मंगलवार, 20 जनवरी 2015

टोंटा हत्‍याकांड: पुलिस द्वारा बताए गये ''मास्‍टर माइंड'' में तो पर्याप्‍त ''माइंड'' तक नहीं

मथुरा। मथुरा जिला कारागार में गोलियां चलने से एक की मौत तथा दो के घायल हो जाने और फिर एक घायल राजेश टोंटा को इलाज के लिए पुलिस अभिरक्षा में आगरा ले जाते वक्‍त चंद घंटों बाद ही नेशनल हाईवे पर भून डालने जैसी संगीन वारदातों का महज दो दिन के अंदर खुलासा करके उत्‍तर प्रदेश पुलिस ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सूबे में चाहे किसी की सत्‍ता हो, चाहे कितने ही निजाम बदल जाएं किंतु वह न कभी बदली है और न बदलेगी।
कानून का राज कायम करने की बात कहकर सत्‍ता में आई समाजवादी पार्टी बेशक पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को ताश के पत्‍तों की तरह फेंटकर कानून-व्‍यवस्‍था दुरुस्‍त करने का भ्रम पाल लेती हो किंतु सच्‍चाई यह है कि इससे सिर्फ अधिकारियों की सूरतें ही बदलती हैं, सीरत न बदली है और न बदलने की कोई उम्‍मीद नजर आती है।
आईजी जोन आगरा सुनील गुप्‍ता की मौजूदगी में कल देर शाम मथुरा की एसएसपी मंजिल सैनी ने पूरे प्रदेश को हिला देने वाली इन वारदातों का खुलासा करके पुलिस को भले ही दबाव मुक्‍त कर लिया हो लेकिन गैंगवार की नई पटकथा लिखे जाने का रास्‍ता साफ कर दिया।
दरअसल, अपने ऊपर उठ रहे तमाम सवालों के जवाब देने और जेल के अंदर व बाहर एक ही दिन में हुईं इतनी बड़ी वारदातों का पूरी तरह खुलासा करने की बजाय पुलिस ने जिस ''सॉफ्ट टारगेट गोपाल यादव'' को ''मास्‍टर माइंड'' बताकर सारा मामला रफा-दफा करने की कोशिश की है, उसमें तो इतनी बड़ी प्‍लानिंग करने लायक ''माइंड'' ही नहीं है।
चूंकि गोपाल यादव हाथरस में राजेश टोंटा के घर पर की गई ब्रजेश मावी की हत्‍या का चश्‍मदीद है तथा ब्रजेश मावी का दोस्‍त रहा है और मावी का शव बरामद करने की कवायद में मथुरा पुलिस उसे महीनों अपने साथ लेकर घूमती रही है इसलिए वह पुलिस के लिए न केवल आसानी से उपलब्‍ध था बल्‍कि सॉफ्ट टारगेट भी था लिहाजा उसे मास्‍टर माइंड बनाकर पेश कर दिया गया जबकि राजेश टोंटा जैसे कुख्‍यात व शातिर अपराधी को इस तरह ठिकाने लगाने की प्‍लानिंग वाकई बहुत तेज दिमाग व दुस्‍साहसी अपराधी ही कर सकता है।
पुलिस की कहानी पर यदि कुछ देर के लिए भरोसा कर भी लिया जाए तो उसके अनुसार गोपाल यादव ने बंदी रक्षक कैलाश गुप्‍ता के हाथों दीपक वर्मा के पास जेल में एक असलहा तथा एक लाख दस हजार रुपए भिजवाये जिसमें से उसने अपने लिए तय 20 हजार रुपए काटकर 90 हजार रुपए व असलहा दीपक को दे दिए।
