शनिवार, 30 नवंबर 2013

तरुण तेजपाल: एक पत्रकार.. या एक चालाक बिजनेसमैन?

नई दिल्‍ली। 
तरुण तेजपाल भले ही खोजी पत्रकार के रूप में मशहूर रहा हो लेकिन उसके बारे में जो खुलासे हो रहे हैं उससे लग रहा है कि वह पत्रकार की बजाय एक चालाक बिजनेसमैन है।
साल दर साल घाटे के बावजूद तेजपाल आठ कंपनियां चला रहा है। तहलका मैगजीन को प्रकाशित करने वाली कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड को साल 2011-12 के दौरान कुल 13 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। इसी साल तेजपाल ने थ्राइविंग आर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से नई कंपनी बनाई।
यह कंपनी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश-2 में प्रुफरॉक नाम से एक एलिट क्लब बनाने जा रही है। सिर्फ थिंकवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड को पिछले वित्तीय वर्ष के अंत में 1.99 करोड़ रुपए का फायदा हुआ था। यह कंपनी गोवा में हर साल थिंकफेस्ट इवेंट का आयोजन करती है।
सबसे चौंकानी वाली बात यह है कि तेजपाल के ज्यादातर निवेशकों का तहलका की पत्रकारिता और उसकी ओर से उठाए जाने वाले समाजिक मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है। उनका कहना है कि तेजपाल के किसी भी वेंचर्स में किसी तरह के निवेश का फैसला पूरी तरह से व्यावसायिक है। उनका मकसद सिर्फ तेजी से पैसा कमाना है और उपयुक्त वक्त पर बाहर निकालना है।
राज्यसभा के सांसद के. डी. सिंह ने एक समाचार पत्र को बताया कि तेजपाल के वेंचर्स में निवेश का फैसला पूरी तरह से व्यावसायिक है। आखिरकार हमारी इच्छा है कि उपयुक्त वक्त पर बाहर निकल जाना। सिंह के समूह की फर्म अल्केमिस्ट के अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड में 65.75 फीसदी हिस्सेदारी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर तेजपाल के वेंचर्स लगातार घाटे में हैं तो निवेशक क्यों और कैसे पैसा लगा रहे हैं?
सी. ए. अनिल गोयल का कहना है कि यह इतना आसान नहीं है। अकाउंट बुक में दिखाया जाने वाला घाटा सिर्फ छलावा है। चंद्रा ग्रुप तेजपाल के वेंचर्स थ्राइविंग आर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड में प्रति शेयर 1800 के हिसाब से कैसे 1 फीसदी हिस्सेदारी ले सकता है जब हर शेयर की फेस वैल्यू 10 हो?
-एजेंसी

मथुरा से कटेंगे चंदनसिंह और योगेश के टिकट!

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली सहित पांच राज्‍यों के चुनाव नतीजे सामने आते ही सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का पूरा ध्‍यान लोकसभा चुनावों पर केंद्रित हो जायेगा। लोकसभा चुनावों के लिए उत्‍तर प्रदेश में हालांकि कुछ क्षेत्रीय दलों ने काफी समय पूर्व अपने उम्‍मीदवारों की घोषणा कर दी थी लेकिन अब वह उन नामों की फिर से समीक्षा करने में लगे हैं।
चूंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में किंग नहीं तो किंगमेकर बनने के लिए दोनों प्रमुख क्षेत्रीय दल सपा और बसपा एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं इसलिए उम्‍मीदवारों के चयन पर पुनर्विचार करना उनकी लगभग मजबूरी बन गई है।
हालांकि समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव किंगमेकर बनने की जगह किंग बनने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं और इसीलिए एक ओर जहां तीसरे मोर्चे के गठन करने में लगे हैं वहीं दूसरी ओर उत्‍तर प्रदेश से बड़ी सफलता का ख्‍वाब पाले हुए हैं।
यही कारण है कि वह उत्‍तर प्रदेश में पूर्व घोषित अपने उम्‍मीदवारों की फिर से समीक्षा कर रहे हैं और कई उम्‍मीदवारों को बदल भी चुके हैं।
इसी प्रकार बहुजन समाज पार्टी भी काफी गोपनीय तरीके से अब तक घोषित अपने उम्‍मीदवारों की जमीनी हकीकत का आंकलन करवा रही है और पांच राज्‍यों के नतीजे आने के बाद वह अपना पूरा ध्‍यान उम्‍मीदवारों के चयन पर केंद्रित कर देगी।
बहरहाल, लोकसभा चुनावों में देश के अंदर जितनी बड़ी भूमिका उत्‍तर प्रदेश निभाता है, लगभग उतनी ही उत्‍तर प्रदेश में ब्रज क्षेत्र की रहती है।
यूं तो ब्रजक्षेत्र काफी बड़ा है लेकिन यदि हम बात करें केवल उन सीटों की जो मथुरा, आगरा, हाथरस, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी, फतेहपुर सीकरी की तो यहां की आठ सीटें न केवल निर्णायक रहती हैं बल्‍कि यहां से मिली हार-जीत समूचे उत्‍तर प्रदेश में राजनीति की दशा व दिशा तय करती है।
संभवत: इसीलिए हर राजनीतिक दल चाहे वह राष्‍ट्रीय हो या क्षेत्रीय, लोकसभा चुनावों में ब्रज क्षेत्र की इन सीटों पर अपना पूरा ध्‍यान केंद्रित रखता है।
भगवान श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली का गौरव प्राप्‍त मथुरा जनपद की सीट पर जीत-हार के मायने इसलिए और महत्‍वपूर्ण हो जाते हैं क्‍योंकि राजनीतिक नज़रिए से भी इसकी महत्‍ता कम नहीं है।
सभी प्रमुख राजनीतिक दल इस बात को समझते हैं और इसीलिए चाहते हैं कि यहां की सीट उनके खाते में ही जाए।
उल्‍लेखनीय है कि विश्‍वविख्‍यात इस धार्मिक जनपद के लिए अब तक जिन पार्टियों ने अपने उम्‍मीदवार घोषित किए हैं, उनमें समाजवादी पार्टी के ठाकुर चंदन सिंह हैं जबकि बहुजन समाज पार्टी की ओर से वृंदावन की पूर्व पालिकाध्‍यक्ष पुष्‍पा शर्मा के पुत्र योगेश द्विवेदी हैं।
इनके अलावा तीसरा नाम राष्‍ट्रीय लोकदल के युवराज जयंत चौधरी का है जो निवर्तमान सांसद होंगे। जयंत चौधरी के यहां से फिर चुनाव लड़ने को लेकर भी समय-समय पर अटकलों का बाजार गर्म रहता है परंतु वह पुरजोर तरीके से हमेशा यही कहते रहे हैं कि वह चुनाव मथुरा से ही लड़ेंगे।
मुज़फ्फ़रनगर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद उपजे राजनीतिक हालात भी यही बताते हैं कि जयंत चौधरी कम से कम 2014 के लोकसभा चुनावों में क्षेत्र बदलने का जोखिम नहीं उठायेंगे।
इधर दोनों राष्‍ट्रीय दल ही ऐसे हैं जिन्‍होंने अपने पत्‍ते पूरी तरह छिपा रखे हैं। कांग्रेस का तो अभी यह तक नहीं पता कि 2014 के लोकसभा चुनावों में वह रालोद को साथ रखेगी या नहीं। रालोद को साथ लेकर चलने की स्‍थिति में मथुरा से उसका कोई प्रत्‍याशी नहीं होगा। शेष रह गई भाजपा जो किसी कीमत पर इस बार यहां से हार का मुंह नहीं देखना चाहती और इसी कवायद में लगी है कि प्रत्‍याशी ऐसा हो जो पार्टी को निश्‍चिंत कर सके।
लगभग यही स्‍थिति सपा और बसपा की है। समाजवादी पार्टी के मुखिया तो यूपी के दम पर खुद इस मर्तबा प्रधानमंत्री बनने की अपनी दिली ख्‍वाहिश का इज़हार हर जगह करते ही हैं लेकिन बसपा भी चाहती है कि वह किंग न सही लेकिन किंगमेकर जरूर बने।
ज़ाहिर है कि ऐसे हालात पैदा करने के लिए एक-एक सीट पर चुनाव पूर्व नजर गढ़ाकर रखना और उससे भी पहले जिताऊ प्रत्‍याशी सामने लाना बहुत जरूरी होगा।
पहले बात करें यदि समाजवादी पार्टी के वर्तमान घोषित प्रत्‍याशी ठाकुर चंदन सिंह की तो पार्टी के उच्‍च पदस्‍थ सूत्र उनकी अब तक की प्रोग्रेस से कतई संतुष्‍ट नहीं हैं। पार्टी हाईकमान का मानना है कि पर्याप्‍त समय दिए जाने के बावजूद वह जनपद में वो जगह नहीं बना पाए जिस पर भरोसा करके दांव लगाया जा सके।
इसके अलावा उन्‍हें लेकर पार्टी की जिला इकाई में मौजूद मतभेद तथा कुछ ज़मीनी विवादों में उनका नाम सामने आना भी उन्‍हें चुनाव लड़ाने में बाधा बनकर खड़ा हो रहा है।
गत दिनों समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता प्रोफेसर रामगोपाल यादव के गोवर्धन आगमन पर उनके सामने ही ठाकुर चंदन सिंह का एक जमीनी विवाद को लेकर कुछ लोगों ने घेराव किया था जिससे प्रोफेसर रामगोपाल भी काफी असहज हो गए। उस समय तो जैसे-तैसे बात संभाल ली गई लेकिन प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने इसे काफी गंभीरता से लिया। यूं भी पार्टी के सूत्रों की मानें तो ठाकुर चंदन सिंह के पक्ष में जिलाध्‍यक्ष गुरुदेव शर्मा के अलावा कोई दूसरा मजबूती से खड़ा दिखाई नहीं देता। गुरुदेव शर्मा भी चंदन सिंह की कुछ बातों को लेकर सशंकित रहते हैं।
समाजवादी पार्टी के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव इसलिए भी अत्‍यंत महत्‍पूर्ण है क्‍योंकि यदि वह इन चुनावों में मथुरा से सीट निकाल ले जाती है, तो यहां उसका खाता खुल जायेगा। आज तक सपा मथुरा से कोई चुनाव नहीं जीत पाई है। ज़ा हिर है कि वह अब इस चुनाव को हारने के लिए तैयार नहीं है और इसलिए ऐसा प्रत्‍याशी चाहती है जो जीत की गारंटी दिला सके। जो निर्विवाद व बेदाग हो तथा जिसके लिए समूची जिला इकाई एकजुट होकर मन से काम कर सके।
अब बात आती है दूसरे सबसे बड़े क्षेत्रीय दल बहुजन समाज पार्टी के उम्‍मीदवार योगेश द्विवेदी की। योगेश द्विवेदी से पहले बसपा ने वृंदावन के ही निवासी उदयन शर्मा का नाम घोषित किया था। उदयन शर्मा को हटाकर फिर योगेश द्विवेदी के नाम की घोषणा की गई।
बहुजन समाज पार्टी के उच्‍च पदस्‍थ सूत्रों की मानें तो तेजी से बदल रहे राजनीतिक समीकरणों में योगेश द्विवेदी उनकी पार्टी के लिए फिट नहीं बैठ रहे और इसलिए वह पांच राज्‍यों के चुनाव नतीजे आने के साथ ही किसी कद्दावर व्‍यक्‍ति को उम्‍मीदवार बनाकर पेश करने जा रही है। योगेश द्विवेदी का ब्राह्मण होना भी बसपा के फ्रेम में मथुरा के लिए फिट नहीं बैठ रहा। मथुरा का लोकसभा प्रत्‍याशी का निर्णय जाट-ठाकुरों के मत करते हैं। इसके अलावा योगेश द्विवेदी में पार्टी को उतना माद्दा दिखाई नहीं दे रहा कि वह ब्राह्मण मतदाताओं को पूरी तरह अपने पक्ष में लामबंद कर सकें।
ऐसे में बहुजन समाज पार्टी किसी ऐसे चेहरे को सामने लाना चाहती है जो सपा ही नहीं, भाजपा व रालोद की भी काट बन सके और पार्टी को यहां से पहली लोकसभा सीट दिलवा सके।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अब तक लोकसभा चुनावों के लिए जो चेहरे जनता के सामने रहे हैं, उनमें से सिर्फ जयंत चौधरी ही अपनी गारंटी खुद दे सकते हैं।
समाजवादी पार्टी के ठाकुर चंदन सिंह और बहुजन समाज पार्टी के योगेश द्विवेदी की मेहनत ऐन वक्‍त पर भी जाया हो सकती है।
यूं भी राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठ जाए, कोई नहीं कह सकता। फिर पूर्व घोषित उम्‍मीदवार तो हमेशा ही राजनीतिक दलों के लिए ताश के पत्‍ते अथवा शतरंज के प्‍यादों से अधिक नहीं रहे। जिन्‍हें बाजी जीतने के लिए फेंटना और उलट देना हाईकमानों का शगल रहा है। उनके लिए न कोई चंदन सिंह अहमियत रखता है और ना योगेश द्विवेदी।
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