शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

MATHURA के किसी प्रत्‍याशी ने अब तक नहीं बताया अपना क्राइम रिकॉर्ड, SC और EC के दिशा-निर्देश ताक पर

MATHURA से चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्‍याशी क्‍या दूध के धुले हैं, या उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देशों को ताक पर रख दिया है?
यह सवाल आज इसलिए क्‍योंकि नामांकन और नाम वापसी आदि की प्रक्रिया पूरी हुए एक सप्‍ताह बीत जाने के बाद भी चुनाव मैदान में मौजूद किसी प्रत्‍याशी ने चुनाव आयोग के उन दिशा-निर्देशों का पालन करना जरूरी नहीं समझा है जिसके तहत उन्‍हें अपना क्राइम रिकॉर्ड भी सार्वजनिक करना होगा।
उत्तर प्रदेश के MATHURA जिले में 18 अप्रैल को मतदान होना है। इस हिसाब से मात्र 13 दिन बीच में हैं किंतु किसी प्रत्‍याशी ने अब तक चुनाव आयोग के उन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसलिए जारी किए गए हैं ताकि न सिर्फ आपराधिक पृष्‍ठभूमि वाले राजनीतिक लोगों को बेनकाब किया जा सके बल्‍कि आम जनता भी यह जान सके कि जिसे वह अपना प्रतिनिधि चुनने जा रहे हैं उसकी वास्‍तविकता क्‍या है।
MATHURA से कुल कितने प्रत्‍याशी
इस बार MATHURA से चुनाव मैदान में भारतीय जनता पार्टी की हेमा मालिनी हैं। उन्‍हें चुनौती देने के लिए 12 अन्य उम्मीदवार मैदान में हैं। इस तरह कुल 13 प्रत्‍याशी चुनाव मैदान में उतरे हैं।
कांग्रेस ने महेश पाठक को 20 साल बाद दोबारा टिकट दिया है तो राष्ट्रीय लोक दल की टिकट पर गठबंधन प्रत्‍याशी के रूप में कुंवर नरेंद्र सिंह अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के बीच हुए गठबंधन के तहत यह सीट राष्ट्रीय लोक दल को मिली है।
स्वतंत्र जनताराज पार्टी ने ओम प्रकाश को मैदान में उतारा है। मैदान में 3 निर्दलीय प्रत्याशियों के अलावा 5 अन्य प्रत्याशी छोटे-छोटे दलों के भी चुनाव लड़ रहे हैं।
क्‍या हैं चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देश
दरअसल, सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दागी नेताओं के संदर्भ में दिए गए दिशा-निर्देशों का अनुपालन करते हुए इस बार चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता में कुछ नए नियम जोड़े हैं और इन नियमों से सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को बाकायदा पत्र भेजकर अवगत भी कराया गया है।
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए लागू किए गए नियम ये हैं-
दागी उम्मीदवारों को आगामी लोकसभा चुनाव लड़ते समय अपना-अपना आपराधिक रिकॉर्ड अखबारों और टीवी चैनल्‍स के माध्यम से मतदाताओं को बताना होगा। उन्हें सभी लंबित आपराधिक मामलों का ब्योरा बड़े अक्षरों में छपवाना होगा। टीवी चैनल्‍स में भी ऐसे मामलों की जानकारी विस्तार से देनी होगी। 
यहीं नहीं, ऐसे नेताओं को टिकट देने वाले राजनीतिक दलों को भी इस बारे में अपनी वेबसाइट पर विस्तार से बताना होगा।
कैसे बताना होगा
ऐसे नेताओं को अपने आपराधिक रिकॉर्ड और सजा आदि का विवरण अपने इलाके के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले अखबारों में तीन अलग-अलग तारीखों पर विज्ञापन के रूप में छपवाना होगा।
यह सूचना बड़े अक्षरों में (12 पॉइंट) में छपवानी होगी।
ये विज्ञापन नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद से लेकर मतदान से दो दिन पहले तक छपवाने होंगे।
इसी प्रकार टीवी चैनल्‍स पर तीन अलग-अलग दिन खुद पर लगे आरोप बताने होंगे। 
सर्वोच्‍च न्‍यायालय की यह कवायद देश की राजनीति से आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को दूर रखने के लिए है। चुनाव आयोग भी इसे लेकर काफी सख्त बताया जा रहा है, इसलिए केंद्रीय चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पत्र भेजकर इस बारे में नए दिशा-निर्देश दिए हैं। 
शपथपत्र काफी नहीं 
आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार अभी तक चुनाव आयोग को शपथपत्र देकर काम चला लेते थे। इससे आम जनता को उन पर चल रहे मुकद्मों की जानकारी नहीं मिलती थी। 
अब आयोग ने साफ कहा है कि केवल शपथपत्र से काम नहीं चलेगा। उन्हें केसों के बारे में आम जनता को सार्वजनिक तौर से बताना होगा। उम्मीदवारों को जिला निर्वाचन अधिकारी के पास अपने चुनाव खर्च के साथ उन समाचार पत्रों की प्रतियां भी जमा करनी होंगी, जिनमें उनके आपराधिक इतिहास का ब्‍योरा बतौर विज्ञापन प्रकाशित हुआ हो।
राजनीतिक दल भी बताएंगे 
इसी प्रकार आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को टिकट देने वाले राजनीतिक दलों पर भी चुनाव आयोग ने अंकुश लगाया है। उन्हें भी ऐसे उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी अपनी वेबसाइट पर देनी होगी। साथ ही, इस बारे में अखबारों में प्रकाशित कराना होगा और चैनल्‍स पर भी प्रसारित कराना होगा। नामांकन के समय ”सी फॉर्म” में भी यह सब बताना होगा। 
अगर बात करें मथुरा से चुनाव मैदान में मौजूद सभी 13 प्रत्‍याशियों की तो शायद ही यह बात किसी के गले उतरे कि सारे के सारे प्रत्‍याशी दूध के धुले हैं और किसी पर कोई आरोप नहीं लगा है। कोई केस लंबित नहीं है।
सूत्रों के प्राप्‍त जानकारी के अनुसार इस चुनाव में MATHURA से लड़ रहे कई प्रत्‍याशी ऐसे हैं जिनके ऊपर एक-दो नहीं कई-कई केस चल रहे हैं और वो केस भी गंभीर किस्‍म के बताए जाते हैं।
जहां तक सवाल उनके द्वारा इस संबंध में नामांकन के वक्‍त जानकारी देने या न देने का है तो उसकी सूचना उपलब्‍ध नहीं है किंतु किसी प्रत्‍याशी ने अब तक तो अपने किसी लंबित केस का ब्‍योरा प्रिंट अथवा इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में देना जरूरी नहीं समझा जबकि ऐसा न करने पर नामांकन तक रद्द किए जाने का प्रावधान है।
इसके अलावा नए नियमों के मुताबिक प्रत्‍याशियों को अपनी आय के स्‍त्रोत सहित अपनी पत्‍नी तथा बच्‍चों की आय के स्‍त्रोत भी बताने होंगे लेकिन MATHURA के किसी प्रत्‍याशी ने ”बच्‍चों” की आय के स्‍त्रोत सार्वजनिक नहीं किए हैं।
विदेश में अपनी व रिश्तेदारों की संपत्ति और देनदारियों का ब्यौरा भी अनिवार्य
प्रत्याशियों को अपने पिछले पांच साल का आयकर रिटर्न सार्वजनिक करना अनिवार्य है। साथ ही प्रत्याशियों को विदेश में अपनी व रिश्तेदारों की संपत्ति और देनदारियों का ब्योरा भी अनिवार्य रूप से देना होगा। ऐसा न करने पर उनका नामांकन निरस्त किया जा सकता है परंतु मथुरा से चुनाव लड़ रहे किसी प्रत्‍याशी ने संभवत: ऐसा कोई ब्‍योरा अब तक नहीं दिया है।
सोशल मीडिया अकाउंट
चुनाव आयोग इस बार सोशल मीडिया पर भी बारीक नजर रखे हुए है। इसके लिए आयोग ने दिशा-निर्देश दिए हैं कि प्रत्याशियों को नामांकन के वक्त चुनावी दस्तावेजों के साथ उससे संबंधित सोशल मीडिया अकाउंट्स की भी पूरी जानकारी देनी होगी।
यह जानकारी कितने प्रत्‍याशियों ने जिला निर्वाचन कार्यालय को उपलब्‍ध कराई है, इसका पता फिलहाल नहीं लगा है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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