बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

1 अरब फूंक देश की ही चीन से जासूसी कराई जनरलों ने

रक्षा मंत्रालय के एक इंटरनल ऑडिट में खुलासा किया गया है कि आर्मी चीफ विक्रम सिंह, वी. के. सिंह और कुछ टॉप जनरलों ने स्पेशल फाइनैंशल पावर्स के तहत 2 सालों में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की ऐसी आपातकालीन खरीद की जिसमें चीन ने अपने जासूसी उपकरण फिट कर रखे थे। चीन समेत कई देशों की खुफिया एजेंसियां जासूसी के लिए ऐसे हथकंडे अपनाती हैं।
ऑडिट में यह पता चला है कि इन विदेशी उपकरणों को खरीदने के लिए गाइडलाइंस का भी उल्लंघन किया गया। जिस उपकरण को आर्मी के एक भाग ने रिजेक्ट कर दिया, उसी को दूसरे ने खरीद लिया। यह बात भी गौर करने लायक है कि भारतीय उपकरणों से महंगे होने के बावजूद विदेशी उपकरण खरीदे गए।
ऑडिटर्स ने पाया कि विदेशी उपकरण सीधे कंपनी से खरीदने की बजाय भारतीय एजेंट से खरीदे गए जबकि कंपनी के लोग भारत में मौजूद थे। कुछ मामलों में बिचौलियों का भी इस्तेमाल किया गया। रिपोर्ट में बताया गया है कि ईस्टर्न कमांड ने विदेशी कंपनी की हाई रिज़ॉल्यूशन वाली दूरबीन महंगे दामों पर भारतीय एजेंट से खरीदीं, जबकि दूरबीन बनाने वाली कंपनी उसे कम दामों पर दे रही थी।

वाड्रा,गडकरी,वीरभद्र... अभी और न जाने कितने हैं इस हमाम में

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) प्रेजिडेंट नितिन गडकरी अकेले नहीं हैं जिन्होंने अपने ड्राइवर मनोहर पनसे को रहस्यमय तरीके से अपनी 11 फर्मों का डायरेक्टर बनाया। यह लिस्ट काफी लंबी है। ऐसे कई नेता हैं जिनके चपरासी, क्लर्क और ड्राइवर रहस्यमय तरीके से रातोंरात लखपति बन गए, या फिर मालिक ने उन्हें अपनी कंपनियों में बड़े पदों पर बैठा दिया। इसके पीछे आखिर खेल क्या है, आप दिमाग पर थोड़ा जोर डालेंगे तो समझ जाएंगे।
'बेनामी लेनदेन का है पूरा खेल'
इन मामलों पर नजर रखने वाले अधिकारियों की मानें तो ऐसे कई नेता हैं जिन्होंने बेनामी लेनदेन को छिपाने के लिए अपनी कई फर्मों के डायरेक्टर अपने ड्राइवरों और चपरासियों का बनाया हुआ है। एक सीनियर ब्यूरोक्रेट कहते हैं, 'इन फर्मों में असल में लेनदेन होता है, लेकिन हर किसी को पता होता है कि करने वाला ऐसा कर ही नहीं सकता। उन्हें बस इस्तेमाल किया जा रहा होता है।'
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