सोमवार, 9 जुलाई 2018

पहले भी हुई हैं जेल के अंदर गैंगवार: अखिलेश राज में मथुरा जिला जेल के अंदर शुरू हुई गैंगवार चली थी 2 दिन

मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या में तो अब तक मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ एक असलाह का इस्‍तेमाल हुआ किंतु मथुरा जिला जेल में हुई गैंगवार के दौरान दोनों पक्षों ने आधुनिक हथियार चलाए।

उत्तर प्रदेश में जेल के अंदर गैंगवार की यह पहली घटना नहीं है जिसमें कुख्‍यात माफिया डॉन मुन्‍ना बजरंगी को गोलियों से भून डाला गया। इससे पहले भी जेल के अंदर गैंगवार हुई हैं और उसमें बदमाश भी मारे गए हैं।
17 जनवरी 2015 की दोपहर मथुरा जिला जेल में हुई गोलीबारी में एक गैंग से अक्षय सोलंकी को मौत के घाट उतार दिया गया जबकि दूसरे गैंग से राजकुमार शर्मा, दीपक वर्मा और राजेश ऊर्फ टोंटा घायल हुए थे।
मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या में तो अब तक मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ एक असलाह का इस्‍तेमाल हुआ किंतु मथुरा जिला जेल में हुई गैंगवार के दौरान दोनों पक्षों ने आधुनिक हथियार चलाए। पुलिस की कहानी के अनुसार इस गैंगवार में इस्‍तेमाल किए गए नाइन एमएम हथियार बंदी रक्षक कैलाश गुप्‍ता ने पहुंचाए थे। इस गैंगवार के बाद मथुरा जिला जेल से बरामद दोनों हथियार नाइन एमएम (प्रतिबंधित बोर) के थे।
इत्‍तेफाक देखिए कि मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या में भी इसी बोर के हथियार को इस्‍तेमाल किए जाने की बात सामने आ रही है।
दरअसल, मथुरा जिला जेल के अंदर गैंगवार का आगाज़ हाथरस में राजेश टोंटा के घर से शुरू हुआ। जेल के अंदर गैंगवार से कुछ दिन पहले राजेश टोंटा ने अपने घर की तीसरी मंजिल पर पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्‍यात अपराधी ब्रजेश मावी का धोखे से कत्‍ल करके उसकी लाश को ठिकाने लगा दिया था। राजेश टोंटा और ब्रजेश मावी यूं तो गहरे दोस्‍त थे किंतु बताया जाता है कि उनके बीच किसी जमीन को लेकर रंजिश पनपी और उसी रंजिश के चलते टोंटा ने मावी की बेरहमी से हत्‍या कर दी।
इसी हत्‍या के केस के तहत पुलिस ने राजेश टोंटा को हाथरस से गिरफ्तार किया था और सुरक्षा के मद्देनजर मथुरा कारागार में शिफ्ट किया।
बागपत जिला जेल में हुई मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या से कहीं बहुत आगे मथुरा में तो 17 जनवरी 2015 को जेल के अंदर 1 हत्‍या हो जाने और राजेश टोंटा सहित तीन बदमाशों के घायल हो जाने के बाद दूसरे ही दिन 18 जनवरी को टोंटा को तब गोलियों से भून डाला गया जब उसे इलाज के लिए एंबुलेंस में भारी पुलिस फोर्स के साथ मथुरा की एसएसपी मंजिल सैनी आगरा ले जा रही थीं।
मथुरा के फरह थाना क्षेत्र में नेशनल हाईवे नंबर 2 पर मथुरा-आगरा के बीच पचासों पुलिसकर्मियों के रहते एंबुलेंस के अंदर राजेश टोंटा को गोलियों से भून डाला गया और न तो पुलिस एक भी बदमाश को मौके से पकड़ सकी और न टोंटा के साथ एंबुलेंस में मौजूद कोई पुलिसकर्मी घायल हुआ।
अपराध जगत में राजेश टोंटा के नाम से कुख्‍यात रहे हाथरस निवासी राजेश शर्मा की पत्‍नी कनक शर्मा ने अपने पति की हत्‍या का आरोप मथुरा की महिला एसएसपी मंजिल सैनी पर लगाया। कनक शर्मा ने इस मामले में बाकायदा मथुरा के थाना फरह को इस आशय की तहरीर दी। तहरीर के मुताबिक राजेश टोंटा की हत्‍या का सौदा एसएसपी मंजिल सैनी ने 3 करोड़ की मोटी रकम लेकर किया था।
कनक शर्मा द्वारा इस मामले में ब्रजेश मावी के अवकाश प्राप्‍त पुलिस ऑफीसर पिता राजेन्‍द्र सिंह, मावी की पत्‍नी सीमा, विनोद चौधरी एवं प्रमोद चौधरी पुत्रगण पुरुषोत्तम सिंह निवासीगण सी-18 हरीनगर कृष्णानगर मथुरा और एसएसपी मंजिल सैनी शामिल बताए गए।
कुल मिलाकर यदि ये कहा जाए कि उत्तर प्रदेश की जेलें हर दौर में कुख्‍यात अपराधियों के लिए सजा का ठिकाना न होकर संरक्षण के केंद्र रही हैं तो कुछ गलत नहीं होगा। राज चाहे आज योगी का हो अथवा अखिलेश, मुलायम या मायावती का।
भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहीं मायावती के शासनकाल में 1995 के दौरान भी मथुरा जिला कारागार के अंदर वाले गेट पर हुई गोलीबारी में किशन पुटरो के साथ जेल के एक सफाईकर्मी की भी हत्‍या गोलियां बरसाकर कर दी गई थी।
कहने का आशय यह है कि उत्तर प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था एक लंबे समय से बदहाल है। यह बात अलग है कि जिस तरह आज योगी आदित्‍यनाथ पहले से बेहतर कानून-व्‍यवस्‍था होने का दावा करते हैं, उसी तरह मायावती और अखिलेश भी अपने-अपने समय में कानून का राज होने का दावा करते रहे थे किंतु सच्‍चाई यही है जो मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या से सामने आई है या राजेश टोंटा एवं अक्षय सोलंकी की हत्‍या से सामने आई थी।
अखिलेश राज में हुआ जवाहर बाग कांड भी इसी बदहाल कानून-व्‍यवस्‍था का उदाहरण बना था। तब मथुरा के सरकारी जवाहर बाग को राजनीतिक संरक्षणप्राप्‍त माफिया रामवृक्ष यादव से खाली कराने गए एसपी सिटी और एसओ को भारी पुलिसबल की मौजूदगी में मार दिया गया।
सच तो यह है कि सरकारें आती जाती रहती हैं लेकिन कानून-व्‍यवस्‍था जस की तस रहती है। निश्‍चित ही इसके लिए वो व्‍यवस्‍था दोषी है जिसके कारण पुलिस-प्रशासन का पूरी तरह राजनीतिकरण हो चुका है। जाहिर है कि जब तक पुलिस-प्रशासन के इस राजनीतिकरण को खत्‍म नहीं किया जाता तब तक न सड़क पर अपराध कम होंगे और न जेल के अंदर।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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