बुधवार, 25 सितंबर 2019

मथुरा में हजारों Hyundai कार उपभाेक्‍ताओं के साथ धोखा, न डीलर का पता है और न डीलरशिप का

मथुरा। भारत के कार बाजार में दूसरे नंबर पर स्‍थापित दक्षिण कोरिया की मशहूर वाहन निर्माता कंपनी Hyundai के हजारों उपभोक्‍ताओं को बड़े सुनियोजित तरीके से धोखा दिया जा रहा है लेकिन न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला।
यह धोखा मथुरा के नेशनल हाईवे पर नवादा में स्‍थित Shiel Hyundai के नाम से संचालित उस एकमात्र शोरूम पर मिल रहा है जिसके केयरटेकर इन दिनों आगरा निवासी ट्रांसपोर्टर एवं सुपारी व्‍यवसायी संजीव अग्रवाल बने हुए हैं।
मथुरा में Hyundai उपभोक्‍ताओं एवं ग्राहकों के साथ इस धोखे की शुरूआत यूं तो पिछले वर्ष ही तब हो गई थी जब स्‍थानीय डीलर राजीव रतन ने Hyundai के अपने शोरूम का गुपचुप सौदा संजीव अग्रवाल के साथ कर लिया था किंतु दोबारा यह धोखाधड़ी अब फिर बड़े रूप में सामने आई है।
दरअसल, चार दिन पूर्व प्रसिद्ध मिठाई विक्रेता ब्रजवासी ग्रुप के मालिक सतीश ब्रजवासी के पौत्र यश अग्रवाल तथा नरसी विलेज निवासी पंकज अग्रवाल ने Shiel Hyundai के डीलर राजीव रतन और उनके बेटे ऋषि रतन के खिलाफ थाना गोविंदनगर मथुरा में 25 लाख रुपयों की धोखाधड़ी का एक मामला दर्ज कराया।
संजीव अग्रवाल को किस बात का डर
इस बारे में बात करने के लिए Shiel Hyundai मथुरा पर संपर्क किया गया तो बात संजीव अग्रवाल से हुईं। संजीव अग्रवाल ने यह तो स्‍वीकार किया कि Shiel Hyundai की डीलरशिप अब भी राजीव रतन के नाम है, लेकिन वह इस बात का कोई जवाब नहीं दे सके कि वह किस हैसियत से Shiel Hyundai का संचालन कर रहे हैं।
संजीव अग्रवाल ने साफ कहा कि वह मोबाइल फोन पर कोई बात नहीं करना चाहते क्‍योंकि उनकी बात रिकॉर्ड की जा सकती है।
संजीव अग्रवाल का डर स्‍पष्‍ट कर रहा था कि मथुरा में Hyundai की डीलरशिप को लेकर कुछ न कुछ ऐसा है जिसे छिपाया जाना जरूरी है।
40 प्रतिशत की हिस्‍सेदारी, लेकिन डीलरशिप अब भी राजीव रतन के नाम
संजीव अग्रवाल की बातों पर संदेह होने के बाद जब और जानकारी की गई तो Shiel Hyundai से जुड़े सूत्रों ने बताया कि राजीव रतन ने संजीव अग्रवाल के साथ उस हिस्‍से में 40 प्रतिशत की साझेदारी तो की है जो कभी उनके छोटे भाई संजीव रतन के पास हुआ करता था परंतु डीलरशिप अब भी उनके नाम है क्‍योंकि कंपनी ने उनके द्वारा डीलरशिप ट्रांसफर करने का प्रस्‍ताव पूरी तरह ठुकरा दिया।
बिल्‍डिंग का भी सौदा
सूत्रों का यह भी कहना है कि संजीव अग्रवाल के नाम 40 प्रतिशत की पार्टनरशिप न सिर्फ मथुरा बल्‍कि एटा Shiel Hyundai में भी मय शोरूम के हुई है यानी व्‍यापार के साथ-साथ बिल्‍डिंग का भी सौदा किया गया है।
बताया जाता है कि 40 प्रतिशत की पार्टनरशिप भी मात्र दो महीने पहले तब मजबूरी में की गई जब Hyundai कंपनी ने डीलरशिप ट्रांसफर करने से साफ इंकार कर दिया।
सूत्रों के मुताबिक लगभग 20 करोड़ रुपया संजीव अग्रवाल द्वारा जो राजीव रतन को दिया गया था, उसमें डीलरशिप ट्रांसफर कराना शामिल था परंतु Hyundai कंपनी इसके लिए तैयार नहीं हुई क्‍योंकि कोई भी प्रतिष्‍ठित कंपनी अपने डीलर को ऐसा कोई अधिकार नहीं देती जिससे वो डीलरशिप ट्रांसफर करा सके।
आपराधिक केस दायर करा सकती है Hyundai
