शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

कान में चुपचाप एक बात बतातौ जा मेरे राजा, मथुरा कौ सबरौ मीडिया “मैनेज” है गयौ का?

कोई दो दशक पुरानी बात है। राजाधिराज बाजार में एक चौबे जी आगे चल रहे व्‍यक्‍ति को संबोधित करके जोर-जोर से आवाज लगा रहे थे। अरे पत्रकार…ओ भइया पत्रकार…नैक रुक। तोते जरूरी काम है।
आगे चल रहे एक प्रख्‍यात अखबार के सुविख्‍यात पत्रकार ने पीछे मुड़कर देखा और अपने कदमों को लगाम लगाई। इतनी देर में चौबे जी उनके नजदीक जा पहुंचे और पूछने लगे- मैंने तोय सही पहचानौ, तू पत्रकार ही है।
पत्रकार ने असीम धैर्य का परिचय देते हुए चौबे जी से पूछा- कहिए क्‍या काम है आपको मुझसे।
अरे यार, आज फिल्‍म देखवे कौ बड़ो मन कर रह्यौ है, ये बता कि मिलन टॉकीज में कौन सी फिल्‍म चल रही है?
अब पत्रकार का मुंह देखने लायक था। उसे बुरा तो बहुत लगा लेकिन चौबे जी का इलाका था इसलिए गुस्‍से को पीकर बोले- मुझे नहीं पता।
तौ तू काहे कौ पत्रकार है, जब तोय ये तक नाय पतौ कि मिलन टॉकीज में कौन सी फिल्‍म चल रही है। बड़ौ पत्रकार बनें।
पत्रकार साहब ने चौबे जी से पिण्‍ड छुड़ाकर चुपचाप निकल लेने में ही अपनी भलाई समझी और द्रुत गति से नौ-दो-ग्‍यारह हो लिए।
दो दशक बाद अब फिर वही बाजार है और वही चौबे जी, लेकिन पत्रकार कोई और। इस बार चौबे जी ने फिर पत्रकार को आवाज लगाई। सुन भइया, तोते कुछ जरूरी बात करनी है।
जैसे ही पत्रकार रुका, चौबे जी ने सवाल दागा- कान में चुपचाप एक बात बतातौ जा मेरे राजा। इन लोकसभा चुनावन के लिएं मथुरा कौ सबरौ मीडिया “मैनेज” है गयौ का, या कछू बचौ है ?
चौबे जी के जहर बुझे सवाल का कोई जवाब न सूझते देख पत्रकार महोदय ने कुछ तल्‍खी के साथ कहा- ये बात आप मुझसे क्‍यों पूछ रहे हैं।
इस पर चौबे जी का जवाब था- लै भइया…तो ते न पूछें तो कौन तो पूछें, पत्रकार तौ तूही है। रस्‍ता चलतौ आदमी बिचारौ का जानें पत्रकारन की माया।
मैंने सुनी कि या बार ‘पेड न्‍यूज़’ पै चुनाव आयोग बहुत बिगड़ गयौ है। बड़ी सख्‍ती बरती है, और या लिएं अब तक अखबारन के पन्‍ना कोरे दीख रहे हैं। न विज्ञापन हैं न समाचार।
अब सुनी है चुनाव लड़वे बारेन ने पत्रकारन ते सांठगांठ करकें कोऊ बीच कौ रास्‍ता निकारौ है। अब टेबिल के ऊपर की जगह टेबिल के नीचे ते काम चल रह्यौ है।
काऊ ने बताई कि तुम्‍हारे यहां कोऊ ”बीट सिस्‍टम” बन गयौ है और बीट के हिसाब ते हिसाब-किताब चल रह्यौ है। चुनाव लड़वे बारे एक तौ बीट एै सैट कर रहे हैं और दूसरी सैटिंग ”पीठ” ते कर रहे हैं। बतावें कि पीठ वाय कहें तुम्‍हारे यहां जो तुम्‍हारे ऊपर बैठौ रहै।
खैर भइया, हमें का। दो पइसा तुम्‍हें मिल जाएं तो हमें का। हमें तौ दुख दो बातन कौ है।
पहली बात तौ ये कि जैसी खबरें इन दिनन अखबारन में पढ़वै कों मिलतीं, वैसी अब नाय मिल रहीं। और दूसरी ये कि तुमने अपने मालिकन के पेट पै लात मार दीनी है। बेचारे चुनावन में लाखन पीट लेते लेकिन अब सूखे संख बजाय रहे हैं। नेतन की हू मौज आय गई है। ”बीट और पीठ” ते सेटिंग करके सस्‍ते में निपट लिए, नहीं तौ लाखन को पैकेज देकेऊं हाय-हत्‍या।
