एक युवा कथावाचक मदारी, उसकी डुगडुगी पर नाचने वाले दो जमूरे कारोबारी… और भगवान बद्री विशाल का स्वर्ण छत्र।ये कहानी है उस धंधे की जिसे परवान तो चढ़ाया जाता है धर्म के सहारे लेकिन नतीजा निकलता है पाप से भरी गठरी के रूप में। फिर भी फायदे में रहता है सिर्फ और सिर्फ कथावाचक मदारी।
उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों में बैठे भगवान बद्री विशाल को तो शायद पता भी नहीं लगा होगा कि योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की पावन क्रीड़ा स्थली वृंदावन में बैठा कोई कथावाचक अपनी डुगडुगी बजाकर उनके नाम पर न केवल पंजाब के लुधियाना में तमाशा लगाकर धर्म की दुकान सजा रहा है बल्कि मथुरा एवं लुधियाना के दो कारोबारियों को जमूरे की तरह नचा भी रहा है।
सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे भगवान बद्री विशाल शायद ही जानते होंगे कि मदारी ने जमूरों के कान में ऐसा कौन सा मंत्र फूंका कि आज मदारी उनका सबकुछ लूटकर भी चैन की बंशी बजा रहा है और जमूरे एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे हैं।
स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि मदारी द्वारा मदहोश किए गए जमूरे अब कोर्ट, कचहरी और जेल के सींखचों तक भागमभाग कर रहे हैं परंतु मिल-बैठकर बात करने को तैयार नहीं है।
माल पर हाथ साफ करने में माहिर मदारी एक दशक से जमूरों को नचा रहा है और जमूरे नाच रहे हैं। पहले छत्र के ‘नीचे’ नाच रहे थे, और अब छत्र के ‘ऊपर’ नाच रहे हैं।
पहले छत्र की शोभायात्रा निकालकर नाच रहे थे लेकिन अब अपना जुलूस निकलवाकर नाच रहे हैं, किंतु इस सबके बीच मदारी अपने धंधे में मशगूल है। वो एक और नई जगह डुगडुगी बजाकर नए जमूरे जुटा रहा है ताकि अपने लिए एक नया चांदी का सिंहासन हासिल कर सके, नया कॉन्ट्रैक्ट साइन कर सके। ऐसा कॉन्ट्रैक्ट जिसमें न वो ब्रोकर है और न पार्टी।
मदारी की मदहोश कर देने वाली फितरत तो देखिए कि इस सब के बावजूद जमूरे उसके एक इशारे पर करोड़ों का लेन-देन कर लेते हैं। सैकड़ों लोगों को साथ लेकर भगवान बद्री विशाल को धोखा दे आते हैं। एक-दूसरे के खिलाफ आपराधिक केस भी दर्ज कराते हैं। लोअर कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के चक्कर भी काटते हैं परंतु मदारी को इस सबमें शामिल नहीं करते जबकि सारे तमाशे का सूत्रधार मदारी ही है।
मदारी मजे ले रहा है, वह लगातार अपनी डुगडुगी बजा रहा है जिससे उठी तरंगें संभवत: जमूरों के सोचने व समझने की शक्ति छीन लेती हैं और इसीलिए जमूरे कुछ कुछ अस्पष्ट सा बुदबुदाते तो हैं परंतु न साफ बोल पा रहे हैं, न कुछ बता पा रहे हैं।
बताते हैं कि कथावाचक मदारी को जब कभी अपनी डुगडुगी की आवाज मंद पड़ती महसूस होती है तो वह इसमें अपनी मां की आवाज को भी मिला लेता है। फिर वात्सल्य की चाशनी में लपेटकर मां इन जमूरों से कहती है… मैं हूं न! तुम क्यों चिंता करते हो। जैसा मैं कहूं, वैसा करते जाओ, तुम्हारा इसी में भला है।
इसे कलियुग का प्रभाव कहें या मदारी की डुगडुगी से निकलने वाली जादुई लय का प्रभाव कि एक ओर जहां सैकड़ों लोग भगवान बद्री विशाल के दरबार में जाकर साढ़े तीन किलो सोने से अधिक का छत्र चढ़ा आते हैं वहीं दूसरी ओर एक जमूरा दूसरे जमूरे को उस कॉन्ट्रैक्ट के बदले एक करोड़ से ऊपर की रकम दे बैठता है, जिस कॉन्ट्रैक्ट पर न कॉन्ट्रैक्ट लेने वाले के साइन हैं और न देने वाले के। और जिसके साइन हैं, उसने सबसे सिर्फ लिया ही लिया है, कभी कुछ दिया नहीं। उस मदारी ने कृष्ण की क्रीड़ा स्थली से लेकर जन्मस्थली तक और फिर पंजाब के लुधियाना से लेकर उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम तक सैकड़ों लोगों को मात्र डुगडुगी बजाकर मजमा लगवाया है।
अब जमूरे बेशक दिल्ली-चंडीगढ़ और मथुरा-वृंदावन के बीच भटक रहे हों लेकिन मदारी का मजमा जारी है। उसकी डुगडुगी बिना रुके बज रही है क्योंकि उसके धर्म का धंधा जमूरों के बिना चल नहीं सकता।
उसकी आवाज अब एक नई जगह गूंज रही है। अदृश्य डोर से बंधे जमूरों से वह पूछ रहा है…हां तो जमूरो, मेरे इशारों पर नाचोगे…जो कहूंगा, वो करोगे… सोने-चांदी के सिंहासन भेंट करोगे… कांट्रेक्ट साइन कराओगे…कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पर भी मेरा नाम तो नहीं लोगे…मेरे एक इशारे पर आयोजन-प्रयोजन करते रहोगे। और अंत में मेरे धर्म के धंधे को धार दोगे तथा उससे अर्जित संपत्ति पर मुझे बिना हील-हुज्जत किए ‘पर्याप्त ब्याज’ तो दोगे।
अब सिर्फ स्वीकृति में सिर हिलाओ और चलते बनो। मुंह से मेरे खिलाफ एक शब्द निकालने का मतलब तुम समझते ही हो, इसलिए समझदार बने रहो और मेरे छत्र की छाया में बने रहो।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी