शनिवार, 30 जुलाई 2016

बलात्‍कार केस: अब उपमन्‍यु के साथ DGP और SSP भी हाईकोर्ट से खाल बचाने में लगे

– DGP और SSP को भी शपथ पत्र के जरिए जवाब दाखिल करने में छूटे पसीने
– एक-दूसरे के ऊपर थोपा उपमन्‍यु के खिलाफ जांच ट्रांसफर करने का  मामला
मथुरा। बलात्‍कार के केस में पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने की कोशिश करने वाले DGP और SSP अब इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी खाल बचाने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत 12 जुलाई के अपने आदेश में मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद सहित यूपी के तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी तथा तत्‍कालीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी से 25 जुलाई तक व्‍यक्‍तिगत शपथपत्र के जरिए जवाब तलब किया था।
हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए आनंद लाल बनर्जी व मंजिल सैनी ने तो अपने-अपने जवाब सहित शपथ पत्र दाखिल कर दिए हैं किंतु सीएम के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद ने अभी अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
शासन के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने जगजीवन प्रसाद को जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय और देते हुए अगली तारीख 08 अगस्‍त मुकर्रर कर दी है।
इन दिनों लखनऊ में वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को भेजे गए अपने जवाब में सिर्फ खुद को बचाने का प्रयास किया है और कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ बलात्‍कार के केस की जांच स्‍थानांतरित करने का सारा ठीकरा अपने उच्‍चाधिकारियों के सिर फोड़ा है।
मंजिल सैनी ने अपने जवाब में लिखा है कि मैंने बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ जांच को मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करने के लिए मुख्‍यमंत्री के ओएसडी की सिफरिश से आए उच्‍चाधिकारियों के आदेश का पालनभर किया था। बतौर एसएसपी मुझे किसी जांच को मथुरा जनपद से बाहर स्‍थानांतरित करने का अधिकार ही नहीं था।
जांच स्‍थानांतरित हो जाने के बाद मथुरा पुलिस ने तत्‍काल इस केस से संबंधित केस डायरी और सभी पेपर्स फिरोजाबाद पुलिस को सौंप दिए।
मंजिल सैनी के जवाब से पहली बार में तो ऐसा लगता है जैसे बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को बचाए रखने में उनकी कोई भूमिका ही न हो किंतु जब किसी जांच को स्‍थानांतरित करने के लिए तय आदेश-निर्देशों पर गौर किया जाए तो पता लगता है कि ऊपर से लेकर नीचे तक बैठे पुलिस अधिकारियों ने किस प्रकार सारे आदेश-निर्देशों की खुली अवहेलना करके कमलकांत उपमन्‍यु को बच निकलने का पूरा मौका उपलब्‍ध कराया।
किसी भी केस की जांच बदलने के लिए उत्‍तर प्रदेश के ही प्रमुख सचिव देवाशीष पण्‍डा द्वारा प्रदेश पुलिस के मुखिया से लेकर हर जिले के पुलिस प्रमुख तथा जिलाधिकारियों तक के लिए 22 अक्‍टूबर 2014 को जो पत्र भेजा गया था, उसके मुताबिक निर्गत किए गए आदेश-निर्देश इस प्रकार हैं:
1- किसी भी केस की जांच को स्‍थानांतरित करने से पहले उस जिले से केस की आख्‍या मंगानी होगी जहां वो केस रजिस्‍टर्ड हुआ हो और उसी आख्‍या के आधार पर जांच ट्रांसफर करने का निर्णय लिया जाएगा।
2- भेजी गई आख्‍या न केवल पूर्णत: स्‍पष्‍ट होनी चाहिए बल्‍कि उस पर जिले के पुलिस प्रमुख की संस्‍तुति उनके अपने हस्‍ताक्षर के साथ की जानी चाहिए। संस्‍तुति करने के लिए भी पुलिस प्रमुख को आख्‍या के साथ संलग्‍न ”चेक लिस्‍ट” के आदेशों पर अमल करना होगा।
3- इस चेक लिस्‍ट में आरोपी के बावत बहुत सी जानकारियों का ब्‍यौरा उपलब्‍ध कराने तथा उस समय के विवेचक का भी जांच ट्रांसफर करने को लेकर अभिमत जानने सहित कुल 15 बिंदु दिए गए हैं जिन्‍हें पूरा करना आवश्‍यक है।
गौरतलब है कि कमलकांत उपमन्‍यु के मामले में न तो तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बजर्नी ने ऐसे किसी आदेश-निर्देश का पालन किया और ना ही मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने, जबकि प्रमुख सचिव का पत्र इस केस से करीब डेढ़ महीने पहले ही हर जिले के पुलिस प्रमुख तक पहुंच चुका था।
इसके अलावा मंजिल सैनी के पास क्‍या इन प्रश्‍नों का कोई जवाब है कि पीड़िता द्वारा खुद उनसे संपर्क स्‍थापित किए जाने के बावजूद उन्‍होंने जांच के नाम पर कई दिन तक क्‍यों कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ केस दर्ज नहीं होने दिया ?
