गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

बचे-खुचे खुरों से जमीन खोदते Mulayam singh

akhilesh yadav and mulayam singh yadav
समाजवादी पार्टी के मुखिया Mulayam singh क्‍या पार्टी में अब खुद को हाशिए पर महसूस करने लगे हैं, क्‍या वो उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, अथवा पार्टी का राजनीतिक भविष्‍य उन्‍हें डराने लगा है?
कभी शेर की तरह दहाड़ने वाले मुलायम सिंह, अब अपनी पूरी ताकत लगाकर दहाड़ते भी हैं तो ऐसा लगता है जैसे बस गुर्रा रहे हैं और गुर्रा कर ही अपनी खीझ मिटा रहे हैं।
मुलायम सिंह की यह स्‍थिति यूं तो काफी समय से दिखाई दे रही है किंतु हाल ही में उनके द्वारा अखिलेश सरकार के मंत्रियों को दी गई चेतावनी से तो कुछ ऐसा ही साफ जाहिर हो रहा है।
गत दिनों समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर लखनऊ के पार्टी कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान मुलायम सिंह ने कहा कि प्रदेश के कुछ मंत्री सिर्फ पैसा कमाने में लगे हैं।
मंत्रियों के रवैये पर घोर नाराजगी जताते हुए सपा मुखिया ने यहां तक कहा कि पैसा ही कमाना था राजनीति में नहीं आना चाहिए था।
इस मौके पर उन्‍होंने अपने पुत्र और प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव को भी चुगलखोरों से आगाह किया और कहा कि सुनो भले ही सबकी लेकिन निर्णय खुद लो।
उन्‍होंने यह भी स्‍वीकारा कि खुद उनके द्वारा कई मंत्रियों को विभिन्‍न अवसरों पर समझाया गया है लेकिन वह नहीं सुधर रहे।
इससे पहले भी मुलायम सिंह कई मर्तबा कभी अखिलेश को टारगेट करके तो कभी सीधे-सीधे ऐसी बातें कह चुके हैं किंतु प्रदेश सरकार के ढर्रे में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया नतीजतन कानून-व्‍यवस्‍था का हाल दिन-प्रतिदिन खराब ही हुआ है।
ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि क्‍या मुलायम सिंह अब अपने ही कुनबे के सामने इस कदर बेबस हो चुके हैं कि उन्‍हें अपनी पीड़ा जाहिर करने के लिए किसी न किसी मंच की दरकार होती है, या फिर वह सार्वजनिक मंच को माध्‍यम बनाकर बताना चाहते हैं कि पार्टी की नैया डूब रही है अगर बचा सको तो बचा लो।
वैसे तो राजनीति के ऊंट की करवट का अंदाज लगाना बड़े-बड़े दिग्‍गजों को मुश्‍किल में डाल देता है लेकिन मुलायम सिंह को इस मामले में महारथ हासिल है। मुलायम के फेंके हुए पासे राजनीति के धुरंधरों पर भारी पड़े हैं लेकिन बिहार को लेकर मुलायम सिंह का दांव उल्‍टा क्‍या पड़ा, पार्टी और परिवार में ही उनके खिलाफ अंदरखाने बगावती सुर उठने की खबरें हैं।
बताया जाता है कि परिवार ने ही मुलायम सिंह को अब चुका हुआ राजनेता मान लिया है और उनकी सोचने-समझने की शक्‍ति पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं।
इसका एक उदाहरण विगत माह तब भी देखने को मिला जब मथुरा में पत्रकारों के राष्‍ट्रीय संगठन IFWJ की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी का दो दिवसीय अधिवेशन हुआ था।
इस अधिवेशन में सपा सुप्रीमो के भाई और प्रदेश के कद्दावर नेता शिवपाल यादव ने भी बतौर मुख्‍य अतिथि शिरकत की थी।
अधिवेशन के दौरान IFWJ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के. विक्रम राव ने शिवपाल यादव की राजनीतिक सूझ-बूझ को जहां सराहा वहीं बिहार को लेकर मुलायम सिंह यादव द्वारा लिए गए निर्णय पर जमकर निशाना साधा।
के. विक्रम राव के अनुसार शिवपाल यादव बिहार चुनाव में मुलायम सिंह द्वारा महागठबंधन से अलग होने के निर्णय पर अप्रसन्‍न थे लेकिन मुलायम सिंह ने उनकी बाात नहीं सुनी लिहाजा नतीजा सबके सामने है।
के. विक्रम राव ने देशभर से आये हजारों पत्रकारों के सामने कहा कि यदि मुलायम सिंह ने शिवपाल यादव की बात सुनी होती तो बिहार में आज उनकी और समाजवादी पार्टी की ऐसी दुर्गति नहीं हुई होती।
यहां सवाल यह नहीं है कि IFWJ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के. विक्रम राव ने शिवपाल यादव की शान में कसीदे क्‍यों पढ़े, सवाल यह है कि हजारों पत्रकारों के सामने शिवपाल यादव यह सब मुस्‍कुराते हुए सुनते रहे और जब उनके बोलने की बारी आई तब भी इस विषय पर एक शब्‍द नहीं बोले।
मौन स्‍वीकृति का सूचक होता है, यह सर्वमान्‍य सत्‍य है। तो क्‍या शिवपाल यादव यह मानने लगे हैं कि मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक समझ-बूझ अब चुक गई है।
शिवपाल यादव का मौन तो यही कह रहा था।
अखिलेश की कैबिनेट के मंत्रियों पर कर्पूरी ठाकुर के जयंती समारोह में सीधे-सीधे आरोप लगाने वाले मुलायम सिंह यादव यदि उन मंत्रियों को लेकर कोई निर्णय नहीं ले पा रहे तो साफ है कि कहीं न कहीं वह खुद को कमजोर मान रहे हैं। उन्‍हें लग रहा है कि अब उनकी एक आवाज पर तूफान आने का दौर बीत गया है। अब वह अपने बचे-खुचे खुरों से जमीन खोदकर अपनी मौजूदगी का अहसास तो करा सकते हैं किंतु टकराने का माद्दा नहीं रखते।
जमीन भी इसलिए खोद रहे हैं ताकि इतने बड़े कुनबे में कहीं मान-सम्‍मान शेष बना रहे वर्ना तो वह भी दांव पर लगते देर नहीं लगेगी।
शायद यही वजह है कि कभी वह रामजन्‍म भूमि के लिए आंदोलनरत रामभक्‍तों पर गोलियां चलवाने का प्रायश्‍चित करते प्रतीत होते हैं तो कभी अखिलेश के मंत्रियों की धनलोलुपता पर खीझ निकालते हैं। कभी कहते हैं कि राजनीति, व्‍यापार नहीं है और कभी बताते हैं कि उन्‍होंने तो जनता से ही पैसे मांगकर चुनाव लड़ा था।
कुल जमा ऐसा लगता है कि वह अपने ही परिवार में पनप चुकी दौलत और शौहरत की भूख पर लगाम लगाना चाहते हैं किंतु परिवार है कि पूरी तरह बेलगाम हो चुका है।
मुलायम सिंह पर बेशक उम्र का प्रभाव पड़ रहा हो, भले ही उनकी समझ-बूझ पर उंगली उठाई जाने लगी हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनमें भविष्‍य को बांचने की समझ नए जमाने के नेताओं से कहीं अधिक है।
हो सकता है कि मुलायम सिंह आज अपने ही परिवार के फ्रेम में पूरी तरह फिट न बैठ पा रहे हों परंतु समाजवादी कुनबे का राजनीतिक भविष्‍य हमेशा उनकी तस्‍वीर का मोहताज रहेगा और जिस दिन उनकी तस्‍वीर को किसी कोने में टांग कर काम चलाने की कोशिश की गई, उस दिन पार्टी का ही काम तमाम हो जायेगा क्‍योंकि समाजवादी पार्टी में फिलहाल मुलायम सिंह यादव का स्‍थान लेने की योग्‍यता किसी के अंदर नजर नहीं आती…फिलहाल ही क्‍यों, दूर-दूर तक नजर नहीं आती।
-लीजेंड न्‍यूज़

ब्रजभूमि में भी सक्रिय हो रहा है Notorious अंतर्राष्‍ट्रीय आतंकी संगठन ISIS

http://legendnews.in/the-isis-notorious-international-terrorist-organization-has-been-active-in-brajbhumi/
-SIMI के पुराने सक्रिय सदस्‍यों और पदाधिकारियों से संपर्क साध रहे हैं Notorious ISIS के एजेंट
-LIU, IB तथा MI को भी भनक लेकिन नहीं उठाए जा रह कठोर कदम
-स्‍थानीय मीडिया, पुलिस-प्रशासन और सत्‍ताधारी पार्टी में अच्‍छी घुसपैठ बना चुके हैं संदिग्‍ध तत्‍व
विश्‍व का Notorious आतंकवदी संगठन ”इस्‍लामिक स्‍टेट ऑफ इराक एंड सीरिया” (ISIS) क्‍या ब्रजभूमि में भी सक्रिय हो रहा है?
क्‍या कृष्‍ण की नगरी में भी उसने अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं?
इन सवालों के स्‍पष्‍ट उत्‍तर भले ही आज न मिल सकें किंतु इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद में ऐसी आशंकाएं पूरी तरह नजर आती हैं।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार ISIS ने मथुरा सहित समूचे ब्रज मंडल में उन तत्‍वों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है जो पहले कभी किसी आतंकी संगठन का हिस्‍सा रहे हैं अथवा जिनकी रुचि ऐसे किसी संगठन में कभी रही है।
उल्‍लेखनीय है कि मथुरा शहर और जनपद में कुछ वर्ष पहले तक Students Islamic Movement of India (SIMI) काफी सक्रिय रहा है और यहां बाकायदा उसके पदाधिकारी भी हुआ करते थे। इन पदाधिकारियों की समय-समय पर धरपकड़ भी हुई और इस संगठन से जुड़े लोगों पर पुलिस-प्रशासन की पैनी नजर बनी रही।
शासन स्‍तर से प्रतिबंधित कर दिए जाने तथा कड़ाई बरते जाने के बाद इस धार्मिक जनपद में सिमी की गतिविधियां कुछ ठंडी जरूर पड़ीं किंतु पूरी तरह समाप्‍त कभी नहीं हुईं।
सिमी से जुड़े मथुरा के संदिग्‍धों ने इस दौरान अपना चोला बदल लिया लेकिन उनकी फितरत वही रही लिहाजा चोला बदल लेने के बावजूद वह संदिग्‍ध गतिविधियों में किसी न किसी प्रकार लिप्‍त रहे।
यही कारण है कि देश के किसी भी हिस्‍से में हुई आतंकी वारदातों के तार ब्रजभूमि से जुड़े, चाहे उसमें पुलिस को कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पाई।
हाल ही में मथुरा से सटी हरियाणा की सीमा के मेवात क्षेत्र से एनआईए ने एक ऐसे कुख्‍यात आतंकवादी की गिरफ्तारी की थी जो अपने साथियों के साथ गणतंत्र दिवस पर किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिराक में था।
एनआईए ने उससे मिली जानकारी के बाद देश के तमाम दूसरे हिस्‍सों से भी आतंकवादियों की धरपकड़ की। फिलहाल उनसे पूछताछ जारी है।
मथुरा से हरियाणा का मेवात इलाका न केवल राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर-2 के जरिए सीधे-सीधे जुड़ा है बल्‍कि मथुरा जनपद के ही थाना बरसाना क्षेत्र का गांव हाथिया भी मेवात से जुड़ा हुआ है। हाथिया अपने आपराधिक चरित्र के लिए देशभर में कुख्‍यात है और बड़े अपराधियों व आतंकवादियों की शरणस्‍थली के रूप में पहचाना जाता है।
हाथिया में एक ओर जहां टटलू काटने का काम बड़े स्‍तर पर होता है वहीं दूसरी ओर हर किस्‍म के अत्‍याधुनिक अवैध हथियारों का बड़ा अड्डा है। हाथिया में AK सीरीज के हथियार हर वक्‍त बिक्री के लिए उपलब्‍ध रहते हैं और दूसरे घातक हथियारों की खेप यहां से देश के विभिन्‍न क्षेत्रों को भेजी जाती है।
इस सबके अलावा चाहे मामला बड़े पैमाने पर हर तरह के वाहनों की चोरी का हो अथवा भैंस आदि को चुराकर उनकी फिरौती वसूलने का, हर मामले में हाथिया नंबर एक पर आता है। हाथिया के आपराधिक चरित्र वाले मेवात समुदाय का हरियाणा के मेवातों से रोटी-बेटी का संबंध है। इनकी यहां अच्‍छी-खासी रिश्‍तेदारियां हैं।
हाथिया और मेवात के अपराधी अपनी जुगलबंदी से मथुरा की सीमा में पड़ने वाले करीब 90 किलोमीटर लंबे NH-2 को हर वक्‍त दहलाए रहते हैं।
यह लोग वारदात को अंजाम देने के लिए खुलेआम लाल और नीली बत्‍ती वाली गाड़ियों का इस्‍तेमाल करते हैं और पुलिस इनके सामने पूरी तरह असहाय बनी रहती है।
हाथिया के अपराधियों का पुलिस में कितना खौफ है यह अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस हाथिया के अंदर किसी वांछित की गिरफ्तारी के लिए भी आसानी से नहीं जाती।
यदा-कदा जब जाती है तो इतनी बड़ी तादाद में कि समूचा हाथिया पुलिस की छावनी दिखाई देने लगता है। उसके बाद भी हाथिया के अपराधी पुलिस से टकराने में कतई नहीं चूकते।
हाथिया के अलावा मथुरा शहर में भी कुछ खास बस्‍तियां इस तरह की हैं जहां हर किस्‍म का अपराध तथा अपराधी संरक्षण पाते हैं और पुलिस यह बात बहुत अच्‍छी तरह जानती भी है किंतु वह कभी वहां दविश देने की हिमाकत नहीं करती।
अगर कभी पुलिस ने इन बस्‍तियों में घुसने का प्रयास भी किया है तो उसे मुंह की खानी पड़ी है। यह वही बस्‍तियां हैं जिनमें सिमी के पदाधिकारी भी रहते हैं और पड़ोसी मुल्‍क के लिए स्‍लीपर सैल की तरह काम करने वाले तत्‍व भी।
बताया जाता है IS ने बाकायदा ऐसे तत्‍वों की अपने स्‍तर से जानकारी एकत्र की है और उसके एजेंट अब इन्‍हें ISIS के लिए काम करने को तैयार कर रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक इस बात की भनक मथुरा की लोकल इंटेलीजेंस यूनिट सहित यहां तैनात आईबी के अधिकारियों को भी लग चुकी है और मिलेट्री इंटेलीजेंस को भी किंतु अभी तक उन्‍हें कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकी है।
इंटेलीजेंस ऐजेंसियों को कामयाबी न मिल पाने की एक वजह यह बताई जाती है कि नापाक इरादे वाले तत्‍व बड़े पैमाने पर पहले से ही पुलिस के अंदर तक अपनी पकड़ बनाए हुए हैं।
ऐसे तत्‍व पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों, सत्‍ताधारी पार्टी के नेताओं तथा आर्मी इंटेलीजेंस तक में घुसपैठ कर चुके हैं। कई तत्‍वों ने तो इसके लिए ‘मीडिया’ को आड़ बना रखा है। मीडियाकर्मी के रूप में यह लोग बड़ी आसानी से पुलिस, प्रशासन, शासन और यहां तक कि आर्मी में भी अंदर तक घुसे हुए हैं।
IS के एजेंट भी इन बातों से भली प्रकार वाकिफ हैं और इसीलिए उन्‍हें इनसे संपर्क साधने में कोई खास परेशानी नहीं होती।
आश्‍चर्य की बात यह है कि किसी दूसरे प्रदेश या राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक गाड़ी भी चोरी हो जाती है तो हाई अलर्ट घोषित कर दिया जाता है किंतु ब्रजक्षेत्र में हर दिन बेहिसाब गाड़ियों की चोरी तथा लूट होती है किंतु यहां हाई अलर्ट घोषित करना तो दूर सेम डे एफआईआर भी दर्ज नहीं की जाती।
ऐसे में यह उम्‍मीद कैसे की जा सकती है कि स्‍थानीय पुलिस-प्रशासन IS जैसे अंतर्राष्‍ट्रीय आतंकी संगठन की गतिविधियों को समय रहते रोक पायेगा और उसके मंसूबों पर पानी फेरने में सफल होगा।
कहीं ऐसा न हो कि अब तक ”भेड़िया आया…भेड़िया आया” की रट को अपनी चिर-परिचित कार्यशैली से सुनने व देखने वाला पुलिस प्रशासन तभी चेते जब भेड़िया अपने नापाक मंसूबे पूरे कर पाने में सफल हो जाए और विश्‍व प्रसिद्ध यह धार्मिक स्‍थल भेड़ियों का शिकार बन चुका हो।
चूंकि मथुरा की भौगोलिक स्‍थिति हर किस्‍म के अपराध और अपराधियों के लिए काफी मुफीद है इसलिए बेहतर होगा कि शासन-प्रशासन समय रहते यहां मंडरा रहे खतरे को कठोर कार्यवाही करते हुए IS के मंसूबों पर पानी फेर दे अन्‍यथा स्‍थिति को हाथ से निकलने में बहुत देर नहीं लगेगी।
-लीजेंड न्‍यूज़

Corruption पर जस्‍टिस चौधरी की टिप्‍पणी: नमक से नमक खाने जैसी नसीहत

justice arun chaudhary of Bombay high court nagpur bench commented over Corruption
अदालत के दरवाजे पर मुकद्दमों की सुनवाई के लिए आवाज लगाने से लेकर अदालत के अंदर बैठे मोहर्रिर और पेशकार तक कौन सा ऐसा कर्मचारी है जो हर व्‍यक्‍ति से रिश्‍वत नहीं वसूलता। फिर चाहे वह वादी हो या प्रतिवादी
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने Corruption के एक मामले में सुनवाई के दौरान कल इस आशय की गंभीर टिप्‍पणी की कि यदि सरकारी तंत्र Corruption को रोकने में असफल है तो लोगों को टैक्‍स अदा न करके असहयोग आंदोलन छेड़ देना चाहिए।
चूंकि जस्टिस अरुण चौधरी ने यह टिप्‍पणी केस की सुनवाई के चलते की थी इसलिए इसे हाईकोर्ट का आदेश तो नहीं माना जा सकता लेकिन यह जरूर माना जा सकता है कि भ्रष्‍टाचार अब ऐसे पद पर बैठे लोगों को भी लाइलाज बीमारी लगने लगा है जो बहुत कुछ करने में सक्षम हैं। जिनका हर शब्‍द ध्‍यान आकृष्‍ट कराता है और हर टिप्‍पणी अहमियत रखती है।
बेशक न्‍यायालय और न्‍यायाधीशों को सरकारी तंत्र में व्‍याप्‍त खामियों पर टिप्‍पणी करने और आदेश-निर्देश देने का पूरा अधिकार है लेकिन क्‍या कोई न्‍यायालय अथवा न्‍यायाधीश ऐसी ही तल्‍ख टिप्‍पणी अपने यहां फैले बेहिसाब भ्रष्‍टाचार को लेकर करने की हिम्‍मत दिखायेगा।
न्‍यायपालिका इस देश के आम नागरिक की अंतिम आशा है। जब लोगों को चारों ओर से निराशा हाथ लगती है तब भी उसे न्‍यायपालिका से उम्‍मीद बंधी रहती है।
ऐसे में यदि न्‍यायपालिका भी उसी भ्रष्‍टाचार की शिकार हो, जिसे लेकर नागपुर बेंच के जस्‍टिस अरुण चौधरी ने एक गंभीर टिप्‍पणी की है तो लोग क्‍या करें और उससे कैसे निपटें।
कौन नहीं जानता कि आज आम आदमी के लिए किसी भी स्‍तर की न्‍यायपालिका से समय रहते फैसले करा पाना कितना मुश्‍किल है। वो भी तब जबकि तमाम विद्वान न्‍यायाधीश यह मान चुके हैं कि देर से किया गया न्‍याय, किसी अन्‍याय से कम नहीं है। ऐसा न्‍याय न केवल अपनी सार्थकता खो चुका होता है बल्‍कि अनेक सवाल भी खड़े करता है।
माना कि जरूरत से ज्‍यादा काम का बोझ, हर दिन बढ़ता जाता फाइलों का ढेर और व्‍यवस्‍थागत खामियों के कारण समय पर निर्णय देना इतना आसान नहीं है किंतु यदि लाइलाज बीमारी का रूप धारण कर चुके चारों ओर व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार पर यदि कोई जस्‍टिस इतनी गंभीर टिप्‍पणी कर सकते हैं तो न्‍याय व्‍यवस्‍था की खामियों पर भी जरूर कर सकते हैं क्‍योंकि उन खामियों को दूर करना भी उसी तंत्र का काम है, किसी दूसरे का नहीं।
यदि बात करें जिला स्‍तरीय निचली अदालतों की तो वहां भी भ्रष्‍टाचार उसी अनुपात में व्‍याप्‍त है जिस अनुपात में दूसरे भ्रष्‍टतम सरकारी विभागों में फैला हुआ है।
अदालत के दरवाजे पर मुकद्दमों की सुनवाई के लिए आवाज लगाने से लेकर अदालत के अंदर बैठे मोहर्रिर और पेशकार तक कौन सा ऐसा कर्मचारी है जो हर व्‍यक्‍ति से रिश्‍वत नहीं वसूलता। फिर चाहे वह वादी हो या प्रतिवादी
क्‍या विद्वान न्‍यायाधीश उस एक कमरे में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार के इस खुले खेल से अनभिज्ञ हैं जिसे अदालत कहा जाता है और जो न्‍याय का मंदिर कहलाता है।
अपने एकदम बगल में बैठकर खुलेआम रिश्‍वत वसूले जाने का इल्‍म क्‍या विद्वान न्‍यायाधीश को नहीं होता, और यदि नहीं होता तो क्‍या उनके न्‍यायाधीश होने की योग्‍यता पर प्रश्‍नचिन्‍ह नहीं लगाता।
यदि अपने बगल में और एक कमरे के अंदर वसूली जा रही रिश्‍वत को न्‍यायाधीश नहीं रोक सकते तो क्‍या उन्‍हें देश में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार पर टिप्‍पणी करने का कोई नैतिक अधिकार रह जाता है। क्‍या ऐसी न्‍याय व्‍यवस्‍था से न्‍याय की उम्‍मीद की जा सकती है जो अपनी नाक के नीचे हो रहे भ्रष्‍टाचार को रोक पाने में असमर्थ है।
अधिकांश न्‍यायाधीश भी निचली अदालतों से प्रमोशन पाकर उच्‍च और उच्‍चतम न्‍यायालयों तक पहुंचते हैं इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि वह निचली अदालतों की भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था से वाकिफ नहीं होते। वह भली-भांति जानते व समझते हैं कि तारीख पर तारीख के खेल का रहस्‍य क्‍या है और कैसे कोई सामर्थ्‍यवान व्‍यक्‍ति किसी मामले को अपने पक्ष में वर्षों-वर्षों तक लटकाये रखने में सफल रहता है।
जिला अदालतों की इस व्‍यवस्‍था से भी शायद ही कोई न्‍यापालिका या न्‍यायाधीश अनभिज्ञ हो जिसके तहत क्‍लैरीकल स्‍टाफ का एक बड़ा हिस्‍सा अवैध रूप से ठेके पर रख लिया जाता है और यह काम कोई अन्‍य नहीं, न्‍यायपालिका के ही कर्मचारी अपनी सुविधा के लिए करते हैं।
यह संभव नहीं है कि अवैध रूप से ठेके पर स्‍टाफ रखने जैसा निर्णय न्‍यायपालिका के द्वितीय श्रेणी कर्मचारी अपने स्‍तर से ले लेते हों, निश्‍चत रूप से इसमें संबंधित न्‍यायाधीशों की मूक सहमति शामिल होती होगी अन्‍यथा आज तक किसी न्‍यायाधीश ने कभी इस पर टिप्‍पणी क्‍यों नहीं की।
आम आदमी से इस बावत यदि कोई न्‍यायाधीश उसकी प्रतिक्रिया पूछने बैठें तो उन्‍हें साफ-साफ पता लग सकता है कि वो क्‍या सोचता है।
अदालत की चारदीवारी से बाहर किसी को भी यह कहते सुना जा सकता है कि यहां की तो ईंट-ईंट पैसा मांगती है…और यह भी कि कर्मचारियों द्वारा अदालत के अंदर उगाहे गए पैसों से ”साहब” की भी किचन का खर्चा चलता है।
जो भी हो, लेकिन इसमें शायद ही किसी की राय भिन्‍न होगी कि अदालतों की ईंट-ईंट पैसा मांगती है और तारीख लेने से लेकर न्‍याय पाने तक के लंबे रास्‍ते में पैसों का ढेर ही अंतत: काम आता है। फिर चाहे यह पैसा वकीलों के माध्‍यम से आता-जाता हो अथवा किसी अन्‍य माध्‍यम से।
ऐसा नहीं है कि समूची न्‍यायपालिकाएं और हर वकील इस व्‍यवस्‍था का हिस्‍सा हों या वो इसे स्‍वेच्‍छा से स्‍वीकार कर रहे हों। न्‍यायाधीशों और अधिवक्‍ताओं का एक हिस्‍सा भी इस व्‍यवस्‍था से बेहद दुखी और परेशान है लेकिन वह संख्‍याबल के सामने मजबूर हैं।
