गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

शीला दीक्षित जी की शर्मिंदगी/प्रॉब्‍लम


सज्जनता की हद तो देखिये कि बेचारी शीला दीक्षित इस बात पर शर्मिंदा हैं कि उन्हें चाहिए मात्र दो कमरे और रहना पड़ रहा है दो एकड़ के बंगले में। वह इस बात से भी शर्मिंदा हैं कि दिल्ली में तमाम लोग या तो मलिन बस्ितयों यानि झुग्गी-झौंपड़ियों में रहते हैं या फिर फुटपाथ पर सोते हैं और वो दो एकड़ के बंगले में हाथ-पैर फैलाकर सो रही हैं। शर्मिंदगी के साथ-साथ कुछ बातों से माननीय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को प्रॉब्लम भी है। प्रॉब्लम ये है कि उनकी दिल्ली में हर रोज देशभर से हजारों लोग आते हैं। प्रॉब्लम इस बात से है कि ये लोग फिर दिल्ली के ही होकर रह जाते हैं। वाकई बड़े जाहिल और गंवार लोग हैं वो जो जाते तो हैं दिल्ली रोजी-रोटी की खातिर लेकिन बना लेते हैं वहां अपना आशियाना। खरीद नहीं पाते तो किराये पर ले लेते हैं और किराये पर लेने की भी अगर हैसियत नहीं रखते तो फुटपाथ घेर लेते हैं। रहते हैं तो नम्बर दो से लेकर लघुशंका तक और थूकने से लेकर स्नानादि तक सब वहीं करते हैं जिस कारण दिल्ली गंदी होती है। जाहिल और गंवार जो ठहरे। ये नहीं कि शीला जी की तरह जहां रहें वहां गंदगी करें। हालांकि मुझे नहीं मालूम कि शीला जी नित् क्रियाओं से निवृत होने दिल्ली में ही जाती हैं या उन्होंने इसके लिए दिल्ली से बाहर कोई ठिकाना बना रखा है। और वो ठिकाना क्या देश से भी बाहर है। यदि मुझे सच्चाई का पता लग जाए तो मैं सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत यह भी जरूर जानना चाहूंगा कि उनके इस कार्य पर आने वाले खर्च को कौन वहन करता है। जाहिर है कि दिल्ली की सीमा से बाहर शीला जी पैदल तो नहीं जाती होंगी, उसके लिए कोई कोई साधन जरूर होगा। खैर, इसका ब्यौरा पूरी जानकारी मिलने पर मांगा जायेगा। बहरहाल, फॉर योर काइण् इन्फॉरमेशन, शीला जी दिल्ली के मूल निवासियों को छोड़कर सभी को गंदा समझती हैं। सुन रही हैं सोनिया जी, समझ रहे हैं राहुल भाई ? मैं माननीय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जी की शर्मिंदगी और प्रॉब्लम दोनों से सहमत तो हूं लेकिन यह नहीं समझ पा रहा कि वह शर्मिंदा अधिक हैं या उन्हें प्रॉब्लम ज्यादा है। वह आखिर किस समस्या का निदान पहले करना चाहती हैं। अपनी शर्मिंदगी का या अपनी प्रॉब्लम का। देखिये शीला जी, इसका फैसला तो आप ही को करना होगा। यह निर्णय हम नहीं ले सकते। हां मशविरा जरूर दे सकते हैं क्योंकि फोकट का मशविरा देने पर देश के किसी हिस्से में पाबंदी नहीं है।अपने कथित लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत मैं आपको यह मशविरा देता हूं कि पहले आप दिल्ली के ही किसी मनोचिकित्सक के पास जाकर यह तय करें कि आपकी कौन सी बीमारी बड़ी है। शर्मिंदगी वाली या दूसरी वाली। यदि शर्मिंदगी वाली बड़ी है तो उसका निदान पूरी तरह आपके कर कमलों में है। छोड़ दीजिये दो एकड़ के बंगले को और दो कमरों वाले फ्लैट में हो जाइये शिफ्ट, आपको कौन रोक सकता है। फिर सोइये चैन की नींद। आप राजा हैं और राजा के फैसलों को चुनौती देने का अधिकार किसी को नहीं होता। माना कि अब देश में फिरंगियों का शासन नहीं है और देश को स्वतंत्र हुए पूरे 62 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन माननीय आखिर माननीय ही हैं। बाकी सब तो रियाया कहलाते हैं। हां यदि दूसरी बीमारी बड़ी मालूम पड़ती है तो वाकई समस्या गंभीर है। वैसे मुझे भी यही लगता कि दूसरी बीमारी गंभीर है क्योंकि शीला जी पहले भी उसका जिक्र कई बार मौके-बेमौके कर चुकी हैं जबकि शर्मिंदगी वाली समस्या का खुलासा पहली बार किया है।अब सवाल यह पैदा होता है कि इस दूसरी बीमारी का इलाज शीला जी के अपने कर-कमलों में नहीं है। होता तो कब का दिल्ली को बाहरी लोगों से खाली करा चुकी होतीं। सोनिया जी से कहतीं कि आप राजीव जी से शादी करके भारत आईं थीं और राजीव जी मौलिक रूप से कश्मीरी पण्िडत जवाहरलाल नेहरू जी की पुत्री इंदिरा जी के पुत्र थे। नेहरू जी इलाहाबाद आकर बस गये लिहाजा या तो आप कश्मीर जाकर बसिये या फिर इलाहाबाद रहिये। यह क्या कि बाल-बच्चों सहित दिल्ली पर कब्जा जमाये बैठी हैं।मुझसे किसी ने बहुत दिन पहले कान में एक बात कही थी। बात कहने वाले का आशय कुल जमा ये था कि अपनी शीला जी, राज ठाकरे से अत्यंत प्रभावित हैं। कहने वाले ने तो यह भी कहा था कि राज जी, समय-समय पर शीला जी को फीड देते रहते हैं। यही कारण है कि शीला जी के बयानों से उनके बयानों की बू आती है।मुझे उसकी बात में दम नजर रहा है क्यों कि राजनीति में सब-कुछ संभव है। यह मेरा नहीं, खुद राजनेताओं का कथन है। किसी भी तरह राज करने की नीति जो ठहरी।जो भी हो, शीला जी लेकिन आपकी बीमारियां गंभीर हैं और उनका समय रहते इलाज बहुत जरूरी है। कहीं ऐसा हो कि मौका हाथ से निकल जाए और आप इन बीमारियों को ढोते-ढोते मनोचिकित्सक से इलाज कराने लायक भी रहें। ईश्वर आपकी मदद करे। -यायावर
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