समाजवादी पार्टी के मुखिया Mulayam singh क्या पार्टी में अब खुद को हाशिए
पर महसूस करने लगे हैं, क्या वो उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, अथवा पार्टी
का राजनीतिक भविष्य उन्हें डराने लगा है?
कभी शेर की तरह दहाड़ने वाले मुलायम सिंह, अब अपनी पूरी ताकत लगाकर दहाड़ते भी हैं तो ऐसा लगता है जैसे बस गुर्रा रहे हैं और गुर्रा कर ही अपनी खीझ मिटा रहे हैं।
मुलायम सिंह की यह स्थिति यूं तो काफी समय से दिखाई दे रही है किंतु हाल ही में उनके द्वारा अखिलेश सरकार के मंत्रियों को दी गई चेतावनी से तो कुछ ऐसा ही साफ जाहिर हो रहा है।
गत दिनों समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर लखनऊ के पार्टी कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान मुलायम सिंह ने कहा कि प्रदेश के कुछ मंत्री सिर्फ पैसा कमाने में लगे हैं।
मंत्रियों के रवैये पर घोर नाराजगी जताते हुए सपा मुखिया ने यहां तक कहा कि पैसा ही कमाना था राजनीति में नहीं आना चाहिए था।
इस मौके पर उन्होंने अपने पुत्र और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी चुगलखोरों से आगाह किया और कहा कि सुनो भले ही सबकी लेकिन निर्णय खुद लो।
उन्होंने यह भी स्वीकारा कि खुद उनके द्वारा कई मंत्रियों को विभिन्न अवसरों पर समझाया गया है लेकिन वह नहीं सुधर रहे।
इससे पहले भी मुलायम सिंह कई मर्तबा कभी अखिलेश को टारगेट करके तो कभी सीधे-सीधे ऐसी बातें कह चुके हैं किंतु प्रदेश सरकार के ढर्रे में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया नतीजतन कानून-व्यवस्था का हाल दिन-प्रतिदिन खराब ही हुआ है।
ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि क्या मुलायम सिंह अब अपने ही कुनबे के सामने इस कदर बेबस हो चुके हैं कि उन्हें अपनी पीड़ा जाहिर करने के लिए किसी न किसी मंच की दरकार होती है, या फिर वह सार्वजनिक मंच को माध्यम बनाकर बताना चाहते हैं कि पार्टी की नैया डूब रही है अगर बचा सको तो बचा लो।
वैसे तो राजनीति के ऊंट की करवट का अंदाज लगाना बड़े-बड़े दिग्गजों को मुश्किल में डाल देता है लेकिन मुलायम सिंह को इस मामले में महारथ हासिल है। मुलायम के फेंके हुए पासे राजनीति के धुरंधरों पर भारी पड़े हैं लेकिन बिहार को लेकर मुलायम सिंह का दांव उल्टा क्या पड़ा, पार्टी और परिवार में ही उनके खिलाफ अंदरखाने बगावती सुर उठने की खबरें हैं।
बताया जाता है कि परिवार ने ही मुलायम सिंह को अब चुका हुआ राजनेता मान लिया है और उनकी सोचने-समझने की शक्ति पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं।
इसका एक उदाहरण विगत माह तब भी देखने को मिला जब मथुरा में पत्रकारों के राष्ट्रीय संगठन IFWJ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का दो दिवसीय अधिवेशन हुआ था।
इस अधिवेशन में सपा सुप्रीमो के भाई और प्रदेश के कद्दावर नेता शिवपाल यादव ने भी बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की थी।
अधिवेशन के दौरान IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. विक्रम राव ने शिवपाल यादव की राजनीतिक सूझ-बूझ को जहां सराहा वहीं बिहार को लेकर मुलायम सिंह यादव द्वारा लिए गए निर्णय पर जमकर निशाना साधा।
के. विक्रम राव के अनुसार शिवपाल यादव बिहार चुनाव में मुलायम सिंह द्वारा महागठबंधन से अलग होने के निर्णय पर अप्रसन्न थे लेकिन मुलायम सिंह ने उनकी बाात नहीं सुनी लिहाजा नतीजा सबके सामने है।
के. विक्रम राव ने देशभर से आये हजारों पत्रकारों के सामने कहा कि यदि मुलायम सिंह ने शिवपाल यादव की बात सुनी होती तो बिहार में आज उनकी और समाजवादी पार्टी की ऐसी दुर्गति नहीं हुई होती।
यहां सवाल यह नहीं है कि IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. विक्रम राव ने शिवपाल यादव की शान में कसीदे क्यों पढ़े, सवाल यह है कि हजारों पत्रकारों के सामने शिवपाल यादव यह सब मुस्कुराते हुए सुनते रहे और जब उनके बोलने की बारी आई तब भी इस विषय पर एक शब्द नहीं बोले।
मौन स्वीकृति का सूचक होता है, यह सर्वमान्य सत्य है। तो क्या शिवपाल यादव यह मानने लगे हैं कि मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक समझ-बूझ अब चुक गई है।
शिवपाल यादव का मौन तो यही कह रहा था।
अखिलेश की कैबिनेट के मंत्रियों पर कर्पूरी ठाकुर के जयंती समारोह में सीधे-सीधे आरोप लगाने वाले मुलायम सिंह यादव यदि उन मंत्रियों को लेकर कोई निर्णय नहीं ले पा रहे तो साफ है कि कहीं न कहीं वह खुद को कमजोर मान रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अब उनकी एक आवाज पर तूफान आने का दौर बीत गया है। अब वह अपने बचे-खुचे खुरों से जमीन खोदकर अपनी मौजूदगी का अहसास तो करा सकते हैं किंतु टकराने का माद्दा नहीं रखते।
जमीन भी इसलिए खोद रहे हैं ताकि इतने बड़े कुनबे में कहीं मान-सम्मान शेष बना रहे वर्ना तो वह भी दांव पर लगते देर नहीं लगेगी।
शायद यही वजह है कि कभी वह रामजन्म भूमि के लिए आंदोलनरत रामभक्तों पर गोलियां चलवाने का प्रायश्चित करते प्रतीत होते हैं तो कभी अखिलेश के मंत्रियों की धनलोलुपता पर खीझ निकालते हैं। कभी कहते हैं कि राजनीति, व्यापार नहीं है और कभी बताते हैं कि उन्होंने तो जनता से ही पैसे मांगकर चुनाव लड़ा था।
कुल जमा ऐसा लगता है कि वह अपने ही परिवार में पनप चुकी दौलत और शौहरत की भूख पर लगाम लगाना चाहते हैं किंतु परिवार है कि पूरी तरह बेलगाम हो चुका है।
मुलायम सिंह पर बेशक उम्र का प्रभाव पड़ रहा हो, भले ही उनकी समझ-बूझ पर उंगली उठाई जाने लगी हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनमें भविष्य को बांचने की समझ नए जमाने के नेताओं से कहीं अधिक है।
हो सकता है कि मुलायम सिंह आज अपने ही परिवार के फ्रेम में पूरी तरह फिट न बैठ पा रहे हों परंतु समाजवादी कुनबे का राजनीतिक भविष्य हमेशा उनकी तस्वीर का मोहताज रहेगा और जिस दिन उनकी तस्वीर को किसी कोने में टांग कर काम चलाने की कोशिश की गई, उस दिन पार्टी का ही काम तमाम हो जायेगा क्योंकि समाजवादी पार्टी में फिलहाल मुलायम सिंह यादव का स्थान लेने की योग्यता किसी के अंदर नजर नहीं आती…फिलहाल ही क्यों, दूर-दूर तक नजर नहीं आती।
-लीजेंड न्यूज़
कभी शेर की तरह दहाड़ने वाले मुलायम सिंह, अब अपनी पूरी ताकत लगाकर दहाड़ते भी हैं तो ऐसा लगता है जैसे बस गुर्रा रहे हैं और गुर्रा कर ही अपनी खीझ मिटा रहे हैं।
मुलायम सिंह की यह स्थिति यूं तो काफी समय से दिखाई दे रही है किंतु हाल ही में उनके द्वारा अखिलेश सरकार के मंत्रियों को दी गई चेतावनी से तो कुछ ऐसा ही साफ जाहिर हो रहा है।
गत दिनों समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर लखनऊ के पार्टी कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान मुलायम सिंह ने कहा कि प्रदेश के कुछ मंत्री सिर्फ पैसा कमाने में लगे हैं।
मंत्रियों के रवैये पर घोर नाराजगी जताते हुए सपा मुखिया ने यहां तक कहा कि पैसा ही कमाना था राजनीति में नहीं आना चाहिए था।
इस मौके पर उन्होंने अपने पुत्र और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी चुगलखोरों से आगाह किया और कहा कि सुनो भले ही सबकी लेकिन निर्णय खुद लो।
उन्होंने यह भी स्वीकारा कि खुद उनके द्वारा कई मंत्रियों को विभिन्न अवसरों पर समझाया गया है लेकिन वह नहीं सुधर रहे।
इससे पहले भी मुलायम सिंह कई मर्तबा कभी अखिलेश को टारगेट करके तो कभी सीधे-सीधे ऐसी बातें कह चुके हैं किंतु प्रदेश सरकार के ढर्रे में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया नतीजतन कानून-व्यवस्था का हाल दिन-प्रतिदिन खराब ही हुआ है।
ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि क्या मुलायम सिंह अब अपने ही कुनबे के सामने इस कदर बेबस हो चुके हैं कि उन्हें अपनी पीड़ा जाहिर करने के लिए किसी न किसी मंच की दरकार होती है, या फिर वह सार्वजनिक मंच को माध्यम बनाकर बताना चाहते हैं कि पार्टी की नैया डूब रही है अगर बचा सको तो बचा लो।
वैसे तो राजनीति के ऊंट की करवट का अंदाज लगाना बड़े-बड़े दिग्गजों को मुश्किल में डाल देता है लेकिन मुलायम सिंह को इस मामले में महारथ हासिल है। मुलायम के फेंके हुए पासे राजनीति के धुरंधरों पर भारी पड़े हैं लेकिन बिहार को लेकर मुलायम सिंह का दांव उल्टा क्या पड़ा, पार्टी और परिवार में ही उनके खिलाफ अंदरखाने बगावती सुर उठने की खबरें हैं।
बताया जाता है कि परिवार ने ही मुलायम सिंह को अब चुका हुआ राजनेता मान लिया है और उनकी सोचने-समझने की शक्ति पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं।
इसका एक उदाहरण विगत माह तब भी देखने को मिला जब मथुरा में पत्रकारों के राष्ट्रीय संगठन IFWJ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का दो दिवसीय अधिवेशन हुआ था।
इस अधिवेशन में सपा सुप्रीमो के भाई और प्रदेश के कद्दावर नेता शिवपाल यादव ने भी बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की थी।
अधिवेशन के दौरान IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. विक्रम राव ने शिवपाल यादव की राजनीतिक सूझ-बूझ को जहां सराहा वहीं बिहार को लेकर मुलायम सिंह यादव द्वारा लिए गए निर्णय पर जमकर निशाना साधा।
के. विक्रम राव के अनुसार शिवपाल यादव बिहार चुनाव में मुलायम सिंह द्वारा महागठबंधन से अलग होने के निर्णय पर अप्रसन्न थे लेकिन मुलायम सिंह ने उनकी बाात नहीं सुनी लिहाजा नतीजा सबके सामने है।
के. विक्रम राव ने देशभर से आये हजारों पत्रकारों के सामने कहा कि यदि मुलायम सिंह ने शिवपाल यादव की बात सुनी होती तो बिहार में आज उनकी और समाजवादी पार्टी की ऐसी दुर्गति नहीं हुई होती।
यहां सवाल यह नहीं है कि IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. विक्रम राव ने शिवपाल यादव की शान में कसीदे क्यों पढ़े, सवाल यह है कि हजारों पत्रकारों के सामने शिवपाल यादव यह सब मुस्कुराते हुए सुनते रहे और जब उनके बोलने की बारी आई तब भी इस विषय पर एक शब्द नहीं बोले।
मौन स्वीकृति का सूचक होता है, यह सर्वमान्य सत्य है। तो क्या शिवपाल यादव यह मानने लगे हैं कि मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक समझ-बूझ अब चुक गई है।
शिवपाल यादव का मौन तो यही कह रहा था।
अखिलेश की कैबिनेट के मंत्रियों पर कर्पूरी ठाकुर के जयंती समारोह में सीधे-सीधे आरोप लगाने वाले मुलायम सिंह यादव यदि उन मंत्रियों को लेकर कोई निर्णय नहीं ले पा रहे तो साफ है कि कहीं न कहीं वह खुद को कमजोर मान रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अब उनकी एक आवाज पर तूफान आने का दौर बीत गया है। अब वह अपने बचे-खुचे खुरों से जमीन खोदकर अपनी मौजूदगी का अहसास तो करा सकते हैं किंतु टकराने का माद्दा नहीं रखते।
जमीन भी इसलिए खोद रहे हैं ताकि इतने बड़े कुनबे में कहीं मान-सम्मान शेष बना रहे वर्ना तो वह भी दांव पर लगते देर नहीं लगेगी।
शायद यही वजह है कि कभी वह रामजन्म भूमि के लिए आंदोलनरत रामभक्तों पर गोलियां चलवाने का प्रायश्चित करते प्रतीत होते हैं तो कभी अखिलेश के मंत्रियों की धनलोलुपता पर खीझ निकालते हैं। कभी कहते हैं कि राजनीति, व्यापार नहीं है और कभी बताते हैं कि उन्होंने तो जनता से ही पैसे मांगकर चुनाव लड़ा था।
कुल जमा ऐसा लगता है कि वह अपने ही परिवार में पनप चुकी दौलत और शौहरत की भूख पर लगाम लगाना चाहते हैं किंतु परिवार है कि पूरी तरह बेलगाम हो चुका है।
मुलायम सिंह पर बेशक उम्र का प्रभाव पड़ रहा हो, भले ही उनकी समझ-बूझ पर उंगली उठाई जाने लगी हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनमें भविष्य को बांचने की समझ नए जमाने के नेताओं से कहीं अधिक है।
हो सकता है कि मुलायम सिंह आज अपने ही परिवार के फ्रेम में पूरी तरह फिट न बैठ पा रहे हों परंतु समाजवादी कुनबे का राजनीतिक भविष्य हमेशा उनकी तस्वीर का मोहताज रहेगा और जिस दिन उनकी तस्वीर को किसी कोने में टांग कर काम चलाने की कोशिश की गई, उस दिन पार्टी का ही काम तमाम हो जायेगा क्योंकि समाजवादी पार्टी में फिलहाल मुलायम सिंह यादव का स्थान लेने की योग्यता किसी के अंदर नजर नहीं आती…फिलहाल ही क्यों, दूर-दूर तक नजर नहीं आती।
-लीजेंड न्यूज़