गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

समाजवादी पार्टी के अंदर जल्‍द हो सकता है बड़ा विस्‍फोट, अखिलेश कर सकते हैं नई पार्टी का ऐलान

समाजवादी पार्टी में इन दिनों सतही तौर पर दिखाई दे रही शांति दरअसल उस तूफान का आगाज़ है जो चुनावों की विधिवत घोषणा से पहले किसी भी समय आने वाला है।
पार्टी के ही अति विश्‍वसनीय सूत्रों की मानें तो नोटबंदी के बाद अचानक समाजवादी पार्टी में सुलह का जो दिखावा किया गया, वह सिर्फ रोज-रोज हो रही छीछालेदर से बचने का उपक्रम भर था। हकीकत में कहीं कुछ बदला नहीं था।
बहुत तेजी से यदि कुछ बदल रहा था तो वह थीं निष्‍ठाएं। ये बदली हुई निष्‍ठाएं ही अब राख के ढेर में दबी हुई चिंगारी का काम कर रही हैं।
बताया जाता है कि प्रदेश अध्‍यक्ष की कुर्सी पर काबिज होने के बाद जिस तरह चचा शिवपाल यादव चुन-चुनकर अखिलेश के खास लोगों की टिकट काट रहे हैं, उससे अखिलेश का पारा सातवें आसमान तक जा पहुंचा है।
स्‍थिति-परिस्‍थितियों के मद्देनजर अखिलेश ने पहले भी इस तरह की मांग रखी थी कि उम्‍मीदवारों के चयन में उनका दखल रखा जाए किंतु अखिलेश की मांग को चचा शिवपाल के साथ-साथ नेताजी ने भी तवज्‍जो नहीं दी।
अखिलेश की मांग के विपरीत चचा शिवपाल ने एक ओर जहां उनके नजदीकियों की टिकट काटना शुरू कर दिया वहीं दूसरी ओर उन माफियाओं की उम्‍मीदवारी पर मोहर लगा दी जो अखिलेश को फूटी आंख नहीं सुहाते।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक चचा शिवपाल के इस कारनामे ने राख के ढेर में दबी चिंगारियों को हवा देने का काम किया, नतीजतन अखिलेश ने आर-पार की लड़ाई लड़ने का मन बना लिया है।
आमसभाओं में अखिलेश भले ही विवादास्‍पद मुद्दों पर यह कहकर पल्‍ला झाड़ लेते हों कि इन मुद्दों पर निर्णय नेताजी लेंगे किंतु खास मौकों पर अखिलेश यह जताना नहीं भूलते कि उनकी सहमति के बिना कुछ नहीं हो पाएगा। बड़े निर्णय उनकी मोहर लगे बिना किसी मुकाम तक नहीं पहुंच सकते। फिर चाहे बात कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन की हो अथवा उम्‍मीदवारों को फाइनल करने की।
यही कारण है कि हाल ही में उन्‍होंने एक कार्यक्रम के दौरान यहां तक कह दिया था कि कोई साथ हो या न हो, यदि जनता साथ है तो एकबार फिर मेरी सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता।
पार्टी सूत्रों के अनुसार फिलहाल चचा-भतीजे के बीच प्रतिष्‍ठा का सबसे बड़ा मुद्दा या यूं कहें कि नाक की लड़ाई, पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष पद को लेकर है।
पार्टी के सूत्र बताते हैं कि अखिलेश ने इस मुद्दे पर पार्टी और परिवार के बीच साफ संदेश भी दे दिया है। अखिलेश ने कह दिया है कि या तो चचा से प्रदेश अध्‍यक्ष का पद छीनकर उसकी कमान उनके हाथों में सौंप दी जाए ताकि वह जिताऊ उम्‍मीदवारों को मैदान में उतारकर दोबारा सपा की सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्‍त किया जा सके अन्‍यथा वह अपना अलग मार्ग चुन लेंगे। अखिलेश ने इसके लिए समय भी निर्धारित कर दिया है। यानि जो करना है, वह निर्वाचन आयोग की घोषणा से पहले।
गौरतलब है कि इसी महीने निर्वाचन आयोग द्वारा उत्‍तर प्रदेश में चुनावों की तिथियां घोषित किए जाने की पूरी उम्‍मीद है और उसके बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। अखिलेश इससे पहले ही अपने राजनीतिक भविष्‍य की दिशा तय कर लेना चाहते हैं।
बताया जाता है कि समय रहते यदि नेताजी ने अखिलेश के मन मुताबिक शिवपाल यादव को किनारे नहीं लगाया और प्रदेश अध्‍यक्ष की कमान अखिलेश को नहीं सौंपी तो अखिलेश अपनी अलग राह पर चलने का ऐलान कर सकते हैं। वह उत्‍तराधिकार की लड़ाई को दरकिनार कर नई पार्टी के गठन की घोषणा कर सकते हैं।
और अगर ऐसा होता है तो निश्‍चित ही समाजवादी पार्टी इन चुनावों में मुख्‍य मुकाबले से बाहर हो जाएगी। यह बात अलग है कि उसके बाद निगाहें पूरी तरह अखिलेश की परफॉरमेंस पर टिकी होंगी और अखिलेश की परफॉरमेंस ही यह तय करेगी कि समाजवादी पार्टी का भविष्‍य क्‍या होगा।
- सुरेंन्‍द्र  चतुर्वेदी

सोमवार, 5 दिसंबर 2016

बलात्‍कार के आरोपी से Chief justice का मिलना बन सकता है बड़े विवाद का कारण

इलाहाबाद हाई कोर्ट के Chief justice दिलीप बाबा साहब भोसले की मथुरा यात्रा के दौरान बलात्‍कार के एक आरोपी से मुलाकात बड़े विवाद का कारण बन सकती है। दरअसल, जिस व्‍यक्‍ति के साथ चीफ जस्‍टिस भोसले को हाथ मिलाते हुए फोटो सोशल साइट पर डाले गए हैं, उसी व्‍यक्‍ति के खिलाफ बलात्‍कार जैसे संगीन अपराध का यह मामला चीफ जस्‍टिस भोसले की ही अदालत में लंबित है।
सोशल साइट पर चीफ जस्‍टिस भोसले से अपनी मुलाकात के फोटो बलात्‍कार के इसी आरोपी द्वारा शेयर किए गए हैं जिनसे साफ जाहिर होता है कि उसका चीफ जस्‍टिस से मुलाकात करने का उद्देश्‍य क्‍या था। हालांकि, यह संभव है कि चीफ जस्‍टिस भोसले को इस मुलाकाती की असलियत और अपने यहां उसके खिलाफ लंबित बलात्‍कार के मामले की जानकारी न हो किंतु विधि विशेषज्ञों के अनुसार चीफ जस्‍टिस भोसले का इस तरह मुलाकात करना न सिर्फ प्रोटोकॉल के खिलाफ है बल्‍कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस संबंध में जारी गाइड लाइंस की अवहेलना भी है।
cjbhosle-kkउल्‍लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के चीफ जस्‍टिस डीबी भोसले गत शनिवार को अपनी पत्‍नी सहित मथुरा आए थे। इस दौरान वह मथुरा में भगवान द्वारिकाधीश तथा वृंदावन में ठाकुर बांके बिहारी के दर्शन करने भी गए।
इसी दौरान चीफ जस्‍टिस से एनयूजेआई के कार्यकारिणी सदस्य, उपजा के प्रदेश उपाध्यक्ष व ब्रज प्रेस क्लब के अध्यक्ष कमलकांत उपमन्यु एडवोकेट ने भी एक कथित प्रतिनिधमंडल के साथ शिष्‍टचार मुलाकात की। एडवोकेट के लिबास काले कोट व कॉलर बैंड में की गई इस मुलाकात के दौरान चीफ जस्‍टिस भोसले, कमलकांत उपमन्‍यु से बड़ी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलते हुए दिखाई दिए जबकि बाकी पत्रकारगण हाथ बांधे खड़े नजर आए।
कमलकांत उपमन्‍यु ने उसी दिन शाम को चीफ जस्‍टिस भोसले से अपनी इस मुलाकात के फोटो पूरी न्‍यूज़ सहित अपनी दोनों फेसबुक आईडी पर शेयर भी किए। कमलकांत उपमन्‍यु की एक फेसबुक आईडी कमलकांत उपमन्‍यु के नाम से है जबकि दूसरी कमलकांत उपमन्‍यु II के नाम पर है।
क्‍या है पूरा मामला:
मथुरा में पंजाब केसरी के रिपोर्टर कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ एक लड़की द्वारा अपने साथ दुराचार तथा यौन उत्‍पीड़न सहित अपने परिचितों को जान से मारने की धमकी देने जैसे संगीन आरोप वर्ष 2014 के दिसंबर माह में लगाये गए। तब मथुरा की एसएसपी मंजिल सैनी हुआ करती थीं। मंजिल सैनी फिलहाल लखनऊ की एसएसपी हैं।
cj-1-kkमंजिल सैनी से अति घनिष्‍ठता के चलते कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ पहले तो बलात्‍कार का अपराध पंजीकृत ही नहीं किया गया और पीड़िता द्वारा तहरीर दिए जाने के बावजूद उस पर जांच के आदेश कर दिए गए। शहर में इस मामले को लेकर काफी आक्रोश पैदा होने के उपरांत बमुश्‍किल 06 दिसंबर 2014 को थाना हाईवे में आईपीसी की धारा 376 व 506 मुकद्दमा अपराध संख्‍या 944/ 2014 के तहत एफआई आर दर्ज की गई किंतु आरोपी की गिरफ्तारी फिर भी नहीं हुई।
हां, इतना जरूर हुआ कि पब्‍लिक के दबाव में एसएसपी को पीड़िता का मैडिकल कराना पड़ा और उसके बाद 161 तथा 164 के बयान भी दर्ज कराने पड़े। इस आधार पर आरोपी पत्रकार के खिलाफ 82 की कार्यवाही हुई तथा अदालत से वारंट भी जारी किए गए लेकिन इस सब के बावजूद मथुरा पुलिस कमलकांत उपमन्‍यु की गिरफ्तारी सुनिश्‍चित नहीं कर सकी।
मंजिल सैनी ने तो पीड़िता के परिवार को दबाव में लेने के लिए उसके सगे भाई पर ही एक मुकद्दमा दर्ज करा दिया जो बाद में झूठा साबित हुआ।
बताया जाता है कि एसएसपी मंजिल सैनी आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु से अपनी निकटता के चलते उन्‍हें अपने बचाव तथा मामले को रफा-दफा करने का पूरा मौका दे रही थीं।
हुआ भी यही। कमलकांत उपमन्‍यु ने मथुरा पुलिस से मिले इस मौके का लाभ उठाकर तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी से किसी तरह सेटिंग कर ली और अपने सगे भाई त्रिभुवन उपमन्‍यु के प्रार्थना पत्र पर अपने खिलाफ जांच को फिरोजाबाद ट्रांसफर करा लिया। चूंकि सारा मामला सेटिंग से हुआ था इसलिए फिरोजाबाद पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी।
इस बीच मथुरा बार एसोसिएशन के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष एडवोकेट विजयपाल तोमर ने जांच ट्रांसफर किए जाने के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की जिसकी सुनवाई तत्‍कालीन चीफ जस्‍टिस डी वाई चंद्रचूढ़ के यहां हुई।
चीफ जस्‍टिस डी वाई चंद्रचूढ़ ने प्रथम दृष्‍ट्या इस मामले की गंभीरता के मद्देनजर बहुत सख्‍त आदेश-निर्देश जारी किए।
डी वाई चंद्रचूढ़ का प्रमोशन हो जाने के बाद यह मामला जस्‍टिस अरुण टंडन तथा जस्‍टिस सुनीता अग्रवाल की डिवीजन बैंच में स्‍थानांतरित हो गया। माननीय टंडन तथा सुनीता अग्रवाल ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 12 जुलाई 2016 के अपने आदेश में मुख्‍यमंत्री उत्‍तर प्रदेश अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्‍तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को 25 जुलाई तक अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी पूछा कि जिस तरह से बलात्‍कार पीड़िता के कोर्ट में बयान होने के बावजूद जांच ट्रांसफर कर दी गई, उसे देखते हुए क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी व तत्‍कलीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी ने तो अपने-अपने जवाब सहित शपथ पत्र दाखिल कर दिए किंतु सीएम के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया।
शासन के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने जगजीवन प्रसाद को जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय और देते हुए अगली तारीख 08 अगस्‍त मुकर्रर कर दी।
इसके बाद चीफ जस्‍टिस के पद पर दिलीप बाबा साहब भोसले की नियुक्‍ति हो जाने के कारण यह मामला स्‍वाभाविक रूप से उनकी अदालत में आ गया, और काफी दिनों तक अनलिस्‍टेड रहा ताकि इसकी सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर की जा सके किंतु विभिन्‍न कारणों से इसकी सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर नहीं की जा सकी।
प्राप्‍त जानकारी के अनुसार गत माह इसे मार्च 2017 के लिए लिस्‍टेड किया गया है लेकिन पेंडिंग मुकद्दमों की तादाद तथा अदालती प्रक्रिया को देखते हुए इस बात की संभावना काफी कम है कि मार्च 2017 में भी इस मामले की सुनवाई हो पाएगी।
इसी सबके चलते अब आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु का मथुरा में चीफ जस्‍टिस से मिलना और चीफ जस्‍टिस का उससे बड़ी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाते हुए फोटो सार्वजनिक होना बड़े विवाद का विषय बन सकता है क्‍योंकि चीफ जस्‍टिस की ऐसी कोई मुलाकात किसी के साथ होना उनके कार्यक्रम का हिस्‍सा नहीं था। आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु चूंकि खुद को पत्रकार के साथ-साथ वकील भी मानता है इसलिए वह चीफ जस्‍टिस से मुलाकात के वक्‍त वकालत का चोगा भी धारण किए था किंतु चीफ जस्‍टिस की न तो पत्रकारों से कोई वार्ता पूर्व निर्धारित थी और ना ही वकीलों से। संभवत: इसीलिए मथुरा बार एसोसिएशन का कोई पदाधिकारी अथवा प्रेक्‍टिशनर वकील चीफ जस्‍टिस से मिलने नहीं पहुंचा, अलबत्‍ता नॉन प्रेक्‍टिश्‍नर वकील होते हुए आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु वकालत के चोगे में उनसे मिला।
ऐसी स्‍थिति में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि कमलकांत उपमन्‍यु की चीफ जस्‍टिस से मुलाकत कराने में किसी न किसी ने मध्‍यस्‍थ की भूमिका जरूर अदा की होगी और निश्‍चित तौर पर वह व्‍यक्‍ति न्‍यायपालिका का ही हिस्‍सा होगा क्‍योंकि हाई कोर्ट के चीफ जस्‍टिस जैसी हस्‍ती से बिना किसी तय कार्यक्रम के इस तरह मुलाकात होना संभव नहीं होता।
प्रोटोकॉल को ताक पर रखकर की गई इस मुलाकात और इसके पीछे छिपे उद्देश्‍य की जांच यूं भी जरूरी है कि इससे कानून का भरोसा जुड़ा हुआ है। चीफ जस्‍टिस भोसले की आदलत में ही आगे कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ सुनवाई होनी है।
आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु ने जिस तरह चीफ जस्‍टिस भोसले से हुई अपनी मुलाकात को एक ओर जहां अपनी फेसबुक प्रोफाइल से प्रचारित व प्रसारित किया है और दूसरी ओर प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित कराया है, उससे उसकी मंशा तो साफ जाहिर होती ही है।
इन हालातों में चीफ जस्‍टिस भोसले द्वारा बलात्‍कार के आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु से हाथ मिलाते हुए फोटो प्रकाशित होने पर सवाल खड़े होंगे ही।
उधर इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस मामले को ले जाने वाले याची अधिवक्‍ता विजयपाल तोमर का कहना है कि वह चीफ जस्‍टिस व आरोपी की मुलाकात का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे जिससे इसके पीछे छिपे उद्देश्‍य और मुलाकात तय कराने वाले तत्‍वों का पर्दाफाश हो सके।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

