मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

कल्‍पतरू ग्रुप ने रियल एस्‍टेट में भी किया सैकड़ों करोड़ का घोटाला, कई बैंक फंसे

-आम आदमी के साथ-साथ कई बैंक भी फंसे जयकृष्‍ण राणा के जाल में
-1600 एकड़ में फैला है राणा के साम्राज्‍य का जाल
कल्‍पतरू ग्रुप की रियल एस्‍टेट कंपनी ‘कल्‍पतरू बिल्‍डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ का भी सैकड़ों करोड़ का ऐसा घोटाला सामने आया है जिसमें न सिर्फ कई बैंक फंस गए हैं बल्‍कि तमाम वो लोग भी शिकार हुए हैं जिन्‍होंने कभी अपने लिए एक अदद घर का सपना देखा था।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार मथुरा के कस्‍बा फरह में दिल्‍ली से मथुरा और आगरा को जोड़ने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर-2 पर ‘कल्‍पतरू बिल्‍डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (KBCL) का करीब 1600 एकड़ जमीन पर साम्राज्‍य फैला हुआ है।
कल्‍पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्‍ण राणा ने यहीं अपने अखबार कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस से लेकर मॉटेल्‍स लिमिटेड, वृंदावन सीक्‍यूरिटीज लिमिटेड, कल्‍पतरू इंश्‍योरेंस कार्पोरेशन लिमिटेड, कल्‍पतरू डेरी प्रोडक्‍ट प्राइवेट लिमिटेड, कल्‍पतरू मेगामार्ट लिमिटेड, कल्‍पतरू इन्‍फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड, कल्‍पतरू फूड प्रोडक्‍ट प्राइवेट लिमिटेड, कल्‍पतरू लैदर प्रोडक्‍ट प्राइवेट लिमिटेड तथा कल्‍पतरू एग्री इंडस्‍ट्रीज लिमिटेड का जाल फैला रखा है।
निजी सुरक्षा गार्डों तथा गुर्गों के घेरे में इसी साम्राज्‍य के अंदर कभी राजा-महाराजाओं की तरह बैठने वाला जयकृष्‍ण राणा अब जब कभी यहां आता भी है तो दबेपांव आता है ताकि ज्‍यादा लोगों को उसके आने की भनक न लग जाए।
बताया जाता है कि अपनी करीब एक दर्जन कंपनियों के इस जाल में जयकृष्‍ण राणा ने विभिन्‍न स्‍तर के लोगों को फंसाकर उन्‍हें सैकड़ों करोड़ रुपए का चूना लगाया है और अब वह कैसे भी अपने मूलधन को इससे निकालने की कोशिश में दिन-रात एक कर रहे हैं। उन्‍हें जहां इसकी मौजूदगी का पता लगता है, वो वहीं पहुंच जाते हैं।
जयकृष्‍ण राणा की रियल एस्‍टेट कंपनी ‘कल्‍पतरू बिल्‍डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (केबीसीएल) द्वारा फरह में जो प्रोजेक्‍ट खड़ा किया जा रहा है, उसमें भारी घोटाले का पता लगा है।
सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार यहां जयकृष्‍ण राणा और उसके गुर्गों ने बाकायदा एक साजिश के तहत अपने एजेंट्स के माध्‍यम से एक-एक मकान तथा एक-एक प्‍लॉट का सौदा कई-कई लोगों से करके उनसे करोड़ों रुपए हड़प लिए हैं। इनमें से कुछ लोग तो ऐसे हैं जो फ्लैट या प्‍लॉट का 90 प्रतिशत पैसा केबीसीएल के नाम कर चुके हैं और जब रजिस्‍ट्री कराने को हैं तो पता लगा है कि उस फ्लैट या प्‍लॉट के तो कई-कई दावेदार हैं और सब के सब किसी तरह अपने नाम रजिस्‍ट्री कराने के फेर में हैं।
ऐसे लोग जयकृष्‍ण राणा से तो सीधे मुलाकात कर नहीं पाते लिहाजा उन एजेंट्स के पास चक्‍कर लगाने को मजबूर हैं जिन्‍होंने अपनी रोजी-रोटी की खातिर राणा की रियल एस्‍टेट कंपनी के लिए काम किया था।
