संभवत: पहली बार भगवान कृष्ण की पावन जन्मस्थली और क्रीड़ा स्थली मथुरा-वृंदावन का माफिया डालमिया बगीचे पर जल्द से जल्द काबिज होने के चक्कर में सैकड़ों हरे पेड़ों को काटकर अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंसता दिखाई दे रहा है। हालांकि अभी तक माफिया के हौसले पूरी तरह बुलंद हैं, इसलिए वो इस आशय का दावा भी कर रहा है कि जब तक मीडिया शोर मचा रहा है तब तक की परेशानी है। उसके बाद थोड़ा और पैसा फेंककर सारा मामला रफा-दफा करा लिया जाएगा। किंतु इस बार उसका यह जुमला उसी के ऊपर भारी पड़ सकता है, जिसके कुछ ठोस कारण हैं।
सबसे पहले बात आरोपी शंकर सेठ को मिली अंतरिम जमानत पर
दरअसल, डालमिया बगीचे के सैकड़ों हरे पेड़ों को रातों-रात काटने पर जब हंगामा खड़ा हुआ तो वन विभाग, विकास प्राधिकरण और बिजली विभाग ने अपने-अपने बचाव या कहें कि पेशबंदी में तीन अलग-अलग FIR बड़ी चालाकी एवं शातिराना तरीके से दर्ज करवा दीं।
चूंकि सैकड़ों हरे पेड़ों के कत्ल की प्रथम दृष्टया और बड़ी जिम्मदारी वन विभाग की होती है इसलिए मथुरा (जैत रेंज) के क्षेत्रीय वन अधिकारी अतुल तिवारी ने 19 सितंबर की रात करीब साढ़े नौ बजे भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 29, 33, 41, 42 तथा 51 के तहत एक FIR दर्ज कराई जिसमें 300 पेड़ों को काटे जाने का जिक्र करते हुए मैसर्स डालमिया एंड संस निवासी 10/04 लाला लाजपतराय सरानी कोलकाता, नारायण प्रसाद डालमिया पुत्र रघुनंदन प्रसाद डालिमया निवासी उपरोक्त, श्रीचंद धानुका पुत्र शंकर लाल धानुका निवासी 14 लोडन स्ट्रीट कोलकाता, श्रीमती अरुणा धानुका निवासी उपरोक्त तथा मृगांक धानुका निवासी उपरोक्त का नाम तो दिया लेकिन पेड़ कटवाने वाले किसी स्थानीय व्यक्ति का नाम नहीं लिखा।
इसी प्रकार न तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने और न बिजली विभाग ने अपनी-अपनी प्राथमिकी में मौके पर किसी की मौजूदगी दिखाई तथा न गंभीर धाराओं में FIR दर्ज कराई।
ऐसे में बिना जांच किए शंकर सेठ की गिरफ्तारी का कोई औचित्य बनता ही नहीं था और इसीलिए उसे चंद घंटों के अंदर कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई। कोर्ट में शंकर सेठ के वकीलों ने यही दलील दी कि उसका कहीं कोई न नाम है, न भूमिका इसलिए उसे दबाव में अरेस्ट किया गया है।
यूं भी शंकर सेठ को जमानत मिल ही जानी थी क्योंकि प्रस्तावित गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के अब तक अदृश्य हिस्सेदारों में शहर के वो लोग शामिल बताए जाते हैं जो संगीन से संगीन अपराधों में खड़े-खड़े जमानत दिलाने का माद्दा रखते हैं।
मथुरा जनपद की बात छोड़िए प्रदेश में वो तमाम न्यायाधीशों पर अच्छी पकड़ रखने तथा न्यापालिका में ऊपर तक लाइजनिंग के लिए पहचाने जाते हैं।
बस यहीं फंसेंगे शंकर सेठ और डालिमया बगीचे के कथित हिस्सेदार
पूरी सांठगांठ और प्लानिंग के साथ डालमिया बगीचे पर काबिज होने के लिए सैकड़ों पेड़ काटने के इस खेल में शामिल माफिया ये भूल रहे हैं कि वन विभाग की तहरीर एवं प्रस्तावित गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी का कथित नक्शा अब कई सवाल खड़े कर रहा है।
जैसे, आज नहीं तो कल या जब कभी वन विभाग द्वारा नामजद कराए गए डालमिया परिवार के सदस्य अपनी जमानत कराने कोर्ट जाएंगे तो उन्हें यह बताना होगा कि उन्होंने अपने बगीचे का सौदा किससे किया?
बगीचे पर काबिज होने की इजाजत किसे दी तथा क्यों दी गई, और गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी का नक्शा क्या उनकी सहमति से बनवाया गया। सहमति दी गई तो उसका आधार क्या है?
अपने बचाव में इन प्रश्नों के जवाब डालमिया परिवार ने दे दिए तो तय है कि कई ऐसे सफेदपोश माफिया एक्सपोज हो जाएंगे जिन्होंने अपने चेहरों पर कई-कई मास्क लगा रखे हैं और जो आड़ के लिए दूसरे उद्योग-धंधों एवं कारोबारों में उतर कर अपनी अलग-अलग पहचान बना चुके हैं। नई पीढ़ी तो आज उनकी इसी पहचान की कायल है।
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि जिस प्रस्तावित गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के नक्शे का हवाला वन विभाग ने अपनी तहरीर में दिया है, उसे लेकर प्रमोटर यह प्रचारित करते रहे हैं कि उन्होंने उसे पास कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, नक्शा पास करने का आवेदन किया जा चुका है। लेकिन विकास प्राधिकरण इससे पूरी तरह पल्ला झाड़ रहा है। विकास प्राधिकरण की मानें तो उसे अभी गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के नाम से किसी नक्शे को पास कराने का कोई आवेदन नहीं मिला। ऑनलाइन भी इसके लिए आवेदन नहीं किया गया।
अगर विकास प्राधिकरण के दावे में दम है तो सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि क्या फिर ये सारी साजिश अपने ही साथियों को ठगने, निवेशकों को गुमराह करके उनसे पैसा ऐंठने तथा अधिक से अधिक रकम डकारने के लिए की गई?
बताया जाता है कि मथुरा-वृंदावन का माफिया, डालमिया परिवार से जितने पैसे में बगीचे का सौदा करके लाया है उससे तीन गुना रकम उसने अब तक अपने इन्हीं हथकंडों से हथिया भी ली है।
एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है ये मामला
दरअसल, इस खेल में शामिल माफिया को इस बात का अंदाज नहीं था कि पेड़ काटने का यह मामला उनके पूरे खेल को बिगाड़ देगा और बात एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाएगी।
देर-सवेर जब इसकी सुनवाई होगी तो पूरी संभावना है कि कोई बड़ा निर्णय आ जाए। जाहिर है कि उस स्थिति में पूरा प्रोजेक्ट तो खटाई में पड़ेगा ही, साथ ही निवेशकों एवं साइलेंट साझेदारों का पैसे की वापसी के लिए दबाव भी बढ़ेगा।
हो सकता है कि कुछ समय तक साइलेंट पार्टनर और निवेशक सब काम पैसों के बल से करा लेने के उनके दावे पर भरोसा भी कर लें किंतु समय बीतने के साथ रिश्ते तो बिगडेंगे ही, रंजिश भी पनपेगी।
भविष्य में इसका अंजाम आशंका से अधिक घातक हो सकता है क्योंकि जिनके लिए पैसा ही माई-बाप हो, उनका किसी भी हद तक चले जाना आश्चर्यजनक नहीं होगा।
एक सवाल इस रिश्ते पर भी...
नेता नगरी में जब किसी को लेकर इस तरह के सवाल उछलते हैं तो बड़ी आसानी से कह दिया जाता है कि सार्वजनिक जीवन में कितने ही लोग साथ फोटो खिंचवा लेते हैं। ये बात और है कि यहां शंकर सेठ बाकायदा केंद्रीय राज्य मंत्री बीएल वर्मा को तस्वीर भेंट कर रहे हैं और उनके साथ भाजपा महानगर मथुरा के अध्यक्ष घनश्याम लोधी एवं भाजपा नेता प्रदीप गोस्वामी भी खड़े हैं।
स्पष्ट है कि ये मामला यूं ही आकर 'किसी के द्वारा' तस्वीर खिंचवा लेने तक सीमित नहीं है। हो सकता है कि केंद्रीय मंत्री इसके पीछे छिपी मंशा से अवगत न हों किंतु स्थानीय भाजपा नेता यह नहीं कह सकते।
डीएम, एसएसपी और नगर आयुक्त को भेंट के मायने?
कौन नहीं जानता कि जिले के इन आला अधिकारियों से एक अदद मुलाकात की आस में हर रोज जाने कितने लोग इनकी चौखट पर दस्तक देते हैं, लेकिन बहुत कम ऐसे भाग्यशाली होते हैं जिनकी इनसे मुलाकात होती है। अनेक लोग तो चक्कर लगा-लगाकर हार जाते हैं।
ऐसा न होता तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 'जनता दर्शन' के नाम पर फरियादियों की भीड़ से हर बार सामना क्यों करना पड़ता।
बहरहाल... जिले के आला अधिकारी विशेष परिस्थितियों में सम्मानित होने के हकदार हैं, लेकिन उनके लिए यह देखना जरूरी है कि सम्मानित करने वाले की सामाजिक छवि और मंशा क्या है।
जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि बात निकली है तो दूर तक जाएगी ही। अभी बहुत सी परतें खुलनी बाकी हैं और बहुत से राज सामने आने हैं।
डालमिया बाग पर कब्जे के लिए काटे गए सैकड़ों हरे वृक्षों का पर्यावरणीय महत्व तो है ही, आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व भी है इसलिए जिन्होंने भी यह पाप कर्म किया है और जितने लोगों की इसमें मौन स्वीकृति रही है, उन्हें इसके दुष्परिणाम जरूर भुगतने होंगे। वो चाहे किसी स्तर से भुगतने पड़ें।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी