गुरुवार, 3 नवंबर 2022

ये आग कब बुझेगी: 'लेवाना' के बाद अब मथुरा के होटल 'वृंदावन गार्डन' में लगी आग, 2 कर्मचारियों की मौत और 3 गंभीर रूप से झुलसे

 

अभी दो महीने ही बीते हैं जब प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज स्‍थित 30 कमरों वाले होटल 'लेवाना' में आग लगने से 4 लोगों की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हुए थे। उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ और लखनऊ से सांसद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस अग्‍निकांड को गंभीरता से लिया था जिस कारण न केवल 15 अधिकारी तत्‍काल निलंबित कर दिए गए बल्‍कि 19 अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए जिनमें कुछ रिटायर अधिकारी भी शामिल हैं। 

सीएम योगी ने लखनऊ मंडल के पुलिस आयुक्त से जांच कराई। इस जांच रिपोर्ट में फायर ब्रिगेड, ऊर्जा विभाग, नियुक्ति विभाग, आवास और शहरी विकास विभाग सहित आबकारी विभाग के कई अधिकारियों की अनियमितता व लापरवाही पाई गई। 
इसके अलावा जांच में पाया गया कि होटल 'लेवाना' को अवैध रूप से बनाया गया था। जिसके लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा 22 इंजीनियरों और जोनल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्‍तुति की गई। 
एलडीए ने हजरतगंज थाने में बंसल कंस्ट्रक्शन के मुकेश जसनानी और उनके सहयोगियों के खिलाफ आवासीय भूखंड पर होटल चलाने के लिए एफआईआर भी दर्ज कराई। पुलिस ने भी इस मामले में अपनी तरफ से एक मुकद्दमा दर्ज किया। 
इतना सब-कुछ किए जाने के बावजूद सारा सिस्‍टम किस तरह उसी ढर्रे पर चल रहा है, इसका उदाहरण आज तब देखने को मिला जब कृष्‍ण की लीला स्‍थली वृंदावन (मथुरा) के होटल वृंदावन गार्डन में सुबह के समय आग लगने से दो कर्मचारियों उमेश तथा बीरी सिंह की मौत हो गई और तीन झुलस गए जिनमें से एक 45 वर्षीय बिजेन्द्र की हालत गंभीर बताई जाती है लिहाजा उसे आगरा रैफर किया गया है। 
क्या अवैध है होटल 'वृंदावन गार्डन'?
जिस तरह लखनऊ के होटल 'लेवाना' में अग्‍निकांड के बाद पता लगा कि उसका निर्माण ही अवैध था, उसी तरह अब पता लग रहा है कि मथुरा का यह होटल भी अवैध रूप से बना है और मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से इसका नक्शा एक मैरिज होम के तौर पर पास है। हालांकि हमेशा की तरह फिलहाल इसकी पुष्‍टि करने वाला कोई नहीं है क्‍योंकि होटल मालिक रामकिशन अग्रवाल काफी प्रभावशाली व्‍यक्‍ति है और इसके अलावा भी वह कई होटलों का मालिक है जो बसेरा ग्रुप के तहत संचालित हैं। 

अग्‍निशमन विभाग ने दे रखा है नोटिस 
 विकास प्राधिकरण की चुप्‍पी के बीच इतनी जानकारी जरूर सामने आई है कि अग्‍निशमन विभाग कोसीकलां के प्रभारी जसराम सिंह ने ''होटल वृंदावन गार्डन'' वृंदावन का 8 सितंबर 2022 को सुरक्षा की दृष्‍टि से निरीक्षण किया था और इस दौरान उन्‍होंने होटल में तमाम खामियां पाईं। 
उन्‍होंने इसी दिन होटल के स्‍वामी/प्रबंधक को एक नोटिस जारी कर उत्तर प्रदेश फायर सर्विस अधिनियम 1944 की धारा 1 व 2 के अंतर्गत जनहित में सभी कमियां 30 दिन के अंदर दूर कराने को कहा था लेकिन होटल स्‍वामी/प्रबंधक के कानों पर जूं नहीं रेंगी, जिसके परिणाम स्‍वरूप दो कर्मचारियों को जान से हाथ धोना पड़ा और तीन अपनी जिंदगी के लिए लड़ रहे हैं। 
अग्‍निशमन विभाग कोसीकलां के प्रभारी द्वारा जारी नोटिस से स्‍पष्‍ट है कि होटल वृंदावन गार्डन में अग्‍निसुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं था, बावजूद इसके वो नोटिस देने के अतिरिक्‍त कुछ और कर भी नहीं सकते थे। 
अग्‍निशमन विभाग की मानें तो उसके पास इससे अधिक कोई अधिकार हैं ही नहीं। वो नोटिस-नोटिस खेलने के बाद ज्‍यादा से ज्‍यादा 'कोर्ट' मूव कर सकते हैं किंतु सीधे कोई कार्रवाई नहीं कर सकते।  
सड़क पर कराई जाती है 'पार्किंग' 
मथुरा-वृंदावन रोड पर स्‍वामी रामकृष्‍ण मिशन हॉस्‍पिटल के सामने बने होटल वृंदावन गार्डन द्वारा भी मथुरा जनपद के अन्‍य अनेक होटलों की तरह पार्किंग के लिए सड़क को इस्‍तेमाल किया जाता है जबकि होटल में 5-7 नहीं करीब 25 कमरे हैं और प्रदेश ही नहीं, देश का प्रमुख धार्मिक स्‍थल होने के कारण यहां के सभी कमरे शायद ही कभी खाली रहते हों। 
आश्‍चर्य की बात यह है कि सीएम योगी समेत प्रदेश के अन्‍य बहुत से मंत्री तथा उच्‍च अधिकारियों का वृंदावन आना-जाना अक्‍सर लगा रहता है और उनकी यहां के विकास पर भी निगाहें केंद्रित हैं, बावजूद इसके सरकारी मशीनरी है कि सुधरने का नाम नहीं लेती। 
ऑब्‍लाइज रहते हैं अधिकांश अधिकारी 
होटल, मैरिज होम, गेस्‍ट हाउस, हॉस्‍पिटल, नर्सिंग होम तथा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि के अवैध निर्माण का एक बड़ा कारण अधिकांश अधिकारियों का इनके मालिकों से ऑब्‍लाइज रहना भी बताया जाता है। कहीं ये ऑब्लिगेशन 'कैश' के रूप में होता है तो कहीं 'काइंड' के रूप में। 
कुछ होटल और गेस्‍ट हाउस मालिकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्‍हें कई कमरे तो हमेशा अधिकारियों की 'बेगार' के लिए खाली रखने पड़ते हैं जिससे अधिकारी खुद या उनके मेहमान जब चाहें आकर रुक सकें। ऐसा न करने पर प्रताड़ित किया जाता है। 
इसी प्रकार हॉस्‍पिटल और नर्सिंग होम संचालकों का भी अधिकारी भरपूर 'दुर-उपयोग' करते देखे जा सकते हैं। राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर बने हॉस्‍पिटल और नर्सिंग होम इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं जहां खुलेआम सर्विस रोड को घेरकर 'पार्किंग' बना दिया गया है और यहां तक कि अपने स्‍तर पर उसका निजी ठेका भी उठा दिया गया है लेकिन न कोई बोलने वाला है और न सुनने वाला। यही हाल शहर के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का है। 
बहरहाल, कृष्‍ण की नगरी कितनी ही महत्‍वपूर्ण क्यों न हो लेकिन यह प्रदेश की राजधानी लखनऊ नहीं है इसलिए यहां के होटल में अग्‍निकांड के जिम्‍मेदार लोगों पर तत्‍काल प्रभाव से किसी एक्शन की उम्‍मीद करना बेमानी है। होटल के दो कर्मचारी मर चुके हैं तथा तीन जिंदगी के लिए जूझ रहे हैं किंतु सरकारी सिस्‍टम कुछ दिनों बाद इसे भी ठीक वैसे ही भूल जाएगा जैसे लखनऊ के होटल लेवाना के हादसे को भूल गया। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि सिस्‍टम की लगाई इस आग में कभी लखनऊ झुलसेगा तो कभी मथुरा, किंतु सिस्‍टम शायद ही कभी झुलस पाएगा। उसके हाथ में हमेशा तुरुप का पत्ता रहेगा क्योंकि जांच भी उसी को करनी है और रिपोर्ट भी उसी को सौंपनी है। 
होटल वृंदावन गार्डन में आग कैसे लगी, अभी तो यही पता नहीं लगा। फिर यह पता कैसे लगेगा कि इस 'आग' की भेंट चढ़े लोगों की मौत का जिम्‍मेदार कौन-कौन है। लखनऊ के लेवाना होटल की आग ठंडी पड़ चुकी है। वृंदावन गार्डन की भी आग जल्‍द ठंडी पड़ जाएगी, लेकिन सिस्‍टम का खेल बदस्‍तूर जारी रहेगा। 
-Legend News 

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