हालांकि आज ऐसे अधिकांश लोग राणा से अलग हो चुके हैं क्‍योंकि उन्‍हें भी पैसा मिलना तो दूर, सिरदर्द मिल रहा है। जिन फ्लैट्स या प्‍लॉट्स का पैसा उन्‍होंने अपने कमीशन तथा वेतन की खातिर लिया, उसे तो जयकृष्‍ण राणा की रियल एस्‍टेट कंपनी हड़प गई लेकिन सिरदर्द बेचारे एजेंट्स को दे दिया।
यही नहीं, यहां तक पता लगा है कि जिस प्रकार राणा और उसके कॉकस ने एक-एक फ्लैट तथा प्‍लॉट कई-कई लोगों को बेच खाए, उसी प्रकार अपनी जमीन पर कई-कई संस्‍थानों से फायनेंस भी करा रखा है और उसके शिकार बैंकों सहित निजी फायनेंसर भी हुए हैं।
अब चूंकि राणा और उसके कल्‍पतरू ग्रुप का सारा खेल सामने आ चुका है लिहाजा आम और खास आदमी तथा बैंक व फायनेंस कंपनियां किसी भी प्रकार अपना पैसा वसूल करने की कोशिश में हैं।
बताया जाता है कि इन दिनों राणा के विभिन्‍न ठिकानों पर इन्‍हीं सब कारणों से अक्‍सर झगड़े होते देखे जा सकते हैं।
जयकृष्‍ण राणा से जुड़े सूत्रों की मानें तो राणा और कल्‍पतरू ग्रुप का यह हाल इसलिए हुआ क्‍योंकि उसने अपनी चिटफंड कंपनी से लेकर विभिन्‍न कंपनियों के माध्‍यम से एकत्र किए गए पैसे को अपनी निजी संपत्‍ति की तरह इस्‍तेमाल किया और राजा-महाराजाओं की तरह लुटाया।
बताया जाता है कि राणा ने अपनी कंपनियों में जहां ऐसे-ऐसे लोगों को डायरेक्‍टर बना रखा है जो कहीं चपरासी बनने की योग्‍यता नहीं रखते वहीं ऐसे अनेक लोगों को लग्‍जरी गाड़ियां उपलब्‍ध करा रखी हैं, जो राणा की चरण वंदना करने में माहिर थे। उनकी सबसे बड़ी योग्‍यता सिर्फ और सिर्फ राणा को अपनी चापलूसी के बल पर प्रसन्‍न रखना थी।
राणा के कॉकस में शामिल लोगों का ही कहना है कि एक खास कंपनी की विशेष लग्‍जरी गाड़ी इतनी बड़ी तादाद में एकसाथ शायद ही कहीं अन्‍यत्र देखने को मिल सकें, जितनी राणा और उसके चापलूसों के पास देखी जा सकती हैं।
बेहिसाब फिजूलखर्ची और हर स्‍तर पर की गई धोखाधड़ी के चलते राणा भी समझ चुका है कि अब उसके कल्‍पतरू ग्रुप को डूबने से कोई बचा नहीं पायेगा और इसलिए वह खुद को सुरक्षित करने की कोशिशों में लगा है। उसे उस मौके की तलाश है जिसका लाभ उठाकर वह किसी तरह यहां से निकल सके और सारे झंझट उन लोगों के लिए छोड़ जाए जिन्‍होंने उसके जहाज के डूबने का अंदेशा होते ही, उससे किनारा कर लिया।
अब देखना केवल यह है कि राणा अपने मकसद में सफल होकर सुरक्षित निकल जाता है या उसे भी अंतत: सहाराश्री सुब्रत राय सहारा की तरह किसी सरकारी सुरक्षा में पनाह मिलती है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

‘दलालों’ के कॉकस से घिरी हैं मथुरा की सांसद हेमामालिनी

-2017 में प्रस्‍तावित उत्‍तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में खुद एक समस्‍या न बन जाएं मथुरा की विशिष्‍ट सांसद
-आमजन तो क्‍या, पार्टीजन तक सांसद से नहीं कर सकते मुलाकात
-मथुरा की जनता के लिए आज भी स्‍वप्‍न सुंदरी ही हैं सांसद हेमामालिनी
-डेढ़ साल के कार्यकाल में नहीं हुआ कोई उल्‍लेखनीय काम
-आयातित सांसद से निराश होने लगी जनता और पार्टी कार्यकर्ता
देश की मशहूर अभिनेत्री और योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की विश्‍व प्रसिद्ध जन्‍मस्‍थली मथुरा से सांसद हेमामालिनी को मथुरा में एक ऐसे कॉकस ने घेर रखा है, जिसे जनसामान्‍य की भाषा में ‘दलाल’ कहा जाता है।
2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा के सामने कृष्‍ण की नगरी में एक अदद चेहरा ऐसा सामने नहीं था जिस पर वह दांव लगा पाती, इसलिए मजबूरन उसे अभिनेत्री हेमामालिनी को आयातित करना पड़ा।
मथुरा में भाजपा के लिए सूखे की स्‍थिति 2009 के लोकसभा चुनावों में भी थी लिहाजा तब उसने राष्‍ट्रीय लोकदल के युवराज जयंत चौधरी को समर्थन देकर ब्रजवासियों के प्रति अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर ली।
जयंत चौधरी भारी मतों से चुनाव तो जीत गए लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र को उन्‍होंने पिकनिक स्‍पॉट की तरह इस्‍तेमाल करना शुरू कर दिया। किसानों के मसीहा का पौत्र, किसान व आमजन से दिन-प्रतिदिन दूर होता गया नतीजतन उसे अगले चुनाव में हेमामालिनी से बुरी तरह पराजित होना पड़ा।
चूंकि 2014 का लोकसभा चुनाव पूरी तरह नरेन्‍द्र मोदी को सामने रखकर लड़ा गया इसलिए आयातित होने के बावजूद हेमामालिनी चुनाव जीत गईं जबकि आयातित सांसदों के मामले में मथुरा वासियों का अनुभव अच्‍छा नहीं रहा है।
हरियाणा से आयातित किए गए मनीराम बागड़ी के बाद डा. सच्‍चिदांनद हरिसाक्षी महाराज और जयंत चौधरी तक जितने भी बाहरी नेताओं ने मथुरा की जनता का प्रतिनिधित्‍व किया, सभी ने निराश किया।
यही कारण है कि कुंवर नटवर सिंह से लेकर कुंवर विश्‍वेन्‍द्र सिंह और चौधरी चरण सिंह की पत्‍नी गायत्री देवी से लेकर उनकी पुत्री ज्ञानवती जैसों को मथुरा की जनता ने नकारा भी किंतु 2014 में मोदी जी पर भरोसा करके बाहरी होने के बावजूद हेमामालिनी के सिर जीत का सेहरा बंधवा दिया।
हेमा मालिनी से कृष्‍ण की पावन जन्‍मभूमि के वाशिंदों को बहुत उम्‍मीदें थीं क्‍योंकि हेमामालिनी के साथ खुद मोदी जी का भरोसा जुड़ा था। मोदी जी ने मथुरा की चुनावी सभा में इस भरोसे को कायम रखने का वादा भी किया।
आज जबकि केंद्र में मोदी जी की सरकार बने डेढ़ साल पूरा होने को आया तो पता लग रहा है कि मथुरा की सांसद हेमामालिनी एक ऐसे कॉकस से घिर चुकी हैं जो न केवल ब्रजवासियों से किए गए मोदी जी के वायदे को खोखला साबित करता है बल्‍कि ऐसे हालात पैदा कर रहा है जो उत्‍तर प्रदेश में प्रस्‍तावित 2017 के विधानसभा चुनावों में हेमामालिनी तथा भाजपा पर भारी पड़ सकते हैं।
दरअसल, मथुरा में हेमामालिनी की दुनिया सिर्फ आधा दर्जन ऐसे चापलूसों तक सीमित है जिनका न कोई जन सरोकार है और ना सामाजिक सरोकार। यहां तक कि भाजपा में अपनी पूरी उम्र खपा चुके कार्यकर्ताओं तक से हेमामालिनी इन चापलूसों के कारण अनभिज्ञ हैं।
चापलूसों का यह कॉकस हेमामालिनी को आज भी यहां सिर्फ एक सिने स्‍टार ही बनाकर रखना चाहता है और इसलिए जनता उन्‍हें जनप्रतिनिधि की भूमिका में देखने को तरस रही है।
दरअसल, इस कॉकस का निजी लाभ इसी में है कि हेमामालिनी यहां सिर्फ स्‍वप्‍न सुंदरी के अपने चिर-परिचित खिताब तक सीमित रहें और पार्टी कार्यकर्ताओं तथा आमजन से दूरी बनाकर रखें।
वह भली-भांति जानते व समझते हैं कि यदि हेमामालिनी मथुरा की सच्‍चे अर्थों में जनप्रतिनिधि बन गईं तो उनकी दलाली की दुकान बंद हो जायेगी तथा हेमामालिनी की आड़ में उनके द्वारा किए जा रहे गोरखधंधे सामने आ जायेंगे।
भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्‍व फिलहाल तो बिहार विधानसभा के चुनावों में व्‍यस्‍त है किंतु इसके तुरंत बाद उत्‍तर प्रदेश पर उसका ध्‍यान पूरी तरह केंद्रित हो जायेगा क्‍योंकि उत्‍तर प्रदेश राजनीति के लिहाज से कितनी अहमियत रखता है, इसे भाजपा तथा आरएसएस अच्‍छी तरह से समझते हैं।
भाजपा के लिए यूपी में 2017 का चुनाव यूं भी विशेष अहमियत रखता है क्‍योंकि यूपी के ही वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी सांसद हैं। यूपी की जनता ने मोदी जी को अपेक्षा से अधिक सीटें दीं और जिस कारण भाजपा को स्‍पष्‍ट बहुमत हासिल हुआ।
अब सवाल यह पैदा होता है कि जिस प्रकार 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मथुरा की राजनीतिक जमीन भाजपा के लिए बंजर हो चुकी थी और चौधरी तेजवीर की हार के बाद उसके लिए यहां किसी भी चुनाव में जीत का अकाल पड़ गया था, उस पर तो मोदी जी के चेहरे ने एकबार फिर आशा की किरण पैदा करा दी लेकिन क्‍या भाजपा उत्‍तर प्रदेश के आगामी चुनावों में उसे दोहरा पायेगी।
बेशक अभी उत्‍तर प्रदेश के चुनावों में करीब-करीब डेढ़ साल का समय बाकी है किंतु हेमामालिनी के मथुरा में डेढ़ साल के कार्यकाल को सामने रखकर यदि देखा जाए तो विधानसभा चुनावों के लिए शेष डेढ़ साल बहुत मामूली समय लगता है।
अपने डेढ़ साल के संसदीय कार्यकाल में हेमामालिनी ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिसे रेखांकित किया जा सके। बात चाहे पीएम के स्‍वच्‍छ भारत अभियान की हो अथवा मथुरा को उसका गौरवशाली स्‍वरूप प्रदान करने की, हर मामले में मथुरा विकास को अब भी तरस रहा है। सड़कें पहले ही तरह बदहाल हैं। पानी-बिजली की समस्‍या यथावत है।
भाजपा के ही कुछ सूत्रों से पता लगा है कि हेमामालिनी मथुरा के लिए बहुत-कुछ करना चाहती हैं लेकिन उन्‍हें हर वक्‍त घेरकर बैठा रहने वाला दलालों का कॉकस कुछ करने नहीं देता। वह उन्‍हें अपने चश्‍मे से वह दिखाता है, जो दिखाना चाहता है। वह बताता है, जो बताना चाहता है।
यही कारण है कि मोदी जी तथा उनकी टीम के आह्वान पर सारे गिले शिकवे त्‍यागकर मथुरा के जिन भाजपाइयों ने हेमामालिनी के चुनावों में जी जान लगाकर मेहनत की और नतीजा पार्टी के पक्ष में निकालकर दिया, वही आज हेमामालिनी से मिलने तक को तैयार नहीं क्‍योंकि उनसे मिलने में पहले उनका कॉकस आड़े आता है।
जाहिर है कि जब निष्‍ठावान तथा समर्पित पार्टीजनों को ही अपनी सांसद से मिलने में कोई रुचि इसलिए न रही हो क्‍योंकि उनके मान-सम्‍मान व स्‍वाभिमान को ठेस पहुंचाई जाती है तो आम जनता अपनी सांसद से मुलाकात करने तक की हिम्‍मत कैसे कर सकती है। कैसे वह अपनी समस्‍याएं उस तक पहुंचा सकती है।
कैसे वह उस मथुरा के सर्वाधिक महंगे होटलों में शुमार एक होटल के कमरे का दरवाजा खटखटा सकती है जिसमें उनकी सांसद ठहरती हैं और जहां तक पहुंचने से पहले किसी को भी दलालों के उस कॉकस से मुखातिब होना पड़ता है जो खुद को सांसद से कहीं अधिक विशिष्‍ट समझता हो और मानता हो कि काठ की हड़िया ऐसे ही बार-बार चढ़ती रहेगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि सांसद के इर्द-गिर्द बैठे कॉकस के लिए न 2017 के विधानसभा चुनाव कोई मायने रखते हैं और न 2019 के लोकसभा चुनाव, उसके लिए मतदाता आज सिर्फ और सिर्फ याचक जितनी हैसियत रखता है और पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता निजी चाकर जितनी, लेकिन भाजपा तथा उसकी मथुरा से सांसद हेमामालिनी के लिए नि:संदेह इन सब का बहुत महत्‍व होगा क्‍योंकि राजनीति में उनका अपना वजूद इसी सब पर टिका है।
