के पहले चरण में कल UP की 8 सीटों पर मतदान हो चुका है। इन 8 सीटों में मुजफ्फरनगर व बागपत की वो 2 सीटें भी शामिल हैं जहां से आरएलडी मुखिया अजीत सिंह तथा उनके पुत्र जयंत चौधरी ने चुनाव लड़ा है लेकिन अभी 72 सीटों पर मतदान होना बाकी है।
सब जानते हैं कि UP में इस बार सपा-बसपा और आरएलडी ने गठबंधन किया है। इस गठबंधन के तहत बसपा 38 सीटों पर, सपा 37 सीटों पर और आरएलडी 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। रायबरेली और अमेठी की सीटें सोनिया व राहुल गांधी के लिए छोड़ दी गई हैं ताकि उन्‍हें गठबंधन का खामियाजा न भुगतना पड़े।
सपा-बसपा और आरएलडी के गठबंधन को चुनाव विशेषज्ञ भले ही बहुत बड़ी उपलब्‍धि मानकर चल रहे हों परंतु आम मतदाता इस बेमेल गठबंधन पर भरोसा नहीं कर पा रहा।
इनमें से बसपा एवं आरएलडी का ‘ट्रैक रिकार्ड’ तो साफ-साफ बताता है कि सत्ता की खातिर वह कभी भी पाला बदल सकते हैं और किसी भी दल की गोद में जाकर बैठ सकते हैं।
ऐसे में यह कहना मुश्‍किल है कि जिस मोदी के खिलाफ आज ये मजबूरीवश एक हुए हैं कल ऐसी ही किसी मजबूरी का नाम लेकर वह भाजपा के साथ नहीं चले जाएंगे।
पहले बात बसपा की
यदि बात करें बसपा की तो वह समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़कर पहली बार जून 1995 में भाजपा के सहयोग से UP की मुख्‍यमंत्री बनी थीं। उनका यह कार्यकाल मात्र 4 महीने का था। वह दूसरी बार 1997 में तथा तीसरी बार 2002 में मुख्यमंत्री बनीं और तब भी उनकी पार्टी का बीजेपी के साथ गठबंधन था। यानि कुल चार बार मुख्‍यमंत्री बनने वाली मायावती को तीन बार भाजपा के सहयोग से UP की कुर्सी हासिल हुई।
सिर्फ 2007 के विधानसभा चुनावों में उन्‍हें स्‍पष्‍ट बहुमत मिला लिहाजा वह पूरे पांच साल अपनी पार्टी के बूते सत्ता पर काबिज रहीं। 2012 के चुनाव में सपा ने उन्‍हें तगड़ी पटखनी देकर सत्ता से बेदखल कर दिया।
आरएलडी का इतिहास
जहां तक सवाल आरएलडी का है तो उसके मुखिया चौधरी अजीत सिंह अपनी विश्‍वसनीयता पूरी तरह खो चुके हैं। बीच में लोगों को एक उम्‍मीद उनके पुत्र जयंत चौधरी से जगी थी कि शायद वह अपने पिता की ”पाला बदलने की प्रवृत्ति” पर लगाम लगायेंगे किंतु वह अपने पिता से दो कदम आगे निकलते दिखाई दिख रहे हैं।
2009 का लोकसभा चुनाव मथुरा से जयंत चौधरी ने भाजपा का सहयोग लेकर लड़ा था और वह उसमें भारी मतों से जीते भी किंतु 2012 के UP विधानसभा चुनाव में वह मथुरा की ही मांट सीट से इसलिए चुनाव लड़ने खड़े हो गए क्‍योंकि उन्‍हें किसी को स्‍पष्‍ट बहुमत न मिल पाने की स्‍थिति में ”अपना भविष्‍य” स्‍वर्णिम बनता नजर आ रहा था।
बहरहाल, इस चुनाव के नतीजे उनकी सोच से उलट निकले और समाजवादी पार्टी को स्‍पष्‍ट बहुमत मिल गया।
चुनाव के दौरान जयंत चौधरी या कहें कि आरएलडी ने मांट की जनता से वायदा किया था कि यदि वह यह चुनाव जीत जाते हैं तो लोकसभा की सदस्‍यता त्‍याग देंगे और विधायक रहकर क्षेत्रीय जनता की सेवा करेंगे परंतु यह वादा भी उन्‍होंने नहीं निभाया। उन्‍होंने लोकसभा की जगह विधानसभा की सदस्‍यता त्‍याग दी क्‍योंकि तब उन्‍हें कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली यूपीए सरकार में अपने लिए मौका दिखाई देने लगा था।
बेशक जयंत चौधरी को तो यूपीए सरकार में कोई पद नहीं मिला लेकिन अजीत सिंह ने सौदेबाजी करके तब नागरिक उड्डयन मंत्रालय झपट लिया जब ममता बनर्जी के साथ छोड़ जाने से मनमोहन सरकार अल्‍पमत में आ गई थी।
वैसे चौधरी चरण सिंह भी इस मामले में कम नहीं रहे। पुराने लोग भलीभांति जानते हैं कि किस तरह उन्‍होंने देश का प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्‍वाकांक्षा पूरी की थी और वह कितने दिन प्रधानमंत्री रहे थे।
आरएलडी के बारे में यह कहा जा सकता है कि इस पार्टी का नाम और पहचान (चुनाव चिन्‍ह) चाहे कितनी ही बार बदला हो परंतु इसके चाल व चरित्र में कभी बदलाव नहीं आया। मौकापरस्‍ती इनके चरित्र का स्‍थाई हिस्‍सा हमेशा बनी रही।
समाजवादी पार्टी की बात 
समाजवादी पार्टी के जनक मुलायम सिंह यादव ने भी हालांकि मौके का लाभ उठाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी, बावजूद इसके उनकी राजनीतिक विश्‍वसनीयता बनी रही।
सपा की राजनीतिक विश्‍वसनीयता पर पहली बार तब प्रश्‍नचिन्‍ह लगा जब 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने मुलायम सिंह की इच्‍छा के विरुद्ध कांग्रेस से गठबंधन किया और उसमें मुंह की खाई। 2017 में कांग्रेस के साथ-साथ अखिलेश का जहाज तो डूबा ही, उसमें छेद भी हो गए।
यही छेद बाद में एक ओर जहां समाजवादी पार्टी के बिखर जाने का कारण बने वहीं दूसरी ओर शिवपाल यादव के अलग से ताल ठोकने की वजह भी बन गए।
अब इस पार्टी पर विश्‍वसनीयता का सबसे बड़ा संकट इसलिए पैदा हुआ क्‍योंकि अखिलेश यादव ने कुर्सी की खातिर न सिर्फ अपने परिवार का विघटन कराया बल्‍कि मायावती से हाथ मिला लिया।
मायावती चाहे कितना ही दिखावा कर लें किंतु सब जानते हैं कि समाजवादी पार्टी उन्‍हें फूटी आंख नहीं सुहाती। इसी प्रकार सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को मायावती कतई बर्दाश्‍त नहीं हैं। मुलायम सिंह ने सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी अपने इन भावों को सार्वजनिक करने में कभी हिचक नहीं दिखाई।
इसी कड़ी में मुलायम सिंह यादव के अखिलेश से कहे गए ये शब्‍द बहुत अहमियत रखते हैं कि मायावती से गठबंधन करके तुम आधी सीटों पर तो बिना लड़े ही हार चुके हो।
इन लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी का मतदाता मुलायम और अखिलेश की एक-एक गतिविधि पर पैनी नजर रखे हुए है।
मुलायम सिंह का प्रतिबद्ध वोटर आज यह कहने में कोई गुरेज नहीं कर रहा कि जिस पार्टी में हमारे मुखिया जी का सम्‍मान नहीं, जिस पार्टी में उनकी भावनाओं का कोई महत्‍व नहीं, पार्टी के निष्‍ठावान कार्यकर्ताओं की पूछ नहीं, उस पार्टी के लिए मतदान क्‍यों करें।
इन लोगों ने अंबेडकरनगर में हुई एक चुनावी रंजिश का उदाहरण भी दिया। इस रंजिश के चलते 1996 में दलित बसपा नेता बाबूलाल की हत्‍या हुई थी। इस हत्‍या में सपा के दो नेताओं को नामजद कराया गया। कल ही इन दोनों नेताओं बजरंग बहादुर यादव और जगन्‍नाथ पांडे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
सपा के ये वोटर कहते हैं कि बसपा से हाथ मिलाने वाले अखिलेश के पास क्‍या इस बात का कोई जवाब है कि बजरंग बहादुर एवं जगन्‍नाथ जैसे कितने लोग आजतक बसपा से चुनावी रंजिश का खामियाजा क्‍यों भुगत रहे हैं और क्‍या कभी उनकी भावनाओं वो अखिलेश अहमियत देंगे जिन्‍होंने निजी स्‍वार्थ के लिए भाई-भाई के बीच दुश्‍मनी के बीज बो दिए।
मायावती की ”माया” से बेखबर
मुलायम सिंह के कारण सपा से अब तक बंधा हुआ मतदाता तो स्‍पष्‍ट कहता है कि मायावती की ”माया” पर भरोसा करना अंतत: अखिलेश के लिए ”आत्मघाती” साबित होगा।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सपा-बसपा और आरएलडी का गठबंधन उन लोगों को भी हजम नहीं हो रहा जो कल तक मुखर होकर भाजपा की खिलाफत करते सुने जाते थे।
इन लोगों की मानें तो भाजपा को स्‍पष्‍ट बहुमत न मिलने की स्‍थिति में सर्वप्रथम आरएलडी उसके साथ खड़ी होगी। इसके बाद भी जरूरत पड़ी तो मायावती भाजपा का साथ निभाने में पीछे नहीं रहेंगी क्‍योंकि भाजपा में उनके कई राखीबंद भाई आज भी मौजूद हैं।
मायावती अपनी महत्‍वाकांक्षा कई मर्तबा सार्वजनिक कर चुकी हैं। सपा से धुरविरोध के बाद भी उसके साथ गठबंधन करने के पीछे मायावती की महत्‍वाकांक्षा ही है, इसे शायद ही कोई नकार सके।
ऐसे में रह जाते हैं सिर्फ अखिलेश, वो अखिलेश जो अपने परिवार के नहीं हुए। उनके कारण उनके छोटे भाई प्रतीक व उनकी पत्‍नी अपर्णा अपने लिए ठिकाना तलाश रहे हैं।
कौन नहीं जानता कि सपा की यह गति अखिलेश के ही कुर्सी प्रेम का नतीजा है और कुर्सी प्रेम के लिए ही परिवार आज इस मुकाम पर खड़ा है।
सबसे आखिर में बात कांग्रेस से संबंधों की
सबसे आखिर में कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस यूपी के अंदर बेशक हाशिए पर खड़ी हो परंतु केंद्र में सरकार बनाने के लिए ही वह एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है।
यह बात मायावती, अखिलेश तथा अजीत सिंह अच्‍छे से समझते हैं और इसलिए तीनों इन दिनों पुराना याराना भुलाकर कांग्रेस को पानी पी-पीकर कोस रहे हैं।
मायावती की नजर में भाजपा और कांग्रेस सांपनाथ व नागनाथ हैं तो बबुआ के लिए बुआ का दुश्‍मन उनका निजी दुश्‍मन है। आरएलडी के अजीत सिंह के पास फिलहाल बुआ-बबुआ के सुर में सुर मिलाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
लोगों का कहना है कि कांग्रेस से तीनों की इस अस्‍थाई राजनीतिक दुश्‍मनी का अंत उसी दिन एक झटके में समाप्‍त हो जाएगा जिस दिन किसी भी प्रकार केंद्र की सत्ता को खिचड़ी सरकार की दरकार होगी।
यही सब कारण है कि गठबंधन के दलों का प्रतिबद्ध मतदाता भी यह सोचने पर मजबूर है कि जब उनके आदर्श नेताओं का ही कोई दीन-ईमान नजर नहीं आ रहा तो वह प्रतिबद्धता जताकर क्‍या कर लेंगे।
इस प्रतिबद्ध वोटर को डर है कि आज मोदी के विरोध को एकजुट हुए ये दल कल जब भाजपा या कांग्रेस के साथ खड़े हो जाएंगे तब हमारा क्‍या होगा, और क्‍या होगा उस प्रत्‍याशी का जिसे आज हम यदि इनके कहने पर जिताकर लोकसभा पहुंचाएंगे।
वो सोच रहा है कि फिर क्‍यों न आज ही अपने बुद्धि-विवेक से और प्रत्‍याशी को देखकर मतदान किया जाए न कि पार्टी को देखकर।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

हेमा जी प्‍लीज…अब तो बता दीजिए कि ये “ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” क्‍या है, और इससे किसका विकास हुआ?

योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली से 2014 में अपने राजनीतिक सफर का पहला लोकसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ने उतरीं अभिनेत्री हेमा मालिनी को मथुरा की जनता ने बड़ी जीत के साथ सिर-आंखों पर बैठाया।
रुपहले पर्दे की स्‍वप्‍न सुंदरी ने भी ब्रजवासियों के मन में तमाम उम्‍मीदें पैदा कर दीं और कहा कि वह यहीं रहकर ब्रज की सेवा करेंगी।
वह यहां कितनी रहीं और ब्रज की उन्‍होंने कितनी सेवा की, इसका जवाब तो जनता 18 अप्रैल को दे देगी किंतु एक जवाब जनता मतदान से पहले चाहती है।
वह अपनी सांसद हेमा मालिनी से जानना चाहती है कि ये “ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” क्‍या है और इससे किसे लाभ हुआ ?

