बुधवार, 12 जनवरी 2022

गठबंधन के बावजूद अखिलेश को जयंत पर भरोसा नहीं, चुनाव बाद पाला बदलने की आशंका


पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर पहले चरण में ही मतदान होना है उनके लिए पर्चा दाखिल करने की शुरूआती तारीख लगभग सिर पर है, किंतु कई मुलाकातों के बाद भी अब तक राष्‍ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी के बीच टिकटों का बंटवारा नहीं हो सका है।

गठबंधन का ऐलान किए काफी समय हो जाने के बावजूद टिकटों के बंटवारे में जो सबसे बड़ी बाधा आ रही है, वह है सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का आरएलडी सुप्रीमो जयंत चौधरी पर वो भरोसा न कर पाना जिसकी सर्वाधिक दरकार है।
दरअसल, अखिलेश यादव जयंत चौधरी पर आंख बंद करके इसलिए भरोसा नहीं करना चाहते क्‍योंकि आरएलडी का इतिहास उन्‍हें इसकी इजाजत नहीं देता।
अखिलेश यादव ही नहीं, सब जानते हैं कि सत्ता में साझेदारी की खातिर आरएलडी ने हमेशा अपने सहयोगियों को धोखा दिया है। जब-जब सत्ता और विपक्ष में से किसी एक को चुनने की नौबत आरएलडी के सामने आई है, तब-तब उसने सत्ता का चुनाव किया है।
हालांकि यह पहली बार है जब जयंत चौधरी आरएलडी के सर्वेसर्वा की हैसियत से चुनाव मैदान में हैं लिहाजा उनके पास अपने बड़ों की गलती से सीख लेने का अवसर भी है परंतु यह सवाल अभी भविष्‍य के गर्भ में है कि वह इस पर खुद को कितना खरा साबित कर पाते हैं।
संभवत: यही कारण है कि अखिलेश अपना हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। फिर बात चाहे चौधरी चरण सिंह के पोते और चौधरी अजीत सिंह के पुत्र चौधरी जयंत की हो या फिर अपने सगे चाचा शिवपाल यादव अथवा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर की।
अखिलेश यादव ने तमाम लानत-मलामत को दरकिनार कर जिस तरह समाजवादी पार्टी की कमान पूरी तरह अपने हाथ में ली और चाचा शिवपाल को भी नाकों चने चबवाकर अपने सामने समर्पण करने को बाध्‍य कर दिया, उससे साफ जाहिर है कि राजनीति उनके लिए अब एक मंझे हुए खिलाड़ी का खेल बन चुकी है जबकि जयंत को अभी साबित करना है कि वह अपनी राजनीतिक विरासत को संभाल भी पाते हैं या नहीं।
बहरहाल, इन्‍हीं स्‍थिति-परिस्‍थितियों के मद्देनजर एक ओर जहां जयंत चौधरी चाहते हैं कि वह अखिलेश यादव से जितना अधिक संभव हो सीटें झटक लें वहीं अखिलेश यादव उन्‍हें ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहते जिससे वो चुनाव बाद फ्रंट फुट पर खेलने की स्‍थिति में हों।
बताया जाता है कि अखिलेश और जयंत के बीच सीटों के बंटवारे से अधिक जिस मुद्दे को लेकर कशमकश चल रही है, वह है गठबंधन के प्रत्‍याशियों को किन-किन सीटों पर किस ‘सिंबल’ से चुनाव लड़ाया जाए।
अखिलेश यादव अपने दोनों हाथों में लड्डू रखकर चलना चाहते हैं जिससे चुनाव बाद पछताने की नौबत न आए। वह चाहते हैं कि पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी के प्रभाव वाली अधिकांश सीटों पर समाजवादियों को आरएलडी के सिंबल पर चुनाव मैदान में उतारें और जहां सपा व आरएलडी का मिला-जुला प्रभाव है वहां वह अपने सिंबल का इस्‍तेमाल कर चुनाव लड़ें। इस तरह उनके साथ आगे चलकर धोखा खाने की संभावना काफी क्षीण हो जाएगी।
उधर जयंत चौधरी चाहते हैं कि आरएलडी के हिस्‍से में न सिर्फ ज्‍यादा सीटें आएं बल्‍कि अपने और समाजवादी पार्टी के मिले-जुले प्रभाव वाली अधिकांश सीटों पर वह आरएलडी के सिंबल का इस्‍तेमाल करें।
राजनीतिक नजरिए से देखें तो दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं किंतु मौके की नजाकत दोनों को मजबूर कर रही है।
जयंत चौधरी को लगता है कि कृषि कानूनों के खिलाफ खड़े किए गए कथित किसान आंदोलन से भाजपा के प्रति उपजी किसानों की नाराजगी का उनकी पार्टी इन चुनावों में अच्‍छा लाभ ले सकती है लेकिन अखिलेश यादव का मानना है कि भाजपा के मुख्‍य मुकाबले में वही हैं इसलिए चुनावी समर का पूरा ताना-बाना समाजवादी पार्टी के इर्द-गिर्द ही बुना जाना चाहिए।
इसके अलावा अखिलेश किसी भी सहयोगी दल के लिए ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहते जिसका प्रयोग कर वह अखिलेश के ‘किंग’ बनने की राह का रोड़ा बन जाए और खुद ‘किंग मेकर’ की भूमिका में आ खड़ा हो।
ऐसे में बस देखना बाकी है तो इतना कि गांठों के इस बंधन (गठबंधन) को लेकर खेले जा रहे खेल का बड़ा खिलाड़ी अंतत: कौन साबित होता है और कमान से छूटे कितने तीर चुनाव बाद उसके अपने तरकश की शोभा बढ़ाते हैं।

