रविवार, 21 जुलाई 2019

मथुरा में भी है IAS और IPS से लेकर न्‍यायिक अधिकारियों तक की बेशुमार बेनामी संपत्ति

सोनभद्र में जिस जमीन को लेकर 10 लोगों की जान चली गई, वह बिहार कैडर के पूर्व IAS अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा की पत्‍नी और बेटी के नाम थी। उन्‍होंने ही यह जमीन मूर्तिया गांव के प्रधान यज्ञदत्त सिंह भूरिया को बेची।
10 आदिवासी किसानों की जान जाने के बाद अब भले ही सत्ता पक्ष और विपक्ष सक्रिय हुआ हो परंतु सच्‍चाई यह है कि सोनभद्र अकेला ऐसा जिला नहीं है जहां पूर्व या वर्तमान अधिकारियों की बेनामी संपत्तियां फैली हुई हैं, विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा भी ऐसे ही जिलों में शुमार है।
योगीराज भगवान कृष्‍ण की पावन जन्‍मभूमि में तैनात रहे कई IAS और IPS अफसरों की बेशकीमती बेनामी संपत्ति से मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन और बरसाना भरा पड़ा है।
दरअसल, एक ओर जहां मथुरा जनपद की भौगोलिक स्‍थिति इसकी भूमि को मूल्‍यवान बनाती है वहीं दूसरी ओर इसका धार्मिक स्‍वरूप उसमें चार-चांद लगा देता है।
किसी भी भ्रष्‍ट अधिकारी के लिए चूंकि यह जिला अवैध कमाई के तमाम स्‍त्रोत खोलता है इसलिए यहां थोड़े समय की तैनाती भी उसके सारे सपने पूरा कर देती है।
राजस्‍थान और हरियाणा से सटी मथुरा की सीमाएं हर किस्‍म के अपराध एवं अपराधियों को मुफीद बैठती हैं और नोएडा तथा दिल्‍ली तक इसकी काफी कम समय में आसान पहुंच अधिकारियों को आकर्षित करती है।
बात चाहे मथुरा रिफाइनरी से होने वाले तेल के बड़े खेल की हो अथवा हरियाणा से होने वाली शराब की तस्‍करी की। दिल्‍ली से सीधे जुड़े ड्रग्‍स के धंधेबाजों की हो या फिर भारी मात्रा में टैक्‍स की चोरी करके लाए जाने वाले चांदी-सोने की, हर अवैध काम पर अधिकारियों की नजर है और अवैध काम करने वालों की अधिकारियों पर। दोनों जानते हैं कि वह एक-दूसरे के पूरक हैं। किसी का किसी के बिना काम नहीं चलता।
इसीलिए यह माना जाता है कि अधिकांश अधिकारियों के लिए मथुरा की तैनाती किसी दुधारू गाय से कम नहीं होती और ज्‍यादा हाथ-पैर मारे बगैर भी यह उन्‍हें उनकी सोच से परे लाभ दे देती है।
हां, यदि कोई ईमानदार अधिकारी मथुरा आ जाता है तो वह किसी को बर्दाश्‍त नहीं होता। फिर जल्‍द से जल्‍द उसकी यहां से रुखसती के लिए सब एकजुट हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि मथुरा से होने वाली बेहिसाब कमाई केवल उच्‍च अधिकारियों तक सीमित हो, उनके अधीनस्‍थ भी उससे भरपूर लाभान्‍वित होते हैं।
इस बात की पुष्‍टि करने के लिए राधा-कृष्‍ण की इस भूमि में कभी तैनात रहे पीपीएस, पीसीएस सहित कोतवाल, थानेदार और यहां तक कि सिपाहियों की भी कुंडली खंगाली जा सकती है।
शहर की गेटबंद पॉश कॉलोनियों में एक-एक करोड़ रुपए की कीमत वाले इनके कई-कई घर यह समझाने के लिए काफी हैं कि मथुरा नगरी कैसे उनके सपनों को पंख लगाती है।
नेता और न्‍यायिक अधिकारी भी पीछे नहीं
मथुरा जैसे धार्मिक स्‍थान पर अपनी काली कमाई को ठिकाने लगाने में नेता और न्‍यायिक अधिकारी भी पीछे नहीं हैं। नेता तो अधिकारियों से कई कदम आगे हैं। इन लोगों ने अपनी ब्‍लैक मनी का सर्वाधिक हिस्‍सा बड़े-बड़े शिक्षण संस्‍थानों, होटलों और रियल एस्‍टेट में निवेश कर रखा है।
इसे यूं भी समझा जा सकता है कि मथुरा के तमाम शिक्षण संस्‍थान, होटल तथा रियल एस्‍टेट प्रोजेक्‍ट तो नेता एवं अधिकारियों के ही पैसे से चल रहे हैं और इन्‍हें जो चला रहे हैं, वह सिर्फ मुखौटे हैं।
इनके अतिरिक्‍त कई प्रमुख धार्मिक संस्‍थाओं की अकूत संपत्‍ति पर भी प्रभावशाली नेताओं का आधिपत्‍य है और धर्मगुरुओं के रुप में उन पर उन्‍हीं के नुमाइंदे काबिज हैं।
ब्रज के प्रमुख मंदिरों में चल रहे विवादों का अंदरूनी सच यदि पता लगाया जाए तो स्‍पष्‍ट हो जाएगा कि उसके भी मूल में हजारों करोड़ रुपए की चल व अचल संपत्ति ही है, न कि उनके संचालन अथवा रखरखाव का तरीका।
यही कारण है कि अदालतों में लंबित ज्‍यादातर वादों को छद्म वादकारी लंबा खींचते रहते हैं ताकि उनसे किसी न किसी रूप में जुड़े लोगों का मकसद पूरा होता रहे।
बिहारी जी और गिर्राज जी तो सिर्फ बहाना हैं 
ज्‍यादातर लोगों को लगता होगा कि बिहारी जी तथा गिर्राज जी आने वाले बड़े-बड़े नामचीन और हाई प्रोफाइल लोग अपनी धार्मिक भावना के तहत यहां खिंचे चले आते होंगे। कुछ लोग यह भी समझते होंगे कि ऐसे लोग कोई मन्‍नत मांगने अथवा मन्‍नत पूरी होने पर ईश्‍वर का अभार प्रकट करने के लिए आते होंगे ताकि उसकी अनुकंपा बनी रहे लेकिन हकीकत यह नहीं है।
हकीकत यह है कि बिहारी जी, गिर्राज जी, राधारानी और कोकिला वन स्‍थित शनिदेव मंदिर पर आना तो मात्र बहाना है। असली मकसद यहां निवेश की हुई उस काली कमाई पर नजर टिकाए रखना है जो कभी भी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी की कहावत को चरितार्थ कर सकती है।
इस सबके अलावा ब्रजभूमि में किया हुआ निवेश ‘आम के आम और गुठलियों के दाम’ वाली कहावत भी पूरी करता है।
जिन अधिकारियों ने यहां अपनी काली कमाई खपा रखी है, वह धार्मिक यात्रा की आड़ में कई-कई दिन रहकर सुरा-सुंदरी का भरपूर उपयोग करते हैं। इसकी संपूर्ण व्‍यवस्‍था का जिम्‍मा उनके मुखौटे कारोबारी खुशी-खुशी बखूबी उठाते हैं।
सोनभद्र में यदि 10 लोगों की हत्‍या नहीं हुई होती तो शायद ही कभी किसी को पता लगता कि जिस जमीन पर कब्‍जे को लेकर यह खूनी खेल खेला गया, उसकी जड़ में ऐसे किसी शातिर दिमाग आईएएस का हाथ था जो रिटायर होकर अपनी पत्‍नी व पुत्री के सहारे काली कमाई को ठिकाने लगाने का काम कर रहा था।
सोनभद्र हो या मथुरा, इनकी अपनी कुछ खासियतें हैं। यह खासियतें ही अधिकारियों और नेताओं को प्रभावित करती हैं। सोनभद्र सोनांचल है तो मथुरा ब्रजांचल का केन्‍द्र। एक ऐसा केंद्र जिसके चारों ओर असीमित संभावनाएं हैं। वहां आदिवासी हैं तो यहां ब्रजवासी। अधिकारियों और नेताओं का सानिध्‍य सबको सुहाता है। लोग उनके एक इशारे पर स्‍याह को सफेद करने के लिए तत्‍पर रहते हैं। लोगों की यही तत्‍परता अधिकारियों का काम आसान कर देती है।
मथुरा में बढ़ रही बेहिसाब भीड़ और ईश्‍वर के प्रति दिखाई देने वाली अगाध श्रद्धा का कड़वा सच सोनांचल की तरह ब्रजांचल में सामने आए, इससे पहले बेहतर होगा कि सरकार समय रहते कोई ठोस कदम उठा ले अन्‍यथा लकीर पीटने से यह सिलसिला थमने वाला नहीं है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

योगी सरकार ईमानदार तो “बेईमान और भ्रष्‍ट” अफसरों को कमान कैसे?

19 मार्च 2017 को गोरक्षनाथ पीठ (गोरखनाथ मंदिर) के महंत योगी आदित्‍यनाथ ने मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके बाद योगी आदित्‍यनाथ देश में सबसे बड़े प्रदेश के 21वें मुख्‍यमंत्री बने। योगी सरकार अब पांच साल के अपने कुल कार्यकाल में से दो साल और चार महीनों का कार्यकाल पूरा कर चुकी है।
उत्तर प्रदेश में अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार का कामकाज संभालने के साथ ही योगी आदित्‍यनाथ ने कहा था कि वह अखिलेश सरकार में पूरी तरह पटरी से उतर चुकी कानून-व्‍यवस्‍था को तो पटरी पर लाएंगे ही, साथ ही भ्रष्‍टाचार के मामले में भी जीरो टॉलरेंस की नीति अख्तियार करेंगे।
आज लगभग ढाई साल बाद भी यूपी की कानून-व्‍यवस्‍था को आइना दिखाने के लिए कल सोनभद्र और संभल में हुई हत्‍याएं काफी हैं। हालांकि हर सरकार की तरह योगी सरकार और उसके अफसरान आंकड़ों को अपने पक्ष में बताते हुए कानून-व्‍यवस्‍था दुरुस्‍त होने का दावा कर रहे हैं।
अपराधों के ग्राफ को आंकड़ों की बाजीगरी से पेश करना प्रत्‍येक सरकार और हर अफसर की फितरत रही है इसलिए इस पर जाने की बजाय यह पूछा जाना ज्‍यादा मुनासिब होगा कि ईमानदार योगी सरकार में बेईमान व भ्रष्‍ट अफसरों को जिले व मंडलों की कमान कैसे सौंपी जा रही है?
कैसे पिछले 28 महीनों से लेकर आज तक वो आईएएस और आईपीएस अफसर लगातार अच्‍छी-अच्‍छी तैनाती पाते आ रहे हैं जिनके आचरण की जानकारी न सिर्फ समूची ब्‍यूरोक्रेसी को है बल्‍कि आम जनता के बीच भी उनका भ्रष्‍टाचार चर्चित है।
ज्‍यादा दूर न जाया जाए तो मथुरा में ही तैनात रहे कई ऐसे आईएएस और आईपीएस अफसर जो अपने जबर्दस्‍त भ्रष्‍टाचार के लिए शोहरत प्राप्‍त थे, कंटिन्‍यू चार्ज पर हैं जबकि ईमानदार अधिकारियों को साइड लाइन कर दिया गया है।
इन अधिकारियों की तैनाती से ऐसे सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर किसी अधिकारी की योग्‍यता का आंकलन सरकारें किस आधार पर करती हैं क्‍योंकि इनमें से कई अधिकारी तो वो हैं जो मायावती सरकार की गुडबुक में भी थे और अखिलेश सरकार की भी।
तब विपक्ष की राजनीति करने वाली भाजपा के नेता कहते थे कि एसएसपी तथा डीएम से लेकर थानों व तहसीलों के चार्ज बाकायदा बोली लगाकर बिकते हैं और उसके बाद भी हर महीने अवैध कमाई का हिस्‍सा लखनऊ तक पहुंचाया जाता है।
मथुरा में डीएम रहे एक ऐसे ही अधिकारी का कारनामा तब काफी सुर्खियों में रहा था जब उन्‍होंने आबकारी अधिकारी को लखनऊ जाते वक्‍त बीच रास्‍ते से वापस बुलाकर उसकी सरकारी गाड़ी में रखे नोटों से भरे ब्रीफकेस को यह कहते हुए छीन लिया कि जब मैं हर महीने हिसाब करने जाता हूं तो तुम अलग से यह कैसे कर सकते हो। 
आश्‍चर्य की बात यह है कि वही अधिकारी योगी सरकार में भी एक महानगर का डीएम बना बैठा है।
इसी प्रकार मथुरा में तैनाती के दौरान कमाए हुए करोड़ों रुपयों से यहीं बेनामी संपत्ति खरीदने वाले आईपीएस अधिकारी भी एक बड़े पर्यटक स्‍थल के एसएसपी बने हुए हैं। 
ये तो चंद उदाहरण हैं अन्‍यथा जिस जवाहर बाग कांड में पुलिस ने अपने एक जिम्‍मेदार पीपीएस अफसर और एक थानेदार को खो दिया, उसकी भी पटकथा कुछ भ्रष्‍ट उच्‍च अधिकारियों ने ही लिखी थी। उन्‍होंने ही तत्‍कालीन सरकार की नाक के बाल रामवृक्ष यादव को पूरे करीब ढाई साल संरक्षण दिया।
मथुरा की जिला जेल में कुख्‍यात अपराधियों के बीच हुई गोलीबारी को शायद ही कोई भूला होगा क्‍योंकि इस गोलीबारी में एक बदमाश की हत्‍या के बाद का घटनाक्रम चौंकाने वाला था।
पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्‍यात अपराधी ब्रजेश मावी की हत्‍या के आरोपी राजेश टोंटा और मावी गुट के बीच हुई इस गैंगवार में राजेश टोंटा भी घायल हुआ था लेकिन राजेश टोंटा को अगले दिन (18 जनवरी 2015) तब स्‍वचालित हथियारों द्वारा गोलियों से भून डाला जब उसे पुलिस अभिरक्षा में एंबुलेंस से इलाज के लिए आगरा ले जाया जा रहा था।
मावी की हत्‍या के आरोपी हाथरस निवासी राजेश टोंटा की नेशनल हाईवे पर हुई हत्‍या ने इसलिए तमाम सवाल खड़े किए क्‍यों कि राजेश टोंटा को आगरा ले जाने वाली पुलिस की टीम का नेतृत्‍व तत्‍कालीन एसएसपी खुद कर रही थीं।
संभवत: इसीलिए राजेश टोंटा की पत्‍नी कनक शर्मा ने अपने पति की हत्‍या का आरोप मथुरा की तत्‍कालीन महिला एसएसपी पर लगाया। कनक शर्मा ने इस मामले में बाकायदा मथुरा के थाना फरह को इस आशय की तहरीर दी। तहरीर के मुताबिक राजेश टोंटा की हत्‍या का सौदा एसएसपी ने 3 करोड़ की मोटी रकम लेकर किया था। यही अधिकारी योगी सरकार में लंबे समय तक मेरठ की एसएसपी रहीं और तभी हटाई गईं जब निजी कारणों से उन्‍होंने चार्ज छोड़ने की इच्‍छा जताई। 
कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली में काले तेल के खेल को अपनी तैनाती के दौरान संरक्षण देने वाले पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी तो योगीराज में भी चार्ज पर हैं परंतु जिन्‍होंने तेल माफिया के खिलाफ हरसंभव सख्‍त कदम उठाया, वो अपनी ईमानदारी का बोझ ढोते फिर रहे हैं।
ब्‍यूरोक्रेट्स की तैनाती में राजनीतिक हस्‍तक्षेप अब कोई ऐसी बात नहीं रह गई जिसे जानना बाकी हो। सब जानते हैं कि सत्ता के गलियारों से निकटता ही अधिकांशत: ट्रांसफर-पोस्‍टिंग का आधार होता है।
लोग यह भी जानते हैं कि क्‍यों हर पार्टी अपने शासनकाल की कानून-व्‍यवस्‍था को पूर्ववर्ती सरकारों से बेहतर बताती है।
जिस तरह आज योगी आदित्‍यनाथ की सरकार प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था को पहले से बेहतर होने का दावा कर रही है, ऐसा ही दावा मायावती और अखिलेश भी अपने-अपने समय में करते रहे थे किंतु सच्‍चाई यह है कि स्‍थिति जस की तस है।
स्‍थिति सुधरेगी भी कैसे, जब किसी एक पार्टी कार्यकर्ता से विवाद के कारण या किसी पदाधिकारी अथवा मंत्री के इशारों पर न चल पाने के कारण अच्‍छे अधिकारी को हटा दिया जाता है और भ्रष्‍ट अधिकारी इसलिए चार्ज पर बने रहते हैं क्‍योंकि उन्‍हें लखनऊ का वरदहस्‍त प्राप्‍त होता है।
माना कि योगी आदित्‍यनाथ सरकार के मुखिया हैं…पूरी की पूरी सरकार नहीं, परंतु इससे उनकी जिम्‍मेदारी कम नहीं हो जाती।
प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था में यदि वाकई योगी सरकार आमूल-चूल परिवर्तन लाना चाहती है तो उसे न सिर्फ अधिकारियों की तैनाती में राजनीतिक हस्‍तक्षेप पूरी तरह समाप्‍त करना होगा बल्‍कि जिस प्रकार अक्षम अधिकारी एवं कर्मचारियों को शॉर्टलिस्‍ट करके उन्‍हें सेवामुक्‍त किया जा रहा है, उसी प्रकार भ्रष्‍ट अधिकारियों को भी चिन्‍हित कर उन्‍हें ब्‍लैक लिस्‍ट करना होगा अन्‍यथा आंकड़ों के बल पर भले ही बेहतर कानून-व्‍यवस्‍था का ढिंढोरा पीट लिया जाए किंतु जमीनी हकीकत नहीं बदलने वाली।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

इस ‘झाड़ू’ को देखा तो ऐसा लगा, जैसे मथुरा का ख्‍वाब…जैसे यमुना की आस…

कल संसद परिसर में अपनी सांसद परम आदरणीय, प्रात: स्‍मरणीय हे-मा-जी को ‘झाड़ू’ लगाते देखा। यकीन मानो…कलेजा मुंह को आ गया।
मन में एक हूक से उठी, लेकिन यह सोचकर बैठ गई कि क्‍या-क्‍या न किया इश्‍क में क्‍या-क्‍या न करेंगे। बुढ़ापे का इश्‍क वाकई बहुत शिद्दत से निभाया जाता है।
यदि आप ये इश्‍क-मुश्‍क या प्‍यार-मोहब्‍बत वाला ”साक्षी मिश्रा टाइप” कुछ समझ रहे हैं तो गलत समझ रहे हैं। ये साक्षी भाव वाला इश्‍क है।
यहां उस राजनीति से इश्‍क की बात हो रही है जो ”लगाए न लगे और बुझाए न बुझे” जैसा होता है। राजनीति से इश्‍क की लगन जब लग जाती है तो लोग झाड़ू क्‍या, झंडू बाम भी उठाने से परहेज नहीं करते।
माफ कीजिए यदि अब आप ऐसा समझ बैठे हैं कि हे-मा-जी की तरह किसी प्रोडक्‍ट का विज्ञापन किया जा रहा है तो एकबार फिर गलत समझ रहे हैं।
यह तो उस बात को समझाने की कोशिश भर है जैसे मलाइका अरोड़ा ने यह बताकर समझायी थी कि ”मैं झंडू बाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए”। कहने का आशय है कि झंडू बाम मतलब ”मरहम”, दर्द की दवा।
हे-मा-जी तो राजनीति से इश्‍क की खातिर पहले भी गेहूं की फसल काटकर वोटों की फसल सफलता पूर्वक काट चुकी हैं और ट्रैक्‍टर चलाकर ब्रजवासियों को “चलता” कर चुकी हैं।
खैर, हम पुन: संसद परिसर की झाड़ू पर लौटते हैं जिसे हे-मा-जी ने इतने कलात्‍मक अंदाज में लगाया कि देखने वाले देखते रह गए। कुछ तो अपने आपको त्‍वरित टिप्‍पणी करने से रोक नहीं पाए।
दरअसल, हे-मा-जी के झाड़ू लगाने का अंदाज ही कुछ ऐसा था कि उसकी लय लोगों को बहाकर स्‍वत: ही टि्वटर तक खींच ले गई और उन्‍होंने वहां हे-मा-जी के सम्मान में यथासंभव अपने उद्-गार परोस दिए।
खुदा कसम, झाड़ू लगाने का इतना कलात्‍मक अंदाज शायद ही कभी किसी ने देखा हो। क्‍या मजाल की करीने के साथ लंबे से डंडे में लिपटी उस झाड़ू की एक भी सींक जमीन को छू गई हो। हवा में तैर रही थी हे-मा-जी की झाड़ू। आश्‍चर्य ये कि हवा में तैरते-तैरते ही उसने ”अदृश्‍य कूड़ा” पूरी तरह साफ कर दिया।
हे-मा-जी के पड़ोस में झाड़ू लगा रहे एक युवा केंद्रीय मंत्री की झाड़ू के पास तो कभी-कभी एक कागज का गोला फुदक-फुदक कर दृश्‍यमान हो रहा था किंतु हे-मा-जी की झाड़ू के नीचे का पत्‍थर ‘शर्म’ से ‘लाल’ पड़ा था।
आंखों पर गहरे काले शीशों वाला गॉगल चढ़ाकर और कंधे पर क्रॉस करके टांगे गए ग्रे कलर के हैंड बैग के साथ जिस रुतबे के साथ हे-मा-जी झाड़ू को हवा दे रही थीं, वो काबिल-ए-तारीफ था।
हे-मा-जी की अदा पर फिदा मथुरा की जनता को कल निश्‍चित ही अपने इस निर्णय पर गौरव महसूस हुआ होगा कि उन्‍होंने लगातार दूसरी बार हे-मा-जी को संसद पहुंचाया और संसद परिसर को झाड़ने का जो काम पिछले कार्यकाल में उनसे अधूरा रह गया था, वह करने का अवसर दिया।
सुना है कि संसद परिसर में आयोजित इस झाड़ू प्रतियोगिता के तहत हे-मा-जी द्वारा प्रस्‍तुत झाड़ू लगाने की इस अभिनव कला से प्रभावित होकर मथुरा की जनता ने ठान लिया है कि वो मथुरा से हे-मा-जी की हैट्रिक लगवाकर रहेंगे।
बेशक हे-मा-जी 2019 के लोकसभा चुनाव को अपना अंतिम चुनाव घोषित कर चुकी हैं किंतु जनता को यकीन है कि वो अधूरे काम पूरे करने की खातिर जनता जनार्दन की मांग सहर्ष स्‍वीकार करेंगी।
हे-मा-जी भी जानती हैं संसद परिसर तो उनकी कलात्‍मक और चमत्‍कारिक झाड़ू से साफ हो गया किंतु कृष्‍ण की कालिंदी अब तक वो कला देखने को तरस रही है जिससे उसका कलुष धुल सके।
ब्रज की रज भी उनके ”कर कमलों” की प्रतीक्षा कर रही है ताकि वो साफ होकर उड़ सके और लोग फिर से दोहरा सकें कि-
मुक्‍ति कहे गोपाल से मेरी मुक्‍ति बताय। 
ब्रज रज उड़ मस्‍तक लगे तो मुक्‍ति मुक्‍त है जाए।। 
बहरहाल, अब शायद ही किसी को इस बात में कोई शक रह गया हो कि हे-मा-जी झाड़ू लगाने की कला में न सिर्फ पारंगत हैं बल्‍कि झाड़ू फेरने में भी माहिर हैं।
तभी तो मथुरा से कोई बाहरी प्रत्‍याशी दो बार लोकसभा चुनाव जीतने का जो काम 2014 तक नहीं कर पाया था, वो हे-मा-जी ने 2019 में करके दिखा दिया।
वोटों की ऐसी झाड़ू फेरी कि पहली बार रालोद के युवराज को कहीं का नहीं छोड़ा और दूसरी बार ”महागठबंधन” के कुंवर साहब को धूल चटा दी।
चमत्‍कार को नमस्‍कार करना दुनिया का दस्‍तूर है इसलिए हे-मा-जी को भी नमस्‍कार करना बनता है।
वैसे हे-मा-जी, आपके लिए क्‍या दिल्‍ली और क्‍या मथुरा। ‘सबै भूमि गोपाल की यामे अटक कहां। जाके मन में अटक है सोई अटक रहा।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गोवर्धन की जनता का सवाल: जब दानघाटी मंदिर के घोटालेबाज जेल में तो मुकुट मुखारबिंद के रिसीवर बाहर क्‍यों ?

मथुरा। ऐसा लगता है कि गोवर्धन के प्रसिद्ध मंदिरों में खुली लूट की छूट इरादतन दी जा रही है क्‍योंकि दानघाटी मंदिर में हुए करोड़ों रुपए के घपले के बावजूद इसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा।
ऐसी आशंका के पीछे मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी को अब तक लगभग उसी प्रकार के असीमित अधिकार प्राप्‍त होना है जिस प्रकार दानघाटी मंदिर के सहायक प्रबंधक डालचंद चौधरी को उसके जेल जाने से पहले तक प्राप्‍त थे।
दानघाटी मंदिर में हुए करीब 14 करोड़ रुपए के घपले की सुनवाई करते हुए न्‍यायिक अधिकारी अमर सिंह ने अपने पूर्ववर्ती न्‍यायिक अधिकारी पर बड़ी तल्‍ख टिप्‍पणी की है।
पीठासीन अधिकारी अमर सिंह के अनुसार दानघाटी मंदिर गोवर्धन में आज सामने आए करोड़ों रुपए के घोटाले की नींव 2014 में तत्‍कालीन पीठासीन अधिकारी के उस निर्णय से ही रख दी गई थी जिसमें उन्‍होंने डालचंद चौधरी को असीमित अधिकार दे दिए।
वर्तमान अधिकारी अमर सिंह का कहना है कि तत्‍कालीन अधिकारी द्वारा बोया गया अनियमितताओं का बीज ही आज करीब 14 करोड़ रुपए से अधिक की हेराफेरी के रूप में सामने खड़ा है।
दानघाटी मंदिर की ही भांति मुकुट मुखारबिंद मंदिर का मामला भी सिविल जज सीनियर डिवीजन चतुर्थ के न्‍यायालय में लंबित है।
इसके अलावा मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए एक शिकायत गत दिनों समाज के ही लोगों ने की थी।
दसविसा (गोवर्धन) निवासी राधारमन और प्रभुदयाल शर्मा ने मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप लगाया।
इन आरोपों की जांच एसडीएम गोवर्धन नागेन्‍द्र कुमार सिंह द्वारा की गई और उन्‍होंने प्रथम दृष्‍ट्या रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर लगाए गए आरोपों को सही पाया।
दरअसल, न्‍यायिक व्‍यवस्‍था के अनुसार रिसीवर को प्रत्‍येक दो माह में मंदिर का हिसाब-किताब पूरे स्‍टेटमेंट और बिल-बाउचर सहित न्‍यायालय के समक्ष प्रस्‍तुत करना अनिवार्य है।
इसके अलावा 10 हजार रुपए से ऊपर के सभी खर्चों के लिए भी न्‍यायालय की अनुमति आवश्‍यक है।
एसडीएम गोवर्धन नागेन्‍द्र कुमार सिंह ने अपनी जांच आख्‍या में लिखा है कि मंदिर के रिसीवर द्वारा भूमि क्रय करने, फूल बंगले और पेंशन आदि के संबंध में न्‍यायालय की अनुमति लेने का कोई सबूत पेश नहीं किया गया। जिससे परिलक्षित होता है कि मंदिर के रिसीवर ने अपने कर्तव्‍यों का निर्वहन न करते हुए घोर लापरवाही पूर्वक मंदिर की संपत्ति का दुरुपयोग किया।
इन हालातों में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि क्‍या डालचंद चौधरी की तरह रमाकांत गोस्‍वामी को भी किसी स्‍तर से संरक्षण प्राप्‍त है और इसीलिए उन्‍हें मुड़िया पूर्णिमा जैसे पर्व पर भी सभी अधिकारों सहित मंदिर के रिसीवर का दायित्‍व सौंप रखा है।
गौरतलब है कि गोवर्धन का मुड़िया पूर्णिमा मेला देश ही नहीं विदेशों तक में मशहूर है और इस अवसर पर देश-विदेश से लाखों की तादाद में लोग गोवर्धन आते हैं। इसके लिए मंदिरों की भेंट-पूजा का ठेका अलग से उठाया जाता है क्‍योंकि साल में सर्वाधिक आमदनी इन्‍हीं दिनों में होती है।
इस चार दिवसीय मेले की भारी कमाई को देखते हुए ”दानघाटी मंदिर” की व्‍यवस्‍थाएं तो न्‍यायपालिका के स्‍तर से की गई हैं किंतु ”मुकुट मुखारबिंद मंदिर” की व्‍यवस्‍थाएं पहले की ही तरह ”रिसीवर” के हाथों में हैं।
इन हालातों में यदि रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी की मनमानी पर समय रहते अंकुश नहीं लगा तो दानघाटी मंदिर की तरह मुकुट मुखारबिंद मंदिर की संपत्ति का भी बड़ा घपला सामने आने की पूरी संभावना है।
शायद यही कारण है कि शिकायकर्ताओं के अलावा गोवर्धन के धर्म परायण लोग, आम जनता और श्रद्धालु भी यह पूछने लगे हैं कि जब एक ही प्रवृत्ति के दो अपराध सामने हैं और आरोप भी एक जैसे हैं तो मुकुट मुखारबिंद के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी जेल से बाहर कैसे हैं जबकि दानघाटी मंदिर के सहायक प्रबंधक डालचंद चौधरी सलाखों के पीछे भेजे जा चुके हैं।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

कुछ न्‍यायाधीशों की नीयत पर सवाल उठाती ब्रज के मंदिरों की अकूत संपत्ति

ब्रज के प्रमुख मंदिरों की अकूत संपत्ति का मनमाने तरीके से इस्‍तेमाल करने के मामले सामने आने पर कुछ न्‍यायाधीशों की नीयत को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।
सबसे पहला सवाल तो खुद एक ऐसे न्‍यायाधीश ने ही उठाया है जिसकी अदालत में करोड़ों रुपए के घोटाले का केस चल रहा है।
गोवर्धन के दानघाटी मंदिर से जुड़े इस मामले में मंदिर के ही सहायक प्रबंधक डालचंद चौधरी पर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप है। डालचंद चौधरी फिलहाल मथुरा जिला जेल में बंद है और जमानत पाने की कोशिश कर रहा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2005 में एक व्‍यवस्‍था के तहत तत्‍कालीन न्‍यायिक अधिकारी ने राधाचरन शर्मा को दानघाटी मंदिर (गोवर्धन) का प्रबंधक और डालचंद चौधरी को सहायक प्रबंधक नियुक्‍त किया था। राधाचरन शर्मा और डालचंद चौधरी की नियुक्‍ति तब मंदिर के ”दैनिक वेतनभोगी” कर्मचारी के रूप में की गई थी।
वर्ष 2014 में एक ”कथित” शिकायती पत्र के आधार पर तत्‍कालीन अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन ने राधाचरन शर्मा की नियुक्‍ति रद्द कर समस्‍त वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार डालचंद चौधरी को सौंप दिए। तब से लेकर अब करोड़ों रुपए की हेराफेरी के मुकद्दमे में जेल जाने से पहले तक डालचंद चौधरी असीमित अधिकारों के साथ मंदिर का प्रबंधन देख रहे थे।
फिलहाल यह मामला अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन अमर सिंह की अदालत में लंबित है।
क्‍या कहा वर्तमान न्‍यायिक अधिकारी ने 
इसी मामले की सुनवाई करते हुए दो दिन पूर्व वर्तमान न्‍यायिक अधिकारी अमर सिंह ने अपने अपने पूर्ववर्ती न्‍यायिक अधिकारी पर बड़ी तल्‍ख टिप्‍पणी की है।
पीठासीन अधिकारी अमर सिंह के अनुसार दानघाटी मंदिर गोवर्धन में आज सामने आए करोड़ों रुपए के घोटाले की नींव 2014 में तत्‍कालीन पीठासीन अधिकारी के उस निर्णय से ही रख दी गई थी जिसमें उन्‍होंने डालचंद चौधरी को असीमित अधिकार दे दिए।
वर्तमान अधिकारी अमर सिंह का कहना है कि तत्‍कालीन अधिकारी द्वारा बोया गया अनियमितताओं का बीज ही आज 13 करोड़ रुपए से अधिक की हेराफेरी के रूप में सामने खड़ा है।
एक न्‍यायिक अधिकारी द्वारा ही अपने पूर्ववर्ती न्‍यायिक अधिकारी के निर्णय पर उठाए गए गंभीर सवालों का सच कभी सामने आ पाएगा या नहीं, यह कहना तो मुश्‍किल है अलबत्‍ता एक बात तय है कि गोवर्धन के दानघाटी मंदिर सहित मुकुट मुखारबिंद मंदिर, बरसाना के लाड़ली (राधारानी) मंदिर और वृंदावन के विश्‍व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर की अकूत संपत्ति को सुनियोजित तरीके से हड़पने की साजिश किसी न किसी स्‍तर से जरूर की जा रही है।
बताया जाता है कि दानघाटी मंदिर के करोड़ों रुपए का मनमाना इस्‍तेमाल करने संबंधी मामला सामने आने से ठीक पहले तक सहायक प्रबंधक डालचंद चौधरी की कुछ न्‍यायिक अधिकारियों से निकटता न सिर्फ मथुरा न्‍यायपालिका से जुड़े अधिकारी एवं कर्मचारियों बल्‍कि अधिवक्‍ताओं तथा जनसामान्‍य के बीच भी खासी चर्चित थी।
इस चर्चा ने तब और तूल पकड़ा जब एक तत्‍कालीन न्‍यायिक अधिकारी के घरेलू कार्यक्रम का जिम्‍मा उनके गृह जनपद में जाकर डालचंद चौधरी ने उठाया। इस कार्यक्रम में तब मथुरा से भी कई अधिकारी व कर्मचारी वहां पहुंचे थे।
मुकुट मुखारबिंद मंदिर का विवाद 
गोवर्धन में मानसी गंगा के किनारे स्‍थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर भी भारी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हैं। इन आरोपों को जांच के उपरांत प्रथमदृष्‍या सही पाया गया है। शिकायतकर्ता दसविसा (गोवर्धन) निवासी राधारमन और प्रभुदयाल के अनुसार रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी ने ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों रुपए का हेरफेर किया है।
बांके बिहारी मंदिर में हो रहा निर्माण कार्य भी चर्चा में
वृंदावन के विश्‍व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में इन दिनों चल रहा निर्माण कार्य भी गोवर्धन की तरह ही वित्तीय अनियमितताओं को लेकर चर्चा में है।
बताया जाता है कि बांके बिहारी मंदिर के प्रांगण को पहले से अधिक चौड़ा करने के लिए करोड़ों रुपए अवमुक्‍त किए जा रहे हैं।
उल्‍लेखनीय है कि इस मंदिर की प्रशासनिक व्‍यवस्‍था का जिम्‍मा भी एक न्‍यायिक अधिकारी के पास है।
मंदिर से जुड़े लोगों और भक्‍तों का कहना है कि मंदिर में जो निर्माण कार्य चल रहा है और जितना कार्य होना है, उसे देखते हुए अवमुक्‍त की जा रही धनराशि बहुत अधिक है। बताया जाता है इस कार्य को पूरा करने के लिए 31 जुलाई का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है इसलिए फिलहाल तो लोग दबी जुबान से ही इसमें अनियमितता होने की बात कह रहे हैं किंतु कार्य पूर्ण हो जाने पर इसकी शिकायत करने का मन बना चुके हैं।
दरअसल, बात चाहे गोवर्धन के दानघाटी मंदिर की हो या मुकुट मुखारबिंद मंदिर की, बरसाना के राधारानी मंदिर की हो या वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर की।
बताया जाता है कि Braj के इन मंदिरों के पास सैकड़ों करोड़ रुपए की संपत्ति है। यदि अचल संपत्ति की बात करें तो यह हजारों करोड़ हो सकती है।
इस अकूत संपत्ति पर यूं तो बहुत पहले से विभिन्‍न लोगों की नजर रही है और समय-समय पर ये लोग एक्‍सपोज भी हुए हैं परंतु अब जबकि इनसे जुड़े न्‍यायिक अधिकारी ही दूसरे न्‍यायिक अधिकारियों पर सवाल उठा रहे हैं तो जाहिर है कि इस पूरे खेल में सिर्फ प्रबंध तंत्र ही शामिल नहीं है।
श्राइन बोर्ड के गठन का विरोध क्‍यों 
कुछ समय से मथुरा-वृंदावन के प्रमुख मंदिरों का जिम्‍मा श्राइन बोर्ड का गठन कर उसके सुपुर्द किए जाने की बात उठती रही है। जब-जब यह बात जोर पकड़ती है तब-तब उसका पुरजोर विरोध भी शुरू हो जाता है।
ऐसे में क्‍या यह आशंका सही साबित नहीं होती कि एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत श्राइन बोर्ड के गठन का विरोध किया जाता है ताकि मंदिरों की अकूत संपत्ति पर बारी-बारी से काबिज रहने का सिलसिला चलता रहे।
दानघाटी मंदिर के प्रबंधक पद हेतु नियुक्‍ति के लिए 20 लोगों का अदालत को प्रार्थना पत्र देना यह समझने के लिए काफी है कि आखिर क्‍यों ”इतने लोगों” की इस पद में इतनी रुचि है।
बाहर आने लगी सड़ांध की दुर्गन्‍ध 