हेमा जी प्‍लीज…अब तो बता दीजिए कि ये “ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” क्‍या है ? फोटो -1
हेमा जी प्‍लीज…अब तो बता दीजिए कि ये “ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” क्‍या है ? फोटो -2

 दरअसल, सांसद निर्वाचित हो जाने के बाद हेमा मालिनी ने मथुरा के रजिस्‍ट्रार कार्यालय-1 के यहां से मई 2015 में “ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” के नाम से एक गैर सरकारी संस्‍था रजिस्‍टर कराई थी।
इस संस्‍था में स्‍वयं हेमा मालिनी के अतिरिक्‍त उनके वसंत विहार दिल्‍ली निवासी समधी विपिन वोहरा, उनके चेन्‍नई (तमिलनाडु) निवासी भाई रामानुजम कन्‍नन चक्रवर्ती, प्रताप बाजार वृंदावन निवासी विपिन कुमार अग्रवाल तथा आर्मी एरिया मथुरा के बसंतर मार्ग निवासी CA अभिषेक गर्ग प्रमुख रूप से शामिल किए गए।
ट्रस्‍टियों के अनुसार इस संस्‍था को रजिस्‍टर कराने का उद्देश्‍य मथुरा जनपद का चौमुखी विकास करना था जिसमें ब्रजभूमि, ब्रजभाषा, ब्रज साहित्‍य एवं ब्रज की कलाओं के साथ-साथ ब्रज की संस्‍कृति को विभिन्‍न तरीकों से संरक्षित व संवर्धित करना बताया गया।
इसके अलावा ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना तथा उद्योग-धंधों को स्‍थापित करना जिससे स्‍थानीय किसान एवं स्‍थानीय नागरिकों को लाभ मिल सके।
ट्रस्‍ट की स्‍थापना का मकसद शिक्षा, चिकित्‍सा एवं खेल-कूदों को बढ़ावा देना भी बताया गया।
आश्‍चर्य की बात यह है कि इतने महत्‍वपूर्ण कार्यों के लिए रजिस्‍टर कराए गए हेमा जी के इस ट्रस्‍ट का पता आम जनता को चार साल बीत जाने के बाद तब लगा जब पिछले साल उनके द्वारा कराए गए होली कार्यक्रम के खर्चे पर सवाल उठने लगे।
बहरहाल, अब मुद्दा यह है कि हेमा मालिनी एकबार फिर जनता के बीच हैं। उन्‍हें भाजपा ने दोबारा कृष्‍ण की नगरी से अपना लोकसभा प्रत्‍याशी बनाया है।
इन चुनावों के लिए हेमा मालिनी ने उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की मौजूदगी में 25 मार्च को नामांकन दाखिल किया। किंतु अपने नामांकन पत्र में हेमा मालिनी ने “ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” का कोई उल्‍लेख नहीं किया है।
हो सकता है कि किसी ट्रस्‍ट की जानकारी देना चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों से बाहर हो परंतु नैतिकता का तकाजा है कि उन्‍हें ब्रजवासियों को “ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” के क्रिया-कलापों एवं आय-व्‍यय से अवगत कराना चाहिए।
वैसे किसी ऐसे ट्रस्‍ट की जानकारी नामांकन पत्र में दिया जाना जरूरी है या नहीं, इस बात की जानकारी करने का काफी प्रयास किया गया।
सबसे पहले चुनाव आयोग द्वारा मथुरा भेजे गए पर्यवेक्षक IAS डॉ. संजीव भटनागर से उनके अधिकृत मोबाइल नंबर 8445087465 पर कॉल किया गया जो उनके निजी सचिव ने उठाया। सारी बात सुनने के बाद उसने कहा कि वह थोड़ी देर में साहब से बात करा देंगे लेकिन फिर कोई बात नहीं कराई गई।
संजीव भटनागर के बाद दूसरे पर्यवेक्षक बी. गांधी को उनके मोबाइल नंबर 7037688371 पर कॉल किया गया। मिस्‍टर गांधी का फोन भी उनके निजी सचिव ने उठाया। उसका कहना था कि हमारे साहब को चूंकि सिर्फ एक्‍सपेंडिचर देखने की जिम्‍मेदारी सौंपी गई है लिहाजा किसी ट्रस्‍ट के बारे में चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों की जानकरी जनरल पर्यवेक्षक यानि डॉ. संजीव भटनागर ही दे सकेंगे।
इस जानकारी के बाद कल सुबह करीब 11 बजे एसएमएस भेजकर डॉ. संजीव भटनागर से स्‍थिति स्‍पष्‍ट करने को कहा गया परंतु आज 24 घंटों से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी पर्यवेक्षक डॉ. संजीव भटनागर की ओर से जवाब नहीं मिला है।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि चुनाव आयोग ने मथुरा के लिए तीन पर्यवेक्षकों की तैनाती की है। इनमें से पहले हैं IAS डॉ. संजीव भटनागर, दूसरे हैं IRS बी. गांधी तथा तीसरे हैं IPS अमर सिंह चहल। चहल साहब का नंबर 8445088009 है।
गिफ्ट में मिला है वृंदावन की ओमेक्‍स सिटी का आलीशान बंगला
इसके अलावा हेमा जी ने नामांकन पत्र में वृंदावन की ओमेक्‍स सिटी के नवनिर्मित आलीशान बंगले को गिफ्ट में मिला बताया है। यह गिफ्ट किसने दिया, इसका ब्‍योरा देना शायद जरूरी नहीं समझा।
कांग्रेस प्रत्‍याशी के भाई से हैं अच्‍छे संबंध 
हेमा जी के जिन लोगों से अच्‍छे संबंध हैं उनमें मथुरा के कांगेस प्रत्‍याशी महेश पाठक के सगे छोटे भाई सुरेश पाठक (छोटू) भी शामिल हैं।
किसी जमाने में सुरेश पाठक (छोटू) ने मथुरा के छाता क्षेत्र में एसवीसी पेट्रो कैमिकल के नाम से एक इंडस्‍ट्री की नींव रखी थी परंतु यह इंडस्‍ट्री नींव से ऊपर नहीं उठ सकी।
सुरेश पाठक (छोटू) के लिए फूड पार्क ! 
बताया जाता है कि अब हेमा जी अपने प्रयासों से सुरेश पाठक को उसी जमीन पर एक फूड पार्क बनवाकर देना चाहती हैं जिसका पिछले दिनों उन्‍होंने उद्घाटन भी किया था।
आज भी छाता क्षेत्र में नेशनल हाईवे के किनारे इस संभावित फूड पार्क का बोर्ड लगा देखा जा सकता है।
हेमा जी कहती हैं कि उन्‍होंने मथुरा में बहुत विकास कार्य किए। इतने कि जितने अब तक किसी अन्‍य जनप्रतिनिधि ने नहीं किए। वह यह भी कहती हैं कि इसके बावजूद कुछ विकास कार्य अभी बाकी हैं जिन्‍हें पूरा कराने के लिए ही वह दोबारा चुनाव मैदान में उतरी हैं।
हालांकि हेमा जी ने कभी यह नहीं बताया कि अधूरे पड़े विकास कार्य कौन-कौन से हैं और उनमें कहीं सुरेश पाठक को सौंपा जाने वाला फूड पार्क तो नहीं है।
भविष्‍य में आम चुनाव न लड़ने की घोषणा क्‍यों 
मथुरा की जनता के मन में एक सवाल और यह उठ रहा है कि नामांकन दाखिल करने से पहले हेमा मालिनी ने अचानक यह क्‍यों कहा कि यह उनका आखिरी लोकसभा चुनाव होगा और इसके बाद स्‍थानीय लोग यहां से चुनाव लड़ सकेंगे।
बताया जाता है कि इसके पीछे दो कारण रहे। पहला कारण उनके प्रति पार्टीजनों में व्‍याप्‍त नाराजगी, और दूसरा कारण आखिरी चुनाव बताकर जनता के बीच यह संदेश देना कि मैं अब भी ब्रज की सेवा करना चाहती हूं इसलिए मुझे एक मौका और दिया जाए।
क्‍या कहती है जनता 