-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गोवर्धन के लिए 5 करोड़ की पेशगी और छाता के लिए मुंह मांगी रकम, निष्ठाएं बदलने को भी तैयार मथुरा के माननीय


 उत्तर प्रदेश में चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों का बिगुल फूंके जाने के साथ ही निष्‍ठाओं से किनारा कर लेने तथा टिकटों की खरीद-फरोख्‍त का अघोषित मुहूर्त भी निकाल दिया है।

अब जैसे-जैसे राजनीतिक पार्टियां अपने उम्‍मीदवारों की सूची जारी करेंगी, वैसे-वैसे चुनावी मैदान में ताल ठोकने को आतुर नेता एक ओर पाला बदलते दिखाई देंगे तो दूसरी ओर उम्‍मीदवारी के लिए बोरे भर भरकर पैसा फेंकते भी नजर आएंगे।
ये स्‍थिति वैसे तो किसी एक जिला या एक विधानसभा की न होकर पूरे प्रदेश में दृष्टिगोचर होगी लेकिन यदि बात करें मथुरा की तो यहां इस मर्तबा ये खेल बड़े स्‍तर पर खेले जाने की संभावना है, और इसके लिए बिसात बिछनी शुरू हो चुकी है।
योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली मथुरा कहने के लिए हमेशा से ही राजनीतिक दृष्‍टि से महत्‍वपूर्ण रही है परंतु 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले जिस तरह इसे सियासत का केंद्र बनाने की कोशिश की गई है और अयोध्‍या व काशी की तर्ज पर कृष्‍ण जन्‍मभूमि को भव्‍य-दिव्‍य बनाने का ऐलान किया गया है, तब से इस धार्मिक स्‍थान की चर्चा कुछ ज्‍यादा हो रही है।
जाहिर है कि ऐसे में यहां का चुनाव ही नहीं, उम्‍मीदवारों का चयन भी खासा अहम हो जाता है।
यही कारण है कि यहां से संभावित उम्‍मीदवारों के दिल की धड़कनें कुछ ज्‍यादा तेज चल रही हैं क्‍योंकि सवाल लगभग जीवन-मरण जैसा है।
पांच विधानसभा सीटों वाले मथुरा जनपद से फिलहाल भाजपा के चार विधायक हैं, और मांट सीट बसपा के पास है। भाजपा के चार विधायकों में से दो योगी सरकार में कबीना मंत्री हैं।
बताया जाता है कि विगत माह वृंदावन में हुई बैठक के बाद ”संघ” ने यहां 2017 के पांच प्रत्‍याशियों में से तीन को बदलने की संस्‍तुति पार्टी आलाकमान से की थी। इसके अलावा भाजपा के सूत्र भी बताते हैं कि पार्टी अबकी बार उम्‍मीदवारों के चयन को लेकर काफी सतर्क है।
ऐसे में एक ओर जहां ये आशंका है कि कुछ सिटिंग विधायकों पर भी गाज गिर सकती है, वहीं दूसरी ओर तमाम लोगों को उम्‍मीद बंधी है कि उनका नंबर आ सकता है।
टिकट के लिए 5 करोड़ का ऑफर
पार्टी सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार कल तक भाजपा से गोवर्धन के लिए आवेदन करने वाले एक महानुभाव कथित ‘राष्‍ट्रीय दल’ के मुखिया को 5 करोड़ पेशगी दे आए हैं जबकि उनसे पहले तीन करोड़ पहुंचा चुके संभावित प्रत्‍याशी ने अपना प्रचार तक शुरू कर दिया है।
कभी स्‍टांप वेंडर रहे ये महानुभाव इस बार हर कीमत पर चुनाव लड़ना चाहते हैं क्‍योंकि अतीत में रहे इनके ‘कारनामे’ इन्‍हें राजनीतिक संरक्षण को मजबूर कर रहे हैं।
ये माननीय कर सकते हैं घर वापसी
जनपद की बल्‍देव (सुरक्षित) सीट का भी हाल करीब-करीब ऐसा ही है। चर्चा है कि टिकट कटने की स्‍थिति में यहां एक माननीय घर वापसी कर सकते हैं और इसके लिए उन्‍होंने अपने जोते बांधना शुरू कर दिया है ताकि ऐन वक्‍त पर हाथ मलने की नौबत न आ जाए।
मंत्री महोदय की सांसें भी अटकीं
मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट पर चूंकि योगी आदित्‍यनाथ के लड़ने की अटकलें हैं लिहाजा मंत्री महोदय की भी सांसें अटकी हुई हैं। मंत्री महोदय की सांसें अटकने का एक कारण उनके प्रति पार्टी कार्यकर्ताओं का आक्रोश भी है। हालांकि उनके समर्थक किसी आक्रोश से इंकार करते हैं।
ये बात अलग है कि विपक्षी दल उनको चुनाव लड़ाना चाहते हैं जिससे उनके प्रति उपजी कथित नाराजगी का लाभ ले सकें। एक पूर्व विधायक को खुलेआम यह कहते सुना जा सकता है कि मंत्री महोदय यदि फिर चुनाव मैदान में उतरे तो मेरी जीत तय है।
हालात और समीकरणों का लाभ अन्‍य दूसरे दलों से जुड़े लोग भी उठाना चाहते हैं इसलिए सुगबुगाहट विपक्षी खेमे में भी कम नहीं हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि मथुरा-वृंदावन तथा मांट सीट पर ‘गठबंधन’ के प्रत्‍याशियों को अलग-अलग चुनाव चिन्‍हों पर चुनाव लड़ाया जाएगा। एक जगह बड़े दल के चिन्‍ह पर जबकि दूसरी जगह छोटे दल के चिन्‍ह पर गठबंधन के प्रत्‍याशी मैदान में होंगे। हालांकि मांट सीट की उम्‍मीदवारी के लिए अच्‍छी बोली लगाई जा रही है लेकिन यहां अंतिम निर्णय ‘बड़े दल के नेताजी’ करेंगे।
एक चाल यह भी चली जा सकती है कि मांट से गठबंधन का उम्‍मीदवार खड़ा ही न किया जाए जिससे भाजपा को खाता खोलने का अवसर तक न मिल सके और मुकाबला त्रिकोणीय न होकर आमने-सामने का रहे।
शेष रही दूसरे मंत्री के चुनाव क्षेत्र छाता की बात, तो यहां भी स्‍वास्‍थ्‍य और उम्र की वजह से मंत्री जी खुद को बहुत सुखद महसूस नहीं कर रहे। पार्टी भी इस स्‍थिति पर गौर कर रही है किंतु मंत्री जी चाहते हैं कि उनके ही परिवार को प्राथमिकता दी जाए।
उन्‍होंने अपनी एक पुत्री का नाम आगे बढ़ाया भी है जिससे पार्टी संज्ञान ले सके लेकिन छाता क्षेत्र की राहें इस बार पहले जितनी आसान नहीं हैं।
गठबंधन के अलावा बसपा भी यहां से ठाकुर प्रत्‍याशी उतारकर बड़ा दांव खेलने के प्रयास में है लेकिन इस सबके बीच सर्वाधिक चर्चा है तो इसी बात की है कि कौन कितने में टिकट लेकर आता है और कौन निष्‍ठाएं बदलकर भाग्य आजमाने उतरता है।
जो भी हो, लेकिन एक बात तय है कि करोड़ों में टिकट खरीदने, और फिर करोड़ों चुनाव पर खर्च करने वाले ये नेता किसी भी रूप में जनता के भाग्य विधाता नहीं हो सकते।
हो सकते हैं तो केवल ऐसे सूदखोर जो हर वक्‍त किसी न किसी तरह मूल से कई गुना अधिक वसूलने की फिराक में लगा रहता है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

योगी जी को वेस्टर्न यूपी के ही किसी जनपद से चुनाव लड़वाने पर विचार, चर्चा में मथुरा का नाम सबसे आगे


 उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मी जोर पकड़ रही है, वैसे-वैसे इस बात की भी चर्चा तेज होती जा रही है कि योगी आदित्‍यनाथ को आखिर कहां से चुनाव मैदान में उतारा जाएगा।

योगी जी के चुनाव लड़ने के लिए संभावित सीटों की बात करें तो अयोध्या और गोरखपुर के साथ सबसे ज्यादा चर्चा मथुरा की है।
इस चर्चा का मुख्‍य आधार है अयोध्‍या तथा काशी के बाद मथुरा में श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि पर बने मंदिर को भव्‍य तथा दिव्‍य बनाए जाने की वो मंशा, जिसे कभी खुद भाजपा ने जाहिर किया था।
बीजेपी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखा पत्र


