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बुधवार, 12 जनवरी 2022
गोवर्धन के लिए 5 करोड़ की पेशगी और छाता के लिए मुंह मांगी रकम, निष्ठाएं बदलने को भी तैयार मथुरा के माननीय
उत्तर प्रदेश में चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों का बिगुल फूंके जाने के साथ ही निष्ठाओं से किनारा कर लेने तथा टिकटों की खरीद-फरोख्त का अघोषित मुहूर्त भी निकाल दिया है।अब जैसे-जैसे राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करेंगी, वैसे-वैसे चुनावी मैदान में ताल ठोकने को आतुर नेता एक ओर पाला बदलते दिखाई देंगे तो दूसरी ओर उम्मीदवारी के लिए बोरे भर भरकर पैसा फेंकते भी नजर आएंगे।
ये स्थिति वैसे तो किसी एक जिला या एक विधानसभा की न होकर पूरे प्रदेश में दृष्टिगोचर होगी लेकिन यदि बात करें मथुरा की तो यहां इस मर्तबा ये खेल बड़े स्तर पर खेले जाने की संभावना है, और इसके लिए बिसात बिछनी शुरू हो चुकी है।
योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली मथुरा कहने के लिए हमेशा से ही राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है परंतु 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले जिस तरह इसे सियासत का केंद्र बनाने की कोशिश की गई है और अयोध्या व काशी की तर्ज पर कृष्ण जन्मभूमि को भव्य-दिव्य बनाने का ऐलान किया गया है, तब से इस धार्मिक स्थान की चर्चा कुछ ज्यादा हो रही है।
जाहिर है कि ऐसे में यहां का चुनाव ही नहीं, उम्मीदवारों का चयन भी खासा अहम हो जाता है।
यही कारण है कि यहां से संभावित उम्मीदवारों के दिल की धड़कनें कुछ ज्यादा तेज चल रही हैं क्योंकि सवाल लगभग जीवन-मरण जैसा है।
पांच विधानसभा सीटों वाले मथुरा जनपद से फिलहाल भाजपा के चार विधायक हैं, और मांट सीट बसपा के पास है। भाजपा के चार विधायकों में से दो योगी सरकार में कबीना मंत्री हैं।
बताया जाता है कि विगत माह वृंदावन में हुई बैठक के बाद ”संघ” ने यहां 2017 के पांच प्रत्याशियों में से तीन को बदलने की संस्तुति पार्टी आलाकमान से की थी। इसके अलावा भाजपा के सूत्र भी बताते हैं कि पार्टी अबकी बार उम्मीदवारों के चयन को लेकर काफी सतर्क है।
ऐसे में एक ओर जहां ये आशंका है कि कुछ सिटिंग विधायकों पर भी गाज गिर सकती है, वहीं दूसरी ओर तमाम लोगों को उम्मीद बंधी है कि उनका नंबर आ सकता है।
टिकट के लिए 5 करोड़ का ऑफर
पार्टी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार कल तक भाजपा से गोवर्धन के लिए आवेदन करने वाले एक महानुभाव कथित ‘राष्ट्रीय दल’ के मुखिया को 5 करोड़ पेशगी दे आए हैं जबकि उनसे पहले तीन करोड़ पहुंचा चुके संभावित प्रत्याशी ने अपना प्रचार तक शुरू कर दिया है।
कभी स्टांप वेंडर रहे ये महानुभाव इस बार हर कीमत पर चुनाव लड़ना चाहते हैं क्योंकि अतीत में रहे इनके ‘कारनामे’ इन्हें राजनीतिक संरक्षण को मजबूर कर रहे हैं।
ये माननीय कर सकते हैं घर वापसी
जनपद की बल्देव (सुरक्षित) सीट का भी हाल करीब-करीब ऐसा ही है। चर्चा है कि टिकट कटने की स्थिति में यहां एक माननीय घर वापसी कर सकते हैं और इसके लिए उन्होंने अपने जोते बांधना शुरू कर दिया है ताकि ऐन वक्त पर हाथ मलने की नौबत न आ जाए।
मंत्री महोदय की सांसें भी अटकीं
मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट पर चूंकि योगी आदित्यनाथ के लड़ने की अटकलें हैं लिहाजा मंत्री महोदय की भी सांसें अटकी हुई हैं। मंत्री महोदय की सांसें अटकने का एक कारण उनके प्रति पार्टी कार्यकर्ताओं का आक्रोश भी है। हालांकि उनके समर्थक किसी आक्रोश से इंकार करते हैं।
ये बात अलग है कि विपक्षी दल उनको चुनाव लड़ाना चाहते हैं जिससे उनके प्रति उपजी कथित नाराजगी का लाभ ले सकें। एक पूर्व विधायक को खुलेआम यह कहते सुना जा सकता है कि मंत्री महोदय यदि फिर चुनाव मैदान में उतरे तो मेरी जीत तय है।
हालात और समीकरणों का लाभ अन्य दूसरे दलों से जुड़े लोग भी उठाना चाहते हैं इसलिए सुगबुगाहट विपक्षी खेमे में भी कम नहीं हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि मथुरा-वृंदावन तथा मांट सीट पर ‘गठबंधन’ के प्रत्याशियों को अलग-अलग चुनाव चिन्हों पर चुनाव लड़ाया जाएगा। एक जगह बड़े दल के चिन्ह पर जबकि दूसरी जगह छोटे दल के चिन्ह पर गठबंधन के प्रत्याशी मैदान में होंगे। हालांकि मांट सीट की उम्मीदवारी के लिए अच्छी बोली लगाई जा रही है लेकिन यहां अंतिम निर्णय ‘बड़े दल के नेताजी’ करेंगे।
एक चाल यह भी चली जा सकती है कि मांट से गठबंधन का उम्मीदवार खड़ा ही न किया जाए जिससे भाजपा को खाता खोलने का अवसर तक न मिल सके और मुकाबला त्रिकोणीय न होकर आमने-सामने का रहे।
शेष रही दूसरे मंत्री के चुनाव क्षेत्र छाता की बात, तो यहां भी स्वास्थ्य और उम्र की वजह से मंत्री जी खुद को बहुत सुखद महसूस नहीं कर रहे। पार्टी भी इस स्थिति पर गौर कर रही है किंतु मंत्री जी चाहते हैं कि उनके ही परिवार को प्राथमिकता दी जाए।
उन्होंने अपनी एक पुत्री का नाम आगे बढ़ाया भी है जिससे पार्टी संज्ञान ले सके लेकिन छाता क्षेत्र की राहें इस बार पहले जितनी आसान नहीं हैं।
गठबंधन के अलावा बसपा भी यहां से ठाकुर प्रत्याशी उतारकर बड़ा दांव खेलने के प्रयास में है लेकिन इस सबके बीच सर्वाधिक चर्चा है तो इसी बात की है कि कौन कितने में टिकट लेकर आता है और कौन निष्ठाएं बदलकर भाग्य आजमाने उतरता है।
जो भी हो, लेकिन एक बात तय है कि करोड़ों में टिकट खरीदने, और फिर करोड़ों चुनाव पर खर्च करने वाले ये नेता किसी भी रूप में जनता के भाग्य विधाता नहीं हो सकते।
हो सकते हैं तो केवल ऐसे सूदखोर जो हर वक्त किसी न किसी तरह मूल से कई गुना अधिक वसूलने की फिराक में लगा रहता है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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