रविवार, 21 जुलाई 2019

न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में व्‍याप्‍त परिवारवाद, वंशवाद एवं जातिवाद पर उठाए गंभीर सवाल, पीएम को लिखा 3 पन्‍नों का पत्र

उच्‍च न्‍यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ के न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री को बाकायदा पत्र लिखकर उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय में व्‍याप्‍त विसंगतियों तथा कॉलेजियम समिति की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
कल 01 जुलाई 2019 को ही प्रेषित अपने पत्र में न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय को भी राजनीति की ही भांति जातिवाद एवं वंशवाद से बुरी तरह ग्रसित बताते हुए लिखा है कि यहां न्‍यायाधीशों के परिवार का सदस्‍य होना ही अगला न्‍यायाधीश होना सुनिश्‍चित करता है।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री को लिखा है कि प्रत्‍येक प्रशासनिक अधिकारी को सेवा में आने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना होता है और अधीनस्‍थ न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों को भी अपने चयन से पहले प्रतियोगी परीक्षाओं में योग्‍यता सिद्ध करनी होती है किंतु उच्‍च न्‍यायालयों एवं सर्वोच्‍च न्‍यायालय में नियुक्‍ति के लिए कोई निश्‍चित मापदंड नहीं है। यहां नियुक्‍ति पाने की एकमात्र प्रचलित कसौटी है परिवारवाद तथा जातिवाद।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने अपने पत्र से प्रधानमंत्री को अवगत कराया है कि उन्‍होंने 34 वर्षों के सेवाकाल में कई ऐसे न्‍यायाधीश देखें हैं जिनके पास सामान्‍य विधिक ज्ञान का भी अभाव था और उनका अपने क्षेत्र में कोई अध्‍ययन तक नहीं था।
जस्‍टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम को लिखा है कि जिन्‍हें न्‍यायप्रक्रिया की सामान्‍य सी जानकारी भी नहीं होती परंतु वो यदि कॉलेजियम समिति के ‘निकट’ होते हैं तो उन्‍हें उनकी ‘मात्र इसी योग्‍यता’ के आधार पर न्‍यायाधीश नियुक्‍त करा दिया जाता है।
जस्‍टिस रंगनाथ ने पत्र में गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि न्‍यायाधीश की कुर्सी पर अयोग्‍य लोगों के रहते कार्य का निष्‍पादन निष्‍पक्ष तरीके से कैसे होता होगा, यह स्‍वयं में विचारणीय है।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने देश को हिला देने वाली जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री को लिखा है कि उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों की चयन प्रक्रिया बंद कमरों में चाय की दावत पर वरिष्‍ठ न्‍यायाधीशों की पैरवी तथा पसंद के आधार पर की जाती है, न कि किसी योग्‍यता के आधार पर। यहां गोपनीयता की आड़ में पारदर्शिता को ताक पर रख दिया जाता है और नियुक्‍ति प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही नाम सार्वजनिक किए जाते हैं।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय ने लिखा है कि न्‍यायिक चयन आयोग की स्‍थापना के प्रस्‍ताव से पूरे देश को न्‍यायपालिकाओं में पारदर्शिता के साथ नियुक्‍तियों की आशा जगी थी किंतु सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्‍तक्षेप बताकर असंवैधानिक घोषित कर दिया।
दरअसल, न्‍यायिक चयन आयोग की स्‍थापना से न्‍यायाधीशों को अपने पारिवारिक सदस्‍यों की नियुक्‍ति में बाधा आती और इसीलिए उन्‍होंने केंद्र सरकार के इस प्रस्‍ताव को खारिज करने में अति सक्रियता बरती।
जस्‍टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम को लिखा है कि चाहे सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों का विवाद मीडिया के सामने आने का प्रकरण हो अथवा हितों के टकराव का मुद्दा और सुनने के बजाय चुनने के अधिकार का विवाद, इस सबसे अंतत: न्‍यायपालिका की गुणवत्ता अथवा अक्षुण्‍णता लगातार संकट में पड़ रही है।
जस्‍टिस रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि न्‍यायसंगत लेकिन कठोर निर्णय लेकर वह न्‍यायपालिका की गरिमा बचाने का प्रयास करें जिससे भविष्‍य में साधारण पृष्‍ठभूमि से आया हुआ कोई व्‍यक्‍ति भी अपनी योग्‍यता, परिश्रम एवं निष्‍ठा के बल पर भारत का चीफ जस्‍टिस बन सके।
न्‍यायमूर्ति रंगनाथ पांडेय द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया यह पत्र यूं तो हर उस व्‍यक्‍ति की पीड़ा को प्रकट करता है जो सिस्‍टम के सामने किसी न किसी स्‍तर पर आकर हार जाता है परंतु इसके निहितार्थ बहुत गहरे हैं।
