भारत में राजनीति ही एक ऐसा कारोबार है जो शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी देता
है। राजनीति के अलावा दूसरा कोई ऐसा कारोबार नहीं जो किसी को सीधे फर्श से
अर्स पर बैठाने की गारंटी देता हो।
यकीन न हो तो गौर करें हाल ही में आई इस रिपोर्ट पर:
स्वतंत्रता मिलने के 68 सालों बाद तक जिस देश में करोड़ों लोग दो जून की रोटी कमाने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करते हों और उसके लिए भी मनरेगा की दिहाड़ी पर निर्भर हों…जिस देश में रोटी, कपड़ा तथा मकान जैसी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति भी कुल जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के लिए कोई बड़ा सपना साकार हो जाने के बराबर हो…जिस देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को स्वच्छ पेयजल तक मुहैया कराने में सरकारें असमर्थ हों और जिस देश के लाखों गांव आज तक बिजली की रौशनी से महरूम हों, उस देश में किसी एक व्यक्ति के पास सैकड़ों करोड़ रुपए की संपत्ति होने का पता लगने पर कैसा महससूस होता है, यह वही बता सकता है जो सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान से सस्ता राशन खरीदने के लिए उम्र के चौथे पड़ाव में कभी राज्य स्तरीय नेताओं के घर पर धरना देता है तो कभी केंद्रीय गृहमंत्री के दर पर जाकर बैठ जाता है क्योंकि उसका राशन कार्ड नहीं बना।
हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म द्वारा कराए गए एक सर्वे से पता लगा है कि गत दिनों राज्यसभा के लिए चुने गए लगभग सभी 57 सदस्य करोड़पति हैं। इनमें से 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस चल रहे हैं।
करोड़पति सदस्यों की इस लिस्ट में ऐसे भी हैं जिनकी संपत्ति सैकड़ों करोड़ रुपए है। मसलन कांग्रेसी नेता प्रफुल्ल पटेल 252 करोड़ रुपए की संपत्ति के स्वामी हैं जबकि कांग्रेस के ही कपिल सिब्बल 212 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक हैं। बहुजन समाज पार्टी के नेता सतीश मिश्रा के पास 193 करोड़ रुपए की संपत्ति है। सतीश मिश्रा के साथ एक और खासियत यह जुड़ी हुई है कि उनकी संपत्ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मिश्रा की संपत्ति पहले 24.18 करोड़ थी।
भाजपा के अनिल दवे की संपत्ति में रिकॉर्ड तोड़ इजाफा हुआ है। इनकी संपत्ति 2,111 प्रतिशत बढ़ी है, बावजूद इसके अनिल दवे सबसे गरीब सदस्य हैं। इनकी कुल संपत्ति 60.97 लाख है जो पूर्व में 2 लाख 75 हजार रुपए हुआ करती थी। शिवसेना के संजय राउत की संपत्ति में 841 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। राउत की संपत्ति 1.51 करोड़ से बढ़कर 14.22 करोड़ हो गई है।
इस सर्वेक्षण में सामने आया कि राज्यसभा के 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं। इनमें से सात लोगों के खिलाफ गंभीर अपराध जैसे मर्डर, धोखाधड़ी, प्रॉपर्टी से जुड़ी बेईमानी और चोरी जैसे केस दर्ज हैं। भाजपा के 3, सपा के 2, कांग्रेस, बीजेडी, बसपा, आरजेडी, डीएमके, शिवसेना और वाईएसआरसीपी के एक सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं।
यूपी के 11 राज्यसभा सदस्यों में 4 के खिलाफ केस दर्ज हैं, बिहार के 5 सदस्यों में से 2, महाराष्ट्र के 6 सदस्यों में से 1, तमिलनाडु के 6 सदस्यों में से एक, कनार्टक के 4 सदस्यों में से 1, आंध्रप्रदेश के 4 सदस्यों में से 1, मध्यप्रदेश के 3 सदस्यों में से 1, उड़ीसा के 3 सदस्यों में से 1 और हरियाणा के 2 सदस्यों में से 1 के खिलाफ केस दर्ज हैं।
