रविवार, 17 नवंबर 2013

भारत रत्‍न 'सचिन'..... या भारत रत्‍न 'कांग्रेस'

क्रिकेट के 'भगवान' की कसम, मुझे जितनी खुशी सचिन तेंदुलकर को 'भारत रत्‍न' देने से नहीं हुई उससे कहीं अधिक खुशी इस बात से हुई कि किसी खिलाड़ी को 'पहला' भारत रत्‍न कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली सरकार ने दिया। कुछ और देर कर दी होती तो पता नहीं यह श्रेय मिल पाता या नहीं। लोकसभा चुनाव नजदीक हैं।
अब कोई किसी खिलाड़ी को भारत रत्‍न देता रहे लेकिन कांग्रेस के नाम बने इस रिकॉर्ड को नहीं तोड़ पायेगा।
इससे पहले कांग्रेस ने सचिन तेंदुलकर के रूप में किसी खिलाड़ी को राज्‍यसभा का सदस्‍य बनवाने की पहल की थी। यह भी एक रिकॉर्ड है।
पहल करने और रिकॉर्ड बनाने में कांग्रेस का यूं भी कोई जवाब नहीं। इस मामले में कांग्रेस के सामने सचिन कहीं नहीं टिकते।
देश को पहली बार कांग्रेस ने स्‍वतंत्रता दिलवाई। दूसरी बार कौन दिलवायेगा, नहीं मालूम।
कांग्रेस ने देश को पहला प्रधानमंत्री, पहला राष्‍ट्रपति और यहां तक कि पहली सरकार दी।
कांग्रेस ने पहली बार किसी सरदार को प्रधानमंत्री बनवाया। कांग्रेस ने ही पहली बार किसी सरदार को राष्‍ट्रपति बनवाया और पहली बार किसी सरदार को योजना आयोग का उपाध्‍यक्ष बनाया।
कांग्रेस ने पहली बार देश को महिला प्रधानंत्री देने का गौरव उपलब्‍ध कराया और पहली बार 'आपातकाल' से परिचित कराया।
पहल करने के मामले में कांग्रेस के नाम अनगिनित रिकॉर्ड हैं।
पहली बार उसने किसी ऐसे व्‍यक्‍ति को प्रधानमंत्री के पद पर काबिज किया जो कभी कहीं से अब तक लोकसभा का कोई चुनाव नहीं लड़ा।
पहली बार कांग्रेस के किसी युवराज ने देश के प्रधानमंत्री को सार्वजनिक रूप से 'नॉनसेंस' कहकर गौरवान्‍वित किया और पहली बार ही कांग्रेस ने रिमोट के जरिए केंद्र की सरकार संचालित करने का प्रयोग किया जो सफल रहा।
कांग्रेसी शासनकाल के अभी करीब साढ़े  5 महीने बाकी हैं, इसलिए काफी संभावना है कि वह पहल करने के और कई रिकॉर्ड बना डाले। मसलन वह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा नेता अटलबिहारी वाजपेयी को इसलिए भारत रत्‍न दे सकती है क्‍योंकि भाजपा ने ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस द्वारा उन्‍हें भारत रत्‍न न दिए जाने की सूरत में वह केंद्र में अपनी अगली सरकार बनने पर उन्‍हें भारत रत्‍न दे डालेगी।
यहां सवाल किसी प्रधानमंत्री को भारत रत्‍न देने का नहीं, पहल करने के उस रिकॉर्ड का है जिसे कांग्रेस किसी दूसरे के नाम नहीं होने देना चाहती।
वह नहीं चाहती कि विपक्षी पार्टी के किसी नेता (चाहे वह प्रधानमंत्री ही क्‍यों न रहा हो) को भारत रत्‍न देने की पहल करने का श्रेय कोई दूसरा लूट ले जाए।
कांग्रेस यह भी नहीं चाहती कि पहल करने के उसके रिकॉर्ड को कोई दूसरा बीट करे लिहाजा उसने अपराधियों को राजनीति में संरक्षण देने वाला कानून लाने की पहल की। अब चाहे कोई ऐसा कानून ही क्‍यों न बना ले पर कानून बनाने की पहल करने का रिकॉर्ड कांग्रेस के नाम ही रहेगा।
कांग्रेस के नाम पहल करने की फेहरिस्‍त में एक और रिकॉर्ड इस आशय का है कि एक ईमानदार कहलाने वाले प्रधानमंत्री सर्वाधिक भ्रष्‍ट सरकार को सफलतापूर्वक दस सालों तक चलाते रहे तथा कोयले की खान में घुसकर भी बेदाग निकल पाये।
अगर कोई यह कहे कि उन्‍होंने यह कारनामा सीबीआई के बल पर किया है तो इसके लिए भी वह तारीफ के हकदार हैं क्‍योंकि सीबीआई को सरकारी तोते का सर्वोच्‍च न्‍यायालय से खिताब दिलवाने की पहल उन्‍होंने ही की है। इससे पहले लोग चाहे जो समझते रहे हों, पर सरकारी ठप्‍पा कोई नहीं लगवा पाया।
बहरहाल, अगर हम कांग्रेस की पहल से बने सभी रिकॉर्ड्स की बात करें तो 25 सचिन तेंदुलकर मिलकर भी उन्‍हें नहीं तोड़ पायेंगे इसलिए मुझे सचिन तेंदुलकर को मिले भारत रत्‍न से कई गुना अधिक प्रसन्‍नता इस बात की हुई कि तमाम रिकॉर्ड्स की उपलब्‍धियों के बीच कांग्रेस ने किसी खिलाड़ी को भारत रत्‍न देने की पहल कर रिकॉर्ड बखूबी अपने नाम कर लिया और इस तरह एक कांग्रेसी राज्‍यसभा सदस्‍य को मिले भारत रत्‍न से भी खुद को विभूषित करने में सफल रही। जय हिंद!  जय भारत!
-यायावर

