मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

अपने इन हत्‍यारों को तू कभी क्षमा मत करना मां!

तारीख 20, महीना मार्च, दिन सोमवार, सन् 2017
ये वो दिन है, जब नैनीताल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। अपने इस फैसले में हाई कोर्ट ने जनमानस से मां का दर्जा प्राप्‍त गंगा और यमुना नदी को वैधानिक व्यक्ति का दर्जा देते हुए लिखा था- इन दोनों नदियों को क्षति पहुंचाना अब किसी इंसान को नुकसान पहुंचाने जैसा माना जाएगा।
ऐसे में आईपीसी के तहत आपराधिक केस चलेगा और आरोपी को उसी तरह सजा सुनाई जाएगी जिस तरह किसी व्‍यक्‍ति को क्षति पहुंचाने पर सुनाई जाती है।
अपने फैसले में हाई कोर्ट ने गंगा-यमुना के साथ-साथ इनकी सहायक नदियों, उपनदियों, समस्त जल धाराओं और यहां तक कि पानी के उनसे जुड़े समस्‍त प्राकृतिक स्रोतों को भी वैधानिक व्यक्ति का दर्जा देने को कहा।
न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ ने यूपी और उत्तराखंड की परिसंपत्तियों के बंटवारे से संबंधित एक जनहित याचिका का निस्‍तारण करते हुए यह आदेश दिया। यह याचिका देहरादून निवासी मोहम्मद सलीम ने दायर की थी।
हाई कोर्ट के आदेश में यह भी निहित था कि गंगा-यमुना को दिए गए अधिकार का उपयोग 3 सदस्यीय एक समिति करेगी। यानी यह समिति इन नदियों को क्षति पहुंचाए जाने से संबंधित सभी मुकदमों की पैरवी करेगी।
इस समिति में उत्तराखंड के मुख्य सचिव, नैनीताल हाई कोर्ट के महाधिवक्ता और नमामि गंगे प्राधिकरण के महानिदेशक शामिल किए गए।
अदालत ने 20 मार्च के अपने इस आदेश में स्पष्ट किया था कि ये तीनों अधिकारी आगे से गंगा के प्रति जवाबदेह भी होंगे।
तारीख 28, महीना अप्रैल, दिन शुक्रवार, सन् 2017
नैनीताल हाई कोर्ट से ‘मानव’ दर्जा मिलने के बाद इस दिन पहली बार गंगा नदी को नोटिस जारी किया। हाई कोर्ट ने ऋषिकेश में प्रस्तावित कूड़ा निस्तारण ग्राउंड (ट्रेंचिंग ग्राउंड) को लेकर गंगा का पक्ष जानना चाहा।
हालांकि इस आदेश को उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने गंगा-यमुना को जीवित इंसान का दर्जा देने संबंधी फैसला रद्द कर दिया जबकि नैनीताल हाई कोर्ट ने आदेश किसी जल्‍दबाजी या भावावेश में नहीं सुनाया था।
न्यूजीलैंड की नदी बनी नजीर
याचिकाकर्ता मोहम्मद सलीम की ओर से वरिष्ठ वकील एम सी पंत ने गंगा-यमुना की खराब दशा बताते हुए कोर्ट के समक्ष न्यूजीलैंड में नदी को जीवित प्राणी का दर्जा देने का उदाहरण पेश किया था। उनकी दलील पर कोर्ट ने गंगा-यमुना को भी जीवित प्राणी का दर्जा देने के निर्देश दिए।
पंत का कहना था कि कोर्ट के पास किसी को भी वैधानिक व्यक्ति का दर्जा देने के अधिकार हैं और इसी आधार पर गंगा-यमुना को यह दर्जा दिया गया।
दरअसल, इस आदेश से पहले नैनीताल हाई कोर्ट प्रदूषण एवं पर्यावरण से जुड़े कई मामलों में एक के बाद एक कई फैसले दे चुका था किन्‍तु उत्तराखंड सरकार ने उन्‍हें गंभीरता से नहीं लिया।
न्‍यायालय ने देखा कि नदियों और जंगलों के संरक्षण की जो योजनाएं चल रही हैं, वो सब कागजी हैं, सरकारें उन पर कोई अमल नहीं करतीं वरना देश की प्रमुख नदियां कब की साफ हो चुकी होतीं।
अमेरिका में भी कुछ नदियों को कानूनी अधिकार, रिवर एक्ट भी मौजूद
अमेरिका में भी कुछ नदियों को कानूनी अधिकार प्राप्‍त हैं और इसके लिए बाकायदा वाइल्ड रिवर एक्ट नाम का एक क़ानून भी बनाया गया है। इस कानून के मुताबिक नदियों को निर्बाध बहने का अधिकार है लिहाजा उन्हें अपने निरंतर बहाव को बचाए रखने का भी अधिकार है।
भारत की बात
अगर बात भारत की करें तो इस देश के लिए गंगा और यमुना महज नदी नहीं हैं। ये यहां की संस्कृति का पर्याय हैं। एक विशाल आबादी के लिए जीवनदायिनी हैं और आस्था का केंद्र भी हैं, इसलिए आवश्यक केवल यह नहीं है कि नदियों के अविरल प्रवाह की चिंता की जाए, बल्‍कि इन्‍हें सहेजने के पर्याप्‍त इंतजाम भी हों क्‍योंकि ऐसा किए बिना नदियों के ही नहीं, इस देश के भी धार्मिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक महत्व को बचाए रखना मुश्किल होगा।
यमुना की दुर्दशा
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिला अंतर्गत यमुनोत्री में समुद्र तल से 10804 फीट ऊंची बंदरपूंछ नामक चोटी यमुना नदी का उद्गम स्‍थल है। 1,376 कि. मी. लंबी यमुना नदी के प्रमुख तीर्थ स्‍थलों में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्‍थित विश्राम घाट का बड़ा धार्मिक महत्‍व है।
सूर्यपुत्री यमुना का विश्राम घाट पर अपने भाई और मृत्‍यु के देवता यमराज के साथ देशभर में एकमात्र मंदिर है।
ऐसी मान्‍यता है कि यमद्वितिया (भाईदूज) के दिन विश्राम घाट पर यमुना में स्‍नान और उसके बाद यमुना व धर्मराज (यम-यमुना) मंदिर के दर्शन करने वालों को यमफांस (बार-बार जन्‍म और मृत्‍यु का बंधन) से मुक्‍ति प्राप्‍त होती है।
इसी मान्‍यता के तहत यमद्वितिया के दिन देशभर से विश्राम घाट पर यमुना में डुबकी लगाने हजारों श्रद्धालु प्रतिवर्ष आते हैं।
ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि पतित पावनी की संज्ञा प्राप्‍त कृष्‍ण की पटरानी कहलाने वाली कालिंदी (यमुना) क्‍या अपने धार्मिक महत्‍व को पूरा कर पा रही है ?
यमुना की दुर्दशा को लेकर सन् 1998 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के अंदर एक याचिका डाली गई। हाई कोर्ट ने इस याचिका की गंभीरता के मद्देनजर इसी वर्ष तमाम आदेश-निर्देश जारी किए।
इन आदेश-निर्देशों के तहत जो दो सबसे महत्‍वपूर्ण थे, उनमें पहला था- श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि से बमुश्‍किल 500 मीटर की दूरी पर संचालित हो रही उस पशु वधशाला को पूरी तरह बंद करना जिसका रक्‍त नाले-नालियों के माध्‍यम से सीधा यमुना में जाकर गिरता था, और दूसरा शहर से दूर एक अत्‍याधुनिक पशु वधशाला का निर्माण कराना।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्‍चित करने के लिए मथुरा के एडीएम (प्रशासन) को जहां नोडल अधिकारी नियुक्‍त कर उसे न्‍यायिक अधिकार प्रदान किए जिससे वो यमुना प्रदूषण से जुड़े उच्‍च अधिकारियों से भी जवाब तलब कर आवश्‍यक कार्यवाही कर सकें वहीं एक 5 सदस्‍यीय मॉनीटरिंग कमेटी का गठन भी किया। इस कमेटी के अध्‍यक्ष ए. डी. गिरी बनाए गए। सचिव का पद इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के ही सीनियर एडवोकेट दिलीप गुप्‍ता को दिया गया। कमेटी के पदेन सदस्‍यों में यमुना एक्‍शन प्‍लान के प्रोजेक्‍ट मैनेजर और मथुरा के डीएम व एसएसपी को रखा गया।
वर्ष 2005 में ए. डी. गिरि की मृत्‍यु के बाद इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय ने यमुना की सुधि लेना ही लगभग बंद कर दिया। उच्‍च न्‍यायालय की इस मामले में उदासीनता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि ए. डी. गिरी की मृत्‍यु से रिक्‍त हुए मॉनीटरिंग कमेटी के अध्‍यक्ष का पद अब तक नहीं भरा गया जबकि इस बावत प्रार्थना पत्र वर्ष 2007 से न्‍यायालय में लंबित है।
इसी प्रकार नोडल अधिकारी के रूप में अधिकार प्राप्‍त एडीएम (प्रशासन) मथुरा के पद पर जो भी अधिकारी आया, उसने कभी न तो अपने अधिकारों को जानना जरूरी समझा और न कर्तव्‍य को नतीजतन यमुना की प्रदूषण मुक्‍ति के लिए दिए गए उच्‍च न्‍यायालय के आदेश-निर्देश आज 21 साल बाद भी धूल फांक रहे हैं।
जिस पशु वधशाला में कभी प्रतिदिन गिनती के पशु काटे जाते थे आज उसके आसपास अनगिनत पशुओं का अवैध कटान बेराकटोक जारी है क्‍योंकि अब उस क्षेत्र के अधिकांश घर भी पशु वधशाला में तब्‍दील हो चुके हैं। जिला प्रशासन एक दिन के लिए भी न तो पशुओं के अवैध कटान पर लगाम लगा पाया और न शहर से दूर अत्‍याधुनिक Cattle slaughterhouse बनवा पाया। बनवाना तो दूर जिला प्रशासन 21 वर्षों में उसके लिए स्‍थान तक चिन्‍हित नहीं कर सका। एक मर्तबा नेशनल हाईवे के निकट कस्‍बा फरह अंतर्गत चुरमुरा में जमीन चिन्‍हित की भी गई थी परंतु क्षेत्रीय नागरिकों के भारी विरोध ने प्रशासन को अपने कदम खींचने पर मजबूर कर दिया।
यूं कहने के लिए यमुना की प्रदूषण मुक्‍ति को आए दिन सभी सरकारी विभागों की बैठकें होती हैं, इन बैठकों में कागजी घोड़े दौड़ाए जाते हैं, जवाब-तलब करने की औपचारिकता भी निभाई जाती है परंतु ठोस कार्यवाही कभी नहीं की जाती।
इस बाबत श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि के OSD और यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर लंबे समय से बारीक नजर रखने वाले विजय बहादुर सिंह का कहना है कि लगभग हर दिन वह पुलिस व प्रशासन के आला अधिकारियों को दरेसी रोड क्षेत्र में हो रहे अवैध पशु कटान की लिखित व मौखिक जानकारी देते हैं लेकिन किसी अधिकारी के कान पर जूं नहीं रेंगती।
विजय बहादुर सिंह ने बताया कि कल यानि 20 अक्‍टूबर की सुबह ही क्षेत्र में अवैध पशु कटान होने की जानकारी उन्‍होंने अधिकारियों को दी थी। जिसके बाद पहले तो इलाका पुलिस ने अवैध पशु कटान करने वालों को ही शिकायत किए जाने की सूचना दे दी, और फिर यह कह कर पल्‍ला झाड़ लिया कि शिकायत झूठी पायी गई।
कुछ देर बाद जब पुन: खुलेआम पड़े पशुओं के अवशेष तथा घरों में लटके हुए मीट की फोटो अधिकारियों को उपलब्‍ध कराई गईं तब करीब आठ घंटे बाद कार्यवाही अमल में लाई जा सकी।
इतने विलंब से उठाए गए कदम का परिणाम यह निकला कि जहां से सैकड़ों किलो मीट बरामद किया जा सकता था, वहां से मात्र दस किलो मीट बरामद हुआ।
दुख की बात यह है कि अवैध पशु कटान करने वालों के दरवाजे तोड़कर मीट बरामद करने वाली पुलिस को एक भी आरोपी मौके पर नहीं मिला।
विजय बहादुर सिंह का कहना है कि आज सुबह फिर उन्‍होंने उसी क्षेत्र के एक होटल में तीन बोरा मीट सप्‍लाई किए जाने की जानकारी फूड इंस्‍पेक्‍टर को दी लेकिन फूड इंस्‍पेक्‍टर ने यह कहते हुए दो टूक जवाब दे दिया कि वह अपने उच्‍च अधिकारियों के कहने पर ही कानूनी कार्यवाही करेंगे।
श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली में प्रशासन का यह रुख तो तब है जबकि केंद्र से लेकर प्रदेश तक और राज्‍य से लेकर जिले तक में भगवाध्‍वज फहरा रहा है।
विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक स्‍थल मथुरा की कुल पांच विधानसभा सीटों में से चार पर भाजपा के विधायक काबिज हैं। इन चार विधायकों में से भी दो योगी सरकार के कद्दावर मंत्री बने बैठे हैं। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा तो प्रदेश सरकार के प्रवक्‍ता भी हैं।
2014 से लगातार यहां की जनता ने प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री और भाजपा नेत्री हेमा मालिनी को संसद में बैठने का अवसर दिया है।
जिला पंचायत के अध्‍यक्ष पद को कबीना मंत्री और छाता क्षेत्र के विधायक चौधरी लक्ष्‍मीनारायण की पत्‍नी ममता चौधरी सुशोभित कर रही हैं।
पहली बार अस्‍तित्‍व में आए मथुरा-वृंदावन नगर निगम के महापौर भी भाजपा के डॉ. मुकेश आर्यबंधु हैं।
आश्‍चर्य की बात यह है कि इतना सबकुछ होने के बावजूद यहां न तो पशुओं का अवैध कटान रुक पा रहा है और न यमुना की दुर्दशा सुधारने के कोई प्रयास हो रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार यमुना में 80 फीसदी प्रदूषण दिल्ली के 22 किलोमीटर के दायरे में होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि दिल्‍ली से आगे जो कुछ दिखाई दे रहा है, वह सिर्फ और सिर्फ नाले-नालियों तथा सीवर लाइनों की गंदगी है। यमुना जल का उससे दूर-दूर तक कोई वास्‍ता नहीं रहा।
दिल्‍ली से मथुरा की दूरी 150 किलोमीटर है और इस 150 किलोमीटर क्षेत्र में दिखाई देने वाली यमुना पूरी तरह मर चुकी है। जाहिर है कि इससे आगे 50 किलोमीटर दूर आगरा में भी यमुना के नाम पर गंदगी ही बहती दिखाई देती है।
मथुरा के 19 और वृंदावन के सभी 18 नालों का गंदा पानी सीधे यमुना में गिर रहा है। ये बात अलग है कि कागजों में उसी प्रकार ये सभी 37 नाले-नालियां टैप किए जा चुके हैं जिस प्रकार दरेसी रोड की पशु वधशाला सील की हुई है।
इन हालातों में पूछा जा सकता है कि क्या एक नदी की बेरहम हत्या करने वालों को कहीं से कोई सजा मिलेगी या देश की अदालतें, सरकार तथा जनमानस सब तमाशबीन बने रहेंगे और यमुना मात्र एक अतीत, इतिहास अथवा किंवदंती बनकर रह जायेगी?
अफसोस कि इनमें से किसी प्रश्न का उत्तर देने वाला आज कोई सामने नहीं।
सामने है तो वही यमुना जिसे मां का दर्जा प्राप्‍त है और जो मृतप्राय होकर भी जीवन-मरण के बंधन से मुक्‍ति का मार्ग दिखाती है।
ऐसी पतित पावनी यमुना से अब सिर्फ यही प्रार्थना की जा सकती है कि हे मां! तू कुछ भी करना परंतु अपने इन हत्‍यारों को कभी क्षमा मत करना, क्‍योंकि ये क्षमा के लायक नहीं हैं। ये तेरी दया के पात्र भी नहीं हैं।
नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश भले ही सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिए हों परंतु देश की बड़ी आबादी के लिए तू आज भी मां है, तेरी बूंद-बूंद में जीवन है, तू जीवन दायिनी है, जीवित है इसलिए तेरी दुर्दशा करने वाला हर व्‍यक्‍ति सजा का हकदार है। उसे सजा मिलनी ही चाहिए। फिर चाहे वह न्‍यायपालिका से जुड़ा हो या कार्यपालिका से, विधायिका से जुड़ा हो अथवा जनसामान्‍य ही क्‍यों न हो। तेरे गुनहगार बचने तो नहीं चाहिए।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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