बुधवार, 23 मार्च 2016

Agra के अपने होटल में ही छिपा है जयकृष्‍ण राणा!

-राणा का जहाज डूबता देख उसके गुर्गे ही करने लगे हैं ब्‍लैकमेल
-राणा की बेनामी संपत्‍तियों पर टिकी हैं राणा के गुर्गों की निगाहें
-पुलिस को है मामला ठंडा पड़ने का इंतजार
मथुरा। अपने एक कर्मचारी को आत्‍महत्‍या के लिए बाध्‍य करने का आरोपी और कल्‍पतरू ग्रुप ऑफ कंपनीज का चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा फिलहाल Agra स्‍थित अपने ही एक होटल में छिपा हुआ है। इस आशय की जानकारी कल्‍पतरू ग्रुप के ही भरोसेमंद सूत्रों से प्राप्‍त हुई है।
सूत्रों के मुताबिक कल्‍पतरू ग्रुप ने कुछ समय पहले आगरा के संजय प्‍लेस में किसी जूता व्‍यवसाई से ”नोवा” नामक यह होटल खरीदा था।
बताया जाता है कि इस होटल को कल्‍पतरू ग्रुप के चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा ने शुरू से ही व्‍यावसायिक तौर पर इस्‍तमेाल न करके अपनी अय्याशी के लिए ही इस्‍तेमाल किया है।
चूंकि जयकृष्‍ण राणा को काफी पहले से ही अपने जहाज के डूबने का अंदेशा हो चुका था इसलिए वह अपने गुर्गों के साथ इसी होटल में अधिकांशत: रहने लगा और यहीं अपने खास सिपहसालारों से मुलाकात करता था।
बताया जाता है कि इस होटल में राणा से मुलाकात करने के लिए पहले आगरा के ही निवासी किसी ”शर्मा” से मिलना होता है जो है तो राणा का ही कर्मचारी, किंतु इन दिनों वहीं राणा का संरक्षक बना हुआ है।
यह भी पता लगा है कि राणा का जहाज डूबता देख उसके तमाम गुर्गे उसका साथ छोड़ चुके हैं और बहुतों ने राणा को ब्‍लैकमेल करना शुरू कर दिया है। इनमें से प्रमुख नाम जैन बंधुओं का है।
बताया जाता है कि कुछ समय पहले तक छोटे-छोटे काम करके बमुश्‍किल जीवन यापन करने वाले जैन बंधुओं का राणा के संपर्क में आते ही पूरा जीवन बदल गया। राणा की जीहुजूरी करने वाले इन भाइयों ने कल्‍पतरू ग्रुप को जमकर चूना लगाया और आज वह भी करोड़ों की संपत्‍ति के मालिक हैं।
यह भी पता लगा है कि अब वो राणा को ब्‍लैकमेल कर रहे हैं क्‍योंकि राणा का कच्‍चा चिठ्ठा इनके हाथ लग चुका है।
राणा को ब्‍लैकमेल करने वालों में इसी प्रकार एक कोई CA, फरह इलाके का ही कोई एक व्‍यक्‍ति, बिहार का निवासी एक कर्मचारी जो अपने नाम के आगे ”सिंह” लगाता है तथा सेना से अवकाश प्राप्‍त कोई एक व्‍यक्‍ति है।
कल तक कल्‍पतरू ग्रुप के कॉकस में शामिल ये लोग जयकृष्‍ण राणा के खास सिपहसालार हुआ करते थे लेकिन अब यही जयकृष्‍ण राणा को ब्‍लैकमेल कर उससे और संपत्‍ति हड़पना चाहते हैं।
यह भी पता लगा है कि जयकृष्‍ण राणा की आगरा, मथुरा तथा वृंदावन आदि में अनेक बेनामी संपत्‍तियां हैं। अब इन संपत्‍तियों पर भी इसके गुर्गों की नजर टिक गई है। वह उन्‍हें हड़पना चाहते हैं। ऐसी ही एक संपत्‍ति आगरा के सुल्‍तान गंज की पुलिया वाले इलाके में बताई जाती है। करोड़ों रुपए कीमत वाली यह संपत्‍ति नेशनल हाईवे नंबर दो से सटी है और इसके एक हिस्‍से में कल्‍पतरू मॉल बना हुआ है जो अब बंद हो चुका है।
ग्रुप के सूत्र बताते हैं कि कर्मचारियों का वेतन और निवेशकों का पैसा हड़प जाने वाला जयकृष्‍ण राणा अपने उन गुर्गों तथा चापलूसों पर पानी की तरह पैसा बहाता था जो उसकी चरणवंदना करने में माहिर थे।
आश्‍चर्य की बात यह है कि जयकृष्‍ण राणा के खिलाफ बमुश्‍किल बेनामी एफआईआर दर्ज करने वाली पुलिस अब तक उसे तलाशने में सफल नहीं हो पाई है जबकि उसके नजदीकी सूत्र आगरा के ”होटल नोवा” या वहीं कहीं आसपास उसकी मौजूदगी की पुष्‍टि कर रहे हैं।
इन लोगों की मानें तो राणा वहां से न केवल पुलिस की हर गतिविधि पर नजर बनाए हुए है बल्‍कि अपने गुर्गों पर भी नजर रखे हुए है जिससे हालात के मद्देनजर अगला कदम उठा सके।
यह बात अलग है कि मथुरा पुलिस राणा का न तो पिछले 4 दिनों में कोई सुराग लगा पाई है और न उसकी जांच किसी नतीजे पर पहुंची है।
संभवत: राणा की तरह मथुरा पुलिस भी मामले के ठंडा पड़ जाने अथवा मृतक के परिजनों के हताश होकर बैठ जाने का इंतजार कर रही है।
यह भी हो सकता है कि कोई काबिल पुलिस अफसर मृतक के परिजनों से राणा की कोई डील कराने में लगा हो ताकि सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
-लीजेंड न्‍यूज़

रविवार, 20 मार्च 2016

16 करोड़ रुपए हड़प लिए जाने पर Kalpataru ग्रुप के फील्‍ड अफसर ने कंपनी कैंपस में फांसी लगाई

