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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024
डालमिया मामले में विस्फोटक खुलासा: वृंदावन के बाग का कोई एग्रीमेंट हुआ ही नहीं, पोंजी स्कीम की तरह माफिया ने किया हजारों करोड़ का फ्रॉड
मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग का मामला कोई सामान्य सौदा न होकर पूरी साजिश से किया गया हजारों करोड़ रुपए का ऐसा फ्रॉड है जिसे पहले तो माफिया ने पोंजी स्कीम की तरह अंजाम तक पहुंचाया और फिर निवेशकों को उसके जाल में फंसाकर मोटी रकम हड़पी गई। धर्म की नगरी में अधर्म के सहारे खेले गए इस खेल की कोई सामान्य कारोबारी तो कल्पना तक नहीं कर सकता।
डालमिया परिवार के साथ वृंदावन के बाग का नहीं हुआ कोई एग्रीमेंट
किसी को भी यह जानकार घोर आश्चर्य हो सकता है कि डालमिया परिवार ने वृंदावन के अपने बाग का कोई एग्रीमेंट नहीं किया। जिसे एग्रीमेंट बता कर निवेशकों को गुमराह किया गया, वह वास्तव में मात्र एक Memorandum of understanding (MOU) है, न कि एग्रीमेंट। सामान्य भाषा में कहें तो एमओयू और एग्रीमेंट के बीच मुख्य अंतर है उनकी कानूनी प्रवर्तनीयता (Enforceability)। एग्रीमेंट कानूनी रूप से बाध्यकारी एक दस्तावेज है जबकि एमओयू नहीं।
कोलकाता के डालमिया परिवार ने वृंदावन निवासी गिर्राज अग्रवाल तथा मथुरा निवासी आशीष कौशिक की पार्टनरशिप फर्म राधामाधव डेवलेपर्स के साथ वर्ष 2023 में एक एमओयू साइन किया है जिसकी कोई कानूनी अहमियत नहीं है। उसे बाग के सौदे का कोई दस्तावेज नहीं माना जा सकता। यदि बाग के सौदे का कोई एग्रीमेंट हुआ होता तो अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करने वाले को अदालत में घसीटा जा सकता था लेकिन एमओयू साइन करने भर से ऐसा नहीं किया जा सकता।
इसका सीधा-सीधा अर्थ यह होता है कि डालमिया परिवार द्वारा सौदा कैंसिल किए जाने की चर्चा निराधार नहीं है। वह जब चाहे एमओयू को खारिज कर सकता है।
कोलकाता में तो एग्रीमेंट कराया ही नहीं जा सकता था
यहां यह भी समझना बहुत जरूरी हो जाता है कि डालिमया परिवार किसी भी तरह कोलकाता में बैठकर बाग का एग्रीमेंट नहीं कर सकता और यह बात दोनों पक्ष भली प्रकार जानते होंगे। कानूनन किसी जमीन का एग्रीमेंट उसी तहसील क्षेत्र में रजिस्टर्ड हो सकता है जहां वह जमीन है, न कि किसी दूसरे शहर में।
इसके अलावा रजिस्टर्ड एग्रीमेंट के लिए यह आवश्यक है कि विक्रेता द्वारा क्रेता से ली जा रही रकम पर निर्धारित स्टांप ड्यूटी देय होगी। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो यह कृत्य कर की चोरी के दायरे में आता है जिससे बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
जाहिर है कि ऐसे में डालमिया बाग के सौदे को लेकर अब तक प्रचारित की गईं सभी बातें न सिर्फ भ्रामक हैं बल्कि किसी खास उद्देश्य की पूर्ति के लिए फैलाया गया सोचा-समझा झूठ है।
डालमिया परिवार और राधामाधव डेवलेपर्स के दो साझेदारों गिर्राज अग्रवाल तथा आशीष कौशिक द्वारा साइन किए गए एमओयू से पूरी तरह साबित होता है कि सैकड़ों करोड़ के इस सौदे की शुरूआत ही नेकनीयत से नहीं की गई।
बेशक यह जांच का विषय हो सकता है कि ऐसा करने के पीछे मूल रूप से बदनीयती किसकी है, परंतु इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि निवेशकों को गुमराह किया गया और उनसे एग्रीमेंट को लेकर झूठ बोला गया।
डालमिया परिवार द्वारा सौदे का इनकम टैक्स जमा कराने वाली बात भी नितांत झूठ
बाग के सौदे को लेकर लगातार बोले जा रहे झूठ का एक हिस्सा वह भी है जिसमें कहा गया कि डालमिया परिवार ने तो ली गई रकम पर बनने वाला इनकम टैक्स भी जमा करा दिया है जबकि मात्र एमओयू साइन करने की स्थिति में कोई टैक्स बनता ही नहीं।
एग्रीमेंट कराया होता तो नंबर एक में लिए गए पेमेंट का पूरा ब्यौरा देना पड़ता किंतु एमओयू साइन करने के लिए उसकी दरकार नहीं होती। डालमिया परिवार ने इसीलिए एमओयू में प्राप्त रकम तथा बकाया रकम का जिक्र तो जरूर किया है परंतु इसका उल्लेख कहीं नहीं किया कि वो रकम उसे किस माध्यम से प्राप्त हुई।
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण भी साजिश में शामिल
इस पूरे प्रकरण को गौर से देखें तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण भी पूरी साजिश का हिस्सा मालूम पड़ता है क्योंकि उसके जिम्मेदार अधिकारी अब तक मौन साधे बैठे हैं।
बिना नक्शा पास कराए मामूली निर्माण की सूचना पाकर किसी के भी यहां जा धमकने वाले और नोटिस पर नोटिस जारी करने वाले विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने डालमिया बाग मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया।
सब जानते हैं कि डालमिया बाग में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट डेवलेप करने के लिए गुरूकृपा तपोवन के नाम से एक नक्शा पेश किया गया है। यह नक्शा मीडिया में भी प्रकाशित व प्रचारित हो चुका है। इसी नक्शे को आधार बनाकर निवेशकों को आकर्षित किया गया और उनसे अच्छी-खासी रकम ऐंठी गई।
डालमिया बाग से रातों-रात सैकड़ों हरे पेड़ काटे जाने के बाद जब यह मामला चर्चा में आया और वनविभाग ने डालमिया परिवार के साथ गुरुकृपा तपोवन के मालिक का नाम भी एफआईआर में दर्ज कराया तो गुरुकृपा तपोवन के मालिक ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उसका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।
चूंकि डालमिया परिवार और राधामाधव डेवलेपर्स के बीच साइन हुए एमओयू में भी गुरुकृपा तपोवन के मालिक का नाम नहीं है तो सवाल यह पैदा होता है कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में गुरूकृपा तपोवन के नाम से नक्शा किसने पेश कर दिया?
इससे भी बड़ी बात यह है कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की ओर से गुरूकृपा तपोवन का नक्शा न तो आज तक खारिज किया है और न फर्जी नक्शा पेश करने वाले के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही अमल में लाई गई है।
आश्चर्यजनक रूप से गुरुकृपा तपोवन के मालिक ने भी नक्शा पेश करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा जिससे मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका पर संदेह होना स्वाभाविक है।
पोंजी स्कीम की तरह माफिया ने किया हजारों करोड़ का फ्रॉड
एक अनुमान के अनुसार कथित रियल एस्टेट प्रोजेक्ट गुरुकृपा तपोवन के नाम पर अब तक एक हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम बतौर एडवांस ली जा चुकी है जबकि ऐसा कोई प्रोजेक्ट फिलहाल धरातल पर है ही नहीं। डालमिया बाग का एग्रीमेंट होना तो दूर, उसके अंजाम तक पहुंचने की संभावना दिखाई नहीं दे रही।
जो एमओयू साइन किया गया है, उसकी कोई कानूनी अहमियत नहीं है। बावजूद इसके निवेशकों को लगातार गुमराह किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सब ठीक कर देंगे। पैसे में बड़ी ताकत है।
अभी और खुलेंगे बहुत से राज
ऐसे में तय है कि अभी बहुत से राज खुलने बाकी हैं। जैसे कि राधामाधव डेवलेपर्स में गिर्राज अग्रवाल तथा आशीष कौशिक के अतिरिक्त भी क्या और पार्टनर है, यदि हैं तो वो कौन-कौन हैं। उनकी भूमिका अब तक क्या रही है। निवेशकों से पैसा किस-किस ने लिया और किस आधार पर लिया।
ईडी ने ली इनकम टैक्स विभाग से जानकारी
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले में ईडी ने इनकम टैक्स विभाग से भी जानकारी मांगी है ताकि राधामाधव डेवलेपर्स के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हिस्सेदारों का पता लगाया जा सके, साथ ही इस फर्म का वास्तविक स्टेटस जाना जा सके।
ईडी को पूरा भरोसा है कि कृष्ण की पावन जन्मभूमि पर जमीन की आड़ में खेले गए इस सबसे बड़े खेल का पर्दाफाश होगा तो बहुत से चौंकाने वाले चेहरे बेनकाब होंगे।
बस देखना यह है कि उसके शिकंजे में कौन-कौन फंसता है और कब तक फंसता है क्योंकि सरकारी मशीनरी की कछुआ चाल से फिलहाल तो माफिया के बुलंद हौसले सबको चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि यह मानने वालों की भी कमी नहीं जो कहते हैं कि इन्होंने सैकड़ों हरे पेड़ों को काटकर जो पाप किया है, वही एक दिन इन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा।
बहरहाल, इस सबसे इतर यह जानकर निश्चित ही निवेशकों पर पहाड़ टूट पड़ेगा जब उन्हें पता लगेगा कि डालमिया परिवार से बाग का सौदा और एग्रीमेंट किए जाने जैसी बातें पूरी तरह बेबुनियाद हैं, लिहाजा उनका पैसा पूरी तरह खटाई में पड़ चुका है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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