शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

काटजू जी, सारी न्‍यायिक व्‍यवस्‍था ही कठघरे में है

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्‍यक्ष और सर्वोच्‍च न्‍यायालय के पूर्व न्‍यायाधीश मार्कण्‍डेय काटजू द्वारा मद्रास हाईकोर्ट के एक भ्रष्‍ट जज की प्रोन्‍नति के मामले में यूपीए सरकार की भूमिका को लेकर जो खुलासा किया गया है, वह इसलिए भले ही चौंका रहा हो कि उसमें कानून मंत्री से लेकर पीएमओ तक का हस्‍तक्षेप सामने आ चुका है लेकिन कड़वा सच यह है कि आज न न्‍यायपालिका पूरी तरह स्‍वतंत्र रह गई हैं, न न्‍यायाधीश। न्‍यायपालिकाओं पर जहां प्रोन्‍नति एवं ट्रांसफर-पोस्‍टिंग के लिए दबाव रहता है, वहीं न्‍यायाधीशों पर पक्षपात करने का दबाव बनाया जाता है।
जाहिर है कि इस स्‍थिति का खामियाजा न्‍याय की उम्‍मीद पाले बैठे आमजन के साथ-साथ उन न्‍यायाधीशों को भी उठाना पड़ता है तो ईमानदारी से अपना कार्य करना चाहते हैं।
ऐसे न्‍यायाधीशों को दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ती है और भारी मानसिक उत्‍पीड़न सहन करना होता है क्‍योंकि आज न्‍यायपालिका का एक बड़ा हिस्‍सा भ्रष्‍टाचार के आगोश में समा चुका है।
मार्कण्‍डेय काटजू ने जिस जज की प्रोन्‍नति में केंद्र सरकार की भूमिका का उल्‍लेख किया है, उसकी बुनियाद वहां से शुरू होती है जहां वो जज साहब जिला जज की कुर्सी पर आसीन थे। काटजू के मुताबिक तब उन्‍होंने यूपीए सरकार की सहयोगी पार्टी के नेता को जमानत दी थी। नेताजी ने अगर जज साहब द्वारा जमानत देने को इतना बड़ा उपकार माना कि उनके लिए सीधे केंद्र सरकार से हस्‍तक्षेप करने को कहा तो यह तय है कि जज साहब ने वह जमानत अधिकारों का दुरूपयोग करके ही दी होगी।
बहरहाल, मार्कण्‍डेय काटजू द्वारा खुलासा किये जाने के बाद इस मामले में पर्याप्‍त हंगामा हो चुका है और जमकर राजनीति भी की जा चुकी है इसलिए अब इसमें आगे कुछ होने की उम्‍मीद कम ही लगती है। हालांकि इस बीच तत्‍कालीन कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज का झूठ और तत्‍कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चुप्‍पी के पीछे का राज भी सामने आ चुका है परंतु होना जाना कुछ नहीं है क्‍योंकि हमाम में कमोबेश सारे नेताओं का हाल एक जैसा रहता है। सब जानते हैं कि बात निकलेगी तो बहुत दूर तक जायेगी।
यही कारण है कि जब कभी व्‍यवस्‍थागत दोष से उपजे भ्रष्‍टाचार की बात आती है तो उसे शोर-शराबा करके दबा दिया जाता है क्‍योंकि इसी में शासकों की भलाई है। वह जानते हैं कि यदि इसकी मुकम्‍मल जांच होती है तो उसके लिए जड़ जक जाना होगा, और जड़ तक जाने में समूची व्‍यवस्‍था के ही ढह जाने का खतरा है।
मार्कण्‍डेय काटजू के आरोपों को यदि फिलहाल यहीं छोड़ दिया जाए तो कौन नहीं जानता कि आम आदमी के लिए देश में न्‍याय पाना अब असंभव न सही परंतु अत्‍यन्‍त कठिन जरूर हो चुका है। भ्रष्‍टाचार की जड़ ऊपर से नीचे चलती है या नीचे से ऊपर की ओर जाती है, इस बहस में पड़े बिना यह कहा जा सकता है कि जिला स्‍तर पर ही आमजन के लिए न्‍याय पाना काफी दुरूह है।
न्‍याय के मंदिर में प्रतिष्‍ठापित न्‍यायमूर्तियों के सामने ही जब उनके अधीनस्‍थ खुलेआम प्रत्‍येक वादी-प्रतिवादी से सुविधा शुल्‍क वसूलते हैं और न्‍यायमूर्ति कुछ नहीं कहते तो यह स्‍वाभाविक सवाल खड़ा होता है कि फिर वह कैसे न्‍यायमूर्ति हैं ?
जिला सत्र न्‍यायालयों का यह हाल है कि उनमें ईमानदार अधिकारियों को चिन्‍हित करना आसान नहीं होता। दर्जनों न्‍यायिक अधिकारियों के बीच बमुश्‍किल दो-चार अधिकारियों के बारे में यह धारणा होती है कि वह ईमानदार हैं।
किसी भी जिले की बार एसोसिएशन को भली प्रकार पता होता है कि कौन अधिकारी भ्रष्‍ट है और कौन ईमानदार।
भ्रष्‍ट न्‍यायिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली का आलम यह होता है कि वह पैसे की खातिर न केवल अपने अधिकारों का भरपूर दुरुपयोग करते हैं बल्‍कि जमानत से लेकर फैसलों तक को उसके लिए लटकाते रहते हैं।
चूंकि सामान्‍य तौर पर न्‍यायिक अधिकारी के खिलाफ बोलना भी कोर्ट की अवमानना प्रचारित कर रखा है और उसे लेकर आमजन में भय व्‍याप्‍त रहता है इसलिए कोई किसी न्‍यायिक अधिकारी के खिलाफ बोलने अथवा उसकी शिकवा-शिकायत करने का जोखिम नहीं उठाता।
अवमानना की गलत व्‍याख्‍या के चलते अधिकांश भ्रष्‍ट न्‍यायाधीश कानून को अपने मन मुताबिक इस्‍तेमाल करते हैं और अधिकारों का मन चाहा प्रयोग करते देखे जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए धारा 319 को ही ले लें। धारा 319 के तहत किसी व्‍यक्‍ति को तलब करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत स्‍पष्‍ट आदेश-निर्देश दे रखें हैं ताकि कोई अदालत उसका दुरुपयोग न कर सके परंतु काफी बड़ी संख्‍या में न्‍यायिक अधिकारी इस धारा का दुरुपयोग निजी स्‍वार्थों के पूर्ति के लिए करते पाये जाते हैं। पीड़ित व्‍यक्‍ति पहले तो उससे निजात पाने में लग जाता है, फिर यह सोचकर चुप बैठ जाता है कि जान बची और लाखों पाये। इसके अलावा भी उसे हर किसी से न्‍यायिक अधिकारी के खिलाफ आवाज न उठाने की ही सलाह मिलती है लिहाजा वह चुप रहने में ही अपनी भलाई समझकर बैठ जाता है।
हाईकोर्ट से प्राप्‍त सेम डे सुनवाई के आदेश हों या जमानत प्राप्‍त हो जाने के, हर मामले में जिला स्‍तर पर न्‍यायिक अधिकारी मनमानी करते देखे जा सकते हैं किंतु उनके खिलाफ कोई मार्कण्‍डेय काटजू आवाज नहीं उठाता क्‍योंकि सबको अपनी दुकान उन्‍हीं के सहयोग से चलानी होती है।
जिस न्‍याय पालिका को आम आदमी अपनी आखिरी उम्‍मीद समझता है और बड़े भरोसे के साथ वहां फरियाद लेकर जाता है, वहीं कदम-कदम पर उसके विश्‍वास का खून होता है लेकिन वह उस खून का घूंट पीने को मजबूर है क्‍योंकि उसके खिलाफ जाए तो जाए कहां।
अनेक लोगों के जीवन का एक बड़ा हिस्‍सा जिला स्‍तर पर न्‍यायिक अधिकारियों की मनमानी और भ्रष्‍टाचार की भेंट चढ़ जाता है लेकिन न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला। ईमानदार अधिकारी इसलिए मुंह सिलकर नौकरी करते हैं क्‍योंकि वह हर वक्‍त अपने ही साथी भ्रष्‍ट अधिकारियों के निशाने पर रहते हैं। उन्‍हें दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ती है।
ईमानदार अधिकारियों की स्‍थिति आज बत्‍तीसी के बीच जीभ जैसी हो चुकी है। उनका सारा समय अपनी ईमानदारी को बरकरार रखने और अपनी नीति एवं नैतिकता को बचाये रखने में बीत जाता है।
इस सब के कारण वह इतने तनाव में रहते हैं कि कई बार उन्‍हें अपनी ईमानदारी ही अपने ऊपर बड़ा बोझ लगने लगती है। ऐसे अधिकारियों को तमाम बार अपने घर-परिवार से भी एक लड़ाई अलग लड़नी पड़ती है। परिवार के सदस्‍यों को समझाना पड़ता है कि ईमानदारी कोई अभिशाप नहीं है।
न्‍यायपालिका में भ्रष्‍टाचार और राजनीतिक हस्‍तक्षेप इसलिए घातक है कि लगभग पूरी तरह सड़ चुकी देश की व्‍यवस्‍था के बीच सिर्फ न्‍यायपालिका से ही आमजन सारी उम्‍मीद लगाये रहता है। लोकतंत्र के तीन संवैधानिक स्‍तंभों में से न्‍यायपालिका में भी यदि लोगों का भरोसा नहीं रहा तो निश्‍चित जानिए कि वह दिन दूर नहीं जब हर व्‍यवस्‍था ध्‍वस्‍त हो जायेगी और देश को गर्त में जाने से कोई नहीं रोक सकेगा।
मार्कण्‍डेय काटजू ने चाहे समय रहते यह मुद्दा भले ही न उठाया हो और आज यह मुद्दा उठाने के पीछे चाहे उनका अपना कोई स्‍वार्थ छिपा हो लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की न्‍याय व्‍यवस्‍था में सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा तथा उसमें अब एक बड़े परिवर्तन की आवश्‍यकता है क्‍योंकि यदि समय रहते यह परिवर्तन नहीं किया गया तो इसके अत्‍यंत गंभीर परिणाम सामने होंगे। वह स्‍थिति संभवत: न देश के लिए हितकर होगी और न देशवासियों के लिए।
अब जरूरत है देश को एक ऐसी न्‍यायिक व्‍यवस्‍था की जिसमें हर स्‍तर पर समानता का केवल दिखावा न हो और उसके दायरे से कोई बाहर न जा सके। वो न्‍यायमूर्तियां भी नहीं, जो अपने पद व अपनी गरिमा के खिलाफ जाकर काम करती हैं। वो शासक भी नहीं जो उन्‍हें अपने हाथ की कठपुतली बनाकर व्‍यवस्‍थागत दोष का इस्‍तेमाल राजनीतिक हित साधने में करते हैं, और वो सत्‍ता भी नहीं जो जनहित को तिलांजलि देकर न्‍यायिक व्‍यवस्‍था को अपनी इच्‍छानुसार चलने के लिए बाध्‍य कर देती है।
- सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
 

सोमवार, 21 जुलाई 2014

कांग्रेस सरकार के कारनामों पर काटजू ने किया बड़ा खुलासा

नई दिल्‍ली। 
मद्रास हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। उन्हें सीधे तौर पर तमिलनाडु में डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर नियुक्त कर दिया गया था। डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर इस जज के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के विभिन्न पोर्टफोलियो वाले जजों ने कम-से-कम आठ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपनी कलम की ताकत से एक ही झटके में सारी प्रतिकूल टिप्पणियों को हटा दिया और यह जज हाईकोर्ट में अडिशनल जज बन गए। वह तब तक इसी पद पर थे, जब नवंबर 2004 में मैं मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनकर आया।
इस जज को तमिलनाडु के एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता का समर्थन प्राप्त था। मुझे बताया गया कि ऐसा इसलिए था क्योंकि डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए इस नेता को जमानत दी थी।
इस जज के बारे में भ्रष्टाचार की कई रिपोर्ट्स मिलने के बाद मैंने भारत के चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी को इस जज के खिलाफ एक गुप्त आईबी जांच कराने की गुजारिश की। कुछ हफ्ते बाद जब मैं चेन्नै में था तो चीफ जस्टिस के सेक्रेट्री ने मुझे फोन किया और बताया कि जस्टिस लोहाटी मुझसे बात करना चाहते हैं। चीफ जस्टिस लाहोटी ने कहा कि मैंने जो शिकायत की थी वह सही पाई गई है। आईबी को इस जज के भष्टाचार में शामिल होने के बारे में पर्याप्त सबूत मिले हैं।
अडिशनल जज के तौर पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने वाला था। मुझे लगा कि आईबी रिपोर्ट के आधार पर अब हाईकोर्ट के जज के तौर पर काम करने से रोक दिया जाएगा लेकिन असल में हुआ यह कि इस जज को एडिशनल जज के तौर पर एक और साल की नियुक्ति मिल गई जबकि इस जज के साथ नियुक्त किए गए छह और एडिशनल जजों को स्थायी कर दिया गया।
मैंने बाद में इस बात को समझा कि यह आखिर हुआ कैसे। सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली होती है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जज होते हैं जबकि हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन सबसे सीनियर जजों की कॉलेजियम होती है।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के तीन सबसे सीनियर जज थे, देश के चीफ जस्टिस लाहोटी, जस्टिस वाईके सभरवाल और जस्टिस रूमा पाल। सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद जज के तौर आगे न नियु्क्त किए जाने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी।
उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी। कांग्रेस इस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन उसके पास लोकसभा में पर्याप्त बहुमत नहीं था और इसके लिए वह अपनी सहयोगी पार्टियों के समर्थन पर निर्भर थी। कांग्रेस को समर्थन देने वाली पार्टियों में से एक पार्टी तमिलनाडु से थी जो इस भ्रष्ट जज को समर्थन कर रही थी। तीन सदस्यीय जजों की कॉलेजियम के फैसले का इस पार्टी ने जोरदार विरोध किया।
मुझे मिली जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उस समय संयुक्त राष्ट्र आमसभा की बैठक में भाग लेने के लिए न्यूयॉर्क जा रहे थे। दिल्ली एयरपोर्ट पर मनमोहन सिंह को तमिलनाडु की पार्टी के मंत्रियों ने कहा कि जब तक आप न्यूयॉर्क से वापस लौटेंगे उनकी सरकार गिर चुकी होगी क्योंकि उनकी पार्टी अपना समर्थन वापस ले लेगी। (उस जज को अडिशनल जज के तौर पर काम जारी न रखने देने के लिए)
यह सुनकर मनमोहन परेशान हो गए लेकिन एक सीनियर कांग्रेसी मंत्री ने कहा कि चिंता मत करिए वह सब संभाल लेंगे। वह कांग्रेसी मंत्री इसके बाद चीफ जस्टिस लाहोटी के पास गए और उनसे कहा कि अगर उस जज को एडिशनल जज के पद से हटाया गया तो केंद्र सरकार के लिए संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी। यह सुनकर जस्टिस लाहोटी ने उस भ्रष्ट जज को एडिशनल जज के तौर पर एक साल का एक और कार्यकाल देने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखा। (मुझे इस बात का आश्चर्य है कि क्या उन्होंने इसके लिए कॉलेजियम के बाकी दो सदस्यों से भी राय ली) इस तरह की परिस्थितयों में उस जज को एडिशनल जज के तौर पर और एक साल का कार्यकाल मिल गया।
उसके बाद चीफ जस्टिस बने वाईके सभरवाल ने उस जज को एक कार्यकाल और दे दिया। उनके उत्तराधिकारी चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने उस जज को स्थायी जज के तौर पर नियुक्त करते हुए किसी और हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
मैंने इन सब बातों का एक साथ उल्लेख करके यह दिखाने की कोशिश की सिद्धांत के उलट सिस्टम कैसे काम करता है। सच तो यह है कि आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के बाद इस जज को एडिशनल जज के रूप में काम करने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए थी।
(मार्कंडेय काटजू वर्तमान में वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन हैं)

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

''कुमार स्‍वामी''... साधु या शैतान ?

