सोनभद्र में जिस जमीन को लेकर 10 लोगों की जान चली गई, वह बिहार कैडर के पूर्व IAS अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा की पत्नी और बेटी के नाम थी। उन्होंने ही यह जमीन मूर्तिया गांव के प्रधान यज्ञदत्त सिंह भूरिया को बेची।
10 आदिवासी किसानों की जान जाने के बाद अब भले ही सत्ता पक्ष और विपक्ष सक्रिय हुआ हो परंतु सच्चाई यह है कि सोनभद्र अकेला ऐसा जिला नहीं है जहां पूर्व या वर्तमान अधिकारियों की बेनामी संपत्तियां फैली हुई हैं, विश्व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा भी ऐसे ही जिलों में शुमार है।
योगीराज भगवान कृष्ण की पावन जन्मभूमि में तैनात रहे कई IAS और IPS अफसरों की बेशकीमती बेनामी संपत्ति से मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन और बरसाना भरा पड़ा है।
दरअसल, एक ओर जहां मथुरा जनपद की भौगोलिक स्थिति इसकी भूमि को मूल्यवान बनाती है वहीं दूसरी ओर इसका धार्मिक स्वरूप उसमें चार-चांद लगा देता है।
किसी भी भ्रष्ट अधिकारी के लिए चूंकि यह जिला अवैध कमाई के तमाम स्त्रोत खोलता है इसलिए यहां थोड़े समय की तैनाती भी उसके सारे सपने पूरा कर देती है।
राजस्थान और हरियाणा से सटी मथुरा की सीमाएं हर किस्म के अपराध एवं अपराधियों को मुफीद बैठती हैं और नोएडा तथा दिल्ली तक इसकी काफी कम समय में आसान पहुंच अधिकारियों को आकर्षित करती है।
बात चाहे मथुरा रिफाइनरी से होने वाले तेल के बड़े खेल की हो अथवा हरियाणा से होने वाली शराब की तस्करी की। दिल्ली से सीधे जुड़े ड्रग्स के धंधेबाजों की हो या फिर भारी मात्रा में टैक्स की चोरी करके लाए जाने वाले चांदी-सोने की, हर अवैध काम पर अधिकारियों की नजर है और अवैध काम करने वालों की अधिकारियों पर। दोनों जानते हैं कि वह एक-दूसरे के पूरक हैं। किसी का किसी के बिना काम नहीं चलता।
इसीलिए यह माना जाता है कि अधिकांश अधिकारियों के लिए मथुरा की तैनाती किसी दुधारू गाय से कम नहीं होती और ज्यादा हाथ-पैर मारे बगैर भी यह उन्हें उनकी सोच से परे लाभ दे देती है।
हां, यदि कोई ईमानदार अधिकारी मथुरा आ जाता है तो वह किसी को बर्दाश्त नहीं होता। फिर जल्द से जल्द उसकी यहां से रुखसती के लिए सब एकजुट हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि मथुरा से होने वाली बेहिसाब कमाई केवल उच्च अधिकारियों तक सीमित हो, उनके अधीनस्थ भी उससे भरपूर लाभान्वित होते हैं।
इस बात की पुष्टि करने के लिए राधा-कृष्ण की इस भूमि में कभी तैनात रहे पीपीएस, पीसीएस सहित कोतवाल, थानेदार और यहां तक कि सिपाहियों की भी कुंडली खंगाली जा सकती है।
शहर की गेटबंद पॉश कॉलोनियों में एक-एक करोड़ रुपए की कीमत वाले इनके कई-कई घर यह समझाने के लिए काफी हैं कि मथुरा नगरी कैसे उनके सपनों को पंख लगाती है।
नेता और न्यायिक अधिकारी भी पीछे नहीं
मथुरा जैसे धार्मिक स्थान पर अपनी काली कमाई को ठिकाने लगाने में नेता और न्यायिक अधिकारी भी पीछे नहीं हैं। नेता तो अधिकारियों से कई कदम आगे हैं। इन लोगों ने अपनी ब्लैक मनी का सर्वाधिक हिस्सा बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों, होटलों और रियल एस्टेट में निवेश कर रखा है।
इसे यूं भी समझा जा सकता है कि मथुरा के तमाम शिक्षण संस्थान, होटल तथा रियल एस्टेट प्रोजेक्ट तो नेता एवं अधिकारियों के ही पैसे से चल रहे हैं और इन्हें जो चला रहे हैं, वह सिर्फ मुखौटे हैं।
इनके अतिरिक्त कई प्रमुख धार्मिक संस्थाओं की अकूत संपत्ति पर भी प्रभावशाली नेताओं का आधिपत्य है और धर्मगुरुओं के रुप में उन पर उन्हीं के नुमाइंदे काबिज हैं।
ब्रज के प्रमुख मंदिरों में चल रहे विवादों का अंदरूनी सच यदि पता लगाया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि उसके भी मूल में हजारों करोड़ रुपए की चल व अचल संपत्ति ही है, न कि उनके संचालन अथवा रखरखाव का तरीका।
यही कारण है कि अदालतों में लंबित ज्यादातर वादों को छद्म वादकारी लंबा खींचते रहते हैं ताकि उनसे किसी न किसी रूप में जुड़े लोगों का मकसद पूरा होता रहे।
बिहारी जी और गिर्राज जी तो सिर्फ बहाना हैं
ज्यादातर लोगों को लगता होगा कि बिहारी जी तथा गिर्राज जी आने वाले बड़े-बड़े नामचीन और हाई प्रोफाइल लोग अपनी धार्मिक भावना के तहत यहां खिंचे चले आते होंगे। कुछ लोग यह भी समझते होंगे कि ऐसे लोग कोई मन्नत मांगने अथवा मन्नत पूरी होने पर ईश्वर का अभार प्रकट करने के लिए आते होंगे ताकि उसकी अनुकंपा बनी रहे लेकिन हकीकत यह नहीं है।
हकीकत यह है कि बिहारी जी, गिर्राज जी, राधारानी और कोकिला वन स्थित शनिदेव मंदिर पर आना तो मात्र बहाना है। असली मकसद यहां निवेश की हुई उस काली कमाई पर नजर टिकाए रखना है जो कभी भी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी की कहावत को चरितार्थ कर सकती है।
इस सबके अलावा ब्रजभूमि में किया हुआ निवेश ‘आम के आम और गुठलियों के दाम’ वाली कहावत भी पूरी करता है।
जिन अधिकारियों ने यहां अपनी काली कमाई खपा रखी है, वह धार्मिक यात्रा की आड़ में कई-कई दिन रहकर सुरा-सुंदरी का भरपूर उपयोग करते हैं। इसकी संपूर्ण व्यवस्था का जिम्मा उनके मुखौटे कारोबारी खुशी-खुशी बखूबी उठाते हैं।
सोनभद्र में यदि 10 लोगों की हत्या नहीं हुई होती तो शायद ही कभी किसी को पता लगता कि जिस जमीन पर कब्जे को लेकर यह खूनी खेल खेला गया, उसकी जड़ में ऐसे किसी शातिर दिमाग आईएएस का हाथ था जो रिटायर होकर अपनी पत्नी व पुत्री के सहारे काली कमाई को ठिकाने लगाने का काम कर रहा था।
सोनभद्र हो या मथुरा, इनकी अपनी कुछ खासियतें हैं। यह खासियतें ही अधिकारियों और नेताओं को प्रभावित करती हैं। सोनभद्र सोनांचल है तो मथुरा ब्रजांचल का केन्द्र। एक ऐसा केंद्र जिसके चारों ओर असीमित संभावनाएं हैं। वहां आदिवासी हैं तो यहां ब्रजवासी। अधिकारियों और नेताओं का सानिध्य सबको सुहाता है। लोग उनके एक इशारे पर स्याह को सफेद करने के लिए तत्पर रहते हैं। लोगों की यही तत्परता अधिकारियों का काम आसान कर देती है।
मथुरा में बढ़ रही बेहिसाब भीड़ और ईश्वर के प्रति दिखाई देने वाली अगाध श्रद्धा का कड़वा सच सोनांचल की तरह ब्रजांचल में सामने आए, इससे पहले बेहतर होगा कि सरकार समय रहते कोई ठोस कदम उठा ले अन्यथा लकीर पीटने से यह सिलसिला थमने वाला नहीं है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
10 आदिवासी किसानों की जान जाने के बाद अब भले ही सत्ता पक्ष और विपक्ष सक्रिय हुआ हो परंतु सच्चाई यह है कि सोनभद्र अकेला ऐसा जिला नहीं है जहां पूर्व या वर्तमान अधिकारियों की बेनामी संपत्तियां फैली हुई हैं, विश्व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा भी ऐसे ही जिलों में शुमार है।
योगीराज भगवान कृष्ण की पावन जन्मभूमि में तैनात रहे कई IAS और IPS अफसरों की बेशकीमती बेनामी संपत्ति से मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन और बरसाना भरा पड़ा है।
दरअसल, एक ओर जहां मथुरा जनपद की भौगोलिक स्थिति इसकी भूमि को मूल्यवान बनाती है वहीं दूसरी ओर इसका धार्मिक स्वरूप उसमें चार-चांद लगा देता है।
किसी भी भ्रष्ट अधिकारी के लिए चूंकि यह जिला अवैध कमाई के तमाम स्त्रोत खोलता है इसलिए यहां थोड़े समय की तैनाती भी उसके सारे सपने पूरा कर देती है।
राजस्थान और हरियाणा से सटी मथुरा की सीमाएं हर किस्म के अपराध एवं अपराधियों को मुफीद बैठती हैं और नोएडा तथा दिल्ली तक इसकी काफी कम समय में आसान पहुंच अधिकारियों को आकर्षित करती है।
बात चाहे मथुरा रिफाइनरी से होने वाले तेल के बड़े खेल की हो अथवा हरियाणा से होने वाली शराब की तस्करी की। दिल्ली से सीधे जुड़े ड्रग्स के धंधेबाजों की हो या फिर भारी मात्रा में टैक्स की चोरी करके लाए जाने वाले चांदी-सोने की, हर अवैध काम पर अधिकारियों की नजर है और अवैध काम करने वालों की अधिकारियों पर। दोनों जानते हैं कि वह एक-दूसरे के पूरक हैं। किसी का किसी के बिना काम नहीं चलता।
इसीलिए यह माना जाता है कि अधिकांश अधिकारियों के लिए मथुरा की तैनाती किसी दुधारू गाय से कम नहीं होती और ज्यादा हाथ-पैर मारे बगैर भी यह उन्हें उनकी सोच से परे लाभ दे देती है।
हां, यदि कोई ईमानदार अधिकारी मथुरा आ जाता है तो वह किसी को बर्दाश्त नहीं होता। फिर जल्द से जल्द उसकी यहां से रुखसती के लिए सब एकजुट हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि मथुरा से होने वाली बेहिसाब कमाई केवल उच्च अधिकारियों तक सीमित हो, उनके अधीनस्थ भी उससे भरपूर लाभान्वित होते हैं।
इस बात की पुष्टि करने के लिए राधा-कृष्ण की इस भूमि में कभी तैनात रहे पीपीएस, पीसीएस सहित कोतवाल, थानेदार और यहां तक कि सिपाहियों की भी कुंडली खंगाली जा सकती है।
शहर की गेटबंद पॉश कॉलोनियों में एक-एक करोड़ रुपए की कीमत वाले इनके कई-कई घर यह समझाने के लिए काफी हैं कि मथुरा नगरी कैसे उनके सपनों को पंख लगाती है।
नेता और न्यायिक अधिकारी भी पीछे नहीं
मथुरा जैसे धार्मिक स्थान पर अपनी काली कमाई को ठिकाने लगाने में नेता और न्यायिक अधिकारी भी पीछे नहीं हैं। नेता तो अधिकारियों से कई कदम आगे हैं। इन लोगों ने अपनी ब्लैक मनी का सर्वाधिक हिस्सा बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों, होटलों और रियल एस्टेट में निवेश कर रखा है।