बताया जाता है कि पेशे से वकील और कांग्रेस के नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की देश में कई पशु वधशालाएं हैं। वह मांस का बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं। मांस का यह कारोबार खुद उनके नाम है अथवा पत्नी या बच्चों के नाम, इसका तो पता नहीं अलबत्ता 212 करोड़ रुपए की जो संपत्ति सामने आई है वह उनके अपने नाम है।
इसी प्रकार दूसरे कांग्रेसी नेता प्रफुल्ल पटेल का भी निश्चित ही कोई न कोई करोबार होगा और उन्होंने उस पार्ट टाइम कारोबार में राजनीति के फुल टाइम व्यापार से कमाया गया पैसा निवेश किया होगा। हालांकि यह मात्र अंदाज है क्योंकि सर्वेक्षण में इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है कि इन माननीयों की संपत्ति का स्त्रोत आखिर क्या है। बसपा के जिन माननीय राज्यसभा सदस्य सतीश मिश्रा के संपत्ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है और वह 24.18 करोड़ की संप्पति से छलांग लगाकर सीधे 193 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक बन गए हैं, उनके बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार वह भी पेशेवर वकील हैं और बसपा की नाक के बाल बनने से पहले कानपुर में वकालत ही किया करते थे।
एक ओर देश में कालेधन को लेकर अकसर चर्चाएं होती रहती हैं और 2014 के उस चुनावी वायदे को मुद्दा बनाया जाता है जिसके तहत भाजपा नेताओं ने कालेधन को देश में लाकर प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए से ऊपर की रकम आने की बात कही थी लेकिन दूसरी ओर माननीयों की संपत्ति पर किसी स्तर से कोई टीका-टिप्पणी तक नहीं होती।
कालेधन पर शोर मचाने वालों में आज के विपक्षी नेताओं से लेकर सत्ताधारी भाजपा के वो नेता भी शामिल हैं जो कभी विपक्षी हुआ करते थे किंतु माननीयों की संपत्ति पर सवाल पूछने वाला कोई नहीं।
अगर यह मान भी लिया जाए कि माननीयों ने यह संपत्ति अपने फुल टाइम कारोबार राजनीति से पार्ट टाइम किसी उद्योग या व्यापार में निवेश करके कमाई है, तो भी बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर यह कौन सा ऐसा उद्योग-व्यापार करते हैं जो इनके लिए सोने की खान साबित होता है।
दिमाग में सवाल यह भी कौंधता है कि जहां विजय माल्या जैसे लिकर किंग को कारोबार में घाटे के चलते देश छोड़कर भागना पड़ता है, सुब्रत राय सहारा जैसों को पब्लिक का पैसा न लौटा पाने के कारण 2 साल से अधिक का समय तिहाड़ जेल में गुजारना पड़ता है, रिलायंस के मालिक अंबानियों से लेकर जेपी ग्रुप के स्वामियों तक का बाल-बाल कर्ज में डूबा हुआ है, वहां राजनीति के इन कारोबारियों का व्यापार इतनी तेजी से छलांग कैसे लगा रहा है कि किसी की संपत्ति 698 प्रतिशत बढ़ गई तो किसी की 2,111 प्रतिशत।
आश्चर्य की बात यह है कि सामान्य तौर पर जनता के सामने परस्पर कुत्ते-बिल्ली जैसे स्वाभाविक व प्राकृतिक वैर-भाव का प्रदर्शन करने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपनी संपत्ति के मामले में चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करते हैं।
यहां इनका प्रेम उसी तरह दिखाई देता है जिस तरह वेतन-भत्ते बढ़ाने के मामले में संसद अथवा विधानसभाओं के अंदर दिखाई देता रहा है। तब इनके बीच न कोई मतभेद होता है और न मनभेद। उस समय इनका आचार-व्यवहार उस सहोदर जैसा हो जाता है जिनके बीच उम्र व अनुभव का फासला भले ही हो किंतु जिन्होंने जन्म एक ही मां की कोख से लिया हो।