न्‍यायपालिका में भ्रष्‍टाचार की बात यूं पहले भी उठती रही है और जिला स्‍तर पर व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार से आमजन के साथ-साथ वो न्‍यायिक अधिकारी भी आजिज आ चुके हैं जो अपना काम नेकनीयत व निष्‍ठा के साथ करते हुए पीड़ित पक्ष को न्‍याय दिलाने की कोशिश में लगे रहते हैं किंतु अब इस भ्रष्‍टाचार की सड़ांध समूचे वातावरण को प्रदूषित करती दिखाई देती है।
पहले तो जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश रंजन गोगोई और फिर उच्‍च न्‍यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ के न्‍यायाधीश रंगनाथ पांडेय द्वारा सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर न्‍यायपालिका में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार, भाई-भतीजावाद व वंशवाद सहित कॉलेजियम सिस्‍टम पर सवाल उठाते हुए सीधे हस्‍तक्षेप की मांग की गई है, तब से न्‍यायपालिकाओं में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार एक बड़ा मुद्दा बनने लगा है।
तीर्थनगरी मथुरा के मंदिरों की संपत्ति पर सबकी निगाह 
जहां तक सवाल योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली मथुरा के मंदिरों की संपत्ति का है तो उस पर सबकी निगाह रहती है।
यही कारण है कि इन मंदिरों के विवाद पहले तो न्‍यायालयों तक और फिर न्‍यायालयों से सड़क पर आकर बिखरते रहे हैं।
दानघाटी मंदिर में हुई करोड़ों रुपए की अनियमितता को एक न्‍यायिक अधिकारी द्वारा ही अपने पूर्ववर्ती न्‍यायिक अधिकारी के निर्णय की देन बताना यह जाहिर करता है कि भांग किसी एक पात्र में नहीं, पूरे कुएं में घुल चुकी है और यदि समय रहते इसका इलाज नहीं किया गया तो ‘ब्रजवासियों’ के साथ-साथ उनके ‘आराध्‍य’ भी सबकुछ लुटते हुए देखेंगे लेकिन कर कुछ नहीं पाएंगे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में व्‍याप्‍त परिवारवाद, वंशवाद एवं जातिवाद पर उठाए गंभीर सवाल, पीएम को लिखा 3 पन्‍नों का पत्र

उच्‍च न्‍यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ के न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री को बाकायदा पत्र लिखकर उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय में व्‍याप्‍त विसंगतियों तथा कॉलेजियम समिति की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
कल 01 जुलाई 2019 को ही प्रेषित अपने पत्र में न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय को भी राजनीति की ही भांति जातिवाद एवं वंशवाद से बुरी तरह ग्रसित बताते हुए लिखा है कि यहां न्‍यायाधीशों के परिवार का सदस्‍य होना ही अगला न्‍यायाधीश होना सुनिश्‍चित करता है।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री को लिखा है कि प्रत्‍येक प्रशासनिक अधिकारी को सेवा में आने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना होता है और अधीनस्‍थ न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों को भी अपने चयन से पहले प्रतियोगी परीक्षाओं में योग्‍यता सिद्ध करनी होती है किंतु उच्‍च न्‍यायालयों एवं सर्वोच्‍च न्‍यायालय में नियुक्‍ति के लिए कोई निश्‍चित मापदंड नहीं है। यहां नियुक्‍ति पाने की एकमात्र प्रचलित कसौटी है परिवारवाद तथा जातिवाद।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने अपने पत्र से प्रधानमंत्री को अवगत कराया है कि उन्‍होंने 34 वर्षों के सेवाकाल में कई ऐसे न्‍यायाधीश देखें हैं जिनके पास सामान्‍य विधिक ज्ञान का भी अभाव था और उनका अपने क्षेत्र में कोई अध्‍ययन तक नहीं था।
जस्‍टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम को लिखा है कि जिन्‍हें न्‍यायप्रक्रिया की सामान्‍य सी जानकारी भी नहीं होती परंतु वो यदि कॉलेजियम समिति के ‘निकट’ होते हैं तो उन्‍हें उनकी ‘मात्र इसी योग्‍यता’ के आधार पर न्‍यायाधीश नियुक्‍त करा दिया जाता है।
जस्‍टिस रंगनाथ ने पत्र में गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि न्‍यायाधीश की कुर्सी पर अयोग्‍य लोगों के रहते कार्य का निष्‍पादन निष्‍पक्ष तरीके से कैसे होता होगा, यह स्‍वयं में विचारणीय है।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने देश को हिला देने वाली जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री को लिखा है कि उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों की चयन प्रक्रिया बंद कमरों में चाय की दावत पर वरिष्‍ठ न्‍यायाधीशों की पैरवी तथा पसंद के आधार पर की जाती है, न कि किसी योग्‍यता के आधार पर। यहां गोपनीयता की आड़ में पारदर्शिता को ताक पर रख दिया जाता है और नियुक्‍ति प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही नाम सार्वजनिक किए जाते हैं।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने लिखा है कि न्‍यायिक चयन आयोग की स्‍थापना के प्रस्‍ताव से पूरे देश को न्‍यायपालिकाओं में पारदर्शिता के साथ नियुक्‍तियों की आशा जगी थी किंतु सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्‍तक्षेप बताकर असंवैधानिक घोषित कर दिया।
दरअसल, न्‍यायिक चयन आयोग की स्‍थापना से न्‍यायाधीशों को अपने पारिवारिक सदस्‍यों की नियुक्‍ति में बाधा आती और इसीलिए उन्‍होंने केंद्र सरकार के इस प्रस्‍ताव को खारिज करने में अति सक्रियता बरती।