संख्‍याबल का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि आज यदि कोई किसी जिला अदालत में मौजूद कुल न्‍यायाधीशों की संख्‍या में से ईमानदार अधिकारियों का नाम पूछने बैठ जाए तो पता लगेगा कि एक हाथ की कुल चार उंगलियों तक पहुंचना मुश्‍किल हो जायेगा। ज्‍यादातर जिला अदालतों में वर्तमान भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था के हिमायतियों की संख्‍या, ईमानदार अधिकारियों को बहुत पीछे छोड़ देगी। जाहिर है कि ऐसे अधिकारियों से न्‍याय पाने के लिए अधिवक्‍ताओं को भी उन्‍हीं के ढर्रे पर चलना पड़ता है अन्‍यथा न वकालत चलेगी और न वकील। दोनों के लिए काले कोट की पहचान बना पाना असंभव हो जायेगा।
भ्रष्‍टाचार के इस खेल में रही-सही कसर वहां पूरी हो जाती है जहां न्‍यायाधीशों के विशेष अधिकार, उनका विवेक और चुनौतियों से परे उनके कर्तव्‍य आड़े आ जाते हैं। वहां आम आदमी हो या खास, सब बेबस होते हैं।
कहने के लिए पूरी न्‍याय प्रक्रिया वादी और प्रतिवादी के लिए तय नियम-कानूनों से भरी पड़ी है किंतु जब बात आती है न्‍यायाधीशों के विशेष अधिकार की, स्‍व विवेक से निर्णय लेने की तो वहां किसी की नहीं चलती। इन्‍हीं विशेषाधिकारों तथा स्‍व विवेकी निर्णयों में ”बहुत कुछ” निहित है। वो न्‍याय व्‍यवस्‍था भी जिसकी अंतिम आशा प्रत्‍येक वादी-प्रतिवादी को होती तो है किंतु जो उसे हासिल नहीं है।
जहां तक प्रश्‍न Bombay high court की नागपुर बेंच के न्‍यायाधीश अरुण चौधरी की Corruption को लेकर की गई टिप्‍पणी का है तो नि:संदेह उनकी टिप्‍पणी व्‍यवस्‍थागत खामियों की भयावहता को उजागर करती है लेकिन उसमें उनकी निजी भावनाओं का समावेश अधिक है, अपेक्षाकृत वास्‍तविकता के क्‍योंकि वास्‍तव में न आम आदमी टैक्‍स देना बंद कर सकता है और न वर्तमान व्‍यवस्‍थाएं भ्रष्‍टाचार के भस्‍मासुर से निपटने की क्षमता रखती हैं।
हो सकता है तो केवल इतना कि आम आदमी के असहयोग आंदोलन से रही-सही व्‍यवस्‍थाओं पर भी अव्‍यवस्‍थाएं हावी हो जाएं। समाज निरंकुश हो जाए और अराजकता पूरे सिस्‍टम पर हावी हो जाए।
व्‍यवस्‍था से आजिज कोई भी शख्‍स या संस्‍था जब कानून-व्‍यवस्‍था को अपने हाथ में ले लेता है अथवा अपने हिसाब से उसका आंकलन करने लगता है तो उसके गंभीर परिणाम देश व समाज दोनों को भुगतने पड़ते हैं।
बेहतर होगा कि न्‍यायपालिकाएं और न्‍यायाधीश भी भ्रष्‍टाचार जैसी गंभीर समस्‍या को न तो सिर्फ सरकारी तंत्र तक सीमित करके देखें और न सिर्फ टिप्‍पणी करके अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर लें।
यदि वाकई भ्रष्‍टाचार को लेकर वो व्‍यथित हैं और इसे कम करना चाहते हैं तो शुरूआत अपने अधिकार और कर्तव्‍यों से करें।
सरकार का हर तंत्र और तंत्र की छोटी से छोटी इकाई जब तक इसकी शुरूआत अपने यहां से नहीं करेगी, तब तक जस्‍टिस अशोक चौधरी जैसे अधिकारियों की टिप्‍पणियों के कोई मायने नहीं होंगे। कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगेगी, क्‍योंकि एक कड़वा सच यह भी है कि नमक से नमक नहीं खाया जा सकता।
भ्रष्‍टाचार में आकंठ डूबकर भ्रष्‍टाचार मिटाने की बात करना हास्‍यास्‍पद प्रतीत होता है, चाहे वह बात न्‍यायपालिका के स्‍तर से ही क्‍यों न कही गई हो।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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