इसे यूं भी समझा जा सकता है कि मथुरा के तमाम शिक्षण संस्थान, होटल तथा रियल एस्टेट प्रोजेक्ट तो नेता एवं अधिकारियों के ही पैसे से चल रहे हैं और इन्हें जो चला रहे हैं, वह सिर्फ मुखौटे हैं।
इनके अतिरिक्त कई प्रमुख धार्मिक संस्थाओं की अकूत संपत्ति पर भी प्रभावशाली नेताओं का आधिपत्य है और धर्मगुरुओं के रुप में उन पर उन्हीं के नुमाइंदे काबिज हैं।
ब्रज के प्रमुख मंदिरों में चल रहे विवादों का अंदरूनी सच यदि पता लगाया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि उसके भी मूल में हजारों करोड़ रुपए की चल व अचल संपत्ति ही है, न कि उनके संचालन अथवा रखरखाव का तरीका।
यही कारण है कि अदालतों में लंबित ज्यादातर वादों को छद्म वादकारी लंबा खींचते रहते हैं ताकि उनसे किसी न किसी रूप में जुड़े लोगों का मकसद पूरा होता रहे।
बिहारी जी और गिर्राज जी तो सिर्फ बहाना हैं
ज्यादातर लोगों को लगता होगा कि बिहारी जी तथा गिर्राज जी आने वाले बड़े-बड़े नामचीन और हाई प्रोफाइल लोग अपनी धार्मिक भावना के तहत यहां खिंचे चले आते होंगे। कुछ लोग यह भी समझते होंगे कि ऐसे लोग कोई मन्नत मांगने अथवा मन्नत पूरी होने पर ईश्वर का अभार प्रकट करने के लिए आते होंगे ताकि उसकी अनुकंपा बनी रहे लेकिन हकीकत यह नहीं है।
हकीकत यह है कि बिहारी जी, गिर्राज जी, राधारानी और कोकिला वन स्थित शनिदेव मंदिर पर आना तो मात्र बहाना है। असली मकसद यहां निवेश की हुई उस काली कमाई पर नजर टिकाए रखना है जो कभी भी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी की कहावत को चरितार्थ कर सकती है।
इस सबके अलावा ब्रजभूमि में किया हुआ निवेश ‘आम के आम और गुठलियों के दाम’ वाली कहावत भी पूरी करता है।
जिन अधिकारियों ने यहां अपनी काली कमाई खपा रखी है, वह धार्मिक यात्रा की आड़ में कई-कई दिन रहकर सुरा-सुंदरी का भरपूर उपयोग करते हैं। इसकी संपूर्ण व्यवस्था का जिम्मा उनके मुखौटे कारोबारी खुशी-खुशी बखूबी उठाते हैं।
सोनभद्र में यदि 10 लोगों की हत्या नहीं हुई होती तो शायद ही कभी किसी को पता लगता कि जिस जमीन पर कब्जे को लेकर यह खूनी खेल खेला गया, उसकी जड़ में ऐसे किसी शातिर दिमाग आईएएस का हाथ था जो रिटायर होकर अपनी पत्नी व पुत्री के सहारे काली कमाई को ठिकाने लगाने का काम कर रहा था।
सोनभद्र हो या मथुरा, इनकी अपनी कुछ खासियतें हैं। यह खासियतें ही अधिकारियों और नेताओं को प्रभावित करती हैं। सोनभद्र सोनांचल है तो मथुरा ब्रजांचल का केन्द्र। एक ऐसा केंद्र जिसके चारों ओर असीमित संभावनाएं हैं। वहां आदिवासी हैं तो यहां ब्रजवासी। अधिकारियों और नेताओं का सानिध्य सबको सुहाता है। लोग उनके एक इशारे पर स्याह को सफेद करने के लिए तत्पर रहते हैं। लोगों की यही तत्परता अधिकारियों का काम आसान कर देती है।
मथुरा में बढ़ रही बेहिसाब भीड़ और ईश्वर के प्रति दिखाई देने वाली अगाध श्रद्धा का कड़वा सच सोनांचल की तरह ब्रजांचल में सामने आए, इससे पहले बेहतर होगा कि सरकार समय रहते कोई ठोस कदम उठा ले अन्यथा लकीर पीटने से यह सिलसिला थमने वाला नहीं है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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