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मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024
ED की सक्रियता से डालमिया बाग के खरीदारों में खलबली, भूमिगत होने या विदेश भाग जाने की आशंका
मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग मामले में अब ED की सक्रियता बढ़ जाने से खरीदारों में भारी खलबली देखी जा रही है। आशंका है कि उनमें से कुछ लोग या तो भूमिगत हो सकते हैं, या फिर देश छोड़कर भी भाग सकते हैं। हालांकि ED को भी इस बात का अंदाज है लिहाजा उसने ऐसे लोगों की हर गतिविधि पर अपनी पैनी नजर गड़ा रखी है। दरअसल, इस खरीद-फरोख्त में बढ़ती प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की सक्रियता का बड़ा कारण इसके धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) अर्थात ब्लैक मनी को सफेद बनाने तथा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के तहत आने की प्रबल संभावना दिखाई देना है। यही वजह है कि ED ने इस पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है।
ED से जुड़े अत्यंत भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार की इस स्वतंत्र जांच एजेंसी ने प्राथमिक जानकारी जुटाने के लिए अपने कुछ बिंदु भी तय कर लिए हैं। ये ऐसे बिंदु हैं जिनसे एजेंसी न केवल इस पूरे मामले की तह तक जा सकती है बल्कि इसमें शामिल सफेदपोश अपराधियों के चेहरे भी सामने ला सकती है।
ED क्या-क्या जानना चाहती है
ED इस मामले में सबसे पहले तो यह जानकारी चाहती है कि वृंदावन की जिस रियल एस्टेट फर्म का नाम अब तक इस सौदे में सामने आया है, उसका स्टेटस क्या है?
वह एक पार्टनरशिप फर्म है या किसी व्यक्ति विशेष के हक वाली प्रोपराइटरशिप में रजिस्टर्ड है?
यदि वह एक पार्टनरशिप फर्म है तो उसके पार्टनर कितने हैं और उनकी हिस्सेदारी कितनी-कितनी है?
डालमिया बाग का सौदा करते वक्त इस फर्म में कितने हिस्सेदार थे और क्या सौदा हो जाने के बाद अन्य लोग हिस्सेदार बनाए गए?
अगर सौदा हो जाने के बाद और हिस्सेदार बनाए गए तो उनकी संख्या तथा उनका हिस्सा कितना-कितना रखा गया?
जैसा अब तक प्रचारित किया गया है कि डालमिया परिवार ने अपने बाग का पूरा सौदा नंबर एक में किया है और खरीदारों से पैसा भी नंबर एक में लिया है तो पूरी पैसा मिल जाने के बावजूद उसने बाग की रजिस्ट्री क्यों नहीं की, रजिस्ट्री करने के लिए डालिमया परिवार किस बात का इंतजार कर रहा था?
इस सबके अलावा ED यह भी जानना चाहती है कि बिना रजिस्ट्री किए ही डालमिया परिवार ने खरीदारों को जमीन पर काबिज होने की क्या कोई लिखित अथवा मौखिक सहमति दी थी?
अगर डालमिया परिवार ने ऐसी कोई सहमति दी थी तो वो किसे दी थी और कब दी थी?
