सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

दूत भेजने भर से UP फतह नहीं होगी मोदी जी

UP में चुनावी किला फतह करने के लिए लगभग सभी राजनीतिक दलों का मिशन-2017 शुरू हो चुका है। बसपा और भाजपा जहां UP में अपनी खोई हुई सत्‍ता पाना चाहती हैं, वहीं समाजवादी पार्टी चाहती है कि उसका कब्‍जा इसी तरह बरकरार रहे।
कांग्रेस की मंशा इस विशाल सूबे में बिहार जैसे चुनावी नतीजे निकालने की है तो राष्‍ट्रीय लोकदल की कोशिश है कि उसकी डूब चुकी नैया को किसी तिनके का सहारा मिल जाए और वह फिर सतह पर आ खड़ी हो।
इसके अलावा बिहार जैसे परिणाम दोहराने के लिए एक अलग प्रयास UP में भी महागठबंधन बनाने का हो रहा है और उसके लिए जेडी-यू के शरद यादव सक्रिय हो चुके हैं।
बहरहाल, एक लंबे समय से यूपी की सत्‍ता पाने में असफल रही भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्‍तर प्रदेश के आगामी चुनाव, लगभग जीवन-मरण का प्रश्‍न बन चुके हैं क्‍योंकि बिहार उनके हाथ से पहले ही निकल गया है।
बिहार में करारी हार के बाद यह कहा जाने लगा कि मोदी जी का तिलिस्‍म टूट रहा है और अब जनता सिर्फ नारेबाजी अथवा चुनावी घोषणाओं के झांसे में आकर किसी को सत्‍ता नहीं सौंपने वाली।
मोदी जी का तिलिस्‍म टूटा है या नहीं, यह बता पाना भले ही फिलहाल संभव न हो किंतु एक बात तय है कि भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार दोनों को बिहार की हार ने सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया।
संभवत: यही कारण है कि UP के मिशन 2017 को फतह करने के लिए मोदी सरकार ने जनता के बीच अपने दूत भेजना तय किया।
मोदी सरकार के ये दूत समूचे उत्‍तर प्रदेश में घूम-घूमकर देखेंगे कि यहां केंद्र सरकार की योजनाएं किस स्‍थिति में हैं। योजनाओं की प्रगति संतोषजनक है या नहीं, उनका समुचित क्रियान्‍वयन हो पा रहा है या नहीं, और राज्‍य सरकार उनके क्रियान्‍वयन में अपेक्षित सहयोग कर रही है अथवा नहीं।
दूत के रूप में मोदी सरकार के मंत्री इस कार्य को करेंगे, और इसके लिए प्रत्‍येक मंत्री को दो-दो लोकसभा क्षेत्रों की जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। मंत्रीगण 17 फरवरी को सीधे प्रधानमंत्री तक इस बावत अपनी रिपोर्ट पहुंचायेंगे।
इसी जिम्‍मेदारी का निर्वहन करने के लिए कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली मथुरा में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को भेजा जा रहा है।
विश्‍व विख्‍यात धार्मिक जनपद होने का गौरव प्राप्‍त मथुरा, उत्‍तर प्रदेश के ऐसे चुनावी क्षेत्रों में शुमार है जहां से प्राप्‍त रिपोर्ट हांडी के एक चावल की तरह पूरे सूबे का राजनीतिक हाल बता सकती है। बशर्ते की रिपोर्ट लेने और देने में पूरी ईमानदारी बरती जाए।
भाजपा के अति वाचाल नेताओं में शामिल केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह मिशन 2017 के तहत मथुरा जनपद से क्‍या रिपोर्ट लेकर जाते हैं और प्रधानमंत्री उसे किस रूप में लेते हैं, यह तो आने वाला वक्‍त ही बतायेगा अलबत्‍ता मथुरा की जनता मोदी सरकार के डेढ़ साला कार्य पर क्‍या कहती है, इसकी बानगी अवश्‍य मिलने लगी है।
अगर बात करें मथुरा की सांसद और गुजरे जमाने में बॉलीवुड से ‘ड्रीम गर्ल’ का खिताब प्राप्‍त अभिनेत्री हेमा मालिनी की तो उनसे जनता निश्‍चित तौर पर निराश है।
लोगों की मानें तो हेमा मालिनी के ”दूर-दर्शन” करना जितना आसान है, साक्षात्‍कार करना उतना ही कठिन। दूर-दर्शन पर आरओ सिस्‍टम बेचते उन्‍हें कभी भी और किसी भी चैनल पर देखा जा सकता है लेकिन किसी समस्‍या के लिए उनसे रुबरू होना आसान नहीं है। डेढ़ साल से होटल के एक कमरे को ही बतौर कार्यालय और ऑफिस इस्‍तेमाल करने वाली ‘ड्रीम गर्ल’ वास्‍तव में मथुरा की जनता के लिए अब तक ड्रीम गर्ल ही साबित हुई हैं।
जिस तरह वह पहले अपनी कोई फिल्‍म रिलीज होने के बाद पर्दे पर दिखाई देती थीं, उसी तरह अब मथुरा में किसी विशेष कार्यक्रम होने पर ही दिखाई देती हैं। आम जनता को तो पता ही नहीं चलता कि उनकी सांसद कब आईं और कब गईं।
इस बारे में एक ऐसे व्‍यक्‍ति की टीस काबिले गौर है जिसका कहना था कि उसने मोदी जी के आह्वान पर हेमा मालिनी के लिए यह सोचकर मतदान किया था कि वह इस धार्मिक जनपद को उसका गौरवशाली स्‍थान दिलायेंगी।
इस व्‍यक्‍ति के मुताबिक उसने मथुरा की समस्‍याओं के संदर्भ में सांसद हेमा मालिनी से एक-दो बार नहीं, कई बार मिलने का प्रयास किया किंतु हर बार उसे असफलता ही मिली।
इसी तरह के विचार अन्‍य तमाम लोगों ने व्‍यक्‍त किए और बताया कि मथुरा की जनता ने भले ही सम्‍मान पूर्वक हेमा को अपना प्रतिनिधि चुनकर लोकसभा में भेजा हो लेकिन चुने जाने के बाद हेमा ने मथुरा की जनता के लिए अपना एक ऐसा प्रतिनिधि चुन लिया है जो उन्‍हें जनता से दूर करता है।
जनार्दन शर्मा नामक हेमा मालिनी का यह प्रतिनिधि जनता के लिए किसी भी पैमाने से जनार्दन साबित नहीं हो रहा।
हेमा मालिनी के दूर से ही दर्शन लाभ संभव होने को लेकर कुछ अन्‍य व्‍यक्‍तियों की टिप्‍पणी भी बहुत कुछ कहती है।
उनके अनुसार इस तरह तो हेमा मालिनी को पर्दे पर वह पहले भी देखते रहे हैं, अभिनेत्री के रूप में उन्‍हें पहले से जानते भी हैं और पहचानते भी हैं। फिर उनके सांसद होने का क्‍या लाभ।
सांसद होने के नाते लोग उन्‍हें अपनी समस्‍याओं से अवगत कराना चाहते हैं, मथुरा के विकास की योजनाएं जानना चाहते हैं। वह उनसे पूछना चाहते हैं कि उनके लिए वोट मांगने आए मोदी जी ने यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने का जो वायदा किया था, उसका क्‍या हुआ।
मथुरा की जनता अपनी सांसद से यह भी पूछना चाहती है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखकर कृष्‍ण जन्‍मभूमि से चंद कदम दूरी पर घर-घर में पशुओं का अवैध कटान कब तक होता रहेगा। कब तक उन पशुओं का रक्‍त नाले-नालियों के माध्‍यम से सीधे यमुना के जल में समाहित होता रहेगा।
मथुरा में जलभराव की समस्‍या का समाधान होगा भी या नहीं और यहां बिजली, पानी आदि की किल्‍लत कभी खत्‍म हो पायेगी अथवा नहीं। मथुरा की सीमा में पड़ने वाला करीब 90 किलोमीटर लंबा राष्‍ट्रीय राजमार्ग और साथ ही अत्‍याधुनिक यमुना एक्‍सप्रेस वे कभी यात्रियों के लिए सुरक्षित हो पायेगा या नहीं।
जाहिर है कि ऐसी ही तमाम समस्‍याओं के बारे में मथुरा की जनता अपनी सांसद से तभी पूछ पायेगी जब वह उनसे मिल सकेगी, किंतु उनसे मिलना संभव ही नहीं है। सांसद चुने जाने के बाद डेढ़ साल में कभी सांसद महोदया ने मीडिया से भी कोई संपर्क स्‍थापित नहीं किया। कभी कोई प्रेस कॉफ्रेंस नहीं की और ना किसी मीडियाकर्मी के सामने अपनी योजनाओं का खुलासा किया।
हां, इस बीच मुंबई में वह अपनी डांस अकादमी के लिए महाराष्‍ट्र सरकार द्वारा आवंटित करोड़ों रुपए कीमत की जमीन के लिए जरूर मीडिया की सुर्खियां बनीं।
मथुरा में डेढ़ साल के दौरान उन्‍होंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसे रेखांकित करके भारतीय जनता पार्टी मिशन 2017 के लिए वोट मांग सके।
मोदी सरकार के दूत गिरिराज सिंह मथुरा के बावत चाहे जैसी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपें और चाहे जिस रूप में पेश करें किंतु इतना तय है कि प्रधानमंत्री पद के प्रत्‍याशी की हैसियत से मोदी जी ने मथुरा की जनता से जो वायदे किए थे उन्‍हें हेमा मालिनी द्वारा पूरा करना तो दूर, उस दिशा में आगे भी बढ़ती नजर नहीं आ रहीं।
रहा सवाल, केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रहीं करीब एक दर्जन योजनाओं का तो वह भी बदहाली को प्राप्‍त हैं।
मथुरा की जनता का पूर्व में भी बाहरी जनप्रतिनिधियों के संबंध में अनुभव अच्‍छा नहीं रहा। हेमा मालिनी से पूर्व रालोद के युवराज चौधरी जयंत ने भी कृष्‍ण नगरी की जनता को निराश ही किया और उनसे पूर्व भाजपा की ही टिकट पर दो बार सांसद रहे स्‍वामी साक्षी महाराज ने भी।
मथुरा से इतर दूसरे जनपदों से मिल रहीं रिपोर्ट्स भी बताती हैं कि मोदी जी के नाम पर UP की जनता ने उम्‍मीद से कहीं अधिक भाजपा को जितने लोकसभा सदस्‍य दिए, उनमें से अधिकांश की कार्यप्रणाली अब तक जनअपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रही है। ज्‍यादातर जनपदों में ऐसे कोई उल्‍लेखनीय विकास कार्य नहीं हुए हैं जो भाजपा की जीत का आधार बन सकें।
यूपी के चुनावों में अब भी करीब एक साल का समय बाकी है इसलिए बेहतर होगा कि भारतीय जनता पार्टी अपने सांसदों को जनअपेक्षाओं के अनुरूप सक्रिय करे और उन्‍हें जनता के बीच भेजकर फीडबैक ले, न कि केंद्रीय मंत्रियों की रिपोर्ट से काम चलाए।
सुरक्षा गार्डों से घिरे केंद्रीय मंत्री न तो एक या दो दिन में दो जनपदों की वास्‍तविक स्‍थिति का आंकलन कर सकते हैं और न केवल अधिकारियों और अपनी पार्टी के पदाधिकारियों से सच्‍चाई जान सकते हैं।
एक-दो दिन में दो जनपदों की जनता के मिजाज का रुख भांपने की कोशिश करना, सिर्फ लकीर पीटने की कोशिश करने जैसा है। ऐसी कोशिशों से मिशन 2017 फतह होने वाला नहीं है। यह बात भाजपा और मोदी जी जितनी जल्‍दी समझ लें, अच्‍छा है अन्‍यथा जिस तरह सांसद बनने के बावजूद हेमा मालिनी मथुरा की जनता के लिए ड्रीम गर्ल ही साबित हो रही हैं उसी तरह UP की जनता भी भाजपा और मोदी सरकार को सपने भले ही दिखा दे किंतु उन्‍हें हकीकत नहीं बनने देगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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