सुना है पहले बड़े ही सुनियोजित तरीके से ठगों का गिरोह ठगाई का अपना धंधा किया करता था। मसलन जैसे कोई व्‍यक्‍ति पशु पैंठ से गाय खरीद कर लाया। रास्‍ते में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर मौजूद गिरोह के सदस्‍य उससे पूछते थे- अरे भाई, यह गधा कितने का खरीदा?
गाय को गधा बताये जाने पर पहले तो वह आदमी चौंककर कहता है कि क्‍या अंधे हो भाई, यह गधा नहीं गाय है लेकिन रास्‍ते में जब तमाम लोग यही सवाल करते मिलते तो गाय लाने वाले को अपने ऊपर ही शक हो जाता था और वह सोचने लगता कि हो न हो मैं ही मूर्ख बन आया हूं। गांव पहुंचूंगा इसे लेकर तो बड़ी बदनामी होगी, साथ ही मजाक भी उड़ेगा लिहाजा वह खुद भी गाय को गधा मानकर रास्‍ते में ही कहीं चुपचाप छोड़कर चल देता था और पीछे से ठग उस गाय को ले उड़ते थे।
समय के साथ ठगाई का तरीका भले ही बदल गया हो लेकिन धंधा आज भी जारी है। यकीन न हो तो आज का दैनिक जागरण अखबार उठाकर देख लो।
इस अखबार में एक जैकेट पेज विज्ञापन छपा है। यह विज्ञापन मथुरा के वृंदावन में कुमार स्‍वामी द्वारा 12 व 13 जुलाई को आयोजित 'प्रभु कृपा दुख निवारण समागम' का है। 'स्‍वयंभू ब्रह्मर्षि' कुमार स्‍वामी के इस विज्ञापन में नेशनल हाईवे नंबर दो के पास वृंदावन के ही चौमुहां क्षेत्र अंतर्गत श्री राधा-कृष्‍ण का एक विशाल मंदिर बनाये जाने की घोषणा की गई है। 108 एकड़ भूमि पर प्रस्‍तावित इस मंदिर के निर्माण में दो हजार किलो सोना इस्‍तेमाल करने की बात लिखी है।
इस मंदिर के उद्देश्‍य और इसके ऊपर होने वाले खर्च पर चर्चा बाद में, पहले इसी विज्ञापन में किए गये दूसरे दावों की बात।
विज्ञापन में 'दिव्‍य पाठ से आई जीवन में खुशहाली' शीर्षक से करीब डेढ़ दर्जन लोगों के अनुभव प्रकाशित कराये गये हैं। इन लोगों में युवक-युवतियों एवं महिला-पुरुषों के अलावा दो बच्‍चों के भी फोटो लगे हैं।
इन तथाकथित निजी अनुभवों के माध्‍यम से दावा किया गया है कि ब्रह्मर्षि कुमार स्‍वामी द्वारा उपलब्‍ध कराये गये दिव्‍य पाठ से, उनके समागम में शामिल होने से तथा उनके द्वारा बताये गये अन्‍य उपायों से किस प्रकार उनके सारे कष्‍ट दूर हो गए।
इन कष्‍टों में एमबीबीएस करने के लिए एडमीशन से लेकर गोल्‍डमेडल हासिल होने तथा मनमाफिक नौकरी पाने से लेकर हार्ट की ब्‍लॉकेज समाप्‍त हो जाने तक का जिक्र है।
इतना ही नहीं, किसी का दावा है कि कुमार स्‍वामी की कृपा और उनके द्वारा बताये गये उपायों से उसका लाइलाज ब्रेस्‍ट कैंसर पूरी तरह ठीक हो गया तो किसी का दावा है कि उसकी बच्‍चेदानी का कैंसर ठीक हो गया। ब्‍लड शुगर, ब्‍लड प्रेशर व थॉयराइड जैसी बीमारियां कुमार स्‍वामी की कृपा से खत्‍म होने का दावा इन अनुभवों में किया गया है।
इसी विज्ञापन में 'मेडिकल साइंस हतप्रभ' शीर्षक से दावा किया गया है कि कुमार स्‍वामी द्वारा उपलब्‍ध कराये गये दिव्‍य पाठ के बाद जन्‍म से गूंगा व बहरा एक बच्‍चा बोलने व सुनने लगा तथा किसी कारण पूरी तरह आंखों की रौशनी गंवा चुके एक अन्‍य बच्‍चे की आंखों की रौशनी लौट आई। विज्ञापन के अनुसार गूंगे व बहरे बच्‍चे का इलाज पूर्व में पीजीआई चण्‍डीगढ़ से चल रहा था लेकिन वहां कोई लाभ नहीं हुआ।
विज्ञापन की मानें तो जहां मेडीकल साइंस असमर्थ हो गई, वहां कुमार स्‍वामी से उपलब्‍ध दिव्‍य पाठ ने चमत्‍कार कर दिखाया। यहां तक कि अनेक असाध्‍य रोगों का इलाज मात्र ईमेल के जरिए कर दिया।
लोगों को प्रभावित करने के लिए विज्ञापन में एक ओर जहां आज देश के प्रधानमंत्री व गुजरात के पूर्व मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी तथा मथुरा की सांसद एवं सुविख्‍यात अभिनेत्री हेमा मालिनी का कुमार स्‍वामी को लेकर तथाकथित संदेश भी छापा गया है वहीं दूसरी ओर अमेरिका के सीनेटरों से प्राप्‍त अंबेसेडर ऑफ पीस अवार्ड, न्‍यूयॉर्क स्‍टेट सीनेट से प्राप्‍त सम्‍मान, मॉरीशस के पीएम से प्राप्‍त एंजल ऑफ ह्यूमेनिटी अवार्ड  तथा ब्रिटेन की संसद से प्राप्‍त अंबेसेडर ऑफ पीस अवार्ड के फोटो प्रकाशित किये गये हैं। यह बात अलग है कि इन फोटोग्राफ्स की सत्‍यता को भी प्रमाण की जरूरत पड़ सकती है। जैसे नरेन्‍द्र मोदी और हेमा मालिनी का संदेश कब और किस संदर्भ में दिया गया था, दिया गया था भी या नहीं।
इन फोटोग्राफ्स को विज्ञापन में प्रकाशित करने के पीछे लोगों को प्रभावित करने के अलावा भी कोई दूसरा मकसद हो सकता है, यह समझ से परे है। हां, यह बात जरूर समझ में आती है कि प्रभावित क्‍यों और किसलिए किया जा रहा है।