राज्यसभा के लिए नव निर्वाचित इन माननीयों की संपत्ति का ब्यौरा सामने आने पर यह पता जरूर लगता है कि क्यों कोई बड़ा वकील अपनी अच्छी-खासी प्रेक्टिस छोड़कर मौका मिलते ही फुलटाइमर राजनीतिज्ञ बन जाता है क्यों करोड़ों-अरबों का व्यापार करने वाले भी करोड़ों खर्च करके राजनीति का हिस्सा बनने को बेताब रहते हैं।
दरअसल, आज की राजनीति न केवल आर्थिक रुप से संपन्न होने की गारंटी देती है बल्कि तमाम ऐसे कार्यों से भी साफ बच निकलने का आश्वासन देती है जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं।
तभी तो सामान्य तौर पर जहां 323, 504 या 506 की धाराओं का आरोपी भी तत्काल पुलिस की हिरासत का हकदार बन जाता है वहीं रॉबर्ट वाड्रा, ललित मोदी तथा विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधी तमाम जांचों का हिस्सा होने के बावजूद फेसबुक व टि्वटर के माध्यम से कानून के साथ खेलते रहते हैं और उन्हें छूने तक की हिमाकत कोई नहीं कर पाता।
देश का विदेशों में छिपा काला धन जब बाहर आयेगा, तब आयेगा किंतु यदि देश के अंदर छिपे काले धन का ही पता लगा लिया जाए और उसके उन स्त्रोतों की जानकारी सार्वजनिक कर दी जाए जिनसे किसी की संपत्ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हो जाता है तो किसी की संप्पति 2,111 प्रतिशत के अनुपात से बढ़ जाती है, तो निश्चित ही जनसामान्य को कुछ न मिलकर भी बहुत कुछ मिल जायेगा।
यूं भी समय-समय पर यह चर्चा का विषय रहा है कि बाहर छिपे कालेधन से अधिक देश के अंदर ही कालाधान मौजूद है, बस जरूरत है तो उसे बाहर निकालने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ठोस कानूनी कार्यवाही करने की।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने एक चैनल को दिए गए इटरव्यू के दौरान कहा था कि देश के अंदर खुशहाली लाने तथा कानून-व्यवस्था को पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त बनाने तक का मंत्र विकास में छिपा है। विकास होगा तो लोग सुखी व संपन्न होंगे…और लोग सुखी व संपन्न होंगे तो देश खुशहाल होगा।
हो सकता है प्रधानमंत्री का कथन कुछ हद तक सही हो लेकिन यह शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी नहीं देता। यदि ऐसा होता तो पूर्ण विकसित कहलाने वाले देशों में कभी कोई अपराध होता ही नहीं और उनके सामने किसी किस्म की कोई समस्या भी कभी खड़ी नहीं होती।
देश को खुशहाल बनाने की गारंटी केवल ऐसी ही व्यवस्था दे सकती है जिसमें आय के स्त्रोत पूरी तरह पारदर्शी हों। लोगों के बीच की आय में जमीन-आसमान का अंतर न हो और यदि हो तो उसके कारण ज्ञात हों, सार्वजनिक हों। जनसामान्य को भी पता हो कि यदि किसी की आय में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है तो कैसे हुई है। वह प्रति वर्ष सरकार को कितना राजस्व देता रहा है। उसकी आमदनी का जरिया गैरकानूनी तो नहीं है।
यदि ऐसा होता है तो निश्चित ही देश विकास के मार्ग पर दौड़ेगा और कानून-व्यवस्था की स्थिति में भी उल्लेखनीय सुधार होगा।
हाल ही में राज्यसभा के लिए चुने गए ये 57 माननीय तो फर्श से अर्स तक की द्रुतगति से यात्रा करने वालों की नजीर भर हैं, कड़वा सच तो यह है कि राजनीति आज देश के सबसे सुरक्षित व सफल कारोबार में तब्दील हो चुकी है। ऐसा न होता तो कल तक साइकिल या स्कूटर पर घूमने वाला कोई शख्स एक बार की विधायकी के बाद ही अचानक कैसे करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन जाता है। कैसे बिना कोई वेतन भत्ता पाए किसी नगर पालिका का कोई अध्यक्ष और यहां तक कि मामूली सा उसका कोई सदस्य भी अपने कार्यकाल का एक टर्म पूरा करते ही करोड़ों में खेलने लगता है।