बीजेपी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर योगी को मथुरा सीट से चुनाव लड़ाने की सलाह दी है। यादव ने लिखा है कि ब्रज क्षेत्र की जनता की विशेष इच्छा है कि योगीजी भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा से चुनाव लड़ें। यादव ने कहा कि योगी जी ने भी कहा है कि पार्टी जहां से कहेगी, वह वहीं से चुनाव लड़ेंगे। हरिनाथ सिंह ने कहा, ‘बीती रात मेरी आंखें दो बार खुलीं और मुझे लगा कि भगवान श्रीकृष्ण मुझसे कह रहे हैं कि मैं नेतृत्व को कहूं कि योगी जी मथुरा से चुनाव लड़ें इसलिए सुबह मैंने राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखा।’

योगी जी ने भी जाहिर की थी इच्‍छा
ज्यादा दिन नहीं हुए जब योगी जी ने मंच से कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है, काशी में विश्वनाथ का धाम बना है, तो मथुरा-वृंदावन कैसे छूट जाएगा। मतलब साफ है कि बीजेपी इस चुनाव में भी हिंदुत्व के एजेंडे पर बढ़ रही है और सपा खेमे में चिंता का यही सबसे बड़ा कारण भी है। अयोध्या-काशी के बाद अब मथुरा की तैयारी है… यह नारा यूपी की चुनावी चर्चाओं गूंज रहा है।
वैसे भी बीजेपी के अंदर ये आवाज पहले से गूंजती रही है कि अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है! भगवान राम, कृष्ण, शिव से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है। अयोध्या, काशी, मथुरा तीनों ही जगहों पर मंदिर-मस्जिद का मसला रहा है और वैसे भी बीजेपी तथा संघ के एजेंडे में ये रहा है।
हरनाथ सिंह यादव खुद कहते हैं कि भगवान कृष्ण के मंदिर पर जो मस्जिद खड़ी है उससे मुक्ति कौन दिला सकता है, इस बारे में लोग सोच रहे हैं।
राम मंदिर ना बने इसके लिए जिन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में वकीलों की फौज खड़ी कर दी थी, ऐसे लोग भगवान कृष्ण का मंदिर कभी नहीं बनाएंगे। चाहे वह अखिलेश यादव हों, राहुल गांधी हों, मायावती या कोई अन्‍य। भगवान कृष्ण के मंदिर का निर्माण सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही कर सकते हैं। सियासी घटनाक्रम की कड़ियां जोड़ना शुरू करें तो योगी के मथुरा से चुनाव में उतरने की संभावना प्रबल दिखती है। हालांकि योगी आदित्यनाथ फिलहाल विधान परिषद के सदस्य हैं।
बीजेपी को फायदा क्या होगा?
मथुरा से योगी को चुनाव में उतारकर भाजपा कुछ वैसा ही समीकरण साधने की कोशिश कर रही है, जैसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात छोड़कर काशी आने पर उसे पूर्वांचल में हुआ। यह हिंदुत्व के एजेंडे पर भी बिल्कुल सटीक बैठता है। मथुरा में कुछ दिनों में तो मंदिर बनने से रहा, हां योगी यहां से चुनाव लड़ते हैं तो इसका जनता में मैसेज साफ जाएगा। वैसे भी किसान आंदोलन के झटके से उबर रही बीजेपी को पश्चिमी यूपी की विशेष चिंता होगी। शायद यही वजह है कि भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रणनीति मुथरा-वृंदावन में ही तैयार कर रही है। इसके जरिए भगवा दल पूरे पश्चिम को साधने की कोशिश में है, जो किसान आंदोलन के चलते थोड़ा दूर जाता दिख रहा था।
सीटों का नफा-नुकसान भी समझ लीजिए
वेस्टर्न यूपी के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कृषि कानून के विरोध में जिस प्रकार से किसानों का आंदोलन एक साल से अधिक समय तक चला। कई किसानों की मौत भी हुई, उससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को लेकर किसानों में नाराजगी है। इसका नुकसान बीजेपी को विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। इस मुद्दे का फायदा राष्ट्रीय लोक दल या उससे गठबंधन करने वाली समाजवादी पार्टी को मिल सकता है। अगर ऐसा हुआ तो 16 जनपदों की करीब 136 सीटों पर सीधे तौर पर बीजेपी को नुकसान हो सकता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस क्षेत्र की 136 में से 109 सीटें जीती थीं। यही कारण है कि बीजेपी के रणनीतिकार इस बार कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। योगी इस चुनाव में बीजेपी के पास मजबूत चेहरा हैं, इसीलिए उन्हें वेस्टर्न यूपी के ही किसी जनपद से चुनाव लड़वाने पर विचार हो रहा है और मथुरा इसके लिए सबसे मुफीद नजर आता है।
मथुरा में श्रीकृष्‍ण जन्मभूमि को लेकर विवाद क्या है
कृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में मथुरा की जिला सिविल कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि मुसलमानों की मदद से शाही ईदगाह ट्रस्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया और ईश्वर के स्थान पर एक ढांचे का निर्माण कर दिया। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उसी ढांचे के नीचे स्थित है। 13.37 एकड़ जमीन पर दावा करते हुए स्वामित्व मांगने के साथ ही शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। मथुरा में शादी ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि से लगी हुई बनी है। इतिहासकार मानते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब ने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था और शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था।
-Legend News

मानो या ना मानो: आखिर भाजपाई भी बोले, “हमारा नेता कैसा हो… टीपू भैया जैसा हो”


 कोई माने या ना माने लेकिन यह सोलह आना सही है कि आज ‘समाजवादियों’ और उनके ‘हमसफर’ दलों को छोड़कर सभी पार्टियों के नेता मन ही मन यह नारा जरूर लगा रहे होंगे कि “हमारा नेता कैसा हो… टीपू भैया जैसा हो”।

अगर बात करें खालिस विपक्षी पार्टियों की तो भाजपाई निश्‍चित ही बल्‍लियों उछल उछल कर अपने-अपने कुल देवताओं से मनौती भी मान चुके होंगे कि हर चुनाव में उनकी पार्टी के सामने टीपू भैया जैसा नेता ही मुक़ाबिल हो।
भाजपाइयों का अपने लिए ऐसी मनौती मानना बनता भी है। भला टीपू भैया जैसा कौन सा दूसरा नेता उन्‍हें मिलेगा जो सत्ताधारी दल को ‘लाल टोपी’ दिखा दिखाकर अपने ही उस एमएलसी के ठिकानों पर ‘रेड’ पड़वा दे जिस बेचारे ने चंद दिनों पहले समाजवादी बगिया में परफ्यूम छिड़क कर प्रदेशभर को महका दिया था।
पीयूष जैन भाजपाई है या सपाई, इसकी तो अभी जांच होना बाकी है लेकिन ‘पम्‍पी’ तो घोषित समाजवादी हैं। टीपू भैया के एमएलसी हैं, फिर उन्‍हें लेकर ऐसी ‘कालीदासाना’ हरकत करने के पीछे आखिर कौन सी राजनीति हो सकती है।
टीवी डिबेट में अक्‍सर ‘नमूदर’ होने वाले राजनीतिक विश्‍लेषकों की मानें तो टीपू भैया चुनावों के लिए बेशक अपना प्रमुख प्रतिद्वंदी भाजपा को मानते हों किंतु जब बात ‘बुद्धि’ के प्रदर्शन की आती हो तो वो अपने पुराने पार्टीबंध साथी ‘पप्‍पू’ से प्रतिस्‍पर्धा करना पसंद करते हैं।
यही कारण है कि उन्‍होंने यूपी में चुनावों से ठीक पहले यह साबित करने की पूरी कोशिश की है कि बल, बुद्धि और विद्या के मामले में ‘पप्‍पू’ पर ‘टीपू’ पहले भी भारी था, आज भी भारी है और शायद आगे भी रहेगा।
लाल टोपी उनके ‘बल’ का प्रतीक है तो ‘टोंटी’ की चोरी का खुला प्रदर्शन और अपने एमएलसी के यहां रेड डालने की चुनौती देना, ‘बुद्धि’ के क्षेत्र में उनके कालिदास होने का प्रत्‍यक्ष प्रमाण है।
‘विद्या’ के बाबत कुछ कहने सुनने की जरूरत स्‍वत: समाप्‍त हो जाती है क्‍यों कि ‘दोनों लड़के’ भले ही विदेशी डिग्री धारी हों किंतु एक ‘क्‍वालीफाइड’ है जबकि दूसरा एजुकेटेड। मतलब कि एक पढ़ा-लिखा होकर भी अशिक्षित सा लगता है और दूसरा आचार-व्‍यवहार में अशिक्षित जान पड़ता है किंतु मतलब में इतना चौकस है कि लगता है सारी डिग्रियां घोलकर पी चुका है।
एक प्रदेश की कमान संभाल चुका है और दूसरे ने अब तक किसी विभाग तक की कमान नहीं पकड़ी। एक से पार्टी की कमान नहीं संभली लिहाजा न चाहते हुए ‘अम्‍मी जान’ को संभालनी पड़ रही है और दूसरे ने ‘अब्‍बाजान’ को किनारे कर पार्टी की कमान छीन ली और अब भी कस कर पकड़े हुए है। चचाजान को ‘चाबी’ की जगह ‘स्‍टूल’ थमा कर परमानेंट वेट एंड वॉच’ की मुद्रा में बैठा दिया है।
दूर से देखो तो टीपू के ये रे कारनामे बहुत बुद्धि वाले लगते हैं लेकिन हैं बड़े आत्‍मघाती। पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारने वाले। ठीक उस ‘कालीदास’ की तरह जो पेड़ की उसी डाल को काट रहा था, जिस पर बैठा था। ऐसा न होता तो वो अपनी ‘रारनीति’ के लिए उस पम्‍पी को मुश्‍किल में नहीं डालता जो न सिर्फ तन, मन धन से समाजवादी है बल्‍कि परफ्यूम के जरिए समाजवादी कुनबे को महकाने में लगा था।
तभी तो आज भाजपाई भी यह कहने पर मजबूर हैं कि “हमारा नेता कैसा हो… टीपू भैया जैसा हो”।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

कुछ तो बड़ा संकेत दे रहा है यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का बार-बार श्रीकृष्ण जन्मभूमि पहुंचना


 भारतीय जनता पार्टी सहित सभी हिंदूवादी संगठनों का कभी ये नारा हुआ करता था- “राम, कृष्‍ण, विश्‍वनाथ…तीनों लेंगे एकसाथ”।

हिंदूवादी दलों के इस नारे पर तब विपक्ष भी तंज कसता था क्‍योंकि राम मंदिर का ही विवाद सुलझने में नहीं आ रहा था, तो श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि तथा काशी विश्‍वनाथ की बात अतिशयोक्ति लगती थी।
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जब तक अयोध्‍या में राम मंदिर के निर्माण का रास्‍ता साफ हुआ, तब तक भाजपा को एकबात पूरी तरह समझ में आ चुकी थी कि कानूनी लड़ाई लड़कर वह अपने नारे को कभी सार्थक नहीं कर सकती।
इसके अलावा अब वो स्‍थितियां-परिस्‍थितियां भी नहीं रहीं कि धर्म व आस्‍था से जुड़े किसी केस का निपटारा कराने के लिए साल-दर-साल अदालतों का मुंह देखा जाए।
संभवत: इसीलिए अयोध्‍या का फैसला आने से पहले ही नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व वाली भाजपा की सरकार ने काशी विश्‍वनाथ और ज्ञानवापी मस्‍जिद के विवाद को हल करने का ऐसा नायाब तरीका खोज लिया जिससे ‘सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे’ वाली कहावत चरितार्थ होती हो।
काशी चूंकि प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र था इसलिए इस ड्रीम प्रोजेक्‍ट को निर्धारित समय के अंदर पूर्ण कराने में यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी नतीजतन देखते ही देखते एक भव्‍य विश्‍वनाथ कॉरीडोर सबके सामने है।
मोदी-योगी की जुगलबंदी ने एक बड़ी लाइन खींचकर काशी विश्‍वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्‍जिद के विवाद को इतना छोटा कर दिया कि उसका कोई महत्‍व ही नहीं रह गया। न अयोध्‍या की तरह मस्‍जिद की तरफ आंख उठाकर देखने की जरूरत पड़ी और न अदालती नतीजे का इंतजार करना पड़ा।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने बड़े सलीके से राम मंदिर निर्माण से पहले काशी विश्‍वनाथ का मुद्दा हल कर लिया।
जाहिर है कि अब सबका फोकस मथुरा स्‍थित श्रीकृष्‍ण जन्मभूमि बनाम शाही मस्‍जिद ईदगाह विवाद पर है। इसे लेकर हाल में दायर हुए वादों की बात यदि छोड़ भी दी जाए तो सन् 1967 से यह विवाद न्‍यायालय में लंबित है। यानी पिछले 54 वर्षों से ये मामला विचाराधीन है।
इन हालातों में यदि ये कहा जाए कि काशी विश्‍वनाथ कॉरिडोर की तरह मथुरा में भी एक भव्‍य श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि कॉरिडोर बनाकर कृष्‍ण जन्‍मभूमि व शाही मस्‍जिद ईदगाह के विवाद की न सिर्फ हवा निकाली जा सकती है बल्‍कि उसे इतना बौना बनाया जा सकता है कि वह अपना महत्‍व ही खो दे, तो कुछ गलत नहीं होगा।
यह इसलिए भी संभव है कि कटरा केशवदेव के दायरे में बनी शाही मस्‍जिद ईदगाह पर किसी भी किस्‍म के निर्माण अथवा जीर्णोद्धार को लेकर कानूनी बंदिशें पहले से लागू हैं जबकि श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि को विस्‍तार देने में ऐसी कोई बाधा नहीं है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की मथुरा के संदर्भ में पिछले दिनों से लगातार की जा रही बयानबाजी यह बताती है कि कुछ तो ऐसा है जो भाजपा सरकार सोचे बैठी है और जिससे “राम, कृष्‍ण, विश्‍वनाथ…तीनों लेंगे एकसाथ” का नारा फलीभूत किया जा सकता है।
कल यानि 19 दिसंबर 2021 को भी मथुरा में अपनी जनसभा करने आए सीएम योगी आदित्‍यनाथ जिस तरह अचानक बिना तय कार्यक्रम के श्रीकृष्‍ण जन्‍मस्‍थान जा पहुंचे उससे साफ संकेत मिलता है कि उनके दिमाग में कुछ तो बड़ा चल रहा है।
योगी आदित्‍यनाथ का बहुत कम समय के अंतराल में श्रीकृष्‍ण जन्‍मस्‍थान पर यह पांचवा दौरा था, इस कारण भी चर्चाएं होना स्‍वाभाविक हैं। बेशक अभी चुनावों की विधिवत घोषणा का लोगों को इंतजार है किंतु फिजा में तैर रही बयार इसकी पुष्‍टि कर रही है कि दुंदुभि बज चुकी है, बस औपचारिकता शेष है।
यही कारण है कि सीएम योगी के कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान दौरे की टाइमिंग से इस आशय के संकेत मिल रहे हैं। अब देखना कुछ बाकी है तो केवल यह कि इसका ऐलान कब तथा किस रूप में किया जाता है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

