जिस तरह से असीम त्रिवेदी को गिरफ्तार किया गया है उससे लगता है कि इस
सरकार का आम जनता के साथ, भारत के लोकतंत्र के साथ रिश्ता खत्म हो चुका गया
है.
पिछले छह महीनों से मैं देख रहा हूं कि इस पागलपन में एक नियमितता है. पहले ममता बनर्जी एक प्रोफेसर को गिरफ्तार कराती हैं. उसके बाद 60 साल पुराने अंबेडकर कार्टून पर संसद में बवाल होता है. सभी राजनीतिक दल इसे हटाने के लिए इकट्ठे होते हैं...उस शंकर के खिलाफ जो कार्टूनिंग के पितामह थे, जिनका नेहरु जैसे लोग भी सम्मान करते थे.
संसद के अंदर तो इनका 'सेंस ऑफ ह्युमर' खत्म हो चुका है. संसद के बाहर भी इन्हें यह मंज़ूर नहीं है.
साल 1975 में घोषित रूप से आपातकाल था. तब एक सेंसर बोर्ड होता था जो खबरों और कार्टूनों को सेंसर करता था.
पिछले छह महीनों से मैं देख रहा हूं कि इस पागलपन में एक नियमितता है. पहले ममता बनर्जी एक प्रोफेसर को गिरफ्तार कराती हैं. उसके बाद 60 साल पुराने अंबेडकर कार्टून पर संसद में बवाल होता है. सभी राजनीतिक दल इसे हटाने के लिए इकट्ठे होते हैं...उस शंकर के खिलाफ जो कार्टूनिंग के पितामह थे, जिनका नेहरु जैसे लोग भी सम्मान करते थे.
संसद के अंदर तो इनका 'सेंस ऑफ ह्युमर' खत्म हो चुका है. संसद के बाहर भी इन्हें यह मंज़ूर नहीं है.
साल 1975 में घोषित रूप से आपातकाल था. तब एक सेंसर बोर्ड होता था जो खबरों और कार्टूनों को सेंसर करता था.