रविवार, 27 अक्तूबर 2013

2014 के राजनीतिक विदूषक

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
मेरी मां ने मुझसे हाल ही में एक रात को कहा कि राजनीति किसी तेज घातक जहर की तरह है।
मेरी मां की जब संसद में अचानक तबियत खराब हो गई और उन्‍हें हॉस्‍पीटल ले जाया जा रहा था तो उनकी आंखों में आंसू थे। उन्‍होंने मुझसे कहा कि जिस खाद्य सुरक्षा कानून के लिए मैं इतने दिनों से लड़ रही थी, आज उसी के बिल को पास कराने के लिए मैं वोटिंग नहीं कर पा रही। मैं हॉस्‍पीटल जाने से पहले वोटिंग करना चाहती हूं।

मेरी मां ने मुझसे कहा कि मेरी दादी को मार दिया गया, मेरे पापा को मार दिया गया और इसी तरह कुछ लोग मेरी हत्‍या करना चाहते हैं।
तीन अलग-अलग मौकों पर लेकिन एक ही उद्देश्‍य से राहुल गांधी द्वारा दिए गये बयानों के हिस्‍से हैं ये।
इसमें कोई दो राय नहीं कि राजनीति का मकसद ही सत्‍ता पर काबिज होना होता है और उसके लिए आमजन का भावनात्‍मक दोहन भी सारे राजनीतिक दल अपने-अपने तरीकों से करते हैं लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों से पूर्व राजनीति का जो रूप सामने आ रहा है, वह किसी ऐसे विदूषक का है जो हंसाता कम है और डराता ज्‍यादा है।
राहुल गांधी की इन दिनों जो बॉडी लेंग्‍वेज है और जिस तरह वह एग्रेसिव होकर बोलते हैं, जरा कल्‍पना करके देखिए कि क्‍या देश को कोई ऐसा पीएम रास आयेगा।

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