बुधवार, 30 नवंबर 2016

यूपी के 60 IAS अफसरों ने नहीं दिया अब तक अपनी अचल संपत्‍ति का ब्‍यौरा, कई लापता

यूपी के 60 IAS अफसरों ने एक वर्ष बीत जाने के बावजूद अब तक सरकार को अपनी अचल संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है। यूपी की नौकरशाही में अफसरों के रवैये को लेकर यह बड़ी जानकारी मिली है। बता दें कि इनमें दो आईएएस आलोक रंजन और जावेद उस्मानी यूपी सरकार में चीफ सेक्रेटरी भी रहे हैं। संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले कुछ अफसर कई वर्षों से लापता हैं। कई ऐसे भी हैं जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों से अपनी सम्पत्ति का कोई ब्यौरा ही नहीं दिया जबकि 2015 के लिए इन अफसरों को इस वर्ष 31 जनवरी तक सम्पति का ब्यौरा उपलब्ध कराना था।
नीचे पढ़िए सबसे ज्यादा डिफाल्टर यूपी
यूपी में बार-बार आदेश के बावजूद आईएएस अफसर संपत्ति का ब्यौरा देने में आनाकानी कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक ऐसे अफसरों की संख्या 60 के करीब है।
केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कुल 166 अफसर ऐसे हैं, जिन्होंने वर्ष 2015 के लिए अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है।
इनमें सर्वाधिक अफसर यूपी कैडर के हैं। 2014 में देश भर से ब्यौरा नहीं देने वाले 329 अफसरों में अकेले यूपी से 29 अफसर शामिल हैं।
दिलचस्प है लापता अफसरों की कहानी
संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले कई आईएएस अफसर लंबे वक्त से लापता हैं। इनमें एक नाम रीता सिंह का है जो 22 अप्रैल 2003 से छुट्टी पर हैं।
इनकी अनिवार्य सेवानिवृति को लेकर केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने राष्ट्रपति को पिछले वर्ष पत्र भी लिखा था।
इनके अलावा संजय भाटिया, अतुल बागई, संजीव आहलुवालिया नाम के आईएएस अफसरों ने भी लंबे वक्त से अपनी सम्पति का ब्यौरा नहीं दिया है।
ये सभी अफसर लापता भी है। आईएएस अनीता श्रीवास्तव, शैलेश कृष्ण, पीवी जगमोहन, संजय भाटिया जैसे कई अफसर हैं, जिन्होंने कई वर्षों का संपत्ति का ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराया है।
अखिलेश सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले और हाल ही में राजनीति में उतरे आईएएस डॉ. सूर्य प्रताप सिंह ने भी दो वर्षों से अपनी संपत्ति का ब्यौरा विभाग को उपलब्ध नहीं कराया है।

मथुरा के डॉक्‍टर्स भी आयकर विभाग के निशाने पर, शीघ्र होगी बड़ी कार्यवाही

मथुरा के डॉक्‍टर्स भी आयकर विभाग के निशाने पर हैं और शीघ्र ही विभाग उनका बड़े स्‍तर पर सर्वे कराने की तैयारी कर रहा है। यह जानकारी आयकर विभाग के ही उच्‍च पदस्‍थ सूत्रों से प्राप्‍त हुई है।
आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि मथुरा के कई नामचीन चिकित्‍सकों ने बड़ी मात्रा में अपनी ब्‍लैक मनी मथुरा से बाहर रियल एस्‍टेट में निवेश की हुई है।
कृष्‍णानगर क्षेत्र में मेन रोड पर अपना नर्सिंग होम चलाने वाले एक चिकित्‍सक दंपत्‍ति का बड़े रियल एस्‍टेट ग्रुप के नोएडा स्‍थित प्रोजेक्‍ट में करीब 50 करोड़ रुपया लगे होने की जानकारी आयकर विभाग को मिली है। विभाग के अनुसार यह चिकित्‍सक इस रियल एस्‍टेट ग्रुप के साथ पिछले करीब आठ साल से जुड़ा है।
विभाग के अनुसार कृष्‍णानगर का यह चिकित्‍सक दंपत्‍ति तो मात्र एक उदाहरण है अन्‍यथा कृष्‍ण की नगरी में ऐसे डॉक्‍टर्स की संख्‍या दो दर्जन से ऊपर बताई जाती है।
सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार द्वारा 08 नवंबर की रात 12 बजे के बाद से अचानक 1000 और 500 के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर कर देने पर मथुरा का चिकित्‍सा जगत भी काफी प्रभावित हुआ है।
बताया जाता है कि सरकार द्वारा की गई इस अचानक नोटबंदी से प्रभावित मथुरा के कई प्रमुख डॉक्‍टर्स तो अगले 3 दिनों तक अपने नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल पर आए ही नहीं और उनके स्‍टाफ ने मरीजों को डॉक्‍टर साहब के जिले से बाहर होने की जानकारी दी।
इन डॉक्‍टर्स द्वारा अपने मरीजों को कोई पूर्व सूचना दिए बिना इस तरह गायब हो जाने की वजह ”लीजेंड न्‍यूज़” ने जाननी चाही तो पता लगा कि वह पुराने नोटों को ठिकाने लगाने की कवायद में व्‍यस्‍त हैं।
उल्‍लेखनीय है कि मथुरा में नर्सिंग होम्‍स एवं हॉस्‍पीटल संचालक कई दर्जन डॉक्‍टर्स ऐसे हैं जिनकी प्रतिदिन की आय एक लाख रुपए से ऊपर है लेकिन आयकर देने के नाम पर यह मात्र औपचारिकता निभाते हैं और अपनी अधिकांश कमाई रियल एस्‍टेट सहित अन्‍य दूसरे क्षेत्रों में निवेश करते रहे हैं।
चिकित्‍सा जगत के सूत्रों का ही कहना है कि मथुरा में ऐसे डॉक्‍टर्स की कोई कमी नहीं जो नियमित तौर पर अपनी ओपीडी (Outdoor Patient Department) द्वारा ही एक से डेढ़ लाख रुपए तक लेकर घर जाते हैं और इसका कोई ब्‍यौरा उनके इनकम टैक्‍स रिटर्न में नहीं होता।
सूत्रों के अनुसार फिजीशियन से लेकर विशेषज्ञ डॉक्‍टर्स तक ने अपनी फीस खुद निर्धारित की हुई है। सामान्‍य फीस के अतिरिक्‍त इनकी इमरजैंसी फीस अलग है जिसके एवज में यह मात्र परामर्श देते हैं। परामर्श शुल्‍क के अलावा नर्सिंग होम या हॉस्‍पीटल के अंदर ही संचालित मेडिकल स्‍टोर व पैथोलॉजी के माध्‍यम से होने वाली कमाई अलग है।
यही कारण है कि नर्सिंग होम्‍स या हॉस्‍पीटल संचालक अधिकांश डॉक्‍टर्स ने अपने यहां मेडिकल स्‍टोर तथा पैथोलॉजी चलाने का जिम्‍मा अपने निकटतम रिश्‍तेदारों अथवा अत्‍यंत भरोसेमंद व्‍यक्‍ति को ही सौंप रखा है ताकि उससे होने वाली अतिरिक्‍त आमदनी की जानकारी बाहर तक न पहुंचे।
डॉक्‍टर्स की अतिरिक्‍त आमदनी का एक और स्‍त्रोत है दवा कंपनियों से मिलने वाले महंगे-महंगे गिफ्ट और मोटी रकम। ये गिफ्ट और रकम डॉक्‍टर्स को एमआर के माध्‍यम से मिलती है। डॉक्‍टर्स के लिए ये एमआर परिवार सहित देश और देश के बाहर घूमने-फिरने का भी इंतजाम करते हैं।
इस सब के अतिरिक्‍त तमाम डॉक्‍टर्स ने तो गांव-देहात में सक्रिय झोलाछाप डॉक्‍टर्स को भी अपना कमीशन एजेंट बना रखा है। ये झोलाछाप अपनी सेटिंग वाले डॉक्‍टर को गांवों से उसी प्रकार मरीज रैफर करके अपना कमीशन सीधा करते हैं जिस प्रकार मथुरा या अन्‍य छोटे शहरों के डॉक्‍टर महानगरों के डॉक्‍टर्स अथवा मशहूर निजी हॉस्‍पीटल्‍स को अपने यहां से मरीज भेजकर कमीशन लेते हैं।
सच तो यह है कि आज चिकित्‍साजगत एक ऐसे कॉकस का शिकार है जिसके लिए पैसा ही उसका कर्म है और पैसा ही धर्म। पैसे के अलावा उन्‍हें कुछ नहीं सूझता।
यही कारण है कि कभी किसी निजी हॉस्‍पीटल से पैसा न दे पाने में असमर्थ किसी के परिजन का शव उन्‍हें न सौंपे जाने की बात सामने आती है तो कहीं किसी मरीज को ही बंधक बना लिए जाने का पता लगता है।
अंधी कमाई करने में व्‍यस्‍त चिकित्‍सा जगत के इस खेल का पता यूं तो आयकर विभाग को बहुत पहले से था किंतु वह भी कुछ इसके प्रभाव तथा कुछ अपनी कार्यप्रणाली के चलते निष्‍क्रिय पड़ा रहता था। अब जबकि मोदी सरकार ने नोटबंदी के साथ-साथ चिकित्‍सा के क्षेत्र में व्‍याप्‍त काले धन पर पैनी नजर गढ़ाने का फरमान जारी किया है और सार्थक नतीजे सामने लाने को कहा है तो आयकर विभाग ने इस क्षेत्र के माफियाओं की कुंडली खंगालना शुरू कर दिया है।
आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि मथुरा में काली कमाई करने वाले सर्वाधिक चिकित्‍सक कृष्‍णा नगर क्षेत्र से हैं। यह क्षेत्र पिछले कुछ समय के अंदर ही निजी नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल्‍स का एक ”हब” बन चुका है।
आवासीय क्षेत्र कृष्‍णा नगर में इन चिकित्‍सकों ने सर्किल रेट्स से कई-कई गुना ज्‍यादा कीमत पर जमीनें लेकर अपने नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल बनाए हैं।
गौरतलब है कि कृष्‍णा नगर फिलहाल मथुरा शहर का सर्वाधिक कीमती क्षेत्र है और यहां जमीन की कीमत गलियों के अंदर भी एक से सवा तथा डेढ़ लाख रुपया प्रति वर्ग गज तक है। मेन रोड पर तो यह कीमत दो से सवा दो लाख रुपया प्रति वर्ग गज तक पहुंच जाती है जो कि सर्किल रेट से करीब पांच गुना अधिक है।
आयकर विभाग के अनुसार कृष्‍णा नगर के बाद काली कमाई करने में दूसरा नंबर आता है नेशनल हाई-वे के किनारे बने हुए नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल्‍स का। नेशनल हाई-वे पर नर्सिंग होम्‍स, हॉस्‍पीटल तथा दूसरी चिकित्‍सा सुविधाएं एवं जांच केंद्र खोले बैठे लोगों की आमदनी का ब्‍यौरा भी आयकर विभाग ने जुटा लिया है और शीघ्र ही इनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही अमल में लाने की तैयारी है।
नेशनल हाई-वे के साथ-साथ महोली रोड, भूतेश्‍वर, मथुरा-वृंदावन रोड आदि पर बने नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल भी आयकर विभाग के टारगेट बताए जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि जनसामान्‍य के बीच ईश्‍वर जैसा दर्जा प्राप्‍त सभी चिकित्‍सक सिर्फ और सिर्फ मोटी कमाई करने में लगे हैं तथा उस काली कमाई को इधर-उधर निवेश करते हैं, कई चिकित्‍सक ऐसे भी हैं जो अपना काम न केवल ईमानदारी से करते हैं बल्‍कि कमाई के अनुरूप टैक्‍स भी अदा करते हैं लेकिन ऐसे चिकित्‍सकों की मथुरा में संख्‍या काफी कम है।
जाहिर है कि ऐसे में वह काली कमाई करने वाले अपने हमपेशा लोगों के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्‍मत नहीं कर पाते हैं और चुपचाप तमाशबीन बने रहने को मजबूर हैं।
मोदी सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी के कदम के बाद ऐसे चिकित्‍सक न सिर्फ काफी खुश हैं बल्‍कि दबी जुबान से प्रधानमंत्री के फैसले का समर्थन कर रहे हैं।
इन चिकित्‍सकों का भी यह मानना है कि यदि समय रहते आयकर विभाग चिकित्‍साजगत में मौजूद काले धन पर प्रभावी कार्यवाही करने में सफल रहा और सफेदपोश चिकित्‍सकों का चेहरा बेनकाब कर पाया तो इसका लाभ चिकित्‍साजगत के साथ-साथ उस जनसामान्‍य को भी मिलेगा जो आज इनके हाथों में खेलने पर मजबूर हैं तथा इनकी हर नाजायज बात सिर झुकाकर स्‍वीकार करने को बाध्‍य है।
यह भी ज्ञात हुआ है कि अपने खिलाफ आयकर विभाग की सक्रियता के संकेत कुछ खास चिकित्‍सकों को मिल चुके हैं लिहाजा वह अभी तो किसी भी तरह अपनी काली कमाई व अधिकारियों को मैनेज करने की कोशिश में लगे हैं परंतु मोदी सरकार की सख्‍ती उनके प्रयासों में आड़े आती दिखाई दे रही है।
अब देखना यह है कि धर्म की नगरी में लंबे समय से सक्रिय अधर्म की कमाई करने वाले तथा भगवान का दर्जा प्राप्‍त इन चिकित्‍सकों के खिलाफ आयकर विभाग कब तक कार्यवाही अमल में लाता है और कब आम आदमी को इनकी प्रताड़ित करने वाली कमाई से मुक्‍ति दिलाने में सफल होता है।
कहने को मोदी सरकार ने चिकित्‍सकीय पेशे की मनमानी पर लगाम लगाने ने लिए नर्सिंग होम्‍स एक्‍ट भी बनाया है लेकिन देशभर के नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल संचालक डॉक्‍टर इस एक्‍ट का विरोध कर रहे हैं और इसलिए अभी नया एक्‍ट प्रभावी नहीं हो सका है।
जो भी हो, इसमें कोई दोराय नहीं कि मोदी सरकार की मंशा के अनुरूप यदि आयकर विभाग चिकित्‍सकीय पेशे में व्‍याप्‍त गंदगी तथा उससे उपजी काली कमाई का सफाया करने में सफल रहा तो निश्‍चित ही इसका बड़ा लाभ मरीज व उनके परिजनों को मिलेगा।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

माय लॉर्ड, अंतहीन लाइनें तो अदालतों के बाहर भी लगी हैं

”HELLO सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, अदालतों के सामने अंतहीन लाइनें लगी हुई हैं। 2 करोड़ 70 लाख मामले लंबित हैं, और अब तक कहीं भी कोई दंगा नहीं हुआ है।”
यह ट्वीट जाने-माने स्‍तंभकार तुफैल अहमद का है, जो उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्‍पणी को लेकर किया है जिसमें उसने कहा था कि नोटबंदी के बाद लोग सड़कों पर हैं और जल्‍दी ही इस स्‍थिति को नहीं संभाला गया तो दंगे भी हो सकते हैं।
दूसरी ओर ट्वीट के जरिए ही आज कांग्रेस के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए पूछा है कि क्‍या अब मोदी सरकार कोर्ट को भी राष्‍ट्रविरोधी कहेगी ?
राहुल ने अपने ट्वीट के साथ एक अंग्रेजी अखबार की खबर भी टैग की है। इस खबर के अनुसार कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि उसने कदम उठाने से पहले पूर्व तैयारी नहीं की जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे आगे संकट की स्थिति पैदा हो सकती है।
पहले बात करते हैं तुफैल अहमद के ट्वीट की। तुफैल अहमद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने जो सवाल उठाया है, क्‍या उसका कोई जवाब कोर्ट के पास है ?
क्‍या सुप्रीम कोर्ट के पास इस सवाल का भी कोई जवाब है कि विभिन्‍न न्‍यायालयों में लंबित मुकद्दमों की यह संख्‍या आज अचानक पैदा हो गई अथवा इसमें पूर्ववर्ती सरकारों तथा न्‍यायपालिकाओं की कार्यप्रणाली ने भी कोई भूमिका निभाई है?
जहां तक सवाल नोटबंदी के बाद बैंकों के सामने लगने वाली लंबी-लंबी लाइनों और लोगों को हो रही परेशानी का है तो इसका अंदेशा खुद प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर की रात राष्‍ट्र के नाम अपने संबोधन में भी जताया था। साथ ही प्रधानमंत्री ने कहा था कि देशहित में उठाए जा रहे इस कड़े कदम से थोड़ी परेशानी के बाद बहुत सी समस्‍याओं से मुक्‍ति मिल जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री के कथन पर गौर न करके और सिर्फ याचिकाओं को आधार बनाकर जो कुछ कहा, उसकी अपेक्षा तो देश की सबसे बड़ी अदालत से नहीं थी क्‍योंकि सर्वोच्‍च अदालत का कथन लोगों के बीच भय का वातावरण बनाने में सहायक हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने काले धन और नकली नोटों के खात्‍मे की दिशा में जो कदम उठाया है, वह निश्‍चित ही किसी बड़ी सर्जिकल स्‍ट्राइक से कम नहीं कहा जा सकता लिहाजा उसका असर तो होना ही था।
फिजीकली, मैंटली अथवा सोशली…कोई भी ऑपरेशन बिना थोड़ी-बहुत तकलीफ के पूरा नहीं होता। फिर यह तो एक ऐसा ऑपरेशन था जिसकी जरूरत कई दशकों से महसूस की जा रही थी।
बेशक मोदी जी द्वारा दिखाया गया 500 और 1000 के नोटों को प्रचलन से बाहर करने का दुस्‍साहस भी काले धन के समूल नाश में मात्र एक पहल ही है, परंतु किसी भी मुकाम तक पहुंचने के लिए किसी न किसी स्‍तर से पहल तो करनी ही पड़ती है।
अगर बात करें नोट बंदी से बैंकों के सामने उपजी लंबी-लंबी लाइनों तथा आम लोगों के समक्ष खड़ी हो रहीं परेशानियों की, तो सवा सौ करोड़ की आबादी वाले इस देश में कहां लाइन नहीं लगी हैं। रेल और बस की टिकट लेने से लेकर सिनेमा की टिकट लेने तक, हर जगह लाइन में लगना पड़ता है। सड़क पर दो पहिया और चार पहिया वाहन सवार भी बिना कतार में लगे मंजिल तक नहीं पहुंच पाते। श्‍मशान घाट भी अब तो लाइन लगने से नहीं बचे।
नोट बंदी से उपजी भीड़ के मद्देनजर दंगे-फसाद हो जाने की आशंका जाहिर करने वाले माननीय न्‍यायाधीश क्‍या देश को यह बताएंगे कि उन्‍हीं के किसी साथी ने कभी देर से मिलने वाले न्‍याय को अन्‍याय की जो संज्ञा दी थी, उस पर कोर्ट कब विचार करेगा?
जिस विवादित कोलेजियम सिस्‍टम को अपनी प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न बनाकर माननीय उच्‍च न्‍यायालय लंबित होते मुकद्दमों की संख्‍या बढ़ने का हवाला दे रहा है, क्‍या वह हमेशा से वजूद में था, और क्‍या वही मुकद्दमों के बढ़ते बोझ का एकमात्र कारण है ?
कौन नहीं जानता कि आज देश की न्‍यायिक व्‍यवस्‍था को भी उसी प्रकार घुन लग चुका है जिस प्रकार दूसरी व्‍यवस्‍थाओं विधायिका व कार्यपालिका को लगा हुआ है। किसे पता नहीं है कि जिला अदालतों से लेकर उच्‍च और उच्‍चतम न्‍यायालय तक में भ्रष्‍टाचार का बोलबाला है। नि:संदेह यहां भी हर पायदान पर ईमानदार अधिकारी एवं कर्मचारी भी हैं किंतु उनकी स्‍थिति बेहद दयनीय है। वह खुद को 32 दांतों के बीच में ”जीभ” के होने जैसा महसूस करते हैं।
यहां पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण द्वारा की गई वह टिप्‍पणी भी काबिले गौर है जिसके तहत उन्‍होंने सर्वोच्‍च न्‍यायालय के अधिकांश मुख्‍य न्‍यायाधीशों की ईमानदारी पर बड़ा सवाल खड़ा किया था। प्रसिद्ध वकील शांतिभूषण की उस टिप्‍पणी ने तब न्‍यायपालिका तथा माननीय विद्वान न्‍यायाधीशों को हिला कर रख दिया था लिहाजा एकबार तो ऐसा लगने लगा था जैसे शांतिभूषण किसी भी वक्‍त अदालत की अवमानना के आरोप में अदालतों के चक्‍कर काटते दिखाई देंगे लेकिन उनके खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्‍मत न सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने दिखाई और न किसी न्‍यायाधीश ने।
लिखने को तो बहुत कुछ है लेकिन यह बहुत कुछ लिखा नहीं जा सकता। अगर कोई लिखने बैठ जाए तो उसका भी अंत शायद कभी नहीं होगा क्‍योंकि सुप्रीम कोर्ट से लेकर सुप्रीम पॉवर तक सब अपने आप को जायज ठहराने की जिद पाले बैठे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने तो कम से कम इतना साहस दिखाया कि पहले दिन ही अपने निर्णय से परेशानियां उत्‍पन्‍न होने की आशंका जताई और फिर यह भी कहा कि 50 दिनों बाद मेरा निर्णय गलत लगे तो जो सजा चाहो मुझे दे देना, लेकिन विपक्षी पार्टियां दो-तीन दिन बाद सन्‍निपात से उभरते ही कुतर्कों के सहारे प्रधानमंत्री को मुजरिम साबित करने पर आमादा हैं।
कांग्रेस के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट की टीका-टिप्‍पणियों को आधार बनाकर मोदी सरकार को निशाना बना रहे हैं, उससे साफ जाहिर है कि उनके अपने पास कोई विजन है ही नहीं। उनकी बुद्धि को लेकर अक्‍सर उठाए जाने वाले सवालों के पीछे संभवत: उनके द्वारा की जाती रही ऐसी ही ओछी राजनीति है। दुर्भाग्‍य की बात यह है कि कांग्रेस की चापलूसी वाली संस्‍कृति उन्‍हें आइना दिखाने का माद्दा नहीं रखती लिहाजा वह मौके-बेमौके भोंडा प्रदर्शन करते रहते हैं।
चार हजार रुपयों के लिए अपनी भारी-भरकम सुरक्षा-व्‍यवस्‍था के साथ बैंक जाकर तमाशा खड़ा करने से बेहतर होता कि वह लोकसभा में यह बताते कि नोट बंदी से उपजी समस्‍या के समाधान का उनके पास भी कोई उपाय है और उससे आमजनता को राहत मिल सकती है।
राहुल गांधी ही क्‍यों…सपा, बसपा, माकपा और ममता की टीएमसी सहित मोदी सरकार में शामिल शिवसेना तक मोदी सरकार के फैसले को लेकर हायतौबा मचा रही है। दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो जैसे प्रधानमंत्री से निजी दुश्‍मनी पालकर बैठे हैं। ऐसे में वह नोट बंदी पर चुप कैसे रह सकते थे।
प्रधानमंत्री को टारगेट करने वाली इन पार्टियों और इनके स्‍वयंभू मुखियाओं की हकीकत से वह जनता अच्‍छी तरह वाकिफ है जिसके कंधे पर बंदूक रखकर यह अपना-अपना हित साधना चाहती हैं।
आज सड़क चलता कोई राहगीर भी बता देगा कि प्रधानमंत्री के नोटबंदी वाले निर्णय ने इन पार्टियों के आकाओं की हजारों करोड़ की गड्डियों को रद्दी में तब्‍दील करके रख दिया। अब इन्‍हें समझ में नहीं आ रहा कि आखिर करें तो करें क्‍या ?
कैसे मोदी के इस मास्‍टर स्‍ट्रोक से मुक्‍ति पाएं और कैसे आगामी विधानसभा चुनावों के लिए काले धन का इंतजाम करें।
अचानक की गई इस सर्जिकल स्‍ट्राइक ने कांग्रेस सहित लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं की बुद्धि को लकवाग्रस्‍त कर दिया है। इनमें से कोई यह तक बताने को तैयार नहीं है कि यदि पीएम का निर्णय इतना ही जनविरोधी है तो उन्‍होंने खुद अपने ही पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारने का काम किया है। उसके लिए विपक्ष इतना चिंतित क्‍यों है। आगामी चुनावों में विपक्ष के मन की मुराद बिना कुछ किए पूरी होने वाली है।
मोदी का कदम आत्‍मघाती है तो विपक्ष चुपचाप तमाशा देखे और आगामी चुनावों के लिए हसीन सपने पालते हुए मोदी और उनकी पार्टी को मुंह चिढ़ाए।
कल की ही रिपोर्ट है कि शिवसेना को विडियोकॉन कंपनी ने एक वर्ष में 85 करोड़ रुपए का चंदा दिया है जबकि इस दौरान उसे मिली कुल चंदे की रकम 87 करोड़ है। कहने का तात्‍पर्य यह है कि कुल 87 करोड़ के चंदे में 85 करोड़ अकेले विडियोकॉन ने दिए हैं। इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि सरकार में शामिल होते हुए शिवसेना, मोदी जी के निर्णय पर क्‍यों लालपीली हो रही है और क्‍यों ममता, मुलायम, मायावती व अरविंद केजरीवाल के साथ खड़ी है। नोट बंदी ने इन सबके पैरों की बिवाइयां को इतनी बुरी तरह चटका दिया है कि उनसे खून टपकने लगा है लेकिन वह उन्‍हें किसी को दिखा तक नहीं सकते।
कांग्रेस का तो जैसे समूचा बेड़ा गर्क हो गया। राहुल गांधी की खाट यात्रा और ”27 साल यूपी बदहाल” की टैग लाइन को मोदी के एक निर्णय ने किनारे लगा दिया। खाट यात्रा की खाटों का तो पता नहीं क्‍या हुआ, अलबत्‍ता कांग्रेस की खाट फिलहाल ऐसी खड़ी हुई है कि उसके रणनीतिकारों की भी बुद्धि का दिवाला निकल गया है।
कांग्रेस और अन्‍य कई पार्टियों के सामने सबसे बड़ी समस्‍या उत्‍तर प्रदेश जैसे बड़े राज्‍य में चुनाव लड़ने की खड़ी हो गई है। कांग्रेस के लिए यह स्‍थिति जहां मरे पर मार वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है वहीं मुलायम तथा मायावती अकेले में सिर पकड़ कर सोचने पर मजबूर हो गए हैं।
आश्‍चर्य की बात है कि मीडिया द्वारा कराए गए सर्वे में मोदी के इस कदम को जनसमर्थन मिलने की बातें सामने आ रही हैं। परेशानियों के बावजूद लोग यह मानने को तैयार नहीं कि मोदी का कदम गलत है।
यह वही मीडिया है जिसके अपने घर भी शीशे के हैं। जो बैंकों के सामने लगने वाली लाइनों को दिखाकर भय का वातावरण उत्‍पन्‍न करने में रत्‍तीभर पीछे नहीं रहना चाहता क्‍योंकि मोदी के मास्‍टर स्‍ट्रोक ने आखिर इनके हित भी तो प्रभावित किए हैं। चार चूहे मरने से लेकर एक आदमी की मौत को भी चीख-चीख कर ब्रेकिंग न्‍यूज़ बताने वाला मीडिया आज खामोशी के साथ खून के आंसू पीने को बाध्‍य है।
हर कोई जानता है कि लगभग सारे बड़े मीडिया हाउस काले धन के बल पर अपना अस्‍तित्‍व बचाए हुए थे। मोदी की सर्जिकल स्‍ट्राइक ने उन्‍हें खुद एक ऐसी ब्रेकिंग न्‍यूज़ बना दिया जिसका खामोश क्रंदन सुनाई भले ही न दे रहा हो लेकिन कोने में बैठकर रुला जरूर रहा है। मीडिया में व्‍याप्‍त जिस काले धन ने एक-एक एंकर को सैकड़ों करोड़ का मालिक बना दिया और जिसने कल के कई एंकर्स को न्‍यूज़ चैनल्‍स का मालिक बनवा दिया, वह भले ही प्रधानमंत्री के निर्णय पर सार्वजनिक रूप से बुक्‍का फाड़कर रो नहीं सकते लेकिन उनके निर्णय को देश की बर्बादी वाला साबित करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।
मीडिया के पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है कि चुनाव लड़ने में जो परेशानियां विपक्षी पार्टियों के सामने खड़ी होने वाली हैं, क्‍या भाजपा उनसे अछूती रह जाएगी…और रह जाएगी तो कैसे ?
यदि चंदे से हुए धंधे पर चोट पड़ी है तो वह चोट भाजपा को भी पड़ी होगी, फिर रोना किस बात का।
हां, विधान सभा चुनावों के टिकट बेचने से हुई आमदनी को कागज के टुकड़ों में तब्‍दील होते देखने का कुछ खास पार्टियों का दुख जरूर समझ में आता है क्‍यों कि इसके परिणाम टिकट वितरण सहित चुनावों की तिथि घोषित होने पर ज्‍यादा बड़ी परेशानी का कारण बन सकते हैं।
सबका अपना-अपना दुख है। सुप्रीम कोर्ट का अपना और पार्टी सुप्रीमोज का अपना। दुख भी ऐसा कि जिसे सार्वजनिक तौर पर बयां करना संभव नहीं।
ऐसे में जनता के कांधे का ही सहारा है। 125 करोड़ की आबादी कुछ पार्टियों और चंद नेताओं के दुख का पहाड़ तो ढो ही सकती है, इसलिए ढो रही है। यह जानते व समझते हुए भी उनके आंसू घड़ियाली हैं और उनकी सहानुभूति निजी शोक संवेदना से उपजी ऐसी अनुभूति है जिसका सहानुभूति से दूर-दूर तक कोई वास्‍ता नहीं। वास्‍ता है तो नोट व वोट की उस राजनीति से जिस पर फिलहाल तो पाला पड़ ही गया है। आगे की राम जाने।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

जय गुरुदेव के उत्‍तराधिकारी पंकज बाबा के पिता चरन सिंह यादव ने की दूसरी शादी

मथुरा। जिन दिनों बाबा जय गुरुदेव का ड्राइवर पंकज यादव किसी तरह बाबा की विरासत का उत्‍तराधिकारी बनने की कोशिश में था, लगभग उन्‍हीं दिनों ड्राइवर पंकज का पिता और बाबा का अनुयायी चरण सिंह यादव बाबा की ही एक शिष्‍या के साथ दोबारा घर बसाने में लगा था।
बेटा जहां बाबा जय गुरुदेव की सैकड़ों करोड़ की संपत्‍ति पर काबिज होने के लिए गृहस्‍थाश्रम से दूर रहने का निर्णय ले चुका था वहीं बाप, बाबा के आश्रम में रहते हुए फिर से गृहस्‍थी बसाने जा रहा था किंतु इसकी भनक शायद किसी को नहीं थी।
बाबा जयगुरूदेव ट्रस्‍ट के पदाधिकारी चरण सिंह यादव की दूसरी शादी का खुलासा अब जाकर हुआ है जबकि उनका पुत्र और कभी बाबा का ड्राइवर रहा पंकज यादव ”पंकज बाबा” के रूप में बाबा जयगुरूदेव का उत्‍तराधिकारी बन चुका है।
पंकज बाबा के पिता चरण सिंह यादव की शादी का सर्टीफिकेट बताता है कि उन्‍होंने 30 अप्रैल 2009 को गाजियाबाद के डिप्‍टी रजिस्‍ट्रार (रिजस्‍ट्रार ऑफ मैरिज 4th) के यहां पार्वती मील नामक महिला के साथ शादी की थी जो राजस्‍थान के जिला सीकर में पलारी गांव की निवासी है और पेशे से आर्कीटेक्‍ट बताई जाती है।
पंकज बाबा के पिता चरन सिंह यादव को इस उम्र में आकर फिर से शादी करने की क्‍या जरूरत पड़ गई, यह तो वही बता सकते हैं किंतु इतना जरूर कहा जा सकता है कि जो समय बेटे की शादी करने का था, उस समय तो बाबा जय गुरुदेव के सैकड़ों करोड़ का वारिस बनाने की खातिर चरन सिंह यादव ने बेटे पंकज को बाबा बना दिया और खुद ने दूसरी शादी कर ली। charansing
बाबा जय गुरुदेव का स्‍वर्गवास हालांकि मई सन् 2012 में हुआ था जबकि चरन सिंह ने दूसरी शादी 2009 में ही कर ली थी लेकिन तब तक बाबा सहित किसी को चरन सिंह द्वारा दूसरी शादी किए जाने का कोई इल्‍म नहीं था।
आज भी यूं तो चरन सिंह या जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्‍था से जुड़ा कोई व्‍यक्‍ति चरन सिंह की दूसरी शादी को लेकर कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं होता किंतु अब जबकि चरन सिंह का मैरिज सर्टीफिकेट सामने आ चुका है तो किसी के बोलने या ना बोलने से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता।
वैसे देखा जाए तो किसी व्‍यक्‍ति द्वारा पहली पत्‍नी के न होने अथवा तलाकशुदा होने की सूरत में दूसरी शादी कर लेना कोई गुनाह नहीं है किंतु यहां इस शादी पर सवाल खड़े होने की वजह चरन सिंह का पंकज बाबा का पिता होना तथा जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्‍था से जुड़ा होना है।
चूंकि चरन सिंह खुद जय गुरुदेव के अनुयायी हैं और आज का पंकज बाबा, जय गुरुदेव की मृत्‍यु से ठीक पहले तक उनका ड्राइवर हुआ करता था इसलिए इस शादी को लेकर सवाल उठने लाजिमी हैं।
मथुरा में सरकारी उद्यान विभाग के जवाहर बाग कांड का सरगना रामवृक्ष यादव भी बाबा जयगुरुदेव का अनुयायी था और उसके साथ रहने वाले चंदन बोस सरीखे अपराधी भी कभी जय गुरुदेव के ही अनुयायी रहे थे।
एसपी सिटी मथुरा मुकुल द्विवेदी तथा एसओ फरह संतोष यादव के खून से अपने हाथ रंगने वाले रामवृक्ष यादव के तमाम गुर्गों ने जवाहर बाग को कब्‍जाने में बाबा जय गुरुदेव के नाम का भरपूर इस्‍तेमाल किया क्‍योंकि बाबा जय गुरुदेव ने भी अपनी अकूत संपत्‍ति ऐसे ही हासिल की थी जिसका सच अब धीरे-धीरे सामने आने लगा है। मथुरा में नेशनल हाईवे नंबर 2 पर अरबों रुपए की जमीन बाबा जय गुरुदेव ने खरीदी नहीं है बल्‍कि अधिकांश पर कब्‍जा किया है। यही कारण है कि आज बाबा जय गुरुदेव की समाधि पर भी विवाद खड़ा हो गया है और कोर्ट ने उसके निर्माण पर रोक लगा दी है।
कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि बात चाहे बाबा जय गुरुदेव के वर्तमान उत्‍तराधिकारी पंकज बाबा की हो या उसके पिता चरन सिंह यादव अथवा जवाहर बाग कांड के सरगना रामवृक्ष यादव की, इन सबका चरित्र एवं गतिविधियां किसी न किसी स्‍तर पर संदिग्‍ध हैं। यदि इनकी गतिविधियों की जांच की जाए और बाबा के पूरे साम्राज्‍य व अकूत धन संपदा के स्‍त्रोत का पता लगाया जाए तो एक ऐसे संगठित गिरोह का पर्दाफाश हो सकता है जिसने धर्म की आड़ में अधर्म का ऐसा खेल खेला जिसकी मिसाल आसानी से मिलना मुश्‍किल है। पंकज बाबा के पिता चरन सिंह यादव द्वारा 2009 में ही दूसरी शादी कर लेना और उसे अब तक छिपाए रखने के पीछे भी कोई ऐसा मकसद जरूर है जिसके बहुत महत्‍वपूर्ण मायने होंगे। आज नहीं तो कल ये मायने सामने जरूर आयेंगे और तब हो सकता है एक नया विवाद भी उठ खड़ा हो।
-लीजेंड न्‍यूज़

मथुरा के प्रत्‍याशियों में बड़ा फेरबदल करने की तैयारी कर रही है BSP

मथुरा में अब तक घोषित प्रत्‍याशियों को लेकर BSP (बहुजन समाज पार्टी) बड़ा फेरबदल करने की तैयारी कर रही है। लखनऊ में बैठे उच्‍च पदस्‍थ सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार पार्टी सुप्रीमो मायावती मथुरा की पांचों विधानसभा सीटों पर काबिज होना चाहती हैं और इसलिए वह मौजूदा घोषित प्रत्‍याशियों में बड़ा उलटफेर कर सकती हैं।
सूत्रों की मानें तो यह उलटफेर ऐन वक्‍त तक भी हो सकता है क्‍योंकि मायावती इसके लिए दूसरी पार्टियों के पत्‍ते खुलने का इंतजार कर रही हैं।
अब तक बसपा ने मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र से वृंदावन निवासी योगेश द्विवेदी को प्रत्‍याशी घोषित किया हुआ है। नगरपालिका वृंदावन की पूर्व चेयरमैन पुष्‍पा शर्मा के पुत्र योगेश द्विवेदी बसपा की टिकट पर ही गत लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्‍हें हार का मुंह देखना पड़ा था। लगभग तभी से योगेश द्विवेदी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
बताया जाता है कि शहर की इस सीट को लेकर बहिनजी काफी गंभीर हैं लिहाजा इसे खोना नहीं चाहतीं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी इस सीट के लिए किसी बाह्मण को ही प्रत्‍याशी बनाए जाने की प्रबल संभावना है। यदि ऐसा होता है तो बसपा योगेश द्विवेदी को चुनाव लड़ाने पर पुनर्विचार कर सकती है क्‍योंकि बहिनजी ऐसी स्‍थिति में ब्राह्मण मतों के विभाजन का खामियाजा नहीं भुगतना चाहेंगी।
इसके अतिरिक्‍त यह भी कहा जा रहा है कि मांट क्षेत्र से घोषित बसपा प्रत्‍याशी पंडित श्‍यामसुंदर शर्मा राष्‍ट्रीय लोकदल के पत्‍ते खुलने का इंतजार कर रहे हैं। यदि राष्‍ट्रीय लोकदल उनके खिलाफ जयंत चौधरी की पत्‍नी चारू चौधरी को चुनाव मैदान में ले आता है तो श्‍यामसुंदर शर्मा भी अपने लिए क्षेत्र बदलने की मांग कर सकते हैं। चूंकि श्‍यामसुंदर शर्मा जाट बाहुल्‍य मांट क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान जयंत चौधरी से शिकस्‍त खा चुके हैं इसलिए वह इस बार कोई जोखिम उठाना नहीं चाहेंगे।
बताया जाता है कि अगर हालात श्‍यामसुंदर शर्मा को अपने अनुकूल नहीं लगते तो वह भी मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से लड़ना पसंद करेंगे।
इधर गोवर्धन विधानसभा से भी सिटिंग विधायक राजकुमार रावत का क्षेत्र बदले जाने की संभावना जताई जा रही है। राजकुमार रावत की स्‍थिति हालांकि अपने क्षेत्र में मजबूत है और वह लगातार वहां सक्रिय भी रहे हैं किंतु पार्टी सूत्रों की मानें तो गोवर्धन से प्रदेश के पूर्व कबीना मंत्री और बहिनजी के करीबी माने जाने वाले रामवीर उपाध्‍याय को चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। पार्टी रामवीर उपाध्‍याय के लिए उनके पुराने क्षेत्र को मुफीद नहीं मान रही। पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसी स्‍थिति में सिटिंग विधायक राजकुमार रावत के लिए जनपद के बाहर भी कोई क्षेत्र चुना जा सकता है।
छाता विधानसभा क्षेत्र से हालांकि पिछले दिनों बसपा ने अशर एग्रो के निदेशक इंडस्‍ट्रियलिस्‍ट मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को अपना प्रत्‍याशी घोषित किया है किंतु बताया जाता है कि मनोज चतुर्वेदी को चुनाव लड़ाए जाने की संभावना काफी कम हैं।
मूल रूप से मथुरा के चौबिया पाड़ा क्षेत्र अंतर्गत गजापाइसा निवासी मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को न तो राजनीति का कोई अनुभव है और ना ही छाता क्षेत्र में उनका कोई जनाधार है। छाता क्षेत्र से उनका यदि कोई वास्‍ता है तो सिर्फ्र इतना कि उनकी धान फैक्‍ट्री अशर एग्रो छाता क्षेत्र में स्‍थित है।
यूं भी छाता क्षेत्र के सिटिंग विधायक ठाकुर तेजपाल सिंह के पुत्र ठाकुर अतुल सिसौदिया ”लवी” ने पिछले दिनों बसपा ज्‍वाइन की है और यही माना जा रहा था कि लवी ही छाता से बसपा के प्रत्‍याशी होंगे किंतु पिछले दिनों अचानक एक कार्यक्रम के दौरान पार्टी ने मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को अपना प्रत्‍याशी घोषित कर दिया। मनोज चतुर्वेदी (पाठक) की उम्‍मीदवारी किसी की समझ में नहीं आ रही और पार्टी के ही पदाधिकारी दबी जुबान से यह स्‍वीकार भी कर रहे हैं कि मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को छाता से चुनाव लड़ाने का मतलब होगा, भाजपा प्रत्‍याशी चौधरी लक्ष्‍मीनारायण को प्‍लेट में रखकर जीत उपलब्‍ध करा देना। बसपा सरकार में ही लंबे समय तक कबीना मंत्री रहे चौधरी लक्ष्‍मीनारायण अब भाजपा का हिस्‍सा बन चुके हैं और उनकी पत्‍नी जिला पंचायत अध्‍यक्ष हैं।
यूं भी यदि बसपा मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को चुनाव लड़ाती है तो उसे बगावत भी झेलनी पड़ सकती है, और उस स्‍थिति में बसपा के लिए ज्‍यादा मुसीबत खड़ी होना लाजिमी है। इसकी एक वजह यह बताई जाती है मनोज पाठक ने अपनी उम्‍मीदवारी घोषित कराने के लिए मोटा पैसा खर्च किया है। मनोज पाठक की अचानक सामने आई राजनीतिक महत्‍वाकांक्षा भी लोगों के गले नहीं उतर रही।
शेष रह जाती है गोकुल सुरक्षित सीट, जहां से प्रेमचंद कर्दम को पार्टी ने अपना प्रत्‍याशी घोषित किया हुआ है।
बताया जाता है यूं तो प्रेमचंद कर्दम के लिए फिलहाल कोई खतरा नहीं है किंतु एक सिटिंग विधायक वहां से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ने के प्रबल इच्‍छुक हैं। इसके लिए वह पार्टी भी बदलने को तैयार हैं और बसपा के कुछ कद्दावर नेताओं के संपर्क में हैं।
यदि यह बात सही है तो प्रेमचंद कर्दम का भी पत्‍ता कट सकता है क्‍योंकि बसपा इससे दोहरा लाभ अर्जित करने का लोभ शायद ही त्‍याग पाए।
बसपा फिलहाल कृष्‍ण नगरी की कुल पांच विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर काबिज है। हालांकि इनमें से दो विधायकों मांट के श्‍यामसुंदर शर्मा तथा छाता के ठाकुर तेजपाल ने हाल ही में बसपा ज्‍वाइन की है। श्‍यामसुंदर शर्मा ने अपना पिछला चुनाव ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ रहकर लड़ा था जबकि छाता से ठाकुर तेजपाल ने राष्‍ट्रीय लोकदल प्रत्‍याशी के तौर पर बसपा के चौधरी लक्ष्‍मीनारायण को हराया था।
इस तरह पिछले विधानसभा चुनावों के बाद बसपा के खाते में गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र से राजकुमार रावत के रूप में एकमात्र विधायक ही आ पाया था। अब जबकि दो विधायक उसके खाते में आगामी चुनावों से पहले और जुड़ चुके हैं तो बसपा उन्‍हें भी खोना नहीं चाहेगी। बेशक उसे उनके लिए कोई बड़ा फेरबदल ही क्‍यों न करना पड़े।
यही कारण है कि उच्‍च स्‍तर पर बसपा में इसके लिए गंभीर चिंतन चल रहा है और पार्टी चाहती है कि वह इस बार मथुरा-वृंदावन के साथ-साथ गोकुल क्षेत्र में भी कोई चमत्‍कार कर दे ताकि भाजपा के सामने बड़ी लकीर खींच सके।
बसपा की इस कोशिश के पीछे एक कारण मथुरा में उसके सामने भाजपा के अतिरिक्‍त कोई दूसरी चुनौती न होना भी है। समाजवादी पार्टी लाख प्रयासों के बावजूद मथुरा में कभी अपना खाता नहीं खोल पाई है और कांग्रेस के पास एक शहरी सीट के अलावा यहां कुछ है नहीं। इस शहरी सीट पर काबिज कांग्रेसी विधायक प्रदीप माथुर को लेकर क्षेत्रीय जनता में भारी आक्रोश व्‍याप्‍त है। प्रदीप माथुर पिछला चुनाव भी मात्र 500 मतों से बमुश्‍किल जीत पाए थे, वो भी तब जबकि पिछले चुनावों में कांग्रेस का राष्‍ट्रीय लोकदल से गठबंधन था और इसका लाभ प्रदीप माथुर को मिला।
शेष चारों विधानसभा क्षेत्रों छाता, मांट, गोकुल और गोवर्धन में आज भी कांग्रेस यथास्‍थिति को प्राप्‍त है लिहाजा वह दूसरी किसी पार्टी के लिए चुनौती बनने की स्‍थिति में नहीं है।
राष्‍ट्रीय लोकदल जरूर इन चुनावों में हाथ-पैर मार रही है किंतु उसका अब तक का इतिहास उसकी साख पर बट्टा लगा चुका है। 2009 के लोकसभा चुनावों में मथुरा की जनता ने रालोद के युवराज जयंत चौधरी को सिर-आंखों पर बैठाया और भाजपा के सहयोग से जयंत चौधरी ने वह चुनाव भारी मतों के अंतर से जीता किंतु उसके बाद जयंत चौधरी ने मथुरा की जनता को पूरी तरह निराश किया। यहां तक कि मथुरा में रहना भी जयंत ने जरूरी नहीं समझा। इसके बाद जयंत चौधरी ने सांसद रहते 2012 का मांट से श्‍यामसुंदर शर्मा के खिलाफ विधानसभा चुनाव भी लड़ा और इसमें भी जीत हासिल की जबकि श्‍यामसुंदर शर्मा मांट क्षेत्र में अपराजेय माने जाते थे। जयंत चौधरी को क्षेत्रीय जनता ने उनके इस आश्‍वासन पर चुनाव जितवाया कि वह जीतने के बाद लोकसभा की सदस्‍यता त्‍याग देंगे और विधायक रहकर क्षेत्र का विकास कराएंगे।
दरअसल, तब राष्‍ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह अपने पुत्र को राजनीतिक सौदेबाजी के तहत मुख्‍यमंत्री बनाने का ख्‍वाब अपने मन में संजोए बैठे थे किंतु सपा को मिले स्‍पष्‍ट बहुमत ने उनके इस ख्‍वाब को मिट्टी में मिला दिया।
ख्‍वाब के मिट्टी में मिलते ही रालोद और जयंत चौधरी ने क्षेत्रीय जनता से किया गया लोकसभा की सदस्‍यता त्‍यागने का वायदा तोड़ने में रत्‍तीभर मुरव्वत नहीं की और लोकसभा की जगह मांट की विधायकी से त्‍यागपत्र दे दिया। इसके बाद हुए उप चुनावों में एकबार फिर श्‍यामसुंदर शर्मा को जीत हासिल हुई।
यही सब कारण थे कि 2014 के लोकसभा चुनावों में रालोद के युवराज कहीं के नहीं रहे और भाजपा की हेमा मालिनी ने भारी मतों से जीत दर्ज की।
अब बेशक रालोद एकबार फिर अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए हाथ-पैर मार रहा है किंतु उसमें वह कितना सफल होगा और किन सीटों पर सफल होगा, यह वक्‍त ही बताएगा। हां, एकबात जरूर तय है कि रालोद अब मथुरा में किसी पार्टी के लिए चुनौती देने की स्‍थिति में नहीं रहा। मांट क्षेत्र में भी वह तभी चुनौती बन सकता है जब खुद जयंत चौधरी अथवा उनकी पत्‍नी चारू चौधरी चुनाव मैदान में उतरें। दूसरे चुनाव क्षेत्रों में तो उसके पास प्रत्‍याशियों का भी टोटा दिखाई देता है।
संभवत: इन्‍हीं सब स्‍थिति-परिस्‍थितियों का लाभ उठाने के लिए बसपा मथुरा को लेकर गंभीर है और गहन चिंतन कर रही है। वह इस मौके को खोना नहीं चाहती, चाहे इसके लिए उसे पूर्व घोषित उम्‍मीदवारों में बड़ा फेरबदल ही क्‍यों न करना पड़े।
-लीजेंड न्‍यूज़

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

इनका क्‍या…ये तो अपने भी DNA का सबूत मांग सकते हैं

ये वो लोग हैं, जो अपने DNA का भी सबूत मांग सकते हैं। ये अपने पिता से कह सकते हैं कि वह ”उनके पिता” होने का सबूत दें। ये अपनी मां को अपनी ”बल्‍दियत” साबित करने की चुनौती दे सकते हैं। ये कुछ भी कर सकते हैं और कुछ भी कह सकते हैं।
ऐसे लोग यदि एलओसी के पार जाकर भारतीय सेना द्वारा पाकिस्‍तान के खिलाफ की गई ”सर्जीकल स्‍ट्राइक” पर सवालिया निशान लगा रहे हैं तो कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए।
दरअसल, जिस तरह कुत्‍ता चाहे किसी भी नस्‍ल का क्‍यों न हो, स्‍वामी भक्‍ति उसका मौलिक गुण होता है और वही उसकी पहचान भी है। उसी तरह कुछ लोगों की नस्‍ल में ही गद्दारी निहित होती है, लिहाजा वह अपनी इस मौलिकता को छोड़ नहीं सकते। कई बार ऐसा लगता जरूर है कि वह देश व धर्म की बात कर रहे हैं किंतु असलियत कुछ और होती है।
अब जैसे दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ही ले लें। केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी को सेल्‍यूट करने की आड़ में न सिर्फ इंडियन आर्मी के सर्जीकल स्‍ट्राइक पर सवाल खड़े कर दिए बल्‍कि पाकिस्‍तान के प्रवक्‍ता भी बन बैठे।
अब पाकिस्‍तान के हुक्‍मरान और उनका मीडिया तो अरविंद केजरीवाल की तरह मूर्ख हैं नहीं। उन्‍होंने तुरंत केजरीवाल की मंशा को भांपते हुए उन्‍हें हीरो बना डाला।
केजरीवाल की सारी चालाकी, उनकी सेल्‍यूट के पीछे छिपी मंशा या कहें कि मूर्खता की पराकाष्‍ठा को जब पाकिस्‍तान ने पकड़ कर बेनकाब कर दिया तो केजरीवाल सफाई दे रहे हैं।
केजरीवाल की मानें तो उन्‍होंने न सर्जीकल स्‍ट्राइक पर कोई सवाल खड़ा किया और न इंडियन आर्मी पर। उन्‍होंने तो केवल इतना कहा कि अब मोदी को पाकिस्‍तान के प्रोपेगंडा का जवाब सर्जीकल स्‍ट्राइक के सबूत सामने रखकर दे देना चाहिए।
अपने बचाव में केजरीवाल द्वारा दी जा रही यह सफाई साबित करती है कि उनका अक्‍ल से दूर-दूर तक कभी कोई वास्‍ता नहीं रहा। एक राजनीतिक दुर्घटना के तहत वह दिल्‍ली की जनता के दुर्भाग्‍य से मुख्‍यमंत्री बन बैठे और अब जनता को बता रहे हैं कि भावनाओं को कैश करके किस तरह मूर्खों की जमात भी शासन कर सकती है।
अरविंद केजरीवाल के पास क्‍या इस बात का कोई जवाब है कि वह पाकिस्‍तान के सवालों को लेकर इतने चिंतित और गंभीर क्‍यों हैं ?
उन्‍हें क्‍यों लगता है कि भारत के लिए पाकिस्‍तान की तथाकथित शंका दूर करना इतना जरूरी है ?
क्‍या वह पाकिस्‍तान सरकार, पाकिस्‍तान की सेना अथवा आईएसआई के प्रवक्‍ता हैं या फिर वह अपनी घिनौनी मानसिकता को पाकिस्‍तानी सवालों की आड़ से पोषित करना चाह रहे हैं ?
जहां तक सवाल कांग्रेसी नेता संजय निरुपम, दिग्‍विजय सिंह, पी. चिदंबरम, जेडी-यू नेता अजय आलोक जैसों का है तो यह…और इनके जैसे तमाम अन्‍य लोग राजनीति में हैं ही इसलिए कि उन्‍हें खुद अपनी ही असलियत पर शक है। इन्‍हें खुद नहीं पता कि वह हैं क्‍या।
आइना देखते हैं तो अपने आप से सवाल करने लगते हैं कि अभी-अभी जो चेहरा देखा था, वह किसका था। संभवत: इसीलिए खुद उनकी पार्टियों को हर चौथे रोज यह कहना पड़ता है कि उनके बयानों से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। उन्‍होंने जो कुछ कहा है, वह उनके निजी विचार हैं।
यह एक अलग किस्‍म की राजनीति है। पल्‍ला झाड़ने की राजनीति। लेकिन क्‍या इतना आसान होता है पल्‍ला झाड़ लेना ?
अरविंद केजरीवाल हों या संजय निरुपम, दिग्‍विजय सिंह, पी. चिदंबरम, और अजय आनंद। इन सबका कहना है कि भाजपा के नेतृत्‍व वाली मोदी सरकार सर्जीकल स्‍ट्राइक का क्रेडिट लेकर राजनीतिक लाभ अर्जित करना चाहती है। चूंकि पांच राज्‍यों के चुनाव सामने हैं इसलिए वह इस सर्जीकल स्‍ट्राइक को भुनाना चाहती है।
मैं इन सभी और इनके जैसे सभी बुद्धिहीनों से यह पूछना चाहता हूं कि उरी में सेना के हमले के बाद यह क्‍यों चुप्‍पी साध कर नहीं बैठ गए। क्‍यों विधवा विलाप करने लगे कि 56 इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री को बदला लेना चाहिए। क्‍यों कहते रहे कि जनता अब कार्यवाही चाहती है, बयान नहीं।
इन्‍हें करना तो यह चाहिए था कि आगामी पांच राज्‍यों के चुनावों में जनता के बीच जाकर मोदी सरकार के बयानों की हवा निकालते और कहते कि देखिए मोदी सरकार ने सेना के कितने जवान मरवा दिए लेकिन पाकिस्‍तान के किसी चूहे तक को नहीं मार पाए। मोदी के 56 इंच के सीने पर कायरता का तमगा चस्‍पा करते और बताते कि उनकी तो नवाज शरीफ तथा पाकिस्‍तान के साथ पहले दिन से सांठगांठ चली आ रही है।
हो सकता है कि यदि यह विधवा विलाप न करते और मोदी सरकार पर कार्यवाही के लिए दबाव बनाकर उसे चुनौती नहीं देते तो वह भी कांग्रेसी शासन की तरह हाथ पर हाथ रखे बैठी होती। ऐसे में कांग्रेस संभवत: उत्‍तर प्रदेश, पंजाब तथा गोवा में अपनी सरकार बनाने का ख्वाब देख सकती थी और उत्‍तराखंड व हिमाचल में काबिज रहने की कोशिश कर सकती थी।
हो सकता है कि अनेक विवादों में घिरे होने के बावजूद मोदी जी की अक्षमता के प्रचार से अरविंद केजरीवाल की पार्टी ही पंजाब पर काबिज हो जाती और दिल्‍ली की तरह पंजाब को धन्‍य करती, किंतु लगता है इन्‍हें इस बात का इल्‍म नहीं रहा कि दांव उल्‍टा पड़ जाएगा क्‍योंकि सरकार ने जनभावनाओं के मद्देनजर कार्यवाही कर डाली।
ऐसे में कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी कोई सामाजिक संस्‍था तो है नहीं। वह भी एक राजनीतिक दल है और सत्‍ता पर काबिज रहने की उसकी कोशिश किसी नजिरए से गलत नहीं है। यदि वह सर्जीकल स्‍ट्राइक से कोई राजनीतिक लाभ अर्जित करना चाहती है तो इसमें गलत क्‍या है। सेना का मनोबल बढ़ाकर तथा जन भावनाओं के अनुरूप काम करके सत्‍ता में बने रहने का प्रयास करना क्‍या गुनाह है।
कौन सा राजनीतिक दल और कौन सा नेता ऐसा है जिसकी कोशिश अपने क्रिया-कलापों का राजनीतिक लाभ अर्जित करने की नहीं होती। सब यही तो करते हैं।
फिर सर्जीकल स्‍ट्राइक का राजनीतिक लाभ उठाने की मोदी सरकार की कोशिश पर आश्‍चर्य कैसा ?
क्‍या कांग्रेस को 1971 के युद्ध में इंदिरा गांधी द्वारा उठाए गए कदमों का राजनीतिक लाभ नहीं मिला ?
जनभावनाओं के अनुरूप निर्णय लेने का लाभ दुनिया के हर मुल्‍क की सरकारों को मिलता रहा है और मिलता रहेगा। मोदी सरकार इसका अपवाद नहीं हो सकती।
बेहतर होगा कि सर्जीकल स्‍ट्राइक पर पाकिस्‍तान के हुक्‍मरानों की भाषा बोलने वाले इस सच्‍चाई को समय रहते समझ लें क्‍योंकि अब भी उनके पास डैमेज कंट्रोल करने का वक्‍त है। यूपी सहित जिन राज्‍यों में चुनाव प्रस्‍तावित हैं, उनमें कुछ माह बाकी हैं।
अगर और कुछ समय तक सर्जीकल स्‍ट्राइक पर सवाल खड़े किए जाते रहे और पाकिस्‍तान की तरह सेना की कार्यवाही पर शक जताया जाता रहा तो तय जानिए कि कांग्रेस के जनाजे को कांधा देने के लिए चार लोग भी शायद ही मिलें। तब संजय निरुपम, दिग्‍विजय सिंह तथा पी. चिदंबरम के अलावा कांग्रेस की अर्थी उठाने के लिए चौथा आदमी निश्‍चित ही अरविंद केजरीवाल होगा क्‍योंकि ये दल बेशक अलग हों, दिल तो दोनों के मिले हुए हैं।
राजनीति के चक्‍कर में सेना की सर्जीकल स्‍ट्राइक पर शक करके और पाकिस्‍तानी मीडिया की सुर्खियां बनकर दोनों ने साबित कर दिया है कि सोच के धरातल पर कांग्रेस व केजरीवाल में कोई अंतर नहीं है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सोमवार, 1 अगस्त 2016

SC ने सुनाया मायावती सहित यूपी के 6 पूर्व मुख्‍यमंत्रियों को सरकारी बंगले खाली करने का फरमान

नई दिल्ली। SC (सुप्रीम कोर्ट) ने सरकारी बंगलों पर कब्जा जमाए बैठे मायावती सहित 6 पूर्व-मुख्यमंत्रियों से सरकारी बंगले खाली करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश से इन मुख्‍यमंत्रियों को तगड़ा झटका दिया है।
केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज पूर्व-मुख्यमंत्रियों को दो महीने के भीतर सरकारी बंगले खाली करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अब से पूर्व-मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले न दिए जाएं।
गौरतलब है कि पूर्व-मुख्यमंत्रियों द्वारा सरकारी बंगले खाली न करना लंबे समय से विवाद का विषय रहा है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में एक सरकारी आदेश जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले दिए जायेंगे। इस फैसले के खिलाफ 2004 में लोक प्रहरी नाम के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि यह आदेश रद्द किये जाएं और अगर इसे जारी रखा गया तो देश के बाकी राज्यों पर भी इसका असर पड़ेगा। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश जारी किया है।
उत्तर प्रदेश के छह पूर्व-मुख्यमंत्री ऐसे हैं जो अब भी उत्तर प्रदेश स्थित सरकारी बंगलों में रह रहे हैं। इनमें एसपी मुखिया मुलायम सिंह यादव, बीएसपी सुप्रीमो मायावती, बीजेपी नेता कल्याण सिंह, पूर्व कांग्रेसी नेता एनडी तिवारी, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और रामनरेश यादव शामिल हैं। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने जीवन भर बंगला देने की नीति को गलत करार दिया है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी को मंत्रियों को दिए जाने वाले सरकारी बंगले पर कब्जा करने के मामले में कड़ी फटकार लगाई थी।
सरकारी बंगले के विवाद में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी फंस चुके हैं। उमर अब्दुल्ला की पूर्व पत्नी पायल ने दिल्ली के अकबर रोड़ पर स्थित बंगले को खाली करने से मना कर दिया था जो बंगला उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनने के दौरान दिया गया था।

शनिवार, 30 जुलाई 2016

बलात्‍कार केस: अब उपमन्‍यु के साथ DGP और SSP भी हाईकोर्ट से खाल बचाने में लगे

– DGP और SSP को भी शपथ पत्र के जरिए जवाब दाखिल करने में छूटे पसीने
– एक-दूसरे के ऊपर थोपा उपमन्‍यु के खिलाफ जांच ट्रांसफर करने का  मामला
मथुरा। बलात्‍कार के केस में पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने की कोशिश करने वाले DGP और SSP अब इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी खाल बचाने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत 12 जुलाई के अपने आदेश में मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद सहित यूपी के तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी तथा तत्‍कालीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी से 25 जुलाई तक व्‍यक्‍तिगत शपथपत्र के जरिए जवाब तलब किया था।
हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए आनंद लाल बनर्जी व मंजिल सैनी ने तो अपने-अपने जवाब सहित शपथ पत्र दाखिल कर दिए हैं किंतु सीएम के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद ने अभी अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
शासन के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने जगजीवन प्रसाद को जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय और देते हुए अगली तारीख 08 अगस्‍त मुकर्रर कर दी है।
इन दिनों लखनऊ में वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को भेजे गए अपने जवाब में सिर्फ खुद को बचाने का प्रयास किया है और कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ बलात्‍कार के केस की जांच स्‍थानांतरित करने का सारा ठीकरा अपने उच्‍चाधिकारियों के सिर फोड़ा है।
मंजिल सैनी ने अपने जवाब में लिखा है कि मैंने बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ जांच को मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करने के लिए मुख्‍यमंत्री के ओएसडी की सिफरिश से आए उच्‍चाधिकारियों के आदेश का पालनभर किया था। बतौर एसएसपी मुझे किसी जांच को मथुरा जनपद से बाहर स्‍थानांतरित करने का अधिकार ही नहीं था।
जांच स्‍थानांतरित हो जाने के बाद मथुरा पुलिस ने तत्‍काल इस केस से संबंधित केस डायरी और सभी पेपर्स फिरोजाबाद पुलिस को सौंप दिए।
मंजिल सैनी के जवाब से पहली बार में तो ऐसा लगता है जैसे बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को बचाए रखने में उनकी कोई भूमिका ही न हो किंतु जब किसी जांच को स्‍थानांतरित करने के लिए तय आदेश-निर्देशों पर गौर किया जाए तो पता लगता है कि ऊपर से लेकर नीचे तक बैठे पुलिस अधिकारियों ने किस प्रकार सारे आदेश-निर्देशों की खुली अवहेलना करके कमलकांत उपमन्‍यु को बच निकलने का पूरा मौका उपलब्‍ध कराया।
किसी भी केस की जांच बदलने के लिए उत्‍तर प्रदेश के ही प्रमुख सचिव देवाशीष पण्‍डा द्वारा प्रदेश पुलिस के मुखिया से लेकर हर जिले के पुलिस प्रमुख तथा जिलाधिकारियों तक के लिए 22 अक्‍टूबर 2014 को जो पत्र भेजा गया था, उसके मुताबिक निर्गत किए गए आदेश-निर्देश इस प्रकार हैं:
1- किसी भी केस की जांच को स्‍थानांतरित करने से पहले उस जिले से केस की आख्‍या मंगानी होगी जहां वो केस रजिस्‍टर्ड हुआ हो और उसी आख्‍या के आधार पर जांच ट्रांसफर करने का निर्णय लिया जाएगा।
2- भेजी गई आख्‍या न केवल पूर्णत: स्‍पष्‍ट होनी चाहिए बल्‍कि उस पर जिले के पुलिस प्रमुख की संस्‍तुति उनके अपने हस्‍ताक्षर के साथ की जानी चाहिए। संस्‍तुति करने के लिए भी पुलिस प्रमुख को आख्‍या के साथ संलग्‍न ”चेक लिस्‍ट” के आदेशों पर अमल करना होगा।
3- इस चेक लिस्‍ट में आरोपी के बावत बहुत सी जानकारियों का ब्‍यौरा उपलब्‍ध कराने तथा उस समय के विवेचक का भी जांच ट्रांसफर करने को लेकर अभिमत जानने सहित कुल 15 बिंदु दिए गए हैं जिन्‍हें पूरा करना आवश्‍यक है।
गौरतलब है कि कमलकांत उपमन्‍यु के मामले में न तो तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बजर्नी ने ऐसे किसी आदेश-निर्देश का पालन किया और ना ही मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने, जबकि प्रमुख सचिव का पत्र इस केस से करीब डेढ़ महीने पहले ही हर जिले के पुलिस प्रमुख तक पहुंच चुका था।
इसके अलावा मंजिल सैनी के पास क्‍या इन प्रश्‍नों का कोई जवाब है कि पीड़िता द्वारा खुद उनसे संपर्क स्‍थापित किए जाने के बावजूद उन्‍होंने जांच के नाम पर कई दिन तक क्‍यों कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ केस दर्ज नहीं होने दिया ?
क्‍यों इस बीच पीड़िता के भाई और पिता के खिलाफ ही एक केस दर्ज करवा दिया जो बाद में झूठा साबित हुआ ?
06 दिसंबर 2014 को केस दर्ज हो जाने के बाद से जांच स्‍थानांतरित होने के बीच 15 दिनों तक मंजिल सैनी क्‍या करती रहीं। उन्‍होंने आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को गिरफ्तार न करके उसे पीड़िता व उसके परिवार पर दबाव बनाने तथा लखनऊ तक संपर्क साधकर जांच गैर जनपद स्‍थानांतरित कराने का मौका कैसे दिया, वो भी तब जबकि इस बीच पीड़िता का मैडीकल भी हो चुका था और 161 व 164 के तहत बयान भी दर्ज कराए जा चुके थे।
क्‍या मंजिल सैनी को पहले से ज्ञात था कि कमलकांत उपमन्‍यु अपने खिलाफ केस की जांच गैर जनपद ट्रांसफर कराने में सफल होगा।
मंजिल सैनी द्वारा बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने का यह प्रयास इसलिए और अधिक मायने रखता है क्‍योंकि कमलकांत उपमन्‍यु के साथ मंजिल सैनी की निकटता जगजाहिर थी। वह कमलकांत उपमन्‍यु के घर पर उनके निजी कार्यक्रमों तक में शामिल होती थीं।

समाचार चैनल ”आजतक” के समक्ष इस केस से मुतल्‍लिक अपना पक्ष रखते वक्‍त भी बतौर एसएसपी मंजिल सैनी का आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को ”उपमन्‍यु जी” संबोधित करना और प्रतिष्‍ठित पत्रकार बताना इस बात की पुष्‍टि करता है कि मंजिल सैनी का कमलकांत उपमन्‍यु के प्रति सॉफ्टकॉर्नर बरकरार था।

मंजिल सैनी ने कोर्ट को शपथपत्र के माध्‍यम से दिए गए जवाब में इस बात का कोई उल्‍लेख नहीं किया कि पीड़िता के कोर्ट में बयान हो जाने के बाद वह आरोपी की गिरफ्तारी के लिए आखिर किस बात का इंतजार करती रहीं।
इसी प्रकार तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बजर्नी ने अपने बचाव में शपथ पत्र के जरिए जो सफाई पेश की है, वह बहुत ही हास्‍यास्‍पद है। जैसे बनर्जी का एक ओर तो यह कहना कि उन्‍हें CrPC की धारा 36 तथा पुलिस एक्‍ट 1861 की धारा 3 के तहत किसी केस की जांच को ट्रांसफर करने का अधिकार है, और दूसरी ओर यह बताना कि उक्‍त जांच उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज की संस्‍तुति पर ट्रांसफर की है।
बनर्जी संभवत: यह भूल गए कि वह जवाब हाईकोर्ट को भेज रहे हैं, न कि किसी नेता को।

आश्‍चर्य की बात यह है कि डीजीपी के पद से अवकाश ग्रहण करने के मात्र चंद रोज पहले किए गए इस कारनामे के लिए आनंद लाल बनर्जी ने भी जांच ट्रांसफर करने के लिए प्रमुख सचिव द्वारा दिए गए लिखित आदेश-निर्देशों पर गौर करना जरूरी नहीं समझा। आखिर क्‍यों ?
इतने बड़े पद पर बैठे अधिकारी ने कैसे उन आदेश निर्देशों की खुली अवहेलना की और जांच ट्रांसफर करने का आदेश करने से पहले जिले के एसएसपी से आख्‍या क्‍यों नहीं मांगी।
कोर्ट को दिए गए शपथ पत्र में डीजीपी बनर्जी ने लिखा है कि उन्‍होंने आरोपी के भाई की एप्‍लीकेशन पर मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज की संस्‍तुति और पीड़िता द्वारा भी जांच बदलने के लिए मुझे दिए गए प्रार्थना पत्र के मद्देनजर अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए जांच ट्रांसफर की जबकि सच्‍चाई यह है कि आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के भाई पूर्व सूबेदार त्रिभुवन उपमन्‍यु ने मुख्‍यमंत्री के नाम प्रार्थना पत्र 18 दिसंबर 2014 को दिया था और पीड़िता द्वारा डीजीपी को प्रार्थना पत्र 22 दिसंबर 2014 को दिया गया लेकिन जांच बदलने के आदेश 22 दिसंबर को किए जा चुके थे।
अगर पीड़िता के प्रार्थना पत्र को भी जांच बदलने का आधार बनाया गया तो डीजीपी की इस मामले में तेजी बहुत से संदेह पैदा करती है।
जैसे 22 दिसंबर को मिले प्रार्थना पत्र पर उसी दिन बिना आख्‍या मांगे जांच बदलने का आदेश कर देने के पीछे कहीं डीजीपी का अपना कोई स्‍वार्थ तो पूरा नहीं हो रहा था। डीजीपी को यह भी मालूम था कि वह 8 दिन बाद अपने पद से अवकाश ग्रहण करने वाले हैं, फिर ऐसी कौन सी वजह थी कि डीजीपी ने सेम-डे जांच बदलने का आदेश किया।
इस मामले का एक और सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू यह है कि मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज का पद न तो कोई संवैधानिक पद है और न डीजीपी जैसा अधिकारी उनके किसी आदेश-निर्देश अथवा संस्‍तुति को मानने के लिए बाध्‍य है, ऐसे में डीजीपी बनर्जी का मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन की संस्‍तुति पर अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए जांच ट्रांसफर करने का हवाला देना कानून-व्‍यवस्‍था के साथ भद्दे मजाक से अधिक कुछ नहीं हो सकता।
डीजीपी बनर्जी ने अपने शपथ पत्र में एक दलील इस आशय की भी दी है कि याचिकाकर्ता एडवोकेट विजय पाल तोमर चूंकि इस केस में कोई पक्ष नहीं हैं इसलिए उन्‍हें जनहित याचिका दायर करने का कोई अधिकार भी नहीं है, एक तरह से उच्‍च न्‍यायालय को चुनौती देने के समान है। उच्‍च न्‍यायालय ने जब याचिका स्‍वीकार करके केस की सुनवाई शुरू कर दी और जवाब तलब भी कर लिया तो ऐसी किसी दलील का क्‍या औचित्‍य रह जाता है। यूं भी जनहित याचिका दायर करने का अधिकार किसे है और किसे नहीं, यह देखना कोर्ट का काम है न कि आनंद लाल बनर्जी का।
इन हालातों में लगता तो यह है इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय आगामी 08 अगस्‍त को इस मामले में कोई बड़ा फैसला सुना सकती है। केस की जांच नए सिरे से सीबीआई को भी सौंप सकती है जैसा कि उसने 12 जुलाई के अपने आदेश में कहा भी है कि क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
यदि ऐसा होता है तो निश्‍चित है कि जांच की आंच सिर्फ पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु, तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी, तत्‍कालीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी तथा मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद तक सीमित नहीं रह जाएगी।
तब इसकी जांच के दायरे में वह लोग भी होंगे जिन्‍होंने एक मामूली से पत्रकार को इतना अधिक प्रभावशाली बनाने में मदद की कि वह पूरी व्‍यवस्‍था को खुली चुनौती दे सके और मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज सहित डीजीपी व महिला एसएसपी अपनी गर्दन फंसाकर भी बलात्‍कार जैसे संगीन अपराध से उसे बच निकलने के लिए पूरा अवसर प्रदान करते रहे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

मुश्‍किल में मनीषा गुप्‍ता: पौने 2 करोड़ के घोटाले में शासन ने थमाया आरोपपत्र

मथुरा। नगर पालिका द्वारा एसटीपी व एसपीएस संचालन के लिए उठाए गए ठेके में पौने 2 करोड़ रुपए के घोटाले पर अब शासन ने भी अपनी मोहर लगाते हुए जिलाधिकारी के माध्‍यम से पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता को आरोप पत्र थमा दिया है।
नगर विकास अनुभाग-2 के सचिव श्रीप्रकाश सिंह तथा उप सचिव श्रवण कुमार सिंह के हस्‍ताक्षरयुक्‍त इस पत्र में जिलाधिकारी कार्यालय मथुरा से पालिकाध्‍यक्ष को तत्‍काल आरोप पत्र तामील कराने तथा तामीली की सूचना 3 दिनों के अंदर शासन को उपलब्‍ध कराने के लिए लिखा गया है।
शासन ने पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता से इस आरोप पत्र पर 15 दिन के अंदर जवाब तलब करते हुए हिदायत दी है कि यदि 15 दिन के अंदर वह अपना स्‍पष्‍टीकरण नहीं देती हैं तो यह मान लिया जाएगा कि उन्‍हें अपने बचाव में कुछ नहीं कहना। इसके बाद शासन इस मामले में उपलब्‍ध अभिलेखों के आधार पर कार्यवाही सुनिश्‍चित करेगा जिसकी पूरी जिम्‍मेदारी पालिकाध्‍यक्ष की होगी।
उत्‍तर प्रदेश शासन के नगर विकास अनुभाग-2 से पत्रांक संख्‍या 860/नौ-2-16-273 सा/15 पर दिनांक 23 जून 2016 को जारी किया गया यह आरोप पत्र कार्यालय जिलाधिकारी मथुरा में 27 जून के दिन प्राप्‍त हुआ।
पालिका प्रशासन से जब इस मामले में पूछा गया तो पता लगा कि जिलाधिकारी कार्यालय से पालिकाध्‍यक्ष को आरोप पत्र तामील हो चुका है और पालिकाध्‍यक्ष ने भी अपना जवाब शासन को भेज दिया है।
कानूनविदों की मानें तो निर्धारित समय के अंदर पालिकाध्‍यक्ष द्वारा स्‍पष्‍टीकरण न देने अथवा उनके स्‍पष्‍टीकरण से संतुष्‍ट न होने की स्‍थिति में नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 48 के तहत शासन, पालिकाध्‍यक्ष को सीधे बर्खास्‍त कर सकता है।
शासन द्वारा जारी किए गए आरोप पत्र में आयुक्‍त आगरा मण्‍डल के पत्रांक संख्‍या 1234/तेईस-65 (2014-15)/स्‍था. निकाय दि. 20.01.2016 के आधार पर जिन अनियमितताओं को लेकर पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता से जवाब तलब किया गया है वो इस प्रकार है:
1- नगर पालिका परिषद मथुरा के अंतर्गत एसटीपी व एसपीएस के संचालन हेतु ठेके के लिए टेक्‍नीकल बिड एवं फाइनेन्‍शियल बिड अलग-अलग लिफाफों में रखकर एकसाथ डाली जानी थीं। इनमें से टेक्‍नीकल बिड पहले खुलनी चाहिए थी और उसका परीक्षण करने के उपरांत यह सुनिश्‍चित करना अनिवार्य था कि तकनीकी आधार पर अयोग्‍य फर्म कौन सी है क्‍योंकि तकनीकी आधार पर अयोग्‍य फर्म की फाइनेन्‍शियल बिड नहीं खोली जा सकती। इस मामले में टेक्‍नीकल बिड का मात्र तुलनात्‍मक चार्ट बनाकर खानापूरी कर दी गई और उस पर भी शर्त संख्‍या 3 के अनुसार सक्षम अधिकारी या नगर पालिका की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया जो गंभीर वित्‍तीय अनियमितताओं की श्रेणी का कृत्‍य है।
2- नगर पालिका परिषद मथुरा की संबंधित पत्रावली पर इस आशय का गलत तथ्‍य अंकित किया गया कि एसटीपी व एसपीएस संचालन के ठेके की सभी बिड सफल हुईं जबकि टेक्‍नीकल बिड को स्‍वीकृत करने का कोई आदेश न तो टेंडर कमेटी द्वारा पारित किया गया और ना ही पालिका बोर्ड द्वारा उस पर कोई निर्णय लिया गया। इस प्रकार टेक्‍नीकल बिड के लिए पत्रावली पर गलत तथ्‍यों का उल्‍लेख करते हुए फाइनेन्‍शियल बिड खोल दी गई जिससे स्‍पष्‍ट है कि ठेकेदारों के साथ दुरभि संधि करके अनियमित तरीके से ठेका उठा दिया गया।
3- फरीदाबाद की जिस फर्म ”स्‍टील इंजीनियर्स” को 1 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 रुपए का ठेका दिया गया, उसका उत्‍तर प्रदेश से निर्गत हैसियत व चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्‍तुत नहीं किया गया जोकि गंभीर वित्‍तीय अनियमितता की श्रेणी का कृत्‍य और भ्रष्‍टाचार का द्योतक है।
4- आपके द्वारा फरीदाबाद (हरियाणा) की जिस फर्म को ठेका दिया गया, वह नगर पालिका परिषद् मथुरा में पंजीकृत ही नहीं थी। साथ ही अन्‍य फर्म मै. पंप इंजीनियर्स एंड ट्रेडर्स द्वारिकापुरी मथुरा का हैसियत प्रमाण पत्र, वांछित से कम था लिहाजा संपूर्ण वित्‍तीय वर्ष 2014-15 के लिए पर्याप्‍त नहीं था लेकिन आपने उसके द्वारा डाली गई बिड को सफल मान लिया।
इसी प्रकार लुधियाना की फर्म मै. लॉर्ड कृष्‍णा एंटरप्राइजेज ने भी उत्‍तर प्रदेश से निर्गत हैसियत व चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्‍तुत नहीं किए थे, बावजूद इसके आपके द्वारा उसकी टेक्‍नीकल बिड को सफल मान लिया गया जबकि उसके प्रमाण पत्र ठेके के लिए मान्‍य ही नहीं थे।
5- इस प्रकार तीनों फर्म्‍स तकनीकी रूप से अयोग्‍य होने के कारण बिड निरस्‍त की जानी चाहिए थी लेकिन बिड खोली गईं।
6- टेक्‍नीकल बिड स्‍वीकृत होने तथा फाइनेन्‍शियल बिड खोले जाने के बीच समय का कोई अंतर नहीं रखा गया और दोनों बिड एकसाथ खोलकर नियमों का घोर उल्‍लंघन किया गया।
7- फरीदाबाद की जिस फर्म ”स्‍टील इंजीनियर्स” को 1 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 रुपए का ठेका दिया गया, उसके अनुबंध हेतु शपथ पत्र तो प्रोपराइटर कर्मवीर मेहता का प्रस्‍तुत किया गया लेकिन हैसियत प्रमाण पत्र उनकी पत्‍नी सुमन मेहता का लगाया गया जो हरियाणा से जारी किया गया था।
आपका यह कृत्‍य पूरी तरह नियम विरुद्ध है और स्‍पष्‍ट करता है कि ”स्‍टील इंजीनियर्स” को ठेका दुरभि संधि करके दिया गया।
8- मै. स्‍टील इंजीनियर्स द्वारा श्रम विभाग को दिए गए प्रपत्र में 16 कर्मचारी दिखाए गए जबकि नगर पालिका परिषद मथुरा में 12 सीवेज पंप के संचालन पर 8-8 घंटे की ड्यूटी के हिसाब से कुल 72 कर्मचारी तथा दो एसटीपी के संचालन के लिए कुल 12 कर्मचारियों की आवश्‍यकता थी। इस प्रकार 84 कर्मचारियों की आवश्‍यकता थी जिनका उल्‍लेख पत्रावली में कर्मचारियों की सूची के अंदर भी नहीं किया गया।
9- एसटीपी व एसपीएस संचालन में अनुरक्षण व सत्‍यापन के लिए उत्‍तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 104 के अनुसार सभासदों की एक कमेटी बनाए जाने का प्रावधान है किंतु आपके द्वारा ऐसी किसी कमेटी का गठन ही नहीं किया गया जोकि नियमों का स्‍पष्‍ट उल्‍लंघन साबित करता है।
10- प्रशासनिक अधिकारियों ने समय-समय पर जब कभी एसटीपी व एसपीएस का निरीक्षण किया तो वह प्राय: बंद पाए गए। 09 फरवरी 2015 को किए गए निरीक्षण में भी स्‍टेशन बंद मिले और गंदा पानी सीधे यमुना में गिरता पाया गया।
उल्‍लेखनीय है कि पौने 2 करोड़ रुपए के इस घोटाले में पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता के अतिरिक्‍त अधिशासी अधिकारी के. पी. सिंह, अवर अभियंता (जलकल) के. आर. सिंह, सहायक अभियंता उदयराज, लेखाकार विकास गर्ग तथा लिपिक टुकेश शर्मा भी आरोपी हैं।
ठेका उठाने में बरती गईं अनियमितताओं तथा भ्रष्‍टाचार का यह मामला अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल (NGT) में भी लंबित है और वहां इसकी सुनवाई के लिए इसी महीने की 25 तारीख मुकर्रर की गई है। ऐसे में देखना यह होगा कि पौने 2 करोड़ रुपए का घोटाला करने के इन आरोपियों पर पहले शासन स्‍तर से कार्यवाही की जाती है अथवा एनजीटी इनके खिलाफ कार्यवाही की पहल करता है।
इस पूरे मामले का एक दिलचस्‍प पहलू यह है कि गंगा और यमुना जैसी जिन पवित्र नदियों को प्रदूषण मुक्‍त करने के लिए मोदी सरकार एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रही है और अखिलेश सरकार भी उसमें पूरा सहयोग करने का वादा कर चुकी है, उनके एसटीपी व एसपीएस संचालन में घोटाले की आरोपी मथुरा की पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता यूपी के आगामी विधानसभा चुनावों में मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से चुनाव लड़ने का ख्‍वाब देख रही हैं। उनके पति और भाजपा नेता राजेश गुप्‍ता ”डब्‍बू” दावा कर रहे हैं कि मनीषा को न केवल टिकट मिलेगा बल्‍कि वह यूपी में बनने वाली अगली सरकार के अंदर मंत्रिपद भी ग्रहण करेंगी।
-लीजेंड न्‍यूज़