सचिन का सम्मान या ध्यानचंद का अपमान

इंदौर। 
अगर ध्यानचंद को भारत रत्न देना ही नहीं था तो फिर इसका भरोसा क्यों दिया गया। क्यों पिछले छह महीनों से प्रधानमंत्री कार्यालय इस बात का भरोसा दिला रहा था कि जल्द ही दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न से सम्मानित कर दिया जाएगा। अचानक से सचिन तेंदुलकर का नाम आया और उन्हें सम्मानित करने की घोषणा भी कर दी गई। आखिर लोकतंत्र में व्यवस्थाओं के भी कुछ मायने होने चाहिए या नहीं। जब दद्दा को सम्मान दिए जाने की फाइल पहले से चल रही है तो फिर उनसे पहले किसी और को सम्मान देने के मायने क्या हैं, यह अपमान नहीं तो क्या है?
यह दर्द और गुस्सा है दद्दा ध्यानचंद के बेटे अशोक ध्यानचंद का। पेशेवर हॉकी खिलाड़ी रहे अशोक कहते हैं कि सचिन को सम्मान देना था तो सरकार दे, उससे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उससे पहले से दद्दा का नाम चल रहा था और पीएमओ ने इसके लिए भरोसा भी दिलाया था तो फिर उन्हें क्यों नहीं दिया गया।
उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति उठाई कि जब दद्दा का नाम पहले से था तो उनका हक पहले था न कि सचिन का। अगर दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न नहीं देना था तो फिर सरकार ने इतनी नौटंकी की क्यों। पीएमओ साफ हमें नो बोल देता तो कम से कम हमें तसल्ली हो जाती। हम मान लेते कि दद्दा के खेल और देश के सम्मान को बढ़ाने में कोई कमी बाकी रह गई होगी।
उन्होंने कहा कि हम सरकारी प्रक्रिया के सहारे छह महीनों से बैठे हुए हैं। आज मान लिया कि सम्मान सरकारी और ओहदेदारों से ताल्लुकातों से ही मिलते हैं। हमने ओहदेदारों से ताल्लुकात नहीं बनाए, दद्दा ने भी नहीं बनाए, इसीलिए आज किनारे किए गए हैं।
उन्होंने तंज कसा कि दद्दा कभी फाइव स्टार के प्रतिनिधि नहीं रहे। वह गरीब खिलाड़ियों के प्रतिनिधि के तौर पर जिंदगी भर रहे और जिंदगी के बाद भी गरीब खिलाड़ियों के लिए एक मिशाल हैं। ऎसे में मीडिया का एक तबका फाइव स्टार के प्रतिनिधियों को ही जगह देता है। ऎसे में दद्दा हिंदुस्तान की आवाज बनकर ही पीछे ही रह गए।
-एजेंसी
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...