मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

‘दलालों’ के कॉकस से घिरी हैं मथुरा की सांसद हेमामालिनी

-2017 में प्रस्‍तावित उत्‍तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में खुद एक समस्‍या न बन जाएं मथुरा की विशिष्‍ट सांसद
-आमजन तो क्‍या, पार्टीजन तक सांसद से नहीं कर सकते मुलाकात
-मथुरा की जनता के लिए आज भी स्‍वप्‍न सुंदरी ही हैं सांसद हेमामालिनी
-डेढ़ साल के कार्यकाल में नहीं हुआ कोई उल्‍लेखनीय काम
-आयातित सांसद से निराश होने लगी जनता और पार्टी कार्यकर्ता
देश की मशहूर अभिनेत्री और योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की विश्‍व प्रसिद्ध जन्‍मस्‍थली मथुरा से सांसद हेमामालिनी को मथुरा में एक ऐसे कॉकस ने घेर रखा है, जिसे जनसामान्‍य की भाषा में ‘दलाल’ कहा जाता है।
2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा के सामने कृष्‍ण की नगरी में एक अदद चेहरा ऐसा सामने नहीं था जिस पर वह दांव लगा पाती, इसलिए मजबूरन उसे अभिनेत्री हेमामालिनी को आयातित करना पड़ा।
मथुरा में भाजपा के लिए सूखे की स्‍थिति 2009 के लोकसभा चुनावों में भी थी लिहाजा तब उसने राष्‍ट्रीय लोकदल के युवराज जयंत चौधरी को समर्थन देकर ब्रजवासियों के प्रति अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर ली।
जयंत चौधरी भारी मतों से चुनाव तो जीत गए लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र को उन्‍होंने पिकनिक स्‍पॉट की तरह इस्‍तेमाल करना शुरू कर दिया। किसानों के मसीहा का पौत्र, किसान व आमजन से दिन-प्रतिदिन दूर होता गया नतीजतन उसे अगले चुनाव में हेमामालिनी से बुरी तरह पराजित होना पड़ा।
चूंकि 2014 का लोकसभा चुनाव पूरी तरह नरेन्‍द्र मोदी को सामने रखकर लड़ा गया इसलिए आयातित होने के बावजूद हेमामालिनी चुनाव जीत गईं जबकि आयातित सांसदों के मामले में मथुरा वासियों का अनुभव अच्‍छा नहीं रहा है।
हरियाणा से आयातित किए गए मनीराम बागड़ी के बाद डा. सच्‍चिदांनद हरिसाक्षी महाराज और जयंत चौधरी तक जितने भी बाहरी नेताओं ने मथुरा की जनता का प्रतिनिधित्‍व किया, सभी ने निराश किया।
यही कारण है कि कुंवर नटवर सिंह से लेकर कुंवर विश्‍वेन्‍द्र सिंह और चौधरी चरण सिंह की पत्‍नी गायत्री देवी से लेकर उनकी पुत्री ज्ञानवती जैसों को मथुरा की जनता ने नकारा भी किंतु 2014 में मोदी जी पर भरोसा करके बाहरी होने के बावजूद हेमामालिनी के सिर जीत का सेहरा बंधवा दिया।
हेमा मालिनी से कृष्‍ण की पावन जन्‍मभूमि के वाशिंदों को बहुत उम्‍मीदें थीं क्‍योंकि हेमामालिनी के साथ खुद मोदी जी का भरोसा जुड़ा था। मोदी जी ने मथुरा की चुनावी सभा में इस भरोसे को कायम रखने का वादा भी किया।
आज जबकि केंद्र में मोदी जी की सरकार बने डेढ़ साल पूरा होने को आया तो पता लग रहा है कि मथुरा की सांसद हेमामालिनी एक ऐसे कॉकस से घिर चुकी हैं जो न केवल ब्रजवासियों से किए गए मोदी जी के वायदे को खोखला साबित करता है बल्‍कि ऐसे हालात पैदा कर रहा है जो उत्‍तर प्रदेश में प्रस्‍तावित 2017 के विधानसभा चुनावों में हेमामालिनी तथा भाजपा पर भारी पड़ सकते हैं।
दरअसल, मथुरा में हेमामालिनी की दुनिया सिर्फ आधा दर्जन ऐसे चापलूसों तक सीमित है जिनका न कोई जन सरोकार है और ना सामाजिक सरोकार। यहां तक कि भाजपा में अपनी पूरी उम्र खपा चुके कार्यकर्ताओं तक से हेमामालिनी इन चापलूसों के कारण अनभिज्ञ हैं।
चापलूसों का यह कॉकस हेमामालिनी को आज भी यहां सिर्फ एक सिने स्‍टार ही बनाकर रखना चाहता है और इसलिए जनता उन्‍हें जनप्रतिनिधि की भूमिका में देखने को तरस रही है।
दरअसल, इस कॉकस का निजी लाभ इसी में है कि हेमामालिनी यहां सिर्फ स्‍वप्‍न सुंदरी के अपने चिर-परिचित खिताब तक सीमित रहें और पार्टी कार्यकर्ताओं तथा आमजन से दूरी बनाकर रखें।
वह भली-भांति जानते व समझते हैं कि यदि हेमामालिनी मथुरा की सच्‍चे अर्थों में जनप्रतिनिधि बन गईं तो उनकी दलाली की दुकान बंद हो जायेगी तथा हेमामालिनी की आड़ में उनके द्वारा किए जा रहे गोरखधंधे सामने आ जायेंगे।
भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्‍व फिलहाल तो बिहार विधानसभा के चुनावों में व्‍यस्‍त है किंतु इसके तुरंत बाद उत्‍तर प्रदेश पर उसका ध्‍यान पूरी तरह केंद्रित हो जायेगा क्‍योंकि उत्‍तर प्रदेश राजनीति के लिहाज से कितनी अहमियत रखता है, इसे भाजपा तथा आरएसएस अच्‍छी तरह से समझते हैं।
भाजपा के लिए यूपी में 2017 का चुनाव यूं भी विशेष अहमियत रखता है क्‍योंकि यूपी के ही वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी सांसद हैं। यूपी की जनता ने मोदी जी को अपेक्षा से अधिक सीटें दीं और जिस कारण भाजपा को स्‍पष्‍ट बहुमत हासिल हुआ।
अब सवाल यह पैदा होता है कि जिस प्रकार 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मथुरा की राजनीतिक जमीन भाजपा के लिए बंजर हो चुकी थी और चौधरी तेजवीर की हार के बाद उसके लिए यहां किसी भी चुनाव में जीत का अकाल पड़ गया था, उस पर तो मोदी जी के चेहरे ने एकबार फिर आशा की किरण पैदा करा दी लेकिन क्‍या भाजपा उत्‍तर प्रदेश के आगामी चुनावों में उसे दोहरा पायेगी।
बेशक अभी उत्‍तर प्रदेश के चुनावों में करीब-करीब डेढ़ साल का समय बाकी है किंतु हेमामालिनी के मथुरा में डेढ़ साल के कार्यकाल को सामने रखकर यदि देखा जाए तो विधानसभा चुनावों के लिए शेष डेढ़ साल बहुत मामूली समय लगता है।
अपने डेढ़ साल के संसदीय कार्यकाल में हेमामालिनी ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिसे रेखांकित किया जा सके। बात चाहे पीएम के स्‍वच्‍छ भारत अभियान की हो अथवा मथुरा को उसका गौरवशाली स्‍वरूप प्रदान करने की, हर मामले में मथुरा विकास को अब भी तरस रहा है। सड़कें पहले ही तरह बदहाल हैं। पानी-बिजली की समस्‍या यथावत है।
भाजपा के ही कुछ सूत्रों से पता लगा है कि हेमामालिनी मथुरा के लिए बहुत-कुछ करना चाहती हैं लेकिन उन्‍हें हर वक्‍त घेरकर बैठा रहने वाला दलालों का कॉकस कुछ करने नहीं देता। वह उन्‍हें अपने चश्‍मे से वह दिखाता है, जो दिखाना चाहता है। वह बताता है, जो बताना चाहता है।
