JSR ग्रुप द्वारा मथुरा में गणेशरा रोड पर बनाई गई जिस ‘अशोका हाइट्स’ नामक बहुमंजिला बिल्डिंग की शिकायत लेकर आज वहां के निवासी दर-दर भटक रहे हैं, वह सिर्फ घटिया निर्माण या सुरक्षा, पार्किंग, पानी, बिजली, लिफ्ट इत्यादि समस्याओं तक सीमित नहीं है।
सच तो यह है कि ‘अशोका हाइट्स’ भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ी उन तमाम इमारतों का एक अदद उदाहरण है जिनके निर्माण में बिल्डर के साथ-साथ विकास प्राधिकरण, बैंकें, बिजली विभाग, फायर ब्रिगेड, ग्राम पंचायतें, नगर पालिका तथा नगर निगम जैसे अनेक विभाग संलिप्त रहे हैं और सभी ने मिलकर लोगों को लूटा है।
समस्याओं का रोना लेकर कभी बिल्डर और कभी डीएम के चक्कर काटने वाले ‘अशोका हाइट्स’ के निवासियों को तो शायद यह इल्म ही नहीं है कि अब उनकी बिल्डिंग के एक बड़े हिस्से को ध्वस्त करने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।
आज सिंचाई विभाग के अफसर भले ही इस बात को स्वीकार कर रहे हों कि ‘अशोका हाईट्स’ के निर्माण में आगरा कैनाल की मथुरा एस्केप का काफी हिस्सा दबा लिया गया है परंतु वर्षों पहले इसी विभाग के अधिकारी शिकवा-शिकायतों के बावजूद तमाशबीन बने रहे।
तब किसी अधिकारी ने न तो सरकारी जमीन हड़पे जाने का विरोध किया और न अवैध निर्माण रोकने की कोई कोशिश की गई।
बात तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव तक भी पुहंची किंतु नतीजा कुछ नहीं निकला। हालांकि शिवपाल यादव ने कहा था सिंचाई विभाग की जमीन कब्जाने वाले भूमाफिया बख्शे नहीं जायेंगे।
बाद में पता लगा कि उस स्तर तक भी JSR ग्रुप ने सेटिंग कर ली और मामला रफा-दफा कराने में सफल रहा जबकि ‘लीजेण्ड न्यूज़’ ने 26 अक्तूबर 2012 को ही ”ध्वस्त होंगे अशोका हाइट्स के 90 फ्लैट्स!” शीर्षक से लिखी अपनी खबर में ”भूमाफिया, बिल्डर एवं सरकारी मशीनरी के इस गठजोड़ को सामने ला दिया था।
‘लीजेण्ड न्यूज़’ ने 7 साल पहले ही उजागर किया था कि ‘अशोका हाइट्स’ के पिछले हिस्से में बनाये जा रहे करीब 90 फ्लैट्स पूरी तरह अवैध हैं और इनके निर्माण में एक ओर जहां सिंचाई विभाग की जमीन का दुरुपयोग किया गया है वहीं दूसरी ओर ग्राम समाज की जमीन भी घेरी गई है।
इस मामले में जब ”लीजेण्ड न्यूज़” ने अशोका हाइट्स बनाने वाले ग्रुप JSR हाउसिंग एण्ड डेवलेपर्स प्राइवेट लिमिटेड से सफाई मांगी तो ग्रुप के एक हिस्सेदार ने स्वीकार किया कि पार्टनर्स के बीच असहमति के बावजूद ग्रुप में शामिल कुछ लोगों ने अवैध निर्माण करा दिया।
अवैध निर्माण कराने वाले हिस्सेदारों का तर्क था कि एकबार घर की बुकिंग से पैसा हाथ में आ जाने के बाद उसी पैसे के बल पर अधिकारियों से सब-कुछ कराया जा सकता है।
अशोका हाइट्स के अवैध निर्माण को मिले सरकारी संरक्षण का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि फ्लोर एरिया रेशियो (FAR) की बात तो दूर, फ्लैट्स के बाहर भी इतनी जगह नहीं छोड़ी गई कि किसी हादसे की स्थिति में फायर ब्रिगेड की कोई गाड़ी मूव कर सके।
रहा सवाल भूकंपरोधी तकनीक के इस्तेमाल और दूसरी उन सुविधाओं का जिनका प्रचार करके लोगों को आकर्षित किया गया तो उनका खुलासा निर्माण के चलते ही हो गया था तब हो गया था जब पता लगा कि सीमेंट तक ”मेजर प्लांट” की जगह ”मिनी प्लांट” का इस्तेमाल किया गया है जिससे केवल रेत के महल ही खड़े किये जा सकते हैं और जिनकी हाइट यहां बसने वालों के लिए मौत की हाइट से कम साबित नहीं होती।