17 तारीख को दोपहर बाद जेल में चली गोलियों से एक पक्ष के राजेश टोंटा व उसका साथी राजकुमार शर्मा घायल हो गये और दूसरे पक्ष का अक्षय सोलंकी मारा गया।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि यदि मास्‍टर माइंड गोपाल यादव ने बंदी रक्षक कैलाश गुप्‍ता के हाथों जेल में दीपक वर्मा के पास मात्र एक हथियार ही पहुंचाया था तो फिर क्‍या सारे बदमाश बारी-बारी से एक ही हथियार का इस्‍तेमाल करते रहे। वो भी तब जब कि दीपक वर्मा, दीपक राणा व अक्षय सोलंकी को ब्रजेश मावी पक्ष से बताया जा रहा है और राजेश टोंटा के साथ राजकुमार शर्मा आदि को बताया गया है।
पुलिस के अनुसार राजेश टोंटा ने ही अक्षय सोलंकी पर गोली चलाई थी, तो पुलिस ने अब तक यह क्‍यों नहीं बताया कि राजेश टोंटा के पास असलहा कहां से आया और उसके पास असलहा पहुंचाने वाले कौन लोग थे।
जेल के अंदर से भी जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार गोलियां चलाने में दोनों ओर से तीन असलाहों का इस्‍तेमाल हुआ लेकिन पुलिस ने दो असलहा ही बरामद दिखाये हैं।
पुलिस ने तो दो असलहा बरामद करने के बावजूद अपनी कहानी में यह बताया है कि दीपक वर्मा का असलहा गिर जाने के बाद टोंटा ने उसी असलहा से अक्षय को गोली मारी। पुलिस की इस कहानी पर भरोसा किया जाए तो टोंटा को क्‍लीनचिट मिल जाती है जबकि पूर्व में पुलिस ने कहा था कि टोंटा ने ही फायरिंग शुरू की थी और उसी ने अक्षय को मारकर खुद को घायल किया।
अब जेल से बाहर की पुलिसिया कहानी पर ध्‍यान दें तो उसके अनुसार जेल के अंदर हुई फायरिंग में टोंटा के बच निकलने की जानकारी होने के बाद गोपाल व अजय चौधरी ने मावी के वफादार साथियों को सूचित करके उसे फिर ठिकाने लगाने की तैयारी की और मौका मिलते ही नेशनल हाईवे पर रात करीब 11 बजे तब छलनी कर दिया जब उसे पुलिस अभिरक्षा में उपचार के लिए आगरा ले जाया जा रहा था। 
पुलिस ने मौके से देशी तमंचों के खोखे बरामद दिखाये हैं और मास्‍टर माइंड गोपाल के कब्‍जे से भी एक तमंचा बरामद किया है।
यहां पुलिस से कोई यह पूछने वाला नहीं है कि राजेश टोंटा को जेल के अंदर ठिकाने लगाने के लिए नाइन एमएम के प्रतिबंधित बोर वाला असलहा भेजने वाला गोपाल और उसके साथी नेशनल हाईवे पर उसे मारने के लिए क्‍या देशी तमंचों का इस्‍तेमाल करने की मूर्खता करेंगे?
गौरतलब है कि जेल के अंदर पुलिस ने जो दो असलहा बरामद किये हैं, वह दोनों नाइन एमएम के हैं।
मजे की बात यह भी है कि पुलिस ने वारदात का खुलासा तो कर दिया लेकिन अब तक इस बात का खुलासा नहीं कर पाई कि मौके पर मिला AK-47 का खोखा किसकी गोली का था। पहले पुलिस कह रही थी कि बदमाशों ने  AK-47 का भी इस्‍तेमाल किया लेकिन जब मास्‍टर माइंड गोपाल ने कहा कि उनमें से किसी के पास ऐसा कोई हथियार नहीं था तो पुलिस कहने लगी कि अभिरक्षा में चल रहे एसओ के हमराह पर AK-47 थी और उसी ने फायर किया था। इस बारे में गोपाल की मानें तो पुलिस की ओर से उनके ऊपर कोई गोली चलाई ही नहीं गई।
यहां नया सवाल एक और खड़ा हो जाता है कि क्‍या किसी एसओ का हमराह सिपाही AK-47 जैसा हथियार रखने के लिए अधिकृत होता है और क्‍या इस सिपाही को यह हथियार दिया गया था? 
सच तो यह है कि ब्रजेश मावी की राजेश टोंटा के हाथरस स्‍थित घर पर की गई हत्‍या के बाद उसका शव बरामद करने के लिए मथुरा पुलिस गोपाल को महीनों अपने साथ लेकर घूमती रही थी और इसलिए गोपाल यादव को पूरा पुलिस महकमा पहचानता था। वह ब्रजेश मावी का बचपन का दोस्‍त है, इस बात से भी पुलिस परिचित हो चुकी थी। पुलिस उसे कभी भी बुला लेती थी और फिर छोड़ भी देती थी इसलिए गोपाल यादव उसके लिए सहज उपलब्‍ध था। वह उसके लिए इस मामले में भी सॉफ्ट टारगेट साबित हो सकता है, यह समझते पुलिस को देर नहीं लगी। हालांकि उससे पहले पुलिस ने ब्रजेश मावी के अधिवक्‍ता रहे दो लोगों को कोतवाली बुलाकर कहानी का ताना बाना बुनने की कोशिश की किंतु उसमें बार एसोसिएशन मथुरा द्वारा हंगामा काटे जाने के बाद पुलिस को दोनों अधिवक्‍ता छोड़ने पड़े और उसके बाद पुलिस ने गोपाल यादव को लेकर काम करना शुरू कर दिया।
इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तरह पुलिस ने फिलहाल अपने ऊपर पड़ रहे भारी दबाव से खुद को मुक्‍त कर राहत की सांस ली होगी लेकिन इससे उसने फिर किसी बड़ी वारदात का रास्‍ता भी साफ कर दिया क्‍योंकि इससे असली मास्‍टर माइंड को बिना किसी प्रयास के बड़ा मौका मिलना स्‍वाभाविक है।
ब्रजेश मावी के बाद राजेश टोंटा मारा गया, अक्षय सोलंकी भी काम आ गया परंतु अभी राजकुमार शर्मा, दीपक वर्मा, दीपक राणा तथा लारेंस जैसे दोनों पक्ष के तमाम कुख्‍यात अपराधी बाकी हैं और वह वर्चस्‍व की इस लड़ाई में अपनी-अपनी भूमिका साबित करने से पीछे नहीं हटने वाले।
तय है कि जिस गैंगवार का आगाज़ हाथरस में राजेश टोंटा के घर से शुरू होकर मथुरा जिला कारागार के अंदर और फिर नेशनल हाईवे पर राजेश टोंटा की हत्‍या से 17 जनवरी 2015 को हुआ है, उसका अंजाम शेष है। वह कब और किस रूप में सामने आयेगा, यह बताना चाहे मुश्‍किल हो पर इतना आसानी से कहा जा सकता है कि होगा बहुत खौफनाक। शायद 17 तारीख से भी अधिक खौफनाक।
तो इंतजार कीजिए तथा देखिए कि पुलिस और क्‍या-क्‍या गुल खिलाती है।
एक करोड़ की रकम लुटने पर दो लाख बरामद दिखाकर अपनी पीठ खुद थपथपा लेने तथा ईनाम इकराम भी हासिल कर लेने का उसका शगल कोई नया नहीं है और न नई है उसकी कांटे से कांटा निकालने की थ्‍योरी।
कानून-व्‍यवस्‍था जाए भाड़ में, वह अपना शगल इसी प्रकार पूरा करती रहेगी और इसी थ्‍योरी पर काम करके वाहवाही भी लूटेगी।
उसके लिए गोपाल यादव जैसे सॉफ्ट टारगेट्स की न कभी कहीं कोई कमी रही है और न रहेगी क्‍योंकि माइंडलेस को मास्‍टर माइंड साबित करना उसे बखूबी आता है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष             
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