-एसआईटी ने कर ली है पूरी जन्मकुंडली तैयार -पाई-पाई का हिसाब निकाला और यह भी पता कर लिया कि कैसे पहुंचे ये फर्श से अर्श तक जो समय बीत रहा है, वही बीत रहा है लेकिन इतना तय है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के बीएड फर्जीवाड़े में शामिल मथुरा के कई कॉलेज संचालक भी अब जेल जाने से बच नहीं पायेंगे।इस फर्जीवाड़े के तहत देश के शिक्षा जगत में अब तक की सबसे बड़ी आपराधिक कानूनी कार्यवाही होने जा रही है।
कोर्ट के आदेश पर जून 2014 से इस फर्जीवाड़े की जांच एसआईटी (विशेष जांच दल) द्वारा जब शुरू की गई तो पता लगा कि इसमें आगरा के डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से संबद्ध 83 कॉलेज लिप्त रहे हैं।
इन कॉलेजों ने विश्वविद्यालय के अधिकारी एवं कर्मचारियों के साथ मिलकर 3670 फर्जी रोल नंबर जेनरेट कर दिए और उनके माध्यम से जारी बीएड की फर्जी मार्कशीट पर 2700 लोगों को सरकारी शिक्षक की नौकरी भी मिल गई।
इस दुस्साहसिक फर्जीवाड़े में एसआईटी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के दो पूर्व कुलपतियों, कुलसचिवों, शिक्षकों, कर्मचारियों और कॉलेज संचालकों सहित 4000 लोगों को आरोपी बनाया है।
इन घोटालेबाजों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही में जो विलंब हो रहा है, वह सिर्फ इसलिए क्योंकि एसआईटी पहले अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश करेगी और उसके बाद कार्यवाही आगे बढ़ायेगी।
एसआईटी की जांच में जिन जिलों के कॉलेज संचालकों का नाम सामने आया है उनमें एटा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, बागपत तथा मेरठ सहित मथुरा का नाम प्रमुख है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों के अंदर शिक्षा का व्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय बन चुका है जिसमें सर्वाधिक लाभ दिखाई देता है। खुद को शिक्षाविद् कहने वाले शिक्षा माफिया ने पैसे की खातिर इस व्यवसाय को इतना नीचे गिरा दिया कि आज शिक्षा व्यवसाई घृणा के पात्र बन गए हैं।
बात करें यदि मथुरा सहित आगरा मंडल की तो शिक्षण संस्थाओं का सर्वाधिक प्रसार इसी क्षेत्र में हुआ क्योंकि कभी आगरा यूनीवर्सिटी के नाम से आगरा मंडल ही नहीं संपूर्ण उत्तर प्रदेश के शिक्षा जगत को गौरवान्वित करने वाली यही यूनिवर्सिटी अब पूरी तरह शिक्षा माफिया के जाल में फंस चुकी थी।
आगरा यूनिवर्सिटी से डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में तब्दील होने के बाद से तो जैसे इस यूनिवर्सिटी को ग्रहण ही लग गया और देखते-देखते यह फर्जीवाड़े तथा घोटालों का पर्याय बन गई।
निश्चित रूप से एक गौरवशाली शिक्षण संस्था को इस हाल तक पहुंचाने में शासन व प्रशासन का भी भरपूर हाथ रहा क्योंकि वह उसकी ओर से पूरी तरह आंखें बंद किए रहे।
शासन-प्रशासन की इस अनदेखी का परिणाम यह रहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया और इसका लाभ उठाकर इससे संबद्ध कॉलेज संचालकों ने फर्जीवाड़ा करके करोड़ों रुपए एकत्र कर लिए।
अकेले बीएड के जरिए ही जिन कॉलेज संचालकों ने करोड़ों की संपत्ति अर्जित की है, उनमें मथुरा के कॉलेज संचालकों का नाम टॉप पर है।
ये वो कॉलेज संचालक हैं जिनकी कल तक हैसियत स्कूटर पर चलने लायक नहीं थी किंतु डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के अधिकारी व कर्मचारियों की कृपा से आज यह कई-कई लग्ज़री गाड़ियां तो निजी तौर पर इस्तेमाल करते हैं जबकि कॉलेज के नाम पर दर्जनों गाड़ियां खड़ी कर रखी हैं।
एसआईटी जांच से जुड़े सूत्रों के अनुसार जिन 83 कॉलेजों की इस फर्जीवाड़े में संलिप्तता पाई गई है, उनमें मथुरा के कई कॉलेज शामिल हैं।
सीधे-सीधे कहें तो इस घोटाले में मथुरा का करीब-करीब हर वो कॉलेज संचालक संलिप्त पाया गया है जो डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से बीएड करा रहा था। एसआईटी के अधिकारियों की मानें तो मथुरा का शायद ही कोई कॉलेज संचालक इस घोटाले में संलिप्त न रहा हो।
इन कॉलेजों की संख्या 20 से ऊपर बताई जा रही है जो चौमुहां, सैदपुर (बल्देव), छाता, कोसी खुर्द (भरतपुर रोड मथुरा), सदर बाजार, फरह, पाली डूंगरा, राया, गोवर्धन चौराहा मथुरा, सेमरी (छाता), शिवपुरी (बाजना), चंदनवन (हाईवे थाना क्षेत्र), महुअन, महावन, मुंडेसी और वृंदावन आदि क्षेत्रों में स्थित हैं।
चूंकि इस अरबों रुपए के घोटाले तथा फर्जीवाड़े की जांच उच्च न्यायालय के आदेश पर एसआईटी द्वारा की गई थी इसलिए उम्मीद की जा रही है कि शायद ही कोई घोटालेबाज अब इसकी गिरफ्त में आने से बच पायेगा।
ऐसे में यदि अन्य जनपदों सहित बड़ी तादाद में मथुरा के भी तथाकथित सभ्रांत कहलाने वाले कॉलेज संचालक हथकड़ियां पहने नजर आएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि एसआईटी ने उनकी पाई-पाई का हिसाब निकाल लिया है और यह भी मालूम कर लिया है कि चंद वर्षों के अंदर ये फर्श से अर्श तक आखिर पहुंचे कैसे?
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
कोर्ट के आदेश पर जून 2014 से इस फर्जीवाड़े की जांच एसआईटी (विशेष जांच दल) द्वारा जब शुरू की गई तो पता लगा कि इसमें आगरा के डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से संबद्ध 83 कॉलेज लिप्त रहे हैं।
इन कॉलेजों ने विश्वविद्यालय के अधिकारी एवं कर्मचारियों के साथ मिलकर 3670 फर्जी रोल नंबर जेनरेट कर दिए और उनके माध्यम से जारी बीएड की फर्जी मार्कशीट पर 2700 लोगों को सरकारी शिक्षक की नौकरी भी मिल गई।
इस दुस्साहसिक फर्जीवाड़े में एसआईटी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के दो पूर्व कुलपतियों, कुलसचिवों, शिक्षकों, कर्मचारियों और कॉलेज संचालकों सहित 4000 लोगों को आरोपी बनाया है।
इन घोटालेबाजों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही में जो विलंब हो रहा है, वह सिर्फ इसलिए क्योंकि एसआईटी पहले अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश करेगी और उसके बाद कार्यवाही आगे बढ़ायेगी।
एसआईटी की जांच में जिन जिलों के कॉलेज संचालकों का नाम सामने आया है उनमें एटा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, बागपत तथा मेरठ सहित मथुरा का नाम प्रमुख है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों के अंदर शिक्षा का व्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय बन चुका है जिसमें सर्वाधिक लाभ दिखाई देता है। खुद को शिक्षाविद् कहने वाले शिक्षा माफिया ने पैसे की खातिर इस व्यवसाय को इतना नीचे गिरा दिया कि आज शिक्षा व्यवसाई घृणा के पात्र बन गए हैं।