क्‍यों इस बीच पीड़िता के भाई और पिता के खिलाफ ही एक केस दर्ज करवा दिया जो बाद में झूठा साबित हुआ ?
06 दिसंबर 2014 को केस दर्ज हो जाने के बाद से जांच स्‍थानांतरित होने के बीच 15 दिनों तक मंजिल सैनी क्‍या करती रहीं। उन्‍होंने आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को गिरफ्तार न करके उसे पीड़िता व उसके परिवार पर दबाव बनाने तथा लखनऊ तक संपर्क साधकर जांच गैर जनपद स्‍थानांतरित कराने का मौका कैसे दिया, वो भी तब जबकि इस बीच पीड़िता का मैडीकल भी हो चुका था और 161 व 164 के तहत बयान भी दर्ज कराए जा चुके थे।
क्‍या मंजिल सैनी को पहले से ज्ञात था कि कमलकांत उपमन्‍यु अपने खिलाफ केस की जांच गैर जनपद ट्रांसफर कराने में सफल होगा।
मंजिल सैनी द्वारा बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने का यह प्रयास इसलिए और अधिक मायने रखता है क्‍योंकि कमलकांत उपमन्‍यु के साथ मंजिल सैनी की निकटता जगजाहिर थी। वह कमलकांत उपमन्‍यु के घर पर उनके निजी कार्यक्रमों तक में शामिल होती थीं।

समाचार चैनल ”आजतक” के समक्ष इस केस से मुतल्‍लिक अपना पक्ष रखते वक्‍त भी बतौर एसएसपी मंजिल सैनी का आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को ”उपमन्‍यु जी” संबोधित करना और प्रतिष्‍ठित पत्रकार बताना इस बात की पुष्‍टि करता है कि मंजिल सैनी का कमलकांत उपमन्‍यु के प्रति सॉफ्टकॉर्नर बरकरार था।

मंजिल सैनी ने कोर्ट को शपथपत्र के माध्‍यम से दिए गए जवाब में इस बात का कोई उल्‍लेख नहीं किया कि पीड़िता के कोर्ट में बयान हो जाने के बाद वह आरोपी की गिरफ्तारी के लिए आखिर किस बात का इंतजार करती रहीं।
इसी प्रकार तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बजर्नी ने अपने बचाव में शपथ पत्र के जरिए जो सफाई पेश की है, वह बहुत ही हास्‍यास्‍पद है। जैसे बनर्जी का एक ओर तो यह कहना कि उन्‍हें CrPC की धारा 36 तथा पुलिस एक्‍ट 1861 की धारा 3 के तहत किसी केस की जांच को ट्रांसफर करने का अधिकार है, और दूसरी ओर यह बताना कि उक्‍त जांच उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज की संस्‍तुति पर ट्रांसफर की है।
बनर्जी संभवत: यह भूल गए कि वह जवाब हाईकोर्ट को भेज रहे हैं, न कि किसी नेता को।

आश्‍चर्य की बात यह है कि डीजीपी के पद से अवकाश ग्रहण करने के मात्र चंद रोज पहले किए गए इस कारनामे के लिए आनंद लाल बनर्जी ने भी जांच ट्रांसफर करने के लिए प्रमुख सचिव द्वारा दिए गए लिखित आदेश-निर्देशों पर गौर करना जरूरी नहीं समझा। आखिर क्‍यों ?
इतने बड़े पद पर बैठे अधिकारी ने कैसे उन आदेश निर्देशों की खुली अवहेलना की और जांच ट्रांसफर करने का आदेश करने से पहले जिले के एसएसपी से आख्‍या क्‍यों नहीं मांगी।
कोर्ट को दिए गए शपथ पत्र में डीजीपी बनर्जी ने लिखा है कि उन्‍होंने आरोपी के भाई की एप्‍लीकेशन पर मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज की संस्‍तुति और पीड़िता द्वारा भी जांच बदलने के लिए मुझे दिए गए प्रार्थना पत्र के मद्देनजर अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए जांच ट्रांसफर की जबकि सच्‍चाई यह है कि आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के भाई पूर्व सूबेदार त्रिभुवन उपमन्‍यु ने मुख्‍यमंत्री के नाम प्रार्थना पत्र 18 दिसंबर 2014 को दिया था और पीड़िता द्वारा डीजीपी को प्रार्थना पत्र 22 दिसंबर 2014 को दिया गया लेकिन जांच बदलने के आदेश 22 दिसंबर को किए जा चुके थे।
अगर पीड़िता के प्रार्थना पत्र को भी जांच बदलने का आधार बनाया गया तो डीजीपी की इस मामले में तेजी बहुत से संदेह पैदा करती है।
जैसे 22 दिसंबर को मिले प्रार्थना पत्र पर उसी दिन बिना आख्‍या मांगे जांच बदलने का आदेश कर देने के पीछे कहीं डीजीपी का अपना कोई स्‍वार्थ तो पूरा नहीं हो रहा था। डीजीपी को यह भी मालूम था कि वह 8 दिन बाद अपने पद से अवकाश ग्रहण करने वाले हैं, फिर ऐसी कौन सी वजह थी कि डीजीपी ने सेम-डे जांच बदलने का आदेश किया।
इस मामले का एक और सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू यह है कि मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज का पद न तो कोई संवैधानिक पद है और न डीजीपी जैसा अधिकारी उनके किसी आदेश-निर्देश अथवा संस्‍तुति को मानने के लिए बाध्‍य है, ऐसे में डीजीपी बनर्जी का मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन की संस्‍तुति पर अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए जांच ट्रांसफर करने का हवाला देना कानून-व्‍यवस्‍था के साथ भद्दे मजाक से अधिक कुछ नहीं हो सकता।
डीजीपी बनर्जी ने अपने शपथ पत्र में एक दलील इस आशय की भी दी है कि याचिकाकर्ता एडवोकेट विजय पाल तोमर चूंकि इस केस में कोई पक्ष नहीं हैं इसलिए उन्‍हें जनहित याचिका दायर करने का कोई अधिकार भी नहीं है, एक तरह से उच्‍च न्‍यायालय को चुनौती देने के समान है। उच्‍च न्‍यायालय ने जब याचिका स्‍वीकार करके केस की सुनवाई शुरू कर दी और जवाब तलब भी कर लिया तो ऐसी किसी दलील का क्‍या औचित्‍य रह जाता है। यूं भी जनहित याचिका दायर करने का अधिकार किसे है और किसे नहीं, यह देखना कोर्ट का काम है न कि आनंद लाल बनर्जी का।
इन हालातों में लगता तो यह है इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय आगामी 08 अगस्‍त को इस मामले में कोई बड़ा फैसला सुना सकती है। केस की जांच नए सिरे से सीबीआई को भी सौंप सकती है जैसा कि उसने 12 जुलाई के अपने आदेश में कहा भी है कि क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
यदि ऐसा होता है तो निश्‍चित है कि जांच की आंच सिर्फ पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु, तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी, तत्‍कालीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी तथा मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद तक सीमित नहीं रह जाएगी।
तब इसकी जांच के दायरे में वह लोग भी होंगे जिन्‍होंने एक मामूली से पत्रकार को इतना अधिक प्रभावशाली बनाने में मदद की कि वह पूरी व्‍यवस्‍था को खुली चुनौती दे सके और मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज सहित डीजीपी व महिला एसएसपी अपनी गर्दन फंसाकर भी बलात्‍कार जैसे संगीन अपराध से उसे बच निकलने के लिए पूरा अवसर प्रदान करते रहे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

मुश्‍किल में मनीषा गुप्‍ता: पौने 2 करोड़ के घोटाले में शासन ने थमाया आरोपपत्र

मथुरा। नगर पालिका द्वारा एसटीपी व एसपीएस संचालन के लिए उठाए गए ठेके में पौने 2 करोड़ रुपए के घोटाले पर अब शासन ने भी अपनी मोहर लगाते हुए जिलाधिकारी के माध्‍यम से पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता को आरोप पत्र थमा दिया है।
नगर विकास अनुभाग-2 के सचिव श्रीप्रकाश सिंह तथा उप सचिव श्रवण कुमार सिंह के हस्‍ताक्षरयुक्‍त इस पत्र में जिलाधिकारी कार्यालय मथुरा से पालिकाध्‍यक्ष को तत्‍काल आरोप पत्र तामील कराने तथा तामीली की सूचना 3 दिनों के अंदर शासन को उपलब्‍ध कराने के लिए लिखा गया है।
शासन ने पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता से इस आरोप पत्र पर 15 दिन के अंदर जवाब तलब करते हुए हिदायत दी है कि यदि 15 दिन के अंदर वह अपना स्‍पष्‍टीकरण नहीं देती हैं तो यह मान लिया जाएगा कि उन्‍हें अपने बचाव में कुछ नहीं कहना। इसके बाद शासन इस मामले में उपलब्‍ध अभिलेखों के आधार पर कार्यवाही सुनिश्‍चित करेगा जिसकी पूरी जिम्‍मेदारी पालिकाध्‍यक्ष की होगी।
उत्‍तर प्रदेश शासन के नगर विकास अनुभाग-2 से पत्रांक संख्‍या 860/नौ-2-16-273 सा/15 पर दिनांक 23 जून 2016 को जारी किया गया यह आरोप पत्र कार्यालय जिलाधिकारी मथुरा में 27 जून के दिन प्राप्‍त हुआ।
पालिका प्रशासन से जब इस मामले में पूछा गया तो पता लगा कि जिलाधिकारी कार्यालय से पालिकाध्‍यक्ष को आरोप पत्र तामील हो चुका है और पालिकाध्‍यक्ष ने भी अपना जवाब शासन को भेज दिया है।
कानूनविदों की मानें तो निर्धारित समय के अंदर पालिकाध्‍यक्ष द्वारा स्‍पष्‍टीकरण न देने अथवा उनके स्‍पष्‍टीकरण से संतुष्‍ट न होने की स्‍थिति में नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 48 के तहत शासन, पालिकाध्‍यक्ष को सीधे बर्खास्‍त कर सकता है।
शासन द्वारा जारी किए गए आरोप पत्र में आयुक्‍त आगरा मण्‍डल के पत्रांक संख्‍या 1234/तेईस-65 (2014-15)/स्‍था. निकाय दि. 20.01.2016 के आधार पर जिन अनियमितताओं को लेकर पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता से जवाब तलब किया गया है वो इस प्रकार है:
1- नगर पालिका परिषद मथुरा के अंतर्गत एसटीपी व एसपीएस के संचालन हेतु ठेके के लिए टेक्‍नीकल बिड एवं फाइनेन्‍शियल बिड अलग-अलग लिफाफों में रखकर एकसाथ डाली जानी थीं। इनमें से टेक्‍नीकल बिड पहले खुलनी चाहिए थी और उसका परीक्षण करने के उपरांत यह सुनिश्‍चित करना अनिवार्य था कि तकनीकी आधार पर अयोग्‍य फर्म कौन सी है क्‍योंकि तकनीकी आधार पर अयोग्‍य फर्म की फाइनेन्‍शियल बिड नहीं खोली जा सकती। इस मामले में टेक्‍नीकल बिड का मात्र तुलनात्‍मक चार्ट बनाकर खानापूरी कर दी गई और उस पर भी शर्त संख्‍या 3 के अनुसार सक्षम अधिकारी या नगर पालिका की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया जो गंभीर वित्‍तीय अनियमितताओं की श्रेणी का कृत्‍य है।
2- नगर पालिका परिषद मथुरा की संबंधित पत्रावली पर इस आशय का गलत तथ्‍य अंकित किया गया कि एसटीपी व एसपीएस संचालन के ठेके की सभी बिड सफल हुईं जबकि टेक्‍नीकल बिड को स्‍वीकृत करने का कोई आदेश न तो टेंडर कमेटी द्वारा पारित किया गया और ना ही पालिका बोर्ड द्वारा उस पर कोई निर्णय लिया गया। इस प्रकार टेक्‍नीकल बिड के लिए पत्रावली पर गलत तथ्‍यों का उल्‍लेख करते हुए फाइनेन्‍शियल बिड खोल दी गई जिससे स्‍पष्‍ट है कि ठेकेदारों के साथ दुरभि संधि करके अनियमित तरीके से ठेका उठा दिया गया।
3- फरीदाबाद की जिस फर्म ”स्‍टील इंजीनियर्स” को 1 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 रुपए का ठेका दिया गया, उसका उत्‍तर प्रदेश से निर्गत हैसियत व चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्‍तुत नहीं किया गया जोकि गंभीर वित्‍तीय अनियमितता की श्रेणी का कृत्‍य और भ्रष्‍टाचार का द्योतक है।
4- आपके द्वारा फरीदाबाद (हरियाणा) की जिस फर्म को ठेका दिया गया, वह नगर पालिका परिषद् मथुरा में पंजीकृत ही नहीं थी। साथ ही अन्‍य फर्म मै. पंप इंजीनियर्स एंड ट्रेडर्स द्वारिकापुरी मथुरा का हैसियत प्रमाण पत्र, वांछित से कम था लिहाजा संपूर्ण वित्‍तीय वर्ष 2014-15 के लिए पर्याप्‍त नहीं था लेकिन आपने उसके द्वारा डाली गई बिड को सफल मान लिया।
इसी प्रकार लुधियाना की फर्म मै. लॉर्ड कृष्‍णा एंटरप्राइजेज ने भी उत्‍तर प्रदेश से निर्गत हैसियत व चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्‍तुत नहीं किए थे, बावजूद इसके आपके द्वारा उसकी टेक्‍नीकल बिड को सफल मान लिया गया जबकि उसके प्रमाण पत्र ठेके के लिए मान्‍य ही नहीं थे।
5- इस प्रकार तीनों फर्म्‍स तकनीकी रूप से अयोग्‍य होने के कारण बिड निरस्‍त की जानी चाहिए थी लेकिन बिड खोली गईं।
6- टेक्‍नीकल बिड स्‍वीकृत होने तथा फाइनेन्‍शियल बिड खोले जाने के बीच समय का कोई अंतर नहीं रखा गया और दोनों बिड एकसाथ खोलकर नियमों का घोर उल्‍लंघन किया गया।
7- फरीदाबाद की जिस फर्म ”स्‍टील इंजीनियर्स” को 1 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 रुपए का ठेका दिया गया, उसके अनुबंध हेतु शपथ पत्र तो प्रोपराइटर कर्मवीर मेहता का प्रस्‍तुत किया गया लेकिन हैसियत प्रमाण पत्र उनकी पत्‍नी सुमन मेहता का लगाया गया जो हरियाणा से जारी किया गया था।
आपका यह कृत्‍य पूरी तरह नियम विरुद्ध है और स्‍पष्‍ट करता है कि ”स्‍टील इंजीनियर्स” को ठेका दुरभि संधि करके दिया गया।
8- मै. स्‍टील इंजीनियर्स द्वारा श्रम विभाग को दिए गए प्रपत्र में 16 कर्मचारी दिखाए गए जबकि नगर पालिका परिषद मथुरा में 12 सीवेज पंप के संचालन पर 8-8 घंटे की ड्यूटी के हिसाब से कुल 72 कर्मचारी तथा दो एसटीपी के संचालन के लिए कुल 12 कर्मचारियों की आवश्‍यकता थी। इस प्रकार 84 कर्मचारियों की आवश्‍यकता थी जिनका उल्‍लेख पत्रावली में कर्मचारियों की सूची के अंदर भी नहीं किया गया।
9- एसटीपी व एसपीएस संचालन में अनुरक्षण व सत्‍यापन के लिए उत्‍तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 104 के अनुसार सभासदों की एक कमेटी बनाए जाने का प्रावधान है किंतु आपके द्वारा ऐसी किसी कमेटी का गठन ही नहीं किया गया जोकि नियमों का स्‍पष्‍ट उल्‍लंघन साबित करता है।
10- प्रशासनिक अधिकारियों ने समय-समय पर जब कभी एसटीपी व एसपीएस का निरीक्षण किया तो वह प्राय: बंद पाए गए। 09 फरवरी 2015 को किए गए निरीक्षण में भी स्‍टेशन बंद मिले और गंदा पानी सीधे यमुना में गिरता पाया गया।
उल्‍लेखनीय है कि पौने 2 करोड़ रुपए के इस घोटाले में पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता के अतिरिक्‍त अधिशासी अधिकारी के. पी. सिंह, अवर अभियंता (जलकल) के. आर. सिंह, सहायक अभियंता उदयराज, लेखाकार विकास गर्ग तथा लिपिक टुकेश शर्मा भी आरोपी हैं।
ठेका उठाने में बरती गईं अनियमितताओं तथा भ्रष्‍टाचार का यह मामला अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल (NGT) में भी लंबित है और वहां इसकी सुनवाई के लिए इसी महीने की 25 तारीख मुकर्रर की गई है। ऐसे में देखना यह होगा कि पौने 2 करोड़ रुपए का घोटाला करने के इन आरोपियों पर पहले शासन स्‍तर से कार्यवाही की जाती है अथवा एनजीटी इनके खिलाफ कार्यवाही की पहल करता है।
इस पूरे मामले का एक दिलचस्‍प पहलू यह है कि गंगा और यमुना जैसी जिन पवित्र नदियों को प्रदूषण मुक्‍त करने के लिए मोदी सरकार एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रही है और अखिलेश सरकार भी उसमें पूरा सहयोग करने का वादा कर चुकी है, उनके एसटीपी व एसपीएस संचालन में घोटाले की आरोपी मथुरा की पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता यूपी के आगामी विधानसभा चुनावों में मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से चुनाव लड़ने का ख्‍वाब देख रही हैं। उनके पति और भाजपा नेता राजेश गुप्‍ता ”डब्‍बू” दावा कर रहे हैं कि मनीषा को न केवल टिकट मिलेगा बल्‍कि वह यूपी में बनने वाली अगली सरकार के अंदर मंत्रिपद भी ग्रहण करेंगी।
-लीजेंड न्‍यूज़

बलात्‍कार के केस में पत्रकार उपमन्‍यु को इलाहाबाद High Court से तगड़ा झटका

-कोर्ट ने पूछा, क्‍यों न CBI को सौंप दिया जाए केस 
-मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज, डीजीपी यूपी तथा एसएसपी मथुरा से 25 जुलाई तक शपथपत्र दाखिल करने को कहा 
मथुरा। एमबीए पास एक लड़की से बलात्‍कार करने के केस में पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु को इलाहाबाद High Court ने तगड़ा झटका दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के विद्वान न्‍यायाधीश माननीय अरुण टंडन तथा माननीय सुनीता अग्रवाल की डिवीजन बैंच ने गत 12 जुलाई के अपने आदेश में इस मामले पर मुख्‍यमंत्री उत्‍तर प्रदेश अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्‍तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने को कहा है।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी पूछा है कि जिस तरह से बलात्‍कार पीड़िता के कोर्ट में बयान होने के बावजूद जांच ट्रांसफर कर दी गई, उसे देखते हुए क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
गौरतलब है कि पीड़िता की तहरीर पर दुराचार का यह मामला 06 दिसंबर 2014 को मथुरा के हाईवे थाने में अपराध संख्‍या 944/2014 धारा 376 व 506 आईपीसी के तहत दर्ज हुआ था।
उत्‍तर प्रदेश जर्नलिस्‍ट एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्‍यक्ष, ब्रज प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष तथा मथुरा छावनी बोर्ड के भी उपाध्‍यक्ष पद पर काबिज रहे कमलकांत उपमन्‍यु ने अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल करते हुए पहले तो इस गंभीर आपराधिक मामले की जांच को मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करा लिया और फिर उसमें फिरोजाबाद पुलिस से फाइनल रिपोर्ट लगवा दी जबकि जांच स्‍थानांतरित होने से पूर्व न केवल पीड़िता का मेडीकल हो चुका था बल्‍कि मथुरा पुलिस के सामने 161 व कोर्ट में 164 के तहत बयान भी दर्ज कराए जा चुके थे। जिस समय यह जांच स्‍थानांतरित की गई उस समय उत्‍तर प्रदेश पुलिस के डीजी आनंद लाल बनर्जी हुआ करते थे और जिन्‍हें बमुश्‍किल एक सप्‍ताह बाद ही अपने पद से मुक्‍त होना था जबकि मथुरा के एसएसपी पद पर मंजिल सैनी काबिज थीं जो फिलहाल लखनऊ के एसएसपी पद पर काबिज हैं। तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी की आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु से नजदीकियां जगजाहिर थीं और मंजिल सैनी के उपमन्‍यु के घर पर उसके साथ खींचे गए फोटो भी उसकी पुष्‍टि कर रहे थे लिहाजा मंजिल सैनी ने पहले तो उपमन्‍यु के खिलाफ एफआईआर ही बड़ी मुश्‍किल से दर्ज होने दी और फिर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद उसकी गिरफ्तारी न करके उसे अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल करने की पूरी छूट भी दी। एसएसपी का संरक्षण ही था कि बलात्‍कार जैसे संगीन आरोप में और पीड़िता के 164 के बयान हो जाने के बावजूद कमलकांत उपमन्‍यु अपने सगे भाई की एप्‍लीकेशन पर जांच मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करने में सफल रहा।
फिरोजाबाद में तब तक एसपी के पद पर पीयूष श्रीवास्‍तव आ चुके थे जो पहले मथुरा में एएसपी रहे थे। पीयूष श्रीवास्‍तव से भी कमलकांत उपमन्‍यु की अच्‍छी सेटिंग थी इसलिए उसे फिरोजाबाद के आईओ को प्रभावित करने में कोई परेशानी नहीं हुई।
केस की गंभीरता और आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के प्रभाव को देखते हुए मथुरा बार एसोसिएशन के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष एडवोकेट विजयपाल तोमर इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ले गए और 09 फरवरी 2015 को जनहित याचिका दायर की।
एडवोकेट विजयपाल तोमर की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश माननीय डी. वाई. चंद्रचूढ़ तथा माननीय सुजीत कुमार की बैंच ने संज्ञान लेते हुए 11 फरवरी 2015 के अपने आदेश में संबंधित सभी अधिकारियों तथा सीजेएम मथुरा को आवश्‍यक दिशा-निर्देश दिए।
इलाहाबाद हाइकोर्ट में लंबित होते हुए पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु ने इस बीच फिरोजाबाद पुलिस से इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगवा ली।
बताया जाता है कि आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु ने पीड़िता को भी अपना प्रभाव दिखाकर मथुरा कोर्ट के अंदर अपने पक्ष में बयान देने पर बाध्‍य कर दिया।
अब जबकि याचिकाकर्ता एडवोकेट विजयपाल तोमर ने 12 जुलाई 2016 को कोर्ट के समक्ष सारा मामला पेश किया और बताया कि किस तरह आरोपी ने अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल कर न केवल जांच बदलवाई बल्‍कि उसमें फाइनल रिपोर्ट लगवाकर पीड़िता के बयान भी अपने पक्ष में करा लिए तो कोर्ट ने केस की गंभीरता के मद्देनजर अब 25 जुलाई तक मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्‍तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने करने को कहा है। साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में पूछा है कि क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट में अब इस मामले की सुनवाई 27 जुलाई को होनी है।
-लीजेंड न्‍यूज़
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