कोई भी ऐसा कृत्‍य कंपनी की शर्तों का उल्‍लंघन है और कंपनी इसके लिए न केवल डीलरशिप टर्मिनेट करती है बल्‍कि आपराधिक केस भी दायर करा सकती है।
डीलर अगर अपनी डीलरशिप छोड़ना चाहता है तो ज्‍यादा से ज्‍यादा इतना कर सकता है कि इस क्षेत्र के किसी अनुभवी व्‍यक्‍ति का नाम कंपनी को रिकमेंड कर दे किंतु अंतिम निर्णय कंपनी का ही होता है।
कंपनी यदि अपनी सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उस व्‍यक्‍ति को उपयुक्‍त समझती है तो पहले वाली डीलरशिप को समाप्‍त कर नए सिरे से डीलरशिप अलॉट करेगी, न कि पुरानी डीलरशिप के साथ उसका कोई संबंध रखने की इजाजत देगी।
हजारों उपभोक्‍ताओं का क्‍या ?
ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि जब राजीव रतन और संजीव रतन दोनों ने Shiel Hyundai से नाता तोड़ लिया है और कंपनी ने संजीव अग्रवाल के नाम डीलरशिप ट्रांसफर करने का प्रस्‍ताव ठुकरा दिया है तो यहां हजारों की संख्‍या में मौजूद उन उपभोक्‍ताओं का क्‍या, जो अब तक Shiel Hyundai को मथुरा का अधिकृत डीलर समझकर अपनी गाड़ियों की सर्विस, बीमा, रिपेयरिंग आदि करवा रहे हैं।
Shiel Hyundai के शोरूम पर मौजूद संजीव अग्रवाल कहते हैं कि वो मालिक यानी डीलर नहीं हैं और राजीव रतन व संजीव रतन पहले ही मथुरा आना तक छोड़ चुके हैं, राजीव रतन के पुत्र ऋषि रतन जो पहले Shiel Hyundai का पूरा कारोबार संभालते थे, वो भी यहां नहीं झांकते, तो फिर डीलरशिप किसके भरोसे चल रही है।
पुराने स्‍टाफ को नौकरी से निकाला
यह भी पता लगा है कि Shiel Hyundai के केयरटेकर संजीव अग्रवाल ने डीलरशिप पर अपना पूरा आधिपत्‍य जमाने के लिए उन अधिकांश पुराने कर्मचारियों को निकाल बाहर किया है जिन्‍हें कंपनी ने समय-समय पर ट्रेनिंग दी थी और वो कंपनी तथा डीलर के प्रति वफादार थे।
नए ग्राहक भी होंगे धोखाधड़ी के शिकार
इन हालातों में पुराने उपभोक्‍ताओं के अलावा ऐसे नए ग्राहकों के साथ भी Shiel Hyundai पर धोखाधड़ी किए जाने की पूरी संभावना है जो मथुरा की डीलरशिप को अधिकृत समझ रहे हैं।
आज की तारीख में Shiel Hyundai पर इन बातों के लिए भी कोई जवाबदेह नहीं है कि जो पार्ट या इंजन आयल आदि सर्विस के दौरान गाड़ियों में इस्‍तेमाल किया जा रहा है वह कितना GENUINE है।
सूत्रों का कहना है उपभोक्‍ता और ग्राहकों सहित Hyundai कंपनी की आंखों में धूल झोंकने का यह काम Hyundai के ही कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से किया जा रहा है। वो लोग Shiel Hyundai की असलियत अपने उच्‍च अधिकारियों तक पहुंचने ही नहीं दे रहे जिससे कंपनी की डीलरशिप सहित उसका भरोसा दांव पर लग चुका है।
बताया जाता है कि मंदी के इस दौर में भी Hyundai की डीलरशिप लेने को तमाम लोग तैयार हैं क्‍योंकि Hyundai की ब्रांड वेल्‍यू काफी अच्‍छी है। संभवत: इसीलिए संजीव अग्रवाल करोड़ों रुपया लगाने के बावजूद बिना मालिकाना हक के Shiel Hyundai का संचालन कर रहे हैं।
Shiel Hyundai के भविष्‍य का आगे चलकर क्‍या होगा, यह तो देर-सवेर पता लग ही जाएगा परंतु फिलहाल Hyundai के हजारों उपभोक्‍ताओं और उन लोगों के साथ एक साजिश के तहत धोखाधड़ी हो रही है जो इस ब्रांड तथा Shiel Hyundai पर भरोसा करते हैं और उसी भरोसे के साथ आंख बंद करके Shiel Hyundai पहुंचते हैं।
Shiel Hyundai के शोरूम का नक्‍शा भी विवादों में
दूसरी ओर इस बीच यह जानकारी भी मिल रही है कि नेशनल हाईवे नंबर-2 पर नवादा क्षेत्र में जहां Shiel Hyundai का शोरूम बना है, वह Residential area है। किसी भी Residential area में कानूनन कार के किसी शोरूम का निर्माण नहीं कराया जा सकता।
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने भी इसकी पुष्‍टि करते हुए बताया कि कब और किन परिस्‍थितियों में नवादा के Residential area में कार के शोरूम बना लिए गए, कहना मुश्‍किल है।
विकास प्राधिकरण से इस बारे में एक चौंकाने वाली जानकारी यह मिली कि जिस प्‍लॉट पर Shiel Hyundai का शोरूम आज खड़ा है, उस पर तो रेस्‍टोरेंट के लिए नक्‍शा पास किया गया था।
प्राधिकरण के अधिकारियों ने इस बारे में जांच के उपरांत कार्यवाही करने का भरोसा दिया है।
गौरतलब है कि राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली से ताजनगरी आगरा को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे नंबर दो पर स्‍थानीय डेवलपमेंट अथॉरिटी की सांठगांठ से Residential area में ऐसे और भी कई शोरूम स्‍थापित हो चुके हैं जो नियम विरुद्ध हैं किंतु आजतक उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई।
सच तो यह है कि अथॉरिटी से पास नक्‍शे के इतर मामूली सा भी फेरबदल दिखाई देने पर पहुंच जाने वाले विप्रा अधिकारी ऐसे शोरूम्‍स को लेकर अब तक आंखें व कान बंद किए बैठे रहे।
यही कारण है कि राजीव और ऋषि रतन ने Hyundai की अपनी डीलरशिप का सौदा शोरूम सहित किया है क्‍योंकि वह उसकी असलियत जानते हैं, और उन्‍हें मालूम है कि रेस्‍टोरेंट में पास शोरूम कभी भी उनके गले की हड्डी बन सकता है।
बहरहाल, करोड़ों रुपए के इस खेल से फिलहाल तो Hyundai कंपनी के साथ-साथ बैंकें और एजेंसी पर कार्यरत स्‍टाफ भी अनभिज्ञ है। कंपनी और बैंकों को तो जब सच्‍चाई पता लगेगी तब वो देख लेंगे किंतु जिस स्‍टाफ को निकाल बाहर किया गया है, उसका भविष्‍य पूरी तरह अंधकारमय है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

रविवार, 1 सितंबर 2019

BBC की जुबानी, खुद उसकी कहानी: कश्‍मीर पर अपुष्‍ट एवं फर्जी खबरें प्रकाशित करता रहा है BBC

BBC ने हाल में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसके अनुसार कश्मीर के कई लोगों ने सुरक्षाबलों पर मारपीट और उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं।
BBC की रिपोर्ट में उन लोगों के ज़ख्म भी दिखाए गए जिन्‍होंने सुरक्षाबलों द्वारा उन्‍हें कथित तौर पर पीटे जाने की बात कही। हालांकि खुद BBC इन आरोपों की पुष्‍टि नहीं करता।
खुद BBC ने अपनी ही रिपोर्ट में यह लिखा कि वह इन आरोपों की पुष्टि किसी अधिकारी अथवा अधिकृत व्‍यक्‍ति से नहीं कर पाया।जिसका सीधा-सीधा अर्थ यही निकलता है कि BBC ने कश्‍मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बहुत जल्‍दबाजी में और अपुष्‍ट खबर को प्रकाशित किया।
पता नहीं BBC को कश्‍मीर पर ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित करने की क्‍या जल्‍दी थी जिसके साथ उसे स्‍वयं यह स्‍वीकार करना पड़ा कि उसके अथवा कथित पीड़ितों के आरोपों की सत्‍यता संदिग्‍ध है।
अब सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने भी BBC की एक रिपोर्ट पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है और इस तरह के आरोपों का खंडन किया है।
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नलिन कोहली ने अपनी पार्टी की ओर कहा कि “सबसे पहले, मैंने रिपोर्ट देखी नहीं है, मैंने इसके बारे में इंटरनेट पर पढ़ा है।
रिपोर्ट ख़ुद कहती है कि इन दावों की पुष्टि नहीं हो सकी है इसलिए इस पर अभी यकीन कर लेना मुश्किल है।”
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसी कोई घटना होती है तो भारत में एक मज़बूत न्यायिक व्यवस्था है और अगर मामला सही हो तो सेना से जुड़े लोगों को भी सज़ाएं हुई हैं।
BBC का यह भी कहना है कि उसने इन आरोपों के बारे में सेना से भी पूछा था। जिसके जवाब में सेना ने कहा कि उसने किसी भी नागरिक के साथ मारपीट नहीं की।
सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने कहा था कि ऐसा कोई आरोप उनके संज्ञान में नहीं आया है। उनके मुताबिक, “संभव है कि ये आरोप विरोधी तत्वों की ओर से प्रेरित हों।”
बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली का भी कुछ ऐसा ही कहना है। उन्होंने कहा कि ये असामान्य नहीं है कि कई बार किसी राजनीतिक दबाव में कई वजह से लोग सुरक्षाबलों के ख़िलाफ़ इस तरह के झूठे दावे करते हैं।
इस पर जब उनसे पूछा गया कि क्या ये आरोप मनगढ़ंत हो सकते हैं? तो उन्होंने कहा कि हां, ये मुमकिन है।
नलिन कोहली ने कहा, “क्योंकि आज जब हम बात कर रहे हैं, ये ख़बर कहीं आई नहीं है।
इसके उलट ये खबर जरूर है कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों और आतंकवादियों ने एक दुकानदार की हत्या कर दी क्योंकि उसने कर्फ़्यू हटने के बाद अपनी दुकान खोली थी। दो दिन पहले दो लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई और वे लोग मुस्लिम मुस्‍लिम गुज्‍जर (बंजारा) समुदाय से हैं।
इन हरकतों से साफ जाहिर होता है कि सुरक्षबलों पर प्रताड़ना का आरोप वे लोग लगा रहे हैं जो दिखाना चाहते हैं कश्मीर में हालात सामान्य नहीं हो सकते।”
BBC ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि उनके रिपोर्टर समीर हाशमी दक्षिण कश्मीर के जिन गांवों में गए थे वहां लोगों ने रात में छापेमारी, पिटाई और टॉर्चर की एक जैसी दास्तान सुनाईं।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि ये वही इलाके हैं जो पिछले कुछ वर्षों में भारत विरोधी चरमपंथ के गढ़ बतौर उभरे हैं।
नलिन कोहली ने कहा कि एक जिम्‍मेदार पार्टी का प्रवक्‍ता होने के नाते वो BBC की रिपोर्ट पर सवाल उठाना नहीं चाहते लेकिन ये ज़रूर कह सकते हैं कि अभी तक जिनकी पुष्टि नहीं हो सकी, उन पर कितना भरोसा किया जाए।
कोहली का मानना है कि ये आरोप पाकिस्तान प्रायोजित चरमपंथ और अलगाववाद से प्रेरित हो सकते हैं।
इस सबके बावजूद जांच 
नलिन कोहली ने कहा कि अगर BBC के रिपोर्टर ने इसे सही जगह और संबंधित लोगों के साथ साझा किया है तो वहां इसे जरूर देखा जाएगा।
लगभग यही बात BBC को भेजे बयान में सेना ने भी कही है कि सभी आरोपों की ‘तुरंत जांच’ की जा रही है।
सेना ने ये भी कहा कि वो “एक पेशेवर संगठन है जो मानवाधिकारों को समझता है और उसकी इज़्ज़त करता है।”
कश्मीर में मानवाधिकार हनन को लेकर कई तरह की रिपोर्टें आती रही हैं, जिन्‍हें भारत सरकार ने हर बार ख़ारिज किया है।
‘कश्मीर भारत का आंतरिक मामला’
बहुत से लोग जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म किए जाने के भारत सरकार के फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं। हालांकि भारत सरकार लगातार इसे अपना आतंरिक मामला बताते हुए आलोचनाओं को ख़ारिज कर रही है।
नलिन कोहली ने भी दोहराया कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और अनुच्छेद 370 एक अस्थाई प्रावधान था। वो कहते हैं कि इसकी वजह से इलाके में अलगाववाद पनपा और सीमा पार आतंकवाद ने इसे एक संघर्ष वाला इलाका दिखाने की कोशिश की, जबकि असल में ऐसा नहीं है।
नलिन कोहली ने कहा कि अनुच्छेद 370 ने लद्दाख एवं जम्मू- दो बड़े हिस्सों को नज़रअंदाज़ किया और कश्मीर घाटी के लोगों को भी इसकी वजह से काफ़ी कुछ सहना पड़ा। लोग चरमपंथियों द्वारा और चरमपंथ से जुड़ी घटनाओं में मारे गए इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार ने इस अनुच्छेद को हटाने का फ़ैसला किया।
आतंकवाद से तंग आ चुके हैं कश्‍मीर के भी लोग
ये भी कहा जा रहा है कि सरकार की कार्यवाही से इलाके के लोगों में आतंकवाद की भावना बढ़ेगी लेकिन बीजेपी के प्रवक्ता का कहना है कि इलाके में ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो बंदूक के साए और आतंकवाद के ख़तरे के बीच जीकर तंग आ चुके थे।
नलिन कोहली ने उदाहरण दिया कि, “भारतीय सेना जब अपनी भर्ती करती है तो मुस्लिम बहुल कश्मीर से हज़ारों युवक उसमें हिस्सा लेते हैं। लेकिन जब वो सेना में शामिल हो जाते हैं तो आतंकवादी उन्हें ही उठा लेते हैं और उनकी हत्या कर देते हैं, जैसा औरंगज़ेब के मामले में देखा गया। लेकिन उनकी हत्या के बाद उनके दो भाई भी सेना में शामिल हो गए।”
हिरासत में लिए गए लोगों की संख्‍या भी बढ़ा-चढ़ाकर बताई 
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद वहां कथित रूप से नेताओं, कारोबारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत 3,000 लोगों को हिरासत में लिए जाने की ख़बरें आईं।
नलिन कहोली कहते हैं कि एहतियातन हिरासत में लिए गए लोगों से जुड़ी खबरें तथ्यात्मक रूप से ग़लत हैं। उनका कहना है कि हिरासत में लिए गए लोगों की संख्या इससे बहुत कम है।
उन्होंने कहा, “शुरुआत में 600 से 700 लोगों को हिरासत में लिया गया था, अब ये संख्या 300 है. ये बात ग़लत है कि हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया गया है।”
“इन घटनाओं से साबित होता है कि लोग विकास चाहते हैं, जिससे उन्हें महरूम रखा गया। वो बंदूक के साए में जीकर तंग आ चुके हैं इसलिए मौजूदा सरकार ने फ़ैसला लिया कि जम्मू और कश्मीर का स्टेटस बदलकर इन्हें केंद्र शासित प्रदेश बनाने से सरकार वहां विकास कर पाएगी, रोज़गार सृजन कर पाएगी.”
क्‍या था BBC की रिपोर्ट में 
BBC ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था- संवैधानिक स्वायत्तता ख़त्म करने के सरकार के फ़ैसले के बाद कश्मीर में तैनात सुरक्षाबलों पर पिटाई और प्रताड़ना के आरोप लग रहे हैं.
कई गाँव वालों ने BBC को बताया है कि उन्हें डंडों और केबल से पीटा गया और बिजली के झटके दिए गए.
BBC रिपोर्टर समीर हाशमी ने दावा किया कि कई गांव वालों ने मुझे अपने घाव दिखाए लेकिन BBC इन आरोपों की पुष्टि अधिकारियों से नहीं कर पाया.
भारतीय सेना ने इन आरोपों को ‘आधारहीन और अप्रमाणित’ बताया है.