यही हाल नगर पंचायतों व जिला पंचायतों तक पहुंचने वाले माननीयों का है। कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक फैले देश में बहुत सी विविधताएं देखने को मिल सकती हैं किंतु राजनीति से प्राप्त ऐसी सुव्यवस्था में कहीं कोई अंतर दिखाई नहीं देता।
मोदी जी को चाहिए कि यदि वास्तव में देश को खुशहाल देखना है और कानून का राज स्थापित करना है तो सबसे पहले ऐसी बड़ी मछलियों के खिलाफ कार्यवाही करने की ठोस व्यवस्था करें जो समाज के सामने अव्यवस्था का प्रत्यक्ष उदाहरण बनी हुई हैं। जिनकी संपत्ति के बारे में जानकर जनसामान्य का मुंह आश्चर्य से खुले का खुला रह जाता है।
लाख रुपया कभी अपनी आंखों से न देख पाने वाला देश का एक बड़ा तबका जब अपने ही माननीयों पर सैकड़ों करोड़ की संपत्ति का समाचार पढ़ता है और किसी की तरक्की का प्रतिशत 698 तो किसी का 2111 सुनता है तो उसके दिल में कहीं न कहीं टीस जरूर पैदा होती है। यही वो टीस है जिससे राजनेताओं के प्रति घृणा का भाव पैदा होता है और कानून सबके लिए बराबर है के रटे-रटाए जुमले पर से भरोसा उठना शुरू होता है।
विकास को ही सुख का एकमात्र मंत्र मानने वाले मोदी जी, विनाश का कारण बने इस आर्थिक भेद पर भी ध्यान दें तो संभवत: तरक्की का मार्ग तेजी से प्रशस्त होगा अन्यथा उनके सारे प्रयास पानी को तलवार से काटने की कोशिश बनकर रह जायेंगे क्योंकि समस्या पैसा नहीं, पैसे से पैदा होने वाला वह भेदभाव है जो अनेक विसंगतियों का वाहक है तथा जिसके कारण समाज का हर वर्ग येन-केन प्रकारेण सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना चाहता है।
-Surendra chaturvedi
यकीन न हो तो गौर करें हाल ही में आई इस रिपोर्ट पर:
स्वतंत्रता मिलने के 68 सालों बाद तक जिस देश में करोड़ों लोग दो जून की रोटी कमाने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करते हों और उसके लिए भी मनरेगा की दिहाड़ी पर निर्भर हों…जिस देश में रोटी, कपड़ा तथा मकान जैसी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति भी कुल जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के लिए कोई बड़ा सपना साकार हो जाने के बराबर हो…जिस देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को स्वच्छ पेयजल तक मुहैया कराने में सरकारें असमर्थ हों और जिस देश के लाखों गांव आज तक बिजली की रौशनी से महरूम हों, उस देश में किसी एक व्यक्ति के पास सैकड़ों करोड़ रुपए की संपत्ति होने का पता लगने पर कैसा महससूस होता है, यह वही बता सकता है जो सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान से सस्ता राशन खरीदने के लिए उम्र के चौथे पड़ाव में कभी राज्य स्तरीय नेताओं के घर पर धरना देता है तो कभी केंद्रीय गृहमंत्री के दर पर जाकर बैठ जाता है क्योंकि उसका राशन कार्ड नहीं बना।
हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म द्वारा कराए गए एक सर्वे से पता लगा है कि गत दिनों राज्यसभा के लिए चुने गए लगभग सभी 57 सदस्य करोड़पति हैं। इनमें से 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस चल रहे हैं।