जस्‍टिस रंगनाथ पांडेय तो इसी 04 जुलाई को रिटायर होने जा रहे हैं परंतु उनके सवाल देश की चरमराती न्‍याय व्‍यवस्‍था का तब तक पीछा करेंगे जब तक योग्‍यता के आधार पर नियुक्‍तियों का मुकम्‍मल इंतजाम नहीं कर लिया जाता।
कौन नहीं जानता कि आज सर्वोच्‍च न्‍यायालय से लेकर उच्‍च न्‍यायालयों और जिला अदालतों में भी भ्रष्‍टाचार का बोलबाला है। न्‍यायपालिकाओं की चौखट पर न्‍याय की उम्‍मीद खत्‍म हो जाने के अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं।
शायद यही कारण है कि कोर्ट की अवमानना का भय समाप्‍त होता जा रहा है और सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों को भी अपनी बात रखने के लिए मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा है।
न्‍यायपालिका तक पहुंचने से पहले मीडिया ट्रायल की परंपरा संभवत: न्‍याय से उठ चुकी उम्‍मीद का ही परिणाम है और मुख्‍य न्‍यायाधीश द्वारा न्यायपालिका में शीर्ष स्तर पर करप्शन को रोकने के लिए भ्रष्‍ट अधिकारियों को निकाल बाहर करने का पीएम से आग्रह करना इसी की परिणति।
मुख्‍य न्‍यायाधीश भी लिख चुके हैं प्रधानमंत्री को पत्र 
गत दिनों चीफ जस्‍टिस रंजन गागेई ने भी प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि न्यायपालिका में शीर्ष स्तर पर करप्शन रोकने के लिए भ्रष्ट लोगों को निकाल बाहर करना जरूरी है।
CJI ने अपने पत्र में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एस. एन. शुक्ला को पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने की मांग भी की है। जस्टिस शुक्ला को पद से हटाने के लिए 18 महीने पहले प्रस्ताव लाने की सिफारिश की गई थी। इन-हाउस पैनल ने अपनी जांच में जस्टिस शुक्ला को गंभीर न्यायिक अनियमितताओं का जिम्मेदार माना था।
CJI ने अपने खत में पीएम मोदी को लिखा, ‘आपसे आग्रह है कि इस मामले में आप आगे कार्यवाही करें।’
इससे पहले CJI ने शुक्ला की ओर से न्यायिक कार्यों के आवंटन की मांग को खारिज कर दिया था। पैनल की रिपोर्ट के बाद शुक्ला से 22 जनवरी 2018 को न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया था।
CJI ने पीएम मोदी को पत्र में लिखा, ‘जस्टिस शुक्ला का एक पत्र मुझे 23 मई 2019 को मिला। यह पत्र इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की ओर से फॉरवर्ड किया गया था। इस पत्र में शुक्ला ने खुद को न्यायिक कार्य करने देने की अनुमति मांगी थी।
CJI के अनुसार जस्टिस शुक्ला पर जो आरोप पाए गए हैं, वह गंभीर प्रकृति के हैं और इसलिए उन्हें न्यायिक कार्य की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ऐसी परिस्थितियों में आप आगे की कार्यवाही के लिए फैसला लें।’
बता दें कि 2017 में यूपी के एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह ने जस्टिस शुक्ला पर अनियमितता के आरोप लगाए थे। इस पर तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने मद्रास हाई कोर्ट की तत्कालीन चीफ इंदिरा बनर्जी, सिक्किम के चीफ जस्टिस एस. के. अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस पी के जायसवाल के नेतृत्व में पैनल का गठन किया था। इस पैनल ने शुक्ला को एक मामले में मेडिकल कॉलेजों का कथित तौर पर पक्ष लेने के लिए जिम्मेदार माना था।
ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि जब चीफ जस्‍टिस ऑफ इंडिया तथा इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायमूर्ति भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सिस्‍टम में गंभीर खामियां दूर करने का आग्रह कर रहे हैं और न्‍याय व्‍यवस्‍था में ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्‍टाचार, वंशवाद, परिवारवाद एवं जातिवाद का जहर घुल जाने की बात कह रहे हैं तो न्‍याय मिलेगा कैसे, न्‍यायपालिकाओं में व्‍याप्‍त विसंगतियां दूर कैसे होंगी?
न्‍याय देने वालों को ही यदि न्‍याय की दरकार होगी तो जनसामान्‍य किससे और कैसे न्‍याय की उम्‍मीद रखेगा?
पहले तो चीफ जस्‍टिस का प्रधानमंत्री को पत्र लिखना और फिर अवकाश प्राप्‍त करने से मात्र 3 दिन पहले इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायमूर्ति का पूरे सिस्‍टम पर गंभीर सवाल खड़े करना यह बताने के लिए काफी है कि यदि समय रहते इन खामियों को दूर नहीं किया गया तो देश का संवैधानिक ढांचा न सिर्फ पूरी तरह चरमरा जाएगा बल्‍कि अराजकता की स्‍थिति उत्‍पन्‍न होने का खतरा भी बढ़ जाएगा।
-Legend News

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया बताते चलें कि ये पोस्‍ट कैसी लगी ?

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...