बलात्‍कार के केस में पत्रकार उपमन्‍यु को इलाहाबाद High Court से तगड़ा झटका

-कोर्ट ने पूछा, क्‍यों न CBI को सौंप दिया जाए केस 
-मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज, डीजीपी यूपी तथा एसएसपी मथुरा से 25 जुलाई तक शपथपत्र दाखिल करने को कहा 
मथुरा। एमबीए पास एक लड़की से बलात्‍कार करने के केस में पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु को इलाहाबाद High Court ने तगड़ा झटका दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के विद्वान न्‍यायाधीश माननीय अरुण टंडन तथा माननीय सुनीता अग्रवाल की डिवीजन बैंच ने गत 12 जुलाई के अपने आदेश में इस मामले पर मुख्‍यमंत्री उत्‍तर प्रदेश अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्‍तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने को कहा है।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी पूछा है कि जिस तरह से बलात्‍कार पीड़िता के कोर्ट में बयान होने के बावजूद जांच ट्रांसफर कर दी गई, उसे देखते हुए क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
गौरतलब है कि पीड़िता की तहरीर पर दुराचार का यह मामला 06 दिसंबर 2014 को मथुरा के हाईवे थाने में अपराध संख्‍या 944/2014 धारा 376 व 506 आईपीसी के तहत दर्ज हुआ था।
उत्‍तर प्रदेश जर्नलिस्‍ट एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्‍यक्ष, ब्रज प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष तथा मथुरा छावनी बोर्ड के भी उपाध्‍यक्ष पद पर काबिज रहे कमलकांत उपमन्‍यु ने अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल करते हुए पहले तो इस गंभीर आपराधिक मामले की जांच को मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करा लिया और फिर उसमें फिरोजाबाद पुलिस से फाइनल रिपोर्ट लगवा दी जबकि जांच स्‍थानांतरित होने से पूर्व न केवल पीड़िता का मेडीकल हो चुका था बल्‍कि मथुरा पुलिस के सामने 161 व कोर्ट में 164 के तहत बयान भी दर्ज कराए जा चुके थे। जिस समय यह जांच स्‍थानांतरित की गई उस समय उत्‍तर प्रदेश पुलिस के डीजी आनंद लाल बनर्जी हुआ करते थे और जिन्‍हें बमुश्‍किल एक सप्‍ताह बाद ही अपने पद से मुक्‍त होना था जबकि मथुरा के एसएसपी पद पर मंजिल सैनी काबिज थीं जो फिलहाल लखनऊ के एसएसपी पद पर काबिज हैं। तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी की आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु से नजदीकियां जगजाहिर थीं और मंजिल सैनी के उपमन्‍यु के घर पर उसके साथ खींचे गए फोटो भी उसकी पुष्‍टि कर रहे थे लिहाजा मंजिल सैनी ने पहले तो उपमन्‍यु के खिलाफ एफआईआर ही बड़ी मुश्‍किल से दर्ज होने दी और फिर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद उसकी गिरफ्तारी न करके उसे अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल करने की पूरी छूट भी दी। एसएसपी का संरक्षण ही था कि बलात्‍कार जैसे संगीन आरोप में और पीड़िता के 164 के बयान हो जाने के बावजूद कमलकांत उपमन्‍यु अपने सगे भाई की एप्‍लीकेशन पर जांच मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करने में सफल रहा।
फिरोजाबाद में तब तक एसपी के पद पर पीयूष श्रीवास्‍तव आ चुके थे जो पहले मथुरा में एएसपी रहे थे। पीयूष श्रीवास्‍तव से भी कमलकांत उपमन्‍यु की अच्‍छी सेटिंग थी इसलिए उसे फिरोजाबाद के आईओ को प्रभावित करने में कोई परेशानी नहीं हुई।
केस की गंभीरता और आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के प्रभाव को देखते हुए मथुरा बार एसोसिएशन के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष एडवोकेट विजयपाल तोमर इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ले गए और 09 फरवरी 2015 को जनहित याचिका दायर की।
एडवोकेट विजयपाल तोमर की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश माननीय डी. वाई. चंद्रचूढ़ तथा माननीय सुजीत कुमार की बैंच ने संज्ञान लेते हुए 11 फरवरी 2015 के अपने आदेश में संबंधित सभी अधिकारियों तथा सीजेएम मथुरा को आवश्‍यक दिशा-निर्देश दिए।
इलाहाबाद हाइकोर्ट में लंबित होते हुए पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु ने इस बीच फिरोजाबाद पुलिस से इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगवा ली।
बताया जाता है कि आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु ने पीड़िता को भी अपना प्रभाव दिखाकर मथुरा कोर्ट के अंदर अपने पक्ष में बयान देने पर बाध्‍य कर दिया।
अब जबकि याचिकाकर्ता एडवोकेट विजयपाल तोमर ने 12 जुलाई 2016 को कोर्ट के समक्ष सारा मामला पेश किया और बताया कि किस तरह आरोपी ने अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल कर न केवल जांच बदलवाई बल्‍कि उसमें फाइनल रिपोर्ट लगवाकर पीड़िता के बयान भी अपने पक्ष में करा लिए तो कोर्ट ने केस की गंभीरता के मद्देनजर अब 25 जुलाई तक मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्‍तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने करने को कहा है। साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में पूछा है कि क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट में अब इस मामले की सुनवाई 27 जुलाई को होनी है।
-लीजेंड न्‍यूज़

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

टेकमैन ग्रुप ने भ्रामक विज्ञापन देकर नए Real Estate Bill को दी खुली चुनौती

मथुरा बेस्‍ड रीअल एस्‍टेट कंपनी Techman Buildwell Pvt Ltd द्वारा हाल ही में बने रीअल एस्‍टेट बिल को खुली चुनौती दी गई है। Techman Buildwell ने नए रीअल एस्‍टेट बिल में शामिल कानूनी प्रावधानों को ताक पर रखकर लोगों से पैसा इकठ्ठा करने के लिए ऐसा भ्रामक विज्ञापन दिया है जो यह साबित करता है कि सरकार की मंशा चाहे कितनी ही अच्‍छी क्‍यों न हो और वह कैसा भी कठोर कानून क्‍यों न ले आए किंतु जिन्‍हें कानून से खिलवाड़ करने की आदत है, वह अपनी आदत से बाज नहीं आने वाले।
दरअसल, Techman Group ने आगरा से प्रकाशित दैनिक जागरण अखबार के 10 जुलाई वाले मथुरा संस्‍करण में पृष्‍ठ संख्‍या 4 पर एक क्‍वार्टर पेज कलर्ड विज्ञापन दिया है।
”उधर घर किया बुक, इधर इनकम शुरू” शीर्षक वाले इस विज्ञापन के तहत ”अब तो दोनों हाथों में लड्डू” होने का लालच देते हुए बताया गया है कि किस तरह बुकिंग कराने के साथ ही खरीदार की आमदनी शुरू हो जाएगी जबकि सच यह है कि इस विज्ञापन के झांसे में आने वाला खरीदार आमदनी तो दूर अपने फ्लैट को पाने के लिए भी बिल्‍डर के हाथ की कठपुतली बनकर रह जाएगा।
विज्ञापन कुछ इस प्रकार है- अब Techman लाए हैं Real Estate में Monthly Income Plan (MIP). सिर्फ रु. 1.80 में 2 BHK बुक कराएं और Possession तक Home Loan ब्‍याज समेत हर महीने 15840 रु. तक पाएं।
विज्ञापन के अनुसार Techman Group की यह स्‍कीम उनके प्रोजेक्‍ट नीलगिरी इंडिपेंडेट फ्लोर, हर्ष इंडिपेंडेट फ्लोर, हिमगिरी अपार्टमेंट एंड सिटी कॉम्‍पलेक्‍स में 2BHK सहित 1BHK तथा 3BHK के लिए भी है जो मथुरा में नेशनल हाईवे नंबर-2 पर Techman City के अंदर आते हैं।
विज्ञापन में नीचे लिखा है कि यही स्‍कीम उनके गाजियाबाद (दिल्‍ली एनसीआर) के प्रोजेक्‍ट्स मोती रेजीडेंसी राजनगर Extn. तथा मोती सिटी मोदीनगर पर भी लागू है।
इस संबंध में पूरी जानकारी के लिए जब ‘Legend News’ ने विज्ञापन के नीचे दिए गए एक मोबाइल नंबर 9555632609 पर जानकारी की तो फोन रिसीव करने वाले ने बताया कि प्रथम तो वह खरीदार से बुकिंग एमाउंट 20 प्रतिशत लेंगे न कि 10 प्रतिशत जैसा कि विज्ञापन में लिखा है। इसके अलावा जिस फ्लैट की कीमत विज्ञापन में 18 लाख रु. दर्शायी गई है, उसकी एक्‍चुअल कीमत 20 लाख रुपए होगी।
फ्लैट की शेष रकम के लिए ग्रुप द्वारा खरीदार के नाम स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक तथा एचडीएफसी बैंक से होम लोन कराया जाएगा। विज्ञापन में उक्‍त बैंकों से होम लोन दिलाने की सुविधा का उल्‍लेख किया गया है।
फोन रिसीव करने वाले के मुताबिक ग्रुप की ओर से खरीदार को उसके द्वारा जमा कराए गए बुकिंग एमाउंट पर तो Possession न देने तक 15 प्रतिशत यानि सवा रुपया सैकड़ा के हिसाब से ब्‍याज दिया जाएगा, साथ ही होम लोन की ब्‍याज (न कि किश्‍त)का जो पैसा बनेगा, वह भी देगा।
इस हिसाब से देखें तो बिल्‍डर ने बड़ी चालाकी के साथ घर का सपना दिखाकर खरीदार के अपने पैसे तथा बैंक से उसे दिलाए गए कर्ज को भी तब तक इस्‍तेमाल करने का इंतजाम करने की कोशिश की है जब तक कि उसका प्रोजेक्‍ट तैयार नहीं हो जाता। इस दौरान बैंक का कर्ज रहेगा खरीदार के ऊपर और उसका इस्‍तेमाल बिना किसी जोखिम के बिल्‍डर द्वारा किया जाएगा।
फोन रिसीव करने वाले ने साफ-साफ कहा कि बैंक से होम लोन कराने की पूरी व्‍यवस्‍था उसके यानि ग्रुप के द्वारा की जाएगी, उसके लिए खरीदार को परेशान होने की जरूरत नहीं है।
इस पूरे विज्ञापन में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि Techman Group के यह प्रोजेक्‍ट कब तक पूरे होंगे और कब तक खरीदार को उसके सपनों के घर का Possession मिल पाएगा।
अब जरा गौर करें कि केंद्र सरकार द्वारा रीअल एस्‍टेट के क्षेत्र में वर्षों से चली आ रही इसी प्रकार की धोखाधड़ी को रोकने के लिए रीअल एस्‍टेट बिल में किए गए बंदोबस्‍तों पर और जानें कि किस प्रकार Techman Group का यह विज्ञापन ऐसे गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है जिसके लिए अच्‍छा-खासा जुर्माना तथा जेल की सजा दोनों मुकर्रर हैं:
1-नए रीअल एस्‍टेट बिल में व्‍यवस्‍था की गई है कि बिल्डर जो पैसा खरीदार अर्थात् उपभोक्‍ता से लेते हैं, उस राशि का 70 प्रतिशत हिस्सा उन्हें अलग बैंक में रखना होगा और इस पैसे का इस्तेमाल सिर्फ उसी प्रोजेक्‍ट में करना होगा जिसके लिए पैसा लिया गया है।
2-नए बिल में यह सुनिश्‍चित किया गया है कि बिल्डर को प्रोजेक्ट संबंधी संपूर्ण जानकारी जैसे प्रोजेक्ट का ले-आउट क्या है, मंज़ूरी कब व कैसे मिली, ठेकेदार कौन है, इंजीनियर कितने व कौन-कौन हैं, प्रोजेक्ट की मियाद क्या है, काम कब तक पूरा होगा, आदि अनिवार्य तौर पर देनी होगी।
3-बिल्डर अगर पूर्व घोषित समय तक निर्माण कार्य पूरा नहीं करता तो उसे उसी दर पर ख़रीदार को ब्याज़ का भुगतान करना होगा जिस दर पर वो ख़रीदार से भुगतान में किसी चूक के बाद ब्याज़ वसूलता है।
4-कोई भी बिल्डर अपनी सम्पत्ति को ‘सुपर एरिया’ के आधार पर नहीं बेच सकेगा जिसमें फ्लैट के अंदर का हिस्सा और बाहर का साझा भाग जैसे लिफ्ट और कार पार्किंग वगैरह शामिल होते हैं। अब कार्पेट एरिया लिखना अनिवार्य होगा।
5-कोई बिल्डर अगर रियल एस्टेट रेग्यूलेटरी अथॉरिटी के आदेश की अवहेलना करता है तो उसे जेल की सजा हो सकती है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
6-इसके अलावा बिल्‍डर को ख़रीदारों के हाथ में फ्लैट आने के तीन महीने के भीतर रेज़ीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन का गठन करना होगा ताकि वे सारी सुविधाओं की देखभाल कर सकें।
7-अथॉरिटी की वेबसाइट के माध्यम से प्रोजेक्ट संबंधी वो सभी जरूरी, सामान्‍य तथा महत्वूपर्ण जानकारियां खरीदार को देनी होंगी, जिनके लिए वह अब तक केवल प्रोजेक्ट निर्माता पर निर्भर था।
8-प्रोजेक्ट में तब तक कोई बदलाव नहीं किया जा सकता जब तक की खरीदार की अनुमति न हो। यह सभी व्‍यावसायिक और आवासीय रियल एस्‍टेट परियोजनाओं पर लागू होगा। यह नियम अंडर कंस्‍ट्रक्‍शन एवं 2016 में कंप्‍लीट प्रोजेक्‍ट पर भी लागू होगा।
9-नगर निकाय व अन्‍य प्रशासनिक कार्यालयों से मंजूरी लिये बगैर बिल्‍डर किसी प्रीलॉन्‍च प्रोजेक्‍ट के विज्ञापन नहीं दे सकेंगे। प्रोजेक्ट लॉन्च होते ही बिल्डर्स को प्रोजेक्ट से संबंध‍ित पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी देनी होगी। इसके साथ ही प्रोजेक्ट में रोजाना होने वाले अपडेट के बारे में भी वेबसाइट पर सूचित करना जरूरी कर दिया गया है।
10-बिल्‍डर यदि प्रोजेक्‍ट के विज्ञापन में किए गए किसी वायदे को पूरा नहीं करता है तो उसे 3 से 5 साल तक की जेल और जुर्माना या दोनों एकसाथ भुगतनी पड़ सकती हैं।
नए रीअल एस्‍टेट बिल में की गई इन सभी व्‍यवस्‍थाओं के अनुसार Techman Group ने न तो अपने विज्ञापन में प्रोजेक्‍ट की किसी जानकारी का खुलासा किया है और न उसकी समय सीमा का जिक्र किया है।
ग्रुप ने अपनी वेबसाइट पर भी नए बिल के अनुसार जरूरी जानकारियां उपलब्‍ध नहीं कराई हैं। जिस हर्ष प्रोजेक्‍ट का विज्ञापन में उल्‍लेख है, उसके बारे में तो वेबसाइट पर COMING SOON का बोर्ड लटका है।
विज्ञापन में लिखा है कि MIP में HOME LOAN ब्‍याज के साथ Allottee की हर महीने इनकम भी। Allottee को यह इनकम कैसे होगी, यह समझ से परे है।
जब Allottee के ही बुकिंग एमाउंट पर सवा रुपया सैकड़ा के हिसाब से ब्‍याज दिया जाएगा और उसी को दिलाए गए होम लोन की ब्‍याजभर उसे दी जाएगी तो उसकी अपनी इनकम कैसे हुई ?
इस विज्ञापन का सबसे महत्‍वपूर्ण और ध्‍यान देने लायक पहलू यह है कि विज्ञापन में Allottee की मासिक आय बैंक की FD से दोगुनी होने का दावा किया गया है जो पूरी तरह भ्रामक और गुमराह करके लोगों को अपने जाल में फंसाने का प्रयास है।
ऐसा लगता है कि नए रीअल एस्‍टेट बिल और उसमें निहित नियम-कानून को ताक पर रखकर Techman Group द्वारा दिए गए इस भ्रामक विज्ञापन में उन बैंकों की भी पूरी सहमति है जिनके लोगो इस्‍तेमाल करते हुए ग्रुप ने इनसे लोन कराने की सुविधा का हवाला दिया है। अन्‍यथा यह कैसे संभव है कि जिस विज्ञापन में बैंक की एफडी से अधिक आमदनी कराने का दावा किया गया हो, उस विज्ञापन पर संबंधित बैंकों को कोई आपत्‍ति ही न हो।
सच तो यह है कि इस पूरे विज्ञापन का मकसद Techman Group द्वारा लोगों को अपने जाल में फंसाना और बैंक की एफडी से अधिक आमदनी का लालच देकर उनकी खुद की पूंजी को अपने प्रोजेक्‍ट में इस्‍तेमाल करना है।
यदि ग्रुप की नीयत साफ होती तो वह नए नियमों का पालन करते हुए विज्ञापन में सभी बातों का खुलासा करता तथा बताता कि कौन सा प्रोजेक्‍ट कब तक पूरा होगा, साथ ही यह भी साफ करता कि Allottee के अपने बुकिंग एमाउंट पर सवा रुपए सैकड़े की ब्‍याज तथा होम लोन की ब्‍याज का मासिक भुगतान किस तरह उसकी आमदनी हुई।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

रविवार, 3 जुलाई 2016

राजनीति: सफलता की शत-प्रतिशत गारंटी वाला कारोबार

भारत में राजनीति ही एक ऐसा कारोबार है जो शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी देता है। राजनीति के अलावा दूसरा कोई ऐसा कारोबार नहीं जो किसी को सीधे फर्श से अर्स पर बैठाने की गारंटी देता हो।
यकीन न हो तो गौर करें हाल ही में आई इस रिपोर्ट पर:
स्‍वतंत्रता मिलने के 68 सालों बाद तक जिस देश में करोड़ों लोग दो जून की रोटी कमाने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करते हों और उसके लिए भी मनरेगा की दिहाड़ी पर निर्भर हों…जिस देश में रोटी, कपड़ा तथा मकान जैसी आवश्‍यक आवश्‍यकताओं की पूर्ति भी कुल जनसंख्‍या के एक बड़े हिस्‍से के लिए कोई बड़ा सपना साकार हो जाने के बराबर हो…जिस देश की आबादी के एक बड़े हिस्‍से को स्‍वच्‍छ पेयजल तक मुहैया कराने में सरकारें असमर्थ हों और जिस देश के लाखों गांव आज तक बिजली की रौशनी से महरूम हों, उस देश में किसी एक व्‍यक्‍ति के पास सैकड़ों करोड़ रुपए की संपत्‍ति होने का पता लगने पर कैसा महससूस होता है, यह वही बता सकता है जो सरकारी सस्‍ते गल्‍ले की दुकान से सस्‍ता राशन खरीदने के लिए उम्र के चौथे पड़ाव में कभी राज्‍य स्‍तरीय नेताओं के घर पर धरना देता है तो कभी केंद्रीय गृहमंत्री के दर पर जाकर बैठ जाता है क्‍योंकि उसका राशन कार्ड नहीं बना।
हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म द्वारा कराए गए एक सर्वे से पता लगा है कि गत दिनों राज्‍यसभा के लिए चुने गए लगभग सभी 57 सदस्‍य करोड़पति हैं। इनमें से 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस चल रहे हैं।
करोड़पति सदस्‍यों की इस लिस्‍ट में ऐसे भी हैं जिनकी संपत्‍ति सैकड़ों करोड़ रुपए है। मसलन कांग्रेसी नेता प्रफुल्‍ल पटेल 252 करोड़ रुपए की संपत्‍ति के स्‍वामी हैं जबकि कांग्रेस के ही कपिल सिब्‍बल 212 करोड़ रुपए की संपत्‍ति के मालिक हैं। बहुजन समाज पार्टी के नेता सतीश मिश्रा के पास 193 करोड़ रुपए की संपत्‍ति है। सतीश मिश्रा के साथ एक और खासियत यह जुड़ी हुई है कि उनकी संपत्‍ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मिश्रा की संपत्ति पहले 24.18 करोड़ थी।
भाजपा के अनिल दवे की संपत्‍ति में रिकॉर्ड तोड़ इजाफा हुआ है। इनकी संपत्‍ति 2,111 प्रतिशत बढ़ी है, बावजूद इसके अनिल दवे सबसे गरीब सदस्‍य हैं। इनकी कुल संपत्‍ति 60.97 लाख है जो पूर्व में 2 लाख 75 हजार रुपए हुआ करती थी। शिवसेना के संजय राउत की संपत्ति में 841 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी हुई है। राउत की संपत्‍ति 1.51 करोड़ से बढ़कर 14.22 करोड़ हो गई है।
इस सर्वेक्षण में सामने आया कि राज्यसभा के 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं। इनमें से सात लोगों के खिलाफ गंभीर अपराध जैसे मर्डर, धोखाधड़ी, प्रॉपर्टी से जुड़ी बेईमानी और चोरी जैसे केस दर्ज हैं। भाजपा के 3, सपा के 2, कांग्रेस, बीजेडी, बसपा, आरजेडी, डीएमके, शिवसेना और वाईएसआरसीपी के एक सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं।
यूपी के 11 राज्यसभा सदस्यों में 4 के खिलाफ केस दर्ज हैं, बिहार के 5 सदस्यों में से 2, महाराष्ट्र के 6 सदस्यों में से 1, तमिलनाडु के 6 सदस्यों में से एक, कनार्टक के 4 सदस्यों में से 1, आंध्रप्रदेश के 4 सदस्यों में से 1, मध्यप्रदेश के 3 सदस्यों में से 1, उड़ीसा के 3 सदस्यों में से 1 और हरियाणा के 2 सदस्यों में से 1 के खिलाफ केस दर्ज हैं।
बताया जाता है कि पेशे से वकील और कांग्रेस के नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्‍बल की देश में कई पशु वधशालाएं हैं। वह मांस का बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं। मांस का यह कारोबार खुद उनके नाम है अथवा पत्‍नी या बच्‍चों के नाम, इसका तो पता नहीं अलबत्‍ता 212 करोड़ रुपए की जो संपत्‍ति सामने आई है वह उनके अपने नाम है।
इसी प्रकार दूसरे कांग्रेसी नेता प्रफुल्‍ल पटेल का भी निश्‍चित ही कोई न कोई करोबार होगा और उन्‍होंने उस पार्ट टाइम कारोबार में राजनीति के फुल टाइम व्‍यापार से कमाया गया पैसा निवेश किया होगा। हालांकि यह मात्र अंदाज है क्‍योंकि सर्वेक्षण में इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है कि इन माननीयों की संपत्‍ति का स्‍त्रोत आखिर क्‍या है। बसपा के जिन माननीय राज्‍यसभा सदस्‍य सतीश मिश्रा के संपत्‍ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है और वह 24.18 करोड़ की संप्‍पति से छलांग लगाकर सीधे 193 करोड़ रुपए की संपत्‍ति के मालिक बन गए हैं, उनके बारे में प्राप्‍त जानकारी के अनुसार वह भी पेशेवर वकील हैं और बसपा की नाक के बाल बनने से पहले कानपुर में वकालत ही किया करते थे।
एक ओर देश में कालेधन को लेकर अकसर चर्चाएं होती रहती हैं और 2014 के उस चुनावी वायदे को मुद्दा बनाया जाता है जिसके तहत भाजपा नेताओं ने कालेधन को देश में लाकर प्रत्‍येक भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए से ऊपर की रकम आने की बात कही थी लेकिन दूसरी ओर माननीयों की संपत्‍ति पर किसी स्‍तर से कोई टीका-टिप्‍पणी तक नहीं होती।
कालेधन पर शोर मचाने वालों में आज के विपक्षी नेताओं से लेकर सत्‍ताधारी भाजपा के वो नेता भी शामिल हैं जो कभी विपक्षी हुआ करते थे किंतु माननीयों की संपत्‍ति पर सवाल पूछने वाला कोई नहीं।
अगर यह मान भी लिया जाए कि माननीयों ने यह संपत्‍ति अपने फुल टाइम कारोबार राजनीति से पार्ट टाइम किसी उद्योग या व्‍यापार में निवेश करके कमाई है, तो भी बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर यह कौन सा ऐसा उद्योग-व्‍यापार करते हैं जो इनके लिए सोने की खान साबित होता है।
दिमाग में सवाल यह भी कौंधता है कि जहां विजय माल्‍या जैसे लिकर किंग को कारोबार में घाटे के चलते देश छोड़कर भागना पड़ता है, सुब्रत राय सहारा जैसों को पब्‍लिक का पैसा न लौटा पाने के कारण 2 साल से अधिक का समय तिहाड़ जेल में गुजारना पड़ता है, रिलायंस के मालिक अंबानियों से लेकर जेपी ग्रुप के स्‍वामियों तक का बाल-बाल कर्ज में डूबा हुआ है, वहां राजनीति के इन कारोबारियों का व्‍यापार इतनी तेजी से छलांग कैसे लगा रहा है कि किसी की संपत्‍ति 698 प्रतिशत बढ़ गई तो किसी की 2,111 प्रतिशत।
आश्‍चर्य की बात यह है कि सामान्‍य तौर पर जनता के सामने परस्‍पर कुत्‍ते-बिल्‍ली जैसे स्‍वाभाविक व प्राकृतिक वैर-भाव का प्रदर्शन करने वाले विभिन्‍न राजनीतिक दलों के नेता अपनी संपत्‍ति के मामले में चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करते हैं।
यहां इनका प्रेम उसी तरह दिखाई देता है जिस तरह वेतन-भत्‍ते बढ़ाने के मामले में संसद अथवा विधानसभाओं के अंदर दिखाई देता रहा है। तब इनके बीच न कोई मतभेद होता है और न मनभेद। उस समय इनका आचार-व्‍यवहार उस सहोदर जैसा हो जाता है जिनके बीच उम्र व अनुभव का फासला भले ही हो किंतु जिन्‍होंने जन्‍म एक ही मां की कोख से लिया हो।
राज्‍यसभा के लिए नव निर्वाचित इन माननीयों की संपत्‍ति का ब्‍यौरा सामने आने पर यह पता जरूर लगता है कि क्‍यों कोई बड़ा वकील अपनी अच्‍छी-खासी प्रेक्‍टिस छोड़कर मौका मिलते ही फुलटाइमर राजनीतिज्ञ बन जाता है क्‍यों करोड़ों-अरबों का व्‍यापार करने वाले भी करोड़ों खर्च करके राजनीति का हिस्‍सा बनने को बेताब रहते हैं।
दरअसल, आज की राजनीति न केवल आर्थिक रुप से संपन्‍न होने की गारंटी देती है बल्‍कि तमाम ऐसे कार्यों से भी साफ बच निकलने का आश्‍वासन देती है जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं।
तभी तो सामान्‍य तौर पर जहां 323, 504 या 506 की धाराओं का आरोपी भी तत्‍काल पुलिस की हिरासत का हकदार बन जाता है वहीं रॉबर्ट वाड्रा, ललित मोदी तथा विजय माल्‍या जैसे आर्थिक अपराधी तमाम जांचों का हिस्‍सा होने के बावजूद फेसबुक व टि्वटर के माध्‍यम से कानून के साथ खेलते रहते हैं और उन्‍हें छूने तक की हिमाकत कोई नहीं कर पाता।
देश का विदेशों में छिपा काला धन जब बाहर आयेगा, तब आयेगा किंतु यदि देश के अंदर छिपे काले धन का ही पता लगा लिया जाए और उसके उन स्‍त्रोतों की जानकारी सार्वजनिक कर दी जाए जिनसे किसी की संपत्‍ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हो जाता है तो किसी की संप्‍पति 2,111 प्रतिशत के अनुपात से बढ़ जाती है, तो निश्‍चित ही जनसामान्‍य को कुछ न मिलकर भी बहुत कुछ मिल जायेगा।
यूं भी समय-समय पर यह चर्चा का विषय रहा है कि बाहर छिपे कालेधन से अधिक देश के अंदर ही कालाधान मौजूद है, बस जरूरत है तो उसे बाहर निकालने के लिए दृढ़ इच्‍छाशक्‍ति की और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ठोस कानूनी कार्यवाही करने की।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने एक चैनल को दिए गए इटरव्‍यू के दौरान कहा था कि देश के अंदर खुशहाली लाने तथा कानून-व्‍यवस्‍था को पूरी तरह चुस्‍त-दुरुस्‍त बनाने तक का मंत्र विकास में छिपा है। विकास होगा तो लोग सुखी व संपन्‍न होंगे…और लोग सुखी व संपन्‍न होंगे तो देश खुशहाल होगा।
हो सकता है प्रधानमंत्री का कथन कुछ हद तक सही हो लेकिन यह शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी नहीं देता। यदि ऐसा होता तो पूर्ण विकसित कहलाने वाले देशों में कभी कोई अपराध होता ही नहीं और उनके सामने किसी किस्‍म की कोई समस्‍या भी कभी खड़ी नहीं होती।
देश को खुशहाल बनाने की गारंटी केवल ऐसी ही व्‍यवस्‍था दे सकती है जिसमें आय के स्‍त्रोत पूरी तरह पारदर्शी हों। लोगों के बीच की आय में जमीन-आसमान का अंतर न हो और यदि हो तो उसके कारण ज्ञात हों, सार्वजनिक हों। जनसामान्‍य को भी पता हो कि यदि किसी की आय में अप्रत्‍याशित वृद्धि हुई है तो कैसे हुई है। वह प्रति वर्ष सरकार को कितना राजस्‍व देता रहा है। उसकी आमदनी का जरिया गैरकानूनी तो नहीं है।
यदि ऐसा होता है तो निश्‍चित ही देश विकास के मार्ग पर दौड़ेगा और कानून-व्‍यवस्‍था की स्‍थिति में भी उल्‍लेखनीय सुधार होगा।
हाल ही में राज्‍यसभा के लिए चुने गए ये 57 माननीय तो फर्श से अर्स तक की द्रुतगति से यात्रा करने वालों की नजीर भर हैं, कड़वा सच तो यह है कि राजनीति आज देश के सबसे सुरक्षित व सफल कारोबार में तब्‍दील हो चुकी है। ऐसा न होता तो कल तक साइकिल या स्‍कूटर पर घूमने वाला कोई शख्‍स एक बार की विधायकी के बाद ही अचानक कैसे करोड़ों की संपत्‍ति का मालिक बन जाता है। कैसे बिना कोई वेतन भत्‍ता पाए किसी नगर पालिका का कोई अध्‍यक्ष और यहां तक कि मामूली सा उसका कोई सदस्‍य भी अपने कार्यकाल का एक टर्म पूरा करते ही करोड़ों में खेलने लगता है।
यही हाल नगर पंचायतों व जिला पंचायतों तक पहुंचने वाले माननीयों का है। कश्‍मीर से लेकर कन्‍या कुमारी तक फैले देश में बहुत सी विविधताएं देखने को मिल सकती हैं किंतु राजनीति से प्राप्‍त ऐसी सुव्‍यवस्‍था में कहीं कोई अंतर दिखाई नहीं देता।
मोदी जी को चाहिए कि यदि वास्‍तव में देश को खुशहाल देखना है और कानून का राज स्‍थापित करना है तो सबसे पहले ऐसी बड़ी मछलियों के खिलाफ कार्यवाही करने की ठोस व्‍यवस्‍था करें जो समाज के सामने अव्‍यवस्‍था का प्रत्‍यक्ष उदाहरण बनी हुई हैं। जिनकी संपत्‍ति के बारे में जानकर जनसामान्‍य का मुंह आश्‍चर्य से खुले का खुला रह जाता है।
लाख रुपया कभी अपनी आंखों से न देख पाने वाला देश का एक बड़ा तबका जब अपने ही माननीयों पर सैकड़ों करोड़ की संपत्‍ति का समाचार पढ़ता है और किसी की तरक्‍की का प्रतिशत 698 तो किसी का 2111 सुनता है तो उसके दिल में कहीं न कहीं टीस जरूर पैदा होती है। यही वो टीस है जिससे राजनेताओं के प्रति घृणा का भाव पैदा होता है और कानून सबके लिए बराबर है के रटे-रटाए जुमले पर से भरोसा उठना शुरू होता है।
विकास को ही सुख का एकमात्र मंत्र मानने वाले मोदी जी, विनाश का कारण बने इस आर्थिक भेद पर भी ध्‍यान दें तो संभवत: तरक्‍की का मार्ग तेजी से प्रशस्‍त होगा अन्‍यथा उनके सारे प्रयास पानी को तलवार से काटने की कोशिश बनकर रह जायेंगे क्‍योंकि समस्‍या पैसा नहीं, पैसे से पैदा होने वाला वह भेदभाव है जो अनेक विसंगतियों का वाहक है तथा जिसके कारण समाज का हर वर्ग येन-केन प्रकारेण सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना चाहता है।

-Surendra chaturvedi

गुरुवार, 30 जून 2016

BSP के सतीश मिश्रा की संपत्‍ति में 698 प्रतिशत का इजाफा

नई दिल्‍ली। Rajya Sabha के लिए चुने गए 57 नए सदस्यों में से यूं तो लगभग सभी करोड़पतियों की श्रेणी में हैं लेकिन BSP के सतीश मिश्रा की संपत्‍ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इनमें प्रफुल्ल पटेल, कपिल सिब्बल और सतीश चंद्र मिश्रा सबसे ऊपर हैं। इनमें से करीब 55 सदस्य यानि 96 प्रतिशत करोड़पति हैं। इनमें से 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस चल रहे हैं।
इन सांसदों के पास सबसे ज्यादा संपत्ति
ये सर्वेक्षण एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की ओर से किया गया। इसके अनुसार प्रफुल्ल पटेल के पास करीब 252 करोड़ रुपए की संपत्ति है, वहीं कपिल सिब्बल के पास 212 करोड़ और बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्रा के पास 193 करोड़ रुपए की संपत्ति आंकी गई है। राज्यसभा के नवनिर्वाचित सभी सदस्यों के पास औसतन 35.84 करोड़ रुपए की संपत्ति है।
इनकी संपत्ति में सबसे ज्यादा हुई बढ़ोत्‍तरी
बीजेपी के अनिल दवे की आय सबसे ज्यादा बढ़ी है। इनकी संपत्ति करीब 2,111 प्रतिशत बढ़ी है। 2.75 लाख से ये 60.97 लाख हो गई है। शिवसेना के संजय राउत की संपत्ति में 841 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी हुई है। ये 1.51 करोड़ से बढ़कर 14.22 करोड़ हो गई है। मिश्रा की संपत्ति करीब 698 प्रतिशत बढ़ी है। मिश्रा की संपत्ति पहले 24.18 करोड़ थी जो अब 193 करोड़ रुपए हो गई है।
13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज
इस सर्वेक्षण में सामने आया कि राज्यसभा के 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं। इनमें से सात लोगों के खिलाफ गंभीर अपराध जैसे मर्डर, धोखाधड़ी, प्रॉपर्टी से जुड़ी बेईमानी और चोरी जैसे केस दर्ज हैं। भाजपा के 3, सपा के 2, कांग्रेस, बीजेडी, बसपा, आरजेडी, डीएमके, शिवसेना और वाईएसआरसीपी के एक सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं।
यूपी के 11 राज्यसभा सदस्यों में 4 के खिलाफ केस दर्ज है, बिहार के 5 सदस्यों में से 2, महाराष्ट्र के 6 सदस्यों में से 1, तमिलनाडु के 6 सदस्यों में से एक, कनार्टक के 4 सदस्यों में 1, आंध्रप्रदेश के 4 सदस्यों में 1, मध्यप्रदेश के 3 सदस्यों में से 1, उड़ीसा के3 सदस्यों में से 1 और हरियाणा के 2 सदस्यों में से 1 के खिलाप केस दर्ज है। सबसे कम संपत्ति बीजेपी के अनिल माधव दवे के पास 60 लाख दर्ज हुई है।
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