करोड़पति सदस्यों की इस लिस्ट में ऐसे भी हैं जिनकी संपत्ति सैकड़ों करोड़ रुपए है। मसलन कांग्रेसी नेता प्रफुल्ल पटेल 252 करोड़ रुपए की संपत्ति के स्वामी हैं जबकि कांग्रेस के ही कपिल सिब्बल 212 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक हैं। बहुजन समाज पार्टी के नेता सतीश मिश्रा के पास 193 करोड़ रुपए की संपत्ति है। सतीश मिश्रा के साथ एक और खासियत यह जुड़ी हुई है कि उनकी संपत्ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मिश्रा की संपत्ति पहले 24.18 करोड़ थी।
भाजपा के अनिल दवे की संपत्ति में रिकॉर्ड तोड़ इजाफा हुआ है। इनकी संपत्ति 2,111 प्रतिशत बढ़ी है, बावजूद इसके अनिल दवे सबसे गरीब सदस्य हैं। इनकी कुल संपत्ति 60.97 लाख है जो पूर्व में 2 लाख 75 हजार रुपए हुआ करती थी। शिवसेना के संजय राउत की संपत्ति में 841 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। राउत की संपत्ति 1.51 करोड़ से बढ़कर 14.22 करोड़ हो गई है।
इस सर्वेक्षण में सामने आया कि राज्यसभा के 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं। इनमें से सात लोगों के खिलाफ गंभीर अपराध जैसे मर्डर, धोखाधड़ी, प्रॉपर्टी से जुड़ी बेईमानी और चोरी जैसे केस दर्ज हैं। भाजपा के 3, सपा के 2, कांग्रेस, बीजेडी, बसपा, आरजेडी, डीएमके, शिवसेना और वाईएसआरसीपी के एक सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं।
यूपी के 11 राज्यसभा सदस्यों में 4 के खिलाफ केस दर्ज हैं, बिहार के 5 सदस्यों में से 2, महाराष्ट्र के 6 सदस्यों में से 1, तमिलनाडु के 6 सदस्यों में से एक, कनार्टक के 4 सदस्यों में से 1, आंध्रप्रदेश के 4 सदस्यों में से 1, मध्यप्रदेश के 3 सदस्यों में से 1, उड़ीसा के 3 सदस्यों में से 1 और हरियाणा के 2 सदस्यों में से 1 के खिलाफ केस दर्ज हैं।
बताया जाता है कि पेशे से वकील और कांग्रेस के नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की देश में कई पशु वधशालाएं हैं। वह मांस का बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं। मांस का यह कारोबार खुद उनके नाम है अथवा पत्नी या बच्चों के नाम, इसका तो पता नहीं अलबत्ता 212 करोड़ रुपए की जो संपत्ति सामने आई है वह उनके अपने नाम है।
इसी प्रकार दूसरे कांग्रेसी नेता प्रफुल्ल पटेल का भी निश्चित ही कोई न कोई करोबार होगा और उन्होंने उस पार्ट टाइम कारोबार में राजनीति के फुल टाइम व्यापार से कमाया गया पैसा निवेश किया होगा। हालांकि यह मात्र अंदाज है क्योंकि सर्वेक्षण में इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है कि इन माननीयों की संपत्ति का स्त्रोत आखिर क्या है। बसपा के जिन माननीय राज्यसभा सदस्य सतीश मिश्रा के संपत्ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है और वह 24.18 करोड़ की संप्पति से छलांग लगाकर सीधे 193 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक बन गए हैं, उनके बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार वह भी पेशेवर वकील हैं और बसपा की नाक के बाल बनने से पहले कानपुर में वकालत ही किया करते थे।
एक ओर देश में कालेधन को लेकर अकसर चर्चाएं होती रहती हैं और 2014 के उस चुनावी वायदे को मुद्दा बनाया जाता है जिसके तहत भाजपा नेताओं ने कालेधन को देश में लाकर प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए से ऊपर की रकम आने की बात कही थी लेकिन दूसरी ओर माननीयों की संपत्ति पर किसी स्तर से कोई टीका-टिप्पणी तक नहीं होती।
कालेधन पर शोर मचाने वालों में आज के विपक्षी नेताओं से लेकर सत्ताधारी भाजपा के वो नेता भी शामिल हैं जो कभी विपक्षी हुआ करते थे किंतु माननीयों की संपत्ति पर सवाल पूछने वाला कोई नहीं।
अगर यह मान भी लिया जाए कि माननीयों ने यह संपत्ति अपने फुल टाइम कारोबार राजनीति से पार्ट टाइम किसी उद्योग या व्यापार में निवेश करके कमाई है, तो भी बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर यह कौन सा ऐसा उद्योग-व्यापार करते हैं जो इनके लिए सोने की खान साबित होता है।
दिमाग में सवाल यह भी कौंधता है कि जहां विजय माल्या जैसे लिकर किंग को कारोबार में घाटे के चलते देश छोड़कर भागना पड़ता है, सुब्रत राय सहारा जैसों को पब्लिक का पैसा न लौटा पाने के कारण 2 साल से अधिक का समय तिहाड़ जेल में गुजारना पड़ता है, रिलायंस के मालिक अंबानियों से लेकर जेपी ग्रुप के स्वामियों तक का बाल-बाल कर्ज में डूबा हुआ है, वहां राजनीति के इन कारोबारियों का व्यापार इतनी तेजी से छलांग कैसे लगा रहा है कि किसी की संपत्ति 698 प्रतिशत बढ़ गई तो किसी की 2,111 प्रतिशत।
आश्चर्य की बात यह है कि सामान्य तौर पर जनता के सामने परस्पर कुत्ते-बिल्ली जैसे स्वाभाविक व प्राकृतिक वैर-भाव का प्रदर्शन करने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपनी संपत्ति के मामले में चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करते हैं।
यहां इनका प्रेम उसी तरह दिखाई देता है जिस तरह वेतन-भत्ते बढ़ाने के मामले में संसद अथवा विधानसभाओं के अंदर दिखाई देता रहा है। तब इनके बीच न कोई मतभेद होता है और न मनभेद। उस समय इनका आचार-व्यवहार उस सहोदर जैसा हो जाता है जिनके बीच उम्र व अनुभव का फासला भले ही हो किंतु जिन्होंने जन्म एक ही मां की कोख से लिया हो।
राज्यसभा के लिए नव निर्वाचित इन माननीयों की संपत्ति का ब्यौरा सामने आने पर यह पता जरूर लगता है कि क्यों कोई बड़ा वकील अपनी अच्छी-खासी प्रेक्टिस छोड़कर मौका मिलते ही फुलटाइमर राजनीतिज्ञ बन जाता है क्यों करोड़ों-अरबों का व्यापार करने वाले भी करोड़ों खर्च करके राजनीति का हिस्सा बनने को बेताब रहते हैं।
दरअसल, आज की राजनीति न केवल आर्थिक रुप से संपन्न होने की गारंटी देती है बल्कि तमाम ऐसे कार्यों से भी साफ बच निकलने का आश्वासन देती है जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं।
तभी तो सामान्य तौर पर जहां 323, 504 या 506 की धाराओं का आरोपी भी तत्काल पुलिस की हिरासत का हकदार बन जाता है वहीं रॉबर्ट वाड्रा, ललित मोदी तथा विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधी तमाम जांचों का हिस्सा होने के बावजूद फेसबुक व टि्वटर के माध्यम से कानून के साथ खेलते रहते हैं और उन्हें छूने तक की हिमाकत कोई नहीं कर पाता।
देश का विदेशों में छिपा काला धन जब बाहर आयेगा, तब आयेगा किंतु यदि देश के अंदर छिपे काले धन का ही पता लगा लिया जाए और उसके उन स्त्रोतों की जानकारी सार्वजनिक कर दी जाए जिनसे किसी की संपत्ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हो जाता है तो किसी की संप्पति 2,111 प्रतिशत के अनुपात से बढ़ जाती है, तो निश्चित ही जनसामान्य को कुछ न मिलकर भी बहुत कुछ मिल जायेगा।
यूं भी समय-समय पर यह चर्चा का विषय रहा है कि बाहर छिपे कालेधन से अधिक देश के अंदर ही कालाधान मौजूद है, बस जरूरत है तो उसे बाहर निकालने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ठोस कानूनी कार्यवाही करने की।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने एक चैनल को दिए गए इटरव्यू के दौरान कहा था कि देश के अंदर खुशहाली लाने तथा कानून-व्यवस्था को पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त बनाने तक का मंत्र विकास में छिपा है। विकास होगा तो लोग सुखी व संपन्न होंगे…और लोग सुखी व संपन्न होंगे तो देश खुशहाल होगा।