जस्‍टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम को लिखा है कि चाहे सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों का विवाद मीडिया के सामने आने का प्रकरण हो अथवा हितों के टकराव का मुद्दा और सुनने के बजाय चुनने के अधिकार का विवाद, इस सबसे अंतत: न्‍यायपालिका की गुणवत्ता अथवा अक्षुण्‍णता लगातार संकट में पड़ रही है।
जस्‍टिस रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि न्‍यायसंगत लेकिन कठोर निर्णय लेकर वह न्‍यायपालिका की गरिमा बचाने का प्रयास करें जिससे भविष्‍य में साधारण पृष्‍ठभूमि से आया हुआ कोई व्‍यक्‍ति भी अपनी योग्‍यता, परिश्रम एवं निष्‍ठा के बल पर भारत का चीफ जस्‍टिस बन सके।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया यह पत्र यूं तो हर उस व्‍यक्‍ति की पीड़ा को प्रकट करता है जो सिस्‍टम के सामने किसी न किसी स्‍तर पर आकर हार जाता है परंतु इसके निहितार्थ बहुत गहरे हैं।
जस्‍टिस रंगनाथ पांडेय तो इसी 04 जुलाई को रिटायर होने जा रहे हैं परंतु उनके सवाल देश की चरमराती न्‍याय व्‍यवस्‍था का तब तक पीछा करेंगे जब तक योग्‍यता के आधार पर नियुक्‍तियों का मुकम्‍मल इंतजाम नहीं कर लिया जाता।
कौन नहीं जानता कि आज सर्वोच्‍च न्‍यायालय से लेकर उच्‍च न्‍यायालयों और जिला अदालतों में भी भ्रष्‍टाचार का बोलबाला है। न्‍यायपालिकाओं की चौखट पर न्‍याय की उम्‍मीद खत्‍म हो जाने के अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं।
शायद यही कारण है कि कोर्ट की अवमानना का भय समाप्‍त होता जा रहा है और सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों को भी अपनी बात रखने के लिए मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा है।
न्‍यायपालिका तक पहुंचने से पहले मीडिया ट्रायल की परंपरा संभवत: न्‍याय से उठ चुकी उम्‍मीद का ही परिणाम है और मुख्‍य न्‍यायाधीश द्वारा न्यायपालिका में शीर्ष स्तर पर करप्शन को रोकने के लिए भ्रष्‍ट अधिकारियों को निकाल बाहर करने का पीएम से आग्रह करना इसी की परिणति।
मुख्‍य न्‍यायाधीश भी लिख चुके हैं प्रधानमंत्री को पत्र 
गत दिनों चीफ जस्‍टिस रंजन गागेई ने भी प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि न्यायपालिका में शीर्ष स्तर पर करप्शन रोकने के लिए भ्रष्ट लोगों को निकाल बाहर करना जरूरी है।
CJI ने अपने पत्र में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एस. एन. शुक्ला को पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने की मांग भी की है। जस्टिस शुक्ला को पद से हटाने के लिए 18 महीने पहले प्रस्ताव लाने की सिफारिश की गई थी। इन-हाउस पैनल ने अपनी जांच में जस्टिस शुक्ला को गंभीर न्यायिक अनियमितताओं का जिम्मेदार माना था।
CJI ने अपने खत में पीएम मोदी को लिखा, ‘आपसे आग्रह है कि इस मामले में आप आगे कार्यवाही करें।’
इससे पहले CJI ने शुक्ला की ओर से न्यायिक कार्यों के आवंटन की मांग को खारिज कर दिया था। पैनल की रिपोर्ट के बाद शुक्ला से 22 जनवरी 2018 को न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया था।
CJI ने पीएम मोदी को पत्र में लिखा, ‘जस्टिस शुक्ला का एक पत्र मुझे 23 मई 2019 को मिला। यह पत्र इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की ओर से फॉरवर्ड किया गया था। इस पत्र में शुक्ला ने खुद को न्यायिक कार्य करने देने की अनुमति मांगी थी।
CJI के अनुसार जस्टिस शुक्ला पर जो आरोप पाए गए हैं, वह गंभीर प्रकृति के हैं और इसलिए उन्हें न्यायिक कार्य की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ऐसी परिस्थितियों में आप आगे की कार्यवाही के लिए फैसला लें।’
बता दें कि 2017 में यूपी के एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह ने जस्टिस शुक्ला पर अनियमितता के आरोप लगाए थे। इस पर तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने मद्रास हाई कोर्ट की तत्कालीन चीफ इंदिरा बनर्जी, सिक्किम के चीफ जस्टिस एस. के. अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस पी के जायसवाल के नेतृत्व में पैनल का गठन किया था। इस पैनल ने शुक्ला को एक मामले में मेडिकल कॉलेजों का कथित तौर पर पक्ष लेने के लिए जिम्मेदार माना था।
ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि जब चीफ जस्‍टिस ऑफ इंडिया तथा इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायमूर्ति भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सिस्‍टम में गंभीर खामियां दूर करने का आग्रह कर रहे हैं और न्‍याय व्‍यवस्‍था में ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्‍टाचार, वंशवाद, परिवारवाद एवं जातिवाद का जहर घुल जाने की बात कह रहे हैं तो न्‍याय मिलेगा कैसे, न्‍यायपालिकाओं में व्‍याप्‍त विसंगतियां दूर कैसे होंगी?
न्‍याय देने वालों को ही यदि न्‍याय की दरकार होगी तो जनसामान्‍य किससे और कैसे न्‍याय की उम्‍मीद रखेगा?
पहले तो चीफ जस्‍टिस का प्रधानमंत्री को पत्र लिखना और फिर अवकाश प्राप्‍त करने से मात्र 3 दिन पहले इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायमूर्ति का पूरे सिस्‍टम पर गंभीर सवाल खड़े करना यह बताने के लिए काफी है कि यदि समय रहते इन खामियों को दूर नहीं किया गया तो देश का संवैधानिक ढांचा न सिर्फ पूरी तरह चरमरा जाएगा बल्‍कि अराजकता की स्‍थिति उत्‍पन्‍न होने का खतरा भी बढ़ जाएगा।
-Legend News
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...