बुधवार, 17 दिसंबर 2014

किशनी से लेकर कृष्‍ण के धाम तक...

आगरा से प्रकाशित दैनिक जागरण अखबार के सातवें पृष्‍ठ पर बॉटम में एक खबर छपी है। इस सिंगल कॉलम खबर का शीर्षक है- दुष्‍कर्म के बाद मुकद्दमे का इंतजार, थाने में बैठी किशोरी।
खबर के अनुसार विधवा और गूंगी-बहरी अपनी मां के साथ किशनी थाना क्षेत्र के गांव ढकरोई में रह रही एक पंद्रह वर्षीय किशोरी को गांव के ही 45 वर्षीय सरविंद उर्फ पुलंदर बाथम ने तब अपनी हवस का शिकार बना डाला जब वह शौच के लिए खेत पर गई थी।
मंगलवार सुबह 7 बजे की गई इस वारदात का मुकद्दमा लिखाने थाने पहुंची किशोरी के प्रार्थना पत्र पर पुलिस ने जांच के आदेश दे दिये लेकिन मुकद्दमा दर्ज नहीं किया। मुकद्दमा दर्ज होने के इंतजार में पीड़िता देर शाम तक थाने पर ही बैठी थी।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि कस्‍बा किशनी, मैनपुरी जिले का हिस्‍सा है और वहां से सांसद हैं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव। वही तेज प्रताप सिंह यादव जिनका रिश्‍ता कल ही राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव की पुत्री राजलक्ष्‍मी के साथ तय हुआ है।
समाजवादी कुनबे के सबसे लाड़ले सदस्‍य की कांस्‍टीट्यूएन्‍सी में पुलिस का यह हाल है तो जाहिर है कि सूबे के अन्‍य जनपदों की पुलिस का इससे अलग कुछ होने से रहा।
फिर कृष्‍ण की नगरी मथुरा में तो समाजवादी पार्टी बदहाल है। यहां से न उसका कोई सांसद है और न विधायक। लाख प्रयास के बावजूद मुलायम के नेतृत्‍व वाला समाजवादी कुनबा यहां अपना खाता तक खोल पाने में कभी सफल नहीं हुआ।
समाजवादी पार्टी के लिए ऐसे सूखाग्रस्‍त क्षेत्र में यदि एमबीए की छात्रा से बलात्‍कार की वारदात का मुकद्दमा तीन दिन तक जांच कराने के बाद लिखा गया, तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई।
ऊपर से यहां तो लड़की जिस व्‍यक्‍ति के खिलाफ बलात्‍कार के आरोप की तहरीर लेकर गई थी, वह तमाम तमगों से विभूषित था।
वह उत्‍तर प्रदेश जर्नलिस्‍ट एसोसिएशन का प्रदेश उपाध्‍यक्ष, ब्रज प्रेस क्‍लब का अध्‍यक्ष, स्‍थानीय छावनी परिषद् का पूर्व उपाध्‍यक्ष होने के साथ-साथ पत्रकार था... वकील था... और पता नहीं क्‍या-क्‍या था। साथ में बसपा की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुका था।
मथुरा की महिला एसएसपी मंजिल सैनी स्‍वयं उसके निजी कार्यक्रम का हिस्‍सा बनने उसके निवास तक पहुंच चुकी थीं।
उसे समाज के तमाम सफेदपोश सभ्रांत उद्योगपति, व्‍यापारी, नेता, बिल्‍डर, ब्‍यूरोक्रेट्स और पत्रकारों से न केवल चरित्र प्रमाण पत्र प्राप्‍त था बल्‍कि वह उसके दरबार की शोभा बढ़ाया करते थे। उसके यहां हर दिन हाजिरी लगाना बहुत से तथाकथित सभ्रांतजनों का शगल था।
कृष्‍ण का धाम जिन नेताओं के कारण समाजवादी पार्टी की पहचान बना हुआ है, वह भी बलात्‍कार के आरोपी की खुलेआम पैरवी कर रहे थे और एसएसपी से मुलाकात करके बता रहे थे कि पत्रकार को साजिश का शिकार बनाया जा रहा है।
दूसरी पार्टियों का भी कोई नेता उसके खिलाफ मुंह खोलने की जुर्रत नहीं कर सकता था क्‍योंकि सब आये दिन उसके लिए राग दरबारी का गायन करते रहे थे। अधिकांश पत्रकार तो हर दिन उसकी चौखट चूमने ऐसे जाया करते थे जैसे द्वारिकाधीश मंदिर की मंगला या शयन आरती करने बहुत से उनके भक्‍त बेनागा जाते हैं।
इन हालातों में मंजिल सैनी यदि बलात्‍कार के आरोपी को लेकर किसी मंजिल तक फिलहाल नहीं पहुंच पाईं हैं, तो उन्‍हें दोष देना भी किसी साजिश का हिस्‍सा लगता है। एफआईआर तो कोई भी किसी के खिलाफ लिखा सकता है।
मंजिल सैनी ने तो उसके बाद बहुत कुछ करवा दिया। कई दिन बाद ही सही लेकिन पीड़िता का मेडीकल कराया, 161 के बयान कराये, उससे पहले खुद उससे सफाई मांगी, उसके अगले दिन कोर्ट में 164  के बयान कराये।
बाकी रह गई गिरफ्तारी...तो वह होती रहेगी। तब तक आरोपी को पीड़िता और उसके परिजनों से जबरन सुलह-सफाई कराने का अवसर देने में क्‍या हर्ज है।
इसके लिए पीड़िता के परिजनों पर एक नहीं, दो-दो मुकद्दमे कायम किये गये। सुलह-सफाई के लिए वो उपलब्‍ध रहें इसलिए गिरफ्तारी उनकी भी नहीं की गई।
एसएसपी महोदया भी आखिर हैं तो सामाजिक प्राणी, वह भी समाज का हिस्‍सा हैं और इसीलिए मानती हैं कि जो काम समाज के तथाकथित ही सही पर सभ्रांत तत्‍वों द्वारा समझौता करके संपन्‍न करा लिया जाता है, वह कानून नहीं कर पाता।
समझौते के लिए समय की दरकार होती है, इसलिए समय अफरात में दिया जा रहा है। यूं भी उनके पास समय की कमी होती तो वह निजी कार्यक्रमों का हिस्‍सा बनने नहीं जातीं।
रहा सवाल ''आजतक'' जैसे राष्‍ट्रीय चैनल का... तो उसने अपने कार्यक्रम ''वारदात'' में 'कानून का रेप' जैसे शीर्षक वाली सनसनीखेज रिपोर्टिंग करके क्‍या कर लिया। एसएसपी महोदया को न गिरफ्तारी करनी थी, न की।
करें भी क्‍यों...जब किशनी से लेकर कृष्‍ण के धाम तक समाजवादी पुलिस का रवैया आम आरोपियों के लिए एक समान है तो खास आरोपियों के साथ खास व्‍यवहार करना कैसे गुनाह हो सकता है।
मथुरा में बलात्‍कार की शिकार लड़की के 3 तारीख के प्रार्थना पत्र पर 6 तारीख को मुकद्दमा दर्ज करा दिया, 11 तारीख को 161 के बयान तथा मेडीकल करवा दिया, 12 तारीख को 164 के बयान कराकर अपना कर्तव्‍य पूरा कर दिया। उसी दिन पीड़िता के बयानों की कोर्ट से नकल लेने के लिए एप्‍लीकेशन डाल दी। 15 तारीख को नकल हासिल कर ली।
इतना कुछ कर डाला सिवाय एक गिरफ्तारी के, तो इसमें इतनी हायतौबा मचाने वाली क्‍या बात है।
जब लड़की करीब डेढ़ साल तक यौन उत्‍पीड़न सहने के बाद एफआईआर करा सकती है तो पुलिस उसकी जांच के लिए साल-छ: महीने का समय नहीं ले सकती। इसमें गलत क्‍या है।
और फिर बिना जांच के ऐसे कैसे किसी सभ्रांत पत्रकार को गिरफ्तार किया जा सकता है। जांच होती किसलिए है। जांच में कोई आंच आरोपी पर नहीं आई तो पुलिस किसे मुंह दिखायेगी।
तभी तो कृष्‍ण का धाम हो या तेजू भैया की किशनी...बिना जांच के रेप जैसे संगीन आरोप की एफआईआर दर्ज नहीं की जाती।
एक जांच एफआईआर से पहले और एक जांच एफआईआर के बाद...यही है सच्‍चा समाजवाद और इसी को कहते हैं समाजवादी सरकार का इकबाल।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष
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