“योगीराज श्रीकृष्‍ण” की जन्‍मभूमि से “सीएम योगी” के चुनाव लड़ने की चर्चाएं!


 इन दिनों योगीराज श्रीकृष्‍ण की जन्‍मभूमि से सीएम योगी आदित्‍यनाथ के चुनाव लड़ने की राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा हो रही है। पांच राज्‍यों में होने वाले चुनावों से पहले इस तरह की चर्चा होने का एक प्रमुख कारण उनका राम, कृष्‍ण और विश्‍वनाथ की भूमि पर विशेष फोकस होना बताया जा रहा है।

चूंकि राम जन्‍मभूमि पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय का आदेश आने के बाद वहां मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है, और काशी विश्‍वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन इसी महीने की 13 तारीख को पीएम मोदी करने जा रहे हैं इसलिए कहा जा रहा है कि अब कृष्‍ण जन्‍मभूमि यानी मथुरा पर पूरा ध्‍यान केंद्रित है।
कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान क्षेत्र में बनी मथुरा की शाही मस्‍जिद ईदगाह के अंदर बाबरी ध्‍वंस के दिन 06 दिसंबर को लड्डू गोपाल का जलाभिषेक करने की घोषणा के बाद हालांकि पुलिस-प्रशासन ने अपनी सारी ताकत झोंक कर स्‍थिति को संभाल लिया किंतु इस बीच प्रदेश के उप मुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बयान यह बताते रहे कि मथुरा स्‍थित कृष्‍ण जन्‍मभूमि का मुद्दा अब उनकी प्राथमिकता है और वह धर्म व आस्‍था के मामले में कोई समझौता नहीं करेंगे।
उप मुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इन बयानों को आम जनता योगी सरकार की मंशा ही मान रही है, हालांकि पुलिस-प्रशासन हमेशा की तरह अपना काम करता दिखाई दे रहा है।
दरअसल, कुछ समय से एक प्रश्‍न इस आशय का उठाया जाने लगा है कि क्या रामनगरी अयोध्‍या तथा बाबा विश्‍वनाथ की नगरी काशी की अपेक्षा कृष्‍ण की नगरी मथुरा को योगी सरकार कम तरजीह दे रही है और इसीलिए मथुरा का विकास उसकी गरिमा के अनुरूप अब तक नहीं हो पाया है।
इसी संदर्भ में मथुरा के लोग भी उत्तर प्रदेश तीर्थ विकास परिषद् के कामकाज सहित उसके लिए नियुक्त अधिकारियों की नेकनीयती पर शंका कर रहे हैं, जिससे संदेश अच्‍छा नहीं जा रहा।
जाहिर है कि चुनावी मौसम में यह संदेश प्रदेश स्‍तर पर नुकसान पहुंचा सकता है क्‍योंकि इसका सीधा संबंध धर्म से है और धर्म की ध्‍वजा फिलहाल भाजपा ने ही उठा रखी है।
ऐसा कोई संदेश न जाए और इसका कोई खामियाजा न भुगतना पड़े इसलिए सीएम योगी आदित्‍यनाथ को मथुरा से लड़ाने पर विचार किए जाने की खबरें आ रही हैं।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्‍व जानता है कि योगी को मथुरा से चुनाव लड़ाकर पूरे प्रदेश ही नहीं, देशभर तक यह बात पहुंचाई जा सकती है कि अयोध्‍या तथा काशी की तरह मथुरा भी भाजपा के शीर्ष एजेंडे का हिस्‍सा है और वह इसके विकास में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
इस सबके अलावा यूं भी भाजपा मथुरा की 4 जीती हुई सीटों में से कोई सीट गंवाना नहीं चाहेगी। इसलिए संभव है कि योगी जी को यहां से चुनाव लड़ाने पर विचार किया जा रहा हो।
गौरतलब है कि आरएसएस ने मथुरा की कुल 5 विधानसभा सीटों में से 3 सीटों पर प्रत्‍याशी बदलने का मशविरा दिया था, जिसका सीधा अर्थ यह था कि सिटिंग विधायकों के बूते 2017 को दोहराना आसान नहीं होगा।
अब देखना यह है कि राम, कृष्‍ण, विश्‍वनाथ तीनों के पावन धामों को एक ही चश्‍मे से देखने का दावा करने वाली भाजपा क्या वाकई मथुरा को लेकर गंभीर है या फिलहाल होहल्‍ला मचाकर इसे होल्‍ड पर रखना चाहती है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

6 December 2021: पैरा मिलिट्री फोर्स के हवाले होगा “मथुरा” का श्रीकृष्‍ण जन्‍मस्‍थान क्षेत्र, ढिलाई के मूड में नहीं है जिला प्रशासन

 छह दिसंबर को लेकर पुलिस-प्रशासन पूरी तरह चौकस नजर आ रहा है। परिंदा पर न मार सके, ऐसा सुरक्षा खाका यलो जोन में खींचा गया है। आगरा मंडल से आने वाला फोर्स आज (शुक्रवार) शाम से अपने प्वाइंटों पर मुस्तैद हो जाएगा। मंडलायुक्त अमित गुप्ता और आईजी नचिकेता झा ने मथुरा के पुलिस अफसरों के मंथन करके सख्ती से निपटने के लिए कहा गया है। हालांकि धार्मिक संगठन और सामाजिक संगठनों ने ईदगाह पर संकल्प यात्रा व जलाभिषेक करने का एलान स्थगित कर दिया है, बावजूद इसके पुलिस-प्रशासन कतई भी ढिलाई के मूड में नहीं है। मंडलायुक्त और आईजी ने मथुरा आकर मथुरा के डीएम नवनीत सिंह चहल, एसएसपी डॉक्टर गौरव ग्रोवर, एसपी सिटी मार्तंड प्रकाश सिंह, एसपी सुरक्षा आनंद कुमार आदि अफसरों के संग मंथन करके पूरी तरह से सतर्क और सजग रहते हुए सख्ती बरतने के लिए कहा है। छह दिसंबर को लेकर पुलिस और पैरा मिलिट्री फोर्स शुक्रवार की शाम को मथुरा पहुंच जाएगा।

आगरा मंडल ने आने वाले फोर्स की बीती रात ही ड्यूटियां निश्चित कर दी गईं। हर हाल में पुलिस सख्ती से निपटने के लिए तैयार है। एसपी सिटी मार्तंड प्रकाश सिंह ने बताया कि शुक्रवार की शाम से फोर्स ड्यूटी पर मुस्तैद नजर आएगा।
जुमे की नमाज को लेकर भी पुलिस की सख्ती
जुमे की नमाज को लेकर भी पुलिस-प्रशासन पूरी तरह से सतर्क और सजग दिखा। चप्पे-चप्पे पर पुलिस और पीएसी के जवानों को लगाया गया था। खुद एसएसपी डॉक्टर गौरव ग्रोवर ने कमान संभाली। सुबह से पुलिस-प्रशासन के अफसरों का जमावड़ा डीग गेट पर होगा।
पूर्वमंत्री ठा. तेजपाल सिंह ने यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर बयान पर आपत्ति जताते हुए शांत माहौल में जहर घोलने वाला करार दिया है। पूर्वमंत्री का कहना है कि योगीराज श्रीकृष्ण ने पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया। उसी की नगरी के शांत माहौल को बिगाड़ने के लिए यूपी सरकार के उपमुख्यमंत्री फिजूल का बयान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि कृष्ण की नगरी में सभी भाईचारे और सौहार्दपूर्ण तरीके से रह रहे हैं। शांतिप्रिय जिला है। इस जिले की शांतिभंग करने पर भाजपा पूरी तरह से उतारू है। पूर्वमंत्री ने जनपद की जनता से शांति बनाए रखते हुए सौहार्दपूर्ण तरीके से रहने की अपील की है।
सख्ती से निपटने को पुलिस तैयार
माहौल बिगाड़ने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। सोशल मीडिया पर भी पूरी निगाह रखी जा रही है। हर हाल में माहौल का शांत बनाए रखा जाएगा। -डॉ. गौरव ग्रोवर, SSP
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...