यह वो फिल्‍मी दुनिया नहीं है जहां स्‍वप्‍न सुंदरी बनकर वर्षों-वर्षों तक लोगों के दिलों पर राज किया जा सकता है, यह राजनीति है…और राजनीति का रास्‍ता उन खेत-खलिहानों की पगडंडियों से होकर जाता है जिन पर मेहनतकश किसान अपना पसीना बहाता है, शहर की उन टूटी-फूटी सड़कों से होकर संसद तक पहुंचाता है जिन पर आम आदमी इस उम्‍मीद के साथ गुजरता है कि कभी कोई मोदी अपना वादा निभायेगा, कभी कोई जनप्रतिनिधि अपना कर्तव्‍य समझेगा।
माना कि अब तक कोई जनप्रतिनिधि जन आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरा, और हेमामालिनी भी कोई अपवाद नहीं हैं किंतु हेमामालिनी से पहले मथुरा की जनता को कोई ऐसा सांसद भी नहीं मिला जिसे समस्‍याएं बताना तो दूर, मुलाकात कर पाना भी एक समस्‍या रहा हो।
इससे पहले कि आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए मथुरा की विशिष्‍ट सांसद ही खुद एक समस्‍या बन जाएं, पार्टी के शीर्ष नेतृत्‍व तथा सांसद हेमामालिनी को स्‍थिति की गंभीरता समय रहते समझनी होगी।
यदि समय रहते समस्‍या नहीं समझी गई तो तय मानिए कि मथुरा में भाजपा को अच्‍छे दिन दिखाई देने से रहे…और मथुरा विधानसभा में यथास्‍थिति रहने का सीधा मतलब है कि प्रदेश में कोई उल्‍लेखनीय उपलब्‍धि संभव नहीं हो पायेगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

कल्‍पतरू ग्रुप का खेल खत्‍म, देश से भागने की कोशिश में है जयकृष्‍ण राणा

मथुरा बेस्‍ड कल्‍पतरू ग्रुप का खेल खत्‍म हो गया लगता है, हालांकि ग्रुप से जुड़े कुछ लोग अब भी विभिन्‍न स्‍तर पर सफाई देने की कोशिश में लगे हैं किंतु अधिकांश लोगों ने ग्रुप का खेल खत्‍म होने की बात स्‍वीकार करनी शुरू कर दी है।
ग्रुप का मथुरा से प्रकाशित एकमात्र सुबह का अखबार कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस तो इस महीने की शुरूआत में ही बंद हो गया था किंतु अब बाकी प्रोजेक्‍ट भी बंद होने लगे हैं। अधिकांश प्रोजेक्‍ट के कर्मचारियों ने भी ऑफिस आना छोड़ दिया है और जितने लोग ऑफिस पहुंच भी रहे हैं, वह सिर्फ इस प्रयास में हैं कि किसी भी तरह अपना रुका हुआ वेतन हासिल कर लिया जाए।
ग्रुप से जुड़े सूत्रों के मुताबिक ग्रुप के विभिन्‍न प्रोजेक्‍ट्स तथा कंपनियों में अब तक कार्यरत तमाम लोग ऐसे हैं जिन्‍हें पिछले छ:-छ: महीने से वेतन नहीं मिला। ऐसे लोगों के लिए परिवार का गुजर-बसर करना तक मुश्‍किल हो चुका है। 50-50 हजार रुपया प्रतिमाह के वेतन पर कार्यरत एक-एक व्‍यक्‍ति का इस तरह ग्रुप पर तीन-तीन लाख रुपया बकाया है लेकिन न कोई उनकी ओर देखने वाला है और न सुनने वाला।
बताया जाता है कि ग्रुप का जहाज डूबने की आंशका होते ही ग्रुप के चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा की अब तक चमचागीरी करने में लिप्‍त रहे अधिकांश लोग गायब हो चुके हैं। ये वो लोग हैं जिन्‍हें जयकृष्‍ण राणा द्वारा अपना विश्‍वस्‍त तथा वफादार मानते हुए न केवल अच्‍छा खासा वेतन दिया जाता था बल्‍कि लग्‍ज़री गाड़ियां भी उपलब्‍ध करा रखी थीं। जयकृष्‍ण राणा के मुंहलगे कई कर्मचारी तो खुद टाटा सफारी इस्‍तेमाल किया करते थे और परिवार के लिए ग्रुप से ही छोटी गाड़ियां ले रखी थीं।
सूत्रों का कहना है चमचागीरी पसंद करने वाला जयकृष्‍ण राणा अब खुद भी अपने चुरमुरा (फरह) स्‍थित उस ऑफिस में नहीं बैठ रहा जहां कभी पूरे लाव-लश्‍कर तथा निजी सुरक्षा गार्ड्स सहित रुतबे के साथ बैठा करता था।
बताया जाता है कि कल्‍पतरू ग्रुप का जहाज डूबने की जानकारी उसके मथुरा से बाहर के निवेशकों को भी हो चुकी है और वो लोग चुरमुरा पहुंचने लगे हैं।
बताया जाता है कि इन लोगों ने वहीं एक किस्‍म का धरना दे रखा है और यही कारण है कि जयकृष्‍ण राणा चुरमुरा नहीं जा रहा।
दरअसल, उसे मालूम है कि एक ओर कर्मचारी तथा दूसरी ओर निवेशक उससे पैसों की मांग करेंगे जो वह देना नहीं चाहता।
पता लगा है कि मथुरा की चंदन वन कॉलोनी में जयकृष्‍ण राणा ने कोई ऑफिस जैसा गोपनीय निवास बना रखा है, जहां वह अपने खास गुर्गों तथा सुरक्षा बलों के साथ बैठता है। यहां उसके गुर्गों तथा सुरक्षाबलों की इजाजत के बिना परिन्‍दा भी पर नहीं मार सकता। इस ऑफिसनुमा घर की जानकारी बहुत ही कम लोगों को है।
यदि कोई कर्मचारी या निवेशक किसी तरह जानकारी हासिल करके वहां तक पहुंचने का दुस्‍साहस करता है तो राणा के गुर्गे उसे फिर उस ओर मुंह न करने की चेतावनी के साथ लौटा देते हैं। साथ ही यह भी समझा देते हैं कि यदि फिर कभी इधर आने की जुर्रत की तो गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है।
राणा के अति निकटस्‍थ सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि राणा सहाराश्री की तरह कानून की गिरफ्त में नहीं आना चाहता और इसके लिए अपने खास लोगों से सलाह-मशविरा कर रहा है।
सूत्रों का कहना है कि जयकृष्‍ण राणा इस फिराक में है कि किसी भी तरह एकबार देश से बाहर निकल लिया जाए और फिर कभी इधर मुड़कर न देखा जाए। इसके लिए राणा ने अपने पसंदीदा एक मुल्‍क में पूरा बंदोबस्‍त भी कर लिया है, बस उसे इंतजार है उस मौके का जिससे वह सबको चकमा देकर बाहर निकल सके।
एक ओर सीक्‍यूरिटीज एंड एक्‍सचेंच बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) का गले तक कस चुका शिकंजा, दूसरी ओर निवेशकों का दबाव और इसके अलावा कर्मचारियों का हर दिन बढ़ता वेतन…इन सबसे निपटने की क्षमता अब कल्‍पतरू ग्रुप और उसके चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा में बची नहीं है लिहाजा अब उसके लिए दो ही रास्‍ते शेष हैं।
पहला रास्‍ता है सारी स्‍थिति को सामने रखकर कानूनी प्रक्रिया का सामना करे और दूसरा रास्‍ता है कि सबकी आंखों में धूल झोंककर भाग खड़ा हो।
अब देखना यह है कि जयकृष्‍ण राणा को इनमें से कौन सा रास्‍ता रास आता है, हालांकि उसके गुर्गे अब भी यही कहते हैं कि अखबार भी शुरू होगा और कर्मचारियों को उनका पूरा वेतन भी दिया जायेगा परंतु हालात कुछ और बयां कर रहे हैं।
-लीजेंड न्‍यूज़

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

सात भारतीय शहर पोर्न सर्च करने में सबसे अव्वल

नई दिल्ली। बैन हो या न हो लेकिन सात भारतीय शहर पोर्न सर्च करने में अव्वल हैं. भारत में पोर्न सर्च को लेकर गूगल सर्च का जो आंकड़ा सामने आया है, वह काफी चौंकाने वाला है.