स्‍पष्‍ट है कि पूर्व में कभी जिस तरह ठगों का सरगना गाय को गधा साबित करने के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत गिरोह के सदस्‍यों का इस्‍तेमाल किया करता था, ठीक उसी तरह आज के कुमार स्‍वामी अपने तथाकथित भक्‍तों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं जो वास्‍तव में उनके गिरोह का ही हिस्‍सा हैं अन्‍यथा क्‍या ऐसा संभव है कि जन्‍म से गूंगा-बहरा कोई ऐसा बच्‍चा जिसे ठीक करने में मेडीकल साइंस भी असमर्थ हो, उसे कुमार स्‍वामी ने ठीक कर दें। क्‍या ऐसा संभव है कि लाइलाज कैंसर का इलाज और ब्‍लड शुगर व ब्‍लड प्रेशर को कुमार स्‍वामी हमेशा के लिए ठीक कर सकें। मनमाफिक नौकरी पाने की बात हो या परीक्षा में मनमाफिक अंक प्राप्‍त करने की, सबकुछ कुमार स्‍वामी करवा सकते हों।
सूरदास के भक्‍तिपदों में एक पद है-
चरण-कमल बंदौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे को सब कुछ दरसाई।।
बहिरौ सुनै मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।
'सूरदास' स्वामी करूणामय, बार-बार बन्दौं तेहि पाई।।
सूरदास ने अपने भक्‍ति पदों की रचना भगवान कृष्‍ण के संदर्भ में की है जबकि सूरदास प्रत्‍यक्षत: स्‍वयं मृत्‍युपर्यन्‍त दृष्‍टिहीन ही रहे और सूरदास नाम भी जन्‍मांध लोगों का पर्याय बन गया। लेकिन यहां तो सब-कुछ ब्रह्मर्षि कुमार स्‍वामी की कृपा से संभव बताया जा रहा है।
बेशक धर्म की आड़ में लोगों को ठगने का धंधा करने वाले आज हर धर्म में सक्रिय हैं और कोई धर्म इस प्रकार के धंधेबाजों से अछूता नहीं रह गया है लेकिन कुमार स्‍वामी के विज्ञापन की चर्चा इसलिए जरूरी है क्‍योंकि यह कुछ समय पूर्व इसी तरह यमुना को शुद्ध करने का बीड़ा मथुरा में उठा चुके हैं। तब इन्‍होंने एक बड़ी धनराशि अपनी ओर से यमुना शुद्धीकरण के लिए दान देने का ऐलान यमुना पर संकल्‍प के साथ किया था लेकिन आज न उस धनराशि का कोई पता है और ना ही यमुना शुद्धीकरण के लिए उठाये गये संकल्‍प का। हां, उसके साथ ही कुमार स्‍वामी के संस्‍थान की वेबसाइट पर यमुना शुद्धीकरण के लिए यथासंभव दान देने की अपील जरूर शुरू कर दी गई थी। उसके माध्‍यम से कितना दान मिला, और कुमार स्‍वामी द्वारा यमुना के लिए दान की गई भारी-भरकम रकम का क्‍या हुआ, कुछ नहीं पता।
अब कुमार स्‍वामी ने 108 एकड़ में दो हजार किलो सोने से जड़ा राधाकृष्‍ण का मंदिर बनाने की घोषणा की है।
यदि 25 हजार रुपया प्रति दस ग्राम सोने की कीमत से दो हजार किलो सोने का भाव कैलकुलेट किया जाए तो यह रकम बैठती है पांच सौ करोड़ रुपया। पांच सौ करोड़ रुपए का सोना और उसके अलावा 108 एकड़ नेशनल हाईवे से सटी हुई जगह की कीमत, फिर इतने बड़े मंदिर के निर्माण पर आने वाला खर्च आदि सब जोड़ा जाए तो यह रकम हजारों करोड़ बैठेगी।
यहां सवाल यह पैदा होता होता है कि कुमार स्‍वामी के पास इतनी रकम पहले से है या यह उगाही जानी है। यदि पहले से है तो आई कहां से।
नहीं है तो क्‍या मंदिर के निर्माण की घोषणा और उसके लिए अखबार में दिये गये लाखों रुपये कीमत के विज्ञापन का मकसद उसी प्रकार धन की उगाही करना है जिस प्रकार यमुना शुद्धीकरण के नाम पर कुछ समय पूर्व शुरू किया था।
एक अन्‍य सवाल यहां यह भी है कि 12-13 जुलाई को वृंदावन क्षेत्र में आयोजित प्रभु कृपा दुख निवारण समागम या अन्‍य स्‍थानों पर होते आ रहे ऐसे ही दूसरे समागम क्‍या नि:शुल्‍क होते हैं अथवा इनमें शामिल होने की कोई फीस वसूली जाती है। विज्ञापन के अनुसार उत्‍तर प्रदेश में कुमार स्‍वामी का यह 396वां समागम है। 395 इससे पहले विभिन्‍न स्‍थानों पर किये जा चुके हैं।
यदि यह समागम नि:शुल्‍क होते हैं तो इनके आयोजन के लिए भारी-भरकम खर्च कहां से आता है, कौन यह खर्च उठाता है और उसका इसके पीछे मकसद क्‍या है।
जाहिर है कि इन सभी प्रश्‍नों का जवाब कुमार स्‍वामी के दो पेज वाले 'जेकेट एड' से मिल जाता है परंतु धर्म की आड़ लेकर चल रहे ठगी के इस धंधे पर रोक लगाना आसान नहीं। हाल ही मैं साईं बाबा को लेकर उपजा विवाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
चूंकि धर्म ही सभी पापकर्मों के लिए सबसे बड़ी आड़ का काम कर सकता है इसलिए कुमार स्‍वामी जैसे लोग न केवल धर्म को धंधा बनाकर ऐश कर रहे हैं बल्‍कि देश व विदेश में मौजूद उस कालेधन को सफेद करने में लगे हैं जिनको बाहर निकालने में अब तक सरकारें भी असफल रही हैं।
पता नहीं क्‍यों सरकारों का ध्‍यान इस ओर नहीं जाता। यदि जाने लगे तो एक बड़ी मात्रा में कालेधन का पता और उसकी आड़ बने पूरे खेल का पर्दाफाश होते ज्‍यादा वक्‍त नहीं लगेगा।
-legendnews

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

मथुरा में सबाव पर है ''वाइफ स्‍वेपिंग'' का खेल

मेट्रो सिटीज दिल्‍ली, मुंबई, कलकत्‍ता, चेन्‍नई सहित देश के तमाम दूसरे महानगरों तथा नगरों के साथ तरक्‍की की दौड़ में विश्‍व का नामचीन धार्मिक शहर मथुरा बेशक काफी पिछड़ा हुआ प्रतीत होता हो, बेशक यहां अभी तरक्‍की को परिभाषित करने वाली अनेक सुविधाओं का अभाव हो, बेशक देश-दुनिया के साथ तरक्‍की के लिए कदम ताल मिलाने में इसे लंबा समय लगे, लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है जिसमें कृष्‍ण की यह नगरी अन्‍य दूसरे महानगरों एवं नगरों से किसी तरह पीछे नहीं हैं। सच तो यह है कि वह बहुत से नगरों एवं महानगरों से इस क्षेत्र में काफी आगे है।
जी हां! चाहे आपको आसानी से यकीन आये या ना आए, चाहे आपका मुंह आश्‍चर्य से एकबार को खुले का खुला रह जाए लेकिन सच्‍चाई यही है कि विश्‍व की धार्मिक, सांस्‍कृतिक, आध्‍यात्‍मिक एवं साहित्‍यिक विरासत को दरकिनार कर यह शहर उस दिशा में करवट ले चुका है जिसके बारे में सोचना तक आम आदमी के लिए किसी महापाप से कम नहीं है।
यहां हम बात कर रहे हैं पैसे वालों के एक शौक, या कहें एक ऐसे खेल की जिसे ''वाइफ स्‍वेपिंग'' अथवा ''कपल स्‍वेपिंग'' कहा जाता है।
पैसे वालों का इसलिए कि मध्‍यम वर्गीय लोगों की तो औकात से ही बाहर है इस खेल में शामिल होना।
इस खेल के तहत पैसे वाले परिवारों से संबंध रखने वाले कपल, कम से कम छ: कपल का एक ग्रुप बनाते हैं और यह ग्रुप फिर वाइफ स्‍वेपिंग करता है।
वाइफ स्‍वेपिंग के तहत न्‍यूड एवं सेमी न्‍यूड ग्रुप डांस से लेकर ग्रुप सेक्‍स तक सब-कुछ शामिल होता है।
इसके लिए सबकी सहमति से शहर के किसी बाहरी हिस्‍से में अच्‍छे होटल का हॉल तथा कमरे बुक कराये जाते हैं, जहां ग्रुप के सदस्‍य कपल पूर्व निर्धारित दिन व समय पर अपनी-अपनी गाड़ियों से पहुंचते हैं। इस खेल में शामिल होने के लिए जितना जरूरी है एक अदद कपल का होना, उतना ही जरूरी है एक गाड़ी का होना।
खेल की शुरूआत ड्रिंक या ड्रग्‍स से होती है, और उसके बाद जैसे-जैसे सुरूर चढ़ता जाता है, खेल शुरू होने लगता है।
खेल की शुरूआत के लिए ग्रुप के सभी सदस्‍य हॉल की बत्‍तियां बुझाकर एक टेबिल पर अपनी-अपनी गाड़ियों की चाभियां रख देते हैं और फिर अंधेरे में ही ग्रुप के पुरुष सदस्‍य किसी एक गाड़ी की चाभी उठाते हैं। जिसके हाथ में जिसकी गाड़ी की चाभी आ जाती है, वह उस सदस्‍य की बीबी के साथ खेल खेलने को अधिकृत हो जाता है। ठीक इसी प्रकार उसकी बीबी के साथ वह सदस्‍य खेल खेलने का अधिकारी हो जाता है जिसकी चाभी उसके हाथ लगी है।
चाभियों की अदला-बदली के साथ यह सदस्‍य अपने पार्टनर को होटल में ही पहले से बुक्‍ड कमरों में ले जाते हैं और फिर वहां स्‍वछंद सेक्‍स का यह खेल शुरू हो जाता है।
इससे भी आगे इस खेल में कुछ लोग हॉल के अंदर ही एक-दूसरे की पत्‍नियों को लेकर सब-कुछ करने को स्‍वतंत्र होते हैं जबकि कुछ लोग दो-दो और तीन-तीन की संख्‍या में ग्रुप सेक्‍स करते हैं।
जाहिर है कि इस सारे खेल का राजदार और हिस्‍सेदार वह होटल मालिक भी होता है जिसके यहां खेल खेला जाता है। उसे इसके लिए अच्‍छी-खासी रकम मिलती है, वो अलग।