यही कारण है कि मोदी जी तथा उनकी टीम के आह्वान पर सारे गिले शिकवे त्‍यागकर मथुरा के जिन भाजपाइयों ने हेमामालिनी के चुनावों में जी जान लगाकर मेहनत की और नतीजा पार्टी के पक्ष में निकालकर दिया, वही आज हेमामालिनी से मिलने तक को तैयार नहीं क्‍योंकि उनसे मिलने में पहले उनका कॉकस आड़े आता है।
जाहिर है कि जब निष्‍ठावान तथा समर्पित पार्टीजनों को ही अपनी सांसद से मिलने में कोई रुचि इसलिए न रही हो क्‍योंकि उनके मान-सम्‍मान व स्‍वाभिमान को ठेस पहुंचाई जाती है तो आम जनता अपनी सांसद से मुलाकात करने तक की हिम्‍मत कैसे कर सकती है। कैसे वह अपनी समस्‍याएं उस तक पहुंचा सकती है।
कैसे वह उस मथुरा के सर्वाधिक महंगे होटलों में शुमार एक होटल के कमरे का दरवाजा खटखटा सकती है जिसमें उनकी सांसद ठहरती हैं और जहां तक पहुंचने से पहले किसी को भी दलालों के उस कॉकस से मुखातिब होना पड़ता है जो खुद को सांसद से कहीं अधिक विशिष्‍ट समझता हो और मानता हो कि काठ की हड़िया ऐसे ही बार-बार चढ़ती रहेगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि सांसद के इर्द-गिर्द बैठे कॉकस के लिए न 2017 के विधानसभा चुनाव कोई मायने रखते हैं और न 2019 के लोकसभा चुनाव, उसके लिए मतदाता आज सिर्फ और सिर्फ याचक जितनी हैसियत रखता है और पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता निजी चाकर जितनी, लेकिन भाजपा तथा उसकी मथुरा से सांसद हेमामालिनी के लिए नि:संदेह इन सब का बहुत महत्‍व होगा क्‍योंकि राजनीति में उनका अपना वजूद इसी सब पर टिका है।
यह वो फिल्‍मी दुनिया नहीं है जहां स्‍वप्‍न सुंदरी बनकर वर्षों-वर्षों तक लोगों के दिलों पर राज किया जा सकता है, यह राजनीति है…और राजनीति का रास्‍ता उन खेत-खलिहानों की पगडंडियों से होकर जाता है जिन पर मेहनतकश किसान अपना पसीना बहाता है, शहर की उन टूटी-फूटी सड़कों से होकर संसद तक पहुंचाता है जिन पर आम आदमी इस उम्‍मीद के साथ गुजरता है कि कभी कोई मोदी अपना वादा निभायेगा, कभी कोई जनप्रतिनिधि अपना कर्तव्‍य समझेगा।
माना कि अब तक कोई जनप्रतिनिधि जन आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरा, और हेमामालिनी भी कोई अपवाद नहीं हैं किंतु हेमामालिनी से पहले मथुरा की जनता को कोई ऐसा सांसद भी नहीं मिला जिसे समस्‍याएं बताना तो दूर, मुलाकात कर पाना भी एक समस्‍या रहा हो।
इससे पहले कि आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए मथुरा की विशिष्‍ट सांसद ही खुद एक समस्‍या बन जाएं, पार्टी के शीर्ष नेतृत्‍व तथा सांसद हेमामालिनी को स्‍थिति की गंभीरता समय रहते समझनी होगी।
यदि समय रहते समस्‍या नहीं समझी गई तो तय मानिए कि मथुरा में भाजपा को अच्‍छे दिन दिखाई देने से रहे…और मथुरा विधानसभा में यथास्‍थिति रहने का सीधा मतलब है कि प्रदेश में कोई उल्‍लेखनीय उपलब्‍धि संभव नहीं हो पायेगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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