अभूतपूर्व पाबंदियों के चलते कश्मीर बीते तीन हफ़्ते से भी ज़्यादा समय से ‘बंद’ की स्थिति में है. पाँच अगस्त को जबसे अनुच्छेद 370 के तहत इस इलाक़े के विशेष दर्ज़े को ख़त्म किया गया है, सूचनाएं बहुत कम आ रही हैं.
इस इलाक़े में दसियों हज़ार अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है और कथित रूप से सियासी नेताओं, कारोबारी लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत 3000 लोगों को हिरासत में लिए जाने की ख़बरें हैं. कई लोगों को राज्य के बाहर की जेलों में भेजा गया है.
प्रशासन का कहना है कि ये कार्यवाहियां एहतियात के तौर पर और इलाक़े में क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए की गई हैं. जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य है लेकिन अब इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया गया है.
तीन दशक से भी अधिक समय से भारतीय सेना यहां अलगाववादियों से लड़ रही है. भारत पाकिस्तान पर आरोप लगाता है कि वो इलाक़े में चरमपंथियों का समर्थन करके हिंसा को भड़काता है. वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान इन आरोपों से इंकार करता रहा है.
पाकिस्तान का कश्मीर के एक हिस्से पर नियंत्रण है.
पूरे भारत में कई लोगों ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का स्वागत किया है और इस ‘साहसिक’ फ़ैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ की है. इस क़दम को मुख्यधारा के मीडिया में भी व्यापक समर्थन मिला है.
BBC ने इस रिपोर्ट के साथ यह चेतावनी भी लिखी: नीचे दिए गए ब्यौरे कुछ पाठकों को व्यथित कर सकते हैं
मैंने उन दक्षिणी ज़िलों के कम से कम आधा दर्जन गाँवों का दौरा किया, जो पिछले कुछ साल में भारत विरोधी चरमपंथ के गढ़ के रूप में उभरे हैं.
यहां मैंने कई लोगों से रात में छापेमारी, पिटाई और टॉर्चर की एक जैसी दास्तान सुनी.
डॉक्टर और स्वास्थ्य अधिकारी पत्रकारों से किसी भी मरीज़ के बारे में बात करने से बचते हैं चाहे कोई भी बीमारी हो, लेकिन गाँव वालों ने मुझे वो ज़ख़्म दिखाए, जो कथित तौर पर सुरक्षाबलों की पिटाई से हुए थे.
एक गाँव में लोगों ने बताया कि इस फ़ैसले से दिल्ली और कश्मीर के बीच दशकों पुरानी व्यवस्था ख़त्म हो गई, उसके कुछ घंटों बाद ही सेना घर-घर गई थी.
दो भाइयों ने आरोप लगाया कि उन्हें जगाया गया और उन्हें बाहर ले जाया गया जहां गांव के क़रीब एक दर्जन पुरुष इकट्ठा थे.
मुझसे मिलने वाले बाक़ी लोगों की तरह ही वे भी कार्यवाही के डर से अपनी पहचान नहीं बता रहे थे.
उनमें एक ने कहा, “उन्होंने हमारी पिटाई की. हम उनसे पूछ रहे थे कि हमने क्या किया है. आप गाँव वालों से पूछ सकते हैं, अगर हम झूठ बोल रहे हैं या हमने कुछ ग़लत किया है तो. लेकिन वो कुछ भी सुनने को राज़ी नहीं थे, उन्होंने कुछ नहीं कहा, वो केवल हमें पीटते रहे.”
“उन्होंने हमारे शरीर के हर हिस्से पर मारा. हमें लात मारी, डंडों से पीटा, बिजली के झटके दिए, केबल से हमें पीटा. हमें पैरों के पीछे मारा. जब हम बेहोश हो गए तो उन्होंने होश में लाने के लिए बिजली के झटके दिए. जब उन्होंने हमें डंडों से पीटा और हम चीख उठे तो उन्होंने हमारा मुंह कीचड़ से भर दिया.”
“हमने उन्हें बताया कि हम निर्दोष हैं. हमने पूछा कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? लेकिन उन्होंने हमारी एक न सुनी. मैंने उनसे कहा कि हमें पीटो मत, हमें गोली मार दो. मैं ख़ुदा से मना रहा था कि वो हमें अपने पास बुला ले क्योंकि प्रताड़ना असहनीय थी.”