बताया जाता है कि मथुरा के नवधनाढ्यों को इस खेल की लत उस क्‍लब कल्‍चर से लगी है जो कथित तौर पर समाज सेवा के कार्य करते हैं अथवा समाज सेवा करने का दावा करते हैं।
इनके अलावा कुछ लोगों ने पर्सनल क्‍लब या ग्रुप भी बना लिए हैं और उनकी आड़ में विभिन्‍न कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं। जिनका असल मकसद उनके बीच से छांटकर वाइफ स्‍वेपिंग अथवा कपल स्‍वेपिंग के लिए एक अलग ग्रुप बनाना होता है।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार पिछले कुछ समय के अंदर इस धार्मिक शहर के विशेष वर्ग में हुईं आकस्‍मिक युवा संदिग्‍ध मौंतों के पीछे यही खेल रहा है क्‍योंकि इसके आफ्टर इफेक्‍ट अंतत: ऐसे ही परिणाम निकालते हैं।
सूत्रों की मानें तो विगत माह एक प्रसिद्ध होटल मालिक की शादी-शुदा बहिन इसी खेल में अपनी जान दे चुकी है। उसकी मौत को हालांकि इसलिए आत्‍महत्‍या प्रचारित किया गया क्‍योंकि उसने अपने मायके में जान दी थी परंतु सूत्रों की मानें तो इसके पीछे का असली कारण वाइफ स्‍वेपिंग का खेल ही था।
इसके अलावा कुछ दिन पूर्व एक बिल्‍डर के युवा पुत्र की संदिग्‍ध मौत हो या एक अन्‍य  बड़े व्‍यवसाई के अधेड़ उम्र पुत्र की होटल के कमरे में हुई मौत का मामला हो, सबके पीछे यही खेल बताया जाता है।
जिन परिवारों में यह मौतें हुई हैं, वह दबी जुबान से इतना तो स्‍वीकार करते हैं कि अवैध संबंध इन मौतों का कारण बने हैं, लेकिन सीधे-सीधे वाइफ स्‍वेपिंग के खेल में संलिप्‍तता स्‍वीकार नहीं करते।
चूंकि इस खेल के परिणाम स्‍वरूप एचआईवी एड्स तथा दूसरी संक्रामक बीमारियां भी तोहफे में मिलने की पूरी संभावना रहती है इसलिए इसके परिणाम तो किसी न किसी स्‍तर पर जाकर घातक होने ही होते हैं। ऐसी स्‍थिति में पति-पत्‍नी एक-दूसरे को दोषी ठहराने का प्रयास करते हैं और इसके फलस्‍वरूप गृहक्‍लेश बढ़ जाता है। रोज-रोज के गृहक्‍लेश का नतीजा फिर किसी अनहोनी के रूप में सामने आता है।
इस खेल से जुड़े लोगों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार धार्मिक शहर मथुरा में यूं तो इस खेल की शुरूआत हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन पिछले करीब पांच सालों से इसमें काफी तेजी आई है। पांच सालों में मथुरा के अंदर इस खेल के कई ग्रुप बने हैं और इसी कारण सो-कॉल्‍ड सभ्रांत परिवारों में कई जवान संदिग्‍ध मौतें भी हुई हैं।
आजतक ऐसी किसी मौत का मामला पुलिस के पास न पहुंचने की वजह से पुलिस ने उसमें कोई रुचि नहीं ली क्‍योंकि यूं भी मामला पैसे वालों से जुड़ा होता है।
यही कारण है वाइफ स्‍वेपिंग का यह खेल धर्म की इस नगरी में न केवल बदस्‍तूर जारी है बल्‍कि दिन-प्रतिदिन परवान चढ़ रहा है।
एक-दो नहीं, अनेक अपराधों का रास्‍ता बनाने वाला यह खेल यदि इसी प्रकार फलता-फूलता रहा और पुलिस व प्रशासन के बड़े अधिकारियों ने इस ओर अपनी निगाहें केंद्रित न कीं तो आने वाले समय में कृष्‍ण की नगरी के लिए यह ऐसा कलंक साबित होगा जिससे पीछा छुड़ाना मुश्‍किल हो जायेगा।
मुश्‍किल इसलिए कि मथुरा से दिल्‍ली बहुत दूर नहीं है। दिल्‍ली का कचरा अगर यमुना में बहकर आ रहा है तो दिल्‍ली का कल्‍चर भी सड़क के रास्‍ते मथुरा को प्रदूषित कर ही रहा है।
-Legendnews EXCLUSIVE

बुधवार, 2 जुलाई 2014

कुंभ के मेले में यूपी सरकार ने किया भारी घपला: कैग रिपोर्ट

लखनऊ। 
कुंभ के दौरान एक तरफ जहां श्रद्धालु आस्था के संगम में डुबकी लगा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार में गोते लगा रहा था। यह खुलासा भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में हुआ है। गौरतलब है कि यूपी के मंत्री आजम खां कुंभ मेला आयोजन कमिटी के अध्यक्ष थे। कैग रिपोर्ट में राज्य सरकार पर कई सवाल खड़े किए गए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार ने पूरा मेला केंद्र के पैसे से निपटा दिया जबकि 70 फीसदी खर्च राज्य सरकार को करना था। अफसरों ने कागजों में एक ही वक्त में कई मजदूरों को दो-दो जगह काम करते हुए दिखा दिया। ऐसा ही ट्रैक्टरों के साथ किया गया। सरकारी फाइलों में एक नंबर के ट्रैक्टर से एक साथ दो जगह काम किया गया। मेले में सड़क चौड़ी करने, मरम्मत से लेकर घाटों के निर्माण, बैरिकेडिंग तक हर काम में घपला सामने आया है। अफसरों ने ठेकेदारों की कमाई करवाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
सीएजी रिपोर्ट मंगलवार को विधानसभा में हंगामे के दौरान पेश की गई। इस पर सदन में कोई चर्चा भी नहीं हो सकी। रिपोर्ट के अनुसार, शहर, मेला स्थल, और रेलवे स्टेशनों पर सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था की गई थी, लेकिन सभी कंट्रोल रूम आपस में जुड़े ही नहीं थे। इस वजह से रेलवे स्टेशन पर पुलिस को शहर की भीड़ का अनुमान ही नहीं लगा।
कुंभ के लिए खरीदी गई दवाओं में आधी से ज्यादा का उपयोग ही नहीं हुआ। कुछ तो एक्सपायर हो गईं और बाद में वे गरीबों के इलाज के इस्तेमाल में दिखा दी गईं। करीब आधे कल्पवासियों को बीपीएल दर पर राशन भी नहीं उपलब्ध कराया गया। जिन्हें मिला भी तो आधे से ज्यादा कुंभ मेला गुजर जाने के बाद।
-एजेंसी

IPL की डील का खुलासा करने वाली थी सुनंदा इसलिए मार दी

नई दिल्ली। 
भाजपा के वरिष्ठ नेता और मशहूर वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया है कि सुनंदा पुष्कर ने कहा था कि वह आईपीएल सौदों का खुलासा करेगी। सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का नाम भी सामने आया था। सुनंदा पुष्कर की हत्या हुई थी। सुप्रीम कोर्ट को इसकी जांच करानी चाहिए। एक समाचार चैनल से बातचीत में स्वामी ने कहा कि सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले की जांच को लेकर मैं सुप्रीम कोर्ट में जुलाई के अंत तक याचिका दाखिल करूंगा। कांग्रेस के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी सुनंदा पुष्कर की संदिग्ध मौत के मामले की विस्तृत जांच कराए जाने की मांग की है। एनसीपी नेता और वकील माजिद मेमन ने कहा कि सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले की जांच होनी चाहिए और शशि थरूर को इसमें सहयोग करना चाहिए।
एम्स के फोरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता ने आरोप लगाया है कि उन पर गलत पोस्टमार्टम देने के लिए दबाव बनाया गया था। उन्होंने कहा कि पूर्व स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद और शशि थरूर के दबाव में पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदली गई थी। गुप्ता के आरोपों पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने एम्स के निदेशक से रिपोर्ट मांगी है।
सुधीर गुप्ता ने स्वास्थ्य मंत्रालय और मुख्त सतर्कता आयुक्त को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि वरिष्ठ अधिकारियों ने सुनंदा पुष्कर की संदिग्ध मौत को प्राकृतिक मौत बताने के लिए दबाव बनाया था। सुधीर गुप्ता के नेतृत्व वाली फोरेंसिक टीम ने ही सुनंदा पुष्कर का पोस्टमार्टम किया था। गुप्ता ने कैट में हलफनामा दाखिल किया है। इसमें गुप्ता ने दावा किया कि गुलाम नबी आजाद ने उन पर गैर पेशेवर तरीके से काम करने के लिए दबाव डाला ताकि मामले को रफा दफा किया जाए।
गुप्ता ने दावा किया है कि जब वह दबाव के आगे नहीं झुके और रिपोर्ट में यह बताया कि सुनंदा पुष्कर की मौत जहर के कारण हुई थी तो उन्हें निशाना बनाया गया। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि गुप्ता ने अपने प्रमोशन को लेकर पत्र लिखा था लेकिन मीडिया ने यह रिपोर्ट किया कि पत्र में कुछ विशेष आरोप हैं। मैंने एम्स के डायरेक्टर को रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा है। गौरतलब है कि 18 जनवरी को दिल्ली के पांच सितारा होटल के एक कमरे में सुनंदा पुष्कर मृत पाई गई थी।
-एजेंसी
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