कॉलोनी डेवलव करने के लिए नक्शा किसने पेश किया
ED के सामने एक यक्ष प्रश्न यह है कि वो कौन से तत्व हैं जिन्होंने बाग की रजिस्ट्री कराने से पहले ही मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में गुरूकृपा तपोवन के नाम से कॉलोनी डेवलव करने के लिए नक्शा पेश कर दिया क्योंकि इस पूरे प्रकरण में अब तक सिर्फ एक नाम सर्वाधिक चर्चित रहा है, और वह नाम है किसी शंकर सेठ का जो गुरूकृपा बिल्डर्स का मालिक बताया जाता है तथा जिसने इस नाम से पहले भी दूसरे प्रोजेक्ट खड़े किए हैं।
आश्चर्यजनक बात यह है गुरूकृपा तपोवन के नाम से विकास प्राधिकरण में नक्शा पेश किए जाने की अब तक न तो किसी ने जिम्मेदारी ली है और न ही खंडन किया है जबकि उसी नक्शे के आधार पर निवेशकों से बड़ी रकम ली गई तथा उसी नक्शे के हिसाब से कॉलोनी की प्लॉटिंग की गई।
बताया जाता है कि शंकर सेठ वृंदावन में ही छटीकरा रोड पर गुरूकृपा के नाम से एक अन्य प्रोजेक्ट बना रहा है और उसका नक्शा उसने विकास प्राधिकरण से पास भी कराया है। ये बात अलग है कि उस नक्शे को पास कराने में भी हेराफेरी किए जाने की शिकायतें अब मिली हैं, जिनकी जांच शुरू हो चुकी है।
बहरहाल, ED को इस पूरे खेल में किसी बड़ी आपराधिक साजिश की बू आ रही है इसलिए वह यह भी पता लगाने में जुटी है कि गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के नाम पर निवेशकों से एडवांस में मोटी रकम लेने वाले कौन-कौन लोग हैं और उन्होंने किस हैसियत से यह रकम ली थी?
ED यह मानकर चल रही है कि डालमिया बाग का प्रकरण भले ही सैकड़ों हरे पेड़ काटने के बाद मीडिया की नजर में आया हो किंतु इसके तार ऐसे गहरे आपराधिक षडयंत्र से जुड़ रहे हैं जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर फेमा तक और आम निवेशकों एवं आम जनता से हजारों करोड़ रुपए ठगने तक का सुनियोजित अपराध बनता है।
ED का शक निराधार इसलिए नहीं है कि रातों-रात सैकड़ों पेड़ काट डालने वालों में से एक भी व्यक्ति अब सामने आकर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। वो भी तब जबकि निवेशक परेशान हैं अपने पैसों को लेकर, और वृंदावनवासी दुखी हैं उनके दुस्साहस तथा जिला प्रशासन की अकर्मण्यता एवं भ्रष्टाचार को लेकर।
ED को तो यह भी शक है डालमिया बाग का सौदा करके व उस पर काबिज होकर हजारों करोड़ रुपया जुटाने के लिए पेशेवर आर्थिक अपराधियों की तरह ऐसे-ऐसे हथकंड़े अपनाए गए हैं जो आरोप सिद्ध हो जाने की स्थिति में अंतत: वर्षों कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने के बाद आजन्म कैद जैसी सजा तक ले जाते हैं।
इन आर्थिक अपराधियों को भी संभवत: इस बात का इल्म हो चुका है इसलिए वो आरोपों का सामना करने के बजाय नित नई कहानी गढ़ने तथा मीडिया को मैनेज करने में लगे हैं ताकि ED के शिकंजे में फंसने से पहले समय रहते या तो भूमिगत हो जाएं या फिर विदेश भाग निकलें, क्योंकि अब न तो डालमिया बाग पर प्रोजेक्ट खड़ा करना आसान होगा और न निवेशकों का भरोसा बहाल हो सकेगा।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
डालमिया बाग का एंग्रीमेंट कैंसिल करने की खबर से परेशान माफिया अब मीडिया को मैनेज करने में जुटा
मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग का एग्रीमेंट कैंसिल करने की खबर से परेशान माफिया अब मीडिया को मैनेज करने में जुट गया है, क्योंकि एग्रीमेंट कैंसिल होने की खबर के बाद निवेशकों ने उस पर पैसा लौटाने के लिए अच्छा-खासा दबाव बनाना शुरू कर दिया है। सैकड़ों हरे पेड़ों को काटने की जिम्मेदारी लेने से भी भाग रहे माफिया ने आज तक न तो अपने ''कथित नंबर एक'' में हुए सौदे की सच्चाई सामने रखी है और न ये बताया है कि आखिर डालमिया परिवार से उसके बगीचे का एग्रीमेंट किस-किसने किया तथा किन शर्तों पर किया।
ऐसे में अब इस पूरे सौदे पर उठ रहे कुछ ऐसे सवाल ''माफिया'' से लेकर ''मीडिया'' तक को सवालों के घेरे में ले रहे हैं जिनका जवाब देना उनके लिए जरूरी हो जाता है, और यदि वो उसके जवाब नहीं देते तो उनकी नीयत स्वत: संदिग्ध साबित हो जाती है।
कहा जा रहा है कि डालमिया परिवार ने अपने बाग का सौदा आठ समझौता पत्रों (एग्रीमेंट) के जरिए किया तथा हर एग्रीमेंट के साथ एक निर्धारित रकम ली गई और डालिमया परिवार ने एग्रीमेंट में मिली इस रकम का आयकर तक जमा कर दिया। एग्रीमेंट करने वालों ने शंकर सेठ से सौदा बाद में किया।
बस यहीं से माफिया के साथ-साथ मीडिया की भी नीयत में खोट नजर आने लगता है और ये खोट बहुत महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है।
सवाल नंबर एक: यदि डालमिया परिवार से आठ समझौता पत्रों के जरिए पूरी नेक नीयत से सौदा किया गया है तो दोनों ही पक्षों को यानी विक्रेता और क्रेता को उसे सार्वजनिक करने में हर्ज क्या है?
सवाल नंबर दो: किसी भी सौदे का एग्रीमेंट कर लेने भर से वह इनकम टैक्स तो क्या किसी भी टैक्स के दायरे में नहीं आ जाता, यह बात छोटे से छोटा व्यापारी भी जानता है। तो फिर डालमिया परिवार ने डील फाइनल हुए बिना मात्र एडवांस पर इनकम टैक्स कैसे जमा कर दिया जबकि यह तो ''जीएसटी तथा कैपिटल गेन'' का भी मामला नहीं बनता। इस बात की पुष्टि किसी भी चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) से की जा सकती है।
सवाल नंबर तीन: कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सारा खेल मीडिया को मैनेज करके निवेशकों को गुमराह करने के लिए खेला जा रहा हो जिससे किसी भी तरह अपने ऊपर पड़ रहे दबाव को कम किया जा सके।
सवाल नंबर चार: जब डालमिया परिवार से सौदा बाकायदा एग्रीमेंट करके किया गया है और हर एग्रीमेंट के साथ एक निर्धारित रकम उसे दी गई है तो शंकर सेठ ने भी अपना सौदा स्थानीय खरीदारों से किसी न किसी एग्रीमेंट के साथ किया होगा। शंकर सेठ ने भी अपनी रकम सुरक्षित करने के लिए कोई न कोई लिखा-पढ़ी कराई होगी। तो फिर पेड़ कटने के बाद से लेकर अब तक शंकर सेठ क्यों कह रहा है कि उसका इस सौदे से कोई वास्ता नहीं है और पेड़ों को काटने में उसकी किसी भूमिका का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जमानत के लिए कोर्ट में भी उसके वकीलों द्वारा यही दलील क्यों दी गई।
सवाल नंबर पांच: यदि डालमिया परिवार से लेकर एग्रीमेंट कराने वालों तक और उनसे लेकर शंकर सेठ तक सब के सब पाक साफ हैं, सौदा भी पूरी ईमानदारी से नंबर एक में हुआ है तो सब मिलकर क्यों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर देते। क्यों नहीं बता देते कि एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट खड़ा करने के लिए यह सौदा किया गया है और सौदे में कोई बदनीयत नहीं है।
इस प्रेस कॉन्फ्रेस में सब अपनी-अपनी भूमिका भी साफ कर सकते हैं। उसके बाद मुद्दा रह जाएगा केवल सैकड़ों हरे वृक्षों को रातों-रात काट डालने का, तो उसकी जांच चलती रहेगी। एनजीटी में दायर याचिकाओं का भी समय पर निपटारा हो ही जाएगा।
और आखिरी सवाल यह कि शंकर सेठ की रियल एस्टेट फर्म गुरूकृपा तपोवन के नाम से जो नक्शा मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के पास भेजा गया है, वो किसने और किस अधिकार से दाखिल किया है?
सच तो यह है कि इनमें से किसी भी सवाल का जवाब देना आसान नहीं है इसलिए सारे सफेदपोश अपना मुंह छिपाए घूम रहे हैं और अब तक किसी ने सीना ठोक कर नहीं कहा कि सौदा उसने किया है।
बेशक जमीन का सौदा करना गुनाह नहीं, लेकिन वह तब गुनाह बन जाता है जब उसके लिए कानून को ताक पर रखकर नियम विरुद्ध ऐसे-ऐसे काम किए जाएं जो एक ओर अपराध की परिधि में आते हों तथा दूसरी ओर उनसे एक बड़े वर्ग की भावनाएं भी आहत होती हों।
मीडिया को भी अब एक बात और साफ कर देनी चाहिए कि कब तक वह अतार्किक बातें छापता रहेगा और कब तक सफेदपोशों को बचाने के लिए अपने जमीर का सौदा करता रहेगा।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बड़ी खबर: डालमिया परिवार ने कैंसिल किया बगीचे का सौदा, खरीदारों में मचा हड़कंप... निवेशकों के बीच फैली अफरा-तफरी
मथुरा। वृंदावन के छटीकरा रोड पर स्थित जिस डालमिया बगीचे से सैकड़ों हरे पेड़ काटने का मामला इन दिनों खासी चर्चा का विषय बना हुआ है, उसे लेकर आज एक बड़ी खबर सामने आई है।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक हुए संपूर्ण घटनाक्रम में खरीदारों के रवैये और उनकी आपराधिक गतिविधियों से खासे नाराज डालमिया परिवार ने अपने बगीचे का सौदा ही कैंसिल कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक डालमिया परिवार ने बगीचे का सौदा करने वालों को दो-टूक जवाब दे दिया है। उन्होंने साफ-साफ कह दिया है कि अब किसी भी कीमत पर बगीचे का सौदा आपके साथ संभव नहीं है। हालांकि फिलहाल इसकी पुष्टि करने वाला कोई नहीं है क्योंकि सब अपनी-अपनी गर्दन बचाने में लगे हैं।
डालमिया परिवार का कहना है कि खरीदारों ने सौदा करने के बाद जिस तरह 'ब्रीच ऑफ कॉन्ट्रैक्ट' किया, उससे न सिर्फ उनकी आपराधिक मानसिकता का पता लगता है बल्कि यह भी जाहिर होता है कि उनका व्यावसायिक नजरिया भी पाक-साफ नहीं है।
सूत्र बताते हैं डालमिया परिवार ने न तो खरीदारों को इस तरह बगीचे पर काबिज होने की कोई लिखित या मौखिक इजाजत दी थी, और न सैकड़ों हरे वृक्षों को काटने पर सहमत थे।
डालमिया परिवार तो इस पूरे प्रकरण को लेकर आश्चर्यचकित है कि कैसे कोई इस तरह गैर व्यावसायिक तरीका अख्तियार करते हुए आपराधिक कृत्य कर सकता है। कैसे कोई सौदा पूरा हुए बिना विकास प्राधिकरण में नक्शा पास कराने की कोशिश कर सकता है और कैसे उस नक्शे के लिए फर्जी नाम का इस्तेमाल कर सकता है।
डालमिया परिवार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि शीघ्र ही वो अपने बाग पर अवैध रूप से काबिज होने, हरे वृक्षों का अवैध कटान करने, गलत नाम देकर नक्शा पास कराने की कोशिश करने सहित ऐसी सभी आपराधिक गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही करने जा रहे हैं जिससे स्थिति पूरी तरह साफ हो सके।
डालमिया परिवार की मानें तो उनके घर तक कभी पुलिस नहीं पहुंची, लेकिन सौदेबाजों की ओछी हरकत एवं आपराधिक गतिविधियों ने उनके घर तक पुलिस पहुंचाने का काम किया।
डालमिया परिवार के मुखिया का आरोप है कि पेड़ काटने के बाद अपनी गर्दन फंसती देख सौदा करने वालों में से किसी ने तो वन विभाग को हमारे नाम बताए, अन्यथा जिस वन विभाग को एफआईआर दर्ज कराते वक्त मथुरा के ही निवासी गुरू कृपा तपोवन के मालिक का नाम मालूम नहीं था और उसने एफआईआर में उसका नाम तक नहीं दिया, उसे पूरे डालमिया परिवार यहां तक कि महिला का भी नाम कैसे पता लगा।
उनका मानना है कि वन विभाग और फिर पुलिस को परिवार की पूरी जानकारी और कोलकाता का एड्रेस सौदेबाजों में से ही किसी ने मुहैया कराया।
सौदेबाजों की हरकत से डालमिया परिवार इतने अधिक गुस्से में है कि बताया जाता है उसने 'जो बन पड़े वो करने' को कह दिया है लेकिन डील फाइनल करने को तैयार नहीं है। यूं भी कानूनी पचड़ों में फंसने के बाद बाग की डील करना डालमिया परिवार के लिए इतना आसान नहीं होगा।
सौदा कैंसिल होने से खरीदारों में मचा हड़कंप, निवेशकों में फैली अफरा-तफरी
डालमिया परिवार द्वारा मौखिक तौर पर सौदा कैंसिल कर देने की सूचना दिए जाने से एक ओर जहां खरीदारों में हड़कंप मच गया है वहीं दूसरी ओर निवेशकों के बीच अफरा-तफरी फैल गई है और वो किसी भी तरह अपना पैसा निकालने को तत्पर हैं।
एक अनुमान के अनुसार चूंकि डालमिया बाग पर गुरू कृपा कॉलोनी काटने का प्रचार करके और विकास प्राधिकरण से नक्शा पास हो जाने की भ्रामक सूचना देकर सौदेबाजों ने करीब-करीब एक हजार करोड़ रुपया हासिल कर लिया इसलिए निवेशक उनके ऊपर प्लॉटों की रजिस्ट्री कराने का दबाव बना रहे थे। निवेशकों के दबाव में रातों-रात ये खेल खेला गया जिससे ऐसा संदेश दिया जा सके कि अब प्लॉटों की रजिस्ट्री कराने में न देर होगी, और न कोई बाधा आएगी।
उलटा पड़ गया दांव
निवेशकों के दबाव में खेला गया यह दांव इस बार सौदेबाजों पर उलटा पड़ गया अन्यथा वह ऐसे कई दांव अपने अन्य रियल एस्टेट प्रोजेक्ट पर पहले भी लगा चुके थे, और सफल भी रहे। शायद यही कारण रहा कि आपराधिक कृत्यों में शुमार इन हरकतों को करने से पहले जहां कोई भी कारोबारी हजार बार सोचता है और प्रयास करता है कि सब-कुछ प्रक्रिया के तहत पूरा हो जाए, वहीं इन्होंने एक रात में वो सब कर दिया।
मूल सौदेबाज के होटल पर निवेशकों ने किया जमकर हंगामा
ये भी ज्ञात हुआ है कि बाग का सौदा कैंसिल होने की जानकारी मिलते ही डालमिया परिवार से सर्वप्रथम सौदा करने वालों में शामिल वृंदावन निवासी व्यक्ति के होटल पर कई निवेशक जा पहुंचे और उन्होंने जमकर हंगामा किया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि इस मूल सौदेबाज ने खुद को होटल के एक कमरे में बंद करके अपने सीए को सामने कर दिया। सीए ने जैसे-तैसे निवेशकों को समझा कर शांत किया।
सौदेबाजों के बीच भी पैदा होने लगा है अविश्वास, बैठकों का दौर जारी
उधर, बताया जाता है कि समय के साथ सौदेबाजों के मध्य भी अब अविश्वास पैदा होने लगा है और वो वर्तमान स्थितियों के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सारा दोष एक-दूसरे के सिर मढ़ने की कोशिश की जा रही है। मामला कहीं हद से आगे न चला जाए और चौराहे पर हड़िया फूटने से बचाई जा सके, उसके लिए कभी मथुरा तो कभी वृंदावन तथा कभी मथुरा-वृंदावन से बाहर बैठकों का दौर जारी है। इन बैठकों के हालात का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि कई बार इसमें शामिल लोगों के बीच गाली-गलौज तक की नौबत आ चुकी है।
जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि डालमिया बगीचे को लेकर उपजे घटनाक्रम ने मथुरा-वृंदावन से लेकर कोलकाता तक रंजिश की नई नींव रख दी है और समय रहते यदि इसे समझदारी एवं कुशलता के साथ नहीं निपटाया गया तो इसके बड़े गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
डालमिया बगीचे का सौदा तो अभी भूल ही जाएं, इसका असर रियल एस्टेट से जुड़े दूसरे सौदों तथा अन्य कारोबारियों पर भी पड़ने की पूरी आशंका है क्योंकि यह पूरा करोबार अधिकांशत: भरोसे की कच्ची डोर तथा कच्ची परचियों पर होने वाले लेन-देन से जुड़ा रहता है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
डालमिया बाग कांड: अब ED और CBI की भी एंट्री जल्द, एक पूर्व और एक वर्तमान मंत्री का निवेश बनेगा फांस
मथुरा (September 29th, 2024)। वृंदावन के छटीकरा रोड पर स्थित बेशकीमती डालमिया बाग भले ही 300 हरे वृक्षों को रातों-रात काट डालने के कारण चर्चा में आया लेकिन अब जैसे-जैसे इसके सौदे से लेकर प्लॉटिंग और निवेश से लेकर अवैध रूप से काबिज होने तक की पटकथा सामने आ रही है... वैसे-वैसे इसकी वो परतें भी उघड़ रही हैं जो सामान्य स्थितियों में शायद ही कभी सामने आतीं। विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज बेशक इस आशय का प्रचार किया जा रहा है कि समूचे डालिमया बाग का सौदा नंबर एक का पैसा देकर किया गया है, किंतु ऐसा है नहीं।
सूत्र बताते हैं कि इस सौदे के लिए कुछ रकम नंबर एक में जरूर दी गई है परंतु उससे कहीं बहुत अधिक रकम नंबर दो में पहुंचाई गई है।
सब जानते हैं कि नंबर दो की रकम को खपाने का यदि कोई बड़ा माध्यम है तो वह है रियल एस्टेट का कारोबार यानी जमीन की खरीद-फरोख्त। इस मामले में भी यही किया गया।
चूंकि बाग की पूरी 36 एकड़ जमीन पर काबिज होने के लिए डालमिया परिवार के पास शेष रकम भी पहुंचानी थी इसलिए सबसे पहले मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में एक नक्शा पेश करके मालिकाना हक साबित करने का षड्यंत्र रचा गया।
प्रदेश के एक पूर्व मंत्री और एक वर्तमान मंत्री भी मुखौटा पार्टनर
इस षड्यंत्र में सफल होने के लिए ऊपर तक सेटिंग जरूरी थी इसलिए एक पूर्व मंत्री के साथ-साथ प्रदेश सरकार के एक वर्तमान मंत्री को भी उन दामों में मुखौटा पार्टनर बनाया गया जिनमें डालमिया परिवार से सौदा हुआ था। एक ओर पैसा फेंककर तो दूसरी ओर मुखौटा पार्टनर्स के नाम का इस्तेमाल करके पुलिस, प्रशासन, सिंचाई विभाग, वन विभाग तथा विकास प्राधिकरण को दबाव में लिया गया।
इस पूरे खेल में अब तक जिस शंकर सेठ को मास्टर माइंड बताकर पेश किया जा रहा है, वो तो एक ऐसी टूल किट है जिसे बाग पर काबिज होने से लेकर प्लॉटिंग के नाम पर पैसा जुटाने और उसके लिए सैकड़ों हरे पेड़ों की हत्या कराने एवं उससे भी पहले वृंदावन माइनर को पाटने का काम कराने के लिए इस्तेमाल किया गया।
सिंचाई विभाग, वन विभाग तथा विकास प्राधिकरण की चुप्पी यह साबित करने के लिए काफी है कि दबाव किस तरह काम कर रहा था। ये बात दीगर है कि मामले के तूल पकड़ने पर वन विभाग तथा विकास प्राधिकरण ने एफआईआर दर्ज करा दी। साथ ही बिजली विभाग ने भी अपनी जान बचाने को एक एफआईआर दर्ज कराई क्योंकि जब पेड़ काटे जा रहे थे तब बिजली भी गुल करा दी गई। हालांकि बिजली विभाग अब दावा कर रहा है कि काटे गए पेड़ बिजली के तारों पर गिरे इसलिए बिजली चली गई।
अब ED और CBI की एंट्री जल्द
बहरहाल, अब इस पूरे प्रकरण में ED और CBI की भी जल्द एंट्री होने वाली है क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग का मामला तो साफ-साफ दिखाई दे रहा है, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) का भी खेल निकल कर आ सकता है क्योंकि बाग का सौदा एक ऐसे शख्स के जरिए हुआ है जो एक अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक संस्था से जुड़ा है और डालमिया बंधुओं का सजातीय है।
इस विश्व विख्यात धार्मिक संस्था की शाखाएं दुनियाभर में फैली हैं इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि बाग के सौदे में विदेशी धन का भी इस्तेमाल किया गया हो।
जहां तक सवाल CBI की एंट्री का है तो उसकी मांग NGT से की गई है। अगर एनजीटी इस मांग को मांग लेता है तो ठीक अन्यथा प्रदेश सरकार भी इसकी जांच CBI को सौंप सकती है क्योंकि यह पूरी साजिश के साथ गिरोहबद्ध होकर किया गया वो आपराधिक कृत्य है जिसके तहत लोगों को गुमराह करके मोटा पैसा जुटाया जा चुका है।
धार्मिक दृष्टि से तूल पकड़ रहा है मामला
समय के साथ यह मामला धार्मिक दृष्टि से भी तूल पकड़ने लगा है। वृंदावन के तमाम संत-महंत पिछले कई दिनों से मुखर होकर माफिया की मुखालफत कर रहे हैं। मशहूर संत प्रेमानंद महाराज ने इस घृणित कृत्य पर अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए आठ मिनट से ऊपर का एक वीडियो संदेश जारी किया है और साफ-साफ कहा है कि माफिया ने अपने नाश का इंतजाम कर लिया है।
जो भी हो लेकिन इतना तय है कि डालमिया बगीचे पर काबिज होकर हजारों करोड़ रुपए कमाने का जो सपना माफिया ने देखा था, वह अब पूरा होने से रहा। होगा तो सिर्फ इतना कि आगे-पीछे के सब पाप एक-एक करके सामने आएंगे और एक-एक कर विभिन्न सरकारी एजेंसियां शिकंजा कसेंगी। हो सकता है कि इसमें कुछ ऐसे सफेदपोश लोगों को भी जेल जाना पड़ जाए जिन्होंने अनेक कुकर्म करने के बावजूद आज तक जेल का मुंह नहीं देखा है।
-Legend News
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