बात करें यदि मथुरा सहित आगरा मंडल की तो शिक्षण संस्थाओं का सर्वाधिक प्रसार इसी क्षेत्र में हुआ क्योंकि कभी आगरा यूनीवर्सिटी के नाम से आगरा मंडल ही नहीं संपूर्ण उत्तर प्रदेश के शिक्षा जगत को गौरवान्वित करने वाली यही यूनिवर्सिटी अब पूरी तरह शिक्षा माफिया के जाल में फंस चुकी थी।
आगरा यूनिवर्सिटी से डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में तब्दील होने के बाद से तो जैसे इस यूनिवर्सिटी को ग्रहण ही लग गया और देखते-देखते यह फर्जीवाड़े तथा घोटालों का पर्याय बन गई।
निश्चित रूप से एक गौरवशाली शिक्षण संस्था को इस हाल तक पहुंचाने में शासन व प्रशासन का भी भरपूर हाथ रहा क्योंकि वह उसकी ओर से पूरी तरह आंखें बंद किए रहे।
शासन-प्रशासन की इस अनदेखी का परिणाम यह रहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया और इसका लाभ उठाकर इससे संबद्ध कॉलेज संचालकों ने फर्जीवाड़ा करके करोड़ों रुपए एकत्र कर लिए।
अकेले बीएड के जरिए ही जिन कॉलेज संचालकों ने करोड़ों की संपत्ति अर्जित की है, उनमें मथुरा के कॉलेज संचालकों का नाम टॉप पर है।
ये वो कॉलेज संचालक हैं जिनकी कल तक हैसियत स्कूटर पर चलने लायक नहीं थी किंतु डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के अधिकारी व कर्मचारियों की कृपा से आज यह कई-कई लग्ज़री गाड़ियां तो निजी तौर पर इस्तेमाल करते हैं जबकि कॉलेज के नाम पर दर्जनों गाड़ियां खड़ी कर रखी हैं।
एसआईटी जांच से जुड़े सूत्रों के अनुसार जिन 83 कॉलेजों की इस फर्जीवाड़े में संलिप्तता पाई गई है, उनमें मथुरा के कई कॉलेज शामिल हैं।
सीधे-सीधे कहें तो इस घोटाले में मथुरा का करीब-करीब हर वो कॉलेज संचालक संलिप्त पाया गया है जो डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से बीएड करा रहा था। एसआईटी के अधिकारियों की मानें तो मथुरा का शायद ही कोई कॉलेज संचालक इस घोटाले में संलिप्त न रहा हो।
इन कॉलेजों की संख्या 20 से ऊपर बताई जा रही है जो चौमुहां, सैदपुर (बल्देव), छाता, कोसी खुर्द (भरतपुर रोड मथुरा), सदर बाजार, फरह, पाली डूंगरा, राया, गोवर्धन चौराहा मथुरा, सेमरी (छाता), शिवपुरी (बाजना), चंदनवन (हाईवे थाना क्षेत्र), महुअन, महावन, मुंडेसी और वृंदावन आदि क्षेत्रों में स्थित हैं।
चूंकि इस अरबों रुपए के घोटाले तथा फर्जीवाड़े की जांच उच्च न्यायालय के आदेश पर एसआईटी द्वारा की गई थी इसलिए उम्मीद की जा रही है कि शायद ही कोई घोटालेबाज अब इसकी गिरफ्त में आने से बच पायेगा।
ऐसे में यदि अन्य जनपदों सहित बड़ी तादाद में मथुरा के भी तथाकथित सभ्रांत कहलाने वाले कॉलेज संचालक हथकड़ियां पहने नजर आएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि एसआईटी ने उनकी पाई-पाई का हिसाब निकाल लिया है और यह भी मालूम कर लिया है कि चंद वर्षों के अंदर ये फर्श से अर्श तक आखिर पहुंचे कैसे?
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी