मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024

ED की सक्रियता से डालमिया बाग के खरीदारों में खलबली, भूमिगत होने या विदेश भाग जाने की आशंका


 मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग मामले में अब ED की सक्रियता बढ़ जाने से खरीदारों में भारी खलबली देखी जा रही है। आशंका है कि उनमें से कुछ लोग या तो भूमिगत हो सकते हैं, या फिर देश छोड़कर भी भाग सकते हैं। हालांकि ED को भी इस बात का अंदाज है लिहाजा उसने ऐसे लोगों की हर गतिविधि पर अपनी पैनी नजर गड़ा रखी है। 

दरअसल, इस खरीद-फरोख्‍त में बढ़ती प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की सक्रियता का बड़ा कारण इसके धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) अर्थात ब्‍लैक मनी को सफेद बनाने तथा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के तहत आने की प्रबल संभावना दिखाई देना है। यही वजह है कि ED ने इस पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। 
ED से जुड़े अत्यंत भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार की इस स्‍वतंत्र जांच एजेंसी ने प्राथमिक जानकारी जुटाने के लिए अपने कुछ बिंदु भी तय कर लिए हैं। ये ऐसे बिंदु हैं जिनसे एजेंसी न केवल इस पूरे मामले की तह तक जा सकती है बल्‍कि इसमें शामिल सफेदपोश अपराधियों के चेहरे भी सामने ला सकती है। 
ED क्या-क्या जानना चाहती है 
ED इस मामले में सबसे पहले तो यह जानकारी चाहती है कि वृंदावन की जिस रियल एस्‍टेट फर्म का नाम अब तक इस सौदे में सामने आया है, उसका स्टेटस क्या है? 
वह एक पार्टनरशिप फर्म है या किसी व्यक्ति विशेष के हक वाली प्रोपराइटरशिप में रजिस्‍टर्ड है? 
यदि वह एक पार्टनरशिप फर्म है तो उसके पार्टनर कितने हैं और उनकी हिस्‍सेदारी कितनी-कितनी है? 
डालमिया बाग का सौदा करते वक्त इस फर्म में कितने हिस्‍सेदार थे और क्या सौदा हो जाने के बाद अन्य लोग हिस्‍सेदार बनाए गए? 
अगर सौदा हो जाने के बाद और हिस्‍सेदार बनाए गए तो उनकी संख्‍या तथा उनका हिस्‍सा कितना-कितना रखा गया? 
जैसा अब तक प्रचारित किया गया है कि डालमिया परिवार ने अपने बाग का पूरा सौदा नंबर एक में किया है और खरीदारों से पैसा भी नंबर एक में लिया है तो पूरी पैसा मिल जाने के बावजूद उसने बाग की रजिस्ट्री क्यों नहीं की, रजिस्‍ट्री करने के लिए डालिमया परिवार किस बात का इंतजार कर रहा था? 
इस सबके अलावा ED यह भी जानना चाहती है कि बिना रजिस्‍ट्री किए ही डालमिया परिवार ने खरीदारों को जमीन पर काबिज होने की क्या कोई लिखित अथवा मौखिक सहमति दी थी? 
अगर डालमिया परिवार ने ऐसी कोई सहमति दी थी तो वो किसे दी थी और कब दी थी?
 
कॉलोनी डेवलव करने के लिए नक्शा किसने पेश किया
ED के सामने एक यक्ष प्रश्‍न यह है कि वो कौन से तत्व हैं जिन्होंने बाग की रजिस्‍ट्री कराने से पहले ही मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में गुरूकृपा तपोवन के नाम से कॉलोनी डेवलव करने के लिए नक्शा पेश कर दिया क्योंकि इस पूरे प्रकरण में अब तक सिर्फ एक नाम सर्वाधिक चर्चित रहा है, और वह नाम है किसी शंकर सेठ का जो गुरूकृपा बिल्डर्स का मालिक बताया जाता है तथा जिसने इस नाम से पहले भी दूसरे प्रोजेक्ट खड़े किए हैं। 
आश्‍चर्यजनक बात यह है गुरूकृपा तपोवन के नाम से विकास प्राधिकरण में नक्शा पेश किए जाने की अब तक न तो किसी ने जिम्मेदारी ली है और न ही खंडन किया है जबकि उसी नक्शे के आधार पर निवेशकों से बड़ी रकम ली गई तथा उसी नक्शे के हिसाब से कॉलोनी की प्‍लॉटिंग की गई।  
बताया जाता है कि शंकर सेठ वृंदावन में ही छटीकरा रोड पर गुरूकृपा के नाम से एक अन्य प्रोजेक्ट बना रहा है और उसका नक्शा उसने विकास प्राधिकरण से पास भी कराया है। ये बात अलग है कि उस नक्शे को पास कराने में भी हेराफेरी किए जाने की शिकायतें अब मिली हैं, जिनकी जांच शुरू हो चुकी है। 
बहरहाल, ED को इस पूरे खेल में किसी बड़ी आपराधिक साजिश की बू आ रही है इसलिए वह यह भी पता लगाने में जुटी है कि गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के नाम पर निवेशकों से एडवांस में मोटी रकम लेने वाले कौन-कौन लोग हैं और उन्होंने किस हैसियत से यह रकम ली थी? 
ED यह मानकर चल रही है कि डालमिया बाग का प्रकरण भले ही सैकड़ों हरे पेड़ काटने के बाद मीडिया की नजर में आया हो किंतु इसके तार ऐसे गहरे आपराधिक षडयंत्र से जुड़ रहे हैं जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर फेमा तक और आम निवेशकों एवं आम जनता से हजारों करोड़ रुपए ठगने तक का सुनियोजित अपराध बनता है।
 
ED का शक निराधार इसलिए नहीं है कि रातों-रात सैकड़ों पेड़ काट डालने वालों में से एक भी व्यक्ति अब सामने आकर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। वो भी तब जबकि निवेशक परेशान हैं अपने पैसों को लेकर, और वृंदावनवासी दुखी हैं उनके दुस्‍साहस तथा जिला प्रशासन की अकर्मण्‍यता एवं भ्रष्‍टाचार को लेकर। 
ED को तो यह भी शक है डालमिया बाग का सौदा करके व उस पर काबिज होकर हजारों करोड़ रुपया जुटाने के लिए पेशेवर आर्थिक अपराधियों की तरह ऐसे-ऐसे हथकंड़े अपनाए गए हैं जो आरोप सिद्ध हो जाने की स्‍थिति में अंतत: वर्षों कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने के बाद आजन्म कैद जैसी सजा तक ले जाते हैं। 
इन आर्थिक अपराधियों को भी संभवत: इस बात का इल्म हो चुका है इसलिए वो आरोपों का सामना करने के बजाय नित नई कहानी गढ़ने तथा मीडिया को मैनेज करने में लगे हैं ताकि ED के शिकंजे में फंसने से पहले समय रहते या तो भूमिगत हो जाएं या फिर विदेश भाग निकलें, क्योंकि अब न तो डालमिया बाग पर प्रोजेक्ट खड़ा करना आसान होगा और न निवेशकों का भरोसा बहाल हो सकेगा।
 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

 

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