वैसें मेरे राजा, तू बुरौ न मानें तो एक बात कहों। ये बड़े-बड़े अफसर जो बुद्धि के पुतला बने फिरें, तुम्‍हारे सामने कछू नाएं। हर्द लगै न फटकरी, रंग चौखौ। ऐसी सेटिंग करी है नेतन ते कि आंख को काजर चुराय लिए और कानौं-कान काउए पतौ ही नाय लगी।
चुनाव आयोग अखबार में ढूंढतौ रह जायेगौ ”पेड न्‍यूज़”। वाय का पतौ कि या बार ”पेड पत्रकार” कौ खेल चल रह्यौ है। अखबार वारेन कों अखबार जैसौ चढ़ावौ और चैनल वारेन कों चैनल जैसौ। जैसौ देवता, वैसी पूजा।
बड़ी देर में मौका पाकर पत्रकार ने चौबे जी से कहा, आप कहें तो अब मैं निकलूं।
पत्रकार को खिसकते देख चौबे जी बोले- भइया मेरे, एक आखिरी बात और बतायजा।
कोई प्रशासन को टोपी वारौ बताय गयो वा दिन, कि अखबारन में पेड न्‍यूज़ देखवे के लिए कोऊ कमेटीऊ बनाई गयी है। का कहें वाय…अरे हां, मॉनिटिरिंग कमेटी।
वा मै सुनी है कि अफसरन के अलावा पत्रकारू रखे गए हैं। ये का बात बही। मलाई की रखवारी के लिएं कोऊ बिल्‍ली एै रखवारी सौंपै का। ये का खेल चल रहयौ है। या की तौ तोय जरूर पतौ होएगी। अपनी मत बताय, वाकी तो कान में कुर्र कर जा।
देख राजा, मोय तो ते कुछ मतलब थोरैं हैं। तू तौ ये समझ कि घी गिरौ तो भात में ही गयौ।
मोय तो या बात ते मतलब है कि थौरे से दिन रह गए हैं वोट परवे में, और काऊ नै अब तक न तो प्रत्‍याशिन की ‘हिस्‍ट्री’ छापी, न ‘लेनदारी-देनदारी’ छापी, न कर्म-कुकर्म छापे, न आमदनी के स्‍त्रोत बताए। बस लकीर पीट रहे हैं। 10 रुपैया खर्च करकें सबरे अखबार खरीदों, पर बाचौं तो सन्‍नाटौ।
मैंने तो सुनी है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डर दे रखौ है कि हर उम्‍मीवार एै एक-दो बार नाय तीन-तीन बार अपनी गुण्‍डई कौ ब्‍यौरा अखबारन में छपवानों पड़ेगौ। और हां, वो का कहें, सोशल मीडिया पै हू देने पड़ैगौ, लेकिन अब तक तौ काऊ अखबार में ऐसौ कछू नाय देखौ। यहां ते चुनाव लड़वे बारे का सबरे राजा बेटा हैं। एक-दो कौ कच्‍चौ चिठ्ठा तौ मौऊएै पतौ है। वैसें मोय अकेले है का, पूरे शहर एै विनके अर्थ और अनर्थ की जानकारी है। बस मीडिया मठा पी कें बैठ गयौ है।
चल भइया, तौय मैंने बेमलब घेर लियौ। ये टेड़ी टांग वारे की जन्‍मभूमि है। यहां के सब खेल निराले हैं। दिल्‍ली यहां ते ज्‍यादा नाय तो डेढ़ सौ किलोमीटर दूर तौ है ही। यहां की लीला जब तक वहां बैठे अफसरन के कानन तक पहुंचैगी, तब तक तौ वोट गिरू जांगे और गिनूं जांगे।
वैसै हूं कहें कि दिल्‍ली नैक ऊंचौ सुनें। तू अपनौ रस्‍ता पकड़ भइया पत्रकार, और मैंऊं चलौं राजाधिराज एै ढोक दैवे।
जाकी चलै वो परपट तानें, या कौ बुरौ नैंक नहीं मानें।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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