एक अन्य ग्रामीण युवक ने बताया कि सुरक्षा बल उससे लगातार यही पूछ रहे थे कि “पत्थरबाजों के नाम बताओ”, वे अधिकांश युवाओं और किशोर लड़कों का हवाला दे रहे थे, जो पिछले दशक में कश्मीर घाटी में नागरिक प्रदर्शनों का चेहरा बन चुके हैं.
उन्होंने कहा कि वो किसी को नहीं जानते, इसके बाद उन्होंने चश्मा, कपड़े और जूते निकालने को कहा.
“जब मैंने अपने कपड़े उतार दिए तो उन्होंने बेदर्दी से मुझे रॉड और डंडों से क़रीब दो घंटे तक पीटा. जब मैं बेहोश हो जाता तो वो मुझे होश में लाने के लिए बिजली के झटके देते.”
उन्होंने बताया, “अगर उन्होंने मेरे साथ फिर ऐसा किया तो मैं कुछ भी कर गुजरूंगा, मैं बंदूक उठा लूंगा. मैं हर रोज़ ये बर्दाश्त नहीं कर सकता.”
युवक ने बताया, ”सैनिकों ने मुझसे कहा कि मैं अपने गाँव में हर-एक को चेता दूं कि अगर किसी ने भी सुरक्षाबलों के ख़िलाफ़ किसी भी प्रदर्शन में हिस्सा लिया तो उन्हें ऐसे ही नतीजे भुगतने पड़ेंगे.”
सभी गाँवों में हमने जितने लोगों से बात की उन सभी का मानना था कि सुरक्षाबलों ने ऐसा गाँव वालों को डराने के लिए किया था ताकि वो प्रदर्शन करने को लेकर डर जाएं.
सेना ने बाकायदा दिया BBC को जवाब 
BBC को भेजे जवाब में भारतीय सेना ने कहा है कि “जैसा आरोप है, उसने किसी भी नागरिक के साथ मारपीट नहीं की।”
सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने कहा, “इस किस्म के कोई विशेष आरोप हमारे संज्ञान में नहीं लाए गए हैं। संभव है कि ये आरोप विरोधी तत्वों की ओर से प्रेरित हों।”
उन्होंने कहा, “नागरिकों को बचाने के लिए क़दम उठाए गए थे लेकिन सेना की ओर से की गई कार्यवाही के कारण कोई घायल या हताहत नहीं हुआ है।”
खुद समीर हाशमी लिखते हैं कि हम ऐसे कई गाँवों में गए जहां अधिकांश निवासियों में अलगाववादी और आतंकवादी समूहों के प्रति सहानुभूति थी और उन्होंने उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी’ बताया।
कश्मीर के इसी इलाक़े में पुलवामा ज़िला है जहां फ़रवरी में हुए एक आत्मघाती हमले में 40 से अधिक भारतीय सैनिक मारे गए थे और इसकी वजह से भारत और पाकिस्तान युद्ध की कगार पर पहुंच गए थे।
ये वही इलाक़ा है जहां कश्मीरी चरमपंथी बुरहान वानी साल 2016 में मारा गया था, जिसके बाद बहुत सारे युवा और आक्रोशित कश्मीरी भारत के ख़िलाफ़ हथियारबंद बग़ावत में शामिल हुए थे.
इस इलाक़े में सेना का एक कैंप है और चरमपंथियों और समर्थकों को पकड़ने के लिए सैनिक नियमित रूप से तलाशी अभियान चलाते हैं लेकिन गाँव वालों का कहना है कि वो दोनों तरफ़ की कार्यवाहियों के बीच अक्सर फँस जाते हैं.
समीर हाशमी के अनुसार एक गाँव में, मैं एक नौजवान से मिला जिसने बताया कि सेना ने उसे धमकी दी थी कि अगर वो चरमपंथियों के ख़िलाफ़ इन्फ़ार्मर नहीं बनता तो उन्हें फंसा दिया जाएगा. उसका आरोप है कि जब उसने इंकार किया तो उनकी इस क़दर पिटाई की गई कि दो हफ़्ते तक वो पीठ के बल सो नहीं सका.
BBC ने अपनी रिपोर्ट में ये भी लिखा 
उन्होंने कहा, “अगर ये जारी रहा तो मेरे सामने अपना घर छोड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा. वे हमें ऐसे पीटते हैं जैसे हम जानवर हों. वे हमें इंसान नहीं मानते हैं.”
एक अन्य आदमी ने मुझे अपने जख़्म दिखाए और कहा कि उन्हें ज़मीन पर गिरा दिया गया और “15-16 सैनिकों” ने “केबल, बंदूकों, डंडों और शायद लोहे के रॉड” से बुरी तरह पीटा.
“मैं बेहोशी की हालत में पहुंच गया था. उन्होंने मेरी दाढ़ी इतनी ज़ोर से खींची कि मुझे लगा कि मेरे दांत बाहर निकल आएंगे.”
उसने बताया कि इस मारपीट के दौरान मौजूद रहे एक बच्चे ने बाद में उसे बताया कि एक सैनिक ने उनकी दाढ़ी जलाने की कोशिश की लेकिन उन्हें एक दूसरे सैनिक ने रोक दिया.
एक और गांव में मैं एक अन्य नौजवान से मिला जिसने बताया कि दो साल पहले उसका भाई हिज़्बुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया था, जो कश्मीर में लड़ने वाले बड़े ग्रुपों में से एक है.
उसने कहा कि हाल ही में एक आर्मी कैंप में उससे पूछताछ की गई. उसका आरोप है कि वहां उन्हें प्रताड़ित किया गया और उसका एक पैर टूट गया.
उसने बताया, “उन्होंने मेरे हाथ और पैरों को बांध दिया और उल्टा लटका दिया. दो घंटे से भी अधिक समय तक उन्होंने मेरी बुरी तरह पिटाई की.”
ये फेक न्‍यूज़ नहीं तो और क्‍या है
BBC की इस पूरी रिपोर्ट पर गौर करें तो बहुत असानी से समझा जा सकता है कि रिपोर्टर पूर्वाग्रह से ग्रसित है और बार-बार अपनी ही रिपोर्ट को संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है.
वह बार-बार लिखता है कि BBC इन आरोपों की पुष्टि अधिकारियों से नहीं कर पाया.
रिपोर्टर यह भी लिखता है कि वो बुरहान वानी के गांव में था जहां उसकी मौत के बाद तमाम युवक भारत के ख़िलाफ़ हथियारबंद बग़ावत में शामिल हुए थे.
संयुक्‍त राष्‍ट्र में भी ब्रिटेन ने किया था पाकिस्‍तान का सहयोग
यहां यह जान लेना भी बहुत जरूरी है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र में बीते दिनों जब कश्‍मीर मुद्दे को लेकर चीन की पहल पर एक बंद कमरे में चर्चा की गई थी तब चीन के अतिरिक्‍त ब्रिटेन ही ऐसा दूसरा देश था जिसने भारत को कठघरे में खड़ा करने की असफल कोशिश की.
भारत विरोधी मुहिम का हिस्‍सा है BBC
5 अगस्‍त जिस दिन मोदी सरकार ने कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाने का ऐलान किया, तब से लेकर अब तक BBC में कश्‍मीर पर जितनी खबरें प्रकाशित हुई हैं, उन्‍हें पढ़ने के बाद कोई भी आसानी से यह पता लगा सकता है कि भारत विरोधी मुहिम का हिमायती ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोंरेशन BBC लगातार उन्‍हीं खबरों को प्राथमिकता दे रहा है जनसे कश्‍मीर का घिनौना चेहरा सामने लाया जा सके.
आश्‍चर्य की बात यह है कि विश्‍व का एक बड़ा मीडिया हाउस कश्‍मीर पर अपनी रिर्पार्ट के साथ यह लिखने में कतई लज्‍जा महसूस नहीं करता कि वह अपने आरोपों में पुष्‍टि नहीं कर सकता क्‍योंकि वह किसी अधिकारी से बात नहीं कर सका।
इससे भी बड़े आश्‍चर्य का विषय यह है कि जिन आरोपों की पुष्‍टि खुद BBC रिपोर्टर नहीं कर पाया, उन्‍हीं आरोपों के साथ वह लंबी-चौड़ी रिपार्ट बड़ी बेशर्मी से प्रकाशित कर रहा है।
देखा जाए तो भारत सरकार को BBC के खिलाफ भी उसी तरह कुछ कठोर कदम उठाने चाहिए जिस तरह उसने फेसबुक व टि्वटर जैसे सोशल मीडिया के खिलाफ उठाए थे और कश्‍मीर को लेकर अफवाह फैलाने वालों को बेनकाब किया था।
-Legend News
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