आश्चर्य इस बात पर भी है कि विकास प्राधिकरण ने कैसे जिंदा मक्खी निगल ली, बैंकें क्यों आंख बंद करके फाइनेंस करती रहीं, ग्राम पंचायत तथा फायर ब्रिगेड ने एनओसी किस आधार पर दे दी। लोगों को लूटने का एक सुनियोजित षड्यंत्र इन सभी विभागों की नाक के नीचे रचा गया लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
बेशक इस ‘वेल प्लांड’ लूट के लिए वो लोग भी कम जिम्मेदार नहीं हैं जो बिल्डर्स के झांसे में आकर बिना कुछ देखे उन्हें पैसा थमा देते हैं।
इस संदर्भ में भी ‘लीजेण्ड न्यूज़” ने 21 अक्टूबर 2012 को ही एक चेतावनी भरा समाचार इस शीर्षक से लिखा था कि ‘सावधान ! अशोका सिटी व अशोका हाइट्स में मकान तो नहीं ले रहे?’ लेकिन तब खरीदारों ने समाचार पर गौर करना शायद जरूरी नहीं समझा।
आज स्थित यह है कि JSR ग्रुप के बैनर तले डैपियर नगर में अशोका टावर, गणेशरा रोड पर अशोका हाइट्स और गोवर्धन चौराहे के निकट नेशनल हाईवे पर अशोका सिटी बनाने वाला ग्रुप पूरी तरह बिखर चुका है। उसके सारे हिस्सेदार अपना-अपना पैसा नए बिल्डर से लेकर निकल चुके हैं। उनके बीच जो झगड़े थे, वो भी उन्होंने आपस में मिल-बैठकर सुलझा लिए हैं।
जिन सरकारी अधिकारियों ने JSR ग्रुप को अवैध निर्माण की खुली छूट दी थी, वो भी कहां से कहां पहुंच चुके हैं।
रह गए हैं तो केवल जगह-जगह धक्के खाने पर मजबूर भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी की गईं इन इमारतों के वाशिंदे जिनकी आज सुनवाई तक करने को कोई तैयार नहीं है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सच तो यह है कि ‘अशोका हाइट्स’ भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ी उन तमाम इमारतों का एक अदद उदाहरण है जिनके निर्माण में बिल्डर के साथ-साथ विकास प्राधिकरण, बैंकें, बिजली विभाग, फायर ब्रिगेड, ग्राम पंचायतें, नगर पालिका तथा नगर निगम जैसे अनेक विभाग संलिप्त रहे हैं और सभी ने मिलकर लोगों को लूटा है।
समस्याओं का रोना लेकर कभी बिल्डर और कभी डीएम के चक्कर काटने वाले ‘अशोका हाइट्स’ के निवासियों को तो शायद यह इल्म ही नहीं है कि अब उनकी बिल्डिंग के एक बड़े हिस्से को ध्वस्त करने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।
आज सिंचाई विभाग के अफसर भले ही इस बात को स्वीकार कर रहे हों कि ‘अशोका हाईट्स’ के निर्माण में आगरा कैनाल की मथुरा एस्केप का काफी हिस्सा दबा लिया गया है परंतु वर्षों पहले इसी विभाग के अधिकारी शिकवा-शिकायतों के बावजूद तमाशबीन बने रहे।
तब किसी अधिकारी ने न तो सरकारी जमीन हड़पे जाने का विरोध किया और न अवैध निर्माण रोकने की कोई कोशिश की गई।
बात तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव तक भी पुहंची किंतु नतीजा कुछ नहीं निकला। हालांकि शिवपाल यादव ने कहा था सिंचाई विभाग की जमीन कब्जाने वाले भूमाफिया बख्शे नहीं जायेंगे।
बाद में पता लगा कि उस स्तर तक भी JSR ग्रुप ने सेटिंग कर ली और मामला रफा-दफा कराने में सफल रहा जबकि ‘लीजेण्ड न्यूज़’ ने 26 अक्तूबर 2012 को ही ”ध्वस्त होंगे अशोका हाइट्स के 90 फ्लैट्स!” शीर्षक से लिखी अपनी खबर में ”भूमाफिया, बिल्डर एवं सरकारी मशीनरी के इस गठजोड़ को सामने ला दिया था।
‘लीजेण्ड न्यूज़’ ने 7 साल पहले ही उजागर किया था कि ‘अशोका हाइट्स’ के पिछले हिस्से में बनाये जा रहे करीब 90 फ्लैट्स पूरी तरह अवैध हैं और इनके निर्माण में एक ओर जहां सिंचाई विभाग की जमीन का दुरुपयोग किया गया है वहीं दूसरी ओर ग्राम समाज की जमीन भी घेरी गई है।
इस मामले में जब ”लीजेण्ड न्यूज़” ने अशोका हाइट्स बनाने वाले ग्रुप JSR हाउसिंग एण्ड डेवलेपर्स प्राइवेट लिमिटेड से सफाई मांगी तो ग्रुप के एक हिस्सेदार ने स्वीकार किया कि पार्टनर्स के बीच असहमति के बावजूद ग्रुप में शामिल कुछ लोगों ने अवैध निर्माण करा दिया।
अवैध निर्माण कराने वाले हिस्सेदारों का तर्क था कि एकबार घर की बुकिंग से पैसा हाथ में आ जाने के बाद उसी पैसे के बल पर अधिकारियों से सब-कुछ कराया जा सकता है।
अशोका हाइट्स के अवैध निर्माण को मिले सरकारी संरक्षण का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि फ्लोर एरिया रेशियो (FAR) की बात तो दूर, फ्लैट्स के बाहर भी इतनी जगह नहीं छोड़ी गई कि किसी हादसे की स्थिति में फायर ब्रिगेड की कोई गाड़ी मूव कर सके।
रहा सवाल भूकंपरोधी तकनीक के इस्तेमाल और दूसरी उन सुविधाओं का जिनका प्रचार करके लोगों को आकर्षित किया गया तो उनका खुलासा निर्माण के चलते ही हो गया था तब हो गया था जब पता लगा कि सीमेंट तक ”मेजर प्लांट” की जगह ”मिनी प्लांट” का इस्तेमाल किया गया है जिससे केवल रेत के महल ही खड़े किये जा सकते हैं और जिनकी हाइट यहां बसने वालों के लिए मौत की हाइट से कम साबित नहीं होती।
आश्चर्य इस बात पर भी है कि विकास प्राधिकरण ने कैसे जिंदा मक्खी निगल ली, बैंकें क्यों आंख बंद करके फाइनेंस करती रहीं, ग्राम पंचायत तथा फायर ब्रिगेड ने एनओसी किस आधार पर दे दी। लोगों को लूटने का एक सुनियोजित षड्यंत्र इन सभी विभागों की नाक के नीचे रचा गया लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
बेशक इस ‘वेल प्लांड’ लूट के लिए वो लोग भी कम जिम्मेदार नहीं हैं जो बिल्डर्स के झांसे में आकर बिना कुछ देखे उन्हें पैसा थमा देते हैं।
इस संदर्भ में भी ‘लीजेण्ड न्यूज़” ने 21 अक्टूबर 2012 को ही एक चेतावनी भरा समाचार इस शीर्षक से लिखा था कि ‘सावधान ! अशोका सिटी व अशोका हाइट्स में मकान तो नहीं ले रहे?’ लेकिन तब खरीदारों ने समाचार पर गौर करना शायद जरूरी नहीं समझा।
आज स्थित यह है कि JSR ग्रुप के बैनर तले डैपियर नगर में अशोका टावर, गणेशरा रोड पर अशोका हाइट्स और गोवर्धन चौराहे के निकट नेशनल हाईवे पर अशोका सिटी बनाने वाला ग्रुप पूरी तरह बिखर चुका है। उसके सारे हिस्सेदार अपना-अपना पैसा नए बिल्डर से लेकर निकल चुके हैं। उनके बीच जो झगड़े थे, वो भी उन्होंने आपस में मिल-बैठकर सुलझा लिए हैं।
जिन सरकारी अधिकारियों ने JSR ग्रुप को अवैध निर्माण की खुली छूट दी थी, वो भी कहां से कहां पहुंच चुके हैं।
रह गए हैं तो केवल जगह-जगह धक्के खाने पर मजबूर भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी की गईं इन इमारतों के वाशिंदे जिनकी आज सुनवाई तक करने को कोई तैयार नहीं है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी