(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष)
क्या भारत अराजकता और गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है?
क्या देश की कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त होने के कगार तक जा पहुंची है?
हो सकता है कि पहली नजर में आपको यह प्रश्न बेमानी लगें... लेकिन गौर करें कि क्या इनमें थोड़ी सी भी सच्चाई है।
गौर करने को इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आज हमारे पास देश की किसी भी समस्या पर गौर करने के लिए वक्त ही कहां है।
हम सब 'उसकी कमीज, मेरी कमीज से ज्यादा सफेद क्यों' के फेर में उलझे हुए हैं... या एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत उलझा दिए गये हैं।
यकीन न हो तो थोड़ा सा वक्त निकाल कर अपने चारों ओर नजरें घुमाकर देखिए। बहुत कम समय में पता लग जायेगा कि तरक्की की आड़ में हमें 'स्टेटस' की एक ऐसी दौड़ का हिस्सा बना दिया गया है जो कब और कहां जाकर खत्म होगी, कोई बताने वाला नहीं।
मास्टर से लेकर डॉक्टर तक और नेता से लेकर अभिनेता तक, वही सफल कहलाता है जिसने अच्छा पैसा कमाया हो। हर योग्यता का मापदण्ड सिर्फ और सिर्फ पैसा है।
क्या भारत अराजकता और गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है?
क्या देश की कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त होने के कगार तक जा पहुंची है?
हो सकता है कि पहली नजर में आपको यह प्रश्न बेमानी लगें... लेकिन गौर करें कि क्या इनमें थोड़ी सी भी सच्चाई है।
गौर करने को इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आज हमारे पास देश की किसी भी समस्या पर गौर करने के लिए वक्त ही कहां है।
हम सब 'उसकी कमीज, मेरी कमीज से ज्यादा सफेद क्यों' के फेर में उलझे हुए हैं... या एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत उलझा दिए गये हैं।
यकीन न हो तो थोड़ा सा वक्त निकाल कर अपने चारों ओर नजरें घुमाकर देखिए। बहुत कम समय में पता लग जायेगा कि तरक्की की आड़ में हमें 'स्टेटस' की एक ऐसी दौड़ का हिस्सा बना दिया गया है जो कब और कहां जाकर खत्म होगी, कोई बताने वाला नहीं।
मास्टर से लेकर डॉक्टर तक और नेता से लेकर अभिनेता तक, वही सफल कहलाता है जिसने अच्छा पैसा कमाया हो। हर योग्यता का मापदण्ड सिर्फ और सिर्फ पैसा है।