रविवार, 21 जुलाई 2019

योगी सरकार ईमानदार तो “बेईमान और भ्रष्‍ट” अफसरों को कमान कैसे?

19 मार्च 2017 को गोरक्षनाथ पीठ (गोरखनाथ मंदिर) के महंत योगी आदित्‍यनाथ ने मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके बाद योगी आदित्‍यनाथ देश में सबसे बड़े प्रदेश के 21वें मुख्‍यमंत्री बने। योगी सरकार अब पांच साल के अपने कुल कार्यकाल में से दो साल और चार महीनों का कार्यकाल पूरा कर चुकी है।
उत्तर प्रदेश में अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार का कामकाज संभालने के साथ ही योगी आदित्‍यनाथ ने कहा था कि वह अखिलेश सरकार में पूरी तरह पटरी से उतर चुकी कानून-व्‍यवस्‍था को तो पटरी पर लाएंगे ही, साथ ही भ्रष्‍टाचार के मामले में भी जीरो टॉलरेंस की नीति अख्तियार करेंगे।
आज लगभग ढाई साल बाद भी यूपी की कानून-व्‍यवस्‍था को आइना दिखाने के लिए कल सोनभद्र और संभल में हुई हत्‍याएं काफी हैं। हालांकि हर सरकार की तरह योगी सरकार और उसके अफसरान आंकड़ों को अपने पक्ष में बताते हुए कानून-व्‍यवस्‍था दुरुस्‍त होने का दावा कर रहे हैं।
अपराधों के ग्राफ को आंकड़ों की बाजीगरी से पेश करना प्रत्‍येक सरकार और हर अफसर की फितरत रही है इसलिए इस पर जाने की बजाय यह पूछा जाना ज्‍यादा मुनासिब होगा कि ईमानदार योगी सरकार में बेईमान व भ्रष्‍ट अफसरों को जिले व मंडलों की कमान कैसे सौंपी जा रही है?
कैसे पिछले 28 महीनों से लेकर आज तक वो आईएएस और आईपीएस अफसर लगातार अच्‍छी-अच्‍छी तैनाती पाते आ रहे हैं जिनके आचरण की जानकारी न सिर्फ समूची ब्‍यूरोक्रेसी को है बल्‍कि आम जनता के बीच भी उनका भ्रष्‍टाचार चर्चित है।
ज्‍यादा दूर न जाया जाए तो मथुरा में ही तैनात रहे कई ऐसे आईएएस और आईपीएस अफसर जो अपने जबर्दस्‍त भ्रष्‍टाचार के लिए शोहरत प्राप्‍त थे, कंटिन्‍यू चार्ज पर हैं जबकि ईमानदार अधिकारियों को साइड लाइन कर दिया गया है।
इन अधिकारियों की तैनाती से ऐसे सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर किसी अधिकारी की योग्‍यता का आंकलन सरकारें किस आधार पर करती हैं क्‍योंकि इनमें से कई अधिकारी तो वो हैं जो मायावती सरकार की गुडबुक में भी थे और अखिलेश सरकार की भी।
तब विपक्ष की राजनीति करने वाली भाजपा के नेता कहते थे कि एसएसपी तथा डीएम से लेकर थानों व तहसीलों के चार्ज बाकायदा बोली लगाकर बिकते हैं और उसके बाद भी हर महीने अवैध कमाई का हिस्‍सा लखनऊ तक पहुंचाया जाता है।
मथुरा में डीएम रहे एक ऐसे ही अधिकारी का कारनामा तब काफी सुर्खियों में रहा था जब उन्‍होंने आबकारी अधिकारी को लखनऊ जाते वक्‍त बीच रास्‍ते से वापस बुलाकर उसकी सरकारी गाड़ी में रखे नोटों से भरे ब्रीफकेस को यह कहते हुए छीन लिया कि जब मैं हर महीने हिसाब करने जाता हूं तो तुम अलग से यह कैसे कर सकते हो। 
आश्‍चर्य की बात यह है कि वही अधिकारी योगी सरकार में भी एक महानगर का डीएम बना बैठा है।
इसी प्रकार मथुरा में तैनाती के दौरान कमाए हुए करोड़ों रुपयों से यहीं बेनामी संपत्ति खरीदने वाले आईपीएस अधिकारी भी एक बड़े पर्यटक स्‍थल के एसएसपी बने हुए हैं। 
ये तो चंद उदाहरण हैं अन्‍यथा जिस जवाहर बाग कांड में पुलिस ने अपने एक जिम्‍मेदार पीपीएस अफसर और एक थानेदार को खो दिया, उसकी भी पटकथा कुछ भ्रष्‍ट उच्‍च अधिकारियों ने ही लिखी थी। उन्‍होंने ही तत्‍कालीन सरकार की नाक के बाल रामवृक्ष यादव को पूरे करीब ढाई साल संरक्षण दिया।
मथुरा की जिला जेल में कुख्‍यात अपराधियों के बीच हुई गोलीबारी को शायद ही कोई भूला होगा क्‍योंकि इस गोलीबारी में एक बदमाश की हत्‍या के बाद का घटनाक्रम चौंकाने वाला था।
पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्‍यात अपराधी ब्रजेश मावी की हत्‍या के आरोपी राजेश टोंटा और मावी गुट के बीच हुई इस गैंगवार में राजेश टोंटा भी घायल हुआ था लेकिन राजेश टोंटा को अगले दिन (18 जनवरी 2015) तब स्‍वचालित हथियारों द्वारा गोलियों से भून डाला जब उसे पुलिस अभिरक्षा में एंबुलेंस से इलाज के लिए आगरा ले जाया जा रहा था।
मावी की हत्‍या के आरोपी हाथरस निवासी राजेश टोंटा की नेशनल हाईवे पर हुई हत्‍या ने इसलिए तमाम सवाल खड़े किए क्‍यों कि राजेश टोंटा को आगरा ले जाने वाली पुलिस की टीम का नेतृत्‍व तत्‍कालीन एसएसपी खुद कर रही थीं।
संभवत: इसीलिए राजेश टोंटा की पत्‍नी कनक शर्मा ने अपने पति की हत्‍या का आरोप मथुरा की तत्‍कालीन महिला एसएसपी पर लगाया। कनक शर्मा ने इस मामले में बाकायदा मथुरा के थाना फरह को इस आशय की तहरीर दी। तहरीर के मुताबिक राजेश टोंटा की हत्‍या का सौदा एसएसपी ने 3 करोड़ की मोटी रकम लेकर किया था। यही अधिकारी योगी सरकार में लंबे समय तक मेरठ की एसएसपी रहीं और तभी हटाई गईं जब निजी कारणों से उन्‍होंने चार्ज छोड़ने की इच्‍छा जताई। 
कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली में काले तेल के खेल को अपनी तैनाती के दौरान संरक्षण देने वाले पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी तो योगीराज में भी चार्ज पर हैं परंतु जिन्‍होंने तेल माफिया के खिलाफ हरसंभव सख्‍त कदम उठाया, वो अपनी ईमानदारी का बोझ ढोते फिर रहे हैं।
ब्‍यूरोक्रेट्स की तैनाती में राजनीतिक हस्‍तक्षेप अब कोई ऐसी बात नहीं रह गई जिसे जानना बाकी हो। सब जानते हैं कि सत्ता के गलियारों से निकटता ही अधिकांशत: ट्रांसफर-पोस्‍टिंग का आधार होता है।
लोग यह भी जानते हैं कि क्‍यों हर पार्टी अपने शासनकाल की कानून-व्‍यवस्‍था को पूर्ववर्ती सरकारों से बेहतर बताती है।
जिस तरह आज योगी आदित्‍यनाथ की सरकार प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था को पहले से बेहतर होने का दावा कर रही है, ऐसा ही दावा मायावती और अखिलेश भी अपने-अपने समय में करते रहे थे किंतु सच्‍चाई यह है कि स्‍थिति जस की तस है।
स्‍थिति सुधरेगी भी कैसे, जब किसी एक पार्टी कार्यकर्ता से विवाद के कारण या किसी पदाधिकारी अथवा मंत्री के इशारों पर न चल पाने के कारण अच्‍छे अधिकारी को हटा दिया जाता है और भ्रष्‍ट अधिकारी इसलिए चार्ज पर बने रहते हैं क्‍योंकि उन्‍हें लखनऊ का वरदहस्‍त प्राप्‍त होता है।
माना कि योगी आदित्‍यनाथ सरकार के मुखिया हैं…पूरी की पूरी सरकार नहीं, परंतु इससे उनकी जिम्‍मेदारी कम नहीं हो जाती।
प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था में यदि वाकई योगी सरकार आमूल-चूल परिवर्तन लाना चाहती है तो उसे न सिर्फ अधिकारियों की तैनाती में राजनीतिक हस्‍तक्षेप पूरी तरह समाप्‍त करना होगा बल्‍कि जिस प्रकार अक्षम अधिकारी एवं कर्मचारियों को शॉर्टलिस्‍ट करके उन्‍हें सेवामुक्‍त किया जा रहा है, उसी प्रकार भ्रष्‍ट अधिकारियों को भी चिन्‍हित कर उन्‍हें ब्‍लैक लिस्‍ट करना होगा अन्‍यथा आंकड़ों के बल पर भले ही बेहतर कानून-व्‍यवस्‍था का ढिंढोरा पीट लिया जाए किंतु जमीनी हकीकत नहीं बदलने वाली।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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