शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

गुलाम' ही हैं हम अब भी, और गुलाम ही रहेंगे..

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष) 
आज की शुरूआत एक कहानी से करते हैं। कहानी कुछ यूं है- रास्‍ते से गुजरते किसी व्‍यक्‍ति को एक ही स्‍थान पर हाथियों का झुण्‍ड दिखाई दिया। उत्‍सुकतावश वह रुक गया तो उसने देखा कि सारे हाथी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पेड़ों के किनारे खड़े हैं। गौर करने पर पता लगा कि हर हाथी का एक-एक पैर उस रस्‍सी से बंधा है जो रस्‍सी पेड़ से बंधी है।
राहगीर ने इधर-उधर नजरें घुमाईं तो उसे एक व्‍यक्‍ति भी दिखाई दिया। यह व्‍यक्‍ति इन हाथियों का महावत था।
राहगीर ने महावत से पूछा- क्‍यों भाई! ये इतना बलशाली जीव जो चाहे तो एक झटके में पेड़ को उखाड़ दे, एक मामूली रस्‍सी से कैसे बंधा है ?
इस पर महावत का जवाब था- मैं इन हाथियों की देखभाल इनके बचपन से कर रहा हूं। तब मैं इनकी उम्र को देखकर इनके एक-एक पैर में रस्‍सी बांध दिया करता था और ये उसी से बंधे रहते थे।
अब बेशक ये बड़े हो चुके हैं और इनमें अपार ताकत है लेकिन एक रस्‍सी से बंधे रहने की इनकी सोच नहीं बदली।
ये अब भी यही सोचते हैं कि इस रस्‍सी को तोड़ना इनके वश की बात नहीं। सच तो यह है कि यह रस्‍सी या पेड़ से नहीं, अपनी सोच से बंधे हैं।
अब न तो ये आजाद होने की कोशिश करते हैं और ना ही बंधनमुक्‍त होना चाहते हैं।
इन्‍होंने अपने जीवन को एक मामूली सी रस्‍सी के हवाले कर दिया है
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