उधर आम जनता से जब हेमा मालिनी की इस घोषणा पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो अधिकांश लोगों का यह कहना था कि प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर भले ही उन्‍हें वोट मिल जाए किंतु उनकी घोषणा का तो उलटा असर हो रहा है।
आम मतदाता का कहना है कि जब पिछले चुनावों के वक्‍त बड़े-बड़े वायदे करने के बावजूद हेमा मालिनी कभी जनता के लिए तो क्‍या, पार्टीजनों के लिए भी उपलब्‍ध नहीं रहीं तो आखिरी चुनाव जीतकर भी क्‍यों उपलब्‍ध होंगी।
लोगों का कहना है कि 2014 में हेमा मालिनी ने ये वादा भी किया था कि वह मथुरा में रहकर स्‍थानीय जनता की सेवा करेंगी और यहीं स्‍थाई निवास बनाएंगी किंतु उन्‍होंने चार साल से अधिक का समय होटल में रहकर बिता दिया। कुछ समय पहले वृंदावन की ओमेक्‍स सिटी में घर बनवाया भी किंतु तब भी आम लोगों की समस्‍याएं सुनने के लिए कभी समय नहीं निकाला।
जो भी हो, जनता की शिकवा-शिकायत अपनी जगह परंतु हेमा मालिनी को यह तो बताना ही चाहिए कि जिस “ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” का रजिस्‍ट्रेशन ही उन्‍होंने ब्रज के विकास हेतु करवाया था, उसके माध्‍यम से किसका और कितना विकास हुआ। उसमें ब्रज के विकास के लिए किस-किसने और कितना योगदान दिया तथा किस-किस क्षेत्र में ट्रस्‍ट के पैसे का उपयोग किया गया।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

ABP न्‍यूज़ ने नहीं दिखाया PM मोदी का पूरा इंटरव्‍यू, PM ने चैनल पर लगाए गंभीर आरोप, देखिए वो वीडियो…

ABP न्‍यूज़ के लिए कल उसके एंकर सुमित अवस्‍थी और रुबिका लियाकत ने पीएम नरेन्‍द्र मोदी का एक इंटरव्‍यू लिया था। इस इंटरव्‍यू का पहली बार कल सुबह आठ बजे ABP न्‍यूज़ ने ‘लाइव’ लिखकर प्रसारण किया लेकिन इस इंटरव्‍यू में वो सवाल और जवाब एडिट कर दिए जिन्‍हें लेकर प्रधानमंत्री ने ABP न्‍यूज़ ही नहीं, इंटरव्‍यू लेने वाले पत्रकारों पर भी गंभीर आरोप लगाए।
बाद में जब ABP न्‍यूज़ की इसे लेकर फजीहत हुई तब उसने ”ABP न्‍यूज़ के सवाल से नाराज हुए प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी” वाले टाइटिल के साथ उस एडिट किए गए हिस्‍से को अपनी वेबसाइट पर डाला किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्‍योंकि उससे पहले ही बीजेपी ने जहां अपनी वेबसाइट और Twitter पर पूरा इंटरव्‍यू डाल दिया वहीं तमाम अन्‍य लोगों ने भी उस करीब तीन मिनट के छिपाए गए इंटरव्‍यू को अलग से वायरल कर दिया जिसमें नरेन्‍द्र मोदी ABP न्‍यूज़ की ”निष्‍पक्षता” पर सीधे सवाल उठा रहे हैं और बता रहे हैं कि मैं सिर्फ कह ही नहीं रहा, आपके कैमरे के सामने गंभीर आरोप लगा रहा हूं।
प्रधानमंत्री ने इस दौरान दो-तीन बार ABP न्‍यूज़ और इंटरव्‍यू ले रहे उसके दोनों एंकर्स से पूछा कि कल उन्‍होंने देश के वित्तमंत्री की प्रेस कांफ्रेंस को क्‍यों ”ब्‍लैक आउट” किया।
पीएम मोदी ने दोनों एंकर्स से यह भी कहा कि जिनसे सवाल पूछने चाहिए, उनसे आपकी सवाल पूछने की हिम्‍मत क्‍यों नहीं होती।
आपकी ऐसी क्‍या मजबूरी है कि आप छोटे से छोटे झूठ को तो सारे-सारे दिन दिखाते हो किंतु झूठ बोलने वाले से यह पूछने की हिम्‍मत नहीं करते कि उसके आरोपों का आधार क्‍या है।
प्रधानमंत्री ने हालांकि इस दौरान भी ABP न्‍यूज़ के एंकर्स द्वारा पूछे गए आपत्तिजनक सवाल का भी पूरा जवाब दिया किंतु साथ ही साथ उन्‍हें आइना भी दिखाते रहे।
इस दौरान सबसे रोचक बात यह देखने को मिली कि अधिकांशत: नेताओं को निरुत्तर करने में माहिर ABP न्‍यूज़ के दोनों एंकर सुमित अवस्‍थी और रुबिका लियाकत को अपनी या चैनल की ओर से सफाई देते नहीं बन रहा था और वो जैसे-तैसे बचाव करते नजर आ रहे थे।
देखिए चुनाव से ठीक पहले के पीएम मोदी के इस इंटरव्‍यू को, ताकि आप भी अंदाज लगा सकें कि जिन न्‍यूज़ एंकर्स को आम आदमी किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझता और उन्‍हें बुद्धि का पुतला भी समझता है, उनकी असलियत क्‍या है-
Video Player
00:00
03:20
-Legend News

MATHURA के किसी प्रत्‍याशी ने अब तक नहीं बताया अपना क्राइम रिकॉर्ड, SC और EC के दिशा-निर्देश ताक पर

MATHURA से चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्‍याशी क्‍या दूध के धुले हैं, या उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देशों को ताक पर रख दिया है?
यह सवाल आज इसलिए क्‍योंकि नामांकन और नाम वापसी आदि की प्रक्रिया पूरी हुए एक सप्‍ताह बीत जाने के बाद भी चुनाव मैदान में मौजूद किसी प्रत्‍याशी ने चुनाव आयोग के उन दिशा-निर्देशों का पालन करना जरूरी नहीं समझा है जिसके तहत उन्‍हें अपना क्राइम रिकॉर्ड भी सार्वजनिक करना होगा।
उत्तर प्रदेश के MATHURA जिले में 18 अप्रैल को मतदान होना है। इस हिसाब से मात्र 13 दिन बीच में हैं किंतु किसी प्रत्‍याशी ने अब तक चुनाव आयोग के उन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसलिए जारी किए गए हैं ताकि न सिर्फ आपराधिक पृष्‍ठभूमि वाले राजनीतिक लोगों को बेनकाब किया जा सके बल्‍कि आम जनता भी यह जान सके कि जिसे वह अपना प्रतिनिधि चुनने जा रहे हैं उसकी वास्‍तविकता क्‍या है।
MATHURA से कुल कितने प्रत्‍याशी
इस बार MATHURA से चुनाव मैदान में भारतीय जनता पार्टी की हेमा मालिनी हैं। उन्‍हें चुनौती देने के लिए 12 अन्य उम्मीदवार मैदान में हैं। इस तरह कुल 13 प्रत्‍याशी चुनाव मैदान में उतरे हैं।
कांग्रेस ने महेश पाठक को 20 साल बाद दोबारा टिकट दिया है तो राष्ट्रीय लोक दल की टिकट पर गठबंधन प्रत्‍याशी के रूप में कुंवर नरेंद्र सिंह अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के बीच हुए गठबंधन के तहत यह सीट राष्ट्रीय लोक दल को मिली है।
स्वतंत्र जनताराज पार्टी ने ओम प्रकाश को मैदान में उतारा है। मैदान में 3 निर्दलीय प्रत्याशियों के अलावा 5 अन्य प्रत्याशी छोटे-छोटे दलों के भी चुनाव लड़ रहे हैं।
क्‍या हैं चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देश
दरअसल, सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दागी नेताओं के संदर्भ में दिए गए दिशा-निर्देशों का अनुपालन करते हुए इस बार चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता में कुछ नए नियम जोड़े हैं और इन नियमों से सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को बाकायदा पत्र भेजकर अवगत भी कराया गया है।
