-रातों-रात सड़क पर आ गए सैकड़ों पत्रकार और कर्मचारी -चार महीने से ग्रुप ने नहीं दिया पत्रकारों व कर्मचारियों को वेतन-ग्रुप पर 6 हजार करोड़ की देनदारी-सरकार और सेबी ने भी कस रखा है शिकंजा -चुरमुरा ऑफिस भी पूरी तरह कर्ज में डूबा
मथुरा से प्रकाशित सुबह का एकमात्र अखबार कल्पतरू एक्सप्रेस आखिर बंद हो गया। पिछले चार दिनों से उसका प्रकाशन बंद है।
अगस्त 2010 में शुरू हुआ दैनिक कल्पतरू एक्सप्रेस मथुरा के कस्बा फरह स्थित चुरमुरा से प्रकाशित होता था लेकिन मात्र पांच साल में अखबार का प्रकाशन बंद हो जाने के कारण उसमें कार्यरत सैकड़ों कर्मचारी सड़क पर आ गए क्योंकि अखबार के मालिकानों ने कर्मचारियों को अखबार बंद किये जाने की कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी।
बताया जाता है कि कल्पतरू ग्रुप के प्रकाशन दैनिक कल्पतरू एक्सप्रेस के मालिकानों ने पिछले जून महीने से अखबार के कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया है किंतु कर्मचारी यह उम्मीद पाले बैठे थे कि देर-सवेर उन्हें उनका वेतन दे दिया जायेगा।
अखबार से जुड़े सूत्रों की मानें तो अखबार का लखनऊ संस्करण अब भी प्रकाशित हो रहा है जो एक प्रमुख दैनिक अखबार की प्रेस में छपवाया जाता है जबकि मथुरा के चुरमुरा में अखबार की अपनी प्रेस है।
चुरमुरा से प्रकाशित कल्पतरू एक्सप्रेस मथुरा जनपद के अलावा महानगर आगरा, अलीगढ़, हाथरस, इटावा, औरैया तथा कासगंज आदि तक प्रसारित किया जाता था और इन सभी जिलों में कल्पतरू के ब्यूरो ऑफिस थे किंतु अखबार बंद होने के बाद उन पर भी ताला लगने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
सबसे बड़ी समस्या इन सभी जिलों में मिलाकर काम करने वाले उन सैकड़ों पत्रकारों तथा अन्य दूसरे कर्मचारियों के सामने खड़ी हो गई है जो रातों-रात बेरोजगार हो गए और वो भी उस स्थिति में जब पिछले चार महीने से उन्हें वेतन नहीं मिला था।
बताया जाता है मुख्य रूप से चिटफंड कंपनी संचालित करने वाले कल्पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्ण सिंह राणा को अपना जहाज डूबने का अंदेशा तभी हो गया था जब अगस्त 2010 में उसने कल्पतरू एक्सप्रेस के नाम से सुबह का अखबार निकालना शुरू किया था।
दरअसल, जयकृष्ण सिंह राणा ने अखबार की शुरूआत ही अपनी चिटफंड कंपनी तथा खुद को सरकार व सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) की वक्रदृष्टि से बचाये रखने के लिए की थी और वह पांच साल तक उसमें सफल भी रहे किंतु अखबार निकालने का कोई अनुभव न होने तथा चाटुकार व अनुभवहीन लोगों की फौज के हाथ में ही अखबार की कमान सौंप देने के कारण अखबार की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती गई।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज की तारीख में कल्पतुरू ग्रुप पर कुल मिलाकर करीब 6 हजार करोड़ रुपयों की देनदारी है जिसे चुका पाना ग्रुप के लिए संभव नहीं है, हालांकि उसने काफी पैसा जमीन-जायदाद में निवेश कर रखा है किंतु अधिकांश जमीन-जायदादों पर विभिन्न फाइनेंस कंपनियों एवं बैंकों का कर्ज है।
मथुरा के फरह में चुरमुरा स्थित जिस भूखंड तथा इमारत से अखबार का प्रकाशन होता था, वह समूची जायदाद भी कर्ज में डूबी हुई है और बैंकों ने उसकी रिकवरी के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
यह भी पता लगा है कि अखबार के अलावा कल्पतरू मोटल्स लिमिटेड नामक कल्पतरू ग्रुप की दूसरी कंपनी भी खस्ताहाल हो चुकी है और उसके कर्मचारियों को भी समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा।
कल्पतरू ग्रुप के व्यवहार से क्षुब्ध उसके बहुत से कर्मचारी तो अब कानूनी कार्यवाही करने की तैयारी करने लगे हैं क्योंकि उन्हें किसी स्तर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा रहा।
”लीजेंड न्यूज़” ने भी इन सभी मामलों में कल्पतरू ग्रुप का पक्ष जानने की काफी कोशिशें कीं किंतु कोई व्यक्ति ग्रुप का पक्ष रखने के लिए सामने नहीं आया।
ग्रुप से जुड़े अधिकारी और कर्मचारियों का यहां तक कहना है कि यही हाल रहा तो ग्रुप के मुखिया तथा निदेशकों का हाल सहाराश्री के मुखिया सुब्रत राय सहारा जैसा होने की प्रबल संभावना है।
उनका कहना है कि जब अकूत संपत्ति के मालिक सहाराश्री सुब्रत राय एक लंबे समय से जेल की सलाखों के पीछे होने के बावजूद 10 हजार करोड़ रुपए सुप्रीम कोर्ट में जमा नहीं करा पा रहे तो कल्पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्ण सिंह राणा 6 हजार करोड़ रुपए कैसे चुका पायेंगे।
जाहिर है कि ऐसे में उनका भी हश्र सहाराश्री जैसा होने की पूरी संभावना है लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनके साथ सैकड़ों वो कर्मचारी भी बर्बादी के कगार पर जा पहुंचे हैं जिनका कोई दोष नहीं है और जो सिर्फ और सिर्फ अपनी जॉब के लिए उनके कारनामों की ओर से आंखें बंद करके अपनी ड्यूटी को अंजाम देते रहे।
-लीजेंड न्यूज़
मथुरा से प्रकाशित सुबह का एकमात्र अखबार कल्पतरू एक्सप्रेस आखिर बंद हो गया। पिछले चार दिनों से उसका प्रकाशन बंद है।
अगस्त 2010 में शुरू हुआ दैनिक कल्पतरू एक्सप्रेस मथुरा के कस्बा फरह स्थित चुरमुरा से प्रकाशित होता था लेकिन मात्र पांच साल में अखबार का प्रकाशन बंद हो जाने के कारण उसमें कार्यरत सैकड़ों कर्मचारी सड़क पर आ गए क्योंकि अखबार के मालिकानों ने कर्मचारियों को अखबार बंद किये जाने की कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी।
बताया जाता है कि कल्पतरू ग्रुप के प्रकाशन दैनिक कल्पतरू एक्सप्रेस के मालिकानों ने पिछले जून महीने से अखबार के कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया है किंतु कर्मचारी यह उम्मीद पाले बैठे थे कि देर-सवेर उन्हें उनका वेतन दे दिया जायेगा।
अखबार से जुड़े सूत्रों की मानें तो अखबार का लखनऊ संस्करण अब भी प्रकाशित हो रहा है जो एक प्रमुख दैनिक अखबार की प्रेस में छपवाया जाता है जबकि मथुरा के चुरमुरा में अखबार की अपनी प्रेस है।
चुरमुरा से प्रकाशित कल्पतरू एक्सप्रेस मथुरा जनपद के अलावा महानगर आगरा, अलीगढ़, हाथरस, इटावा, औरैया तथा कासगंज आदि तक प्रसारित किया जाता था और इन सभी जिलों में कल्पतरू के ब्यूरो ऑफिस थे किंतु अखबार बंद होने के बाद उन पर भी ताला लगने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
सबसे बड़ी समस्या इन सभी जिलों में मिलाकर काम करने वाले उन सैकड़ों पत्रकारों तथा अन्य दूसरे कर्मचारियों के सामने खड़ी हो गई है जो रातों-रात बेरोजगार हो गए और वो भी उस स्थिति में जब पिछले चार महीने से उन्हें वेतन नहीं मिला था।
बताया जाता है मुख्य रूप से चिटफंड कंपनी संचालित करने वाले कल्पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्ण सिंह राणा को अपना जहाज डूबने का अंदेशा तभी हो गया था जब अगस्त 2010 में उसने कल्पतरू एक्सप्रेस के नाम से सुबह का अखबार निकालना शुरू किया था।
दरअसल, जयकृष्ण सिंह राणा ने अखबार की शुरूआत ही अपनी चिटफंड कंपनी तथा खुद को सरकार व सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) की वक्रदृष्टि से बचाये रखने के लिए की थी और वह पांच साल तक उसमें सफल भी रहे किंतु अखबार निकालने का कोई अनुभव न होने तथा चाटुकार व अनुभवहीन लोगों की फौज के हाथ में ही अखबार की कमान सौंप देने के कारण अखबार की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती गई।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज की तारीख में कल्पतुरू ग्रुप पर कुल मिलाकर करीब 6 हजार करोड़ रुपयों की देनदारी है जिसे चुका पाना ग्रुप के लिए संभव नहीं है, हालांकि उसने काफी पैसा जमीन-जायदाद में निवेश कर रखा है किंतु अधिकांश जमीन-जायदादों पर विभिन्न फाइनेंस कंपनियों एवं बैंकों का कर्ज है।
मथुरा के फरह में चुरमुरा स्थित जिस भूखंड तथा इमारत से अखबार का प्रकाशन होता था, वह समूची जायदाद भी कर्ज में डूबी हुई है और बैंकों ने उसकी रिकवरी के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
यह भी पता लगा है कि अखबार के अलावा कल्पतरू मोटल्स लिमिटेड नामक कल्पतरू ग्रुप की दूसरी कंपनी भी खस्ताहाल हो चुकी है और उसके कर्मचारियों को भी समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा।
कल्पतरू ग्रुप के व्यवहार से क्षुब्ध उसके बहुत से कर्मचारी तो अब कानूनी कार्यवाही करने की तैयारी करने लगे हैं क्योंकि उन्हें किसी स्तर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा रहा।
”लीजेंड न्यूज़” ने भी इन सभी मामलों में कल्पतरू ग्रुप का पक्ष जानने की काफी कोशिशें कीं किंतु कोई व्यक्ति ग्रुप का पक्ष रखने के लिए सामने नहीं आया।
ग्रुप से जुड़े अधिकारी और कर्मचारियों का यहां तक कहना है कि यही हाल रहा तो ग्रुप के मुखिया तथा निदेशकों का हाल सहाराश्री के मुखिया सुब्रत राय सहारा जैसा होने की प्रबल संभावना है।
उनका कहना है कि जब अकूत संपत्ति के मालिक सहाराश्री सुब्रत राय एक लंबे समय से जेल की सलाखों के पीछे होने के बावजूद 10 हजार करोड़ रुपए सुप्रीम कोर्ट में जमा नहीं करा पा रहे तो कल्पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्ण सिंह राणा 6 हजार करोड़ रुपए कैसे चुका पायेंगे।
जाहिर है कि ऐसे में उनका भी हश्र सहाराश्री जैसा होने की पूरी संभावना है लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनके साथ सैकड़ों वो कर्मचारी भी बर्बादी के कगार पर जा पहुंचे हैं जिनका कोई दोष नहीं है और जो सिर्फ और सिर्फ अपनी जॉब के लिए उनके कारनामों की ओर से आंखें बंद करके अपनी ड्यूटी को अंजाम देते रहे।
-लीजेंड न्यूज़