शनिवार, 6 दिसंबर 2014

अब कोर्ट सामने लायेगा JSR के पूरे खेल का सच!

मथुरा। 
जेएसआर ग्रुप की कॉलोनियों अशोका सिटी और अशोका हाइट्स में एक अदद फ्लैट का सपना देखने वाले तथा इनमें निवेश करके दस-बीस लाख रुपए कमा लेने की उम्‍मीद पाले बैठे लोगों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। ग्रुप के साइलेंट हिस्‍सेदार संजय देशवानी के साथ हुई घटना का नतीजा भले ही अभी पुलिस की जांच का मोहताज हो किंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि अशोका सिटी तथा अशोका हाइट्स का निर्माण भ्रष्‍टाचार में आकंठ डूबी व्‍यवस्‍था के तहत हुआ और इसका नतीजा अच्‍छा नहीं निकलने वाला।
जेएसआर ग्रुप के प्रोजेक्‍ट की पैमाइश का आदेश तो कमिश्‍नर आगरा मण्‍डल ने डीएम मथुरा को दे ही दिया है लेकिन अभी बहुत कुछ होना बाकी है।
इस बहुत-कुछ में अशोका सिटी एवं अशोका हाइट्स के निर्माण को लेकर बरती गई अनियमितताएं तो शामिल हैं ही, साथ ही आटे में नमक की जगह नमक में आटा मिलाकर बड़ा खेल करने का भी खुलासा होगा।
नि:संदेह इस पूरे खेल का पर्दाफाश होने पर न सिर्फ जेएसआर ग्रुप के हिस्‍सेदारों की बदनीयती सामने आयेगी बल्‍कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अधिकारी एवं कर्मचारियों का ऐसा काला चिठ्ठा भी सार्वजनिक होगा कि वो अपने निजी आर्थिक हित साधने के लिए जनहित को किस प्रकार ताक पर रखकर आंखें बंद किए रहते हैं।
जेएसआर ग्रुप की इमारतों के निर्माण में मनमानी किये जाने की शिकायतें लगातार एमवीडीए के अधिकारियों को मिल रहीं थीं और समाचारों के माध्‍यम से भी इसकी सूचना प्राप्‍त होती रही परंतु हर शिकायत तथा हर समाचार को प्राधिकरण की भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था ने अपने हित साधने का जरिया बना लिया। जितनी शिकायतें बढ़ती गईं और जितने समाचार प्रकाशित हुए, उतनी ही अधिकारियों की डिमांड में इजाफा होता गया।
इस तरह जेएसआर ग्रुप की कॉलोनियों में मकान खरीदने वालों तथा निवेशकों को इस हाल तक पहुंचाने के लिए एमवीडीए कम जिम्‍मेदार नहीं है क्‍योंकि उसने कभी किसी को इन कॉलोनियों के निर्माण की असलियत बताना मुनासिब नहीं समझा अन्‍यथा जिन प्रोजेक्‍ट्स के भूखंडों की पैमाइश अब कमिश्‍नर के आदेश पर कराने की तैयारी हो रही है, क्‍या उनकी पैमाइश तभी नहीं हो जानी चाहिए थी जब इनका निर्माण शुरू हुआ था तथा बराबर शिकायतें सामने आ रही थीं।
जब इन इमारतों की लंबाई बढ़ रही थी और जब इनमें पार्किंग की व्‍यवस्‍था, ग्रीनरी तथा दूसरी जरूरी सुविधाओं को दरकिनार कर केवल कंक्रीट के कबूतरखाने तैयार किये जा रहे थे, तब एमवीडीए क्‍यों सो रहा था।
आज हाल यह है कि एमवीडीए में किसी अधिकारी से कोई जेएसआर ग्रुप की इन इमारतों के बावत जानकारी करने का प्रयास करता है तो उसे सांप सूंघ जाता है। वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं होता। किसी मीडिया पर्सन द्वारा सवाल पूछे जाने पर अधिकारी पहले तो उसे टालने का प्रयास करते हैं और अगर बात बनती नहीं दिखती तो फिर फोन उठाना ही बंद कर देते हैं। आरटीआई का जवाब देना तो एमवीडीए अपनी तौहीन समझता है। यदि मजबूरीवश किसी आरटीआई का जवाब देना ही पड़ जाए तो आधी-अधूरी अथवा अस्‍पष्‍ट सूचना देकर जानकारी मांगने वाले को गुमराह कर दिया जाता है।
जेएसआर ग्रुप के साइलेंट पार्टनर संजय देशवानी के बेटे केशव देशवानी द्वारा किये गये खुलासे से तो यह भी जाहिर होता है कि जेएसआर ग्रुप के हिस्‍सेदारों ने अपने प्रोजेक्‍ट के अवैध फ्लैट्स को बेचने के लिए वो दुस्‍साहस किया है जो अब तक शायद ही किसी बिल्‍डर ने किया हो। फ्लैट बुक कराने वालों को बैंक से फाइनेंस कराने के लिए इन लोगों ने बैंक के कुछ कर्मचारियों से सांठगांठ करके वहां प्रोजेक्‍ट का फर्जी नक्‍शा तक दाखिल करा रखा है।
ऐसे में जिन लोगों ने बैंक से अपने फ्लैट के लिए कर्ज ले लिया है और जो सपनों के घर में शिफ्ट होने का इंतजार कर रहे हैं, उनके सामने बड़ी मुसीबत खड़ी होने वाली है।
केशव देशवानी का कहना अगर पूरी तरह सच है तो बात केवल अवैध निर्माण की न होकर इतने बड़े घोटाले की है जिसमें बिल्‍डर तथा एमवीडीए के साथ-साथ कुछ बैंकें, आर्किटेक्‍ट और यहां तक कि चार्टर्ड एकाउंटेंट की भी बड़ी भूमिका सामने आयेगी।
बताया जाता है कि भ्रष्‍टाचार और घोटालों की बुनियाद पर खड़ी इन इमारतों के पूरे खेल का पर्दाफाश कराने के लिए कुछ निवेशक तथा फ्लैट मालिक न्‍यायालय में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
यदि ऐसा होता है तो निश्‍चित ही पूरा सच सामने आयेगा लेकिन इस सच की आंच में बहुत से लोग झुलस सकते हैं।
यह भी संभव है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह ग्रेटर नोएडा व नोएडा में निर्माणाधीन करीब 20 हजार फ्लैट्स को पूरी तरह अवैध मानते हुए उन्‍हें ध्‍वस्‍त करने के आदेश दे दिए, उसी तरह कहीं जेएसआर के अवैध निर्माण को ध्‍वस्‍त करने का आदेश भी न दे दिया जाए।
गौरतलब है कि ग्रेटर नोएडा व नोएडा में जिन फ्लैट्स को गिराने के आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं, उनका निर्माण तो जेपी, अजनारा एवं आम्रपाली जैसे नामचीन ग्रुप ने कराया था। फिर जेएसआर ग्रुप की तो हैसियत ही क्‍या है।
ये बात अलग है कि जब तक जिसका भी चमड़े का सिक्‍का चलता रहता है, तब तक वह न किसी की सुनने को तैयार होता है और न मानने को। जिस समय कानून सही मायनों में शिकंजा कसने लगता है, उस समय दिन में तारे नजर आते भी देर नहीं लगती।
जेएसआर ग्रुप में फ्लैट लेने वालों तथा निवेशकों को भी संभवत: कानून का ही सहारा है।
और हां, संजय देशवानी के साथ कुछ हुआ हो या न हुआ हो परंतु जो कुछ अब तक अखबारों की सुर्खियां बना है, उसने बहुत से लोगों के कान जरूर खड़े कर दिए हैं।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष  
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