हो सकता है प्रधानमंत्री का कथन कुछ हद तक सही हो लेकिन यह शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी नहीं देता। यदि ऐसा होता तो पूर्ण विकसित कहलाने वाले देशों में कभी कोई अपराध होता ही नहीं और उनके सामने किसी किस्म की कोई समस्या भी कभी खड़ी नहीं होती।
देश को खुशहाल बनाने की गारंटी केवल ऐसी ही व्यवस्था दे सकती है जिसमें आय के स्त्रोत पूरी तरह पारदर्शी हों। लोगों के बीच की आय में जमीन-आसमान का अंतर न हो और यदि हो तो उसके कारण ज्ञात हों, सार्वजनिक हों। जनसामान्य को भी पता हो कि यदि किसी की आय में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है तो कैसे हुई है। वह प्रति वर्ष सरकार को कितना राजस्व देता रहा है। उसकी आमदनी का जरिया गैरकानूनी तो नहीं है।
यदि ऐसा होता है तो निश्चित ही देश विकास के मार्ग पर दौड़ेगा और कानून-व्यवस्था की स्थिति में भी उल्लेखनीय सुधार होगा।
हाल ही में राज्यसभा के लिए चुने गए ये 57 माननीय तो फर्श से अर्स तक की द्रुतगति से यात्रा करने वालों की नजीर भर हैं, कड़वा सच तो यह है कि राजनीति आज देश के सबसे सुरक्षित व सफल कारोबार में तब्दील हो चुकी है। ऐसा न होता तो कल तक साइकिल या स्कूटर पर घूमने वाला कोई शख्स एक बार की विधायकी के बाद ही अचानक कैसे करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन जाता है। कैसे बिना कोई वेतन भत्ता पाए किसी नगर पालिका का कोई अध्यक्ष और यहां तक कि मामूली सा उसका कोई सदस्य भी अपने कार्यकाल का एक टर्म पूरा करते ही करोड़ों में खेलने लगता है।
यही हाल नगर पंचायतों व जिला पंचायतों तक पहुंचने वाले माननीयों का है। कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक फैले देश में बहुत सी विविधताएं देखने को मिल सकती हैं किंतु राजनीति से प्राप्त ऐसी सुव्यवस्था में कहीं कोई अंतर दिखाई नहीं देता।
मोदी जी को चाहिए कि यदि वास्तव में देश को खुशहाल देखना है और कानून का राज स्थापित करना है तो सबसे पहले ऐसी बड़ी मछलियों के खिलाफ कार्यवाही करने की ठोस व्यवस्था करें जो समाज के सामने अव्यवस्था का प्रत्यक्ष उदाहरण बनी हुई हैं। जिनकी संपत्ति के बारे में जानकर जनसामान्य का मुंह आश्चर्य से खुले का खुला रह जाता है।
लाख रुपया कभी अपनी आंखों से न देख पाने वाला देश का एक बड़ा तबका जब अपने ही माननीयों पर सैकड़ों करोड़ की संपत्ति का समाचार पढ़ता है और किसी की तरक्की का प्रतिशत 698 तो किसी का 2111 सुनता है तो उसके दिल में कहीं न कहीं टीस जरूर पैदा होती है। यही वो टीस है जिससे राजनेताओं के प्रति घृणा का भाव पैदा होता है और कानून सबके लिए बराबर है के रटे-रटाए जुमले पर से भरोसा उठना शुरू होता है।
विकास को ही सुख का एकमात्र मंत्र मानने वाले मोदी जी, विनाश का कारण बने इस आर्थिक भेद पर भी ध्यान दें तो संभवत: तरक्की का मार्ग तेजी से प्रशस्त होगा अन्यथा उनके सारे प्रयास पानी को तलवार से काटने की कोशिश बनकर रह जायेंगे क्योंकि समस्या पैसा नहीं, पैसे से पैदा होने वाला वह भेदभाव है जो अनेक विसंगतियों का वाहक है तथा जिसके कारण समाज का हर वर्ग येन-केन प्रकारेण सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना चाहता है।
-Surendra chaturvedi
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया बताते चलें कि ये पोस्ट कैसी लगी ?