गूगल ट्रेंड के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में पोर्न सर्च करने वाले छह प्रमुख शहर भारत के हैं.
देश की राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा गूगल पर पोर्न सर्च किया गया. इसके बाद पुणे, मुंबई, हावड़ा, उन्नाव, कुआलालंपुर और बेंगलुरु हैं.
आंकड़ों के मुताबिक लोगों ने कामोत्तेजक चीजें सर्च करने के साथ ही अन्य सामग्री भी सर्च की.
हालांकि समाजशास्त्री ऑनलाइन एक्टिविटी को ऑफलाइन गतिविधियों से जोड़ने से बिल्कुल इंकार करते हैं.
तो इंटरनेट पर ये सब सर्च किया जाता है…
वर्ष 2008 से अब तक ‘एनिमल पोर्न’ सर्च करने में पुणे के लोग आगे हैं. उनके बाद क्रमश: दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के लोगों ने भी इसे खूब सर्च किया जबकि रेप के वीडियो सर्च करने में कोलकाता के लोग सबसे आगे हैं.
इसके बाद हावड़ा, दिल्ली, अहमदाबाद और पुणे के लोगों ने भी इस कैटेगरी में मौजूदगी दर्ज कराई.
हैरान करने वाली बात ये सामने आई है कि उत्तर प्रदेश के एक छोटा सा शहर उन्नाव में सबसे ज्यादा चाइल्ड पोर्न सर्च किया गया.
ये भी है एक वजह…
हालांकि गूगल ट्रेंड के ये आंकड़े एक खास यूजर ग्रुप के आधार पर लिए गए हैं. साथ ही दुनिया के तमाम शहरों के आंकड़े इसमें शामिल नहीं है, जिसके चलते भारत के शहर सबसे ऊपर हैं. क्रिप्टोग्राफी के एक्सपर्ट अजित हट्टी ने कहा कि ये आंकड़े सही हैं, लेकिन पूरे नहीं क्योंकि चीन, रूस और उत्तरी कोरिया जैसे देशों में गूगल का इस्तेमाल नहीं होता, अगर होता भी है तो बहुत कम. इसके अलावा अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में लोग अलग-अलग सर्च इंजन इस्तेमाल करते हैं.

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

कल्‍पतरू ग्रुप का अखबार कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस बंद

-रातों-रात सड़क पर आ गए सैकड़ों पत्रकार और कर्मचारी -चार महीने से ग्रुप ने नहीं दिया पत्रकारों व कर्मचारियों को वेतन-ग्रुप पर 6 हजार करोड़ की देनदारी-सरकार और सेबी ने भी कस रखा है शिकंजा -चुरमुरा ऑफिस भी पूरी तरह कर्ज में डूबा
मथुरा से प्रकाशित सुबह का एकमात्र अखबार कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस आखिर बंद हो गया। पिछले चार दिनों से उसका प्रकाशन बंद है।
अगस्‍त 2010 में शुरू हुआ दैनिक कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस मथुरा के कस्‍बा फरह स्‍थित चुरमुरा से प्रकाशित होता था लेकिन मात्र पांच साल में अखबार का प्रकाशन बंद हो जाने के कारण उसमें कार्यरत सैकड़ों कर्मचारी सड़क पर आ गए क्‍योंकि अखबार के मालिकानों ने कर्मचारियों को अखबार बंद किये जाने की कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी।
बताया जाता है कि कल्‍पतरू ग्रुप के प्रकाशन दैनिक कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस के मालिकानों ने पिछले जून महीने से अखबार के कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया है किंतु कर्मचारी यह उम्‍मीद पाले बैठे थे कि देर-सवेर उन्‍हें उनका वेतन दे दिया जायेगा।
अखबार से जुड़े सूत्रों की मानें तो अखबार का लखनऊ संस्‍करण अब भी प्रकाशित हो रहा है जो एक प्रमुख दैनिक अखबार की प्रेस में छपवाया जाता है जबकि मथुरा के चुरमुरा में अखबार की अपनी प्रेस है।
चुरमुरा से प्रकाशित कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस मथुरा जनपद के अलावा महानगर आगरा, अलीगढ़, हाथरस, इटावा, औरैया तथा कासगंज आदि तक प्रसारित किया जाता था और इन सभी जिलों में कल्‍पतरू के ब्‍यूरो ऑफिस थे किंतु अखबार बंद होने के बाद उन पर भी ताला लगने की आशंका व्‍यक्‍त की जा रही है।
सबसे बड़ी समस्‍या इन सभी जिलों में मिलाकर काम करने वाले उन सैकड़ों पत्रकारों तथा अन्‍य दूसरे कर्मचारियों के सामने खड़ी हो गई है जो रातों-रात बेरोजगार हो गए और वो भी उस स्‍थिति में जब पिछले चार महीने से उन्‍हें वेतन नहीं मिला था।
बताया जाता है मुख्‍य रूप से चिटफंड कंपनी संचालित करने वाले कल्‍पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्‍ण सिंह राणा को अपना जहाज डूबने का अंदेशा तभी हो गया था जब अगस्‍त 2010 में उसने कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस के नाम से सुबह का अखबार निकालना शुरू किया था।
दरअसल, जयकृष्‍ण सिंह राणा ने अखबार की शुरूआत ही अपनी चिटफंड कंपनी तथा खुद को सरकार व सिक्‍यूरिटीज एंड एक्‍सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) की वक्रदृष्‍टि से बचाये रखने के लिए की थी और वह पांच साल तक उसमें सफल भी रहे किंतु अखबार निकालने का कोई अनुभव न होने तथा चाटुकार व अनुभवहीन लोगों की फौज के हाथ में ही अखबार की कमान सौंप देने के कारण अखबार की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती गई।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार आज की तारीख में कल्‍पतुरू ग्रुप पर कुल मिलाकर करीब 6 हजार करोड़ रुपयों की देनदारी है जिसे चुका पाना ग्रुप के लिए संभव नहीं है, हालांकि उसने काफी पैसा जमीन-जायदाद में निवेश कर रखा है किंतु अधिकांश जमीन-जायदादों पर विभिन्‍न फाइनेंस कंपनियों एवं बैंकों का कर्ज है।
मथुरा के फरह में चुरमुरा स्‍थित जिस भूखंड तथा इमारत से अखबार का प्रकाशन होता था, वह समूची जायदाद भी कर्ज में डूबी हुई है और बैंकों ने उसकी रिकवरी के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
यह भी पता लगा है कि अखबार के अलावा कल्‍पतरू मोटल्‍स लिमिटेड नामक कल्‍पतरू ग्रुप की दूसरी कंपनी भी खस्‍ताहाल हो चुकी है और उसके कर्मचारियों को भी समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा।
कल्‍पतरू ग्रुप के व्‍यवहार से क्षुब्‍ध उसके बहुत से कर्मचारी तो अब कानूनी कार्यवाही करने की तैयारी करने लगे हैं क्‍योंकि उन्‍हें किसी स्‍तर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा रहा।
”लीजेंड न्‍यूज़” ने भी इन सभी मामलों में कल्‍पतरू ग्रुप का पक्ष जानने की काफी कोशिशें कीं किंतु कोई व्‍यक्‍ति ग्रुप का पक्ष रखने के लिए सामने नहीं आया।
ग्रुप से जुड़े अधिकारी और कर्मचारियों का यहां तक कहना है कि यही हाल रहा तो ग्रुप के मुखिया तथा निदेशकों का हाल सहाराश्री के मुखिया सुब्रत राय सहारा जैसा होने की प्रबल संभावना है।
उनका कहना है कि जब अकूत संपत्‍ति के मालिक सहाराश्री सुब्रत राय एक लंबे समय से जेल की सलाखों के पीछे होने के बावजूद 10 हजार करोड़ रुपए सुप्रीम कोर्ट में जमा नहीं करा पा रहे तो कल्‍पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्‍ण सिंह राणा 6 हजार करोड़ रुपए कैसे चुका पायेंगे।
जाहिर है कि ऐसे में उनका भी हश्र सहाराश्री जैसा होने की पूरी संभावना है लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनके साथ सैकड़ों वो कर्मचारी भी बर्बादी के कगार पर जा पहुंचे हैं जिनका कोई दोष नहीं है और जो सिर्फ और सिर्फ अपनी जॉब के लिए उनके कारनामों की ओर से आंखें बंद करके अपनी ड्यूटी को अंजाम देते रहे।
-लीजेंड न्‍यूज़
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