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए लागू किए गए नियम ये हैं-
दागी उम्मीदवारों को आगामी लोकसभा चुनाव लड़ते समय अपना-अपना आपराधिक रिकॉर्ड अखबारों और टीवी चैनल्‍स के माध्यम से मतदाताओं को बताना होगा। उन्हें सभी लंबित आपराधिक मामलों का ब्योरा बड़े अक्षरों में छपवाना होगा। टीवी चैनल्‍स में भी ऐसे मामलों की जानकारी विस्तार से देनी होगी। 
यहीं नहीं, ऐसे नेताओं को टिकट देने वाले राजनीतिक दलों को भी इस बारे में अपनी वेबसाइट पर विस्तार से बताना होगा।
कैसे बताना होगा
ऐसे नेताओं को अपने आपराधिक रिकॉर्ड और सजा आदि का विवरण अपने इलाके के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले अखबारों में तीन अलग-अलग तारीखों पर विज्ञापन के रूप में छपवाना होगा।
यह सूचना बड़े अक्षरों में (12 पॉइंट) में छपवानी होगी।
ये विज्ञापन नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद से लेकर मतदान से दो दिन पहले तक छपवाने होंगे।
इसी प्रकार टीवी चैनल्‍स पर तीन अलग-अलग दिन खुद पर लगे आरोप बताने होंगे। 
सर्वोच्‍च न्‍यायालय की यह कवायद देश की राजनीति से आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को दूर रखने के लिए है। चुनाव आयोग भी इसे लेकर काफी सख्त बताया जा रहा है, इसलिए केंद्रीय चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पत्र भेजकर इस बारे में नए दिशा-निर्देश दिए हैं। 
शपथपत्र काफी नहीं 
आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार अभी तक चुनाव आयोग को शपथपत्र देकर काम चला लेते थे। इससे आम जनता को उन पर चल रहे मुकद्मों की जानकारी नहीं मिलती थी। 
अब आयोग ने साफ कहा है कि केवल शपथपत्र से काम नहीं चलेगा। उन्हें केसों के बारे में आम जनता को सार्वजनिक तौर से बताना होगा। उम्मीदवारों को जिला निर्वाचन अधिकारी के पास अपने चुनाव खर्च के साथ उन समाचार पत्रों की प्रतियां भी जमा करनी होंगी, जिनमें उनके आपराधिक इतिहास का ब्‍योरा बतौर विज्ञापन प्रकाशित हुआ हो।
राजनीतिक दल भी बताएंगे 
इसी प्रकार आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को टिकट देने वाले राजनीतिक दलों पर भी चुनाव आयोग ने अंकुश लगाया है। उन्हें भी ऐसे उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी अपनी वेबसाइट पर देनी होगी। साथ ही, इस बारे में अखबारों में प्रकाशित कराना होगा और चैनल्‍स पर भी प्रसारित कराना होगा। नामांकन के समय ”सी फॉर्म” में भी यह सब बताना होगा। 
अगर बात करें मथुरा से चुनाव मैदान में मौजूद सभी 13 प्रत्‍याशियों की तो शायद ही यह बात किसी के गले उतरे कि सारे के सारे प्रत्‍याशी दूध के धुले हैं और किसी पर कोई आरोप नहीं लगा है। कोई केस लंबित नहीं है।
सूत्रों के प्राप्‍त जानकारी के अनुसार इस चुनाव में MATHURA से लड़ रहे कई प्रत्‍याशी ऐसे हैं जिनके ऊपर एक-दो नहीं कई-कई केस चल रहे हैं और वो केस भी गंभीर किस्‍म के बताए जाते हैं।
जहां तक सवाल उनके द्वारा इस संबंध में नामांकन के वक्‍त जानकारी देने या न देने का है तो उसकी सूचना उपलब्‍ध नहीं है किंतु किसी प्रत्‍याशी ने अब तक तो अपने किसी लंबित केस का ब्‍योरा प्रिंट अथवा इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में देना जरूरी नहीं समझा जबकि ऐसा न करने पर नामांकन तक रद्द किए जाने का प्रावधान है।
इसके अलावा नए नियमों के मुताबिक प्रत्‍याशियों को अपनी आय के स्‍त्रोत सहित अपनी पत्‍नी तथा बच्‍चों की आय के स्‍त्रोत भी बताने होंगे लेकिन MATHURA के किसी प्रत्‍याशी ने ”बच्‍चों” की आय के स्‍त्रोत सार्वजनिक नहीं किए हैं।
विदेश में अपनी व रिश्तेदारों की संपत्ति और देनदारियों का ब्यौरा भी अनिवार्य
प्रत्याशियों को अपने पिछले पांच साल का आयकर रिटर्न सार्वजनिक करना अनिवार्य है। साथ ही प्रत्याशियों को विदेश में अपनी व रिश्तेदारों की संपत्ति और देनदारियों का ब्योरा भी अनिवार्य रूप से देना होगा। ऐसा न करने पर उनका नामांकन निरस्त किया जा सकता है परंतु मथुरा से चुनाव लड़ रहे किसी प्रत्‍याशी ने संभवत: ऐसा कोई ब्‍योरा अब तक नहीं दिया है।
सोशल मीडिया अकाउंट
चुनाव आयोग इस बार सोशल मीडिया पर भी बारीक नजर रखे हुए है। इसके लिए आयोग ने दिशा-निर्देश दिए हैं कि प्रत्याशियों को नामांकन के वक्त चुनावी दस्तावेजों के साथ उससे संबंधित सोशल मीडिया अकाउंट्स की भी पूरी जानकारी देनी होगी।
यह जानकारी कितने प्रत्‍याशियों ने जिला निर्वाचन कार्यालय को उपलब्‍ध कराई है, इसका पता फिलहाल नहीं लगा है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

कान में चुपचाप एक बात बतातौ जा मेरे राजा, मथुरा कौ सबरौ मीडिया “मैनेज” है गयौ का?

कोई दो दशक पुरानी बात है। राजाधिराज बाजार में एक चौबे जी आगे चल रहे व्‍यक्‍ति को संबोधित करके जोर-जोर से आवाज लगा रहे थे। अरे पत्रकार…ओ भइया पत्रकार…नैक रुक। तोते जरूरी काम है।
आगे चल रहे एक प्रख्‍यात अखबार के सुविख्‍यात पत्रकार ने पीछे मुड़कर देखा और अपने कदमों को लगाम लगाई। इतनी देर में चौबे जी उनके नजदीक जा पहुंचे और पूछने लगे- मैंने तोय सही पहचानौ, तू पत्रकार ही है।
पत्रकार ने असीम धैर्य का परिचय देते हुए चौबे जी से पूछा- कहिए क्‍या काम है आपको मुझसे।
अरे यार, आज फिल्‍म देखवे कौ बड़ो मन कर रह्यौ है, ये बता कि मिलन टॉकीज में कौन सी फिल्‍म चल रही है?
अब पत्रकार का मुंह देखने लायक था। उसे बुरा तो बहुत लगा लेकिन चौबे जी का इलाका था इसलिए गुस्‍से को पीकर बोले- मुझे नहीं पता।
तौ तू काहे कौ पत्रकार है, जब तोय ये तक नाय पतौ कि मिलन टॉकीज में कौन सी फिल्‍म चल रही है। बड़ौ पत्रकार बनें।
पत्रकार साहब ने चौबे जी से पिण्‍ड छुड़ाकर चुपचाप निकल लेने में ही अपनी भलाई समझी और द्रुत गति से नौ-दो-ग्‍यारह हो लिए।
दो दशक बाद अब फिर वही बाजार है और वही चौबे जी, लेकिन पत्रकार कोई और। इस बार चौबे जी ने फिर पत्रकार को आवाज लगाई। सुन भइया, तोते कुछ जरूरी बात करनी है।
जैसे ही पत्रकार रुका, चौबे जी ने सवाल दागा- कान में चुपचाप एक बात बतातौ जा मेरे राजा। इन लोकसभा चुनावन के लिएं मथुरा कौ सबरौ मीडिया “मैनेज” है गयौ का, या कछू बचौ है ?
चौबे जी के जहर बुझे सवाल का कोई जवाब न सूझते देख पत्रकार महोदय ने कुछ तल्‍खी के साथ कहा- ये बात आप मुझसे क्‍यों पूछ रहे हैं।
इस पर चौबे जी का जवाब था- लै भइया…तो ते न पूछें तो कौन तो पूछें, पत्रकार तौ तूही है। रस्‍ता चलतौ आदमी बिचारौ का जानें पत्रकारन की माया।
मैंने सुनी कि या बार ‘पेड न्‍यूज़’ पै चुनाव आयोग बहुत बिगड़ गयौ है। बड़ी सख्‍ती बरती है, और या लिएं अब तक अखबारन के पन्‍ना कोरे दीख रहे हैं। न विज्ञापन हैं न समाचार।
अब सुनी है चुनाव लड़वे बारेन ने पत्रकारन ते सांठगांठ करकें कोऊ बीच कौ रास्‍ता निकारौ है। अब टेबिल के ऊपर की जगह टेबिल के नीचे ते काम चल रह्यौ है।
काऊ ने बताई कि तुम्‍हारे यहां कोऊ ”बीट सिस्‍टम” बन गयौ है और बीट के हिसाब ते हिसाब-किताब चल रह्यौ है। चुनाव लड़वे बारे एक तौ बीट एै सैट कर रहे हैं और दूसरी सैटिंग ”पीठ” ते कर रहे हैं। बतावें कि पीठ वाय कहें तुम्‍हारे यहां जो तुम्‍हारे ऊपर बैठौ रहै।
खैर भइया, हमें का। दो पइसा तुम्‍हें मिल जाएं तो हमें का। हमें तौ दुख दो बातन कौ है।
पहली बात तौ ये कि जैसी खबरें इन दिनन अखबारन में पढ़वै कों मिलतीं, वैसी अब नाय मिल रहीं। और दूसरी ये कि तुमने अपने मालिकन के पेट पै लात मार दीनी है। बेचारे चुनावन में लाखन पीट लेते लेकिन अब सूखे संख बजाय रहे हैं। नेतन की हू मौज आय गई है। ”बीट और पीठ” ते सेटिंग करके सस्‍ते में निपट लिए, नहीं तौ लाखन को पैकेज देकेऊं हाय-हत्‍या।
वैसें मेरे राजा, तू बुरौ न मानें तो एक बात कहों। ये बड़े-बड़े अफसर जो बुद्धि के पुतला बने फिरें, तुम्‍हारे सामने कछू नाएं। हर्द लगै न फटकरी, रंग चौखौ। ऐसी सेटिंग करी है नेतन ते कि आंख को काजर चुराय लिए और कानौं-कान काउए पतौ ही नाय लगी।
चुनाव आयोग अखबार में ढूंढतौ रह जायेगौ ”पेड न्‍यूज़”। वाय का पतौ कि या बार ”पेड पत्रकार” कौ खेल चल रह्यौ है। अखबार वारेन कों अखबार जैसौ चढ़ावौ और चैनल वारेन कों चैनल जैसौ। जैसौ देवता, वैसी पूजा।
बड़ी देर में मौका पाकर पत्रकार ने चौबे जी से कहा, आप कहें तो अब मैं निकलूं।
पत्रकार को खिसकते देख चौबे जी बोले- भइया मेरे, एक आखिरी बात और बतायजा।
कोई प्रशासन को टोपी वारौ बताय गयो वा दिन, कि अखबारन में पेड न्‍यूज़ देखवे के लिए कोऊ कमेटीऊ बनाई गयी है। का कहें वाय…अरे हां, मॉनिटिरिंग कमेटी।
वा मै सुनी है कि अफसरन के अलावा पत्रकारू रखे गए हैं। ये का बात बही। मलाई की रखवारी के लिएं कोऊ बिल्‍ली एै रखवारी सौंपै का। ये का खेल चल रहयौ है। या की तौ तोय जरूर पतौ होएगी। अपनी मत बताय, वाकी तो कान में कुर्र कर जा।
देख राजा, मोय तो ते कुछ मतलब थोरैं हैं। तू तौ ये समझ कि घी गिरौ तो भात में ही गयौ।
मोय तो या बात ते मतलब है कि थौरे से दिन रह गए हैं वोट परवे में, और काऊ नै अब तक न तो प्रत्‍याशिन की ‘हिस्‍ट्री’ छापी, न ‘लेनदारी-देनदारी’ छापी, न कर्म-कुकर्म छापे, न आमदनी के स्‍त्रोत बताए। बस लकीर पीट रहे हैं। 10 रुपैया खर्च करकें सबरे अखबार खरीदों, पर बाचौं तो सन्‍नाटौ।
मैंने तो सुनी है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डर दे रखौ है कि हर उम्‍मीवार एै एक-दो बार नाय तीन-तीन बार अपनी गुण्‍डई कौ ब्‍यौरा अखबारन में छपवानों पड़ेगौ। और हां, वो का कहें, सोशल मीडिया पै हू देने पड़ैगौ, लेकिन अब तक तौ काऊ अखबार में ऐसौ कछू नाय देखौ। यहां ते चुनाव लड़वे बारे का सबरे राजा बेटा हैं। एक-दो कौ कच्‍चौ चिठ्ठा तौ मौऊएै पतौ है। वैसें मोय अकेले है का, पूरे शहर एै विनके अर्थ और अनर्थ की जानकारी है। बस मीडिया मठा पी कें बैठ गयौ है।
चल भइया, तौय मैंने बेमलब घेर लियौ। ये टेड़ी टांग वारे की जन्‍मभूमि है। यहां के सब खेल निराले हैं। दिल्‍ली यहां ते ज्‍यादा नाय तो डेढ़ सौ किलोमीटर दूर तौ है ही। यहां की लीला जब तक वहां बैठे अफसरन के कानन तक पहुंचैगी, तब तक तौ वोट गिरू जांगे और गिनूं जांगे।
वैसै हूं कहें कि दिल्‍ली नैक ऊंचौ सुनें। तू अपनौ रस्‍ता पकड़ भइया पत्रकार, और मैंऊं चलौं राजाधिराज एै ढोक दैवे।
जाकी चलै वो परपट तानें, या कौ बुरौ नैंक नहीं मानें।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

एक ही समस्‍या से जूझ रहे हैं मथुरा के तीनों प्रमुख प्रत्‍याशी, टेढ़ी खीर बना हुआ है समाधान

अलग-अलग पार्टियों और अलग-अलग जातियों से होने के बावजूद मथुरा के तीनों प्रमुख प्रत्‍याशी फिलहाल एक ही समस्‍या से जूझ रहे हैं। जो प्रत्‍याशी जितनी जल्‍दी इस समस्‍या का समाधान निकाल लेगा, मुख्‍य मुकाबले में उसी के शामिल होने की संभावना उतनी बढ़ जाएगी।
कृष्‍ण की नगरी से भाजपा ने जहां एकबार फिर निवर्तमान सांसद हेमा मालिनी पर दांव लगाया है वहीं सपा-बसपा और रालोद के गठबंधन ने कुंवर नरेन्‍द्र सिंह को बतौर रालोद प्रत्‍याशी मैदान में उतारा गया है। कांग्रेस ने पूर्व में लोकसभा का एक चुनाव लड़ चुके महेश पाठक को टिकट दिया है। इन तीन में से दो प्रत्‍याशियों हेमा मालिनी और कुंवर नरेन्‍द्र सिंह कल ही अपना नामांकन दाखिल कर चुके थे जबकि महेश पाठक ने आज नामांकन दाखिल किया है।
कहने को ये पांच दलों के तीन प्रत्‍याशी हैं किंतु इत्तेफाकन इन तीनों की समस्‍या एक ही है। जीत के लिए मतदाताओं के बीच जाने से पहले इन्‍हें इस समस्‍या का समाधान करना होगा अन्‍यथा सारा गुणा-भाग जाया हो सकता है।
सबसे पहले बात करते हैं भाजपा प्रत्‍याशी और नामचीन अभिनेत्री हेमा मालिनी की। हेमा मालिनी को जब 2014 के लोकसभा चुनावों में मथुरा से उम्‍मीदवार घोषित किया गया था तब भाजपा सत्ता से बाहर थी और हर भाजपायी की प्राथमिकता एक दशक से केंद्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली यूपीए सरकार को हटाना था।
ऐसे में मथुरा की भाजपा इकाई ने थोड़ी-बहुत हील-हुज्‍जत के बाद हेमा मालिनी को तहेदिल से स्‍वीकार करते हुए उनके लोकसभा में पहुंचने का मार्ग प्रशस्‍त किया।
समस्‍याएं तब पैदा होने लगीं जब स्‍वप्‍न सुंदरी का खिताब प्राप्‍त रुपहले पर्दे की इस अभिनेत्री के दर्शन आमजनता के साथ-साथ पार्टीजनों के लिए भी दुर्लभ हो गए, और वह चंद लोगों की पहुंच तक सिमट गईं। ये खास लोग ही हेमा के आम और खास दोनों बन बैठे लिहाजा वह उन कार्यकताओं से दूर होती चली गईं जिन्‍होंने अपना खून-पसीना एक करके उन्‍हें संसद भिजवाया था।
इसके बाद खबर आई कि हेमा जी ने मथुरा के विकास हेतु ”ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” के नाम से स्‍थानीय रजिस्‍ट्रार कार्यालय में एक एनजीओ का रजिस्‍ट्रेशन कराया है। इस एनजीओ में हेमा मालिनी के अलावा उनके दिल्‍ली निवासी समधी, उनके सगे भाई, मथुरा के एक सीए तथा एक मुकुट वाला सहित आधा दर्जन लोगों के नाम जोड़े गए।
हेमा मालिनी के इस ”ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट” ने मथुरा के विकास में कितनी और कैसी भूमिका अदा की इसका पता आजतक जनता को तो क्‍या, पार्टीजनों को भी शायद ही लगा हो।
यदि फोटोग्राफ्स पर भरोसा करें तो हेमा मालिनी की उपस्‍थिति मथुरा जनपद के खेत व खलिहानों से लेकर पगडंडियों तक पर और बाजार व गलियों से लेकर मंदिरों तक में खूब दिखाई देगी किंतु हकीकत यह है कि अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल में उन्‍होंने यहां न तो कभी कोई जनता दरबार लगाया और न जनसमस्‍याओं की सुनवाई की। वो हमेशा अपना डेकोरम मेंटेन करके रहीं और विशिष्‍ट लोगों से मिलती रहीं।
यही कारण रहा कि इस बार फिर जब पार्टी ने उनका नाम लोकसभा प्रत्‍याशी के तौर पर घोषित किया तो मथुरा की जनता सहित भाजपा कार्यकर्ताओं में भी कोई उत्‍साह नजर नहीं आया।
ऐसा नहीं है कि हेमा मालिनी को इस बात का इल्‍म नहीं था। उन्‍हें अच्‍छी तरह भान था कि स्‍वप्‍नसुंदरी से मेल खाती उनकी बॉलीवुडिया कार्यशैली ब्रजवासियों को रास नहीं आई है इसलिए उन्‍होंने पिछले चुनाव की तुलना में नरम रुख अपनाते हुए यह कहना शुरू किया कि वह एक चांस लेकर अपने अधूरे काम पूरे करना चाहती हैं।
इस सबके बावजूद पार्टी के अंदर ही हेमा जी की खिलाफत का आलम यह था कि टिकट घोषित होने के बाद बुलाई गई पार्टी की पहली मीटिंग में एक पूर्व जिलाध्‍यक्ष और वर्तमान जिलाध्‍यक्ष के बीच तीखी तकरार हुई।
बताया जाता है कि इस अंदरूनी कलह को समाप्‍त कराने के लिए ही हेमा मालिनी के नामांकन वाले दिन प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को मथुरा भेजा गया। योगी आदित्‍यनाथ इस मकसद में कितने सफल हुए, इसकी पूरी जानकारी तो चुनाव के नतीजे ही देंगे किंतु यह अंदाज जरूर लग चुका है कि हेमा मालिनी के लिए जीत की डगर इस बार पहले जितनी आसान नहीं रहेगी।
हेमा मालिनी के बाद नंबर आता है गठबंधन के प्रत्‍याशी ठाकुर कुंवर नरेन्‍द्र सिंह का। कुंवर नरेन्‍द्र सिंह राजनीति में कभी अपनी वैसी छवि नहीं बना पाए जैसी उनके भाई पूर्व सांसद कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह ने बनाई।
संभवत: इसी कारण कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह को मथुरा की जनता ने तीन बार लोकसभा भेजा लेकिन कुंवर नरेन्‍द्र सिंह तीनों बार विधानसभा का मुंह भी नहीं देख पाए। आज भी लोग यह कहते सुने जा सकते हैं कि काश यह टिकट कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह को मिला होता।
बहरहाल, व्‍यक्‍तिगत छवि की बात न भी करें तो कुंवर नरेन्‍द्र सिंह को टिकट देकर रालोद ने मथुरा के उन सभी जाट नेताओं को नाराज कर दिया है जो वर्षों से पार्टी को पुनर्जीवित करने की कोशिश में लगे थे। अनिल चौधरी तो इसलिए पार्टी ही छोड़कर चले गए।
बताया जाता है कि जिन जाट मतदाताओं के बल पर आजतक चौधरी अजीत सिंह और उनकी पार्टी का वजूद कायम रहा है, वही जाट इस मर्तबा चौधरी साहब को सबक सिखाने का मन बना चुके हैं। किसी भी कद्दावर जाट नेता का कुंवर नरेन्‍द्र सिंह के साथ खड़े दिखाई न देना इस बात की पुष्‍टि करता है।
कुंवर नरेन्‍द्र सिंह के लिए ठाकुर वोट पाना भी टेढ़ी खीर होगा क्‍योंकि रालोद ने ठाकुर तेजपाल की नाराजगी मोल लेकर कुंवर नरेन्‍द्र सिंह को टिकट दिया है। कुंवर नरेन्‍द्र सिंह और ठाकुर तेजपाल सिंह के बीच पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा चल रहा था, इस टिकट ने वह खाई और चौड़ी कर दी।
छाता क्षेत्र में अच्‍छा जनाधार रखने वाले ठाकुर तेजपाल का वोट कुंवर नरेन्‍द्र सिंह को मिल पाएगा, यह कहना बहुत मुश्‍किल है।
रही-सही कसर कल तब पूरी हो गई जब कुंवर नरेन्‍द्र सिंह के अपने सगे भाई पूर्व सांसद कुंवर मानवेन्‍द्र सिंह ने चुनावों के बीच भाजपा ज्‍वाइन कर ली। ऐसे में अब उनका भी कुंवर नरेन्‍द्र सिंह के लिए वोट मांगने आना असंभव हो चुका है।
कुंवर नरेन्‍द्र सिंह की दिक्‍कतें यहीं खत्‍म नहीं होतीं। जिन सपा और बसपा के गठबंधन से उन्‍हें सहारा है, वह भी उनके लिए खुलकर सामने आने को तैयार नहीं है।
बसपा के मथुरा में सर्वाधिक कद्दावर नेता मांट क्षेत्र के विधायक श्‍यामसुंदर शर्मा माने जाते हैं। श्‍यामसुंदर शर्मा और रालोद मुखिया चौधरी अजीत सिंह की वैमनस्‍यता जगजाहिर है। मुलायम सिंह के नेतृत्‍व वाली सरकार में जिस वक्‍त रालोद उत्तर प्रदेश की सरकार का हिस्‍सा हुआ करता था उस वक्‍त चौधरी अजीत सिंह ने श्‍यामसुंदर शर्मा को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
अजीत सिंह ने अपने एक मुंह लगे रैंकर आईपीएस और एसएसपी मथुरा सत्‍येन्‍द्र वीर सिंह से न केवल श्‍यामसुंदर शर्मा बल्‍कि उनके लघुभ्राता कृष्‍णकुमार शर्मा ‘मुन्‍ना’ सहित पूरे परिवार का जिस कदर उत्‍पीड़न कराया था, उसे श्‍याम शायद ही भूले हों।
पूरे ढाई साल अजीत सिंह के उस खास पुलिस अफसर ने श्‍यामसुंदर शर्मा व उनके परिजनों का जो उत्‍पीड़न किया, उसका दूसरा उदाहरण मिलना मुश्‍किल है।
बेशक आज श्‍यामसुंदर शर्मा के दल का दिल चौधरी अजीत सिंह से मिल चुका है परंतु मथुरा में तो मतदाता वही करेगा जो श्‍यामसुंदर शर्मा दिल से करने को कहेंगे। श्‍यामसुंदर शर्मा मांट क्षेत्र की जनता के दिल पर तो राज करते ही हैं, साथ ही ब्राह्मणों के भी बड़े नेता माने जाते हैं।
अजीत और श्‍याम के संबंधों का आंकलन करने वालों को शक है कि मथुरा में बसपा का वोट रालोद के प्रत्‍याशी कुंवर नरेन्‍द्र सिंह के लिए ट्रांसफर हो पाएगा।
कहने को बसपा के एक और ब्राह्मण नेता योगेश द्विवेदी भी हैं। योगेश द्विवेदी 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा के मथुरा से प्रत्‍याशी थे और अच्‍छे-खासे वोट भी लेकर आए थे। सपा-बसपा-रालोद के अप्रत्‍याशित गठबंधन से पहले योगेश द्विवेदी को इस बार भी बसपा का स्‍वभाविक प्रत्‍याशी माना जा रहा था लेकिन गठबंधन ने उनकी उम्‍मीदों पर पानी फेर दिया। जाहिर है कि अब पार्टी यदि उनसे कोई उम्‍मीद रखती है तो वह बेमानी होगी।
बसपा के मथुरा में तीसरे अहम नेता भी ब्राह्मण समुदाय से ताल्‍लुक रखते हैं। ये नेता हैं पूर्व विधायक राजकुमार रावत। राजकुमार रावत की गोवर्धन और गोकुल व बल्‍देव क्षेत्र के बाह्मण वोटों पर अच्‍छी पकड़ है किंतु उनका वोट बैंक रालोद को ट्रांसफर हो पाएगा, इस पर कोई आसानी से भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है।
अब यदि बात करें गठबंधन के तीसरे दल समाजवादी पार्टी की, तो वह आज तक मथुरा में अपना कोई जनाधार खड़ा ही नहीं कर पाया। मथुरा से कभी किसी चुनाव में समाजवादी पार्टी को सफलता नहीं मिली। तब भी नहीं जब अखिलेश ने यूपी की गद्दी संभाली ही थी और मांट क्षेत्र के उपचुनाव में अपने मित्र और निकट सहयोगी संजय लाठर को चुनाव लड़वाया था। सारी सरकारी मशीनरी झोंक देने के बावजूद संजय लाठर ये विधानसभा का उपचुनाव हार गए।
मथुरा से तीसरे प्रमुख प्रत्‍याशी महेश पाठक 1998 में कांग्रेस की ही टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। तब महेश पाठक के लिए किशोरीरमण डिग्री कॉंलेज के मैदान में सोनिया गांधी ने सभा की थी। सोनिया की सभा में तब भीड़ तो खूब उमड़ी किंतु वह वोटों में तब्‍दील नहीं हुई नतीजतन महेश पाठक बुरी तरह चुनाव हार गए।
दो दशक बाद एकबार फिर कांग्रेस ने महेश पाठक को चुनाव मैदान में उतारा है। महेश पाठक का अपना कोई जनाधार कभी रहा नहीं और पार्टी में भी वो सर्वमान्‍य नहीं हैं।
महेश पाठक को चुनाव मैदान में उतारने से कांग्रेस की गुटबाजी पूरी तरह सामने आ चुकी है।
मथुरा के चतुर्वेदी समुदाय से ताल्‍लुक रखने वाले महेश पाठक यूं तो माथुर चतुर्वेद परिषद के संरक्षक तथा अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जैसे पदों को सुशोभित करते हैं परंतु कांग्रेस पार्टी की ही तरह समूचा चतुर्वेदी समुदाय भी उन्‍हें लेकर एकमत नहीं है।
एक असफल उद्योगपति के रूप में पहचान रखने वाले महेश पाठक कांग्रेसी नेता से अधिक दबंग व्‍यक्‍ति के तौर पर मशहूर हैं, और इसके लिए उनका अतीत जिम्‍मेदार है।
महेश पाठक से ऐसी कोई उम्‍मीद नहीं की जा सकती कि वह चुनाव के लिए कांग्रेस में व्‍याप्‍त गुटबाजी को समाप्‍त करा पाएंगे लिहाजा जिस समस्‍या से भाजपा की हेमा मालिनी तथा गठबंधन के कुंवर नरेन्‍द्र सिंह रुबरू हैं, वही महेश पाठक के सामने मुंहबाये खड़ी है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि तीन लोक से न्‍यारी नगरी की उपमा प्राप्‍त कृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली मथुरा से चुनाव मैदान में उतरे इन तीनों प्रमुख प्रत्‍याशियों का भाग्‍य भितरघातियों की चाल पर निर्भर है। प्रत्‍याशी भले ही तीन हैं लेकिन समस्‍या इन सभी की एक है।
मतदाता भले ही निर्णायक भूमिका अदा करता हो परंतु भितरघातियों की भूमिका भी जीत या हार में कम मायने नहीं रखती।
यकीन न हो तो देश के किसी भी क्षेत्र का चुनावी इतिहास उठाकर देख लो, आंकड़े खुद-ब-खुद बता देंगे कि भितरघाती क्‍या अहमियत रखते हैं। मथुरा लोकसभा का चुनाव इससे अलग नहीं हो सकता।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...