मथुरा। आखिर वही हुआ जिसकी कि आशंका थी, Kalpataru ग्रुप के चुरमुरा ऑफिस कैंपस में आज एक फील्‍ड अफसर ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने फिलहाल मृतक के शव को पोस्‍टमॉर्टम के लिए भेज दिया है।
उल्‍लेखनीय है कि कल्‍पतरू ग्रुप के चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा ने चिटफंड के जरिए लोगों को रुपए दोगुने करने का लालच देकर देशभर से सैंकड़ों करोड़ रुपए जुटाए थे किंतु अब न जयकृष्‍ण राणा का कोई पता है और न निवेशकों के पैसे का।
पॉलिसी मैच्‍योर हो जाने के बावजूद निवेशकों का पैसा न लौटाए जाने से परेशान हरियाणा के रेवाड़ी का निवासी 50 वर्षीय फील्‍ड अफसर अभय सिंह पिछले कई दिनों से कल्‍पतरू ग्रुप के चुरमुरा (फरह) स्‍थित ऑफिस पर डेरा डाले पड़ा था।
कल्‍पतरू ग्रुप के ही सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार अभय सिंह के माध्‍यम से कंपनी में हरियाणा के सैंकड़ों लोगों ने करीब 16 करोड़ रुपए का निवेश विभिन्‍न पांजी स्‍कीम के तहत निर्धारित समय के लिए किया था।
बताया जाता है कि अवधि पूरी हो जाने पर जब निवेशकों ने अभय सिंह से अपना पैसा वापस मांगना शुरू किया तो अभय सिंह ने कंपनी से निवेशकों का पैसा लौटाने को कहा।
सूत्रों के मुताबिक काफी समय तक तो कल्‍पतरू ग्रुप का सर्वेसर्वा जयकृष्‍ण राणा और उसके गुर्गे मिलकर अभय सिंह को आज-कल में पैसा वापस दिलाने का बहाना बनाकर टालमटोल करते रहे किंतु फिर उन्‍होंने अभय सिंह से मिलना और यहां तक कि फोन पर बात करना भी बंद कर दिया।
हारकर और परेशान होकर अभय सिंह आखिर में मथुरा जनपद के थाना फरह अंतर्गत गांव चुरमुरा ऑफिस पर जम गया किंतु इस बीच जयकृष्‍ण राणा और उसके गुर्गों ने चुरमुरा ऑफिस पर आना ही पूरी तरह बंद कर दिया था।
ज्ञात रहे कि मथुरा-आगरा के बीच नेशनल हाईवे नंबर-2 के किनारे स्‍थित गांव चुरमुरा में ही कल्‍पतरू ग्रुप के चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा ने सैंकड़ों एकड़ भूमि पर अपना साम्राज्‍य फैला रखा है और यहीं से वह अपनी करीब एक दर्जन कंपनियों का संचालन करता है।
दूसरी ओर अभय सिंह ने जिन लोगों से कंपनी में पैसे का निवेश कराया था, वह लोग एक ओर जहां अभय सिंह के रेवाड़ी स्‍थित घर पर चक्‍कर लगाने लगे वहीं दूसरी ओर अभय सिंह के वहां न मिलने पर उसके बीबी-बच्‍चों से भी अभय सिंह के बावत पूछताछ करने लगे।
चारों तरफ से पैसे की वापसी के लिए दबाव पड़ने और कल्‍पतरू ग्रुप के चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा व उसके गुर्गों के भूमिगत हो जाने से परेशान अभय सिंह ने आज सुबह अंतत: अपनी जान दे दी।
इस संबंध में पूछे जाने पर पुलिस क्षेत्राधिकारी कुंवर अनुपम सिंह ने बताया कि कल्‍पतरू ग्रुप के ऑफिस कैंपस में एक व्‍यक्‍ति द्वारा फांसी लगाकर जान दे देने की जानकारी मिलने के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने उसके शव को पोस्‍टमॉर्टम के लिए भेज दिया है किंतु अभी तक पुलिस को मृतक के किसी परिजन द्वारा तहरीर नहीं दी गई है। तहरीर देते ही उसके मुताबिक एफआईआर दर्ज करके कानूनी कार्यवाही अमल में लाई जायेगी।
उल्‍लेखनीय है कि किसी भी व्‍यक्‍ति को आत्‍महत्‍या के लिए बाध्‍य कर देना एक संगीन अपराध है और इसके लिए आईपीसी में धारा 306 के तहत अपराध पंजीकृत किया जाता है।
पुलिस को अब तक तहरीर न दिए जाने की वजह अभय सिंह के परिजनों का समाचार लिखे जाने तक चुरमुरा न पहुंच पाना बताया गया।
गौरतलब है लीजेण्‍ड न्‍यूज़ द्वारा कल्‍पतरू ग्रुप और उसके चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा के काले धंधे की जानकारी अक्‍टूबर 2015 में तभी देना शुरू कर दिया था जब ग्रुप द्वारा अपनी आड़ के लिए शुरू किया गया ”कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस” नामक दैनिक अखबार अचानक बंद हो गया और उसमें कार्यरत सैंकड़ों कर्मचारी रातों-रात सड़क पर आ गए। अखबार के इन कर्मचारियों को उनका कई-कई महीनों से बकाया वेतन तक नहीं दिया गया। काफी शोर-शराबा होने के बाद कुछ कर्मचारियों को पोस्‍ट डेटेड चेक पकड़ा दिए गए किंतु इनमें से भी अधिकांश चेक बाउंस हो गए। परेशान अखबार कर्मियों ने आगरा पुलिस की शरण ली और तब कहीं जाकर केवल उन कर्मचारियों को पैसा दिया गया जो पुलिस तक अपनी शिकायत लेकर पहुंचे थे।
कंपनी के सूत्रों की मानें तो अभय सिंह अकेला ऐसा कर्मचारी नहीं है जो एक लंबे समय से पैसे की वापसी कराने को चुरमुरा ऑफिस चक्‍कर लगा रहा था। अभय सिंह जैसे तमाम अन्‍य कर्मचारी कल्‍पतरू ग्रुप के चुरमुरा स्‍थित ऑफिस पर चक्‍कर लगाते और स्‍थाई तौर पर डेरा जमाए बैठे देखे जा सकते हैं क्‍योंकि उनके लिए अब पैसा वापसी उनके जीवन-मरण का प्रश्‍न बन चुका है लेकिन जयकृष्‍ण राणा कानून से मिल रही ढील का लाभ उठाकर कहीं मौज कर रहा है।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि कल्‍पतरू ग्रुप के चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा ने कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस नामक अखबार से लेकर कल्‍पतरू मॉटेल्‍स लिमिटेड, वृंदावन सीक्‍यूरिटीज लिमिटेड, कल्‍पतरू इंश्‍योरेंस कार्पोरेशन लिमिटेड, कल्‍पतरू डेरी प्रोडक्‍ट प्राइवेट लिमिटेड, कल्‍पतरू मेगामार्ट लिमिटेड, कल्‍पतरू इन्‍फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड, कल्‍पतरू फूड प्रोडक्‍ट प्राइवेट लिमिटेड, कल्‍पतरू लैदर प्रोडक्‍ट प्राइवेट लिमिटेड तथा कल्‍पतरू एग्री इंडस्‍ट्रीज लिमिटेड जैसी लगभग एक दर्जन कंपनियों का जाल लोगों को फंसाने के लिए फैला रखा है। अभय सिंह जैसे एजेंट्स के माध्‍यम से जयकृष्‍ण राणा अपनी इन कंपनियों के लिए निवेश की आड़ लोगों से पैसा हड़पता रहा है।
जयकृष्‍ण राणा और उसकी कल्‍पतरू ग्रुप ऑफ कंपनीज पर सीक्‍यूरिटीज एंड एक्‍सचेंच बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) द्वारा भी शिकंजा कसा जा चुका है किंतु हर आर्थिक अपराधी की तरह वह अब तक सेबी की आंखों में धूल झोंक कर अपने गोरखधंधे को अंजाम देता रहा है।
यह भी पता लगा है कि जयकृष्‍ण राणा के जाल में केवल उसके अपने कंपनी एजेंट तथा अफसर व निदेशक ही नहीं, कई बैंकें भी फंसी हुई हैं किंतु अब तक जयकृष्‍ण राणा सबको चकमा देने में सफल रहा है।
हाल ही में लिकर किंग के नाम से मशहूर विजय माल्‍या द्वारा देश की विभिन्‍न बैंकों को 9 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाकर देश से भाग जाने के बाद हालांकि सरकार ऐसे अपराधियों के प्रति सख्‍त व सतर्क तो हुई है किंतु फिर भी जयकृष्‍ण राणा जैसे अपराधी उसकी पकड़ से दूर हैं और उसके आसरे रोजी-रोटी कमाने वाले लोग करोड़ों रुपए फंस जाने की वजह से जान दे रहे हैं।
जाहिर है कि अब भी यदि कल्‍पतरू ग्रुप और उसके चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा पर कानून का शिकंजा सही तरह से नहीं कसा गया तो पता नहीं कितने और अभय सिंह अपनी जान देने पर मजबूर होंगे और कितने निवेशक अपनी मेहनत की कमाई वापस लेने के लिए अभय सिंह जैसों को तलाशते देखे जायेंगे।
-लीजेंड न्‍यूज़

शनिवार, 19 मार्च 2016

Islam और संविधान दोनों के गुनहगार हैं असदउद्दीन ओवैसी

सुप्रसिद्ध शायर सर मुहम्‍मद इकबाल के अनुसार काफिर (कुफ्र) के मानी हैं- इखलाक (जीव जगत) से मुहब्‍बत न करने के जज़्बात।
इस्‍लामिक रिसर्च के मुताबिक खुदा की बनाई हुई कायनात से विद्रोह, अकृतज्ञता और नमकहरामी भी कुफ्र हैं।
ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार यदि कोर्इ नौकर अपने मालिक का नमक खाकर उसके साथ विश्वासघात करता है तो उसे नमकहराम कहते हैं। यदि कोर्इ सरकारी कर्मचारी हुकूमत के दिए हुए अधिकारों का प्रयोग हुकूमत के ही विरुद्ध करता है, तो उसे विद्रोही कहते हैं। यदि कोर्इ व्यक्ति अपने उपकारकर्ता के साथ विश्वासघात करता है, तो उसे कृतघ्‍न कहते हैं।
अब बताओ कि जो खुदा, मनुष्य का वास्तविक उपकारकर्ता है, वास्तविक सम्राट है, सबसे बड़ा पालनकर्ता है, यदि उसी के साथ मनुष्य कुफ्र करे, उसी की बनाई हुई कायनात को न माने, उसकी बन्दगी से इंकार करे तो क्‍या यह कृतघ्‍नता और नमकहरामी नहीं है।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत-बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित ”वंदे मातरम्” को संविधान ने राष्‍ट्रगीत का दर्जा दिया है और इस गीत में मातृभूमि की ही वंदना की गई है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू की किताब डिस्‍कवरी ऑफ इंडिया में ”भारत माता” नाम से एक चैप्‍टर है। इस चैप्‍टर को नेहरू ने ”मदर इंडिया” नाम नहीं दिया। इंग्‍लिश में होने के बावजूद इसे उन्‍होंने “BHARAT MATA” नाम दिया है।
इस चैप्‍टर में नेहरू लिखते हैं कि वह जहां भी जाते थे, लोग भारत माता की जय के नारे लगाने लगते थे। एक बार उन्‍होंने भीड़ से पूछा कि आखिर यह भारत माता कौन है जिसकी जय आप बोलते हैं और जिसके विजयी होने की कामना करते हैं।
नेहरू के अनुसार भीड़ में मौजूद लोगों ने कहा कि हमारी मातृभूमि ही भारत माता है।
नेहरू ने फिर पूछा कि मातृभूमि से आपका क्‍या तात्‍पर्य है। क्‍या आपके गांव, इलाके या शहर की भूमि?
इस पर लोगों का जवाब था कि मातृभूमि से हमारा तात्‍पर्य हमारे देश की भूमि, उस भूमि पर मौजूद जल, जंगल, पहाड़ वनस्‍पतियां और वह सब-कुछ जो प्रकृति है और जिससे हमारे लहू का एक-एक कतरा अभिसिचिंत है। जिससे हम अपने लिए अन्‍न, जल, फल-फूल, वनस्‍पतियां और यहां तक कि प्राणवायु पाते हैं।
पंडित नेहरू को न सिर्फ जवाब मिल चुका था बल्‍कि उन्‍हें ”भारत माता” की जयघोष के पीछे छिपी मनोकामना भी समझ में आ चुकी थी।
ऐसे में ऑल इंडिया मजलिस इत्‍तिहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया और सांसद असदउद्दीन ओवैसी का यह कहना कि यदि कोई उनके गले पर छुरी रखकर भी ”भारत माता की जय” बुलवाना चाहे तो वह ”भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे क्‍योंकि संविधान में कहीं ऐसा नहीं लिखा है।
जहां तक मुझे मालूम है असदउद्दीन ओवैसी अच्‍छे-खासे पढ़े-लिखे हैं। डिग्री होल्‍डर हैं। हालांकि पढ़े-लिखे होने और शिक्षित होने में बहुत बड़ा फर्क है इसलिए मैं यह नहीं बता सकता कि वह शिक्षित कितने हैं किंतु संविधान का जिक्र करके वह साबित यही करना चाहते हैं कि वह शिक्षित हैं।
बहरहाल, असदउद्दीन ओवैसी साहब मुस्‍लिम हैं और भारतीय भी हैं लिहाजा उन्‍हें भारतीय मुस्‍लिम होने के लिए किसी अन्‍य से प्रमाण पत्र की दरकार नहीं हैं परंतु शायद उन्‍हें खुद को शिक्षित साबित करने के लिए कई स्‍तर से प्रमाण पत्र की दरकार है।
सबसे पहले तो असदउद्दीन ओवैसी को ‘इस्‍लाम’ के विद्वानों से ही शिक्षित होने का प्रमाण पत्र लेना होगा क्‍यों कि इस्‍लाम के अनुसार खुदा की बनाई हुई कायनात का शुक्रगुजार न होना कुफ्र है। उसके प्रति विद्रोह, अकृतज्ञता तथा नमकहरामी कुफ्र है।
क्‍या असदउद्दीन ओवैसी साहब यह बतायेंगे कि मातृभूमि, खुदा की बनाई हुई कायनात का हिस्‍सा नहीं है। क्‍या उनकी रगों में दौड़ रहा खून उस जमीन के जर्रे-जर्रे से अभिसिंचित नहीं है। वह जो-कुछ भी खाते-पीते हैं, क्‍या उसका मूल स्‍त्रोत यह भूमि नहीं है। यदि इन सवालों का उत्‍तर ओवैसी साहब को मिल जाए तो वह खुद तय कर लें कि उन्‍हें क्‍या कहा जाना चाहिए और इस्‍लाम के मुताबिक वह क्‍या कहलवाने के अधिकारी हैं।
धर्म के इतर यदि बात करें देश के उस संविधान की जिसका उन्‍होंने जिक्र यह कहकर किया कि संविधान में कहीं ”भारत माता की जय” बोलने जैसी बाध्‍यता नहीं है तो पहले वह जान लें कि जिस संविधान में ”वंदे मातरम्” को राष्‍ट्रगीत का दर्जा प्राप्‍त है, वह पूरा गीत ही मातृभूमि की वंदना है। मातृभूमि पर मौजूद प्रकृति के उस कण-कण की वंदना है जिसकी रचना इस्‍लाम के अनुसार खुदा ने की है और जिसकी वंदना न करना खुदा का अपमान करना है। उसके प्रति कृतघ्‍न होना, नमकहराम होना तथा विद्रोही हो जाना है। इस्‍लाम ने ऐसे लोगों के लिए भी काफिर शब्‍द का प्रयोग किया है, सिर्फ विधर्मियों के लिए नहीं। कुफ्र से बने शब्‍द ”काफिर” की तमाम व्‍याख्‍याओं में से एक व्‍याख्‍या यह भी है, और शायद इसी व्‍याख्‍या को सुप्रसिद्ध शायर सर मुहम्‍मद इकबाल ने माना है जिसका ऊपर जिक्र किया गया है।
माना कि असदउद्दीन ओवैसी साहब एक राजनेता हैं और वोट की राजनीति करना उनका हक है किंतु इसका यह मतलब तो नहीं कि वोट की राजनीति के लिए वह इतना नीचे गिर जाएं कि संविधान के साथ-साथ इस्‍लामिक शिक्षा को भी ताक पर रख दें।
मातृभूमि की वंदना करना यदि इस्‍लाम में निषिद्ध होता तो क्‍यों जावेद अख्‍तर जैसे नामचीन शायर तथा राज्‍यसभा सदस्‍य खुलेआम तीन-तीन बार भारत माता की जय बोलते।
इस्‍लाम यदि मातृभूमि की वंदना करने से रोकता तो क्‍यों अब तक जावेद अख्‍तर को कौम से बेदखल करने का फरमान जारी नहीं किया गया।
जावेद अख्‍तर तो एक उदाहरण भर हैं। बाकी देश के अधिकांश मुसलमानों को मातृभूमि की जय के नारे लगाने से कभी कोई परहेज नहीं रहा।
असदउद्दीन ओवैसी अपनी ओछी राजनीति में संभवत: यह भूल गए कि संसद में बैठने का अधिकार उन्‍हें जिस जनता ने दिया है, वह जनता भी उनके ऐसे विचारों से इत्‍तेफाक नहीं रखती।
वह यह भी भूल गए कि सीमा पर तैनात सेना का हर जवान मातृभूमि की रक्षा के लिए ही जीता है और उसी के लिए अपने प्राणों को खुशी-खुशी न्‍यौछावर कर देता है। सीमा पर तैनात इन जवानों में क्‍या मुसलमान नहीं हैं, अथवा उनकी इस्‍लाम के प्रति समझ असदउद्दीन ओवैसी से कम है। आखिर क्‍या साबित करना चाहते हैं असदउद्दीन ओवैसी।
मेरे ख्‍याल से ओवैसी साहब का दांव उल्‍टा पड़ चुका है, यह बात वह जितनी जल्‍दी समझ जाएं उतना अच्‍छा है क्‍योंकि राजनीति आखिर उन्‍हीं लोगों के बल-बूते चलती है जिन्‍हें अक्‍सर राजनेता जाहिल और गंवार समझने की भूल कर बैठते हैं।
यूं भी धर्म और राजनीति का घालमेल आटे में नमक के बराबर ही ठीक रहता है, जहां इसका अनुपात गड़बड़ाया वहां पूरी की पूरी राजनीति का ऊंट करवट बदल लेता है।
भारत माता की जय न बोलने को बेवजह मुद्दा बनाकर असदउद्दीन ओवैसी ने साबित कर दिया कि न तो उन्‍हें इस्‍लाम की समझ है और न राजनीति की। वह इस्‍लाम के भी गुनहगार हैं और राजनीति के भी। बेहतर होगा कि समय रहते वह कुफ्र व काफिर के विस्‍तृत अर्थों को समझ लें और संविधान से राष्‍ट्रगीत का दर्जा प्राप्‍त ”वंदे मातरम्” की पंक्‍तियों को भी पढ़ लें। शायद उन्‍हें समझ में आ जाए कि दोनों ही जगह मातृभूमि की वंदना जोर जबरदस्‍ती से नहीं धर्म और कर्म समझकर करने की नसीहत दी गई है।
जावेद अख्‍तर ने सही कहा था कि संविधान में तो टोपी और दाढ़ी रखने की भी बाध्‍यता नहीं है, तो क्‍या ओवैसी साहब टोपी और दाढ़ी भी छोड़ देंगे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

मंगलवार, 15 मार्च 2016

कैसे लगेगी Mission 2017 की नैया पार: PM की क्‍लास में UP के सभी सांसद फेल

-पीएम ने कहा, अब बाद में होगी बात
-प्रदेश प्रभारी ने क्षेत्र में समय बिताने की हिदायत दी
कल प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा Mission 2017 के संदर्भ में यूपी के सांसदों की ली गई विशेष मीटिंग के दौरान लगभग सभी सांसद पूरी तरह फेल साबित हुए। सांसदों की इस अयोग्‍यता पर पीएम ने उनकी जमकर क्‍लास भी ली।
पीएम की क्‍लास में यूपी के सांसदों की अयोग्‍यता ने यह तो साफ कर दिया कि मिशन 2017 के तहत उत्‍तर प्रदेश को जीतने के लिए चाहे समूची भारतीय जनता पार्टी और स्‍वयं प्रधानमंत्री मोदी भी कितने ही गंभीर क्‍यों न हों किंतु उत्‍तर प्रदेश के सांसद इसके लिए कतई गंभीर नहीं हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी के ही नोएडा से सांसद तथा केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा के घर पर कल यूपी के सांसदों की बैठक ली थी।
इस बैठक में मोदी ने सभी सांसदों से मात्र दो प्रश्‍न पूछे लेकिन कोई सांसद इन दो प्रश्‍नों के भी उत्‍तर नहीं दे सका। सांसदों की इस अयोग्‍यता पर पीएम को आश्‍चर्य हुआ और उन्‍होंने सभी सांसदों की जमकर क्‍लास ली।
प्रधानमंत्री मोदी का यूपी के सांसदों से पहला सवाल था कि क्या आपको पता है 2014 से पहले यूपी के कितने गांवों में बिजली नहीं थी और केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद कितने गांवों में बिजली पहुंच गई है?
आश्‍चर्यजनक रूप से प्रधानमंत्री के इस प्रश्‍न का कोई भी सांसद जवाब नहीं दे पाया।
पहले प्रश्‍न का जवाब न मिलने पर प्रधानमंत्री ने दूसरा प्रश्‍न यह किया कि जनता को सरकार की उपलब्धियां बताने के लिए ”मोदी एप” लाया गया है। क्‍या यह एप आपके मोबाइल पर है?
प्रधानमंत्री को यह देखकर बहुत निराशा हुई कि यूपी के किसी सांसद ने उनके इस प्रश्‍न पर भी अपेक्षा के अनुरूप जवाब नहीं दिया। अर्थात किसी सांसद के मोबाइल में ”मोदी एप” नहीं पाया गया।
प्रधानमंत्री मोदी यूपी के सांसदों की इस कार्यपद्धति को देखकर इस कदर नाराज हुए कि उन्‍होंने ज्‍यादा कुछ कहने की जगह सिर्फ इतना कहा कि अब इस बारे में बाद में बात होगी।
बैठक में मौजूद भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने प्रधानमंत्री की जगह यूपी के सांसदों को अपने-अपने क्षेत्र में अधिक से अधिक समय बिताने की हिदायत दी।
ओम माथुर ने इन सांसदों से यह भी कहा कि वह अपनी कुल सांसद निधि में से 25 प्रतिशत निधि का खर्च संगठन की सिफारिश पर करें।
इस दौरान प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने सूबे में होने वाले पार्टी के आगामी कार्यक्रमों की जानकारी भी सांसदों को दी।
ओम माथुर ने बताया कि प्रधानमंत्री अप्रैल में मऊ और आगरा का दौरा करेंगे। 14 अप्रैल को मऊ में अंबेडकर जयंती पर होने वाले कार्यक्रम अटेंड करेंगे और इसी दिन से पार्टी के यूपी में होने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू होगी, जिसका समापन 24 अप्रैल को आगरा में किया जायेगा। इस आयोजन में भी पीएम मोदी मौजूद रहेंगे।
प्रधानमंत्री द्वारा यूपी के सांसदों की लगाई गई इस क्‍लास में पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह तथा केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी उपस्‍थित थे।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मिशन 2017 के लिए उत्‍तर प्रदेश के सांसदों की अलग से मीटिंग लेना इस बात को तो साफ करता है कि प्रधानमंत्री न सिर्फ यूपी को लेकर गंभीर हैं बल्‍कि उन्‍हें इस बात की भी जानकारी है कि अब तक यूपी के सांसदों की जो कार्यप्रणाली रही है, उसे यदि समय रहते नहीं सुधारा गया तो मिशन 2017 में वही कमजोर कड़ी साबित होंगे।
उत्‍तर प्रदेश में भी भाजपा के लिए तीनों प्रमुख धार्मिक स्‍थान यानि अयोध्‍या (फैजाबाद), मथुरा तथा काशी (वाराणसी) अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण हैं क्‍योंकि यही वह हड़िया के चावल हैं जहां से यूपी की स्‍थिति का अंदाज सहज लगाया जा सकता है।
इनमें से दो जिले विशिष्‍ट श्रेणी में आते हैं क्‍योंकि एक (वाराणसी) से स्‍वयं पीएम सांसद हैं जबकि दूसरे (मथुरा) का प्रतिनिधित्‍व प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी के पास है।
फैजाबाद से भी भाजपा के ही सांसद लल्‍लू सिंह हैं।
वाराणसी पर तो प्रधानमंत्री का पूरा ध्‍यान केंद्रित है किंतु यदि बात करें मथुरा की तो हेमा मालिनी से मथुरा की जनता प्रसन्‍न नजर नहीं आती।
हाल ही में हेमा मालिनी ने मीडिया से एक साक्षात्‍कार के दौरान कहा था कि सांसद बनने पर उनके सम्‍मान में काफी इजाफा हुआ है। अभिनेत्री के रूप में उन्‍हें जनता का प्‍यार मिलता रहा है किंतु सांसद बनने के बाद मिले सम्‍मान से वह अभिभूत हैं।
हेमा मालिनी का कथन तो सही है परंतु क्‍या वह सांसद के रूप में मिले इस सम्‍मान की भरपाई भी कर रही हैं, यह प्रश्‍न विचारणीय हो जाता है।
हाल ही में 12 और 13 मार्च को हेमा मालिनी ने वृंदावन (मथुरा) में एक रसोत्‍सव का आयोजन किया। इस दो दिवसीय आयोजन में सांसद हेमा मालिनी ने अपनी नृत्‍य कला का भरपूर प्रदर्शन किया और उसी के अनुरूप तारीफ भी बटोरी।
कलाकार के रूप में हेमा मालिनी पहले से प्रतिष्‍ठित हैं इसलिए उनका आयोजन सफल होना ही था लेकिन सांसद की हैसियत से मथुरा की जनता के लिए अब तक वह ऐसा कोई उल्‍लेखनीय कार्य नहीं करा सकीं हैं जिसे उनकी विशेष उपल्‍ब्‍धि माना जाए या जिसे आधार बनाकर भाजपा मिशन 2017 के लिए क्षेत्रीय जनता से अपने लिए वोट मांग सके।
उत्‍तर प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम माथुर भी हेमा मालिनी सहित सभी सांसदों की क्षेत्र में अटेंडेंस से भली भांति परिचित होंगे और इसीलिए उन्‍होंने सांसदों को क्षेत्र में अधिक समय व्‍यतीत करने की हिदायत दी।
हेमा मालिनी जैसे विशेष दर्जा प्राप्‍त जनप्रतिनिधियों का तो यह हाल है कि उनसे पार्टी की जिला इकाई तक संपर्क साधने को तरस जाती है, फिर आम जनता के मिलने का तो सवाल ही कहां पैदा होता है।
मथुरा की जनता को हेमा मालिनी यदि कभी दिखती हैं तो बस अखबार के चित्रों में अथवा टीवी पर आने वाले उनके अपने विज्ञापनों में। बाकी तो वह कब आती हैं और कब निकल जाती हैं, इसकी जानकारी जनता जनार्दन को न होकर उनके सचिवनुमा व्‍यक्‍ति जनार्दन शर्मा को ही होती है। सांसद से किसकी बात करानी है और किसे मीठी और कड़वी गोली देकर टहला देना है, यह जनार्दन शर्मा तय करते हैं।
इन हालातों में क्‍या भाजपा के लिए मिशन 2017 फतह कर पाना संभव होगा, और क्‍या उत्‍तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों जैसी जीत दर्ज कर पाने की पार्टी की मंशा पूरी होगी, यह बड़ा सवाल बन चुका है।
संभवत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्‍थिति तथा उससे उपजी परिस्‍थिति को पहचान लिया है और इसलिए उन्‍हें यूपी के सांसदों की अलग से मीटिंग लेने की जरूरत महसूस हुई होगी किंतु पीएम मोदी को भी यह समझना होगा कि समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए तो फिर बिहार का नतीजा दोहराने के सिवाय कुछ नहीं रह जायेगा।
जब चिड़िया खेत को चुग जाती हैं तब पछताना ही शेष रह जाता है इसलिए मीटिंग तो ठीक लेकिन मीटिंग का नतीजा भी सामने दिखाई देना चाहिए अन्‍यथा जनता तो ठेंगा दिखा ही देगी।
-Legend News

शुक्रवार, 4 मार्च 2016

जिस Kanhaiya को अपनी मां से लगाव नहीं, उसे भारत मां से लगाव क्‍यों होगा

राष्‍ट्रद्रोह के आरोपी जेएनयू छात्र संघ के अध्‍यक्ष Kanhaiya की सशर्त कोर्ट से रिहाई के बाद जेएनयू कैंपस में उसके द्वारा दिए गए भाषण को (जिसे उसने अपना 23 दिनों का अनुभव बताया है) न सिर्फ अरविंद केजरीवाल और दिग्‍विजय सिंह जैसे भाजपा के घोर विरोधी नेताओं ने जमकर सराहा है बल्‍कि मीडिया ने भी भरपूर तरजीह दी है।
कन्‍हैया कुमार ने जेल से छूटने के बाद कल जो कुछ जेएनयू कैंपस में कहा, उसे यदि गौर से सुना और समझा जाए तो दो बातें साफ नजर आती हैं।
इनमें से पहली बात तो यह कि वह अपने ऊपर लगे राष्‍ट्रद्रोह के आरोप की सफाई देता दिखाई दिया न कि जेएनयू की गतिविधियों पर। और दूसरी यह है कि उसका कृत्‍य ऐसा अपराध है जिसे उचित ठहराना आसान नहीं होगा, यह वह समझ चुका है।
कन्‍हैया कुमार का कल यह कहना कि हम भारत से नहीं भारत में आजादी चाहते हैं, इस बात का प्रमाण है।
कन्‍हैया कुमार किस तरह की आजादी का पक्षधर है, इसे बताने का और अपनी बात रखने का अब उसे कोर्ट में पूरा मौका मिलेगा लिहाजा अब कोर्ट के बाहर उसकी इन सफाइयों का कोई मतलब नहीं कि वह किससे तथा कैसी आजादी चाहता है।
कन्‍हैया कुमार ने एक और बात जो प्रधानमंत्री मोदी के संदर्भ में कही कि वह अपने मन की बात करते हैं लेकिन दूसरों के मन की बात नहीं सुनते। कन्‍हैया का यह जुमला कांग्रेस तथा उसके राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के चिर-परिचित जुमले की नकल है और इससे साफ जाहिर है कि वह जेल यात्रा के बाद कांग्रेस की विचारधारा से खासा प्रभावित हो चुका है।
कन्‍हैया कुमार कहता है कि मोदी जी अपने मन की बात करते हैं लेकिन दूसरों के मन की बात नहीं सुनते। कन्‍हैया कुमार को यह भी बताना चाहिए कि उसने जेएनयू छात्रसंघ का अध्‍यक्ष होने के नाते भी मोदी जी को कितनी बार छात्रों के मन की बात बताने का प्रयास किया और उसके लिए कौन-कौन से संवैधानिक तथा काननूी रास्‍ते इस्‍तेमाल किए। राष्‍ट्रद्रोह के आरोप में पकड़े जाने से पहले उसने मोदी जी तक कब और किस मंच से अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की।
अपनी गिरफ्तारी और राष्‍ट्रद्रोह के अपने ऊपर लगे आरोप को लेकर भी प्रधानमंत्री मोदी को सीधे जिम्‍मेदार ठहराने का उसका प्रयास अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी और राहुल गांधी@Congress.com सरीखा है।
जिस तरह अरविंद केजरीवाल अपनी खांसी ठीक न हो पाने और राहुल गांधी अब तक सिंगल होने के लिए भी प्रधानमंत्री मोदी को ही जिम्‍मेदार ठहराते हैं, उसी तरह कन्‍हैया कुमार जैसा अदना सा एक यूनिवर्सिटी का नेता भी खुद की गिरफ्तारी के लिए मोदी जी को जिम्‍मेदार ठहरा रहा है। जैसे मोदी जी प्रधानमंत्री न होकर दिल्‍ली पुलिस के सब इंस्‍पेक्‍टर हों और उनके पास केवल यही काम रह गया हो।
दरअसल, अरविंद केजरीवाल हों या दिग्‍विजय सिंह, कन्‍हैया कुमार हों या मनीष सिसौदिया, इन सब की अपनी-अपनी हीन भावनाएं हैं। केजरीवाल बनारस में मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर ऐसा प्रयास कर भी चुके हैं कि किसी तरह वह मोदी के आसपास कहीं खड़े हो पाएं किंतु जब उन्‍हें उस प्रयास में सफलता नहीं मिली तो गाल बजाना शुरू कर दिया।
लुटेरे से महर्षि बने बाल्‍मीकि के बारे में कहा जाता है कि जब आदतन उन्‍होंने राम-राम जपने में असमर्थता जाहिर की तो किसी संत ने उनसे कहा कि तुम मरा-मरा जपो। वह अपने आप राम-राम बन जाता है।
इसी को लेकर एक चौपाई है कि ”उलटा नाम जपत जग जाना, बाल्‍मीकि भए ब्रह्म समाना”।
शायद यही कारण है कि केजरीवाल से लेकर कन्‍हैया तक और दिग्‍गी से लेकर मनीष तक…सब के सब अपने साथ हुई घटना-दुर्घटनाओं के लिए मोदी जी को जिम्‍मेदार ठहराने में लगे रहते हैं। उन्‍हें अब अपने राजनीतिक उद्धार का यही मार्ग आसान लगता है।
कन्‍हैया की मानें तो वह देश को लूटने वालों से आजादी चाहते हैं। यदि कन्‍हैया के कथन में रत्‍तीभर भी सच्‍चाई है तो उन्‍हें यह भी बताना चाहिए कि वो कौन लोग हैं जो देश को लूट रहे हैं और किस-किस ने अब तक देश को लूटा।
यूं भी देश को लूटने वालों से आजादी चाहने का उनका आशय क्‍या है, यह भी आमजन की समझ से परे है। क्‍या कन्‍हैया कुमार या उनका छात्र संगठन तथा उनके जैसे कथित बुद्धिजीवी क्‍या अब तक देश को लूटने वालों की गुलामी करते रहे हैं और अब उनसे आजादी चाहते हैं। कन्‍हैया को यह भी साफ करना चाहिए।
कन्‍हैया कुमार का यह कहना कि विरोध की सभी योजनाएं नागपुर में तैयार होती हैं और हम देश को बर्बाद करने वालों के खिलाफ एकजुट होकर रहेंगे, यह सब-कुछ कांग्रेसी स्‍क्रिप्‍ट का हिस्‍सा है।
बेहतर होता कि वह जमानत मांगने के लिए कोर्ट के सामने गिड़गिड़ाने की जगह कोर्ट को यह बताता कि असली राष्‍ट्रद्रोही जेएनयू से नहीं आरएसएस के नागपुर मुख्‍यालय से पैदा होते हैं और उन्‍होंने देश पर जबरन कब्‍जा कर लिया है।
कन्‍हैया को यह भी बताना चाहिए कि जहां देश को टुकड़े-टुकड़े करने की बात हो रही थी, वहां वह क्‍या कर रहा था।
कहीं ऐसा तो नहीं कि ”भारत से नहीं, भारत में आजादी” मांगने के नए जुमले की तरह ”देश के टुकड़े-टुकड़े” करने वाले नारे को भी जस्‍टीफाई करने के लिए कन्‍हैया व उसके साथियों ने कोई नई परिभाषा गढ़ ली हो।
संसद हमले के दोषी आतंकी अफजल गुरू की फांसी को न्‍यायिक हत्‍या बताने वालों के बारे में तो पहले ही कहा जा चुका है कि वो सब कहने वाले बाहरी तत्‍व थे।
कन्‍हैया या उसके हिमायती क्‍या यह बतायेंगे कि यदि उनके घर में घुसकर कोई बाहरी व्‍यक्‍ति ऐसा गैरकानूनी कार्य कर जाता है जो संगीन अपराध की श्रेणी में आता हो तो क्‍या उसके लिए उनकी जिम्‍मेदारी नहीं बनती। छात्रसंघ की क्‍या यह जिम्‍मेदारी नहीं है कि वह बाहरी आपराधिक तत्‍वों से यूनीवर्सिटी को महफूज रखे।
प्रधानमंत्री के सत्‍यमेव जयते पर तंज कसने वाले कन्‍हैया कुमार को यदि संविधान में उल्‍लिखित सत्‍यमेव जयते पर इतना ही भरोसा है तो देश के अंदर आजादी के लिए भी संविधान प्रदत्‍त अधिकारों के दायरे में रहकर काननू सम्‍मत लड़ाई लड़े न, उसे इससे कौन रोक रहा है। संविधान और काननू किसी जेएनयू की चारदीवारी के गुलाम तो नहीं। फिर सारी गतिविधियां उस चारदीवारी के अंदर ही क्‍यों।
कहीं इसलिए तो नहीं कि कथित आजादी की मांग करने वाले, आतंकवादियों तथा नक्‍सलियों के समर्थक कन्‍हैया कुमार तथा उसके जैसे छात्र यह भली प्रकार जानते हैं कि उनके कृत्‍य किसी भी तरह संवैधानिक व कानूनी नहीं है और उन्‍हें जेएनयू के कैंपस की दरकार है। जेएनयू की चारदीवारी ही उन्‍हें उनके संविधान विरोधी गैरकानूनी कृत्‍यों के लिए संरक्षण दे सकती है।
इसी प्रकार कालेधन को लेकर कन्‍हैया कुमार के उद्गार, हर-हर मोदी के नारे पर तंज, महंगाई पर कटाक्ष और टीवी में घुसकर मोदी का सूट पकड़कर उनसे हिटलर व मुसोलिनी के बारे में बात करने जैसी इच्‍छा का प्रकट करना यह साबित करता है कि कन्‍हैया के पास अपनी कोई सोच नहीं है। जो कुछ है वह कांग्रेस, वामपंथी और केजरीवाल जैसे मौकापरस्‍तों की देन है जिन्‍होंने जेएनयू के हर कृत्‍य का आंख बंद करके समर्थन किया।
यूं भी बेगूसराय से दिल्‍ली आए कन्‍हैया कुमार के चाचा ने टीवी पर यह खुलेआम स्‍वीकार किया था कि वह स्‍वयं और उनका परिवार वामपंथी विचारधारा से प्रभावित रहे हैं।
कन्‍हैया हर-हर मोदी के नारे की आड़ में मोदी पर तो देश को ठगने का आरोप लगाता है किंतु उस कांग्रेस के बारे में कुछ नहीं कहता जिसने गरीबी हटाओ का नारा देकर देश से गरीब को ही हटा दिया।
कांग्रेस की दृष्‍टि में गरीब अब सिर्फ उस चिड़िया का नाम है जिसे पकड़कर वह राजनीति-राजनीति खेलने के लिए अपने पिटारे में रखती है और अमेठी में उसे निकालकर वहां कभी लंच तो कभी डिनर आयोजित कर लेती है।
मोदी को तो जुम्‍मा-जुम्‍मा चार दिन हुए हैं सत्‍ता संभाले, इससे पहले और उससे भी पहले हमेशा कांग्रेस का शासन रहा देश पर। तब किसी कन्‍हैया कुमार ने क्‍यों नहीं कहा कि उसे भारत से नहीं, भारत में आजादी चाहिए। जब यूपीए सरकार ने अफजल गुरू को फांसी देने से पहले उसके परिजनों को सूचित करने जैसी कानूनी जिम्‍मेदारी भी नहीं निभाई, तब जेएनयू के छात्र क्‍यों सोते रहे।
आंगनवाड़ी कार्यकत्री के रूप में कन्‍हैया कुमार की मां को जो कुछ पैसा मिलता है, वह कहां से आता है। क्‍या कोई इसके बारे में बात करेगा। यदि कन्‍हैया कुमार को सरकार और सरकारी तौर-तरीकों से इतनी ही नफरत है तो वह सरकारी खजाने के पैसे से अपने परिवार की दाल-रोटी को बंदोबस्‍त कैसे सहन कर रहा है। किसी भी व्‍यवस्‍था के प्रति घृणा पालना आसान है लेकिन उस व्‍यवस्‍था को सुधारने में अपनी घृणा का सद्उपयोग करना बेहद कठिन।
यदि गैरकानूनी और असंवैधानिक तरीके ही कन्‍हैया की नजर में उपयुक्‍त हैं तो हरियाणा में जाटों द्वारा आरक्षण मांगने के लिए अपनाया गया तरीका भी सही ठहराया जा सकता है। वह भी कह सकते हैं कि सरकार किसी की नहीं सुनती इसलिए हमने कानून अपने हाथ में ले लिया।
और हां, कन्‍हैया के तथाकथित उद्गगारों का एक महत्‍वपूर्ण पहलू यह भी है कि उसने जेल से छूटकर अपनी मां की बात की। बताया कि उसने लंबे समय बाद फोन पर अपनी मां से आज बात की है। दूसरे छात्रों से भी कहा कि वह अपनी-अपनी मां से बात करते रहें।
कन्‍हैया का कथन साफ बताता है कि जिस मां ने आंगनबाड़ी कार्यकत्री के रूप में मिलने वाली मामूली सी धनराशि से कन्‍हैया को जेएनयू में पढ़ने लायक बनाया, वह जेल यात्रा से पहले अपनी उस मां के साथ फोन पर भी बात नहीं करता था।
उस मां से जिसने कल ही कन्‍हैया के लिए दिए गए अपने संदेश में कहा था कि उसे गद्दारों से दूर रहना चाहिए। यानि कन्‍हैया की मां को भी जेएनयू में हुए घटनाक्रम के अंदर कहीं न कहीं गद्दारी दिखाई दे रही है।
कन्‍हैया का कथन इतना बताने के लिए काफी है कि जब उसे अपनी जन्‍मदात्री को लेकर इतना भी लगाव नहीं था कि नियमित रूप से उसका हाल-चाल जान ले तो उसे भारत मां से लगाव क्‍यों होने लगा। उसे क्‍यों इस बात की चिंता होने लगी कि उसकी मां ने उसे कैसे पाला, उसके देश ने उसे क्‍या दिया। उसे तो चिंता है इस बात की कि उसे आजादी चाहिए। उसके मन की आजादी। वैसी आजादी जैसी वह अपनी मां से तो पा चुका था किंतु देश से नहीं मिल पा रही थी। मां को कभी न पूछने की आजादी, उसका हाल-चाल न जानने की आजादी। कन्‍हैया जैसों को ऐसी ही आजादी देश से चाहिए।
आज बेशक वह भयवश पुलिस और न्‍यायपालिका में भरोसे की बात कर रहा है लेकिन उसे इन पर भरोसा है नहीं। हकीकत यह है कि वह डर गया है। वह जान चुका है कि न्‍यायपालिका भी देश को नुकसान पहुंचाने वाले और उसे तोड़ने का ख्‍वाब देखने वाले किसी कृत्‍य का समर्थन नहीं कर सकती।
वह खूब समझ रहा है कि उसे जो 6 महीने के लिए जमानत दी गई है, उसमें लगाई गई शर्तें तस्‍दीक करती हैं कि उसका कृत्‍य कोई सामान्‍य भूल नहीं है। उसमें से प्रथमदृष्‍या देशद्रोह की बू तो आ ही रही है। भले ही वह अभी साबित नहीं हुआ है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वह पूरी तरह इन्‍नोसेंट साबित हो चुका हो।
जमानत के साथ जुड़ी शर्तें न केवल अपराध की गंभीरता दर्शाती हैं बल्‍कि कन्‍हैया कुमार पर व्‍यक्‍तिगत रूप से यह जिम्‍मेदारी भी डालती हैं कि वह इन 6 महीनों में साबित करे कि उसका देश के प्रति नजरिया क्‍या है।
कन्‍हैया कुमार का यह कहना कि वह किसी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं है और उसकी अपनी विचारधारा है, सफेद झूठ से अधिक कुछ नहीं।
यदि ऐसा है तो उसने कल जिस तरह भाजपा और मोदी पर निशाना साधा, अपनी गिरफ्तारी के लिए सुब्रह्मण्‍यम स्‍वामी को जिम्‍मेदार ठहराया, उसी तरह यह भी बताना चाहिए था कि देश के टुकड़े-टुकड़े करने का सपना देखने वाले तथा अफजल गुरू की फांसी को न्‍यायिक हत्‍या बताने वालों के साथ राहुल गांधी व कांग्रेस का खड़ा होना कितना उचित था।
जहां तक सवाल कन्‍हैया द्वारा अपने भाषण में किसान और जवान दोनों को भाई बताते हुए सीमा पर तैनात फौजियों को सलाम करने का है तो यह उसी प्रकार के खालिस राजनीतिक स्‍टंट का हिस्‍सा है जिस प्रकार के स्‍टंट प्रत्‍येक नेता करता है।
कन्‍हैया कुमार क्‍या बनना चाहता है और उसकी महत्‍वाकांक्षा कितनी बड़ी है, यह तो मैं नहीं जानता किंतु इतना जरूर कह सकता हूं कि जेल यात्रा के बाद वह एक बड़ा नेता बनने का सपना अपनी आंखों में पाल चुका है और उसके मुंह से कल निकला एक-एक शब्‍द इसकी पुष्‍टि करता है।
वह जानता है कि कोई न कोई केजरीवाल, दिग्‍विजय, राहुल गांधी, मनीष सिसौदिया या सीताराम येचुरी उसे अपने कंधे पर बैठा लेगा और तब वह उसके कांधे का इस्‍तेमाल उस राजनीति की सीढ़ियों चढ़ने में बखूबी करेगा जो उसकी महत्‍वाकांछा अथवा हवस का पूरा करेगी। शुरूआत हो चुकी है।
बस इंतजार है तो उस एक अदद मौके का जिसे भुनाया जा सके।
लालू जैसे चारा घोटाले के दोषी भी कहते हैं कि जेल यात्रा उतनी बुरी भी नहीं होती, जितनी बताई जाती है।
कन्‍हैया को भी लग रहा होगा कि उसके लिए तो 23 दिन का जेल का सफर, उसकी जिंदगी का टर्निंग प्‍वाइंट बन गया। इसलिए वह अनुभव बांटने लगा। सबके अपने-अपने अनुभव हैं। लालू यादव के अपने और केजरीवाल व कन्‍हैया कुमार के अपने। अफजल गुरू अपना अनुभव बांटने को रहा नहीं अन्‍यथा केजरीवाल एक ट्वीट उसके अनुभव पर भी न्‍यौछावर जरूर करते।
जैसे कन्‍हैया के उद्गगारों पर केजरीवाल ने इस आशय का ट्वीट किया है- मैंने कहा था मोदी जी से कि छात्रों से पंगा मत लो। नहीं माने, अब भुगतें।
किंतु केजरीवाल यह भी जान लें कि जेएनयू के जुमले देश की आवाज नहीं हो सकते और जेएनयू के छात्रों की कुटिल सोच समूचे देश के छात्रों की सोच नहीं होती।
ठीक उसी तरह जैसे दिल्‍ली कभी देश नहीं हो सकती और लाख कोशिशों के बावजूद दिल्‍ली का ”आधा मुख्‍यमंत्री” देश का प्रधानमंत्री नहीं हो सकता।
केजरीवाल हो या Kanhaiya, अभिव्‍यक्‍ति की आजादी का फायदा उठाकर प्रधानमंत्री को बात-बात के लिए कोस तो सकते हैं लेकिन मोदी नहीं बन सकते क्‍योंकि कोई एक ही नरेन्‍द्र दामोदार दास मोदी पैदा होता है और कोई एक नरेन्‍द्र मोदी ही पीएम बन सकता है।
जान लें कि संविधान की तरह प्रधानमंत्री भी एक ही होता है…और नरेन्‍द्र मोदी समूचे देश के प्रधानमंत्री हैं।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

UP: ठेके पर सरकार …या सरकार पर नकल का ठेका

समाजवादी कुनबे के चश्‍मो चिराग और UP के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव पर यूं तो यह कहावत इन दिनों सटीक बैठती है कि बुझता हुआ दीया रौशनी ज्‍यादा करता है लेकिन यहां तो उक्‍त कहावत भी सिर्फ जुबानी जमाखर्च ही मालूम पड़ती है।
चूंकि 2017 के विधानसभा चुनाव लगभग सामने आ खड़े हुए हैं और सभी राजनीतिक दलों ने मिशन 2017 पर काम करना भी शुरू कर दिया है लिहाजा सूबे के सीएम अखिलेश यादव भी इन दिनों पूरी ताकत के साथ अपनी सरकार का बखान करने में लगे हैं।
बात चाहे कानून-व्‍यवस्‍था की हो अथवा विकास कार्यों की, अखिलेश यादव की मानें तो उन्‍होंने उत्‍तर प्रदेश को इतना उत्‍तम प्रदेश बना दिया है कि जितना पिछली कोई सरकार नहीं बना सकी।
अखिलेश के जुबानी जमाखर्च पर यकीन कर भी लिया जाता यदि हर रोज उनके दावों की पोल खोलने वाला कोई न कोई वाकया सामने न आ खड़ा होता।
उदाहरण के लिए इन दिनों यूपी में माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। ये परीक्षाएं एक लंबे समय से नकल माफियाओं द्वारा संचालित की जाती हैं, उत्‍तर प्रदेश सरकार तो बस जैसे इनका टेंडर निकालती है। बोर्ड की परीक्षाओं के नाम पर शिक्षा का मजाक और शिक्षा व्‍यवसाय का घिनौना रूप इस दौरान खुलेआम देखा जा सकता है।
बोर्ड परीक्षाओं के लिए सेंटर बनाए जाने से शुरू हुआ यह खेल नकल द्वारा पास की गई परीक्षाओं पर जाकर वहां खत्‍म होता है जहां पीढ़ी-दर-पीढ़ी जाहिलों की एक पूरी फौज खड़ी कर दी जाती है। यही फौज फिर कभी कहीं किसी नौकरी में भर्ती के समय तो कभी आरक्षण की मांग के नाम पर किए जाने वाले आंदोलन के वक्‍त उपद्रवियों में तब्‍दील होती दिखाई देती है।
विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा में आज ”लीजेंड न्‍यूज़” को कुछ ऐसे चित्र मिले जिनसे पूरी तरह स्‍पष्‍ट होता है कि यूपी में बोर्ड परीक्षाएं कितना बड़ा मजाक बनकर रह गई हैं और किस तरह समाजवादी पार्टी की सरकार शिक्षा माफियाओं के सामने या तो बेबस है या फिर उनसे मिली हुई है।
बोर्ड परीक्षाओं के नाम पर चल रहे नकल माफियाओं के इस काले धंधे को देखकर ऐसा लगता है जैसे प्रदेश में शासन नाम की कोई चीज है ही नहीं। और जब शासन ही नहीं होगा तो प्रशासन कहां होगा।
अगर यह राजनीतिक मुद्दा होता तो संभवत: अखिलेश सरकार इस स्‍थिति के लिए भी विपक्ष को जिम्‍मेदार ठहरा देती किंतु दुर्भाग्‍य से यह पूरी तरह कानून-व्‍यवस्‍था का मुद्दा है।
ऐसा नहीं है कि नकल का यह खेल सिर्फ समाजवादी सरकार की उपज हो और बसपा या दूसरे दलों के शासनकाल में परिस्‍थितियां कुछ अलग रही हों, लेकिन इस समय यूपी में अखिलेश के नेतृत्‍व वाली वो समाजवादी सरकार काबिज है जो दावा करती है कि उसके जैसी बेहतर कानून-व्‍यवस्‍था देश के कई दूसरे राज्‍यों में नहीं है।
यूपी बोर्ड की परीक्षाओं में चल रहा नकल का यह खेल इसलिए अत्‍यंत घातक है क्‍योंकि इससे तथाकथित पढ़े-लिखों की वो जमात तैयार हो रही है जो आगे आने वाले समय में शासन-प्रशासन के लिए चुनौती बनेगी। उसके पास बोर्ड का सर्टीफिकेट तो होगा लेकिन शिक्षा से उसका दूर-दूर तक कोई वास्‍ता नहीं होगा।
अखिलेश सरकार अब इस मामले में कुछ कर भी नहीं सकती क्‍योंकि उसमें इसके लिए इच्‍छाशक्‍ति ही नहीं है और नकल माफिया के पास हर तरह की शक्‍ति है।
उनके पास धनबल भी है और बाहुबल भी। उन्‍हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अखिलेश यादव क्‍या करते हैं और मुलायम सिंह यादव क्‍या कहते हैं। उन्‍हें मतलब है तो इस बात से कि बोर्ड परीक्षाओं में नकल कराने के लिए ली गई उनकी ठेकेदारी इसी प्रकार चलती रहे।
उनकी ठेकेदारी कैसी चल रही है, इसका प्रत्‍यक्ष प्रमाण मथुरा के एक कॉलेज से लिए गए चित्रों के रूप में आपके सामने है।
-लीजेंड न्‍यूज़
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